Sunday, 26 February 2017

भारत में आखिर बहुजन अब भी गुलाम क्यों ...?

आजाद भारत में आखिर बहुजन अब भी गुलाम क्यों ...?

आज भारत में यह सवाल और स्थितियां दोनों ही चिंताजनक,शर्मनाक पर अटल सत्य है कि आजाद भारत में अब भी तीन चौथाई से अधिक आबादी आज भी अपनी आजादी के लिए जद्दोजहद कर रही हैं....पर आखिर किससे....और क्यों....यह सवाल जितना अहम है उतनी ही अहम है इससे आजादी...इस भारत में तब कभी अंग्रेज विदेशी थे और उनसे आजादी चाहिए थी ...पर यह आजादी पेशवाई ब्राम्हणों को चाहिए थी..उन्होंने अंग्रेजों को विदेशी बताकर ..आंदोलन चलाया.....अंग्रेजो भारत छोड़ो....भारत का बहुसंख्यक मूलनिवासी बहुजन धोखे से अपनी आजादी समझकर आंदोलन में कूद पड़ा....परिस्थितियां बदलीं -अंग्रेजों ने भारत छोड़ दिया पर ..आजादी मिली ...पर ...न भारत आजाद हुआ और न ही बहुसंख्यक भारतवासी.....बल्कि पूरी तरह हम पर जुर्म करने के लिए आजाद हुआ अल्पसंख्यक ब्राम्हण विदेशी...मतलब अगर पहले भारत और भारतवासी अंग्रेजों के गुलाम थे तो अब ब्राम्हणों के गुलाम हैं....और आज इन्हीं अल्पसंख्यक ब्राम्हणों से बहुसंख्यक मूलनिवासियों को आजादी चाहिए....जिसके लिए हमें पुनः आंदोलन चलाने की आज सख्त जरुरत है...?.....ब्राम्हणों भारत छोड़ो...अगर बहुजन अपनी असली औकात में आ जाय तो यक़ीनन ब्राम्हणों को भारत छोड़ना ही पडेगा....पर उसके लिए हमें भी साम,दाम,दंड,भेद की नीति चलाने और अपनाने की विशेष आवश्यकता है .
     वैसे आधुनिक भारत के आजादी का केंद्रबिंदु "14 अप्रैल 1891"महू "मध्य प्रदेश "(बाबासाहब की जन्मस्थली )है जहाँ से हमारी आजादी के दो रास्ते निर्मित होते हैं एक रास्ता जाता है 14 अक्टूबर 1956 नागपुर (धम्म दीक्षा /धर्मान्तर ) जहाँ से हमे मानसिक और वैचारिक आजादी मिल सकती है और दूसरा रास्ता (संसद)दिल्ली 26 नवंबर 1949.जहाँ से हमें सामाजिक और राजनैतिक आजादी मिलने का पूरा बंदोबस्त है ,इन दोनो ही रास्तों का अनुकरण हमें संपूर्ण सामाजिक,धार्मिक,राजनैतिक,आर्थिक और वैचारिक संप्रभुता संपन्न आजादी दिलाने में सक्षम साबित होगा,यही फुले,साहू,पेरियार अम्बेडकरी विचारधारा का लक्ष्य और उद्देश्य था जिससे हम किसी भी तरह से ब्राम्हणवाद को परास्त कर आजादी हासिल कर सकते हैं,प्रयास चालू हैं पर अनुसासन और सिद्धांतों का अनुसरण कर उसमें और भी सुधार कर प्रखरता लाने की आज पुनः सख्त जरुरत है ...
              एस.चंद्रा बौद्ध
                    " मिशन अम्बेडकर"  

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