आपने चोर - चुहाड़ सुना है न ? चुहाड़ अर्थात बदमाश , लुच्चा ।
कौन थे चुहाड़ ? वही चुहाड़ आंदोलन के स्वाधीनता सेनानी ।
इसे चुआड़ आंदोलन भी कहते हैं ।चुआड़ आंदोलन झारखंड के आदिवासियों ने रघुनाथ महतो के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ जंगल , जमीन के बचाव तथा नाना प्रकार के शोषण से मुक्ति के लिए 1769 में आरंभ किया था ।
रघुनाथ महतो का जन्म झारखंड के सरायकेला - खरसावां जिला के घुटियाडीह में 1738 को हुआ था ।
1769 में नीमडीह के मैदान से भड़की चुआड़ आंदोलन की चिनगारी पातकूम , बड़ाभूम , धालभूम ,गम्हरिया , सिल्ली , सोनाहातु , बुण्डू , तमाड़ , रामगढ़ आदि अनेक स्थानों पर फैल गई ।
कुड़मी , भूमिज , संथाल , मुंडा , भुइयां सभी एकजुट हुए ।आंदोलन की आक्रामकता को देखते हुए अंग्रेजों ने छोटानागपुर को पटना से हटाकर बंगाल प्रेसीडेंसी के अधीन कर दिया । 10 अप्रैल 1774 को सिडनी स्मिथ ने बंगाल रेजिमेंट को विद्रोहियों के खिलाफ फौजी कारवाई करने का आदेश दे दिया ।
5 अप्रैल 1778 । रघुनाथ महतो की लोटा के जंगलों में सभा ।अंग्रेजी फौज की कार्रवाई । सैकडों गिरफ्तार । कई मरे और शहीद हुए जनक्रांति के नायक रघुनाथ महतो ।
रघुनाथ महतो की शहादत के बाद भी आंदोलन जारी रहा ।दिलीप गोस्वामी ने अपनी पुस्तक " मानभूमेर स्वाधीनता आंदोलन " में लिखा है कि यह 1767 से 1832 तक 66 साल चला था ।
कौन थे चुहाड़ ? वही चुहाड़ आंदोलन के स्वाधीनता सेनानी ।
इसे चुआड़ आंदोलन भी कहते हैं ।चुआड़ आंदोलन झारखंड के आदिवासियों ने रघुनाथ महतो के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ जंगल , जमीन के बचाव तथा नाना प्रकार के शोषण से मुक्ति के लिए 1769 में आरंभ किया था ।
रघुनाथ महतो का जन्म झारखंड के सरायकेला - खरसावां जिला के घुटियाडीह में 1738 को हुआ था ।
1769 में नीमडीह के मैदान से भड़की चुआड़ आंदोलन की चिनगारी पातकूम , बड़ाभूम , धालभूम ,गम्हरिया , सिल्ली , सोनाहातु , बुण्डू , तमाड़ , रामगढ़ आदि अनेक स्थानों पर फैल गई ।
कुड़मी , भूमिज , संथाल , मुंडा , भुइयां सभी एकजुट हुए ।आंदोलन की आक्रामकता को देखते हुए अंग्रेजों ने छोटानागपुर को पटना से हटाकर बंगाल प्रेसीडेंसी के अधीन कर दिया । 10 अप्रैल 1774 को सिडनी स्मिथ ने बंगाल रेजिमेंट को विद्रोहियों के खिलाफ फौजी कारवाई करने का आदेश दे दिया ।
5 अप्रैल 1778 । रघुनाथ महतो की लोटा के जंगलों में सभा ।अंग्रेजी फौज की कार्रवाई । सैकडों गिरफ्तार । कई मरे और शहीद हुए जनक्रांति के नायक रघुनाथ महतो ।
रघुनाथ महतो की शहादत के बाद भी आंदोलन जारी रहा ।दिलीप गोस्वामी ने अपनी पुस्तक " मानभूमेर स्वाधीनता आंदोलन " में लिखा है कि यह 1767 से 1832 तक 66 साल चला था ।
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