Wednesday, 8 February 2017
गद्दार नेता
देश में मूलनिवासी बहुजन समाज मिशन के दो मजबूत स्तम्भ अचानक ढह गये, एक का मलबा भाजपा मुख्यालय में गिरा तो दूसरे का एनडीए में, मुझे कोई अफसोस नहीं हुआ, मिट्टी जैसे मिट्टी में जा कर मिल जाती है, ठीक वैसे ही सत्ता पिपासु कुर्सी लिप्सुओं से जा मिले। वैसे भी इन दिनों भाजपा में sc,st,obc नेता थोक के भाव जा रहे है, राम नाम की लूट मची हुई है, उदित राज (रामराज), रामदास अठावले, रामविलास पासवान, जुगुल किशोर, कौशल किशोर जैसे तथाकथित बड़े नेता और फिर सैकड़ों छुटभैय्ये, सब लाइन लगाये खड़े हैं कि कब मौका मिले तो सत्ता की बहती गंगा में डूबकी लगा कर पवित्र हो लें। एक तरफ पूंजीवादी ताकतों से धर्मान्ध ताकतें गठजोड़ कर रही हैं तो दूसरी तरफ सामाजिक न्याय की शक्तियां साम्प्रदायिक ताकतों से मेलमिलाप में लगी हुई हैं, नीली क्रान्ति के पक्षधरों ने आजकल भगवा धारण कर लिया है, रात दिन मनुवाद को कोसने वाले ’जयभीम’ के उदघोषक अब ’जय सियाराम’ का जयघोष करेंगे। इसे सत्ता की भूख कहे या समझौता अथवा राजनीतिक समझदारी या शरणागत हो जाना?
आरपीआई के अठावले से तो यही उम्मीद थी, वैसे भी बाबा साहब के वंशजो ने बाबा साहब की जितनी दुर्गत की, उतनी तो शायद उनके विरोधियों ने भी नहीं की होगी, सत्ता के लिये जीभ बाहर निकालकर लार टपकाने वाले sc,st,obc नेताओं ने महाराष्ट्र के मजबूत बहुजन आन्दोलन को टुकड़े-टुकड़े कर दिया और हर चुनाव में उसे बेच खाते हैं। अठावले जैसे बिकाऊ नेता कभी एनसीपी, कभी शिव सेना तो कभी बीजेपी के साथ चले जाते हैं, इन जैसे नेताओं के कमीनेपन की तो बात ही छोड़िये, जब क्रान्तिकारी कवि नामदेव ढसाल जैसे भीम शक्ति को शिवशक्ति में विलीन करके जा खपे तो अठावले फठावले को तो जाना ही है। रही बात खुद को आधुनिक अम्बेडकर समझ बैठै उतर भारत के बिकाऊ sc,st,obc लीडरों की, तो वे भी कोई बहुत ज्यादा भरोसेमंद कभी नहीं रहे, लोककथाओं के महानायक जैसा दर्जा प्राप्त कर चुके प्रचण्ड अम्बेडकरवादी बुद्ध प्रिय मौर्य पहले ही सत्ता के लालच में गिर कर गेरूआ धारण करके अपनी ऐसी तेसी करा चुके हैं, फिर उनकी हालत ऐसी हुई कि धोबी के प्राणी से भी गये बीते हो गये, अब पासवान फिर से पींगे बढाने चले हैं एनडीए से। इन्हें रह रह कर आत्मज्ञान हो जाता है, सत्ता की मछली है बिन सत्ता रहा नहीं जाता, तड़फ रहे थे, अब इलहाम हो गया कि नरेन्द्र मोदी सत्तासीन हो जायेंगे, सो भड़वागिरी करने चले गये वहाँ, आखिर अपने नीलनैत्र पुत्ररतन चिराग पासवान का भविष्य जो बनाना है, पासवान जी, जिन बच्चों का बाप आप जैसा जुगाड़ू नेता नहीं, उनके भविष्य का क्या होगा ? अरे बहुजन समाज ने तो आपको माई बाप मान रखा था, फिर सिर्फ अपने ही बच्चे की इतनी चिन्ता क्यों? बाकी बहुजन बच्चों की क्यों नहीं? फिर जिस वजह से वर्ष 2002 में आप एनडीए का डूबता जहाज छोड़ भागे, उसकी वजह बने मोदी क्या अब पवित्र हो गये? क्या हुआ गुजरात के कत्ले-आम का, जिसके बारे में आप जगह-जगह बात करते रहते थे। दंगों के दाग धुल गये या ये दाग भी अब अच्छे लगने लगे? लानत है आपकी सत्ता की लालसा को, इतिहास में बहुजन आन्दोलन के गद्दारों का जब भी जिक्र चले तो आप वहाँ रामविलास के नाते नहीं भोग विलास के नाते शोभायमान रहे, हमारी तो यही शुभेच्छा आपको। एक थे रामराज, तेजतर्रार अधिकारी, आईआरएस की सम्मानित नौकरी, बामसेफ की तर्ज पर एससी एसटी अधिकारी कर्मचारी वर्ग का कन्फैडरेशन बनाया, उसके चेयरमेन बने, आरक्षण को बचाने की लड़ाई के योद्धा बने, देश के बहुजन समाज ने इतना नवाजा कि नौकरी छोटी दिखाई पड़ने लगी, त्यागपत्रित हुये, इण्डियन जस्टिस पार्टी बनाई, रात दिन पानी पी पी कर मायावती को कोसने का काम करने लगे, हिन्दुओं के कथित अन्याय अत्याचार भेदभाव से तंग आकर बुद्धिस्ट हुये, रामराज नाम हिन्दू टाइप का लगा तो सिर मुण्डवा कर उदितराज हो गये। सदा आक्रोशी, चिर उदास जैसी छवि वाले उदितराज भी स्वयं को इस जमाने का अम्बेडकर मानने की गलतफहमी के शिकार हो गये, ये भी थे तो जुगाड़ ही, पर बड़े त्यागी बने फिरते, इन्हें लगता था कि एक न एक दिन सामाजिक क्रांति कर देंगे, राजनीतिक क्रान्ति ले आयेंगे, देश दुनिया को बदल देंगे, मगर कर नहीं पाये, उम्र निरन्तर ढलने लगी, लगने लगा कि और तो कुछ बदलेगा नहीं खुद ही बदल लो, सो पार्टी बदल ली और आज वे भी भाजपा के हो लिये।माननीय डाॅ. उदित राज के चेले-चपाटे सोशल मीडिया पर उनके भाजपा की शरण में जाने के कदम को एक महान अवसर, राजनीतिक बुद्धिमता और उचित वक्त पर उठाया गया उचित कदम साबित करने की कोशिश में लगे हुये हैं। कोई कह रहा है – वो वाजपेयी ही थे जिन्होेंने संविधान में sc,st के हित में 81, 82, 83 वां संशोधन किया था, तो कोई दावा कर रहा है कि अब राज साहब भाजपा के राज में प्रौन्नति में आरक्षण, निजीक्षैत्र में आरक्षण जैसे कई वरदान दलितों को दिलाने में सक्षम हो जायेंगे, कोई तो उनके इस कदम की आलोचना करने वालों से यह भी कह रहा है कि उदितराज की पहली पंसद तो बसपा थी, वे एक साल से अपनी पंसद का इजहार कुमारी मायावती तक पंहुचाने में लगे थे लेकिन उन्होने सुनी नहीं, बसपा ने महान अवसर खो दिया वर्ना ऐसा महा गद्दार नेता भाजपा जैसी पार्टी में भला क्यों जाता? एक ने तो यहाँ तक कहा कि आज भी मायावती से सतीश मिश्रा वाली जगह दिलवा दो, नियुक्ति पत्र ला दो, कहीं नहीं जायेंगे उदितराज ! अरे भाई, सत्ता की इतनी ही भूख है तो कहीं भी जाये, हमारी बला से भाड़ में जाये उदित राज! क्या फर्क पड़ेगा फुले-अम्बेडकरी मिशन को ? बुद्ध, कबीर, फुले, पेरियार तथा अम्बेडकर का मिशन तो एक विचार है, एक दर्शन है, एक कारवां है, अविरल धारा है, लोग आयेंगे, जायेंगे, नेता लूटेंगे, टूटेंगे, बिकेंगे, पद और प्रतिष्ठा के लिये अपने-अपने जुगाड़ बिठायेंगे, परेशानी सिर्फ इतनी सी है कि रामराज से उदितराज बने इस भगौड़े लीडर को क्या नाम दें, उदित राज या राम राज्य की ओर बढ़ता रामराज अथवा भाजपाई उदित राम ! एक प्रश्न यह भी है कि बहन मायावती के धुरविरोधी रहे उदित राज और रामविलास पासवान सरीखे नेता भाजपा से चुनाव पूर्व गठबंधन कर रहे हैं अगर चुनाव बाद गठबंधन में सपा, कांग्रेस साथ में आये तो ये सब बहुजन समाज को अलग-अलग लूटने तोड़ने वाले एक साथ मिलकर लूटेंगे। या शैतान राजनीतिक पार्टी भाजपा के साथ मिलकर सबका सत्यानाश होगा? इतिहास गवाह है कि बाबा साहब की विचारधारा से विश्वासघात करने वाले मिशनद्रोही तथा कौम के गद्दारों को कभी भी मूलनिवासी बहुजन समाज ने माफ नहीं किया। दया पंवार हो या नामदेव ढसाल, संघप्रिय गौतम, बुद्धप्रिय मौर्य अथवा अब रामदास अठावले, रामविलास पासवान, उदित राज, जुगुल किशोर, कौशल किशोर, स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेता, इस चमचायुग में ये चाहे कुर्सी के खातिर संघम्(आरएसएस) शरणम् हो जाये, हिन्दुत्व की विषमतावादी और आक्रान्त राजनीति के तलवे चाटें। मगर बहुजन समाज बिना निराश हुये अपने आदर्श बाबा साहब डाॅ. भीमराव अम्बेडकर के विचारों की रोशनी में आगे बढ़ेगा, उसे अपने समाज के बिकाऊ नेताओं के ’भगवा’ धारण करने का कोई अफसोस नहीं होगा, अफसोस तो इन्हीं को करना है, रोना तो इन्ही नेताओं को है। हाँ, यह बहुजन समाज के साथ धोखा जरूर है, मगर काला दिन नहीं, दोस्तों वैसे भी मोदी की गोदी में जा बैठे गद्दार और भड़वे नेताओं के बूते कभी सामाजिक परिवर्तन का आन्दोलन सफलता नहीं प्राप्त करता, ये लोग अन्दर ही अन्दर हमारे मिशन को खत्म कर रहे थे, अच्छा हुआ कि अब ये खुलकर हमारे बहुजन समाज के शत्रुओं के साथ जा मिले। हमें सिर्फ ऐसे छद्म मनुवादियों से बचना है ताकि बाबा साहब का कारवां निरन्तर आगे बढ़ सके और बढ़ता ही रहे….. !
इसीलिए मूलनिवासी बहुजन समाज से अपील है कि बामसेफ और बी एस पी को भरपूर सहयोग करें।
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