Sunday, 26 February 2017

प्रतिबंध पर छिड़े विवाद

 आंबेडकर पेरियार स्टडी सर्किल (एपीएससी) पर लगाए गए प्रतिबंध
 पर छिड़े विवाद के बीच में 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर ने प्रतिबंध का विरोध करने वालों को कम्युनिस्ट बताते हुए एक लंबा लेकिन भ्रमित संपादकीय अनमास्किंग स्यूडो आंबेडकराइट्स लिखा। इस प्रतिबंध ने देश और देश के बाहर विरोध को जन्म दिया था। संपादकीय ने विरोध करने वालों पर आंबेडकर को नहीं जानने का इल्जाम लगाया और कहा कि आंबेडकर हिंदूपरस्त थे और कम्युनिस्टों के खिलाफ थे।
बेशक इसने एपीएससी पर प्रतिबंध को जायज ठहराया। दिलचस्प बात यह थी कि अपने मूल मुद्दे पर जोर डालने के लिए संपादकीय एनाइहिलेशन ऑफ कास्ट के एक उद्धरण से शुरू होता है, जिसे आखिरकार आंबेडकर डॉट ओआरजी पर मेरे द्वारा पेश किए गए डिजिटल संस्करण से बड़े आलस के साथ उठाया गया था (न कि मूल पाठ से),और उसे मोटे अक्षरों में छापा गया—’ब्राह्मणवाद वह जहर है जो हिंदू धर्म को बर्बाद कर देगा।
अगर आप ब्राह्मणवाद को खत्म करते हैं तभी आप हिंदू धर्म को बचाने में कामयाब हो पाएंगे।’ अगर किसी भी तरह से एक झूठ को दोहराते रहने की गोएबलीय मंशा को परे भी कर दें, तो किसी को भी इस पर हैरानी होगी कि एक ऐसे उद्धरण का इस्तेमाल ही क्यों किया गया, जिसमें हिंदू धर्म के लिए तारीफ या हमदर्दी की झलक तक नहीं है। 1936 में सुधारवादी हिंदुओं से मुखातिब आंबेडकर ने यह समझाने की कोशिश की थी कि हिंदू धर्म को कौन सी बीमारी खाए जा रही है और कहा था कि ब्राह्मणवाद ही वह बीमारी है।
सवाल यह उठता है कि क्या ब्राह्मणवाद को हिंदू धर्म से अलगाया जा सकता है? असल में, वे एक ही चीज के दो अलग-अलग नाम हैं, जैसा कि खुद आंबेडकर ने ही एक दूसरी जगह साफ भी किया है। ऐतिहासिक तौर पर देखें तो हिंदू धर्म जैसी कोई चीज नहीं है; यह सिंधु नदी की दूसरी ओर मौजूद धर्म यानी ब्राह्मणव� 

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