Sunday 26 February 2017

हिन्दू धर्म में जाति ही अटल सत्य है

हिन्दू धर्म में जाति ही अटल सत्य है।जो जिस जाति का होता है,वह चाहे जितना सम्पन्न हो जाए पर अपनी जातीय विपन्नता और सम्पन्नता को त्याग नही सकता है।ब्राह्मण चाहे जितना दरिद्र हो,भिखमंगा हो पर वह भीख देने वाले को प्रणाम नही करता है।भीख मांगने वाले ब्राह्मण को "पाय लागी पंडित जी" कहके सम्बोधित किया जाता है तथा वह खुद तो विपन्न होता है,भीख से भोजन चलता है पर आशीर्वाद का अधिकार उसे ही होता है।क्षत्रिय चाहे जितना गरीब हो पर "बाबू साहब" वही कहा जायेगा जबकि चमार या अहीर चाहे जितना अमीर हो लेकिन उसे "बाबू साहब" या "पंडित जी" नही कहा जाएगा।  शहरों में मजदूरों की बाजार लगती है।गरीब लोग रिक्शा,ठेला चलाते हैं।क्या आपने किसी गरीब ब्राह्मण,क्षत्रिय को गारा-माटी करते,ईंट पाथते या रिक्शा/ठेला चलाते देखा है?
   आपको नही पता है कि आर्थिक गरीबी से आदमी भूखा रह सकता है लेकिन जातिगत गरीबी से आदमी भरपेट भोजन करने के बावजूद अपमान की ज्वाला में तिल-तिल के जलता,भुनता रहता है।पेट की भूख तो भीख मांगके भी मिट जाती है पर सम्मान की भीख जातिगत दरिद्रता के कारण जीवन पर्यंत बदस्तूर बनी रहती है।
       सोने की पलंग हो,चांदी की थाली हो और मशरूम/पुलाव हो लेकिन समाज चमरा, अहिरा कहता हो तो वह सोने की पलंग,चांदी की प्लेट और भुना काजू जहर सरीखा लगेगा।समाज में जातियां बड़ी और छोटी हैं न कि धनवान और गरीब लोग।
        जातियों के गणित में जो धनी है वह श्रेष्ठ है और जो निम्न वह दलित/दमित/उपेक्षित और निचली पायदान का।कैसी विडम्बना है इस जातीय इंतजाम में कि एक तरफ कृष्ण को भगवान और राजा बताया /जताया जाता है जबकि दूसरी तरफ दरिद्र ब्राह्मण सुदामा का पैर कृष्ण से धुलवाया जाता है और ब्राह्मण होने के नाते सिंहासन पर बिठाया जाता है।अर्पणा जी !जाति कितनी बलिष्ठ है कि पौराणिक अहीर कृष्ण राजा और भगवान हैं फिर भी भिखमंगे सुदामा के समक्ष नतमस्तक कराये जाते हैं,पैर धुलते हैं,उसके पैर के गंदे जल को चरणामृत के रूप में लेते है और सिंहासन छोड़ के हट जाते हैं।अब कोई सामान्य बुद्धि का आदमी समझ और सोच सकता है कि जब इतने सम्पन्न,राजा,कथित भगवान कृष्ण की हैसियत जाति के नाते सुदामा जैसे विपन्न के सामने इतनी तुच्छ हो जाती है तो हजार वर्ष बाद पहली-दूसरी पीढ़ी में आरक्षण के नाते कुछ पाए दलित/पिछड़ों की स्थिति आज क्या होगी?
        आरक्षण से बड़ी परेशानी है लेकिन किनको,जिन्होंने आरक्षण के नाते ही श्रेष्ठता हासिल कर रखी है।आखिर हमारे खानदान में हम दूसरी पीढ़ी के पढ़े लिखे क्यों हैं?क्यों हमे पढ़ने से रोका गया?स्वभाविक है कि जब हमें पढ़ने नही दिया जाएगा तो हम बुद्धिमान नही होंगे,रोजगार,नौकरी नही पाएंगे और फिर अर्थ नही होगा और जब अर्थ नही होगा तो हमारे जीवन का भी कोई अर्थ नही होगा।गावँ में जाइये तो एक वर्ग पीढ़ी दर पीढ़ी पढ़ा मिलेगा तो वहीं एक बहुत बड़ा वर्ग अनपढ़ मिलेगा।जो पढ़ा-लिखा होगा, उसका घर पक्का,खेती सर्वाधिक,कई पीढ़ियों से नौकरी वाले होंगे जबकि दूसरे वर्ग के लोग जो अनपढ़ हैं वे मजदूर,किसान और श्रम करने वाले होंगे।यहां यह समझना जरूरी होगा कि यह जो प्राचीन सामाजिक संरचना है वह क्या बिना आरक्षण के है?मैं दावे के साथ कहूंगा कि यह जो प्राचीन सामाजिक संरचना है वह आरक्षण की ही बदौलत है।इस आरक्षण में मनु ने कहा कि ब्राह्मण का बेटा ब्राह्मण,अहीर का बेटा अहीर होगा,ब्राह्मण पढ़ेगा,अहीर भैंस चराएगा,ब्राह्मण बिना श्रम किये मुफ्त में सब कुछ दान में लेगा जबकि अहीर सहित 7 हजार जातियां श्रम करेंगी और श्रम से उपजाये सामान को मुफ्त में ब्राह्मण को दान देंगी।ब्राह्मण पढ़ेगा,पढ़ायेगा,क्षत्रिय राज करेगा,युद्ध करेगा,वैश्य(मारवाड़ी) ब्यापार करेगा जबकि सभी 7 हजार छूत/अछूत शूद्र कठिन श्रम कर उत्पादन करेगा और केवल पेट भर खायेगा,कुछ भी स्टोर नही करेगा,बढ़िया नही पहनेगा, अच्छे घर में नही रहेगा,दासत्व उसका कर्तव्य होगा।क्या यह मनुवादी आरक्षण नही है?
      हिन्दू राजाओं के पतन तथा अंग्रेजी हुकूमत के आगमन के बाद इस देश की शोषित-पीड़ित 85% आबादी स्कूलों का दर्शन कर सकी।पढ़ने जाने का अधिकार न्यून मात्रा में मिल सका, वह भी इस नाते कि अंग्रेजो को अपनी सरकार चलाने के लिए यहां के बाबू और चपरासी चाहिए थे।आजादी के बाद एक बार फिर ब्राह्मणवाद सर उठाया।नेहरू ने 3 प्रतिशत ब्राह्मण आबादी को देश की नौकरियों में 70 प्रतिशत भर डाला।आखिर ये ब्राह्मण वर्ग के लोग आजादी के पूर्व क्यों 1 प्रतिशत भी नही थे जबकि कायस्थ और मुसलमान लगभग 70 प्रतिशत थे जो अब 5 प्रतिशत से भी नीचे आ चुके हैं।आखिर इसमें कोई आरक्षण काम नही किया है?क्या यह ब्राह्मण होने का आरक्षण नही है?आखिर आजादी के बाद एक जाति विशेष एकाएक इतनी काबिल कैसे हो गयी?
       भारतीय संविधान में 16(4),340,341,342 आदि में स्पष्ट है कि सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों,अछूत,जंगली,खानाबदोश एवं आदिवासी आदि को विशेष अवसर दिया जाय।इसके आकलन हेतु आधार जाति नही थी बल्कि आधार सोशली एवं एजुकेशनली बैकवर्डनेस था।अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग या पिछड़ा वर्ग आयोग पूरे देश में भ्रमण कर देखा कि कौन सी कैटेगरी (जाति) 5 प्रतिशत से कम पढ़ी-लिखी तथा 5 प्रतिशत से कम सरकारी नौकरी वाली है तथा किन लोगों को जाति के बड़े-छोटे होने के नाते सम्मानित और अपमानित किया जाता है।आरक्षण का आधार जाति समझने वाले जातिवादी लोगो को यथार्थ मालूम है लेकिन वे कथित तौर पर प्रगतिशीलता का चोला ओढ़कर समाज को गुमराह करते हैं।वे यह नही बताते कि आरक्षण का अधिकार जाति के नही बल्कि सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के नाते प्राप्त है।अब यदि हिन्दू समाज ने और हिन्दू समाज की परछाईं धारण करने वाले दूसरे धर्मो ने भी जातियों को ही सामाजिक व शैक्षणिक तौर पर पिछड़ा बना रखा है तो फिर इसके आकलन का आधार जाति हो ही जायेगी।आरक्षण कोई रोटी देने का उपक्रम नही है बल्कि यह सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ापन दूर करने का एक सूक्ष्म प्रयास है जो तब तक लागू रहना चाहिए व रहेगा जब तक जातीय श्रेष्ठता और निम्नता का भाव खत्म नही हो जाएगा।
       अभी तो अन्याय वैसे ही जारी है अर्पणा जी!देश के संविधान में कहीं भी आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रविधान नही है लेकिन पिछड़े वर्गों के आरक्षण में क्रीमी लेयर की व्यवस्था कर पिछडो के आरक्षण का आधार आर्थिक कर ही दिया गया है जो सरासर अन्याय एवं संविधान की मूल भावना के विपरीत है।
      आप जिस दल में हैं उस दल की मूल आत्मा ही सोशल जस्टिस है।सोशल जस्टिस का मतलब ही आरक्षण या विशेष अवसर है।सोशलिस्टों ने अरसा पहले नारा लगाया था कि "सोशलिस्टों ने बांधी गांठ,पिछड़े पावें सौ में साठ",जिस दल की मूल भावना और  मूल आत्मा आरक्षण हो,उस दल के विधायक पद की उम्मीदवार तथा जिस नेताजी मुलायम सिंह यादव जी ने यूपी में आरक्षण लागू किया उनकी बहु आरक्षण के आधार को आर्थिक बनाने की बात करे तो यह अत्यंत ही दुखद कहा जायेगा।
        अर्पणा जी!आप जिस आरक्षण की बदौलत आज अर्पणा यादव हैं,उस पर गौर की हैं?यदि आपके नाम के साथ मुलायम सिंह यादव जी के नाम का आरक्षण न होता तो आप जैसी काबिल महिलाएं कितनी पार्टियों के दफ्तर में चप्पल घिसते-घिसते टूट सी गयी मिल जाएंगी।
        अर्पणा जी!आरक्षण सामाजिक न्याय का एक सोपान है,यह धनोपार्जन का साधन नही है।हम समझ सकते हैं कि आप पर क्षत्रियत्व का खुमार अभी बरकरार है जिसे समाजवादी धारा में रहने के लिए त्यागना होगा।यहां पूर्व में समाजवाद की कमरी ओढ़ने वाले ब्राह्मण/क्षत्रिय जनेऊ तोड़कर पिछड़े पावें सौ में साठ का नारा लगाते रहे हैं इसलिए यदि समाजवाद पसन्द है तो सामाजिक न्याय की अवधारणा को स्वीकारना होगा वरना तो आपके आरक्षण विरोधी विचारधारा वाले तमाम दल हैं ही।
       अर्पणा जी! हमलोग पुष्यमित्रशुंग पालने के आदी लोग हैं।हम सब अतीत से सबक भी नही लेते हैं।भले ही पुष्यमित्रशुंग हमे मार डाले,हमारी सत्ता छीन ले,लेकिन हम पिछड़े लोग इन शुंग खानदान के लोगों पर आँख मूंदकर विश्वास कर लेते हैं और ये शुंग खानदान वाले हमारे भोलेपन का लाभ उठा लेते हैं।आप भी लाभ उठाइये अर्पणा जी!हम तो बलिदान देने के लिए तैयार हैं ही।
       अर्पणा जी! आप स्ट्रेट फारवर्ड बनती हैं आरक्षण का विरोध करके,बात आपकी सही है,आप स्ट्रेट फारवर्ड तो हैं ही,यदि नही होती तो मुलायम सिंह यादव जी की पतोहू थोड़े न बनतीं?आपके स्ट्रेट फारवर्ड होने में आपका फारवर्ड होना प्रमुख कारक है।निश्च्य ही हम पिछड़े वर्ग के हैं तो पिछड़ा पन रहेगा ही और आप फारवर्ड हैं तो फारवर्ड नेस और स्ट्रेट फारवर्ड की खूबी रहेगी ही।अर्पणा जी! आरक्षण खत्म करने के हम भी हिमायती हैं लेकिन कब,जब जाति खत्म हो जाय।जाति कैसे खत्म होगी जब इस देश के आरक्षण खत्म करने के हिमायती नेता एक लाइन का कानून बना दें कि कोई व्यक्ति अपनी जाति में शादी नही करेगा और जो अपनी जाति में ही शादी करेगा वह अपने पैतृक संपत्ति से बेदखल माना जायेगा या मंदिरों का पुजारी चमार बना दो,शादी का कार्य मेहतर से कराने लगो।अर्पणा जी! गाल भी फुलाएं और ठठ्ठा भी लगाएं,दोनों कैसे चलेगा?आरक्षण का जातीय आधार भी न हो और जातीय श्रेष्ठता/निम्नता बनी रहे,यह दोनों नही चलेगा।
      अर्पणा जी! अपनी ब्यथा का उद्गार करते हुए इस देश की 85 प्रतिशत आबादी की पीड़ा को रामगोपाल भारतीय जी के शब्दों में व्यक्त करते हुए यही कहूंगा कि-
        "हजारो  साल  से  बैठे हैं  दूर  सूरज  से,
                      हमे भी धूप को हक़ है हुजूर सूरज से।
        ये कैसी रात है जिसकी सुबह नही होती।
                      जबाब चाहिए हमको जरूर सूरज से।।"
      अर्पणा जी! समाजवाद पढ़िए,लोहिया,अम्बेडकर और मुलायम सिंह यादव जी को पढ़िए,दिमाग साफ हो जायेगा।
       जय मण्डल!जय आरक्षण!जय संविधान!
       जय लोहिया!जय अम्बेडकर!जय सामाजिक न्याय!
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कुछ मनुवादी विचारधारा वाले व्यक्ति को तो यह पढ़कर करवा लगेगा लेकिन हंड्रेड परसेंट सच्चाई है

ज्यादातर हिन्दू धर्म शास्त्रों ने  SC  समाज के लोगों को सिर्फ जूते बनाने और साफ़ सफाई के कामों के लायक ही समझा था ।
लेकिन भारत के महान संविधान ने  उसी SC समाज को IAS से चपरासी तक पंचायत से लेकर मंत्री मुख्य मंत्री तक एक महिला (अर्थात कुमारी मायावती जी) को चार बार भारत के सबसे बड़े राज्य (अर्थात उत्तर प्रदेश) की मुख्यमंत्री बना दिया है ।

यह सब संविधान के कारण हुआ है ना कि भारतीय ग्रंथ कारण ब्रह्मा विष्णु महेश के कारण

यही है भारत के संविधान की असली ताकत, जिससे आरएसएस और बीजेपी के कटटर नेता घबरा रहे हैं ।
वास्तव में  हिन्दू धर्म के सभी धर्म शास्त्रो से ज्यादा महान है, भारत का संविधान ।

मंदिरों में घुसना बंद करों तुम,
घुस जाओ विद्यालयों में
घुस जाओ तुम पुस्तकालयों में
मंदिरों के चक्कर छोड़ो
मत भटकों तुम अधियारों में!!
कुछ न मिला है न मिलेगा तुम्हें
इन मंदिर और शिवालयों में !
पूजा पाठ बंद करो तुम
बक्त बर्बाद मत करो इन मंदिर और देवालयों में!!
शिक्षित बनो और सबको शिक्षित करो
ब्राह्मण का राज उनके ज्ञान पर नहीं तुम्हारे अज्ञान पर टिका है।
ब्राह्मण तुमसे पेड़ पुजवा सकता है,
पत्थर पुजवा सकता है, धरती, आकाश, जल, अग्नि, वायु, देहरी (चौखट), तस्वीर, लोहा, ईंट, पशु, पक्षी या जो कुछ भी उसे दिखाई दिया।
यहाँ तक की लिंग, योनि तक को उसने तुमसे खुले आम पुजवा दिया।
और ये सब एक अनपढ़ ब्राह्मण ने आपके पढ़े लिखे IAS, IPS, वक़ील, मजिस्ट्रेट, इंजीनियर, डॉक्टर से करवाया है।
फिर भी आप कैसे कहते हैं के आप ब्राह्मण के ग़ुलाम नही हैं??

जागो और जगाओ अंधविश्वास पाखंड वाद भगाओ समाज को शिक्षित करो संगठित करो जागरुक करो
माफ करें अगर किसी को बुरा लगे तो

🙏🏼जय भीम जय भारत जय संविधान🙏🏼

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