Sunday 25 February 2018

क्या है छठ की पूजा* ?

(साभार मान्यवर  बोद्ध का ) संकलन :- 


छठ पूजा की सच्चाई जाने बिना अज्ञानी, अंध विश्वासी बिहारी लोग इसे धूम धूमधाम से मनाते हैं तथा धीरे - धीरे वोट के लिये राजनीतिज्ञों द्वारा पूरे देश में ये फैलाया जा रहा है. ब्राह्मण किस तरह से भोले भाले अंजान लोगों को बेवकूफ बना सकता है, ये एक वर्तमान उदाहरण है. 

असल में तथाकथित छठ माता, महाभारत के एक चरित्र कुंती की प्रतीक है जो कुंवारी होते हुये भी सूरज नाम के व्यक्ति से बच्चा पैदा करने की गुजारिश करती है  तथा कर्ण नाम का पुत्र पैदा करती है. इसी घटना को इस दिन मंचित किया जाता है. जो परम्परा का रुप ले लिया है.

 शुरू में केवल वो औरतें जिनको बच्चा नहीं होता था, वही छठ मनाती थी तथा कुंवारी लड़कियां नहीं मना सकती थीं क्योंकि इसमे औरत को बिना पेटिकोट ब्लाउज के ऐसी पतली साड़ी पहननी पड़ती है जो पानी में भीगने पर शरीर से चिपक जाय तथा पूरा शरीर सूरज को दिखायी दे जिससे कि वो आसानी से बच्चा पैदा करने का उपक्रम कर सके. सूरज को औरतों द्वारा अर्घ देना उसको अपने पास बुलाने की प्रक्रिया है जिससे उस औरत को बच्चा हो सके. 

ये अंधविश्वास की पराकाष्ठा है कि आज इसको त्योहार का रुप दे दिया गया है तथा आज कल अज्ञानी एवं अंध विश्वासी आदमी तथा कुंवारी लड़कियां भी इस भीड़ में शामिल हो गये हैं. 

ज्ञात हो कि ये बीमारी विहार से सटे यू पी के जिलों में भी बड़ी तेजी से फैल रही थीं लेकिन बौद्ध लोगों के जागरूकता अभियान के कारण एस सी /एस टी/ ओ बी सी में काफी हद तक कम होने लगा है. 

हम उन अम्बेडकर वादियों को धन्य वाद करते हैं जो इस कोढ़ की बीमारी को ख़तम करने में पिछले तीन दशकों से लगातार जागरूकता अभियान चला रखा हैं. आशा है कि इस पोस्ट को पढ़ने के बाद देश के दलित पिछड़े, इस बीमारी का शिकार होने से बचेंगे.'

आज भारत मे छठ् पूजा बड़े ही धूम-धाम से मनाया जायेगा और बहोत सारा फल व पैसा पंडित जी को अर्पण किया जायेगा
पर कभी सोचा है छठपूजा कूयों मनाते हैं....?
 *आज हम बताते है
क्या है छठ की पूजा* ? 
छठ पूजा की सच्चाई जाने बिना अज्ञानी, अंध विश्वासी लोग इसे धूम धूमधाम से मनाते हैं. 
तथा धीरे-धीरे वोट के लिये राजनीतिज्ञों द्वारा पूरे देश में ये फैलाया जा रहा है. 
ब्राह्मण किस तरह से भोले भाले अंजान लोगों को बेवकूफ बना सकता है, ये एक वर्तमान उदाहरण है. 
असल में तथाकथित छठ माता, महाभारत के एक चरित्र कुंती की प्रतीक है जो कुंवारी होते हुये भी सूरज नाम के व्यक्ति से शादी के पहले के सम्बन्ध से प्रेग्नेंट(पेट से) हो जाती है। 
सच ये है की, खुद प्रेग्नेंट है इस बात की कुंती को समझने में देरी हो जाने से, कर्ण नाम का पुत्र पैदा करती है। 
महाभारत की इस घटना ( सूर्य से वरदान वाली जूठी कहानी) को इस दिन मंचित किया जाता है. जो परम्परा का रुप ले लिया है.
शुरू में केवल वो औरतें जिनको बच्चा नहीं होता था, वही छठ मनाती थी तथा कुंवारी लड़कियां नहीं मना सकती थीं क्योंकि इसमे औरत को बिना पेटिकोट ब्लाउज के ऐसी पतली साड़ी पहननी पड़ती है जो पानी में भीगने पर शरीर से चिपक जाय तथा पूरा शरीर सूरज को दिखायी दे जिससे कि वो आसानी से बच्चा पैदा करने का उपक्रम कर सके. 
सूरज को औरतों द्वारा अर्घ देना उसको अपने पास बुलाने की प्रक्रिया है जिससे उस औरत को बच्चा हो सके. 
ये अंधविश्वास और अनीति की पराकाष्ठा है कि आज इसको त्योहार का रुप दे दिया गया है तथा आज कल अज्ञानी एवं अंध विश्वासी आदमी तथा कुंवारी लड़कियां भी इस भीड़ में शामिल हो गये हैं. 

ज्ञात हो कि ये बीमारी बिहार से लेकर यू पी के लगभग सभी जिलों में भी बड़ी तेजी से फैल गई है और इस अंधविश्वास मे हमारे देश के मूल निवासी यानि S.C.,S.T.,O.B.C. ही बर्बाद हो रहे हैं !

महाभारत की पात्र कुंती को सामाजिक प्रतिष्ठा दिलाने के लिए छठी मैया का पूजा शुरू कराया मिथलांचल के ब्राह्मणों ने,क्योंकि कुंती को कुँवारेपन में ही एक ब्राह्मणपुत्र सूर्यनारायण से मोहब्बत हो गया था और उसने कुंती को बिन ब्याही गर्भवती कर दिया।इस स्थिति से रूबरू होने पर राजा ने उस ब्राह्मण पुत्र को देश निकाला या मौत की सजा देकर यह अफवाह फैलाया गया कि राजकुमारी कुंती के रूप लावण्यता से मुग्ध होकर अर्घ्य देते समय सूर्यनारायण(सूर्य)ने उसे गर्भवती कर दिया है जिसके बाद कुंती से उतपन्न पुत्र कर्ण को सन्दूक में बंद कर गंगा में बहा दिया गया।अगर भगवान सूर्य से ही कर्ण पैदा हुआ तो फिर उसे गंगा में बहाने की क्या जरूरत थी।आज भी महिलाएं लोक गीत गाती है...इहे बलका जे तोहरो दिहलका अर्का देले जुठीयाय.....।कथित सूर्य से उतपन्न बालक कर्ण व पांच पांडवों को लेकर कुंती छठी मैया बन गयी और नाम कुंती का इल्जाम सूर्य पर और पूजन ब्राह्मण पुत्र सूर्यनारायण की।यही छठ पूजा ।

*​छ्ठ पूजा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि जानिए*

​मगध देश बहुत सुखी और समृद्ध देश था। वहाँ वर्ष में दो फसल के सृजन का अच्छा तरीका है। वहाँ साल में छठी बरसात' के बाद नवम्बर-दिसम्बर जनवरी में थोड़ा अच्छा होने पर रबी फसल अच्छी तरह से होती है। छठ माई की पुजा का आधार अच्छी फसल मान कर करते हैं। जिस वर्ष फसल अच्छी होती, उस साल छठ माइ की पुजा अच्छी तरह मनाई जाती। फसल के लिए कार्तिक महीना छठ पुजा और रबी फसल अच्छी होगी तब चैत महीने छठ पूजा मनाते हैं।​
​बंगाल (कलकत्ता) में उत्तर भारत के लोग गंगा के किनारे छठ माई  कीे पुजा करते हैं। वैदिक मतों  या आर्यो के मत  में सूरज हुए पुरुष देवता। और चंद्रमा हुआ स्त्री देवता। लेकिन द्रबिड़ो अनार्यो के अनुसार सूरज है महिला देवता और चंद्रमा पुरुष देवता। उनका विश्वास था कि सूरज की कृपा से समुद्र के पानी वाष्प के रूप में ऊपर उठता है ऊपर उठकर बादल बनकर वर्षा होती है, इसलिए उन क्षेत्रों में फसलों अच्छी होती रही है। फिर सूर्य की कृपा से सर्दियों के समय में शीत की बरसा होती तो चैत बरसात अर्थात् रबी फसल अच्छी होती है।
यह फसल  सर्दियों के बिल्कुल अंत में  कटाइ होती है। मगध में साल में दो बार छठ पूजा होती है --- एक बार कार्तिक छठ और एक बार चैती छठ।
यह कहा गया कि छठ माई के पूजा में सूरज को पानी में खड़े  होकर पूजन सामग्री (सूपली में) अर्ध्य स्वरूप अर्पण करते हैं। विभिन्न प्रकार के सामान जैसे - गेहू से बना ठेकुआ, चावल के लड्डु वताबी नेबु (गागल), नारियल, गन्ना, पानी फल (सिंधाड़ा) सिजनल फल- अन्नादि। ये सब अनार्य के समय का प्रचलन है। इससे समझा जाता है कि वेद के साथ कोई संबंध नहीं है। मगध माने वेद बिरोधी देश। पटना गया हैं मगध देश। यहाँ छठ पूजा जल में खड़े होकर उगते और अस्त होते सूर्य की ओर देखते हुए छठ पुजा की  जाती है। छठ पुजा न होने पर प्रकृति कुपित हो बाधित कर सकती है, यह धारणा है। छठ माई असंतुष्ट हो तो कई खतरे बन जाएंगे, प्रकृति रुष्ट हो जाएगी यह माई भक्ति भय जनित भक्ति है। पूजा से ममत्व उमड़ेगा माई के दिल में और भला होगा सबका। सर्वप्रथम छठ पूजा मगध क्षेत्र में आरम्भ हुआ और क्रमशःअन्य क्षेत्रो में फैलता गया।
इस प्रकार छठ पूजा प्रकृति पूजा अर्थात जड़ पूजा है जो भय मानसिकता से प्रेरित होकर प्राचीन काल में लोग अपने से शक्तिशाली जड़सत्ता को पूजते थे। प्रकृति पूजा मन को स्थूल की ओर ले जाता है, जबकि परमचैतन्य अर्थात परमात्मा की साधना मन को सूक्ष्म से सुक्षतम की ओर ले जाता है। प्रकृति पूजा से व्यष्टि या समष्टि का आध्यात्मिक उन्नति नही हो सकता है।आध्यत्मिक उन्नति के लिए एक परम् सत्ता का अपने भीतर अनुभूति करना होगा जो भक्ति के द्वारा ही सम्भव है।

स्रोत.......

 श्री श्री आनन्दमूर्ति रचित पुस्तक से उद्धरित]

छठ पर्व का इतिहास

छठ पर्व का इतिहास कब का है इस बात का तो दावा नहीं किया जा सकता लेकिन हैं यह कुषाणकाल से पहले का मनाया जाने वाला पर्व है।कुषाण काल के बाद ही छठी मईया के साथ इस पर्व में सूर्य पूजा जुड़ गई।

छठी मईया कौन थी इस बात को पकड़ना आसान नहीं है


इसमें सूर्य और छठी मईया दोनों की पूजा की जाती है। चूंकी छठी मईया के नाम पर इस पर्व का नाम है इसलिए यह कहा जा सकता है कि सूर्य पूजा छठ पर्व में बाद में आई। कुषाण काल के राजा कनिष्क के समय में ‘मग’ लोग सूर्य की मूर्ति लाए, जो मूर्ति ‘मग’ लेकर आए वो घुटने तक जूता पहने हुए थी (कुषाण काल में राजा भी घुटनों तक जूता पहनते थे)। बिहार के औरंगाबाद जिलें में जो सूर्य मंदिर है उसमें भी सूर्य की मूर्ति घुटनों तक जूता पहने हुए है। यह परम्परा भारत में कुषाण काल में मग लेकर आए (मग लोग ईरान से आए और ईरान में सूर्य पूजा की मान्यता काफी है) और उन्हीं लोगों ने सूर्य की एक विशेष प्रकार की पूजा चलाई।


छठी मईया के नाम पर है छठ पर्व का नाम

इस पर्व का जो प्रसाद है उसमें सर्वाधिक प्रमुख है अगरौठा इसका संबंध अर्घ देने से है। अगरौठा की जो आकृति है, जिसका ठप्पा ठेकुए पर मारा जाता है आज भी उसमें दो प्रकार के चिन्ह मिलते हैं, पहला चिन्ह मिलता है पीपल के पत्ते का और दूसरा चिन्ह मिलता है चक्र का। यह कोई मामूली लॉजिक नहीं है क्योंकि हाशिए का इतिहास ऐसे ही लिखा गया है कहीं पत्थरों पर, कहीं दीवार में, कहीं ठेकुए पर ही जीवित है इतिहास। पीपल के पत्ते और चक्र का चिन्ह दोनों ही छठ को बौद्ध परम्परा से जोड़ते हैं। छठ का नामकरण मूलत: छठी मईया पर है। छठी मईया के कारण ही इस पर्व का नाम छठ है। छठी मईया जो लेयर है वो पुराना है इसलिए लोग छठ के गीतों में छठी मईया को याद करते हैं।

छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक पर्व है। यह पर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखंड पूर्वी यूपी और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। यह पर्व हिंदु धर्म के लोगों में मुख्य पर्व के तौर पर मनाया जाता है। इसमें छठ मईया और सूर्य की पूजा की जाती है। मध्यमार्ग से बातचीत के दौरान भाषा वैज्ञानिक राजेंद्र प्रसाद ने इस पर्व के संबंध में अपनी राय रखी और छठ के नए पहलुओं से अवगत कराया। आइए आपको बताते हैं राजेंद्र प्रसाद सिंह से मध्यमार्ग की बातचीत के कुछ महत्वपूर्ण अंश–

छठ पर्व की कुछ खास बातें

छठ प्राकृत भाषा का शब्द है। छठ के संबंध में सारा ध्यान हमारा जो जाता है वो इस बात पर जाता है कि छठ उन्हीं इलाकों में मनाया जाता है जहाँ गौतम बुद्ध प्रमण करते थे। समतामूलक समाज बनाने के लिए जिन–जिन इलाकों में उन्होंने भ्रमण कर अपने उपदेश दिए छठ मुख्यत: छठ की परम्परा बिहार, पूर्वी यूपी, नेपाल की तराई में मानाया जाता है। नेपाल की तराई, बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में ही बुद्ध प्राय: घूमा करते थे। यह कोई मामूली लॉजिक नहीं है कि छठ केवल उन्हीं में मनाया जाता है जहाँ बुद्ध का अपना इलाका था, जहाँ से उनका लगाव था।

बौद्धिस्ट परम्परा का पर्व है छठ

इस पर्व में लोग घाट पर खासतौर से दक्षिण बिहार में जो वेदी बनाते हैं वो स्तूप के आकार का होता है। उत्तर बिहार में उस वेदी को सिरसौता कहा जाता है, सिरसौता का जो आकार–प्रकार है वो बिल्कुल मनौती स्तूप से मिलता–जुलता है। मनौती स्तूप बनाने का जो आर्ट है वो आज का नहीं है वो बहुत पुराना है, नवादा विश्वविद्यालय के खंडहरों को देखेंगे तो वहाँ आपको बहुत सारे मनौती स्तूप मिलेंगे। इसलिए मेरा मानना है कि छठ पर्व के पीछे बौद्धिज़्म की परंपरा छिपी हुई है और इस पर शोध करने की जरूरत है।

श्रमण सभ्यता और संस्कृति के इतिहास को इतिहासकारों ने बहुत ज़्यादा तवज्जो नहीं दिया, जिसकी वजह से बहुत सारा इतिहास पुस्तकों में दर्ज नहीं है, वो मौखिक, लोक परम्परा और लोककथाओं में है।

छठ पर्व में अगर सूर्य की पूजा होती है तो छठ मइया कहाँ से टपक पड़ी?????

सूर्य की चाहे पूजा करो या उसे जल चढ़ाओ या अर्ग दो उसतक कुछ भी पहुचने वाला नही है न ही उसके तापमान में परिवर्तन होने वाला है।हर जगह बराबर प्रकाश पहुँचेगा।जिस देश में सूर्य की पूजा नही होती वहां भी सूर्य की रौशनी पहुचती है।जिस ग्रह पर जिव नही है वहां भी पहुचती है।

फिर यहाँ इतना पाखण्ड क्यों?

*ब्राह्मण धर्म के पास ऐसा कुछ भी नहीं था, जिसे संस्कारवान या नैतिकता कहा जाये। अतः उन्होंने बुद्ध की शिक्षाओं को चुराना शुरू किया और ब्राह्मण धर्म का ठप्पा (मुहर) लगाकर बाजार (समाज) में उतार दिया।* 📚

       
*कैसे ?* 

(1) *गुरु पूर्णिमा* :- गौतम बुद्ध ने आषाढ़ पूर्णिमा के दिन सारनाथ में प्रथम बार पांच परिज्रावको को दीक्षा दी थी। ये दिन बौद्धों के जीवन में गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता था। बौद्ध धर्म समाप्त करने के बाद ब्राह्मण धर्म के ठेकेदारो ने इस पर कब्ज़ा किया।
(2) *कुम्भ मेला* :- कुम्भ का मेला बौद्ध सम्राट हर्षवर्धन ने शुरू करवाया था जिसका उद्देश्य बुद्ध की विचारधारा को फैलाना था। इस मेले में दूर दूर से बौद्ध भिक्षु, श्रमण,राजा,प्रजा, सैनिक भाग लेते थे। बौद्ध धर्म समाप्त करने के पश्चात ब्राह्मणों ने इसको अपने धर्म में  लेकर *अन्धविश्वास* घुसा दिया।

(3) *चार धाम यात्रा* :- बौद्ध धर्म में चार धामों का विशेष महत्त्व था। ब्राह्मणों ने बौद्ध धर्म के चार धामो को अपने काल्पनिक देवी-देवताओ के मंदिरो में बदल दिया और अपने धर्म से जोड़ दिया।
(4) *जातक कथाएँ* :-  जातक कथाये बौद्ध धर्म में विशेष महत्त्व रखती है। इन कथाओ द्वारा बौद्धिस्ट की दस परमिताओं को समझाया जाता था। कुछ कथाये गौतम बुद्ध काल की और कुछ बाद की लिखी गयी है। बौद्ध धर्म समाप्त करने के पश्चात ब्राह्मणों ने इन कथाओ का ब्रह्मणीकरण करके अपने धर्म में लिया और इन कथाओ में कुछ काल्पनिक कथाये, कुछ ऐतिहासिक बौद्ध स्थलो को जोड़कर रामायण और महाभारत की रचना की गयी।

(5) *विजयादशमी (दशहरा)* :- सम्राट अशोक ने कलिंग विजय के पश्चात अश्विन दशमी के दिन बौद्ध धम्म स्वीकार किया था। ये दिन *अशोका विजयदशमी* के रूप में जाना जाता था।इसी दिन ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने मौर्य वंश के 10वें सम्राट *वृहदर्थ मौर्य* की हत्या की थी। मौर्य सम्राट दस परमिताओं का रक्षक था। दस परमिताओं का रक्षक हार गया। प्रतिक के रूप में मौर्य वंश के 10 राजाओं के सिरों का दहन ही दशहरा था।
 बौद्ध धर्म समाप्त करने के पश्चात ब्राह्मणों ने इस दिन को काल्पनिक कथा रामायण के राम-रावण से जोड़कर दशहरा बना दिया। तुलसीदास की रामचरितमानस के अनुसार रावण चैत्र के महीने में मारा गया था।
(6) *दीपदानोत्सव* :- गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त होने के पश्चात जब गौतम बुद्ध कपिलवस्तु आये थे तो उनके पिता ने उनके आने की ख़ुशी में नगर को दीपो से सजाया था। सम्राट अशोक ने 84000 बौद्ध स्तूप/चैत्य/ विहार बनवाये थे। इन स्तूप/चैत्य/विहारों का उदघाटन कार्तिक अमावस्य के दिन दीप जलाकर किया था और ये दिन *दीपदानोत्सव* के नाम से जाना जाता था। क्योंकि ये चैत्य/ विहार/स्तूप भारतवर्ष में ही थे इसलिए ये त्यौहार केवल भारत तक ही सिमित था। बौद्ध धर्म समाप्त करने के पश्चात ब्राह्मण धर्म ने इस त्यौहार को काल्पनिक कथा रामायण के पात्र राम से जोड़ दिया।

(7) *लिंग-योनि पूजा* :- पुष्यमित्र शुंग की प्रतिक्रांति के बाद प्रथम शताब्दी में शुरू हुई। ब्राह्मण धर्म ने बौद्धों से कहा कि ईश्वर है जिसने ये संसार बनाया है और तुम्हे भी बनाया है।
बौद्धों ने ब्राह्मणों से कहा कि ईश्वर कल्पनामात्र है। ये दुनिया लिंग-योनि की क्रिया के कारण पैदा हुई है और प्राकृतिक है। ब्राह्मणों ने प्रतिक्रिया स्वरूप बौद्धों से ताकत के बल पर लिंग-योनि की मूर्ती पुजवाई। बाद में इसको मनगढ़ंत कहानी द्वारा पुराणों में शिव से जोड़ दिया और अंधविश्वासी लोग लिंग-योनि को शिव-लिंग मानकर पूज रहे है।

(8) *ब्राह्मणों के व्यावसायिक केंद्र (मंदिर)* :- आज जहाँ-जहाँ पर ब्राह्मणों के काल्पनिक देवी-देवताओ के बड़े-बड़े मंदिर है वहाँ कभी बौद्ध धर्म के केंद्र होते थे,जैसे-अयोध्या, काशी, मथुरा,पुरी ,द्वारका, रामेश्वरम, केदारनाथ, बद्रीनाथ,तिरुपति, पंढरपुर , शबरिमला आदि। बौद्ध धर्म समाप्त करने के पश्चात ब्राह्मणों ने उन्हें मंदिरो में बदल दिया। आप जाकर देखिये वर्तमान में तिरुपति बालाजी के मंदिर में मूर्ति स्वयं गौतम बुद्ध की है। इस बौद्ध मंदिर पर ब्राह्मणों ने कब्ज़ा करके बुद्ध को आभूषण और कपडे पहना दिए और उसका नाम अलग-अलग रख दिया। कोई इसको बालाजी,कोई वेंकटेश्वर, कोई शिव,कोई हरिहर,कोई कृष्ण,कोई शक्ति बोलता है।

(9) *पीपल पूजा* :- भारत के मूलनिवासी प्रकृति पूजक थे। पीपल के पेड़ के नीचे गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था इसलिए पीपल की पूजा का महत्त्व और भी बढ़ गया था। ब्राह्मणों ने बौद्ध धर्म समाप्त करने के पश्चात पीपल के पेड़ के नीचे एक पत्थर गाड़ दिया और इसे पिपलेश्वर महादेव (ब्रह्म बाबा) बना दिया।
(10) *वट वृक्ष पूजा* :- गौतम बुद्ध ने पहला उपदेश सारनाथ में वट वृक्ष के नीचे दिया था इसलिए लोग वट वृक्ष को भी पूजने लगे थे।बौद्ध धर्म समाप्त करने के पश्चात ब्राह्मणों ने इसेअपने धर्म में लेकर सत्यवान- सावित्री की काल्पनिक कथा से जोड़ दिया।
(11) *सिर का मुंडन* :- बौद्ध भिक्षु अपने सिर के बाल मुंडवाकर रखते थे। बौद्ध धर्म समाप्त करने के पश्चात ब्राह्मणों ने बौद्ध धर्म के प्रति नफरत फैलाने के लिए मृत्यु के पश्चात परिवार के लोगो का सिर मुड़वाने की प्रथा की शुरुआत की।
      ये लेख ब्राह्मणवाद की विकृति दर्शाता है इस पर विचार करें किन्तु अधिक तर्क/ प्रमाण से परहेज करें।




भारत के बैंक

 शोर शराबे के बीच मेरी आवाज भी सुनिये..मैं आपके मुद्दे लिखता हूं..ध्यान से पढिये..

1. भारत के बैंको का NPA 6 लाख करोड़ ₹ बोला जाता है..पर मैं हरदम 12 लाख करोड़ ₹ बोलता हूं..

2. जो उद्योगपति बैंक लोन चुका नही पाता उसे सहज शर्तो के साथ लोन चुकाने का मौका दिया जाता है..इसे Restructuring बोलते है..

3. Restructure लोन भी लगभग NPA ही माना जाता है और वो अलग से रिपोर्ट होता है तिमाही नतीजो के वक्त..अभी भारत मे Restructured बैंक लोन लगभग 5-6 लाख करोड़ ₹ है..

4. Rcom ने बयान दिया कि उनके लोन का Stand Still Period, दिसंबर 2018 तक है..

5. Stand Still Period का मतलब होता है जस का तस..यानी दिसंबर 2018 तक उन्हें लोन नही चुकाना है और बैंको के खातो में Rcom का लोन NPA नही दिखाया जायेगा..खेल समझे?!?!

6. आज Rcom की कीमत 3,300 करोड़ ₹ है और बैंक लोन 45,000 करोड़ ₹..मान लीजिये, Asset भी कुछ होंगे जरूर..सबकुछ मिला कर लोन का 25% होना भी मुश्किल सा लगता है..

7. एक बात साफ नही है : क्या Stand Still Period के बाद भी Restructuring कर के Rcom को और वक्त दिया जायेगा?

जनता की कुछ मांगे है:

★ Restructure Loan का कुल परिमाण और उद्योगपतियो के नाम सार्वजनिक किया जाये..

★ किस उद्योगपति का Stand Still Period कितना है ये भी सार्वजनिक किया जाये..

★ अगर Stand Still Period के बाद भी लोन वापस नही मिलता तो सरकार क्या कर्यवाही करेगी ये घोषणा की जाये..

एक बात समझ लीजिये : इकॉनमी तहस नहस हो चुकी है..NPA होने के वावजूद उन्हें बताया नही जा रहा है.. ये Restructured Loan 5-6 लाख करोड़ ₹ का घोटाला है और ये पैसे शायद ही वापस आये..

शौर्य दिवस

11 मार्च सन 1689 को  पेशवाओ ने हमारे शम्भाजी महाराज को खत्म कर उनके शरीर के अनगिनत टुकड़े कर तुलापुर नदी में फेक दिये थे और कहा कि जो भी इनको हाथ लगायेगा उसका क़त्ल कर दिया जायेगा। काफी समय तक कोई भी आगे नहीं आया पर महार जाति के एक पहलवान ने हिम्मत दिखाई और आगे आया जिसका नाम गणपत पहलवान था , वह शम्भाजी महाराज के सारे शरीर के हिस्सों को इकठ्ठा करके अपने घर लाया और उसकी सिलाई कर के मुखाअग्नि दी ।

          शम्भाजी  महाराज की समाधी आज भी उसी महारवाडे इलाके में स्थित है। ये सूचना मिलते ही पेशवाओ ने गणपत महार पहलवान का सर कलम कर दिया और समुची महार जाति को दिन में गाँव से बहार निकलने पर पाबन्दी लगा दी और कमर पे झाड़ू और गले में मटका डालने का फरमान लागू कर दिया था और पुरे पुणे शहर में यह खबर फैला दी कि गणपत महार पहलवान देवतुल्य हो गया है इसलिए वो भगवान की भेट चढ़ गया!   ।

          शम्भाजी महाराज की मृत्यु के बाद महार जाति के लोगो पर खूब अत्याचार इन पेशवाओ (सनातनी ब्रह्मणो ) द्वारा किये जाने लगे थे।महार जाति शुरू से ही मार्शल जाति थी , पर पेशवाओ ने अब इन लोगो पर मार्शल लॉ (सेना में लड़ने पर रोक ) लगा दिया था।

    महार अब इनके जुल्म से तंग आ चुके थे और अपने स्वाभिमान और अधिकार के लिए आंदोलन करने की सोच रहे थे …..।

        उस दौरान अंग्रेज भारत में आये ही थे पर वो पेशवाओ की बलशाली सेना पर विजय नहीं कर पा रहे थे , तभी महार जाति का एक नवयुवक सिद्धनाक पेशवाओ से मिलने गया और कहने लगा की वैसे तो हमारी अंग्रेजो की ओर से लड़ने की कोई इच्छा नहीं है मगर तुम हमारे सारे अधिकार और सम्मान हमे दे देते है तो हम अंग्रेजो को यहाँ से भगा देंगें , इस पर पेशवाओ ने कहा की तुम्हे यहाँ सुई के बराबर भी जमीन नहीं मिलेगी। यह सुनते ही सिद्धनाक ने पेशवा को चेतावनी देते हुए कहाँ की अब तुमने अपनी मृत्यु को स्वयं ही निमंत्रण दे दिया है , और अब तुम्हे कोई नहीं बचा सकता , अब हम रण भूमि में ही मिलेंगे ।

      अब सिद्धनाक अंग्रेजो से मिला और उनसे कहने लगा कि तुम हमे अपने अधिकार और सम्मान लौटा दो , तो हम आपकी तरफ से इन पेशवाओ से लड़ने के लिए तैयार है ।

    अंग्रेजो ने सिद्धनाक की बाते मान ली ।

   तब सिद्धनाक 500 महार सैनिको के साथ  शम्भाजी महाराज की समाधी पर जाता है और महाराज की समाधी को नमन करते हुए शपथ लेता है कि हम शाम्भाजी महाराज के खून का बदला जरूर लेंगे। और उसके बाद सात दिन तक चले युद्ध में भूखे प्यासे रहकर महारो के 500 वीरो ने पेशवाओ के 28000 सैनिकों के टुकड़े – टुकडे करके उनको नेस्तानाबूत कर दिया था

     वो दिन था 01 जनवरी  1818 इसलिए ये दिन “शौर्य दिवस ” नाम से जाना जाता  है ।

  जहाँ स्वयं बाबा साहेब डॉ भीम राव आंबेडकर जी ने इन महार वीरो के लिए अपने अश्रु बहाये थे और प्रत्येक साल 01 जनवरी को बाबा साहेब उन वीर योद्धाओं को श्रदांजली अर्पित करने के लिए जाते थे। तो आओ हम भी याद करे हमारे उन महान वीर योद्धाओं को जिन्होंने हमारे लिए इतनी बड़ी लड़ाई लड़ी थी ।

ब्राह्मणों ने Congress बनाई

🔴 *ब्राह्मणों ने Congress बनाई*
🔴 *कांग्रेस ने RSS बनाई*
🔴 *आरएसएस ने *BJP बनाई*
🔴 *अब पक्ष विपक्ष दोनों सगे भाई*
🔴 *एक ने बाबरी खुलवाई*
🔴 *एक ने बाबरी तुड़वाई*
🔴 *शुरु हो गई*
🔴 *हिन्दू मुस्लिम लड़ाई*
🔴 *अब सून लो तुम भी*
🔴 *ओ obc,sc,st, minority भाई*
🔴 *तुम किधर भी जाओ*
🔴 *एक तरफ कुआ दूसरी तरफ खाई*
🔴 *करते रहो लड़ाई*
🔴 *तुम्हारी होगी पिटाई*
🔴 *वो खायेंगे मलाई*
🔴 *इनकी धूर्तता का*
🔴 *एक मात्र समाधान*
🔴 *एक हो जाओ, इसी में है भलाई ।।*
सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी न पढ़ाना भी मनुवादी चाल हैं। क्योंकि वहां अधिकांशतः बहुजनों(गरीब,निर्धन,वंचित,किसानों)के बच्चे ही पढ़ते हैं। ये सब साजिश के तहत किया गया। क्योंकि बाबा साहब भी अक्सर कहते थे कि अपने बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाओ।
मनुवादियों ने अपने बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाने के लिए प्राइवेट स्कूलों की स्थापना की।
अभी भी कई संघठन अंग्रेजी का विरोध करते हैं,जबकि वो स्वयं अपने बच्चों को प्राइवेट अंग्रेजी स्कूलों में पढाते हैं।,और हम भी बिना सच्चाई को समझे अज्ञानता वश,भ्रमित हो अंग्रेजी का विरोध कर मनुवादियों का समर्थन कर देते हैं।
जबकि बिना अंग्रेजी के आप आगे नहीं बढ़ सकते।यही वास्तविकता है।
इसलिए अपने बच्चों को अंग्रेजी जरूर पढ़ाइये। बाबा साहब ने भी यही कहा था।
1- मैं नहीं भूला उस वर्ण व्यवस्था की उस किताब को जो हमे नीच अछूत बनाती है । "ढोल गंवार शुद्र पशु नारी " ये सब ताड़न के अधिकारी " ये शब्द आज भी मेरे कानों में गूँजता है ।
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2- मैं नहीं भूला उस जालिम ब्राह्मण को, जिसने हमारे पूर्वजो को वेद मन्त्र पढ़ने पर तडपा तडपा कर मारा था।
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3- मैं नहीं भूला उन जिहादी विदेशी आर्यो को, जिसने एक एक दिन में लाखो बौद्धो का नरसंहार किया था।
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4- मैं नहीं भूला उस जल्लाद शुंग को, जिसने 14 वर्ष की एक बौद्ध बालिका के साथ अपने महल में जबरन बलात्कार किया था।
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5- मैं नहीं भूला उस बर्बर शंकराचार्य को जिसने सम्पूर्ण भारत के 84हजार बौद्ध मंदिर नष्ट किया
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6- मैं नहीं भूला उस शैतान मनु को जिसने कमर में झाड़ू और गले में हांडी बंधवाई थी ।
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7- मैं नहीं भूला उस धूर्त शशांक को, जिसने बौद्धो को शुद्र बनना कबूल ना करने पर शुद्रो/बौद्धो की लड़कियों को नग्न कर सैनिको के सामने फेंक दिया था।
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8- मैं नहीं भूला उस निर्दयी राम को जिसने निर्दोष शुद्र ऋषि शम्बूक की सर काट कर हत्या की ।
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9- मैं नहीं भूला उस क्रूर कुमारिल भट्ट को , जिसने बौद्ध गुरु धम्मपाल को गर्म लोहे की सलाखो और आग से तब तक जलाया जब तक उसकी हड्डियां ना दिखने लगी ।
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10- मैं नहीं भूल पाया वह वक्त जब हमारे पूर्वजों को खटिया पर बैठने तक नही दिया जाता था ।
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11- मैं नहीं भूला उस नापाक द्रोणाचार्य को जिसने एकलव्य का अंगूठा काट दिया ।
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12- मैं नहीं भूला उस वहशी दरिंदे स्मृति ईरानी को जिसने रोहित बेमुला की जान ली
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13- मैं नही भूल सकता उन मनुवादियों को जिन्होंने नालंदा विश्विद्यालय में बख्तियार खिलजी के साथ मिल कर आग लगवा दी और 1 लाख भिक्षुओ को जिंदा जलवा दिया ।
हम बहुजनो पर हुए अत्याचारो को बताने के लिए शब्द और पन्ने कम हैं, यदि इस पोस्ट को पढ़कर मेरी तरह आपका खून भी खौला हो.....
जय भीम जय भारत
🙏🌺🌹🍍🇮🇳🇪🇺🙏



मुझे यह विश्वास हे कि समय आने पर इस सरकार का पत्ता साफ हो जायेगा लेकिन इतना समय व सुप्रीम कोर्ट के फेसले को भी जब यह सरकार नही मानती हे तो शायद यह लोकतंत्र की हत्या का भी सूचक हे जो इस देश की जनता के लिए चिंता व चिंतन का विषय हे
आप सभी इस संदेश को इतना फेलाओ ताकी इस असवेदनशील सरकार की आंख खोले और 7000 भाईयो बहनो को नोकरी मिल सके।
🙏🙏🙏🙏🇪🇺🇮🇳🙏🙏🙏🙏बाबा साहेब के सपनो को पूरा करो पूरा करो।
फालतु में मोदी साहेब के पीछे पडे रहेते है सब
कौन कहेता है मोदी ने 3 साल में कोइ काम नहीं किया ?
ये रही लिस्ट... मोदी विरोधियों के मुंह पे दे मारना...*
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1. बड़े उद्योगपतियों का लोन माफ़ किया और आम आदमी पर * टैक्स बढ़ाया मतलब गाय का दूध निकाल के कुत्ते को * पिलाने जैसा काम किया !
2. नोटबंदी करके अमीरो का कालाधन सफेद किया और * सैकडो गरीबो की लाशें बिछा दी।
3. फौजी जवानो को घटीया खाना खिला, देश के पैसे भर्ष्ट * अफसरों को।
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4. अडानी, अम्बानी को ठेके दिलाये।
5. लोकशाही का खुन किया।
6. पत्रकारीता को शर्मिंदा किया।
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7. नोटबन्दी की और जनता का तमाशा बनाया।
8. ललित मोदी को बचाया।
9. पेट्रोल के भाव कम हो सकते थे लेकिन होने नहीं दिऐ
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10.फेसबुक पर विरोधी कमेन्ट लिखने वालों को जेल भेजा।
11. कश्मीर मे पाकिस्तानी झंडे लहरवाये, राज्य व केंद्र में * सरकार रहते हालात बद से बदतर होने दिए।
12. दिल्ली सरकार को अच्छे काम करने से रोका।
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13. महंगे पंडाल लगाने वालों को काम मिला।
14. गुजरात और MP के मुख्यमंत्रियों को 100 करोड़ के
* विमान दिलवाए।
15. काला धन वालों के नाम छुपाकर उन्हे बदनाम होने से
* बचाया।
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16. नकली डिग्री वालों को सम्मान दिया।
17. रिलायंस को सरकारी सुरक्षा ठेके दिलवाए।
18. बिजली के रेट बढ़ाने मे बिजली कंपनियो की मदद की।
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19. लोगो को गैस सबसिडी छोड़ने को कहा।
20. ACB के पावर कम किये।
21. रुपये की कीमत गिराई।
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22. शिक्षा का बजट कम कर हजारो करोड़ बचाए और बचाए * गए पैसों से मीडिया खरीदा।
23. अडानी को बिना ब्याज कर्ज़ दिया।
24. गौ मास पर सब्सिडी बढ़ाई।
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25. कहा स्किल इंडिया और बनाया स्केम इंडिया।
26. चुनावो मे अरबों रुपये खर्च किये।
27. पीडीपी से सत्ता की भागबटाई की।
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28. नावज शरीफ का केक खाया और पठानकोट हमले की
* पाकिस्तान से जाँच करवाई।
29. स्वच्छ भारत का नारा देकर ईमानदार अफसरो का सफाया * किया।
30. शरद पवार के फार्म हाउस मे रात बिताई और पद्म
* विभूषण दिलाया।
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31. लोगो को थूक चाटने की कला दिखाई...!!!
32. मनमोहन सिंह जी की सरकार के द्वारा किये गए कामों के * रिबन काटे और सेल्फी लेकर वाह-वाही लूटी
33. मीडिया और चुनाव आयोग मुठी में कर EVM के सहारे
* सत्ता हासिल की।
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3 साल में इतने सारे बडे बडे काम करने के लीये 56 इंच
का सीना चाहिए !!
आपका  अपना प्रमोद कुमार  पूछता है  कि
*कौन कहता है मोदी ने कोइ काम नहीं किया

धर्म की कट्टरता

मैं जानता हूँ आपको बहुत बुरा लगता है

जब कोई आपसे कहता है कि इस देश में रहने वाला
कोई भारत माता की जय नहीं बोलना चाहता
मानता हूँ कि आपका खून खौल जाता है
मैं भी पूरी जवानी भारत माता की जय के नारे लगाता रहा
आज भी लगा सकता हूँ उसमें कोई बुराई नहीं है
लेकिन अब नहीं लगाता
मैं अब जान बूझ कर भारत माता की जय बोलने से मना करता हूँ 

क्यों करूँगा मैं ऐसा ?
यह मत कहना कि मैं कम्युनिस्ट हूँ
या मैं विदेशी पैसा खाता हूँ
या मैं नक्सलवादी हूँ
या मैं मुसलमानों के तलवे चाटता हूँ
मेरा जन्म एक सवर्ण
हिंदू परिवार में हुआ

मुझे भी बताया गया कि हिंदू धर्म दुनिया का सबसे महान धर्म है
मुझे भी बताया गया कि हमारी जाति बहुत ऊंची है
मुझे भी बताया गया कि देश की एक खास राजनैतिक पार्टी
बिलकुल सही है

मैं भी सैनिकों की बहादुरी वाली फ़िल्में देखता था
और तालियाँ बजाता था
मैं भी पाकिस्तान से नफ़रत करता था

लेकिन फिर मुझे आदिवासी इलाके में जाकर
रहने का मौका मिला
मैंने वहाँ जाकर अनुभव किया
कि मेरी धारणाएं
काफी अधूरी और गलत हैं

मैं अपने धर्म को सबसे अच्छा मानता हूँ
लेकिन इसी तरह सभी लोग अपने धर्म को अच्छा मानते हैं
तो फिर यह बात सही नहीं हो सकती कि मेरा धर्म सबसे अच्छा है

मैंने दलितों की जली हुई बस्तियों का दौरा किया
मुझे समझ में आया
कि मेरे धर्म में बहुत सारी गलत बातें हैं

धीरे धीरे मैंने ध्यान दिया कि सभी धर्मों में गलत बातें हैं
लेकिन कोई भी धर्म वाला उन गलत बातों को स्वीकार करने और सुधारने के लिए तैयार नहीं है

इस तरह मुझे धर्म की कट्टरता समझ में आयी
इसके बात मैंने अपनी कट्टरता छोड़ने का फैसला किया
मैंने यह भी फैसला किया कि अब मैं किसी भी धर्म को अपना नहीं मानूंगा
क्योंकि सभी धर्म एक जैसी मूर्खता और कट्टरता से भरे हुए हैं

आदिवासियों के बीच रहते हुए मैंने
पुलिस की ज्यादतियां देखीं
मैंने उन् आदिवासी लड़कियों की मदद करी
जिनके साथ पुलिस वालों और सुरक्षा बलों के जवानों नें सामूहिक बलात्कार किये थे
मैंने उन् माओं को अपने घर में पनाह दी जिनके बेटों और पति को
सुरक्षा बलों नें मार डाला था
ताकि उनकी ज़मीनों को उद्योगपतियों को दिया जा सके

मैंने आदिवासियों के उन गाँव में रातें गुजारीं
जिन गाँव को सुरक्षा बलों नें जला दिया था

उन् जले हुए घरों में बैठ कर मुझे मैंने खुद से सवाल पूछे कि
आखिर इन निर्दोष आदिवासियों के मकान क्यों जलाये गए
घर जलने से किसका फायदा होगा
घर जलाने वाला कौन है

वहाँ मुझे समझ में आया
कि हम जो शहरों में मजे से बैठ कर
बिजली जलाते हैं
शॉपिंग माल में कार में बैठ कर जाते हैं
हम जो बारह सौ रूपये का पीज़ा खाते हैं
वह सब ऐशो आराम तभी संभव है
जब इन आदिवासियों की ज़मीनों पर उद्योगपतियों का कब्ज़ा हो
उद्योग लगेंगे तो हम शहरी पढ़े लिखे लोगों को नौकरी मिलेगी

हमारे विकास के लिए इन आदिवासियों की ज़मीनों पर कब्ज़ा
तो पुलिस और सुरक्षा बलों के जवान ही करेंगे
आदिवासी अपनी ज़मीन नहीं छोडना चाहता
इसलिए हमारे सिपाही आदिवासी का घर जलाते हैं

हम शहरी लोग इसीलिये इन सिपाहियों के गुण गाते हैं
इसीलिये आदिवासी मरता है
या उसके साथ बलात्कार होता है
या उसका घर जलता है तो
हमें बिलकुल भी बुरा नहीं लगता
लेकिन सिपाही के साथ कुछ भी होने पर
हम गाली गलौज करने लगते हैं

आदिवासियों के जले हुए गाँव में बैठ कर
मुझे भारतीय मिडिल क्लास की पूरी राजनीति समझ में
आ गई
मुझे राजनीति विज्ञान
भारतीय लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था के अध्यन के लिए किसी विश्वविद्यालय में नहीं जाना पड़ा
वो मैंने खुद अनुभव से सीखा

मुझे कश्मीरी दोस्तों से भी मिलने का मौका मिला
मैंने उनके परिवार के साथ भारतीय सेना और अर्ध सैनिक बलों के ज़ुल्मों के बारे में जाना
चूंकि तब तक मैं समझ चुका था
कि सरकारी फौजें किस तरह से ज़ुल्म करती हैं
इसलिए कश्मीरी जनता पर भारतीय सिपाहियों के ज़ुल्मों को मैं साफ़ दिल से समझ पाया
कश्मीर में सेना नें घरों से जिन नौजवानों को उठा कर मार डाला था
मैं उन बच्चों की माओं से मिला
जिन पुरुषों को सेना नें घरों से उठा लिया
और कई सालों तक जिनका फिर कुछ पता नहीं चला
उनकी पत्नियों से मिला
उन औरतों को कश्मीर में हाफ विडो कहा जाता है
यानी आधी विधवा
मैंने उन महिलाओं के बारे में भी जाना जिनके साथ हमारी सेना के सैनिकों नें बलात्कार किये

मैंने मुज़फ्फर नगर दंगों के बाद वहाँ रह कर काम किया
वहाँ एक फर्जी प्रचार के बाद दंगे किये गए थे
मैंने उस फर्ज़ी प्रचार की पूरी सच्चाई की खोज करी
दंगा अमित शाह ने करवाया था
इन दंगों में एक लाख गरीब मुसलमान बेघर हो गए थे
सर्दी में उन्हें खुले में तम्बुओं में रहना पड़ रहा
वहाँ ठण्ड से साठ से भी ज़्यादा बच्चों की मौत हो गयी थी

इस तरह मैंने देखा कि लव जिहाद के नाम पर
भाजपा नें हिदुओं में असुरक्षा की भावना भड़काई
और उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए सीटें जीतीं


मेरी बेचैनी बढ़ती गयी

मुझे लगने लगा कि हम शहरी लोग इतने स्वार्थी कैसे हो सकते हैं

कि हमारे फायदे के लिए करोड़ों आदिवासियों पर ज़ुल्म किये जाएँ

हम इतने स्वार्थी कैसे हो सकते हैं कि दलितों की बस्तियां जलाई जाएँ

और हम क्रिकेट देखते रहें

कश्मीर में हमारी सेना ज़ुल्म करे और हम उसका समर्थन करें

तभी भाजपा का शासन आ गया

मैंने देखा कि अब दलितों पर अत्याचार करने वाले

और भी ताकतवर हो गए हैं

कश्मीर के ऊपर आवाज़ उठाने के कारण 

दलित विद्यार्थियों को हास्टल से निकाला जा रहा है

इसके बाद इन्हें दलित छात्रों में से एक छात्र रोहित वेमुला ने आत्महत्या कर ली

मुझे लगा यह आत्म हत्या नहीं एक तरह की हत्या ही है

साथ साथ सोनी सोरी नाम की आदिवासी महिला के ऊपर सरकार के अत्याचार बढते जा रहे थे

मैं बेचैन था कि आखिर इन मुद्दों पर कोई ध्यान क्यों नहीं देता

तभी सरकार में बैठे लोगों नें भारत माता का शगूफा छोड़ दिया

मुझे लगा कि भारत माता की जय बोलना तो कोई मुद्दा है ही नहीं

यह तो असली समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए

सरकारी चालाकी है

मैंने निश्चय किया

कि मैं भारत माता की जय नहीं बोलूँगा

जैसे मैं अब किसी भगवान की पूजा नहीं करता

लेकिन इंसानों के भले के लिए काम करने की कोशिश करता हूँ

इसी तरह मैं भाजपा के कहने से भारत माता की जय बिलकुल नहीं कहूँगा

अलबत्ता मैं देश के लोगों की सेवा पहले की तरह करता रहूँगा

इस समय भारत माता की जय को लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है

और मैंने बेवकूफ बनने से इनकार कर दिया हैl


 धंधे की समयसारणी


33 करोड़ देवी देवता नाम
सौ का भी नही पता?
सोमवार शंकर जी
मंगलवार हनुमान जी
बुद्धवार  गणेश जी
गुरुवार विष्णुजी
सुक्रवार सन्तोषी मा
शनिवार सनी देव
रविवार सूर्य देव

सात दिन सातों देवी देवताओं से सुरक्षित है ।
मन्दिर जाओ, घण्टा बजाओ,
चढ़ावा चढ़ाओ, चले आओ।।

भारत मे धर्मो के कारण मानव के सोचने समझने की क्षमता ही नष्ट कर दी गई है।
कोई ऐसा महीना नही होगा जब त्यौहार न हो
धर्मियो को मालूम है जब काम न रहे तो धर्म मे उलझाये रखो इंसान कभी नही समझेगा।
भक्ति अधिकतर गरीब तबका करता है घर मे खाने को हो या न हो भगवान के लिए नारियल अगरबत्ती जरूर चढ़ायेगा।
कृषि प्रधान देश मे 85%जनता खेती,मजदूरी में गुजर बसर करती है।
जब खेतो में काम कम रहता है तब इन पण्डा लोगो का त्यौहार,कीर्तन,भागवत,कथा चलती रहती है।

जुलाई के महीने से खेल चालू होता है
नागपंचमी, जन्माष्टमी,गणेश,दुर्गा आदि

चूंकि इन महीनों में खेतों में काम कम रहता है इसलिए इसमें लगे रहे।
Nov. के आस पास से लेकर फरबरी तक सादी का मौसम रहता उसमें धंधा चालू रहता है।
इसके बाद खेतों में काम आने लगता है कटाई  गहाई तब ये
धन्धा बन्द रहता है।

जैसे ही खेती से किसान फुरसत होता है मार्च अप्रैल से फिर सादी चालू 
और वो अनवरत जुलाई तक चलता रहता है।

यह एक योजनाबद्ध किया गया सुनियोजित खड़यँत्र है।

लग्न,त्यौहार,किसानी
कभी एक साथ नही पयोगे।

 ये इसलिए ऐसा बनाया गया है ताकि लोगो को सोचने समझने का समय ही न मिले
और मेरा धन्धा चलता रहे।
खेती से फुरसत तो त्यौहार
त्यौहार से फुरसत तो सादी
सादी से फुरसत तो फिर खेती

मतलब समय नही देना है
सोचने समझने का ।

जब इंसान के पास फुर्सत के पल होते है तो वो कुछ न कुछ
अपने जीवन के बारे में सोचता है।
लेकिन धर्म इसके विपरीत है।
सोचने की क्षमता क्षीण कर देता है मनगढ़ंत ,झूठ,फरेब  को बढ़ावा देता है।

धर्म हमसे है हम धर्म से नही।
जब इंसान इस फरेब को समझ जायेगा।

ये रेत का महल ढह जायेगा।

सोचिए
समझिये
तर्कशील बनिये

अपना दीपक स्वंय बनो

नमो बुद्धाय


 #बहका धर्म बहकी नीति

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मानव के कल्याण मात्र के लिए कदम उठाने का साहस करने वाले इस जगत में बहुत ही कम लोग होते है। अधिकतर मानवता का पाठ पढ़ाने वाले लोग आज के दौर में अपना उल्लू सीधा करने पर तुले हुए है। जिन लोगो को अपना स्वार्थ सिद्ध होता प्रतीत होता है वे किसी भी हद तक अपने चंचल स्वभाव का प्रयोग कर अपने सफल होने के लिए हर हथकंडे का प्रयोग करते है। धर्म के क्षेत्र में धार्मिक मठाधीश लोग अपने आजीविका के निर्वहन हेतु आडम्बर अंधविश्वास से पूर्ण रूप से बंधे हुए है। वे प्रकृति का अस्तित्व जानकर भी अंजान बने हुए है,क्योंकि उन्हें पता है कि यदि शांति और भाईचारे का पाठ बिना नमक मिर्च लगा कर पढ़ाया गया, तो उनकी धार्मिक दुकाने बन्द होने का खतरा मडराता नज़र आएगा।, इसलिए जितना भी हो सके उतना भय का आतंक फैलाओ, धार्मिक धंधा गतिमान रहेगा।
    अब के समय मे पहले से अधिक मनुष्य चतुर हो गया है। शब्दो के लच्छे अतीत की अपेक्षा अधिक मजेदार हो गए है। जिनके वर्णन की कोई सीमा नही रही है।इसलिए भोला भाला मनुष्य अब तक यथार्थ को समझने के लिए अपने बुद्धि विवेक का प्रयोग नही कर पाया।
       अन्धविश्वासी बातों में बड़े मजे होते है।जिनका दम्भ सिर्फ मृत्यु के बाद रहस्य में दफन हो जाता है।प्रकृति की वास्तविकता से कोई परिचय कराने का साहस अब तक नही कर पाया। क्योंकि पूर्व के समाज मे तमाम प्रकार की परम्पराये व्याप्त थी। उन परम्पराओ को तोड़ने का साहस सिर्फ तथागत बुद्ध जैसे लोगो ने जुटा पाया।क्योंकि उन्हें लकीर के फ़क़ीर बने रहने की कला से इतर सत्य की खोज के लिए अपना सब कुछ त्याग पर लगाना पड़ा।
आज के संत सब कुछ पाने के लिए सत्य का गला घोंटकर अपने संतई को बलिदान कर रहे है।
धर्म से मिलता हुआ राजनीति का अनोखा असत्य का संगम है।जहां लोगो के भलाई के असंख्य वादे किए जाते है,पर उन वादो के पीछे लोगों के हक़ पर ढांका डालने की योजना को बनाने के लिए चुनाव के समय हर झूठ का इस्तेमाल करते है। जैसा कि हम सभी जानते कि झूठ की बुनियाद हर समय पर झूठ का बाजार लगाती है, जहां हर मनुष्य हमें गुमराह करने की कोशिश करता दिखाई पड़ता है। क्योंकि चापलूसों की मंडी में सत्य की चमक सिर्फ तमाशा बन के रह जाती है।
धर्म और राजनीति हमारा मरते दम तक पीछा नही छोड़ती।अगर वक़्त रहते धर्म और राजनीति में शब्दों के खोखले तरीके प्रयोग होते रहे,तो हमारे  जागरूक होने का कोई महत्व नही रहेगा । हम सब पढ़े लिखे लोग है, पर व्यस्त जिंदगी में हम सबने अपने सार्थक निर्णय लेने की क्षमता का हास् कर दिया है।इसलिये हमको बुद्ध के धम्म का मार्ग अपना कर राजनीति में परमपूज्य बाबा सहेब डॉ बी0 आर0 अम्बेडकर के पद चिन्हों पर चलना चाहिए।लेकिन आज हम स्वयं धर्म और राजनीति की बेड़ियों में मजबूती से बंधे हुए है।जिनमें हमको स्वयं के बुद्धि विवेक का प्रयोग करने का अधिकार नही है। अलग मार्ग चुनने पर सामाजिक प्रताड़ना के अतिरिक्त जो बल हमारे ऊपर प्रयोग किया जाता है वह राजनैतिक बल होता है। सर्व शक्तिमान दोनो ताकते के संगम से मात्र वर्तमान की स्थितयों में विलय होकर सामाजिक एकता को मजबूत कर एक मिशन का उद्देश्य पूरा करने वाले को पहले अपनी धार्मिक एकता को मजबूत कर राजनीति के अखाड़े में उतर कर परिवर्तन के लिए एक युद्ध करना होगा।तभी एक नए सत्य बोध मार्ग का निर्माण हो सकता है। लेकिन हर जगह क्षणिक लालच के बशीभूत हो हर वर्ग के मनुष्य की श्रेणियां विभाजित है। बस उनको शब्दों के जाल में फ़साने की आवश्यकता है। उनको तोड़ने में देर नही लगेगी।
  यह सब अनुभवहीनता का परिणाम है। खुद मनुष्य धर्म और राजनीति में अपना गला स्वयं काट रहा है।
 सोंचकर एक सही निर्णय लेने की आवश्यकता बहुत जरूरी है। दोनों में अंधभक्ति अधिक प्रबल है।निजी स्वार्थ की बजह से गिरने के स्तर से भी ज्यादा मनुष्य अंध श्रद्धा में गिर रहा है।
     जिस दिन इस अंधश्रद्धा के गिरावट के स्तर में सुधार हो गया। उस दिन धर्म और नीति का एक नया अध्याय शुरू होगा।
 जिसमे एक सही धर्म और नीति के अंधे भविष्य में उजाले के  उम्मीदों की एक किरण फैलते नज़र आएगी।

  जय भीम! नमो बुद्धाय !जय भारत

शूद्र एकता मंच

 🌄 शूद्र एकता मंच 🌄
    आप सभी शूद्र भाइयों से अनुरोध है और जैसा कि नाम से ही काम की अनुभूति हो जाती है , इस उद्देश्य  प्राप्ती के लिए आप का तन-मन-धन से सहयोग अपेक्छित है और तहे दिल से स्वागत भी है। इस सामाजिक मंच का मुख्य उद्देश्य हजारो साल से विना किसी कारण,शूद्र समाज के दिलो मे हीन भावना ब्राह्मणो द्वारा  भर दी गइ है और दुर्भाग्य से शूद्रो ने उसे भाज्ञ, भगवान् और नीयत समझकर अज्ञानता के कारण स्वीकार भी कर लिया।  इस थोपी गई नीचता को निकालकर एक गौरवशाली समाज बनाकर खोया हुआ सम्मान और अधिकार प्राप्त करना है। आप अपने अंतहकरण से विचार करे कि, आप की आज की स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है।

हिन्दू-धर्म, चार-वर्ण और उनके कर्म

    किसी भी मानव, जाति, उपजाति, वर्ग या वर्ण का नाम महान या आदर के साथ तभी लिया जाता है, जब यह देखा जाता है कि उसने देश मे या विश्व मे समाज के कल्याण, उत्थान या प्रगति के लिए कितना योगदान किया है। यहां हम हिन्दू समाज के चारो वर्णो की समीक्छा करेगें और देखेंगे कि ब्राह्मण वर्ण ईश्वर से भी ऊंचा, महान, पुज्यनीय स्थान हिन्दू समाज में कैसे प्राप्त कर लिया?
               🔔 ब्राह्मण 🔔

      ब्रह्मा के मुख से पैदा होने वाले; ब्रह्म को जानने वाले महान;बुद्धिमान; ईश्वर से भी ऊँचा दर्जा पाने वाले ब्राह्मण की बुद्धि पर आज तरस आता है की हजारो वर्ष से लेकर आज तक अस्तित्व की सभी वस्तुएं इस विश्व में सुई से लेकर अंतरिक्ष तक की खोज पश्चिमी सभ्यता के विदेशियों द्वारा की गई है। हजारो वर्षो से लेकर आज तक इस वर्ण ने किसी भी प्रकार से बुद्धि के रूप में भारत भूमि को कोई योगदान नहीं दिया है। कर्म करना तो ब्राह्मण के लिए अधर्म व् पाप माना जाता है। यहाँ तक की खुद की रक्षा भी चाहते है की दूसरा कोई करे। क्यों नही काश्मीर मे हथियार उठा लिए, कायर, बुझदिल और डरपोक की तरह क्यो भागे और आश्चर्य है कि उनका श्वागत भी हुआ। भारत देश और भारतवासियों का नुकसान और अपमान इस ब्राह्मण वर्ग ने जितना किया है; उसकी क्षति पूर्ति करना एक सपना है। इनका योगदान  कुबुद्धि के रूप में जरुर है। कोई भी प्राचीन कहानी पढ़िए उसमे शुरू में ही लिखा होगा एक गरीब ब्राह्मण था-;----आदि। क्या कोई पिछड़ी जाति; दलित; शुद्र गरीब नहीं था? उसकी कहानी क्यों नहीं मिलती है?कृष्ण और सुदामा की कहानी भी मनगढ़ंत षड़यंत्रकारी यादवो को मुर्ख बनाकर जनमानस को लूटने के लिए रची गयी है।क्या श्रीकृष्ण की दोस्ती किसी यादव पिछड़ी जाति दलित गरीब या असहाय इन्सान से नहीं थी? सिर्फ ब्राह्मण से ही थी वह भी स्वार्थ से कुछ लेने के लिए; कुछ देने के लिए नहीं। भारत की 85% जनमानस को अंधविश्वास और नकली भगवान का मंत्र पढ़ाकर छलकपट एवं धोखे से उन्हें मुर्ख बनाकर उनके तन मन धन को लूटकर बचा हुआ सभी दूध दही घी मक्खन नदियों पहाड़ो और आग के हवाले करके उन्हें कंगाल बनाने में काफी योगदान दिया है। फिर भी आज हिन्दू समाज में ऊँचा स्थान पाकर पूज्यमान बना हुआ है।

              | 🔫क्षत्रिय 🔫 ।

     हिन्दू समाज में क्षत्रिय वर्ण को देश की रक्षा करने का कार्य सौपा गया था। क्या किया; सामने है; भारत का इतिहास पढ़ते हुए किसी भी आत्मसम्मानी भारतवासी का शिर शर्म से झुक जाता है। मुट्ठी भर विदेशी हमलावर आये; इन्ही की जमीन पर घर में सभी क्षत्रिय राजाओ सेनापतियो और सैनिको को मारा पिटा बेइज्जत किया गुलाम बनाया तथा उन्ही की बहु बेटिओ से शादी रचाई। हिन्दू समाज के सभी क्षत्रिय राजा महाराजा मारे पिटे और घर से खदेड़े गए है। फिर भी उनका गुणगान और बहादुरी के लिए क्षत्रियो का इतिहास भरा पड़ा है। दुसरो की जमीन पर बहादुरी दिखाकर एक इंच भी कब्ज़ा करना तो दूर की बात रही अपने ही देश में सब कुछ लुटाकर हिन्दू समाज में इज्जत का स्थान प्राप्त किया है।

                👿 वैश्य 👿

      भारतदेश एवं भारतवासियों के लिए वैश्यों का भी योगदान स्मरणीय है। इन्ही की देन है की एक अंग्रेज कंपनी भारत में ब्यापार करने आई और पुरे देश पर कब्ज़ा कर लिया। सब कुछ त्यागकर  अपना पेट और धन बढ़ाना ही इनका मुख्य धर्म होता है। इनके योगदान का उदाहरण आज भी है की हिमाचल प्रदेश में जो किसान सेब पैदा करता है उसे 10-20 रूपये किलो मिलता है और जब वैश्य अपने पवित्र हाथ का स्पर्श कर देता है तो वही सेब मुंबई में 100 रुपया किलो हो जाता है।

               👍🙏शुद्र🙏👍

     इस पृथ्वी के भारत भूमि पर हजारो सालो से आज तक चारो दिशाओ में जल थल में उठाकर देखिये जो भी अस्तित्व में है वह शुद्रो के कर्मो का फल है। सड़क, रेल ,नदी ,पहाड़ ,जंगल ,खेत - खलिहान ,मकान -दुकान मंदिर- मस्जिद, नदी -नाले ,बिजली, उद्योग -धंधे ,कल -कारखाने तथा भारत देश  की हरी-भरी गोद भी शूद्रो के कारण ही लहराती है। शूद्र ही भारत-देश की हृदयरूपी धड़कन है। शुद्र जिस दिन धडकना (काम करना) बंद कर देगा ,सोचिये उस दिन क्या स्थिति होगी? हृदय काम करना बंद कर देता है तो शरीर का अंत हो जाता है। कर्म ही नही बुद्धि- विवेक त्याग व् बलिदान में भी शुद्रो के योगदान का इतिहास भरा पड़ा है। फिर भी इस देश का दुर्भाग्य है की भारत-देश का ह्रदय ही नीच दुष्ट और अछूत के रूप में जाना पहचाना  जाता है। इस भारत देश  के असली सपूत शुद्र है जो यहाँ के मूलनिवासी है। उन्ही को इसे अपना  कहने का अधिकार है। दुसरो ने तो इसे अपमानित किया है। इसलिए इस पर रहने राज्य करने और इसकी सेवा का अधिकार केवल शुद्रो को ही होना चाहिए।
      जरा गौर करे!
****************************
शुद्र देश व् समाज का दाता है।

शुद्र सत्यनिष्ट व कर्तव्यं निष्ट होता है।

शुद्र ढोंगी पाखंडी नहीं होता है।

शुद्र भगवान की दलाली नहीं करता है।

शुद्र सभी कार्य करने वाले मूलनिवासी है।

शुद्र भारत देश की ह्रदय रूपी धड़कन है।

       ✊गर्व से कहो हम शुद्र है।✊
  ****************************  
      क्या यह सत्य नहीं है, ? बाबा साहेब अम्बेडकर जी ने हिन्दू धर्म मे शुद्धता लाने के लिए जीवन भर संघर्ष किए , यह सभी को पता है। कांशी राम जी ने भी 15-85का नारा देते हुए , शूद्र समाज (दूषितहोने के कारण) को बहुजन समाज बनाया,  लेकिन आज बहुजन समाज , सर्व- जन समाज होने के कारण दूषित हो गया है। बिना सान्षिकृतिक और सामाजिक परिवर्तन के , राजिनीतिक परिवर्तन स्थाई नही हो सकता है।


   ✊ गर्व से कहो हम शूद्र हैं✊
विचार मे क्यो आया ?
  मैं सुनते आ रहा था और अनुभव भी किया हूं कि शूद्र समाज के लोग जब बड़े ओहदे या पद पर पहुच जाते है तो, अपने समाज से दूरी बनाए रखते हुए , अपनी पहचान भी छिपाने की कोशिस करते है , जो आज भी जारी है। ५०-६० साल पहले जीविका चलाने के लिए कुछ परिस्थितियों में सही भी था। बाबा साहब अम्बेडकर ने भी अपने समाज को उद्वेलित करते हुए कहा था कि जिस समाज मे, जिस गांव में, जिस जिले मे, तुम्हे मान-सम्मान नही मिलता है, वहां से बाहर निकलो और शहरों की तरह कूच करो। पढ़ो-पढ़ाओ और इसके लिए मान-सम्मान से, मजदूरी, नौकरी, ब्यवसाय हासिल करो। मंत्र दिया:- शिक्छित करो, संघटित रहो, संघर्ष करो।
 इस मंन्त्र का परिणाम है कि,आज महाराष्ट्रा में 85% शूद्र समाज से सिर्फ 4% महार, बाबा साहब की बात मानकर , हिन्दू धर्म छोड़कर, बौद्ध धर्म अपना लिया और दूसरे लोग मनुवाद के खड़यन्त्र का शिकार हो गए। आज गर्व से कह रहा हूं कि , महाराष्ट्रा मे सिर्फ 4%महार (बौद्ध), नौकरी मे, प्रशासनिक व्यवस्था मे, शिक्छा मे, विदेश मे, सामाजिक, आर्थिक, सान्षिकृतिक और राजीनितिक सोच में ब्राह्मण के बाद दूसरे स्थान पर वर्चश्व बनाए हुए है। आज शूद्र समाज अपने आप को ठगा और छला हुआ महशूस कर रहा है। स्थिति आज भी जैसी की तैसी है।
  दिनांक -28-01-2015 को  मैने अपने एक एस् सी, सहकर्मी मित्र   जो 1989 से BAMCEF मे सहयोगी भी रहे है, D. G. M. ( MTNL) पोष्ट पर कार्यरत है । अपने ही कम्प्लेक्श मे फ्लैट बिकत दिलवा दिया था, गृह-प्रवेश मे गया, चकित रह गया। द्वार का डेकोरेशन (गणपति मंदिर के साथ) ऐसा लगे, जैसे किसी ब्राह्मण का घर है और अन्दर काफी खर्च करके खान-पान के साथ " ब्राह्मणो द्वारा  सत्यनारायण "की पूजा कथा। मेरी गुप्त प्रतिकृया को समझकर , अकेले मे कहा , मजबूरी मे पिता जी के ----.। प्रसाद तो नही लिया , लेकिन खाना इसलिए खाया कि कहीं परिवार हमें ही अन्यथा गलत न समझ बैठे।
 मै उस रात सो नही पाया, ऐसा क्यो?BAMCEF मिशनरी,  क्या मजबूरी है? उसके पास पैसा, दौलत, पद, होहदा , माान-सन्मान सभी है लेकिन डर किस बात की, अपनेआाप से तर्क पर तर्क और मंथन करते -करते बिना नींद  के रात बीत गई।
 विष्कर्ष- मेरे दोष्त का कोई दोष नही है, व्यवस्था का दोष है। शूद्र नाम को ही, बिना किसी कारण , सैकड़ो सालों ,से , वर्ण व्यवस्था ने इतना दूषित कर दिया है कि , इसे समझने और जानने  की अब मेरे लिए पहली प्राथमिकता बन गई। मै जहां भी जाता, ब्राह्मण से भी तथा छत्रिय, वैश्य, पिछड़ी जातियां, दलितो, यहां तक कि मुसलमानो,इसाइयो और बुद्धिष्टो  से भी सवाल -जबाब, तर्क-वितर्क करता रहा। तथ्य यह भी सामने आया कि धर्म परिवर्तन करने के बाद भी इस बिमारी से पूरी तरह छुटकारा नही मिल पा रहा है ।
 निष्कर्ष - सिर्फ दो-तीन बेवकूफी भरे कारण सामने आया।
     पहला- हिन्दू धर्म के वेदो, पुराणो और स्मृतियो मे शूद्र को नींच, दुष्ट, पापी आदि गालियो से सम्बोधित कर तथा उसे भाग्य और भगवान् से मान्यता बताकर, शूद्रो के दिलो -दिमाग मे ऐसी आस्था भर दी गई कि वह बेचारा खुद भी इस घृणित बुराई को बिरोध के बजाय, स्वीकार कर लिया ।
     दूसरा - मरे हुए पशुओ के मांस खाते थे!
 तर्क-वितर्क- अरे भाइ ! उस समय तो ब्राह्मण गाय,घोड़ो को जिन्दा काटकर  खाते थे।
 दोनो मे बड़ा अपराधी और नींच-दुष्ट कौन है? अहिन्सावादी मरे हुए पशुओं के मांस खाने वाला या हिन्सावादी ब्राह्मण जिन्दा गायो को काटकर खाने वाला ।
    तीसरा-  छोटे -छोटे काम और गंदगी साफ करते थे।
 निष्कर्ष- क्या काम करना नीचता और अपराध है, या ढोंग और पाखंड करना ? गन्दगी करने वाला नींच-दुष्ट या महान है कि उसे साफ करने वाला!
 तर्क-वितर्क मे यह भी सामने आया कि, शूद्र समाज सभी तरह के कर्म करके देश और समाज को हजारो साल से सबकुछ दिया है और ब्राह्मण बिना कर्म किए बेवकूफ बनाकर, देश व शूद्र समाज से सिर्फ लिया है।
 तो महान कौन है, लेने वाला या देने वाला!
सही जबाब और असलियत मालूम होने पर सभी के सर शर्म से झुक जाते थे। यहां तक कि ब्राह्मणो के भी ।
  मुझे उत्साह और मनोबल मिला। अच्छे कामो से ही किसी के अच्छे नाम होते है । शूद्र नाम पर लगे कलंक को धोने का संकल्प लिया । अपने कुछ बामसेफ के साथियो के साथ बिचार -विमर्श किया । परिणाम के रूप मे एक "मिशन"

शूद्रो का शातिर दुश्मन कौन

🔥शूद्रो का शातिर दुश्मन कौन🔥

    योगी और मोदी सरकार आने के बाद RSS &BHP काफी सक्रिय हो गई है और उनका पूरा एजेंडा आजकल मुसलमानो के प्रति नफरत फैला कर शूद्रो को  हिन्दू बनाने और उनको एकजुट करने की कोशिश की जा रही है ।
 शोसल मीडिया पर कभी शर्मा अलिखान बनकर हनुमान जी  का अनादर करता है ,कभी बुर्का पहनकर मन्दिर मे मटन या मांस फेंकता है।कभी  RSS की सदस्य पद्मावती हाथ मे कलावा पहने हुए बुर्का पहनकर मीडिया के सामने हनुमान चालीसा पढ़ती, गाय को चारा खिलाती, कभी आरती करती आदि कई रूपो मे मीडिया मे देखा गया है ।यह सभी कार्य बड़ी शान से बिना डर -लाज के किया जा रहा है क्योंकि पकड़े जाने पर सजा के बजाय उन्हे पुरस्कृत किया जाता है ।
  हम यहा आकलन कर रहे है शातिर दुश्मन कौन? आज मेरी उम्र  67 की हो रही है । बचपन मे याद है एक देवकुर घर हुआ करता था। अनपढ़ गवार कोई भी पुरोहित  ( पंडित ) हर एकादशी को शाम घर पर आता, पाव किलो देशी घी का हवन करता ।कुछ घी ले भी जाता था ।रूपये पैसे के अलावा दक्षिणा (चावल, आटा दाल) भी देना पड़ता था ।सभी छोटे बड़ो को तिलक लगाता और सभी लोग उसके पैर छूते और वह सबको आशीर्वाद देता था अर्थात सबको नीच बनाता था। बचपन मे कहानी भी सुनते थे "आन का आटा, आन का घी, शाबस -शाबस बाबा जी "
  भगवान् के नाम पर एक सामाजिक धार्मिक परम्परा बन गई थी । इस तरह से ढोंगी पाखंडी  काम, जैसे  बच्चे के जन्म के समय मूर के रूप मे ,तो कभी नामकरण, कभी सत्यनारायण कथा आदि रूपो मे चलता रहता था । ब्राह्मण पाखंड ने हिन्दू धर्म मे जीवन पर्यन्त भरण पोषण का एक तरीका निकाला था जिसका नाम था "मां बाप का गुरू-मुख होना " इसके माध्यम से गुरु- मुख दम्पति की कमाई मे 25% की हर साल हिस्सेदारी देना और जब कभी गुरू-मुख पंडित जी सामने दिखाई दिए तो दंडवत प्रणाम करना अनिवार्य था अन्यथा अनर्थ होने का डर दिलो-दिमाग मे भर दिया गया था । दूध दही या कुछ दक्षिणा मांग दिया तो अपने बच्चे का हक्क मारकर उसको देना पहली प्राथमिकता होती थी । हमे याद आ रहा है आठवी  (1966) तक हमलोगो (10 ) के साथ एक ब्राह्मण का लड़का भी पड़ता था वह कितना भी बदमाशी करता था, हमलोग उसे ,इस डर से कि बरम लगेगा, कभी उसे गाली या मारते नहीथे।
  इसी तरह शादी -विवाह या मरने के बाद अन्तिम संस्कार मे भी भाज्ञ -भगवान्, पाप -पुन्य का डर और लालच दिखा कर जन्म से लेकर मरने तक आर्थिक, मानसिक, सामाजिक शोषण करता रहता है ।ब्राह्मण द्वारा अपने जजमान शूद्रो को नीच बनाकर उनका मनोबल गिराना और इस तरह उनको धार्मिक गुलाम बनाना, विश्व का सबसे बड़ा अपराध माना गया है ।
 अफसोस हमलोग आज भी  अज्ञानता और मूर्खता मे अपने पुर्वजो के अपराधियों को ही मान सम्मान देते चले आ रहे है ।
 आज भी जब कभी मै गांव जाता हूं ,हमारे समकक्ष या छोटी उम्र का अनपढ़ गवार ब्राह्मण, सामने होने पर,  जिज्ञासा भर यह उम्मीद करता है कि मै ही पहले उसे इज्जत देते हुए नमस्कार या पाय लागू बोलू ।
हिन्दू धर्म का मुख्य तत्व ज्ञान भी यही है कि ब्राह्मण सिर्फ मान सम्मान पाने का अधिकारी है, देने का नही ।
  हमारा बचपन से लेकर आज तक मुसलमानो से नौकरी पेशा मे या सामाजिक जीवन चर्या मे हमेशा साथ रहा है। मै 1979 - 1998 तक मुस्लिम बहुल क्षेत्र जोगेश्वरी यादव नगर मे रहा हूं ।यादव नगर का अध्यक्ष होने के कारण भी मै यह दावा करता हूं कि,  कभी किसी भी तरह से किसी को अनायास अपमानित नही किया है ।उल्टे जब भी सामना  हुआ है ,हमे मान सम्मान और सहयोग ही दिया है और लिया भी है। कुछ असामाजिक तत्व तो हर समाज मे होते है, इसे नकारा नही जा सकता ।  कुछ लोग तो कुछ कारणो से इतने अच्छे होते है कि हम सोच नही सकते, जैसे ब्याज या सूद न लेना, दूध मे पानी न मिलाना, असहाय और गरीबो की  यथाशक्ति मदद करना । मेरा साधारण अनुभव भी कहता है , यदि मुसलमानो के साथ राजनीतिक दुर्भावना, काश्मीर मसला और पर्सनल बाद -विबाद को न देखे ( जो कि हर परिवार मे भाई भतीजे के साथ सबसे ज्यादा होता है )तो कही कोसो दूर तक दुश्मनी का कारण नजर नही आता है ।
 एक अनुभव शेयर करना उचित समझता हं।
  बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद मुम्बई मे 1993 मे हिन्दू -मुस्लिम दंगा हो गया। यादव नगर के साथ साथ कुछ और हिन्दू बस्ती चारो तरफ से मुस्लिम बस्ती से घिरी हुई थी । यादव नगर के हनुमान मंदिर और सगुफा बिल्डिंग के मस्जिद की दीवार कामन थी। बाहर से असमाजिक कुछ लोग आते थे, तरह तरह के अफवाह फैला कर दंगा कराने की कोशिश करते थे। एक ब्राह्मण भी आता था उसको बराबर जबाब देकर मै भगा देता था । हिन्दू -मुस्लिम शान्ति एकता कमेटी भी बन गई थी । जोगेश्वरी रेल्वे स्टेशन आने जाने के लिए करीब  500 मीटर मुस्लिम बस्ती से ही गुजरना पड़ता था ।किसी हिन्दू को कोई नुकसान न हो, मुस्लिम भाई पूरे रास्ते की चौकसी करते हुए सुरक्षा की जिम्मेदारी लिए हुए थे । मै भी कुछ लोगो के साथ  यादव नगर के बाहर चौराहे पर ही हर समय चौकसी करता था ।पूरी एरिया मे शान्ति थी ।एक बार पुलिस की गाड़ी आई, मै खुद सामने आकर अधिकारी से बात किया और कहा साहब यहा सब नार्मल है। इतना कहते ही डंडे चला दिया और कहा यह तुम्हारा काम नही है घर के बाहर मत निकलो । उनके इरादो को समझते हुए भी अपना फर्ज निभाया और यादव नगर मे दंगा भड़काने के लाख कोशिश के बाद भी कही किसी को एक खरोच तक नही आई।
  ठीक है मान लिया स्वतंत्रता से पहले तुम्हारा मनु सम्विधान था। तुमने शूद्रो को आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक तथाकथित हिन्दू बनाकर शोषण किया। लेकिन आज भी समता, समानता और बन्धुत्व पर आधारित शूद्रो के मूलभूत  सम्वैधानिक अधिकारो का हनन और बिरोध भी ब्राह्मण ही करता है जबकि मुसलमान सहयोगी और हमदर्द हर मौके पर दिखाई देता है ।
  अब आकलन आप को करना है कि शूद्रो का शातिर दुश्मन कौन है?
    शूद्र शिवशंकर सिंह यादव


🔥ब्राह्मण उच्च क्यों और कैसे 🔥
  सच तो यह है कि ब्राह्मणो द्वारा लिखित पौराणिक कथाए कपोल कल्पित है, फिर भी उन्ही की प्राचीन कथाओ से शंकर भगवान डोम आदिवासी  (शूद्र ) जाति के थे, जिसकी ब्राह्मण भी पूजा करता है।भगवान् श्रीकृष्ण यादव कुल मे  पैदा हुए । महाकवि बाल्मीकि जिन्होंने बाल्मीकि रामायण की रचना की जो मुसहर जाति, ये सभी शूद्र थे।
 तुलसी के अनुसार राम भगवान् नही पुरूषोत्तम थे । जीवनी,चरित्र और आचरण की समीक्षा करने पर तो आज के साधारण इन्सान की भी झलक नही दिखाई देती है ।कहावत है ,अन्धो मे काना राजा, इसलिए ईगो के कारण किसी भगवान् का नही, नकली भगवान् पैदाकर उसकी पूजा पाठ और राम का मन्दिर बनाने के लिए सत्याग्रह किए जा रहे है ।
 ऐतिहासिक परिदृश्य से आकलन करेगे तो,  सैकड़ो साल तक मुगलो -मुसलमानो का शासन -प्रशासन रहा जिनका ब्राह्मण हमेशा गुलामी और उनके तलवे चाटता  रहा। जबकि उसी समय ब्राह्मणो के बिरोध के बावजूद क्षत्रपति शिवाजी महाराज ने हिन्दवी स्वराज की स्थापना की, वे भी शूद्र जाति के थे।
 संत कबीर, संत रविदास जिन्होंने अपनी बाणी से ब्राह्मण बाद पर कुठाराघात किया ।ज्योतिबा फुले, क्षत्रपति शाहू महाराज, पेरियार रामास्वामी नायकर  और मान्यवर कांशीराम ,ये सभी महापुरुष शूद्र समाज मे ही पैदा हुए थे ।
  करीब  300 सालो तक अंग्रेजो ने शासन किया जिसे ब्राह्मण उन्हे मलिच्छ (शूद्र ) कहा करते थे ,जिन्होंने ही आधुनिक बैज्ञानिक, प्रगतिशील भारत को स्वरूप दिया ।
  स्वतंत्र भारत की या उससे पहले की बात करेंगे तो, बाबा साहब अम्बेडकर जैसे बिद्वान भारत मे आज तक कोई पैदाही नही हुआ।
   आज तक भारत का इतिहास सिर्फ हारने का इतिहास रहा है । इस कलंक को धोने और जीतने का सेहरा भी बाबू जगजीवन राम  जो चमार  (शूद्र ) जाति के थे, रक्षा मंत्री के रूप मे बंगाला देश की जीत का ताज भी उन्ही को शुसोभित कर रहा है ।
  आप खुद आकलन करे पूरे इतिहास मे ब्राह्मण कहा है? क्या इस वर्ण मे कोई तथाकथित भगवान् पैदा हुआ है, कोई महापुरुष पैदा हुआ है, कोई विद्वान, वैज्ञानिक पैदा हुआ है? कडुआ सत्य है, कही भी नही,कभी भी नही। फिर क्यो मान-सम्मान देते हो?
  8वी सदी से लेकर आज तक पश्चिमी सभ्यता के बैज्ञानिको ने मानव व पशु प्राणी कल्याण और शुख सुविधा  के लिए लाखो करोड़ो रिसर्च करते आ रहे  है और
   वही हमारे देश के हरामखोर, ढोंगी, पाखंडी, तथाकथित भगवान् को भी बेवकूफ बनाने वाले , ज्ञान पैदा करने और बांटने वाले , ब्रह्म को जानने और मुख से पैदा होने वाले  ,चुन्नीधारी सिर्फ एक ही रिसर्च (इन्सान को कैसे बेवकूफ बनाया जाय) सैकड़ो साल से आजतक करते चले आ रहे है ।
  शूद्र साथियो अब आंखे खोलो, इतिहास का आकलन करो, तर्क करो, काल्पनिक पाखंड और अन्धविश्वास क्यो और कैसे, आज क्यो नही ,चल साबित कर ,अन्यथा जूते---अब इसके अलावा कोई पर्याय नही है ।

  यदि थोड़ी समझदारी आ जाए तो यह प्रतिज्ञा करे कि आज के बाद हम ब्राह्मण को मान, दान और मतदान बन्द कर देगे ।


 😌मनूवाद और अम्बेडकरवाद😌

साथियो ब्राह्मणबाद (मनुबाद) इतना कमजोर नही है कि कोइ जादू की छड़ी चलाएगा और  वह खत्म हो जाएगा। जबतक इस देश मे ब्राह्मण रहेगा तबतक ब्राह्मणबाद भी  रहेगा और प्रतिक्रिया मे अम्बेडकरबाद को भी  कोई खत्म नही कर सकता है।
 "बाद" कुछ नही एक विचारधारा  है, व्यक्तिपूजा या भगवान पूजा नही है। ब्राह्मण भी अम्बेडकरबादी हो सकता है और शुद्र भी मनुबादी होता है। यह इतना गहरा है कि इसको नापना असंभव है। हर इन्सान के ब्लड हारमौन्स मे, ऊंच-नींच, जाति-पाति, पाप-पुण्य ,सुख-दुख की विडम्बना के साथ घुस गया है। इसमे सुधार लाने के लिए सैकड़ों साल से न जाने कितने महापुरुषों ने कोशिश की तथा अपनी जिन्दगी दाव पर लगा दी है। कुछ के अभी तक हमे जानकारी मिली है । कबीर, रहीम , सन्त रोहिदास, पेरियार, फुले, साहू, बाबा साहेब, ललई सिह यादव, काशीराम आदि अनेक--- लेकिन उसका परिणाम आप के सामने है । बाबा साहेब ने अपने जमाने के सभी महापुरुषो के अनुभव, ज्ञान और उनके कार्य को हासिल करते हुए एक अपना विचार दिया और मनु के सम्विधान को जलाकर इस देश को समता, समानता और बन्धुत्व की विचारधारा देकर ब्राह्मणवाद के विरोध मे भारतीय संविधान दिया है।
 बाबा साहेब ने मनुवाद के सिद्धांत पर आधारित हज़ारों  कथा स्म्रिति वेद पुराण आदि काल्पनिक कथाओ को नकारते हुए हमे सकारात्मक, बौद्धिक, तार्किक और विज्ञान-शोधित विचारधारा दिया है। समाजबाद और मंडलबाद भी  इसका ही एक अंश है । इसी     विचारधारा को आजकल अम्बेडकरबाद कहा जाता है।
इस विचारधारा मे सभी महापुरुषो का योगदान है और सभी महापुरुष हमलोगो के लिए पूज्यनीय है ।महापुरुष की कोइ जाति नही होती है और महापुरुषो को जाति के आधार पर छोटा बड़ा नही देखना है। यही देखना तो ब्राह्मणबाद है।
 मिशन *गर्व से कहो हम शूद्र है* यह पूर्ण रुप से अम्बेडकर बाद पर ही आधारित है और इसकी प्राथमिकता भी धीरे-धीरे देर - सबेर स्वीकार करने का मन बनाना चाहिए, तभी  हम सफल हो सकते है। अन्यथा एक-दूसरे जातिओ के महापुरुष और भगवानो को ऊंच-नीच की एलर्जी लेकर लड़ते रह जाएगे।
  यह मिशन एक दो सालो का नही है , कई पीढ़ियो तक का संघर्ष है और चलता रहेगा। आप यह भी  याद रखिए कि स्वतंत्रता से पहले सैकड़ो साल से शूद्र समाज मे देवी-देवता,भाज्ञ-भगवान,वेद-पुराणो को मानते हुए कितने हाईस्कूल,इन्टर बीए थे, कितने डा० ईन्जीनियर थे, कितने IAS IPS IFS  थे, कितने वैज्ञानिक तथा कितने देश-विदेश मे व्यापार करते थे। यह कड़ुआ सत्य है ,कुछ भी नही थे तो क्यो नही थे और कितनी शूद्र जातियो के महापुरुषो की जय बोली जाती  थी। यह आज सभी मान-संमान और अधिकार साहेब के दिऐ हुए संविधान की वजह से है।
 यदि शूद्र समाज को अपना खोया हुआ मान-सम्मान वापस प्राप्त करना है तो एकजुट होकर पूरी आक्रमता के साथ उसी के दिए हुए द्विधारी हथियार से  ब्राह्मणवाद पर प्रहार करना होगा।

 एक जुट होने के लिए सिर्फ  अम्बेडकरबादी विचारधारा अपनाकर पूरे देश मे सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन लाना पड़ेगा। इसके बाद ही राजनीतिक परिवर्तन पूर्ण रुप से स्थाई हो सकता है। अनुभव को देखते हुए  आने वाले समय मे ब्राह्मणबाद को टक्कर देने के लिए इसके अलावा दूसरा कोई बिकल्प नजर नही आ रहा है।


 🔥क्या आप भगवान की
       जन्मकुंडली जानते है?🔥

  🔥पूरे विश्व मे सिर्फ, 002 % हिन्दू ही कई देवी -देवताओ और भगवानो  (गाड्स ) की पूजा-पाठ  करते और ब्राह्मण से करवाते रहते है ।
  वैज्ञानिको द्वारा यह सत्य साबित हो गया है कि श्रृष्टि की संरचना समुद्र के पानी से ही शुरू हुई और समुद्र का पानी ही पृथ्वी के सभी भूभागो के सम्पर्क मे था । इसीलिए समान रूप से सभी भूभागो पर जीव जन्तु, पशु-पक्षी और बनिस्पतिया पैदा हुई।करोड़ो  साल की प्रक्रिया के बाद बन्दर, बनमानुक फिर आदि मानव फिर मानव जाति की उत्पत्ति हुई है । कोलम्बस के नई दुनिया के खोज के पहले अमेरिका द्वीप और यूरोप के बीच किसी तरह का कोई सम्बन्ध नही था, यहा तक कि किसी तथाकथित भगवानो का भी नही था तो दोनो द्वीपो पर समान रूप से श्रृष्टि की रचना कौन किया ।चन्द्रमा पर कोई तथा कथित भगवान जीव पैदा क्यो नही किया, किसने रोका है?
  तथाकथित भगवान मे विश्वास करने वालो से मै बार बार एक प्रश्न पूछता हूं  (यदि आप या कोई जाड़े के दिन मे 10-12 दिन स्नान न करे और कपड़ा न बदले, तो शरीर मे एक जीव चिल्लर और सर के बालो मे ज्यू (ढील) पैदा हो जाते है । जरा सोचिए कौन पैदा करता है? आप या कोई भगवान? नही नेचर  (प्रकृति )के द्वारा वैसे वातावरण बना तो जीव पैदा हो गया ।
 अब भगवान के बारे मे मान्यताए देखिए ।
  🔥मुसलमान अपने पैगंबर  (गाड मैसेंजर ) मोहम्मद पैगम्बर  की इबादत करते है ।यहां "अल्लाह हो अकबर" मतलब गाड इज ग्रेट" से है ।
  🔥ईसाई भी अपने पैगम्बर (मैसेंजर ) ईसामसीह से दुवा और  खुशहाली के लिए प्रार्थना करते है ।
  🔥सिक्ख धर्म के लोग भी गुरु गोविंद साहब  (गुरु) की गुरु वाणी से प्रार्थना करते है ।
  🔥बुद्धिष्ट लोग भी गौतमबुद्ध  (भगवान नही ) मैसेंजर की आदर  भाव से प्रार्थना करते है ।
 इसी तरह पूरी दुनिया मे धर्म गुरु,  पैगम्बर या मैसेंजर  ( गाड या भगवान के बिचारो को समाज तक पहुंचाने वाला ) की पूजा, अर्चना, प्रार्थना इबादत की जाती है और बदले मे कोई दान दक्षिणा  या चढ़ावा नही ली जाती है ।

  लेकिन हिन्दू धर्म का दुर्भाग्य है कि यहां ब्राह्मणी के पेट से जो भी  अन्धा ,लंगड़ा,  लूला ,पागल , बेवकूफ पैदा हो गया वे सभी मैसेंजर  (पुजारी ) हो गये। जब सभी पुजारी हो गए तो स्वाभाविक है भगवान भी कई  होने चाहिए। इसीलिये असली भगवान नही नकली हजारो देवी-देवताओ और भगवानो की पूजा करने और करवाने लगे तथा बदले मे पेट- पूजा के लिए दान दक्षिणा और चढ़ावा  का प्रबंध करके भगवान् और भक्त दोनो को बेवकूफ बनाने लग गये।

मृत्यु क्या है ?

मृत्यु क्या है ?

 मृत्यु के बाद हमारा क्या होता है ? हम मृत्यु से इतना क्यों डरते हैं ? जिस समय से पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत हुई , एक कोशकीय जीव के रूप में , उस समय से ही स्वयं को खतरे से बचाने की प्रवित्ति और जीवन को सुरक्षित रखने की प्रवित्ति  का  जन्म जीव के अंदर एक अविभाज्य अंग के रूप में हुआ | वो जीव जिनमे स्वयं को बचाने की प्रवित्ति नहीं थी वो पृथ्वी से विलुप्त हो गए | यही प्रवित्ति विकास के क्रम में मानव तक पहुँचने पर भय के रूप में स्थापित हुई | मृत्यु जीवन के लिए  सिर्फ एक छोटी या बड़ी समस्या भर नहीं है बल्कि यह जीवन को पूरी तरह ख़ारिज करने की घटना है | जीवन को बचाने की प्रवित्ति का अधिकतम रूप मृत्यु के प्रति भय के रूप में प्रदर्शित होता है |पूरी तरह से ख़त्म हो जाने का विचार हमारे मन में भयंकर खलबली मचा देता है | जीवन को बचा पाने की ललक , जीवन को पाने की भूख का परिणाम हुआ की प्राचीन समय में मानव ने ‘आत्मा’ की परिकल्पना की ,जो मृत्यु से परे है | आत्मा की परिकल्पना को स्थापित करने में एक और मानवीय गुण ने साथ दिया , वह गुण उसने evolution के क्रम में पाया था , जिसे consciousness कहते हैं ; यह thought (विचार ) या perception (बोध )आदि गुणों के लिए एक सामान्य नाम है |  हम हमारा हाथ ,पैर, आँख ,नाक ,पेट , छाती आदि नहीं हैं , बल्कि इस सब के अंदर कुछ रहता है , ऐसा विचार हमें consciousness की वजह से आता है | इसलिए प्राचीन मानव के विचार में आत्मा की परिकल्पना आयी | शरीर से अलग आत्मा की परिकल्पना ने प्राचीन समय में भूत की परिकल्पना को भी जन्म दिया | जब धीरे धीरे मानव सभ्यता के समय धर्मों का जन्म हुआ , आत्मा की परिकल्पना ने धर्म के अंदर और भी ठोस रूप लिया |   भारत में आत्मा के बारे में जो समझ पैदा हुई वो यह थी की आत्मा , परमात्मा का ही छोटा हिस्सा है जो अलग अलग योनियों में पुनर्जन्म लेता है और जब पाप और पुण्य बराबर हो जाते हैं तो वापस परमात्मा में मिल जाता है , जिसे मोक्ष प्राप्त करना कहते हैं | लेकिन यहूदी , ईसाई, इस्लाम धर्म ने माना की मृत्यु के बाद आत्मा क़यामत के दिन तक इंतज़ार करती है और उस दिन पाप और पुण्य के आधार पर स्वर्ग या नर्क में जाती है |मॉडर्न बायोलॉजी आत्मा के अस्तित्व को पूरी तरह गलत साबित करती है | और इस प्रकार भूत ,  पुनर्जन्म , स्वर्ग ,नर्क आदि सभी परिकल्पनाओं को गलत साबित करती है | आधुनिक विज्ञान की बहुत सी बातें व्यावहारिक बुद्धि से नहीं समझी जा सकतीं , जैसे की आइंस्टीन की जनरल थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी , जिसके अनुसार समय और स्थान वक्राकार हैं !!! वैसे ही आधुनिक जीव विज्ञान के इस परिणाम को समझना आसान नहीं की हमारे अंदर कोई आत्मा नहीं | फिर भी , एक किताब साधारण लोगों की समझ के लिए विख्यात वैज्ञानिक फ्रांसिस क्रिक द्वारा लिखी गयी जिन्हे १९६२ में नोबल पुरस्कार मिला ; किताब का नाम था  The Astonishing Hypothesis: The Scientific Search For The Soul.  ( विज्ञान द्वारा आत्मा की खोज ) अगर आत्मा नहीं है तो फिर जीवन क्या है और मृत्यु क्या है ? जीव विज्ञान के अनुसार जीवन कोई वस्तु , या शक्ति या ऊर्जा नहीं है , बल्कि यह कुछ गुणों के समूह का सामान्य नाम है जैसे की उपापचय ,प्रजनन , प्रतिक्रियाशीलता ,वृद्धि ,अनुकूलन (Metabolism, Reproduction, Responsiveness, Growth, Adaptation) आदि | अभी तक हम जितना जानते हैं उसके अनुसार ये गुण जटिल कार्बन यौगिकों  के मिश्रण द्वारा प्रदर्शित होते हैं जिन्हे कोशिका के नाम से जाना जाता है | और सबसे सरल कोशिका जिसे हम जानते हैं वह है वायरस |अपनी सहज प्रवित्ति की वजह से यदि ये कोशिकाएं एक दुसरे के साथ सहयोग में आती है और किसी वातावरण में साथ में रहती है तो वे एक संगठन बनाती है जिसे हम जीव कहते है | अगर किसी जीव में कुछ कोशिकाएं बाकि कोशिकाओं के सहयोग में नहीं रहतीं तो इसे कैंसर कहते हैं | जब ज़्यादा से ज़्यादा कोशिकाएं एक दुसरे के सहयोग में आती हैं और जटिल संगठन का निर्माण करती हैं तो हमें और दुसरे जीव प्राप्त होते हैं जैसे की  कीड़े मकोड़े , सरीसृप , मछली , स्तनधारी .......मनुष्य | विकास के क्रम में हर पड़ाव पर जीवों में कुछ नए गुणों की वृद्धि हुई और जब विकास क्रम मानव तक पहुंचा तो जो गुण विकसित हुआ वह था  "बोध " (कांशसनेस ) | बहुत पहले , पूरे विश्व में सभी मानव जातियों में यह विश्वास था की आत्मा हृदय के अंदर रहती है | उदहारण के लिए , भारत में महानारायण उपनिषद और चरक सहिंता में यह बात कही गयी है | १९६४ में  डॉक्टर जेम्स डी हार्डी ने अपने एक रोगी के हृदय के स्थान पर एक चिंपांज़ी के हृदय का प्रत्यारोपण किया | १९६७ में Christiaan Barnard  ने एक रोगी के हृदय के स्थान पर एक दूसरे मनुष्य के  हृदय का प्रत्यारोपण किया | इस सब की वजह से हृदय में आत्मा के उपस्थित होने के विश्वास को बड़ा धक्का लगा |
हर मानव शरीर में लगभग ३७ लाख करोड़ कोशिकाएं होती हैं | हर कोशिका में जीवन है और मानव इन्ही कोशिकाओं का समूह है , तो इस प्रकार तो मेरे अंदर ३७ लाख करोड़ आत्माएं हैं !! मेरी मृत्यु होने पर , २४ घंटों के बाद मेरी त्वचा की कोशिकाएं मरती हैं, ४८ घंटों बाद हड्डी की कोशिकाएं मरती हैं और ३ दिन के बाद रक्त धमनी की कोशिकाएं मरती हैं | यही कारन हैं की मृत्यु के बाद भी अंग दान (ऑर्गन डोनेशन ) संभव हैं | अगर हम अपनी आँख दान करें तो आंख की कोशिकाएं वर्षों जीवित रहेंगीं |  अगर हमें ब्रेन स्ट्रोक होता हैं , २ -३ मिनट के अंदर मस्तिष्क की वो कोशिकाएं मर जायेंगीं जहाँ रक्त प्रवाह रुक गया था |  अगर हमें Alzheimer रोग हो जाये तो हमारे मस्तिष्क की कोशिकाएं एक एक कर मरने लगेगीं और पूरा मस्तिष्क धीरे धीरे मर जायेगा (सिर्फ ब्रेन स्टेम जीवित रह जायेगा )लेकिन हम जीवित होंगे  लेकिन एक वनस्पति की तरह | तो फिर , मृत्यु क्या है ? मनुष्य की मृत्यु उसके brain stem की मृत्यु है | ( चित्र में मस्तिष्क की फोटो देखें ) मस्तिष्क के दुसरे हिस्से शरीर की बहुत सी चीज़ों को संचालित करते हैं जैसे की वाकशक्ति , दृष्टि , सुनने की शक्ति , स्वाद , सूंघने की शक्ति , चलने की शक्ति , सोचने की शक्ति , बुद्धिमत्ता , मनोभाव आदि ;  मस्तिष्क का सबसे नीचे का हिस्सा जिसे ब्रेन स्टेम कहते हैं , वह बहुत ही आधारभूत  क्रियाएं सम्पादित करता है , जैसे की हृदय गति , श्वास की प्रक्रिया , रक्तचाप आदि | जब सांस रुक जाती है तो हृदय धड़कना बंद कर देता है , रक्त प्रवाह बंद हो जाता है , और एक एक कर के प्रत्येक ऑर्गन काम करना बंद कर देता है | सांस का रुकना या हृदय गति का रुकना मृत्यु का कारण बन सकते हैं लेकिन  मृत्यु नहीं है , इस अवस्था से बहार निकला जा सकता है | लेकिन अगर ब्रेन स्टेम काम करना बंद कर दे तो फिर उसे वापस नहीं क्रियान्वित कर सकते | अगर ब्रेन स्टेम मर जाता है तो फिर दुसरे ऑर्गन जीवित भी हैं तो भी मनुष्य मृत ही है , ज़्यादा से ज़्यादा हम जीवित ऑर्गन का दान किसी और जीवित शरीर को कर सकते हैं | alzheimer रोग के आखिरी पड़ाव में ब्रेन स्टेम को छोड़कर सभी मस्तिष्क कोशिकाएं मर जाती हैं | हमारे भाव , विचार और बोध मस्तिष्क के दुसरे हिस्से की वजह से होते हैं ; ब्रेन स्टेम  का इसमें कोई कार्य नहीं | तो फिर हमारा आत्म बोध  यानि "मैं " की भावना Cerebrum और  Cerebellum की वजह से हैं न की ब्रेन स्टेम की वजह से | तो फिर हम आत्मा के बोध के बिना भी जीवित वस्तुकी तरह रह सकते हैं , जैसे की वनस्पति या alzheimer रोगी |
अगर हम किसी रोग या दुर्घटना में नहीं मरते हैं तो वृद्ध अवस्था में मृत्यु हो जाती है , लेकिन क्यों ?? १९६२ में Leonard Hayflick  ने खोज की कि मानव शरीर कि कोशिकाएं  अधिकतम ५० गुना विभाजित हो सकती हैं जिसे Hayflick Limit कहते हैं | जब हम बच्चे होते हैं तो कोशिका विभाजन कि दर काफी ऊँची होती है , फिर समय के साथ यह दर काफी धीमी हो जाती  है | कोशिका का  विभाजन कोशिका के nucleus में पाए जाने वाले डीएनए  द्वारा होता है और डीएनए के सिरे पर  Telomere  होता है जो Hayflick Limit निर्धारित करता है | Telomere ५० बार से अधिक विभाजित नहो हो पाता| इसकी खोज १९९३ में Barbara McClintock  ने कि जिसके लिए उन्हें नोबल पुरस्कार मिला | Telomere दरअसल अनियंत्रित कोशिका विभाजन को रोकता है , दुसरे शब्दों में कहें तो यह कैंसर से बचाता है | लेकिन इस नियंत्रण कि प्रक्रिया में
जब हम वृद्धावस्था में पहुँचते हैं तबतक Telomere कोशिका विभाजन नियंत्रण कि सीमा पूरी कर चूका होता है , उसके बाद कोशिका विभाजन सिर्फ कैंसर को जन्म देता है | जिसका मतलब है कि अगर हम किसी और कारण से नहीं मरते हैं तो वृद्धावस्था में कैंसर ही मृत्यु कि वजह बनता है | बचने का कोई रास्ता नहीं , मृत्यु निश्चित है | लेकिन सभी जीव कि मृत्यु ही होगी ऐसा ज़रूरी नहीं , जैसे कि वायरस पैदा होने के बाद कभी मरता नहीं , बस कुछ परिस्थितियों में जैसे अधिक तापमान या किसी रसायन से मारा जा सकता है | वैसे ही 'जेली फिश ' जो करोङों साल पहले ेवोलुशन के क्रम में बनी, कभी नहीं मरती | जीव जो मरते नहीं !!
लोग जो आत्मा में विश्वास करते हैं , वे भी किसी स्वजन कि मृत्यु पर फूट फूट कर रोते हैं, जब आत्मा मरती नहीं तो फिर इस मातम का क्या अर्थ है ? दरअसल लोगों को स्वयं के विश्वासों पर भरोसा नहीं !! ये बेकार के विश्वास भी उन्हें कठिन परिस्थितियों में आराम नहीं देते | तो क्यों न वे ऐसे विश्वासों को छोड़कर सच को समझें और उसका सामना करें ? इसीलिए कार्ल मार्क्स ने इन सभी विश्वासों को नशा कहा था | वे नशे से ज़्यादा कुछ नहीं | लेकिन अगर सोचें कि हम वैज्ञानिक सच को स्वीकार करें और हर मनुष्य को एक मृत्यु कि और बढ़ते एक साथी के रूप में देखें तो सभी से प्रेम करना आसान होगा | नहीं तो एक इस्लामी आतंकवादी  के लिए मृत्यु के बाद के जीवन कि आशा पर , जीवित लोगों को मारना आसान हो जाता है | गीता आत्मा के आधार पर ही हत्या को उचित ठहराती है कि आत्मा तो नहीं मरती  और मृत्यु के बाद आत्मा को न्याय मिलता है | जब वे समझें कि मृत्यु के बाद कुछ भी नहीं , तब ही समाज में दबे कुचले लोगों के लिए न्याय कि बात अभी इसी जीवन में पृथ्वी  पर होगी क्योंकि तब मारने वाले और मरने वाले किसी के भी पास मृत्यु के बाद स्वर्ग या नर्क मिलने कि आशा या परमात्मा के न्याय कि आशा नहीं होगी |