हिन्दू धर्म में दलितों की गिनती इंसान तो छोडिए जानवरों में भी नही
होती है ।
जानवर तो पूजा का पात्र है ,
उसका मल मूत्र भी आस्था का प्रतीक है ,
लेकिन दलित को छूना भी पाप है , दलित अछूत है । ये ब्राह्मणी लोग अपने घरों में तमाम जानवर रखते हैं , जैसे - गाय , भैंस , बकरी , कुत्ता इत्यादि । कितना आत्मीय व्यवहार रखते हैं इन जानवरों से । इनको अपने ही थाल में जूठन आदि खिलाते हैं , अपनी ही बाल्टियों में पानी पिलाते हैं । फिर उन्हें धुलकर रख लेते हैं । बाद में खुद इस्तेमाल करते हैं । इन्हीं बर्तनों में खाते हैं , इन्हीं बाल्टियों में पानी पीते हैं । लेकिन अगर यही बर्तन , यही बाल्टी दलित छू ले तो उसे घर से बाहर कर देते हैं । मतलब दलित जानवर से भी गया गुजरा है । इतना सब होने पर दलित किस मुँह से कह सकता है कि वह हिन्दू है । दलित तो हिन्दू धर्म की चतुर्वर्णीय व्यवस्था में भी नही आता है । इसको पंचम वर्ण के नाम से जानते हैं । कुछ लोग गलती से दलित को शूद्र कहते हैं , लेकिन दलित शूद्रों की श्रेणी में नही आते हैं अर्थात दलित शूद्र नही हैं । ये शूद्रों से बाहर हैं । दलित को अछूत समझा जाता है । दलित अपने घर पर सवर्णों के आने पर अपनी चारपाई पर भी नही बैठ सकता है । सोचिए घर हमारा , चारपाई हमारी , इसको बनाने वाला भी हमारा , लेकिन हम सवर्णों के आने पर अपनी चारपाई पर नही बैठ सकते । ये कैसा धर्म है , ये कैसी इंसानियत है ? दलितों को हमेशा गांव से बाहर बसने के लिए बाध्य किया गया । दलितों का घर गांव में दक्षिण दिशा में रखा गया । सवर्णों का मानना था कि हवा दक्षिण दिशा से कम चलती है , दलित गंदा होता है , इसलिए हवा इसे छूकर हमें गंदा न करे , जिससे दलित को दक्षिण दिशा की ओर बसने के लिए मजबूर करो । दलित हिन्दू धर्म के किसी भी त्यौहार में उनके यहां शामिल नही हो सकता । हिन्दू के किसी कार्यक्रम में इसको शामिल होने की इजाजत नही है । मंदिर नही जा सकता , जायेगा तो पीटा जायेगा । उनकी चारपाई पर नही बैठ सकता । उनके बीच में बैठकर खाना नही खा सकता । इतनी बडी अष्पृश्यता । क्या दशा है दलितों की हिन्दू समाज में ? किसी बुद्धिजीवी ने कहा है कि अगर अष्पृश्यता पाप नही है तो दुनिया में कुछ भी पाप नही है । अष्पृश्यता पाप ही नही महापाप है , जिस महापाप को करने में हिन्दुओं को जरा सी भी तकलीफ नही होती है । वे लोग दलितों को अपनी टूटी जूती से अधिक नही समझते हैं । इसलिए दलितों को उन्हें नीच और तुच्छ कहने में जरा सा भी संकोच नही होती है।
बाबा साहेब ने कहा है कि दलितों को जानवर से भी नीचा दर्जा देना , यह साबित करता है कि दलित और चाहे कुछ भी हो सकता है , लेकिन हिन्दू नही हो सकता ।
जय भीम
जानवर तो पूजा का पात्र है ,
उसका मल मूत्र भी आस्था का प्रतीक है ,
लेकिन दलित को छूना भी पाप है , दलित अछूत है । ये ब्राह्मणी लोग अपने घरों में तमाम जानवर रखते हैं , जैसे - गाय , भैंस , बकरी , कुत्ता इत्यादि । कितना आत्मीय व्यवहार रखते हैं इन जानवरों से । इनको अपने ही थाल में जूठन आदि खिलाते हैं , अपनी ही बाल्टियों में पानी पिलाते हैं । फिर उन्हें धुलकर रख लेते हैं । बाद में खुद इस्तेमाल करते हैं । इन्हीं बर्तनों में खाते हैं , इन्हीं बाल्टियों में पानी पीते हैं । लेकिन अगर यही बर्तन , यही बाल्टी दलित छू ले तो उसे घर से बाहर कर देते हैं । मतलब दलित जानवर से भी गया गुजरा है । इतना सब होने पर दलित किस मुँह से कह सकता है कि वह हिन्दू है । दलित तो हिन्दू धर्म की चतुर्वर्णीय व्यवस्था में भी नही आता है । इसको पंचम वर्ण के नाम से जानते हैं । कुछ लोग गलती से दलित को शूद्र कहते हैं , लेकिन दलित शूद्रों की श्रेणी में नही आते हैं अर्थात दलित शूद्र नही हैं । ये शूद्रों से बाहर हैं । दलित को अछूत समझा जाता है । दलित अपने घर पर सवर्णों के आने पर अपनी चारपाई पर भी नही बैठ सकता है । सोचिए घर हमारा , चारपाई हमारी , इसको बनाने वाला भी हमारा , लेकिन हम सवर्णों के आने पर अपनी चारपाई पर नही बैठ सकते । ये कैसा धर्म है , ये कैसी इंसानियत है ? दलितों को हमेशा गांव से बाहर बसने के लिए बाध्य किया गया । दलितों का घर गांव में दक्षिण दिशा में रखा गया । सवर्णों का मानना था कि हवा दक्षिण दिशा से कम चलती है , दलित गंदा होता है , इसलिए हवा इसे छूकर हमें गंदा न करे , जिससे दलित को दक्षिण दिशा की ओर बसने के लिए मजबूर करो । दलित हिन्दू धर्म के किसी भी त्यौहार में उनके यहां शामिल नही हो सकता । हिन्दू के किसी कार्यक्रम में इसको शामिल होने की इजाजत नही है । मंदिर नही जा सकता , जायेगा तो पीटा जायेगा । उनकी चारपाई पर नही बैठ सकता । उनके बीच में बैठकर खाना नही खा सकता । इतनी बडी अष्पृश्यता । क्या दशा है दलितों की हिन्दू समाज में ? किसी बुद्धिजीवी ने कहा है कि अगर अष्पृश्यता पाप नही है तो दुनिया में कुछ भी पाप नही है । अष्पृश्यता पाप ही नही महापाप है , जिस महापाप को करने में हिन्दुओं को जरा सी भी तकलीफ नही होती है । वे लोग दलितों को अपनी टूटी जूती से अधिक नही समझते हैं । इसलिए दलितों को उन्हें नीच और तुच्छ कहने में जरा सा भी संकोच नही होती है।
बाबा साहेब ने कहा है कि दलितों को जानवर से भी नीचा दर्जा देना , यह साबित करता है कि दलित और चाहे कुछ भी हो सकता है , लेकिन हिन्दू नही हो सकता ।
जय भीम
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