Sunday 26 February 2017

संत गाडसे महाराज

स्वच्छता के पुजारी संत गाडसे महाराज की जन्म दिन पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं

संत गाडगे का दससूत्री संदेश

👉🏽1. भूखे को अन्न दो. स्वच्छता को अपनी आदत बनाओ.

👉🏽2. प्यासे को पानी पिलाओ.

👉🏽3. वस्त्रहीन को कपड़े पहनाओ.

👉🏽4. दीनों को शिक्षा में मदद करो.

👉🏽5. बेघरों को आसरा दो.

👉🏽6. अंध, पंगू, रोगी को दवा दो.

👉🏽7. दुखी व निराश लोगों को हिम्मत दो.

👉🏽8. बेकारों को रोजगार दो.

👉🏽9. पशु-पक्षी समेत सभी जीवों पर दया करो.

👉🏽10. गरीब युवक-युवती की शादी में सहायता करो.


👉🏽स्वच्छता के पुजारी थे

जब वे किसी गांव में प्रवेश करते थे तो वे तुरंत ही गटर और रास्तों को साफ़ करने लगते और काम खत्म होने के बाद वे खुद लोगों को गांव के साफ़ होने की बधाई भी देते थे. इससे लोग उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाते थे. साथ ही लज्जित भी होते थे. गांव के लोग जब उन्हें पैसे देते थे तो वे उन पैसों का उपयोग सामाजिक विकास करने में लगा देते थे. स्वच्छता उनका मुख्य मिशन थी. वे हमेशा अपने आस-पास सफाई में जुटे रहते थे और लोगों को भी सफाई का महत्व समझाते रहते थे. वे कहते थे कि अगर आप सफाई में रहेंगे, अपने बच्चों को, अपने को स्वच्छ रखेंगे तो बीमार नहीं पड़ेंगे. बीमार नहीं पड़ेंगे तो आपकी आमदनी बढ़ेगी. इससे आपका जीवन स्तर सुधरेगा. आप अपने बच्चों की शिक्षा पर पैसे खर्च कर सकेंगे.


👉🏽कभी कोई मंदिर नहीं बनाया

संत गाडगे महाराष्ट्र सहित समग्र भारत में सामाजिक समरता, राष्ट्रीय एकता, जन जागरण एवं सामाजिक क्रांति के अथक पथिक रहे. उन्होंने कभी कहीं किसी मंदिर का निर्माण नहीं कराया, अपितु दीनहीन, उपेक्षित एवं साधनहीन मानवता के लिए स्कूल, धर्मशाला, गोशाला, छात्रावास, अस्पताल, परिश्रमालय, वृद्धाश्रम आदि का निर्माण कराया. उन्होंने अपने हाथ में कभी किसी से दान का पैसा नहीं लिया. दानदाता से कहते थे दान देना है तो अमुक स्थान पर संस्था में दे आओ. उन्होंने अपने जीवनकाल में लगभग 60 संस्थाओं की स्थापना की. उनके बाद उनके अनुयायियों ने लगभग 42 संस्थाओं का निर्माण कराया. अपने सारे जीवन में उन्होंने अपने लिए एक कुटिया तक नहीं बनवाई.


👉🏽शिक्षा बड़ी चीज

संत गाडगे कहते थे कि शिक्षा बडी चीज है. पैसे की तंगी हो तो खाने के बर्तन बेच दो, महिलाओं के लिए कम दाम के कपड़े खरीदो, टूटे-फूटे मकान में रहो, लेकिन अपने बच्चों को शिक्षा दिए बिना न रहो. शिक्षा से ही जीवन का अंधकार दूर हो सकता है.


👉🏽मेरा स्मारक नहीं बनाना

संत गाडगे अपने अनुयायियों से सदैव यही कहते थे कि मेरी जहां मृत्यु हो जाय, वहीं पर मेरा अंतिम संस्कार कर देना. मेरी मूर्ति, मेरी समाधि, मेरा स्मारक या मंदिर नहीं बनाना. मैंने जो सेवा की है, वही मेरा सच्चा स्मारक है. जब बाबा की तबीयत बिगड़ी, तो चिकित्सकों ने उन्हें अमरावती ले जाने की सलाह दी, किन्तु वहां पहुचने से पहले बलगाव के पास पिढ़ी नदी के पुल पर 20 दिसंबर 1956 को रात्रि 12 बजकर 20 मिनट पर उनका परिनिर्वाण हो गया. जहां बाबा का अंतिम संस्कार किया गया आज वह स्थान गाडगे नगर के नाम से जाना जाता है. मानवता के पुजारी दीनहीनों के सहायक संत गाडगे बाबा में उन सभी सन्तेचित महान गुणों एवं विशेषताओं का समावेश था जो एक मानवसेवी राष्ट्रीय सन्त की कसौटी के लिये अनिवार्य है.


👉🏽सामाजिक शिक्षक थे

गाडगे बाबा एक समाज सुधारक और घुमक्कड़ भिक्षुक थे. उन्होंने उस समय भारतीय ग्रामीण भागों में काफी सुधार किया. वे एक घूमते-फिरते सामाजिक शिक्षक भी थे. वे पैरो में फटी हुई चप्पल और सिर पर मिट्टी का कटोरा ढककर पैदल ही यात्रा किया करते थे. यही उनकी पहचान थी.


👉🏽अंधविश्वास पाखंड के विरोधी रहे

बाबा गाडगे गांवों की सफाई करने के बाद शाम को भजन-कीर्तन का आयोजन करते थे. लोगों को अन्धविश्वास के प्रति जागरूक किया करते थे. उन्होंने लोगों को समझाया कि अंधविश्वास एक सामाजिक कुरीति है. वे अपने कीर्तनों में संत कबीर के दोहों का भी उपयोग करते थे. अपने कीर्तनों के माध्यम से जन-जन तक मानव हित और समाज कल्याण का प्रसार करते थे.


👉🏽पशुओं पर हिंसा के विरोधी रहे

वे लोगों को पशुओं पर अत्याचार करने से रोकते थे. उन्होंने लोगों को समझाया कि जानवरों को मारना-पीटना गलत है. उन्हें भी हमारी तरह ही दर्द होता है. पशु हमारे मददगार हैं.


👉🏽जातिवाद के खिलाफ रहे

बाबा गाडगे समाज में चल रही जातिभेद और रंगभेद की भावना को नहीं मानते थे. वे लोगों को कठिन परिश्रम, साधारण जीवन और परोपकार की भावना का पाठ पढ़ाते थे. हमेशा जरूरतमंदों की सहायता करने को कहते थे. उन्होंने अपनी पत्नी और अपने बच्चों को भी मानव सेवा और स्वच्छता के कार्यों में लगाया.  संत गाडगे बाबा वाली खबर में लास्ट में इसको जोड़ दो।


👉🏽एक नजर में बाबा गाडगे

महाराष्ट्र के अकोला जिले के शेणपुर गांव में 23 फरवरी, 1876 को धोबी जाति में एक बच्चे का जन्म हुआ। पिता झिंगराजी और मां सखूबाई ने बालक का नाम डेबू रखा। यही बालक आगे चलकर गाडगे बाबा के नाम से विख्यात हुआ। एक दिन वह एक दलित बस्ती में चले गए। पूरी बस्ती में कुड़े के ढेर थे। बस्ती के लोगों को सफाई का महत्व समझाते हुए स्वयं बस्ती की सफाई में जुट गए तो लोग भी उनका साथ देने लगे। शाम तक बस्ती चमक गई। इस प्रकार वह एक गांव की सफाई करते और इसका महत्व समझाते हुए दूसरे गांव की ओर चलते गए। अब लोग उन्हें गाडगे बाबा के नाम से पुकारने लगे थे।

 बाबा के प्रमुख अनुयायियों ने संस्थाओं में अनुशासन बनाये रखने एवं बाबा का मिशन फैलाने के उद्देश्य से 8 फरवरी 1952 को गाडगे मिशन की स्थापना की। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री बी.जी खैर ने बाबा की सभी संस्थाओं का ट्रस्ट बना दिया, जिसमें करीब 60 संस्थाएं हैं। आज भी यह मिशन जनसेवा को समर्पित है। बाबासाहब डॉ. अंबेडकर भी गाडगे बाबा के प्रशसंक थे।  14 जुलाई 1949 को संत गाडगे की बीमारी पर विधिमंत्री के रूप में बाबासाहेब उन्हें अस्पताल में देखने गए और शाल ओढ़ाकर उन्हें सम्मानित किया। गाडगे बाबा ने अछूतों के लिए बनाई गई पंढरपुर की चोखामेला धर्मशाला महात्मा गांधी के स्थान पर डॉ. अंबेडकर के हवाले की थी। यह अजब संयोग था कि डॉ अंबेडकर की मृत्यु के ठीक 14 दिन के बाद 20 दिसंबर 1956 को संत गाडगे बाबा भी संसार से विदा हो गए।

उत्तर भारतीयों का संत गाडगे बाबा से साक्षात्कार मान्यवर कांशीराम ने कराया। वे संत गाडगे की जयंती एवं परिनिर्वाण दिवस मनाने के लिए धोबी समाज को प्रेरित करते थे। और साथ ही साथ अपने समाज सुधारकों के पुंज में उनको उचित स्थान दिया करते थे।
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जय भीम जय भारत जय संत गाडसे महाराज  




#संत गाडगे बाबा

डेबुजी झिंगराजि जानोरकर साधारणतः संत गाडगे महाराज और गाडगे बाबा के नाम से जाने जाते थे, वे एक समाज सुधारक और घुमक्कड भिक्षुक थे जो महाराष्ट्र में सामाजिक विकास करने हेतु साप्ताहिक उत्सव का आयोजन करते थे. उन्होंने उस समय भारतीय ग्रामीण भागो का काफी सुधार किया और आज भी उनके कार्यो से कई राजनैतिक दल और सामाजिक संस्थान प्रेरणा ले रहे है.

#जीवन
उनका वास्तविक नाम देवीदास डेबुजी था. महाराज का जन्म महाराष्ट्र के अमरावती जिले के अँजनगाँव सुरजी तालुका के शेड्गाओ ग्राम में एक धोबी परिवार में हुआ था. वे एक घूमते फिरते सामाजिक शिक्षक थे, वे पैरो में फटी हुई चप्पल और सिर पर मिट्टी का कटोरा ढककर पैदल ही यात्रा किया करते थे. और यही उनकी पहचान थी. जब वे किसी गाँव में प्रवेश करते थे तो वे तुरंत ही गटर और रास्तो को साफ़ करने लगते. और काम खत्म होने के बाद वे खुद लोगो को गाँव के साफ़ होने की बधाई भी देते थे. गाँव के लोग उन्हें पैसे भी देते थे और बाबाजी उन पैसो का उपयोग सामाजिक विकास और समाज का शारीरिक विकास करने में लगाते. लोगो से मिले हुए पैसो से महाराज गाँवो में स्कूल, धर्मशाला, अस्पताल और जानवरो के निवास स्थान बनवाते थे.

गाँवो की सफाई करने के बाद शाम में वे कीर्तन का आयोजन भी करते थे और अपने कीर्तनों के माध्यम से जन-जन तक लोकोपकार और समाज कल्याण का प्रसार करते थे. अपने कीर्तनों के समय वे लोगो को अन्धविश्वास की भावनाओ के विरुद्ध शिक्षित करते थे. अपने कीर्तनों में वे संत कबीर के दोहो का भी उपयोग करते थे.

वे लोगो को जानवरो पर अत्याचार करने से रोकते थे और वे समाज में चल रही जातिभेद और रंगभेद की भावना को नही मानते थे और लोगो के इसके खिलाफ वे जागरूक करते थे. और समाज में वे शराबबंदी करवाना चाहते थे.

वे लोगो को कठिन परिश्रम, साधारण जीवन और परोपकार की भावना का पाठ पढ़ाते थे और हमेशा जरूरतमंदों की सहायता करने को कहते थे. उन्होंने अपनी पत्नी और अपने बच्चों को भी इसी राह पर चलने को कहा.

महाराज कई बार आध्यात्मिक गुरु मैहर बाबा से भी मिल चुके थे. मैहर बाबा ने भी संत गाडगे महाराज को उनके पसंदीदा संतो में से एक बताया. महाराज ने भी मैहर बाबा को पंढरपुर में आमंत्रित किया और 6 नवंबर 1954 को हज़ारो लोगो ने एकसाथ मैहर बाबा और महाराज के दर्शन लिये.

#मुत्यु महानता

उन्हें सम्मान देते हुए महाराष्ट्र सरकार ने 2000-01 में “संत गाडगेबाबा ग्राम स्वच्छता अभियान” की शुरुवात की. और जो ग्रामवासी अपने गाँवो को स्वच्छ रखते है उन्हें यह पुरस्कार दिया जाता है.
महाराष्ट्र के प्रसिद्ध समाज सुधारको में से वे एक है. वे एक ऐसे संत थे जो लोगो की समस्याओ को समझते थे और गरीबो और जरूरतमंदों के लिये काम करते थे.

भारत सरकार ने भी उनके सम्मान में कई पुरस्कार जारी किये.
इतना ही नही बल्कि अमरावती यूनिवर्सिटी का नाम भी उन्ही के नाम पर रखा गया है. संत गाडगे महाराज भारतीय इतिहास के एक महान संत थे.
संत गाडगे बाबा सच्चे निष्काम कर्मयोगी थे. महाराष्ट्र के कोने-कोने में अनेक धर्मशालाएँ, गौशालाएँ, विद्यालय, चिकित्सालय तथा छात्रावासों का उन्होंने निर्माण कराया. यह सब उन्होंने भीख माँग-माँगकर बनावाया किंतु अपने सारे जीवन में इस महापुरुष ने अपने लिए एक कुटिया तक नहीं बनवाई.    

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