यदि आप गायत्री जाप करते है तो एक बार अवश्य इसे पढ़े, सच्चाई जानने के बाद आप इसे कभी भी जाप नही करेंगे, ये मेरा चैलेंज है।
गायत्री मन्त्र की अश्लीलता :-
(नवयोनी-तांत्रिक क्रियाओं में बोला जाने वाला मंत्र) :-
आप सभी 'गायत्री-मंत्र' के बारे में अवश्य ही परिचित है, लेकिन क्या आपने इस मंत्र के अर्थ पर गौर किया ? शायद नहीं !
जिस गायत्री मंत्र और इसके भावार्थ को हम बचपन से सुनते और पढ़ते आये है; वह भावार्थ इसके मूल शब्दों
से बिल्कुल अलग है |
वास्तव में यह मंत्र 'नव-योनि' तांत्रिक क्रियाओं में बोले जाने वाले मन्त्रों में से एक है | इस मंत्र के मूल शब्दों पर गौर किया जाये तो यह मंत्र अत्यंत ही अश्लील व भद्दा है !
इसके प्रत्येक शब्द पर गहराई से गौर किया जाये तो यह किसी भी दृष्टि से अध्यात्मिक अर्थ नहीं देता |
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आईये देखे इसके प्रत्येक शब्द के अर्थ का विशेषण करके
इसके अर्थ पर गौर करें :-
मंत्र:- ॐ भू: भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात् |
~ प्रत्येक शब्दों की अलग-अलग व्याख्या :-
ॐ+ भूर्भुवः (भुः+ भुवः), स्वः+तत्सवितुर्वरेण्यं(तत्+सवित+उर+वरणयं), भर्गो=भार्गव/भृगु,देवस्य(देव+स्य), धीमहि+धियो+योनः+प्र+चोद्यात |
ॐ =प्रणव ।
भुः = भुमि पर ।
भुवः = आसीन/निरापद हो जाना/लेट जाना
[(भूर्भुवः=भुमि पर)]।
स्व= अपने आपको ।
तत्= उस ।
सवित= अग्नि के समान तेज, कान्तियुक्त की ।
उर= जंगाओं में ।
वरण्यं = वरण करना, एक दूसरे के/ एकाकार हो जाना।
भर्गोः देवस्य=भार्गवर्षि/विप्र(ब्राहमण) के लिये ।
धीमहि= ध्यानस्थ होना/उसके साथ एक रूप होना|
[(धी =ध्यान करना), (महि=धरा, धरती, धरणी, धारिणी के/से सम्बद्ध होना)
धियो =उनके प्रति/मन ही मन मे ध्यान कर/मुग्ध हो जाना/ भावावेश क्षमता को तीव्रता से प्रेरित
करना ।
योनः= योनि/ स्त्री जननांग ।
प्र= [उपसर्ग] दूसरों के/सन्मुख होना/आगे करना या होना/समर्पित/समर्पण करना ।
चोदयात्= मँथन/मेथुन/सहवास/समागम/सन्सर्ग के हेतु ।
सरलार्थ:- हे देवी (गायत्री), भू पर आसीन (लेटते हुए) होते हुए, उस अग्निमय और कान्तियुक्त सवितदेव के समान तेज भृगु (ब्राहमण) की जंगाओं में एकाकार होकर मन ही मन में उन्ही के प्रति भावमय होकर
उनको धारण कर लो, और पूर्ण क्षमता से अपनी योनि को संभोग (मैथुन) हेतु उन्हें समर्पित कर दो |
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वैदिक धर्म का आधार सम्भोग, मांसाहार और युद्ध है। गायत्री मन्त्र सम्भोग मन्त्र है। भारत में वैदिक
धर्म आने के बाद बुद्धिज़्म की पवित्रता की वजह से वैदिक में सात्विकता आई जैसे शाकाहार, दया, ध्यान, आयुर्वेदा।
श्रीयंत्र या गायत्री यंत्र के लिये google पे विक्किपेडिया पढ़े।
गायत्री यंत्र को नव योनि यंत्र भी कहते है; नो-योनियों का representation
होता है 'श्रीयंत्र' और उसमे लिखा जाता है
-'गायत्री मन्त्र।'
(ज्यादा जानकारी के लिए इन्टरनेट पर 'योनितंत्र' देखें)
सोरी🙏🙏🙏
मेसेज थोड़ा अश्लिल हे पर सच्चाई सबको बताना जरूरी समझा।।
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