Monday 27 February 2017

बामसेफ नामक संगठन




बामसेफ नामक संगठन का निर्माण 6 दिसम्बर 1978 को किया गया था,  जिसके संस्थापक सदस्यों में तीन महापुरुषों का नाम आता है - मान्यवर कांशीराम साहब, मान्यवर दीनाभाना साहब, मान्यवर डीके खापर्णे साहब।
बामसेफ संगठन के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष मान्यवर कांशीराम साहब बनाये गए थे !

🌷 BAMCEF से अभिप्राय : B से बैकवर्ड, A से एंड, M से माइनरटीज, C से कम्युनिटी, E से इम्प्लाइज, F से फेडरेशन !
बैकवर्ड का मतलब होता है सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक, और राजनीतिक रूप से पिछड़ा होना तो बैकवर्ड शब्द में ही ओबीसी, एससी, एसटी तीनों की गणना की जाती है !

माइनरटीज में मुस्लिम, सिक्ख, बौद्ध, क्रिश्चियन, लिँगायत आदि धर्मपरिवर्तित अल्प संख्यक जातियों को लिया गया है।

बामसेफ ओबीसी, एससी, एसटी एवं धर्मपरिवर्तित अल्पसंख्यक समाज से आनें वाले सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों का संगठन है।


🌷 बामसेफ संगठन की खासियत यह है कि यह अधिकारियों एवं कर्मचारियों का संगठन होते हुए भी इनके व्यक्तिगत लाभ के लिए काम न करके उस समाज के हक - अधिकार की लड़ाई लड़ रहा है, जिस समाज से ये अधिकारी एवं कर्मचारी लोग आते हैं।
बामसेफ अधिकारियों एवम कर्मचारियों का संगठन होने के कारण गैरराजनैतिक, असंघर्षशील तथा सभी धर्मों के लोग जुड़े होने के कारण गैर धार्मिक संगठन है !

🌷 साथियों जब बामसेफ का गठन किया गया था, उस समय यह तय हुआ था कि 20 वर्षों तक बिना किसी राजनीतिक पार्टी का गठन किये हुए हम लोग केवल मूलनिवासी समाज को जगाने का कार्य करेंगे !

लेकिन बिना संघर्ष किये हुए अधिकार मिल नहीं सकते
इसलिए 3 वर्ष बाद डीएस 4 नामक लड़ने वाले संगठन का निर्माण किया गया !
डीएस 4 का ही नारा था "ठाकुर, बाभन, बनियाँ छोड़ बाकी सब हैं डीएस 4 था"

🌷 इसके गठन के तीन साल बाद ही मान्यवर कांशीराम साहब नें 1984 में बसपा नामक राजनीतिक पार्टी का गठन किया। चूँकि मूलनिवासी समाज उस समय पूर्ण रूप से जागृत नहीं हो पाया था। इसलिए बसपा नें अविकसित बच्चे की तरह जन्म लीया !
जब बसपा नामक पार्टी बनीं तो मान्यवर कांशीराम साहब इसके पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए। जब मान्यवर कांशीराम साहब बसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनें तो उन्होंने बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिए।

🌷 साथियों ऐसी घटना घटित होनें के कारण जब हमारी बसपा के रूप में राजनैतिक क्रांति शुरू हुई तो बामसेफ रूपी सामाजिक क्रांति कमजोर पड़ गई।
मान्यवर कांशीराम साहब नें बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से त्याग पत्र इस लिए दिया क्योंकि कोई भी राजनीतिक व्यक्ति बामसेफ का राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बन सकता है
तो बामसेफ के दूसरे राष्ट्रीय अध्यक्ष मान्यवर डीके खापर्डे साहब को बनाया गया।
काफी मेहनत करके मान्यवर डीके खापर्डे साहब नें सामाजिक क्रांति को जगाने का कार्य किये।
इसी बीच बामसेफ के तीसरे संस्थापक सदस्य मान्यवर दिनाभाना साहब हमारे बीच नहीं रहे। मान्यवर दिनाभाना साहब की पत्नी सुमन  दादी अब भी बामसेफ में समर्पित होकर व्यवस्था परिवर्तन करनें के अपनें पति के सपनों को साकार करनें में लगी हुई हैं।

🌷 अब वर्तमान में; बामसेफ के तीसरे राष्ट्रीय अध्यक्ष मान्यवर वामन मेश्राम साहब नें अपनें अथक प्रयास द्वारा बामसेफ संगठन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का संगठन बना दिए हैं।
वर्तमान में बामसेफ नें अपनें 55 सहयोगी संगठनों का निर्माण कर बामसेफ की ताकत को कई गुना बढ़ानें का कार्य किया है।


🌷 साथियों मूलनिवासी समाज के प्रत्येक महापुरुषों नें स्वयं द्वारा की गई गलतियों को स्वीकार किया है। ऐसे लोगों नें अपनी गलती इस लिए स्वीकार किये हैं कि हमारी आगे आने वाली पीढ़ी उस गलती को दुबारा न दुहराये।
बाबा साहब जैसे महान व्यक्ति नें भी अपनी गलती स्वीकार की है कि मैनें अपनें समाज के लिए पूरी जिंदगी कुर्बान कर दी लेकिन एक गलती मैनें भी की जो दूसरा अम्बेडकर पैदा नहीं किया। जो हमारे मिशन को आगे ले जानें का कार्य करता।

इसी प्रकार मान्यवर कांशीराम साहब नें भी अपनी गलती को स्वीकार किया है कि मैनें हाँथी (राजनीतिक पार्टी) तो पैदा कर दिया और खुद हाँथी बन बैठा और महावत (बामसेफ) का पद छोड़कर महावत पैदा करना छोड़ दिया। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था मुझे महावत ही बनें रहना चाहिए था। जिससे हाँथी को कण्ट्रोल कर सकता।

🌷 साथियों मान्यवर वामन मेश्राम साहब नें इन महापुरुषों द्वारा महशूस की गलतियों से सबक लेते हुए संकल्प लिया है की मैं स्वयं हाँथी कभी नहीं बनूगां। मैं केवल महावत का ही काम करूँगा और मूलनिवासी समाज में इतना मजबूत नेतृत्व पैदा कर दूँगा कि आने वाले समय मे मूल निवासी समाज अपनी खोयी हुयी सत्ता वापस प्राप्त कर सके !
ताकि आने वाली पीढी के हक अधिकार सुरक्षित रह सके !

🌷 आज मा. वामन मेश्राम साहब आज बामसेफ के 55 सहयोगी के साथ हमारे मूल निवासी समाज की तीसरी आजादी के लिये लड़ रहे है !
कैडर केम्पस मे
प्रशिक्षण एवम ऐतिहासिक जानकारियां देके
जन आंदोलन का निर्माण
किया जा रहा है
तकि अत्याचार
शोषण
गैर बराबरी
तथा असमानताओं
पर आधारित ब्राह्मणवादी व्यवस्था को जड़मूल से उखाड़कर ख़त्म कर सके !

🌷 बामसेफ फूले-अम्बेडकर-शाहू की समता
स्वतंत्रता
न्याय
एवम बंधुता पर आधारित
एक आदर्श समतामूलक समाज
की स्थापना करने को अग्रसर है !


🙏🌷 जय मूलनिवासी                        ब्राह्मण को SC गोद ले, तो उसे भी मिलेगा आरक्षण: HC - Navbharat Timesक्या कोई ऐसा आदमी अनुसूचित जाति का आरक्षण पाने का हकदार है जिसका जन्म तो ब्राह्मण परिवार में हुआ हो लेकिन उसे बाद में अनुसूचित जाति के पैरंट्स ने गोद ले लिया हो? पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाया है कि ऐसे व्यक्ति को आरक्षण का लाभ मिलेगा...navbharattimes.indiatimes.com

3 comments:

  1. मान्यवर कांशीराम साहब की 05 पैसे की कहानी--- मनोहर आटे की ज़ुबानी.

    सन 1972 में हमने पूना में अपना छोटा सा कार्यालय खोला । शायद बहुजन समाज मूमेंट का वो पहला कार्यालय था। मैं उस समय रेलवे में नौकरी करता था । नौकरी के लिए मुझे रोज पूना से मुंबई जाना पड़ता था । साहब जी मेरे साथ मुंबई आना जाना करते थे। उस वक्त रेल के डिब्बे में ही हम योजनायें बनाते थे। साहब जी के पास पूना से मुंबई का रेलवे पास था। हम अपनी साईकलों पर पूना स्टेशन जाते थे और फिर मुंबई से आकर साईकल से कार्यलय पहुचते थे। हम स्टेशन के पास वंदना होटल पे खाना खाते थे। आज भी मैं उस दिन को याद करता हुं, जब मैं और साहब मुंबई से पूना आये और साईकल उठाकर चल पड़े । वंदना होटल आ गया । उस दिन मेरे पास तो पैसे नही थे इसीलिए मैंने सोचा साहब जी खाना खिला देंगे मगर साहब भी नही बोले। मैंने सोचा की आज साहब का दूसरे होटल में खाना खाने का मूड है ।वो होटल भी आ गया हम दोनों ने इक दुसरे की तरफ देखा और आगे चल पड़े क्योंकि पैसे किसी के पास नही थे ।
    हम दोनों रात को पानी पीकर सो गये ।

    अगले दिन मेरी छुट्टी थी मगर साहब को मीटिंग के लिए जाना था |साहब सुबह उठे और नहा धो कर अटेची उठाकर निकलने लगे । थोड़ी देर बाद वापिस आये और बोले यार मनोहर कुछ पैसे है क्या तुम्हारे पास.. ? मैंने कहा नही है साहब । तो साहब ने कहा देख कुछ तो होंगे ? मैंने कहा कुछ भी नही है साहब।" यार 05 पैसे तो होंगे " मैंने भी बैग में ढूंडा मगर नही मिले । मैंने पूछा क्या काम था साहब ? यार साईकल पंक्चर हो गयी है और ट्रेन का भी समय हो गया है ।मैंने कहा तो क्या हुआ साहब आप मेरी साईकल ले जाओ ...!साहब ने कहा अरे भाई तेरे वाली भी खराब है ।
    05 पैसे ना होने के कारण साहब पैदल ही दौड़ गये।

    और पहली बार जब मैंने कांशीराम साहब को हेलिकोप्टर से उतरते देखा तो आखो से आसूं निकल गये और मेरे मुह से निकला "वाह साहबजी वाह...!"

    लेख-अनामिक

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  2. संघर्ष किए बिना कुछ हासिल नहीं होता! दूसरों के लिए जिए बगैर अपना जीवन सफल नहीं होता..!! साहबजी वाह !!

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  3. Hi mi aahe àmol sadashiv mahalle patil

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