Sunday 26 February 2017

दलितों की गिनती इंसान तो छोडिए जानवरों में भी नही होती है

 हिन्दू धर्म में दलितों की गिनती इंसान तो छोडिए जानवरों में भी नही होती है ।
 जानवर तो पूजा का पात्र है , 
उसका मल मूत्र भी आस्था का प्रतीक है , 

लेकिन दलित को छूना भी पाप है , दलित अछूत है । ये ब्राह्मणी लोग अपने घरों में तमाम जानवर रखते हैं , जैसे - गाय , भैंस , बकरी , कुत्ता इत्यादि । कितना आत्मीय व्यवहार रखते हैं इन जानवरों से । इनको अपने ही थाल में जूठन आदि खिलाते हैं , अपनी ही बाल्टियों में पानी पिलाते हैं । फिर उन्हें धुलकर रख लेते हैं । बाद में खुद इस्तेमाल करते हैं । इन्हीं बर्तनों में खाते हैं , इन्हीं बाल्टियों में पानी पीते हैं । लेकिन अगर यही बर्तन , यही बाल्टी दलित छू ले तो उसे घर से बाहर कर देते हैं । मतलब दलित जानवर से भी गया गुजरा है । इतना सब होने पर दलित किस मुँह से कह सकता है कि वह हिन्दू है ।  दलित तो हिन्दू धर्म की चतुर्वर्णीय व्यवस्था में भी नही आता है । इसको पंचम वर्ण के नाम से जानते हैं । कुछ लोग गलती से दलित को शूद्र कहते हैं , लेकिन दलित शूद्रों की श्रेणी में नही आते हैं अर्थात दलित शूद्र नही हैं । ये शूद्रों से बाहर हैं । दलित को अछूत समझा जाता है । दलित अपने घर पर सवर्णों के आने पर अपनी चारपाई पर भी नही बैठ सकता है । सोचिए घर हमारा , चारपाई हमारी , इसको बनाने वाला भी हमारा , लेकिन हम सवर्णों के आने पर अपनी चारपाई पर नही बैठ सकते । ये कैसा धर्म है , ये कैसी इंसानियत है ? दलितों को हमेशा गांव से बाहर बसने के लिए बाध्य किया गया । दलितों का घर गांव में दक्षिण दिशा में  रखा गया  । सवर्णों का मानना था कि हवा दक्षिण दिशा से कम चलती है , दलित गंदा होता है , इसलिए हवा इसे छूकर हमें गंदा न करे , जिससे दलित को दक्षिण दिशा की ओर  बसने के लिए मजबूर करो । दलित हिन्दू धर्म के किसी भी त्यौहार में उनके यहां शामिल नही हो सकता । हिन्दू के किसी कार्यक्रम में इसको शामिल होने की इजाजत नही है । मंदिर नही जा सकता , जायेगा तो पीटा जायेगा । उनकी चारपाई पर नही बैठ सकता । उनके बीच में बैठकर खाना नही खा सकता । इतनी बडी अष्पृश्यता । क्या दशा है दलितों की हिन्दू समाज में ? किसी बुद्धिजीवी ने कहा है कि अगर अष्पृश्यता पाप नही है तो दुनिया में कुछ भी पाप नही है । अष्पृश्यता पाप ही नही महापाप है , जिस महापाप को करने में हिन्दुओं को जरा सी भी तकलीफ नही होती है । वे लोग दलितों को अपनी टूटी जूती से अधिक नही समझते हैं । इसलिए दलितों को उन्हें नीच और तुच्छ कहने में जरा सा भी संकोच नही होती है।
 बाबा साहेब ने कहा है कि दलितों को जानवर से भी नीचा दर्जा देना , यह साबित करता है कि दलित और चाहे कुछ भी हो सकता है , लेकिन हिन्दू नही हो सकता ।
जय भीम          

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