Tuesday 14 February 2017

क्लिनिकल स्टैब्लिशमेंट एक्ट, 2010

साथियों आज " क्लिनिकल स्टैब्लिशमेंट एक्ट, 2010 " का दुष्परिणाम पार्ट 2 आप लोगों के सामनें प्रस्तुत किया जा रहा है।


मूलनिवासी समाज के डॉक्टरों को अपना क्लिनिक खोलनें के अधिकारों से वंचित कर देगा " क्लिनिकल स्टैब्लिशमेंट एक्ट, 2010 "
साथियों यह बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है। इसको हमें बहुत ही गहराई से समझना होगा। " क्लिनिकल स्टैब्लिशमेंट एक्ट, 2010 " का कानून एससी, एसटी, ओबीसी, एवं धर्मपरिवर्तित अल्पसंख्यक समाज के डॉक्टरों को हॉस्पिटल खोलनें से वंचित करनें और गरीबों को सस्ती चिकित्सकीय सुविधाओं से वंचित करनें का ब्राह्मणी षडयंत्र है। आइये जानते हैं कैसे ?
सम्मानित साथियों भारतीय संविधान भारत देश के मूलनिवासी समाज को शिक्षा और स्वास्थ्य का अधिकार देता है। चूँकि भारतीय संविधान , मनुस्मृति का एंटीडोट है, जिसनें मनुवादी व्यवस्था का अंत करके भारत देश में समतामूलक समाज का जन्म दिया , तभी से ब्राह्मणवादी / मनुवादी ताकतें भारतीय संविधान के विरोध में काम कर रही हैं।
साथियों हमारे देश की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित व्यवस्था है। जैसा कि हम जानते हैं कि भारत में 75 प्रतिशत जनता गाँवों में निवास करती है और कृषि के आधार पर अपना जीवन निर्वहन करती है। इसी प्रकार अमेरिका एवं यूरोप की अर्थव्यवस्था वहाँ के उद्योगों एवं कल - कारखानों पर निर्भर करती है। अमेरिका के नेतृत्व में " विश्व बैंक " की स्थापना हुई। " अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष " का निर्माण हुआ। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष की स्थापना की वजह से सात विकसित देशों नें आपस में मिलकर एक ड्राफ्ट तैयार किया और कहा कि जो विकासशील देश हैं, अगर वो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में पैसा निवेश करते हैं तो उनको आर्थिक लाभ दिया जायेगा। इस तरह का लालच उन्होंने गरीब और विकासशील देशों को दिया।
जब इन्होंने भारत देश में लिब्राइजेशन, प्राइवेटाइजेशन, और ग्लोबलाइजेशन के माध्यम से आना शुरू किया तो हमारे नेताओं और अर्थशास्त्रियों के सामनें शर्त रक्खी।
पहली शर्त यह रक्खी की हम आपके देश में तभी प्रोग्राम चला पायेंगे या उद्योग लगा पायेंगे, जब आप अपनें देश की मुद्रा का अवमूल्यन करेंगे।
दूसरी शर्त यह रक्खी की आपके देश में आयात करनें पर जो प्रतिबन्ध लगे हुये हैं, उनको समाप्त करिये और जो टैक्स लगे हुए हैं, उनको कम करिये या पूरी तरह समाप्त करिये।
तीसरी शर्त यह रक्खी की जो आपके देश में सरकारी कम्पनियां या कल- कारखानें हैं, उनका निजीकरण करिये। साथियों इसी शर्त के आधार पर भारत के शासक वर्ग नें सरकारी कम्पनियों एवं कल- कारखानों का निजीकरण करना शुरू कर दिया। शासक वर्ग ब्राह्मणों नें सरकारी कम्पनियों को कौड़ी के भाव बेचना शुरू कर दिया और सवर्ण बनियाँ यानी पूजीपतियों नें उसे खरीदना शुरू कर दिया। सबसे महत्वपूर्ण एवं गम्भीर बात यह है कि पूर्व के रिक्त सरकारी पदों को भरना बन्द कर दिया और नई वैकेंसियों को निकालना बन्द कर दिया। जिसकी वजह से आज बेरोजगारों की संख्या बहुत तेजी के साथ बढ़ी है। इसी मजबूरी का फायदा उठा कर प्राइवेट कम्पनियां बहुजन / मूलनिवासी समाज का शोषण कर रही हैं।
सबसे भयंकर षडयंत्र उन्होंने यह किया कि शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत जरूरतों का निजीकरण करना शुरू कर दिया है। जिसकी वजह से शिक्षा और स्वास्थ्य की फीस महँगी हो गयी और जब शिक्षा और स्वास्थ्य की फीस महँगी हो जायेगी तो हमारे 85 प्रतिशत गरीब मूलनिवासी इस सुविधा से वंचित हो जायेंगे।
साथियों यह " क्लीनिकल स्टैब्लिशमेंट एक्ट, 2010 " विदेशियों के द्वारा प्रायोजित है, जिसको सरकार लागू करनें का काम कर रही है। साथियों यदि कोई डॉक्टर अपनीं पैथोलॉजी, क्लिनिक, या हॉस्पिटल खोलना चाहता है, तो उसको अनिवार्य रूप से लाइसेंस कराना होगा। अगर लाइसेंस नहीं करवाता है तो उसको 50000 हजार रुपया से लेकर 5 लाख रुपया तक जुर्माना देना होगा। इसीलिए इस एक्ट के माध्यम से विदेशी कम्पनियां भारत में आनें वाली हैं और अपना अस्पताल खोलनें वाली हैं , जो यहाँ के मूलनिवासी समाज के डॉक्टरों को बेरोजगार कर देंगी। इसका फायदा उठाकर विदेशी कम्पनियाँ मूलनिवासी समाज के डॉक्टरों को बंधुवा मजदूर की तरह रख कर शोषण करेंगी । साथियों ऐसी दुर्दशा मूलनिवासी समाज के मेडिकल प्रोफेशनल्स की होनें वाली है।
जब ऐसी दुर्दशा मूलनिवासी समाज के मेडिकल प्रोफेशनल्स वालों की होनें वाली है, तो आइये विचार करते हैं कि ऐसी स्थिति में मूलनिवासी समाज की जनता का क्या हश्र होनें वाला है।
साथियों विदेशी कम्पनियां अपनें यहाँ इलाज बहुत महँगा कर देंगी। भारत की सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि भारत की 83 करोड़ जनता भुखमरी की शिकार है, जिसमें से लगभग सभी मूलनिवासी समाज के लोग ही हैं। इसका मतलब 83 करोड़ लोग बगैर खाये मर रहे हैं। जब 83 करोड़ लोग बिना खाये मर रहे हैं, तो वह मंहगी स्वास्थ्य सुविधा का लाभ कैसे ले सकते हैं।
इस तरह से मूलनिवासी लोग स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ ना ले पायें और 83 करोड़ मूलनिवासी समाज मरते रहें, इसलिए यह " क्लिनिकल स्टैब्लिशमेंट एक्ट, 2010 " लाया गया है।
साथियों निजीकरण के तहत विदेशी अस्पतालें भारत में आ रही हैं। उनकी संरचना किस तरह की होगी ? उनका नियम कानून किस तरह का होगा ? इन सारी बातों को सरकार हमारे लोगों के सामनें उजागर नहीं कर रही है। सरकार ऐसा इसलिए नहीं कर रही है, अगर भारत के मूलनिवासी समाज को उनकी साजिश का पता चल जायेगा, तो भारत के 85 प्रतिशत मूलनिवासी समाज के लोग विद्रोह कर देंगे और हम लोग निजीकरण के सिद्धांत को लागू नहीं कर पाएंगे।
सम्मानित साथियों इसीलिए " क्लिनिकल स्टैब्लिशमेंट एक्ट, 2010 " के दुष्परिणाम की जानकारी इम्पा के माध्यम से मूलनिवासी समाज का बौद्धिक संगठन बामसेफ कर रहा है। अतः आप सभी मूलनिवासी मेडिकल प्रोफेशनल्स लोगों से अपील है कि अधिक से अधिक संख्या में इम्पा संगठन से जुड़कर मूलनिवासी समाज हित में अपना -
 अपना योगदान देंने की कृपा करें।। 
बोल 85 जय मूलनिवासी।
 ब्राह्मण विदेशी।  
डॉ. श्रीकांत ( कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष इम्पा, उत्तर प्रदेश ) ।   

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