माननीय बहनजी को विरोधी दलों के नेताओं द्वारा दौलत की बेटी कहने का ज़वाब।
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विरोधी नेता- अरे, देखो मायावती खुद को दलित बोलती है , कभी छोटे से झोपड़े जैसे मकान में रहा करती थी और आज देखो...महलों जैसे घर में!
जागरूक दलित - नेताजी.. तो इसमें क्या बुराई है कि बहनजी महल में रहती है!
विरोधी नेता- अरे, तुम्हारा वोट लेकर उसने खुद को तो अरबपति बना लिया! और तुम वहीँ के वहीँ झोपडी में पड़े हो! यह तो तुम्हारे साथ धोखा है ना!
जागरूक दलित - नेताजी,यही तो हम चाहते थे कि मेरे वोट से बहनजी एक झोपड़े जैसे मकान से निकलकर आज महलों में पहुँच गई हैं, जिन महलों पर पहले सिर्फ आप जैसो का हक़ था, अब दलित भी वहां तक पहुँचने के लिए जुटे हुए हैं...तो यह तो मेरे वोट की ताकत दिखाता है कि मेरा वोट से वो इतना आगे बढ़ गई, कि आज मेरे जैसे कईयों को आगे बढाने लायक ताकत रखती हैं! अब यह तो हो नहीं सकता कि 25 करोड़ दलितों के लिए 25 करोड़ महल बन जाएँ! जो आगे बढ़ रहा है, हम उसके पीछे खड़े ही इसलिए हैं ताकि वो आगे आने वाली पीढ़ियों की नींव मजबूत कर सके! हम तो जब भी बहनजी के घर को देखते हैं, हमें लगता है कि वो हमारा ही घर है!
विरोधी नेता- अरे, लेकिन तुमको बुरा नहीं लगता कि वो अरबपति और तुम वहीँ के वहीँ दलित!
जागरूक दलित - नेताजी, दलित तो हमें हजारों सालों से आपने बनाया हुआ है, बहनजी ने नहीं! बुरा तो आपको भी लगना चाहिए कि आज़ादी के बाद से हजारों नेता आपके ही वर्गों से आते रहे...लेकिन आज भी गरीब सवर्णों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है! उसकी तुलना में अकेली बहनजी तो करोडो दलितों की आवाज़ बनी हुई हैं! अगर हम उनको भी पीछे धकेल देंगे तो हमारी आने वाली नस्ल का क्या होगा! उन्ही के कारण तो आज आपको मजबूरी में मेरे घर पर आना पड़ा है,वरना तो हमारे घर आप क्यूँ आते!
विरोधी नेता- अरे, तुम बहनजी को हराओ, हम तुम्हे अरबपति बना देंगे!
जागरूक दलित - धन्यवाद नेताजी, आप अगर दलितों को अरबपति बनाना चाहते हैं तो गुजरात, छत्तीसगढ़,झारखंड,मध्य प्रदेश आदि में लम्बे समय से आपकी सरकारे हैं, वहां भी दलित रहते हैं, उन्हें बना दीजिये! आप गलत घर आ गए हैं! मेरा नाम उदितराज, रामदास अठावले, जीतनराम मांझी या रामविलास नहीं है!
विरोधी नेता- साले चुनाव के बाद तुझे देख लूँगा, छोटी जात से ज़रा सी हाथ जोड़कर बात क्या कर ली,...सिर पर चढ़ गया!
(नेताजी गुस्से में पैर पटकते हुए बाहर निकल लिए)
जागरूक दलित और अवसरवादी दलित को मिली इज्जत में बस इतना सा ही फर्क है! कि जागरूक दलित अपनी मर्ज़ी का मालिक होता है और अवसरवादी सिर्फ गुलामी ढोता रहता है।
(जय भीम)
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विरोधी नेता- अरे, देखो मायावती खुद को दलित बोलती है , कभी छोटे से झोपड़े जैसे मकान में रहा करती थी और आज देखो...महलों जैसे घर में!
जागरूक दलित - नेताजी.. तो इसमें क्या बुराई है कि बहनजी महल में रहती है!
विरोधी नेता- अरे, तुम्हारा वोट लेकर उसने खुद को तो अरबपति बना लिया! और तुम वहीँ के वहीँ झोपडी में पड़े हो! यह तो तुम्हारे साथ धोखा है ना!
जागरूक दलित - नेताजी,यही तो हम चाहते थे कि मेरे वोट से बहनजी एक झोपड़े जैसे मकान से निकलकर आज महलों में पहुँच गई हैं, जिन महलों पर पहले सिर्फ आप जैसो का हक़ था, अब दलित भी वहां तक पहुँचने के लिए जुटे हुए हैं...तो यह तो मेरे वोट की ताकत दिखाता है कि मेरा वोट से वो इतना आगे बढ़ गई, कि आज मेरे जैसे कईयों को आगे बढाने लायक ताकत रखती हैं! अब यह तो हो नहीं सकता कि 25 करोड़ दलितों के लिए 25 करोड़ महल बन जाएँ! जो आगे बढ़ रहा है, हम उसके पीछे खड़े ही इसलिए हैं ताकि वो आगे आने वाली पीढ़ियों की नींव मजबूत कर सके! हम तो जब भी बहनजी के घर को देखते हैं, हमें लगता है कि वो हमारा ही घर है!
विरोधी नेता- अरे, लेकिन तुमको बुरा नहीं लगता कि वो अरबपति और तुम वहीँ के वहीँ दलित!
जागरूक दलित - नेताजी, दलित तो हमें हजारों सालों से आपने बनाया हुआ है, बहनजी ने नहीं! बुरा तो आपको भी लगना चाहिए कि आज़ादी के बाद से हजारों नेता आपके ही वर्गों से आते रहे...लेकिन आज भी गरीब सवर्णों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है! उसकी तुलना में अकेली बहनजी तो करोडो दलितों की आवाज़ बनी हुई हैं! अगर हम उनको भी पीछे धकेल देंगे तो हमारी आने वाली नस्ल का क्या होगा! उन्ही के कारण तो आज आपको मजबूरी में मेरे घर पर आना पड़ा है,वरना तो हमारे घर आप क्यूँ आते!
विरोधी नेता- अरे, तुम बहनजी को हराओ, हम तुम्हे अरबपति बना देंगे!
जागरूक दलित - धन्यवाद नेताजी, आप अगर दलितों को अरबपति बनाना चाहते हैं तो गुजरात, छत्तीसगढ़,झारखंड,मध्य प्रदेश आदि में लम्बे समय से आपकी सरकारे हैं, वहां भी दलित रहते हैं, उन्हें बना दीजिये! आप गलत घर आ गए हैं! मेरा नाम उदितराज, रामदास अठावले, जीतनराम मांझी या रामविलास नहीं है!
विरोधी नेता- साले चुनाव के बाद तुझे देख लूँगा, छोटी जात से ज़रा सी हाथ जोड़कर बात क्या कर ली,...सिर पर चढ़ गया!
(नेताजी गुस्से में पैर पटकते हुए बाहर निकल लिए)
जागरूक दलित और अवसरवादी दलित को मिली इज्जत में बस इतना सा ही फर्क है! कि जागरूक दलित अपनी मर्ज़ी का मालिक होता है और अवसरवादी सिर्फ गुलामी ढोता रहता है।
(जय भीम)
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