Sunday 26 November 2017

भारत, हिंदुस्तान कैसे बन गया?

 बड़ा सवाल: भारत, हिंदुस्तान कैसे बन गया?

1918 में पहली बार इस्तेमाल हुआ ‘हिन्दू धर्म’ शब्द

तुलसीदास ने रामचरित मानस मुगलकाल में लिखी, पर मुगलों की बुराई में एक भी चौपाई नहीं लिखी. क्यों?

क्या उस समय हिंदू मुसलमान का मामला नहीं था? हां, उस समय हिंदू मुसलमान का मामला नहीं था क्योंकि उस समय हिंदू नाम का कोई धर्म ही नहीं था.

तो फिर उस समय कौनसा धर्म था?

उस समय ब्राह्मण धर्म था और ब्राह्मण मुगलों के साथ मिलजुलकर रहते थे, यहाँ तक कि आपस में रिश्तेदार बनकर भारत पर राज कर रहे थे. उस समय वर्ण व्यवस्था थी. वर्ण व्यवस्था में शूद्र अधिकार-वंचित था, जिसका कार्य सिर्फ सेवा करना था. मतलब सीधे शब्दों में गुलाम था.

तो फिर हिंदू नाम का धर्म कब से आया?

ब्राह्मण धर्म का नया नाम हिंदू तब आया जब वयस्क मताधिकार का मामला आया. जब इंग्लैंड में वयस्क मताधिकार का कानून लागू हुआ और इसको भारत में भी लागू करने की बात हुई.

इसी पर तिलक ने बोला था, “क्या ये तेली तम्बोली संसद में जाकर तेल बेचेंगे? इसलिए स्वराज इनका नहीं मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है. हिन्दू शब्द का प्रयोग पहली बार 1918 में इस्तेमाल किया गया.

तो ब्राह्मण धर्म खतरे में क्यों पड़ा?

क्योंकि भारत में उस समय अँग्रेजों का राज था, वहाँ वयस्क मताधिकार लागू हुआ तो फिर भारत में तो होना ही था.

ब्राह्मण 3.5% हैं. अल्पसंख्यक हैं. राज कैसे करेंगे?

ब्राह्मण धर्म के सारे ग्रन्थ शूद्रों के विरोध में, मतलब हक/अधिकार छीनने के लिए, शूद्रों की मानसिकता बदलने के लिए षड़यंत्र का रूप दिया गया.

आज का ओबीसी ही ब्राह्मण धर्म का शूद्र है. SC (अनुसूचित जाति)) के लोगों को तो अछूत घोषित करके वर्ण व्यवस्था से बाहर रखा गया था, क्योंकि उन्होंने ही यूरेशियन आर्यों से सबसे ज्यादा संघर्ष किया था.

ST (अनुसूचित जनजाति) के लोग तो जंगलों में थे उनसे ब्राह्मण धर्म को क्या खतरा? उनको तो यूरेशियन आर्यों के सिंधु घाटी सभ्यता से संघर्ष के समय से ही वन में जाकर रहने पर मजबूर किया. उनको वनवासी कह दिया.

ब्राह्मणों ने षड़यंत्र से हिंदू शब्द का इस्तेमाल किया जिससे सबको समानता का अहसास हो. पर ब्राह्मणों ने समाज में व्यवस्था ब्राह्मण धर्म की ही रखी. उसमें जातियां रखीं. जातियां ब्राह्मण धर्म का प्राण तत्व हैं, इनके बिना ब्राह्मण का वर्चस्व खत्म हो जायेगा.

इसलिए उस समय हिंदू मुसलमान की समस्या नहीं थी. ब्राह्मण धर्म को जिंदा रखने के लिए वर्ण व्यवस्था थी. उसमें शूद्रों को गुलाम रखना था.

इसलिए तुलसीदास ने मुसलमानों के विरोध में नहीं शूद्रों के विरोध में शूद्रों को गुलाम बनाए रखने के लिए लिखा.

ढोल गंवार शूद्र पशु नारी।
ये सब ताड़न के अधिकारी।।

अब जब मुगल चले गये, देश में SC/ST/OBC के लोग ब्राह्मण धर्म के विरोध में ब्राह्मण धर्म के अन्याय अत्याचार से दुखी होकर इस्लाम अपना लिया तो ब्राह्मण अगर मुसलमानों के विरोध में जाकर षड्यंत्र नहीं करेगा तो SC/ST/OBC के लोगों को प्रतिक्रिया से हिंदू बनाकर, बहुसंख्यक लोगों का हिंदू के नाम पर ध्रुवीकरण करके अल्पसंख्यक ब्राह्मण बहुसंख्यक बनकर राज कैसे करेगा?

52%obc का भारत पर शासन होना चाहिये था क्योंकि obc यहाँ पर अधिक तादात में है लेकिन यही वर्ग ब्रह्मण का सबसे बड़ा गुलाम भी है यही इस धर्म का सुरक्षाबल बना हुआ है यदि गलती से भी किसी ने ब्राह्मणवाद के खिलाफ आवाज़ उठाई तो यही obc ब्राह्मणवाद को बचाने आ जाता है और वह आवाज़ हमेशा के लिये खामोश कर दी जाती है।

यदि भारत में ब्रह्मण शासन व ब्रह्मण राज़ कायम है तो उसका जिम्मेदार केवल और केवल obc है क्योंकि बिन obc सपोर्ट के ब्रह्मण यहाँ कुछ नही कर सकता॥

obc को यह मालूम ही नही कि उसका किस तरह ब्रह्मण use कर रहा है।साथ ही साथ sc st व अल्पसंख्यक लोगों में मूल इतिहास के प्रति अज्ञानता व उनके अन्दर समाया पाखण्ड अंधविश्वास भी कम जिम्मेदार नही है ॥
इसलिए आज हिंदू मुसलमान कि समस्या देश में खड़ी कि गई है तथाकथित हिंदू (SC ST OBC) मुसलमान से लड़ें, मरें.

क्या कभी आपने सुना है कि किसी दंगे में कोई ब्राह्मण मरा हो? जहर घोलनें वाले कभी जहर नहीं पीते हैं.

इसलिए, यूरेशियन ब्राह्मण सदैव सुरक्षित. कोई दर्द नहीं कोई फर्क नहीं, आराम से टीवी में डिबेट के लिये तैयार !


 ब्राह्मण दिन रात हिन्दू हिन्दू क्यों चिल्लाते रहता है इसका एक सनसनीखेज खुलासा >>>
1)बाभन जात को पता है की, जब तक उसने ''हिन्दू'' नाम की चादर, धर्म के नामपर ओढ़ी है, तब तक ही उसका वर्चस्व भारत पर है !!
2)क्योकि बाभन जानता है की बाभन ,बाभन के नाम पर गाव का ''प्रधान'' भी नहीं हो सकता ,''हिन्दू'' के नामपर ''प्रधानमन्त्री'' ,और ''केन्द्रीय मंत्री'' झट से बन जाता है !!
3)बाभन यह भी जनता है की जिस दिन यह ''हिन्दू'' नामकी चादर खुल गयी कुत्ते की मौत मारा जाएगा ,
इसीलिए बाभन दिन रात ''हिन्दू हिन्दू हिन्दू'' रटते रहता है,
४)जब की बाभन खुद यह जानता है की ,''हिंदू'' नाम का कोई धर्म नही है ...हिन्दू फ़ारसी का शब्द है । 5)हिन्दू शब्द न तो वेद में है न पुराण में न उपनिषद में न आरण्यक में न रामायण में न ही महाभारत में ।
6)स्वयं बाभन जात ''दयानन्द सरस्वती'' कबूल करते हैं कि यह मुगलों द्वारा दी गई गाली है ।
7)1875 में बाभन ''दयानन्द सरस्वती'' ने ''आर्य समाज'' की स्थापना की ''हिन्दू समाज'' की नहीं । 8)अनपढ़ बाभन भी यह बात जानता है की बाभनो ने स्वयं को ''हिन्दू'' कभी नहीं कहा। आज भी वे स्वयं को ''बाभन'' ही कहते हैं, लेकिन सभी मूलनिवासी शूद्रों को हिन्दू कहते हैं ।
9)जब शिवाजी हिन्दू थे और मुगलों के विरोध में लड़ रहे थे तथा तथाकथित हिन्दू धर्म के रक्षक थे तब भी पूना के बाभनो ने उन्हें ''शूद्र'' कह राजतिलक से इंकार कर दिया । घूस का लालच देकर बाभन गागाभट्ट को बनारस से बुलाया गया । गगाभट्ट ने "गागाभट्टी"लिखा उसमें उन्हें विदेशी राजपूतों का वंशज बताया तो गया लेकिन राजतिलक के दौरान मंत्र "पुराणों" के ही पढे गए वेदों के नहीं ।तो शिवाजी को ''हिन्दू'' तब नहीं माना।
10) बाभनो ने मुगलों से कहा हम ''हिन्दू'' नहीं हैं बल्कि, तुम्हारी तरह ही विदेशी हैं परिणामतः सारे हिंदुओं पर जज़िया लगाया गया लेकिन बाभनो को मुक्त रखा गया ।
11) 1920 में ब्रिटेन में वयस्क मताधिकार की चर्चा शुरू हुई ।ब्रिटेन में भी दलील दी गई कि वयस्क मताधिकार सिर्फ जमींदारों व करदाताओं को दिया जाए । लेकिन लोकतन्त्र की जीत हुई । वयस्क मताधिार सभी को दिया गया । देर सबेर ब्रिटिश भारत में भी यही होना था । तिलक ने इसका विरोध किया । कहा " तेली,तंबोली ,माली,कूणबटो को संसद में जाकर क्याहल चलाना है" । ब्राह्मणो ने सोचा यदि भारत में वयस्क मताधिकार यदि लागू हुआ तो अल्पसंख्यक बाभन मक्खी की तरह फेंक दिये जाएंगे । अल्पसंख्यक बाभन कभी भी बहुसंख्यक नहीं बन सकेंगे । सत्ता बहुसंख्यकों के हाथों में चली जाएगी । तब सभी ब्राह्मणों ने मिलकर 1922 में "हिन्दू महासभा" का गठन किया । 12)जो बाभन स्वयं हो हिन्दू मानने कहने को तैयार नहीं थे वयस्क मताधिकार से विवश हुये । परिणाम सामने है । भारत के प्रत्येक सत्ता के केंद्र पर बाभनो का कब्जा है ।
सरकार में बाभन ,विपक्ष में बाभन ,कम्युनिस्ट में बाभन ,ममता बाभन ,जयललिता बाभन ,367 एमपी बाभनो के कब्जों में है ।
13) सर्वोच्च न्यायलयों में बाभनो का कब्जा,ब्यूरोक्रेसी में बाभनो का कब्जा,मीडिया,पुलिस ,मिलिटरी ,शिक्षा,आर्थिक सभी जगह बाभनो का कब्जा है ।
14) मतलब एक विदेशी गया तो दूसरा विदेशी सत्ता में आ गया । हम अंग्रेजों के पहले बाभनो के गुलाम थे अंग्रेजों के जाने के बाद भी बाभनो के गुलाम हैं । यही वह ''हिन्दू'' शब्द है जो न तो वेद में है न पुराण में न उपनिषद में न आरण्यक में न रामायण d
 न ही महाभारत में । फिर भी ब्राह्मण हमें हिन्दू कहते हैं ,और हिन्दू की आड़ में अल्पसख्य बाभन बहुसंख्य बन भारत का कब्ज्जा कर लेते है !!!
यह रहा हिन्दू नाम की आड़ में विदेशी ब्राह्मणों के कब्ज्जे का सबुत ,
१)देश के 8676 मठों के मठाधीश
सवर्ण : 96 प्रतिशत
(इसमें ब्राह्मण 90 प्रतिशत)
ओबीसी : 4 प्रतिशत
एससी : 0 प्रतिशत
एसटी : 0 प्रतिशत
स्रोत : डेली मिरर,
२)प्रथम श्रेणी की सरकारी नौकरियों में जातियों का विवरण
सवर्ण : 76.8 प्रतिशत
ओबीसी : 6.9 प्रतिशत
एससी : 11.5 प्रतिशत
एसटी : 4.8 प्रतिशत
स्रोत : वी. नारायण स्वामी, राज्यमंत्री, प्रधानमंत्री कार्यालय, भारत सरकार द्वारा संसद में शरद यादव के एक प्रश्न का उत्तर देते हुए.
३)देश का कोई भी विश्वविद्यालय दुनिया के टॉप 200 में कहीं नहीं है. इन विश्वविद्यालयों में कुलपतियों का जातीय विवरण निम्न प्रकार से है:
सामान्य - 90 प्रतिशत
ओबीसी - 6.9 प्रतिशत
एससी - 3.1 प्रतिशत
एसटी - 0 प्रतिशत
स्रोत : डेली मिरर
४)
हमारे शिक्षा संस्थानों में से एक भी दुनिया के टॉप 200 में कहीं नहीं है. केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में कुल 8852 शिक्षक कार्यरत हैं जिनमें विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व निम्न प्रकार है:
सवर्ण : 7771
ओबीसी : 1081
एससी : 568
एसटी : 268
स्रोत : RTI No. Estt./P10/69-2011/I.I.T. K267
Jan.29, 2011
~~भारतीय मीडिया तंत्र के मालिक और उनकी हकीकत
1=टाईम्स ऑफ इंडिया=जैन(बनिया)
2=हिंदुस्थान टाईम्स=बिर्ला(बनिया)
3=दि.हिंदू=अयंगार(ब्राम्हण)

4=इंडियन एक्सप्रेस=गोयंका(बनिया)
5=दैनिक जागरण=गुप्ता(बनिया)
6=दैनिक भास्कर=अग्रवाल(बनिया)

7=गुजरात समाचार=शहा(बनिया)
8=लोकमत =दर्डा(बनिया)
9=राजस्थान पत्रिका=कोठारी(बनिया)

10=नवभारत=जैन(बनिया)
11=अमर उजाला=माहेश्वरी(बनिया)

~~भारत सरकार के असली मलिक... वह कौन है... क्या यह सारी कंपनी, मिडिया (प्रिंट और टी.व्ही. चैनल्स) किसके पास है... क्या एस.सी., एस.टी., ओबीसी या मुसलमानो के पास मै है... कौन भ्रष्ट है?... यह पता चल जायेगा... कॉंग्रेस, बीजेपी या कम्युनिस्ट पार्टी पहले से ही ब्राम्हणो की है... उनको नीचे दिये गये लोग चलाते है...

१) एससी सिमेंट कंपनी=सुमित बैनर्जी(ब्राम्हण)
२) भेल=रविकुमार/कृष्णास्वामी(ब्राम्हण)

३) ग्रासिम हेंडालकी=कुमार मंगलम/बिर्ला(बनिया)
४) आयसीआयसी बँक=के.व्ही.कामत(ब्राम्हण)

५) जयप्रकाश असो.=योगेश गौर(ब्राम्हण)
६) एल. & टी.=एम.ए.नाईक (ब्राम्हण)

७) एनटीपीसी=आर.एस.शर्मा(ब्राम्हण )
८) रिलायन्स=मुकेश अंबानी(बनिया)

९) ओएनजीसी=आर.एस.शर्मा(ब्राम्हण)
१०) स्टेट बँक ऑफ इंडिया=ओपी भट(ब्राम्हण)

११) स्टर लाईट इंडस्ट्री=अनिल अग्रवाल(बनिया)
१२) सन फार्मा=दिलीप सिंघवी(ब्राम्हण)

१३) टाटा स्टील=बी.मथुरामन(ब्राम्हण)
१४) पंजाब नैशनल बँक=के. सी. चक्रवर्ती(ब्राम्हण)

१५) बँक ऑफ बडोदा=एम.डी.माल्या(ब्राम्हण)
१६) कैनरा बँक=ए.सी.महाजन(बनिया)

१७) इनफोसीस=क्रीज गोपालकृष्णन(ब्राम्हण)
१८) टीसीए=सुभ्रमन्यम रामदेसाई(ब्राम्हण)

१९) विप्रो=अजीम प्रेमजी(खोजा)
२०) किंगफिशर (विमान कंपनी)=विजय माल्या(ब्राम्हण)

२१) आयडीया=आदित्य बिर्ला(बनिया)
२२) जेट एअर वेज=नरेश गोयल(बनिया)

२३) एअर टेल=मित्तल (बनिया)
२४) रिलायन्स मोबाईल=अंबानी (बनिया)

२५) वोडाफोन=रोईया(बनिया)
२६) स्पाईस=मोदी(बनिया)

२७) बि.एस.एन.एल.=कुलदीप गोयल(बनिया)
२८) टी.टी.एम.एल.=के.ए.चौकर(ब्राम्हण),,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,इन ब्राह्मण के फेंके जाल में मत फसिये
पढ़िए और परिक्षण कर के जानिए. आरएसएस
राष्ट्रवादी या जातिवादी? महाराष्ट्र के कुछ
पुरातनपंथी ब्राह्मणों द्वारा स्थापित करके
विक्सित किया गया संघ(आरएसएस)
राष्ट्रवादी है या जातिवादी ?
इसका परिक्षण 2004 के राष्ट्रिय स्तर के संघ के
पदाधिकारियो के नीचे वर्णित विवरण में दिए
गए नामो में से देश के भिन्न-भिन्न सामाजिक
समूहों का कितना प्रतिनिधित्व है,
उनका विश्लेषण करने से हो सकता है. क्रम - - पद - -
- - - - - - नाम - - - - - - - वर्ण
01. सरसंघचालक - - - - के.एस.सुदर्शन - - - - -
ब्राह्मण
02. सरकार्यवाह - - - - - मोहनराव भागवत - -
ब्राह्मण
03. सह सरकार्यवाह - - - मदनदास. - - - - - - -
ब्राह्मण
04. सह सरकार्यवाह - - - सुरेश जोशी - - - - - -
ब्राह्मण
05. सह सरकार्यवाह - - - सुरेश सोनी - - - - - -
वैश्य
06.शारिरीक प्रमुख - - - उमाराव पारडीकर - -
ब्राह्मण
07. सह शारीरिक प्रमुख - के.सी.कन्नान - - - - -
वैश्य
08.बौध्धिक प्रमुख - - - -रंगा हर - - - - - - - -
ब्राह्मण
09. सह बौध्धिक प्रमुख - -मधुभाई कुलकर्णी - - -
ब्राह्मण
10. सह बौध्धिक प्रमुख - -दत्तात्रेय होलबोले - -
-ब्राह्मण
11. प्रचार प्रमुख - - - - - श्रीकान्त जोशी - - -
- ब्राह्मण
12. सह प्रचार प्रमुख - - - अधिश कुमार - - - - -
ब्राह्मण
13. प्रचारक प्रमुख - - - - एस,वी. शेषाद्री - - - -
ब्राह्मण
14. सह प्रचारक प्रमुख - - श्रीकृष्ण मोतिलाग - -
ब्राह्मण
15. सह प्रचारक प्रमुख - - सुरेशराव केतकर - - -
ब्राह्मण
16. प्रवक्ता - - - - - - - -राम माधव - - - - - -
ब्राह्मण
17. सेवा प्रमुख - - - - - -प्रेरेमचंद गोयेल - - - -
वैश्य
18.सह सेवा प्रमुख - - - -सीताराम केदलिया - -
वैश्य
19.सह सेवा प्रमुख - - - -सुरेन्द्रसिंह चौहाण - - -
क्षत्रिय
20. सह सेवा प्रमुख - - - -ओमप्रकाश- - - - - - -
ब्राह्मण
21. व्यवस्था प्रमुख - - - -साकलचंद बागरेचा - -
वैश्य
22.सहव्यवस्था प्रमुख - - बालकृष्ण त्रिपाठी - -
-ब्राह्मण
23. संपर्क प्रमुख - - - - - हस्तीमल - - - - - - - -
वैश्य
24.सह संपर्क प्रमुख - - - इन्द्रेश कुमार- - - - - -
ब्राह्मण
25. सभ्य- - - - - - - - - राघवेन्द्र कुलकर्णी - - -
ब्राह्मण
26. सभ्य - - - - - - - - -एम.जी. वैद्य - - - - - -
ब्राह्मण
27. सभ्य - - - - - - - - -अशोक कुकडे- - - - - -शुद्र
28. सभ्य - - - - - - - - -सदानंद सप्रे- - - - - - -
ब्राह्मण
29. सभ्य - - - - - - - - -कालिदास बासु - - - - -
ब्राह्मण
30. विशेष आमंत्रित - - - सूर्य नारायण राव - - -
ब्राह्मण
31. विशेष आमंत्रित - - - श्रीपति शास्त्री - - -
- - ब्राह्मण 32. विशेष आमंत्रित - - - वसंत बापट -
- - - - - ब्राह्मण
33. विशेष आमंत्रित - - - बजरंगलाल गुप्ता - - - -
वैश्य (स्त्रोत-आरएसएस डॉटकॉम इंटरनेट पर
आधारित-2004)
अखिल भारतीय स्तर पर सर संघचालक के.एस.सुदर्शन
सहित 24 ब्राह्मण यानी 72.73%, 7 वैश्य
यानी 21.21%, 1 क्षत्रिय
यानी 3.03% और 1 शुद्र यानी 3.03%
प्रतिनिधित्व देखने को मिलता है. ब्राह्मण और
वैश्य जैसी उच्चवर्ग जातियो का 93.04%
प्रतिनिधित्व है. 5% विक्सित शुद्र और 45%
पिछड़े शुद्र(ओबीसी) तथा 24% एससी-
एसटी जातियों को मिला कर 75%
आबादी का 1 यानी सिर्फ 3.03%
ही प्रतिनिधित्व है.एससी-
एसटी जातियों का कोई प्रतिनिधित्व
ही नहीं है. ऊपर का ये चित्र ब्राह्मण जातिवाद
के नंगे नाच का चित्र है. संघ के
जातिवादी ब्राह्मण नेताओ ने भारत को 11
क्षेत्रों में बांट कर अपने जाति संगठन को आरएसएस
के नाम से जमाया है. इन क्षेत्रो का संचालन करने
वालो का सामाजिक चित्र नीचे
दिया गया है.
11 क्षेत्रोके 34 पदाधिकारियों में सामाजिक
प्रतिनिधित्व
सामाजिकवर्ग - - - - आबादी - - -
पदाधिकारी - हिस्सेदारी
1. ब्राह्मण - - - - - -03.00% - - - 24 - -
- - 70.59%
2. क्षत्रिय-भूमिहार - 05.90% - - - 01
- - - - 02.94%
3. वैश्य - - - - - - -01.70% - - - 07 - - - -
20.55%
4. शुद्र - - - - - - - 51.70%- - - - 01 - - -
- 05.88%
5. अतिशुद्र- - - - - 24.00% - - - -00 - -
- - 00.00%
(स्त्रोत-आरएसएस डॉटकॉम 2004- इंटरनेट पर
आधारित)
केवल अखिल भारतीय संघ
ही नहीं परन्तु 11 क्षेत्रोंमें बंटा हुए आरएसएस
का क्षेत्रीय नेतृत्व भी ब्राह्मण नेताओ के
नियंत्रण में है. 11 क्षेत्रोके 34 पदाधिकरियोमे
ब्राह्मणों का प्रतिनिधित्व 70.59% है,
जबकि वैश्य 20.59% है.
निम्न वर्गोमे शुद्र- अतिशुद्रो की 75%
आबादी का पदाधिकरियोमे प्रतिनिधित्व
सिर्फ 5.88% ही है. अतिशुद्र मानी गई एससी-
एसटी जातियों की 24%
जनसंख्या का तो कोई प्रतिनिधित्व ही नहीं है.
ऊपर का चित्र देखने के बाद कोई भी व्यक्ति कह
सकता है की, संघ और संघ द्वारा खड़े किये गए
संगठनो का नियंत्रण ब्राह्मण जाति के हाथ में है.
संघ ढोंगी हिन्दुवादी, पाखंडी राष्ट्रवादी और
असली जातिवादी है.
जैसा परिक्षण तिन ब्राह्मण सरसंघचालको के
जीवनवृतो में से हो सकता है वैसा ही परिक्षण
1998-2004 के दौरान केन्द्र सरकार के
प्रधानमन्त्री रहे संघ के कट्टर
जातिवादी ब्राह्मण प्रचारक
अटलबिहारी वाजपेयी के व्यवहार से भी स्पष्ट
हो सकता है. वाजपेयी शासन मे
ब्राह्मणों को क्या मिला और
गैरब्राह्मणों को क्या मिला? गैर- ब्राह्मणों में
शुद्र-अतिशुद्र(75%) को क्या मिला? केबिनेट और
नियुक्ति में कितनी सामाजिक
हिस्सेदारी मिली? - वाजपेयी शासनमे
ब्राह्मणों का प्रतिनिधित्व 1998 - 2004
क्रम - - - - पद - - - - - - - - - - - -कुल - - ब्राह्मण
- हिस्सेदारी
1. - केन्द्रीय केबिनेटमंत्री - - - - - - --19 - - 10 -
- - - 53%
2. - राज्य तथा उपमंत्री - - - - - - - -49 - - 34 -
- - - 70%
3. - सचीव-उपसचिव-सयुंक्तसचिव - 500 - -340 - -
- -62%
4. - राज्यपाल-उपराज्यपाल- - - - - -27 - - -13 -
- - -48%
5. - पब्लिक सेक्टर के चीफ - - - - - 158 - - 91 - - -
-58%
ये सभी ऐसे पद है जिसकी नियुक्ति केन्द्र सरकार के प्रधानमन्त्री के रूपमे वाजपेयी निर्णय करते थे. 3.5% ब्राह्मण की स्थिति क्या है और 96.5% गैरब्राह्मण की क्या स्थिति है? 75% शुद्र- अतिशुद्रो (obc SC ST) को कितना प्रतिनिधित्व
मिला होगा ?
भारत में मूलनिवासियो को न्याय नहीं मिलता क्योकि न्यायपालिका पर विदेशी ब्राह्मण-बनियों का कब्ज्जा है !!
यह रहा सबूत =
करिया मुंडा रिपोर्ट - 2000
18 राज्यों की हाईकोर्ट में OBC SC ST जजों की संख्या
1) दिल्ली - कुल जज 27 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया-27 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
2) पटना - कुल जज 32 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया-32 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
3) इलाहाबाद - कुल जज 49 ( (विदेशी ब्राह्मण-बनिया-47 जज ,ओबीसी - 1 जज SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
4) आंध्रप्रदेश - कुल जज 31 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया-25 जज ,ओबीसी - 4 जज SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
5)गुवाहाटी - कुल जज 15 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया-12 जज ,ओबीसी - 1 जज SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
६) गुजरात -कुल जज 33 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया-30 जज ,ओबीसी - 2 जज SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
7)केरल -कुल जज 24 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 13 जज ,ओबीसी - 9 जज SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
8) चेन्नई -कुल जज 36 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 17 जज ,ओबीसी -16 जज SC- 3 जज ,ST- 0 जज )
9) जम्मू कश्मीर -कुल जज 12 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 11 जज ,ओबीसी - जज SC- जज ,ST- 1 जज )
10) कर्णाटक -कुल जज 34 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- जज 32 ,ओबीसी - जज SC- 2 जज ,ST- जज )
11) ओरिसा कुल -13 जज (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 12 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
12) पंजाब- हरियाणा -कुल 26 जज (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 24 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
13)कलकत्ता - कुल जज 37 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 37 जज ,ओबीसी -0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
१४) हिमांचल प्रदेश -कुल जज 6 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 6 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
15)राजस्थान -कुल जज 24 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 24 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
16)मध्यप्रदेश -कुल जज 30 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 30 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
17)सिक्किम -कुल जज 2 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 2 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
18)मुंबई -कुल जज 50 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 45 जज ,ओबीसी - 3 जज SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
कुल TOTAL= 481 जज में से ,विदेशी ब्राह्मण-बनिया 426 जज , ओबीसी जात के 35 जज ,SC जात के 15 जज ,ST जात के 5 जज
ज्यादा से ज्यादा लोगो को शेयर करो ...ब्राह्मण दिन रात हिन्दू हिन्दू क्यों चिल्लाते रहता है इसका एक सनसनीखेज खुलासा >>>
1)बाभन जात को पता है की, जब तक उसने ''हिन्दू'' नाम की चादर, धर्म के नामपर ओढ़ी है, तब तक ही उसका वर्चस्व भारत पर है !!
2)क्योकि बाभन जानता है की बाभन ,बाभन के नाम पर गाव का ''प्रधान'' भी नहीं हो सकता ,''हिन्दू'' के नामपर ''प्रधानमन्त्री'' ,और ''केन्द्रीय मंत्री'' झट से बन जाता है !!
3)बाभन यह भी जनता है की जिस दिन यह ''हिन्दू'' नामकी चादर खुल गयी कुत्ते की मौत मारा जाएगा ,
इसीलिए बाभन दिन रात ''हिन्दू हिन्दू हिन्दू'' रटते रहता है,
४)जब की बाभन खुद यह जानता है की ,''हिंदू'' नाम का कोई धर्म नही है ...हिन्दू फ़ारसी का शब्द है । 5)हिन्दू शब्द न तो वेद में है न पुराण में न उपनिषद में न आरण्यक में न रामायण में न ही महाभारत में ।
6)स्वयं बाभन जात ''दयानन्द सरस्वती'' कबूल करते हैं कि यह मुगलों द्वारा दी गई गाली है ।
7)1875 में बाभन ''दयानन्द सरस्वती'' ने ''आर्य समाज'' की स्थापना की ''हिन्दू समाज'' की नहीं । 8)अनपढ़ बाभन भी यह बात जानता है की बाभनो ने स्वयं को ''हिन्दू'' कभी नहीं कहा। आज भी वे स्वयं को ''बाभन'' ही कहते हैं, लेकिन सभी मूलनिवासी शूद्रों को हिन्दू कहते हैं ।
9)जब शिवाजी हिन्दू थे और मुगलों के विरोध में लड़ रहे थे तथा तथाकथित हिन्दू धर्म के रक्षक थे तब भी पूना के बाभनो ने उन्हें ''शूद्र'' कह राजतिलक से इंकार कर दिया । घूस का लालच देकर बाभन गागाभट्ट को बनारस से बुलाया गया । गगाभट्ट ने "गागाभट्टी"लिखा उसमें उन्हें विदेशी राजपूतों का वंशज बताया तो गया लेकिन राजतिलक के दौरान मंत्र "पुराणों" के ही पढे गए वेदों के नहीं ।तो शिवाजी को ''हिन्दू'' तब नहीं माना।
10) बाभनो ने मुगलों से कहा हम ''हिन्दू'' नहीं हैं बल्कि, तुम्हारी तरह ही विदेशी हैं परिणामतः सारे हिंदुओं पर जज़िया लगाया गया लेकिन बाभनो को मुक्त रखा गया ।
11) 1920 में ब्रिटेन में वयस्क मताधिकार की चर्चा शुरू हुई ।ब्रिटेन में भी दलील दी गई कि वयस्क मताधिकार सिर्फ जमींदारों व करदाताओं को दिया जाए । लेकिन लोकतन्त्र की जीत हुई । वयस्क मताधिकार सभी को दिया गया । देर सबेर ब्रिटिश भारत में भी यही होना था । तिलक ने इसका विरोध किया । कहा " तेली,तंबोली ,माली,कूणबटो को संसद में जाकर क्याहल चलाना है" । ब्राह्मणो ने सोचा यदि भारत में वयस्क मताधिकार यदि लागू हुआ तो अल्पसंख्यक बाभन मक्खी की तरह फेंक दिये जाएंगे । अल्पसंख्यक बाभन कभी भी बहुसंख्यक नहीं बन सकेंगे । सत्ता बहुसंख्यकों के हाथों में चली जाएगी । तब सभी ब्राह्मणों ने मिलकर 1922 में "हिन्दू महासभा" का गठन किया । 12)जो बाभन स्वयं हो हिन्दू मानने कहने को तैयार नहीं थे वयस्क मताधिकार से विवश हुये । परिणाम सामने है । भारत के प्रत्येक सत्ता के केंद्र पर बाभनो का कब्जा है ।
सरकार में बाभन ,विपक्ष में बाभन ,कम्युनिस्ट में बाभन ,ममता बाभन ,जयललिता बाभन ,367 एमपी बाभनो के कब्जों में है ।
13) सर्वोच्च न्यायलयों में बाभनो का कब्जा,ब्यूरोक्रेसी में बाभनो का कब्जा,मीडिया,पुलिस ,मिलिटरी ,शिक्षा,आर्थिक सभी जगह बाभनो का कब्जा है ।
14) मतलब एक विदेशी गया तो दूसरा विदेशी सत्ता में आ गया । हम अंग्रेजों के पहले बाभनो के गुलाम थे अंग्रेजों के जाने के बाद भी बाभनो के गुलाम हैं । यही वह ''हिन्दू'' शब्द है जो न तो वेद में है न पुराण में न उपनिषद में न आरण्यक में न रामायण में न ही महाभारत में । फिर भी ब्राह्मण हमें हिन्दू कहते हैं ,और हिन्दू की आड़ में अल्पसख्य बाभन बहुसंख्य बन भारत का कब्ज्जा कर लेते है !!!
यह रहा हिन्दू नाम की आड़ में विदेशी ब्राह्मणों के कब्ज्जे का सबुत ,
१)देश के 8676 मठों के मठाधीश
सवर्ण : 96 प्रतिशत
(इसमें ब्राह्मण 90 प्रतिशत)
ओबीसी : 4 प्रतिशत
एससी : 0 प्रतिशत
एसटी : 0 प्रतिशत
स्रोत : डेली मिरर,
२)प्रथम श्रेणी की सरकारी नौकरियों में जातियों का विवरण
सवर्ण : 76.8 प्रतिशत
ओबीसी : 6.9 प्रतिशत
एससी : 11.5 प्रतिशत
एसटी : 4.8 प्रतिशत
स्रोत : वी. नारायण स्वामी, राज्यमंत्री, प्रधानमंत्री कार्यालय, भारत सरकार द्वारा संसद में शरद यादव के एक प्रश्न का उत्तर देते हुए.
३)देश का कोई भी विश्वविद्यालय दुनिया के टॉप 200 में कहीं नहीं है. इन विश्वविद्यालयों में कुलपतियों का जातीय विवरण निम्न प्रकार से है:
सामान्य - 90 प्रतिशत
ओबीसी - 6.9 प्रतिशत
एससी - 3.1 प्रतिशत
एसटी - 0 प्रतिशत
स्रोत : डेली मिरर
४)
हमारे शिक्षा संस्थानों में से एक भी दुनिया के टॉप 200 में कहीं नहीं है. केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में कुल 8852 शिक्षक कार्यरत हैं जिनमें विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व निम्न प्रकार है:
सवर्ण : 7771
ओबीसी : 1081
एससी : 568
एसटी : 268
स्रोत : RTI No. Estt./P10/69-2011/I.I.T. K267
Jan.29, 2011
~~भारतीय मीडिया तंत्र के मालिक और उनकी हकीकत
1=टाईम्स ऑफ इंडिया=जैन(बनिया)
2=हिंदुस्थान टाईम्स=बिर्ला(बनिया)
3=दि.हिंदू=अयंगार(ब्राम्हण)

4=इंडियन एक्सप्रेस=गोयंका(बनिया)
5=दैनिक जागरण=गुप्ता(बनिया)
6=दैनिक भास्कर=अग्रवाल(बनिया)

7=गुजरात समाचार=शहा(बनिया)
8=लोकमत =दर्डा(बनिया)
9=राजस्थान पत्रिका=कोठारी(बनिया)

10=नवभारत=जैन(बनिया)
11=अमर उजाला=माहेश्वरी(बनिया)

~~भारत सरकार के असली मलिक... वह कौन है... क्या यह सारी कंपनी, मिडिया (प्रिंट और टी.व्ही. चैनल्स) किसके पास है... क्या एस.सी., एस.टी., ओबीसी या मुसलमानो के पास मै है... कौन भ्रष्ट है?... यह पता चल जायेगा... कॉंग्रेस, बीजेपी या कम्युनिस्ट पार्टी पहले से ही ब्राम्हणो की है... उनको नीचे दिये गये लोग चलाते है...

१) एससी सिमेंट कंपनी=सुमित बैनर्जी(ब्राम्हण)
२) भेल=रविकुमार/कृष्णास्वामी(ब्राम्हण)

३) ग्रासिम हेंडालकी=कुमार मंगलम/बिर्ला(बनिया)
४) आयसीआयसी बँक=के.व्ही.कामत(ब्राम्हण)

५) जयप्रकाश असो.=योगेश गौर(ब्राम्हण)
६) एल. & टी.=एम.ए.नाईक (ब्राम्हण)

७) एनटीपीसी=आर.एस.शर्मा(ब्राम्हण )
८) रिलायन्स=मुकेश अंबानी(बनिया)

९) ओएनजीसी=आर.एस.शर्मा(ब्राम्हण)
१०) स्टेट बँक ऑफ इंडिया=ओपी भट(ब्राम्हण)

११) स्टर लाईट इंडस्ट्री=अनिल अग्रवाल(बनिया)
१२) सन फार्मा=दिलीप सिंघवी(ब्राम्हण)

१३) टाटा स्टील=बी.मथुरामन(ब्राम्हण)
१४) पंजाब नैशनल बँक=के. सी. चक्रवर्ती(ब्राम्हण)

१५) बँक ऑफ बडोदा=एम.डी.माल्या(ब्राम्हण)
१६) कैनरा बँक=ए.सी.महाजन(बनिया)

१७) इनफोसीस=क्रीज गोपालकृष्णन(ब्राम्हण)
१८) टीसीए=सुभ्रमन्यम रामदेसाई(ब्राम्हण)

१९) विप्रो=अजीम प्रेमजी(खोजा)
२०) किंगफिशर (विमान कंपनी)=विजय माल्या(ब्राम्हण)

२१) आयडीया=आदित्य बिर्ला(बनिया)
२२) जेट एअर वेज=नरेश गोयल(बनिया)

२३) एअर टेल=मित्तल (बनिया)
२४) रिलायन्स मोबाईल=अंबानी (बनिया)

२५) वोडाफोन=रोईया(बनिया)
२६) स्पाईस=मोदी(बनिया)

२७) बि.एस.एन.एल.=कुलदीप गोयल(बनिया)
२८) टी.टी.एम.एल.=के.ए.चौकर(ब्राम्हण),,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,इन ब्राह्मण के फेंके जाल में मत फसिये
पढ़िए और परिक्षण कर के जानिए. आरएसएस
राष्ट्रवादी या जातिवादी? महाराष्ट्र के कुछ
पुरातनपंथी ब्राह्मणों द्वारा स्थापित करके
विक्सित किया गया संघ(आरएसएस)
राष्ट्रवादी है या जातिवादी ?
इसका परिक्षण 2004 के राष्ट्रिय स्तर के संघ के
पदाधिकारियो के नीचे वर्णित विवरण में दिए
गए नामो में से देश के भिन्न-भिन्न सामाजिक
समूहों का कितना प्रतिनिधित्व है,
उनका विश्लेषण करने से हो सकता है. क्रम - - पद - -
- - - - - - नाम - - - - - - - वर्ण
01. सरसंघचालक - - - - के.एस.सुदर्शन - - - - -
ब्राह्मण
02. सरकार्यवाह - - - - - मोहनराव भागवत - -
ब्राह्मण
03. सह सरकार्यवाह - - - मदनदास. - - - - - - -
ब्राह्मण
04. सह सरकार्यवाह - - - सुरेश जोशी - - - - - -
ब्राह्मण
05. सह सरकार्यवाह - - - सुरेश सोनी - - - - - -
वैश्य
06.शारिरीक प्रमुख - - - उमाराव पारडीकर - -
ब्राह्मण
07. सह शारीरिक प्रमुख - के.सी.कन्नान - - - - -
वैश्य
08.बौध्धिक प्रमुख - - - -रंगा हर - - - - - - - -
ब्राह्मण
09. सह बौध्धिक प्रमुख - -मधुभाई कुलकर्णी - - -
ब्राह्मण
10. सह बौध्धिक प्रमुख - -दत्तात्रेय होलबोले - -
-ब्राह्मण
11. प्रचार प्रमुख - - - - - श्रीकान्त जोशी - - -
- ब्राह्मण
12. सह प्रचार प्रमुख - - - अधिश कुमार - - - - -
ब्राह्मण
13. प्रचारक प्रमुख - - - - एस,वी. शेषाद्री - - - -
ब्राह्मण
14. सह प्रचारक प्रमुख - - श्रीकृष्ण मोतिलाग - -
ब्राह्मण
15. सह प्रचारक प्रमुख - - सुरेशराव केतकर - - -
ब्राह्मण
16. प्रवक्ता - - - - - - - -राम माधव - - - - - -
ब्राह्मण
17. सेवा प्रमुख - - - - - -प्रेरेमचंद गोयेल - - - -
वैश्य
18.सह सेवा प्रमुख - - - -सीताराम केदलिया - -
वैश्य
19.सह सेवा प्रमुख - - - -सुरेन्द्रसिंह चौहाण - - -
क्षत्रिय
20. सह सेवा प्रमुख - - - -ओमप्रकाश- - - - - - -
ब्राह्मण
21. व्यवस्था प्रमुख - - - -साकलचंद बागरेचा - -
वैश्य
22.सहव्यवस्था प्रमुख - - बालकृष्ण त्रिपाठी - -
-ब्राह्मण
23. संपर्क प्रमुख - - - - - हस्तीमल - - - - - - - -
वैश्य
24.सह संपर्क प्रमुख - - - इन्द्रेश कुमार- - - - - -
ब्राह्मण
25. सभ्य- - - - - - - - - राघवेन्द्र कुलकर्णी - - -
ब्राह्मण
26. सभ्य - - - - - - - - -एम.जी. वैद्य - - - - - -
ब्राह्मण
27. सभ्य - - - - - - - - -अशोक कुकडे- - - - - -शुद्र
28. सभ्य - - - - - - - - -सदानंद सप्रे- - - - - - -
ब्राह्मण
29. सभ्य - - - - - - - - -कालिदास बासु - - - - -
ब्राह्मण
30. विशेष आमंत्रित - - - सूर्य नारायण राव - - -
ब्राह्मण
31. विशेष आमंत्रित - - - श्रीपति शास्त्री - - -
- - ब्राह्मण 32. विशेष आमंत्रित - - - वसंत बापट -
- - - - - ब्राह्मण
33. विशेष आमंत्रित - - - बजरंगलाल गुप्ता - - - -
वैश्य (स्त्रोत-आरएसएस डॉटकॉम इंटरनेट पर
आधारित-2004)
अखिल भारतीय स्तर पर सर संघचालक के.एस.सुदर्शन
सहित 24 ब्राह्मण यानी 72.73%, 7 वैश्य
यानी 21.21%, 1 क्षत्रिय
यानी 3.03% और 1 शुद्र यानी 3.03%
प्रतिनिधित्व देखने को मिलता है. ब्राह्मण और
वैश्य जैसी उच्चवर्ग जातियो का 93.04%
प्रतिनिधित्व है. 5% विक्सित शुद्र और 45%
पिछड़े शुद्र(ओबीसी) तथा 24% एससी-
एसटी जातियों को मिला कर 75%
आबादी का 1 यानी सिर्फ 3.03%
ही प्रतिनिधित्व है.एससी-
एसटी जातियों का कोई प्रतिनिधित्व
ही नहीं है. ऊपर का ये चित्र ब्राह्मण जातिवाद
के नंगे नाच का चित्र है. संघ के
जातिवादी ब्राह्मण नेताओ ने भारत को 11
क्षेत्रों में बांट कर अपने जाति संगठन को आरएसएस
के नाम से जमाया है. इन क्षेत्रो का संचालन करने
वालो का सामाजिक चित्र नीचे
दिया गया है.
11 क्षेत्रोके 34 पदाधिकारियों में सामाजिक
प्रतिनिधित्व
सामाजिकवर्ग - - - - आबादी - - -
पदाधिकारी - हिस्सेदारी
1. ब्राह्मण - - - - - -03.00% - - - 24 - -
- - 70.59%
2. क्षत्रिय-भूमिहार - 05.90% - - - 01
- - - - 02.94%
3. वैश्य - - - - - - -01.70% - - - 07 - - - -
20.55%
4. शुद्र - - - - - - - 51.70%- - - - 01 - - -
- 05.88%
5. अतिशुद्र- - - - - 24.00% - - - -00 - -
- - 00.00%
(स्त्रोत-आरएसएस डॉटकॉम 2004- इंटरनेट पर
आधारित)
केवल अखिल भारतीय संघ
ही नहीं परन्तु 11 क्षेत्रोंमें बंटा हुए आरएसएस
का क्षेत्रीय नेतृत्व भी ब्राह्मण नेताओ के
नियंत्रण में है. 11 क्षेत्रोके 34 पदाधिकरियोमे
ब्राह्मणों का प्रतिनिधित्व 70.59% है,
जबकि वैश्य 20.59% है.
निम्न वर्गोमे शुद्र- अतिशुद्रो की 75%
आबादी का पदाधिकरियोमे प्रतिनिधित्व
सिर्फ 5.88% ही है. अतिशुद्र मानी गई एससी-
एसटी जातियों की 24%
जनसंख्या का तो कोई प्रतिनिधित्व ही नहीं है.
ऊपर का चित्र देखने के बाद कोई भी व्यक्ति कह
सकता है की, संघ और संघ द्वारा खड़े किये गए
संगठनो का नियंत्रण ब्राह्मण जाति के हाथ में है.
संघ ढोंगी हिन्दुवादी, पाखंडी राष्ट्रवादी और
असली जातिवादी है.
जैसा परिक्षण तिन ब्राह्मण सरसंघचालको के
जीवनवृतो में से हो सकता है वैसा ही परिक्षण
1998-2004 के दौरान केन्द्र सरकार के
प्रधानमन्त्री रहे संघ के कट्टर
जातिवादी ब्राह्मण प्रचारक
अटलबिहारी वाजपेयी के व्यवहार से भी स्पष्ट
हो सकता है. वाजपेयी शासन मे
ब्राह्मणों को क्या मिला और
गैरब्राह्मणों को क्या मिला? गैर- ब्राह्मणों में
शुद्र-अतिशुद्र(75%) को क्या मिला? केबिनेट और
नियुक्ति में कितनी सामाजिक
हिस्सेदारी मिली? - वाजपेयी शासनमे
ब्राह्मणों का प्रतिनिधित्व 1998 - 2004
क्रम - - - - पद - - - - - - - - - - - -कुल - - ब्राह्मण
- हिस्सेदारी
1. - केन्द्रीय केबिनेटमंत्री - - - - - - --19 - - 10 -
- - - 53%
2. - राज्य तथा उपमंत्री - - - - - - - -49 - - 34 -
- - - 70%
3. - सचीव-उपसचिव-सयुंक्तसचिव - 500 - -340 - -
- -62%
4. - राज्यपाल-उपराज्यपाल- - - - - -27 - - -13 -
- - -48%
5. - पब्लिक सेक्टर के चीफ - - - - - 158 - - 91 - - -
-58%
ये सभी ऐसे पद है जिसकी नियुक्ति केन्द्र सरकार के प्रधानमन्त्री के रूपमे वाजपेयी निर्णय करते थे. 3.5% ब्राह्मण की स्थिति क्या है और 96.5% गैरब्राह्मण की क्या स्थिति है? 75% शुद्र- अतिशुद्रो (obc SC ST) को कितना प्रतिनिधित्व
मिला होगा ?
भारत में मूलनिवासियो को न्याय नहीं मिलता क्योकि न्यायपालिका पर विदेशी ब्राह्मण-बनियों का कब्ज्जा है !!
यह रहा सबूत =
करिया मुंडा रिपोर्ट - 2000
18 राज्यों की हाईकोर्ट में OBC SC ST जजों की संख्या
1) दिल्ली - कुल जज 27 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया-27 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
2) पटना - कुल जज 32 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया-32 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
3) इलाहाबाद - कुल जज 49 ( (विदेशी ब्राह्मण-बनिया-47 जज ,ओबीसी - 1 जज SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
4) आंध्रप्रदेश - कुल जज 31 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया-25 जज ,ओबीसी - 4 जज SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
5)गुवाहाटी - कुल जज 15 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया-12 जज ,ओबीसी - 1 जज SC- 0 जज ,ST- 2 जज )
६) गुजरात -कुल जज 33 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया-30 जज ,ओबीसी - 2 जज SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
7)केरल -कुल जज 24 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 13 जज ,ओबीसी - 9 जज SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
8) चेन्नई -कुल जज 36 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 17 जज ,ओबीसी -16 जज SC- 3 जज ,ST- 0 जज )
9) जम्मू कश्मीर -कुल जज 12 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 11 जज ,ओबीसी - जज SC- जज ,ST- 1 जज )
10) कर्णाटक -कुल जज 34 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- जज 32 ,ओबीसी - जज SC- 2 जज ,ST- जज )
11) ओरिसा कुल -13 जज (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 12 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 1 जज ,ST- 0 जज )
12) पंजाब- हरियाणा -कुल 26 जज (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 24 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
13)कलकत्ता - कुल जज 37 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 37 जज ,ओबीसी -0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
१४) हिमांचल प्रदेश -कुल जज 6 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 6 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
15)राजस्थान -कुल जज 24 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 24 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
16)मध्यप्रदेश -कुल जज 30 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 30 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
17)सिक्किम -कुल जज 2 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 2 जज ,ओबीसी - 0 जज SC- 0 जज ,ST- 0 जज )
18)मुंबई -कुल जज 50 (विदेशी ब्राह्मण-बनिया- 45 जज ,ओबीसी - 3 जज SC- 2 जज ,ST- 0 जज )
कुल TOTAL= 481 जज में  से ,विदेशी ब्राह्मण-बनिया 426 जज , ओबीसी जात के 35 जज ,SC जात के 15 जज ,ST जात के 5 जज
ज्यादा से ज्यादा लोगो को शेयर करो ...
अखिल भारतीय ओबीसी महासभा पन्ना


👇संविधान का सच्च 👇

👉पेज न.132 :-

15 अगस्त 1947 
पार्टिशन के बाद जो मुस्लिम अपनी इच्छा से भारत में रहना चाहता है बा इज़्ज़त भारत में रह सकता है क्यों की ये वो मुस्लिम है जिनके पुर्वजो ने भारत की आजादी में पूरा पूरा योगदान दिया और भारत के लिए बलिदान दिया ।

👉पेज न 156 :-

आरएसएस देश का सबसे बड़ा दुशमन है क्युकी इस संघठन ने भारत की आजादी के वक्त तिरंगा जलाया था और माहात्मा गाधी का हत्यारा आरएसएस पार्टी का नेता था और आरएसएस पर बैन लगाया।

👉1956 में जब आरएसएस पर से बैन हटाया तब कुछ शर्ते रखी वो शर्ते ये है की आरएसएस कभी भी राजनीती पार्टी में भाग नहीं लेगी सविधान में कभी शामिल नहीं होगी देशभक्त पार्टी कभी नही बनेगी सिर्फ एक संगठन ही चलाएगी ।

👉पेज न 197 :-

1971,
370 धारा , कश्मीर का भारत में विलय यानि भारत देश में शामिल होना कश्मीर एक आजाद देश था जिसे पाकिस्तान अपने देश में शामिल करना चाहता था इसको भारत में शामिल करने के लिए कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया यानि 370 धारा ।

👉और अब ये 370 धारा क्या है ?
और कश्मीर में क्यों लगी है ?
और क्यों नहीं हट सकती ?
370 धारा में ये है की कश्मीर में 6 साल का कार्यकाल है कोई भी व्यक्ति कश्मीर की लड़की से शादी कर के वहां की नागरिकता पा सकता है कश्मीर के अलावा बाहर का कोई भी इन्सान वहा पर जमीन नहीं खरीद सकता कश्मीर के पास केंद्र के सभी अधिकार है रक्षा और सूचना मंत्रालय छोड़ कर ।।

👉हस्ताक्षर :-

1.मोहम्मद अली जिन्ना , 
2.पंडित जवाहर लाल नेहरु ,
3.इंद्रा गांधी,
4.जरनल गेरी रिच्ल्ड ।।

👉ये सब साफ़ साफ सविधान में लिखा है। फिर भी भगवा पार्टीयां मुस्लिमो को गद्दार समझती हैं और आरएसएस को देशभक्त पार्टी समझति है ।।

👉भाइयो ये बहुत ही काम की बात है । इसे इतना फारवर्ड करना के इन सब भगवाधारियों की हक़ीक़त ज़ाहिर हो जाये।


👉 भगवा धारी हमारी मजलिस की हिस्ट्री खोज खोज कर सोशल नेटवर्किंग पर फैला रहे हैं । अब हम इनकी हिस्ट्री भी दुनिया के सामने ला कर इनकी असलियत बता देंगे।  

जाति की उत्पत्ति

 भारत में जाति की उत्पत्ति और उसका सच


मै सबसे पहले यह बता दूं की दुनिया में किसी भी समाज, व्यवस्था और धर्म का निर्माण किसी भी ईश्वर, अल्लाह या गॉड ने नहीं किया है. इससे साफ जाहिर होता है की जाति को भी ईश्वर ने नहीं बनाया है. दुनिया की सभी व्यवस्थाओं को मनुष्य ने बनाया है. यानि जाति की व्यवस्था को भी मनुष्य ने ही बनाया है. भारत में जाति की उत्पत्ति आर्यों के आगमन के बाद हुई. प्रत्येक कार्य और व्यवस्था के पीछे एक कारण और सम्बन्ध होता है. ऐसा ही सम्बन्ध जाति और उसकी व्यवस्था के पीछे है.

जाति व्यवस्था को आर्यों ने बनाया. यहाँ एक सवाल यह उठता है की आर्यों ने जाति व्यवस्था बनाई क्यों? और आर्य हैं कौन? यह सभी जानतें है की आर्य मध्य एशिया से भारत में आएं. आर्यों का मुख्य काम युद्ध और लूट-पाट करना था. आर्य बहुत ही हिंसक प्रवृत्ति के थे और युद्ध करने में बहुत माहिर थे. युद्ध का सारा साजो सामान हमेशा साथ रखते थे. अपने लूट-पाट के क्रम में ही आर्य भारत आए. उस समय भारत सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से बहुत समृद्ध था. इस समृद्धि का कारण भारतीय मूलनिवासियों की मेहनत थी. भारतीय मूलनिवासी बहुत मेहनती थे. अपनी मेहनत और उत्पादन क्षमता के बल पर ही उन्होंने सिन्धु घाटी सभ्यता जैसी महान सभ्यता विकसित की थी. कृषि कार्य के साथ-साथ अन्य व्यावसायिक काम भी भारत के मूलनिवासी करते थे. मूलनिवासी बेहद शांतिप्रिय, अहिंसक और स्वाभिमानी जीवन यापन करते थे. ये लोग काफी बहादुर और विलक्षण शारीरिक शक्ति वाले थे. बुद्धि में भी ये काफी विलक्षण थे. अपनी इस सारी खासियत के बावजूद ये अहिंसक थे और हथियारों आदि से दूर रहते थे. आर्यों ने भारत आगमन के साथ ही यहाँ के निवासियों को लूटा और इनके साथ मार-काट की. आर्यों ने उनके घर-द्वार, व्यापारिक प्रतिष्ठान, गाँव और शहर सब जला दिया. यहाँ के निवासियों के धार्मिक, सांस्कृतिक प्रतीकों को तोड़कर उनके स्थान पर अपने धार्मिक, सांस्कृतिक प्रतीक स्थापित कर दिया. मूलनिवासियों के उत्पादन के सभी साधनों पर अपना कब्जा जमा लिया. काम तो मूलनिवासी ही करते थे लेकिन जो उत्पादन होता था, उस पर अधिकार आर्यों का होता था.


धीरे-धीरे आर्यों का कब्जा यहां के समाज पर बढ़ता गया और वो मूलनिवासियों को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य करने की कोशिश करने लगे. बावजूद इसके मूलनिवासियो ने गुलामी स्वीकार नहीं की. बिना हथियार वो जब तक लड़ सकते थे, तब तक आर्यों से बहादुरी से लड़े. लेकिन अंततः आर्यों के हथियारों के सामने मूलनिवासियों को उनसे हारना पड़ा. आर्यों ने बलपूर्वक बड़ी क्रूरता और निर्ममता से मूलनिवासियों का दमन किया. दुनिया के इतिहास में जब भी कहीं कोई युद्ध या लूट-पाट होती है तो उसका सबसे पहला और आसान निशाना स्त्रियाँ होती हैं, इस युद्ध में भी ऐसा ही हुआ. आर्यों के दमन का सबसे ज्यादा खामियाजा मूलनिवासियों कि स्त्रियों को भुगातना पड़ा. आर्यों के क्रूर दमन से परास्त होने के बाद कुछ मूलनिवासी जंगलों में भाग गए. उन्होंने अपनी सभ्यता और संस्कृति को गुफाओं और कंदराओं में बचाए रखा. इन्हीं को आज ‘आदिवासी’ कहा जाता है. यह गलत रूप से प्रचारित किया जाता है कि आदिवासी हमेशा से जंगलों में रहते थे. असल में ऐसा नहीं है. आदिवासी हमेशा से जंगलों में नहीं रहते थे. बल्कि उन्हें अपनी सुविकसित संस्कृति से बहुत प्यार था, जिसे उन्होंने आर्यों से बचाने के लिए जंगलों में शरण ली थी. बाद में आर्यों ने झूठा प्रचार करके उन्हें हमेशा से जंगल में रहने वाला प्रचारित कर दिया और उनकी बस्तियों और संपत्ति पर कब्जा कर लिया था. जो मूलनिवासी भाग कर जंगल नही गए, उनसे घृणित से घृणित अमानवीय काम करवाए गए. मरे हुए जानवरों को रस्सी से बांधकर और उन्हें खींचकर बस्ती से बाहर ले जाना फिर उनकी खाल निकालना, आर्यों के घरों का मल-मूत्र साफ करना तथा उसे हाथ से टोकरी में भरकर सिर में रखकर बाहर फेंकना आदि काम मूलनिवासियों से आर्य करवाते थे. मूलनिवासी इन घृणित कामों से काफी परेशान थे. इसके खिलाफ मूलनिवासी संगठित होकर विद्रोह करने लगे. हालाँकि आर्यों कि लूट-पाट एवं मार-काट से सभी बिखर गए थे, फिर भी समय-समय पर संगठत होकर वे अपनी जीवटता और बहादुरी से आर्यों को चुनौती देते रहते थे.

इसके परिणामस्वरुप आर्यों और अनार्यों (मूलनिवासियों) के कई भयंकर युद्ध हुए. मूलनिवासियों के इस तरह के बार-बार संगठित विद्रोह से आर्य परेशान हो गए. तत्पश्चात आर्य इससे निपटने के लिए दूसरा उपाय ढूंढ़ने लगे. उत्पादन स्रोतों और साधनों पर हमेशा अपना कब्ज़ा बनाये रखने को लेकर वो षड्यंत्र करने लगे. इसके लिए आर्यों ने रणनीति के तहत मनगढंत धर्म, वेद, शास्त्र और पुराणों की रचना की. इन शास्त्रों में आर्यों ने यहाँ के मूलनिवासियों को अछूत, राक्षस, अमंगल और उनके दर्शन तक को अशुभ बता दिया. धर्म शास्त्रों में आर्यों का सबसे पहला वेद ‘ऋगुवेद’ है, जिसके 'पुरुष सूक्त' में वर्ण व्यवस्था का उल्लेख है. इसमें समाज व्यवस्था को चार वर्णों - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र में बांटा गया. पुरुष सूक्त में वर्णों की उत्पत्ति ब्रह्मा नाम के मिथक (झूठ) के शरीर से हुई बताई गई. इसमें कहा गया कि ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मणों की, भुजाओं से क्षत्रियों की, पेट से वैश्यों की तथा पैर से शूद्रों की उत्पत्ति हुई है. इस व्यवस्था में सबके काम बांटे गए. आर्यों ने बड़ी होशियारी से अपने लिए वो काम निर्धारित किए, जिनसे वो समाज में प्रत्येक स्तर पर सबसे ऊंचाई पर बने रहें और उन्हें कोई काम न करना पड़े. आर्यों ने इस व्यवस्था के पक्ष में यह तर्क दिया कि चूंकि ब्राह्मण का जन्म ब्रह्मा के मुख से हुआ है इसलिए ब्राह्मण का काम ज्ञान हासिल करना और उपदेश देना है. उपदेश से उनका मतलब सबको सिर्फ आदेश देने से था. क्षत्रिय का काम रक्षा करना, वैश्य का काम व्यवसाय करना तथा शूद्रों का काम इन सबकी सेवा करना था. क्योंकि इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के पैरों से हुई है. इस प्रकार आर्यों ने शूद्रों को पीढ़ी दर पीढ़ी सिर्फ नौकर बनाये रखने के लिए वर्ण व्यवस्था बना लिया.

इस प्रकार आर्यों ने अपने आपको सत्ता और शीर्ष पर बनाए रखने के लिए अपने हक में एक उर्ध्वाधर (खड़ी) समाज व्यवस्था का निर्माण किया. समाज संचालन और उसमें अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए समाज के प्रत्येक महत्वपूर्ण संस्थान जैसे शिक्षा और व्यवस्था पर अपने अधिकार को कानूनी जामा पहना कर अपना अधिकार कर लिया. वर्ण व्यवस्था को स्थाई और सर्वमान्य बनाने के लिए आर्यों ने झूठा प्रचार किया कि वेदों कि रचना ईश्वर ने की है और ये वर्ण व्यवस्था भी ईश्वर ने बनाई है. इसलिए इसको बदला नहीं जा सकता है. जो इसे बदलने की कोशिश करेगा भगवान उसको दंड देंगे तथा वह मरने के बाद नरक में जाएगा. आयों ने प्रचार किया की जो इस इश्वरीकृत व्यवस्था को मानेगा वह स्वर्ग में जाएगा. इस प्रकार मूलनिवासियो को ईश्वर, स्वर्ग और नरक का लोभ एवं भय दिखाकर अमानवीय एवं भेदभावपूर्ण वर्ण व्यवस्था को मानने के लिए बाध्य किया गया. मूलनिवासी अनार्यों ने इस अन्यायपूर्ण सामाजिक विधान को मानने से इंकार कर दिया. तत्पश्चात वर्ण व्यवस्था मृतप्राय हो गई और आर्यों की शक्ति और प्रभाव कमजोर होने लगा.

अपनी कमजोर स्थिति को देखकर मनु नाम के आर्य ने 'मनुस्मृति' नामक एक और सामाजिक विधान की रचना की. इस विधान में वर्ण व्यवस्था की श्रेणीबद्धता को बनाए रखते हुए एक कदम और आगे बढ़कर वर्ण में जाति और गोत्र की व्यवस्था बनाई. यानि मनु ने एक वर्ण के अन्दर अनेक जातियां बनाई और गोत्र के आधार पर उनमे उनमे उच्च से निम्न का पदानुक्रम निर्धारित किया गया, जिससे जातियों के भीतर उच्च और नीच की भावना का जन्म हुआ. मनु ने यह बताया कि चार वर्णों में से किसी भी वर्ण कि कोई भी जाति अपने से नीचे वर्ण कि जाति में कोई रक्त सम्बन्ध यानि शादी विवाह नहीं करेंगे अन्यथा वह अपवित्र और अशुद्ध हो जाएगा. सिर्फ समान वर्ण वाले ही आपस में रोटी-बेटी का रिश्ता कर सकते हैं . लेकिन मनु ने यहां भी चलाकी दिखलाई. उसने इस नियम को ब्राह्मणों के लिए लागू नहीं किया. ब्राह्मणों को इसकी छूट दी गई कि एक निम्न गोत्र का ब्राह्मण उच्च गोत्र के ब्राह्मण के यहाँ रोटी-बेटी का रिश्ता कर सकता था. इस तरह ब्राह्मणों की आपस में सामूहिक एकता बनी रही. यही नियम क्षत्रिय वर्ण में भी लागू रखा गया, जिससे क्षत्रिय भी एकजुट रहें. वैश्य में यह नियम लागू नहीं हुआ, जिसका परिणाम यह हुआ कि ये आपस में एकजुट नहीं हो सके और उच्च-नीच की भावना के कारण बिखरते रहे.

ऋगुवैदिक वर्ण व्यवस्था में जिसमें सभी मूलनिवासियों को रखा गया था. इसलिए उनमे सामुदिक भावना थी. वो अक्सर संगठित होकर आर्यों की वर्ण व्यवस्था और अमानवीय शोषण का विरोध करते रहते थे. मनु ने मूलनिवासियों की संगठन शक्ति को कमजोर करने के लिए नई चाल चली. उसने मनुस्मृति नामक वर्ण व्यवस्था के नए विधान में शूद्र वर्ण को जातीय पदानुक्रम के साथ-साथ दो जातीय समुदायों में बाँट दिया. शूद्र, समाज की सीढ़ी नुमा वर्ण व्यवस्था के सबसे निचले पायदान पर था इसलिए इस वर्ण की जातियों को अछूत भी कहा गया था. ऋगुवैदिक वर्ण व्यवस्था में तो इनसे जबरदस्ती गंदे और अमानवीय काम करवाए जाते थे इसलिए इनको अन्य वर्णों के लोग छूते नहीं थे अर्थात वहां पर कर्म के कारण मूलनिवासियों की स्थिति निम्न थी लेकिन आर्यों ने इस स्थति को स्थिरता प्रदान करने के किए शास्त्रों में पुनर्जन्म के सिद्धांत की रचना की और मनु ने सभी मूलनिवासियों को जिन्हें आर्यों ने अछूत बनाया था को कमजोर, अछूत और गुलाम बनाए रखने के लिए वर्ण व्यवस्था को जाति व्यवस्था में बदल दिया. इस व्यवस्था को बनाए रखने के लिए आर्यों ने समय-समय पर झूठे और आधारहीन धर्मंशास्त्र लिखें. आर्य भारत में मुग़लों के आने के बाद अपने आपको हिन्दू कहने लगे थे ताकि इससे उनके भारतीय मूलनिवासी होने का बोध हो. इस तरह भारत में जाति पैदा करने का श्रेय वर्तमान हिन्दुओं के पुरखों को जाता है. मनु की जाति व्यवस्था में जातियों की जनन क्षमता इतनी अधिक है कि आज जातियों की संख्या हजारों में पहुँच गई है और जाति का यह रोग भारत की सीमाएं लांघकर अमेरिका और ब्रिटेन तक पहुँच गया है.

हिन्दू गाली है

 हिन्दू गाली है 
ऐसा ब्राम्हणो का नेता स्वामी दयानंद सरस्वती ने कहा था। वे अपने आप को हिन्दू नही आर्य नस्ल के कहते थे,ब्राम्हण कहते थे। अब मोहन भागवत हिन्दू शब्द का प्रयोग क्यों करना चाहता है?
हिन्दू शब्द ब्राम्हणो के धर्म ग्रंथ में भी मिलता नही है।
रामायण,महाभारत,गीता,विष्णु पुराण,भागवत पुराण में भी हिन्दू शब्द नही मिलता, तो फिर हिन्दू है कौन?हिन्दू शब्द आया कहा से? हिन्दू शब्द पर्शियन भाषा का शब्द है।यह 12 वी शताब्दी में आया। हिन्दू शब्द का अर्थ काला चोर,काला डाकू,काले गुलाम और नाजायज यह होता है।इसके लिए सबूत के साथ यह पोस्ट कर रहा हु।
भारत के संविधान में हिन्दू शब्द नही है । sc, st, ओबीसी हिन्दू नही है। हिन्दू का अर्थ गंदी गालिया है। मोहन भागवत सबको हिन्दू क्यों कह रहा है?संविधान विरोधी शब्द हिन्दू,हिन्दुस्थान शब्दो का प्रयोग करके मोहन भागवत संविधान द्रोह कर रहा है फिर भी भागवत को राष्ट्रपति कोविंद जेल में क्यों नही डाल रहा है।
मोहन भागवत नाजायज ,चोर,डाकू,गुलाम हो सकता है भारत की प्रजा हिन्दू नही है।
विदेशी ब्राम्हणो ने evm पर नाजायज तरीके से कब्जा करने के कारण उनकी यह अवकाद बढ़ गयी है।
मोहन भागवत को खुली चुनोती किसी भी tv चनेल पर बहस करते है कि ब्राम्हण विदेशी है डीएनए के आधार पर और sc, st, ओबीसी हिन्दू नही।
एक बाप की अवलाद है तो बहस के लिए तैयार हो जा।
*-प्रा.विलास खरात.*


*जिस धर्म के धर्मसास्त्रों में ऐसी बातें लिखी है, क्या वह धर्म धर्माचरण करने लायक है*
जब हम पढ़े लिखे नहीं थे तो हमारी मजबूरी थी । लेकिन आज शिक्षित समाज को ऐसे धर्म के धर्माचरण क्यों करना चाहिए ?

1 - यह जो ब्राम्हण, क्षेत्रीय, वैश्य व शूद्र जो विभाजन है वह मेरा द्वारा ही रचा गया है।
         - :गीता 4-13

2 - मेरी शरण में आकर स्त्री ,वैश्य , शूद्र भी जिन कि उत्त्पति पाप योनि से हुई है, परम  गति को प्राप्त हो जाते है।
           -:भगवत गीता 9-32

3 - शूद्र का प्रमुख कार्य तीनों वर्णो की सेवा करना है।
         -: महाभारत  4/50/6

4 - शूद्र को सन्चित धन से स्वामी कि रक्षा करनी चाहिये।
    -:  महाभारत 12/60/36

5 - शूद्र तपस्या करे तो राज्य निर्धनता में डूब जायेगा।
      -: वाo .रामायण 7/30/74

6- ढोल .गवार .शूद्र पशु नारी  |
 सकल ताड़ना के अधिकारी ||
       -: रामचरित मानस 59/5

7- पूजिये विप्र सील गुन हीना, शूद्र न गुण गन ग्यान प्रविना।
            -:रामचरितमानस 63-1

8- वह शूद्र जो ब्राम्हण के चरणो का धोवन पीता है राजा उससे कर TAX न ले।
 -: आपस्तंबधर्म सूत्र 1/2/5/16

9 - जिस गाय का दूध अग्निहोत्र के काम आवे शूद्र उसे न छुये। 
  - : कथक सन्हिता 3/1/2

10- शूद्र केवल दूसरो का सेवक है इसके अतिरिक्त उसका कोइ अधिकार  नही है।
  -: एतरेय ब्राम्हण 2/29/4

11- यदि कोइ ब्राम्हण शूद्र को शिक्षा दे तो उस ब्राम्हण को चान्डाल की भाँति त्याग देना चाहिये।
    -: स्कंद पुरान  10/19

12 - यदि कोइ शूद्र वेद सुन ले तो पिघला हुआ शीशा, लाख उसके कान में डाल देना चाहिये।
यदि वह वेद का उच्चारण करे तो जीभ कटवा देना चाहिये। वेद स्मरण करे तो मरवा देना चाहिये।
  -: गौतम धर्म शूत्र 12/6

13 - देव यज्ञ व श्राद्ध में शूद्र को बुलाने का दंड 100 पर्ण।
     - : विष्णु स्मृति 5/115

14 - ब्राम्हण कान तक उठा कर प्रणाम करे, क्षत्रिय वक्षस्थल तक, वैश्य कमर तक व शूद्र हाथ जोड़कर एवं झुक कर प्रणाम करे।
 -: आपस्तंब धर्म शूत्र 1,2,5,/16

15 - ब्राम्हण की उत्पत्ति देवता से, शूद्रो की उत्पत्ति राक्षस से हुई है।
 -: तेत्रिय ब्राम्हण 1/2/6/7

17 - यदि शूद्र जप ,तप, होम करे तो राजा द्वारा दंडनिय है।
  -: गौतम धर्म सूत्र  12/4/9

17- यज्ञ करते समय शूद्र से बात नहीं करना चाहिये।
  -: शतपत ब्राम्हाण 3;1/10

18- जो शूद्र अपने प्राण, धन तथा अपनी स्त्री को, ब्राम्हण के लिए अर्पित कर दे ,उस शूद्र का भोजन ग्राहय है।
    - : विष्णु पुराण 5/11

👉महाभारत"कहती है - शूद्र राजा नहीं बन सकता।

👉"गीता" कहती है - शूद्र को ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों की गुलामी करनी चाहिए ।

👉"रामायण" कहती है - शूद्र को ज्ञान प्राप्त करने पर मृत्युदंड मिलना चाहिए ।

👉"वेद" कहते है कि शूद्र ब्रह्मा के पैरोँ से पैदा हुआ है इसिलिये वो नीच है ।

👉"मनुस्मृति" के अनुसार - शूद्र का कमाया धन ब्राह्मण को बलात् छीन लेना चाहिए ।

👉"वेद" कहते है - शूद्र का स्थान ऊपर के तीनों वर्णों के चरणों में है। तीनों वर्णों की सेवा करना हीं उसका धर्म है ।

👉"पुराण" कहते हैं - शूद्र केवल गुलामी के लिए जन्म लेते हैं ।

👉"रामचरित मानस" कहती है - शूद्र को पीटना धर्म है ।

फिर भी एक सहनशील "शूद्र" अब भी इन हिंसक धर्म ग्रंथो और इन देवी देवताओं को सीने से लगाए फिरता है ।
*जागो शुद्रों जागो*
*गुलामी की बेड़ियॉ तोड़ डालो*
*ब्राहमणवाद को इस देश से समाप्त कर डालो*



 मलेशिया की राजधानी कुआलालम्पुर में प्रथम विश्व दलित सम्मेलन में साहब कांशीराम का भाषण..


*जातिविहीन समाज की स्थापना के लिए आपको देश का हुक्मरान बनना होगा* :


मलेशिया की राजधानी कुआलालम्पुर में प्रथम विश्व दलित सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर, मुख्या वक्त के रूप में मान्यवर कांशी राम जी ने जनता को सम्भोधित करते हुए कहा की सबसे पहले मै आपको जातिविहीन समाज के निर्माण की दिशा में इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन करने के लिए हार्दिक बधाई देना चाहता हुँ.. मुझे दुःख है की पार्टी के कार्यो में अति व्यस्तता के कारण मै इस अवसर पर दिए जाने वाले अपने भाषण को लिख नहीं पाया, इसलिए मै सीधे ही आपसे मुखातिब हो रहा हुँ.


जाती का विनाश :


सन 1936 में लाहौर के जात-पात तोड़क मंडल ने बाबासाहब अम्बेडकर से जाती विषय पर उनके द्वारा लिखे गए निबंध को मंडल के अधिवेशन में पढ़ने के लिए आमंत्रित किया.. लेकिन उस अधिवेशन में बाबासाहब अम्बेडकर को वह निबंध प्रस्तुत नहीं करने दिया गया, वह निबंध बाद में एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया, जिसका शीर्षक था, “एनिहिलेशन ऑफ़ कास्ट” (Annihilation of Caste) “अर्थात जाती का विनाश”. 1962-63 में जब मुझे इस पुस्तक को पढ़ने का मौका मिला, तो मुझे भी ऐसा महसूस हुआ की शायद जाती का विनाश संभव है, लेकिन बाद मै मैंने जाती व्यवस्था और जातीय आचरण का गहराई से अध्यन किया तो मेरी सोच में परिवर्तन आने लगा.. मैंने जाती का अध्यन महज किताबो से नहीं, बल्कि असल जिंदगी से किया है, जो लोग करोडो की संख्या में अपने-अपने गाँव छोड़कर दिल्ली, मुंबई, कोलकाता तथा अन्य बढे-बढे शहरो में आते है, वे अपने साथ और कुछ नहीं बल्कि अपनी जाती को लाते है.. वे अपने छोटे-छोटे झोपड़े छोटी-छोटी जमीने और मवेशी आदि सब कुछ पीछे गाँव में ही छोड़ आते है और केवल अपनी जाती को साथ लेकर ही शहर की गन्दी बस्तियों, नालो, रेल की पटरियों के किनारे बस जाते है.. अगर लोगो को अपनी जाती इतनी ही प्रिय है, तो हम जाती का विनाश कैसे कर सकते है? इसलिए मैंने जाती के विनाश की दिशा में सोचना बंद कर दिया..


आप लोगो ने जातिविहीन समाज की दिशा में बढ़ने के उद्देश्य से इस सम्मेलन का आयोजन किया है; मेरा उद्देश्य भी एक जाती-विहीन समाज की स्थापना करना है, लेकिन जाती कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसे मात्र आपके चाहने भर से नष्ट किया जा सकता है.. जाती को नष्ट करना लगभग असंभव है, तो हमे क्या करना चाहिए ?


जाती के निर्माण के पीछे एक विशेष उद्देश्य है :


जाती का निर्माण बिना किसी उद्देश्य के नहीं किया गया है, इसके पीछे एक गहरा उद्देश्य और स्वार्थ छिपा हुआ है.. जब तक यह उद्देश्य अथवा स्वार्थ जिन्दा रहता है, जाती का विनाश नहीं किया जा सकता.. आप ब्राह्मणो अथवा सवर्ण जातियों को इस प्रकार जातीविहीन समाज की पुनरस्थापना के लिए सम्मेलन, विचार-गोष्ठी आदि आयोजित करते हुए नहीं देखेंगे.. ऐसा इसलिए है, क्योकि जाती का निर्माण इन्ही वर्गों द्वारा अपने नीच स्वार्थो की पूर्ति के लिए किया गया है, जाती के निर्माण के कारण केवल मुट्ठी भर सवर्ण जातियों को ही फायदा हुआ है और 85 प्रतिशत बहुजन समाज को पिछले हज़ारो वर्षो से पीढ़ी-दर-पीढ़ी नुक्सान ही होता रहा है और वे अपमान और शोषण का शिकार बनते रहे है.. अगर जाती के निर्माण से सवर्ण वर्गों को ही फायदा होता रहा है, तो भला वे इसके विनाश के लिए पहल क्यों करेंगे ? इस तरह की कॉन्फ्रेंस(सम्मेलन) केवल हम लोग ही आयोजित कर सकते है, क्योकि हम जाती व्यवस्था के शिकार है.. इसका फायदा पाने वालो को जाती के विनाश में कोई रूचि नहीं हो सकती, बल्कि वे तो जाती व्यवस्था को और अधिक मजबूत देखना चाहते है, ताकि जाती के आधार पर उन्हें मिलने वाली सभी सुविधाये भविष्य में भी जारी रहे..


इस सभाग्रह में जो लोग बैठे है, उनमे से अधिकांश शायद आज स्वयं परोक्ष रूप से जाती के शिकार न हो; लेकिन हम सभी का जन्म ऐसे लोगो अथवा समाज के बीच हुआ, जोकि जाती के शिकार है.. इसलिए हमे जाती के विनाश की दिशा में सोचने की जरुरत है..


लेकिन जब हम जाती के विनाश की बात करते है, तो इसके लिए भी सर्वप्रथम जाती के अस्तित्व को स्वीकारकरना होगा.. जाती की अनदेखी अथवा उपेक्षा करके हम जाती का विनाश नहीं कर सकते है..


हमारे अंदर जातीविहीन समाज का निर्माण करने की भावना हो सकती है, लेकिन इसके साथ यह भी सत्य है की निकट भविष्य में जाती के विनाश की सम्भावना लगभग न के बराबर है.. तो जब तक जाती का पूरी तरह विनाश न हो जाये, तब तक हमे क्या करना चाहिए ? मेरा यह मानना है की जब तक हम जातीविहीन समाज की स्थापना करने में सफल नहीं हो जाते, तब तक जाती का उपयोग करना होगा अगर ब्राह्मण जाती का उपयोग अपने फायदे के लिए कर सकते है, तो मै उसका इस्तेमाल अपने समाज के हित में क्यों नहीं कर सकता ?


दोधारी तलवार :


जाती एक दोधारी तलवार के समान है, जो दोनों तरफ से काटती है.. अगर आप इसे इस तरफ से चलाए(अपने हाथ को दाई तरफ ले जाते हुए), तो यह इस तरफ काटती है; अगर आप इसे दूसरी दिशा मे ले जाए(हाथ को बाई तरफ लहराते हुए),तो यह दूसरी तरफ से काटती है.. तो मैने जाती को दोधारी तलवार की तरह इस्तेमाल करना शुरू किया की इसका फ़ायदा बहुजन समाज को मिले और उच्च वर्ग को इसका फ़ायदा पहुँचना बंद हो जाए.. बाबासाहब अंबेडकर ने जाती के आधार पर ही अनुसूचित जाती और अनुसूचित जनजाति के लोगो को उनके सामाजिक और राजनैतिक अधिकार दिलाए.. जाती का सहारा लेकर ही उन्होने सन 1931/32 राउंड टेबल कान्फरेन्स मे इन वर्गो के लिए पृथक निर्वाचन की व्यवस्था करवाई.. लेकिन इस मुद्दे पर गाँधीजी के आमरण अनशन के कारण, इन वर्गो को पृथक निर्वाचन का अधिकार खोना पड़ा..


पृथक निर्वाचन :


कई लोग मुझसे अक्सर पूछते है की जिस तरह बाबासाहब अंबेडकर ने पृथक निर्वाचन के लिए संघर्ष किया, उसी प्रकार का संघर्ष आप भी क्यो नही शुरू करते ? आज तक मैने अपना एक भी मिनट पृथक निर्वाचन के मामले मे खराब नही किया है, अगर पृथक निर्वाचन अधिकार बाबासाहब अंबेडकर द्वारा ब्रिटिश शासन के दौरान भी संभव नही हो सका, तो आज यह मेरे लिए किस प्रकार संभव हो सकता है, जब की देश मे मनुवादी समाज के लोगो का राज है.. आज यह एकदम असंभव है..


जाती के विशेषज्ञ :


बाबासाहब अंबेडकर ने अनुसूचित जातियो और अनुसूचित जनजातियो के लोगो को जाती के हथियार का इस्तेमाल करने लायक बनाया था, इसी कारण वे ब्रिटिश हुकूमत से इन वर्गो के लिए कई सुविधाए जुटाने मे सफल रहे.. लेकिन अंग्रेज़ो के भारत छोड़ने के बाद केवल तीन लोग ही ऐसे रहे है, जिन्हे जाती के हथियार को इस्तेमाल करने मे महारत हासिल है, सबसे पहले व्यक्ति जवाहर लाल नेहरू थे, दूसरी श्रीमती इंदिरा गाँधी थी और तीसरा व्यक्ति कांशी राम है.. (तालिया)


नेहरू ने जाती के हथियार को इतनी निपुणता और कामयाबी के साथ इस्तेमाल किया की बाबासाहब अंबेडकर लगभग असहाय से हो गये.. नेहरू जाती के उपयोग एवम् मनुवादी सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने की कला मे पारंगत थे, उनके बाद श्रीमती इंदिरा गाँधी भी जाती का हथियार चलाने और ब्राह्माणवादी व्यवस्था को उसका लगातार फ़ायदा पहुँचाने के खेल मे माहिर थी.. लेकिन आज अगर दिल्ली के किसी भी कांग्रेसी से आप पूछे की क्या आपको जाती के इस्तेमाल से कोई फ़ायदा मिल रहा है ? तो वो यही कहेंगे, “नही हमें जाती का कोई लाभ नही मिल रहा है, हमें नही मालूम की किस तरह जाती से फ़ायदा उठाया जा सकता है, यह तो सिर्फ़ कांशीराम को मालूम है की किस तरह जाती का इस्तेमाल अपने हित मे किया जा सकता है



 #ब्राह्मण (इस धरती के )शैतान हैं । कैसे ?

1) छूत - अछूत किसने बनाया* #ब्राह्मण* नें।
2 ) एकलव्य का अंगुठा किसनें काटा *#ब्राह्मण* नें।
3 ) वर्ण व्यवस्था किसने बनाई *#ब्राह्मण* नें।
4 ) वर्ण व्यवस्था मे शुद्रों को शिक्षा से वंचित किसने किया *#ब्राह्मण* नें।
5 ) शुद्रों को 6743 जातियों में किसने बाँटा *#ब्राह्मण* नें ।
6 ) छत्रपती शिवाजी महाराज को शुद्र कह कर राज्याभिषेक का विरोध एवं बायें पैर के अंगूठे से तिलक किसनें किया *#ब्राह्मण* नें।
7 ) छत्रपती शिवाजी महाराज की धोखे से हत्या किसने की *#ब्राह्मण* नें।
8 ) मौर्यवंश के अंतिम शासक बृहद्रथ मौर्य की हत्या किसने की *#ब्राह्मण* नें।
9) भगवान बुद्ध के देश को अन्धविश्वास और जातियों में किसने बांटा *#ब्राह्मण* नें ।
10 ) राष्ट्रपिता जोतीराव फुलें का विरोध किसने किया *#ब्राह्मण* नें ।
11 ) माता सावित्रीबाई फुलें को लड़कियों को शिक्षा देने की वजह से उनके ऊपर गोबर फेक कर किसने मारा *#ब्राह्मण* नें ।
12 ) गो हत्या पाप है , ऋग्वेद में विष्णु को गाय की बली देने का आदेश किसने दिया ।*#ब्राह्मण* नें।
13)भारत देश के मूलनिवासियों को गुलाम किसने बनाया  *#ब्राह्मण* नें।
14 ) डॉ बाबासाहब आंबेडकर का विरोध कौन करता था *#ब्राह्मण*।
15 ) शुद्रों को मंदिर मे जाने से किसने रोका *#ब्राह्मण* नें।
16 ) भारत देश मे मनुस्मृति का कानून किसने लागू किया  *#ब्राह्मण* नें।
17 ) संत तुकाराम महाराज की हत्या किसने की  *#ब्राह्मण* नें।
18 ) मुगलों ( भारत के मुसलमान अपनें को मुगल न समझें , भारत के मुसलमान ओबीसी , एससी , एसटी से धर्म परिवर्तित लोग हैं ) द्वारा दी हुई गाली हिंदू जिसका अर्थ काला चोर , डाकू एवं काफिर होता है। हिन्दू शब्द का इस्तेमाल करके मुगलों की वफादारी कौन कर रहा है *#ब्राह्मण* ।
19 ) शुद्रों के गले मे मट्का , कमर में झाड़ू और सर पर चपल किसने  लगवाया *#ब्राह्मण* नें।
20 ) 52 साल तक किसनें अपनें संगठन के मुख्यालय पर भारत देश का तिरंगा नहीं लहराया। 2002 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से लहराना शुरू किया। *#ब्राह्मण* नें ।

इससे साबित है कि भारत देश के मूलनिवासी बहुजन समाज के लोगों के दुश्मन केवल और केवल ब्राह्मण हैं अन्य कोई नही!
मूलनिवासी बहुजन समाज के जो लोग ब्राह्मणों एवं उनके संगठनों / राजनीतिक पार्टियों से जुड़े हुए हैं। ऐसे लोग ब्राह्मणों के दलाल , भड़वे एवं पिछलग्गू लोग हैं। यही लोग मूलनिवासी बहुजन समाज की बर्बादी के कारण हैं। ऐसे लोग ब्राह्मणों के पालतू कुत्ते हैं , जो ब्राह्मणों के तलवे चाटने का काम करते हैं और ब्राह्मणों के इशारे पर अपनें ही समाज के लोगों को काटनें का कार्य करते हैं। दुश्मनों से पहले मूलनिवासी बहुजन समाज के लोगों को ऐसे दलाल , भड़वे एवं पिछलग्गुओं की खबर लेनी चाहिए। बोल 85 जय मूलनिवासी। ब्राह्मण विदेशी। 🙏🤝💪


**   धर्म और ईश्वर  **

    मार्क्स ने कहा धर्म अफीम है। लेलिन ने कहा धर्म एक निजी मामला नहीं है। आज हमारे बीच ये लोग नहीं रहें। मगर धर्म है। मार्क्स- लेलिन के सिद्धांत पुराने पड़ चुके हैं। लेकिन धर्म पुराना हो कर भी खत्म नही हुआ। यह निरंतर फैल रहा है, या कहें हम धर्म को अपनी सुरक्षा के लिए फैला रहे है। हम डरे हुए हैं। धर्म से अलग नहीं होना चाहतें हैं। धर्म और ईश्वर हमारा सहारा है। यहां हर कोई धर्म और ईश्वर की छतरी में खुद को सुरक्षित महसूस करता है ।
       धर्म कितना ही अफीम हो, मगर हम उसे खाने से कभी कोई कोताही नहीं बरतते। धर्म को जबरन निजी मामला बताकर अपनी धर्मांधता दुसरो पर थोपना चाहते हैं। हमें अपने माता-पिता के समक्ष नतमस्तक होने में परेशानी हो सकती है, मगर धर्म के नही। बेसक सदी और समय बदल रहा है, मगर धर्म नहीं​ । धर्म की प्रवृत्ति​ नहीं। धर्म के मान्यताएं नहीं। धर्म को हमने अफीम के सहारे लड़ने- मरने का हथियार बना लिया है। धर्म के बीच गहरी मगर घातक बहस चल पड़ी है कि उसका धर्म मेरे धर्म से श्रेष्ठ कैसे।
                     मैक्सिम गोर्की ने कहा था ईश्वर खोजें नहीं जाते, उनका निर्माण किया जाता है। हम ईश्वर को इस लिए खोजने जाते हैं, ताकि हमारा उद्धार हो सके। हम धर्म से चिपके रहते हैं, ताकि संकट से बचें रहे। कमाल देखिए हम २१ वीं सदी में भी धर्म और ईश्वर की खोज में व्यस्त हैं। ईश्वर प्रसन्न करने अमरनाथ तक हो आते है । धर्म बचा रहे इस लिए उसे बाजार से जोड़ रहे हैं। दिन के 24घंटे में से 23.99घंटे धर्म और ईश्वर की शरण में ही बिताना चाहते हैं। हमारे दिमाग में बेहद गहराई से यह भर दिया गया है कि खबरदार जो धर्म और ईश्वर से अलग हुए तो....... अनर्थ हो जायेगा। अनर्थ कहने बताने वाले खुब जमकर " पैसा " बटोर रहे हैं धर्म के जानकार शानदार गाड़ियों में घुम रहे हैं। लैपटॉप की सहायता से हमारा- आपका भविष्य बता रहे हैं। धर्म और ईश्वर उनके गुलाम है। उन्हें जब, जैसे, जहां चाहे चलाएं। जनता उनके लिए पागल है। लोग उनकी भविष्यवाणी में अपना सुख खोज रही है।
              मार्क्स और लेनिन की धर्म पर दी गई स्थापनाएं अब किताबी से अधिक कुछ नहीं लगती । ऐसा इसलिए है क्योंकि धर्म और ईश्वर के प्रति हमारी अंध-भक्ति ने हर प्रगतिशील विचारधारा को ध्वस्त कर दिया है धर्म इस लिए सफल हो सका क्योंकि हमने कुपमंडुता से बाहर निकल की कभी कोशिश ही नहीं की। जहां डर होगा, वहां ईश्वर होगा ही होगा, यह मानकर चलें।
     आप मानकर चलें अब धर्म पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो गया है। यह सहिष्णुता की हदों को पार कर चुका है। यहां भुख का भी धर्म है। बाजार का भी धर्म है। आतंकवाद का भी धर्म है।जाति का भी धर्म है। विचार और सोच का भी धर्म है। आज धर्म मार्क्स की अफीम से कहीं ज्यादा खतरनाक है। अब धर्म को राजनीति और आतंकवाद पाल रहे हैं।
        जहां और जिसे डर लगता है बस धर्म और ईश्वर की शरण में चले जाओ। यही हमें हरदम पढ़या और सिखाया जा रहा है।अब खुद पर विश्वास करना बंद कर दिया है। क्योंकि हमारे डर के लिए धर्म और ईश्वर मौजूद है।
            धर्म और ईश्वर की वहशियत में मर जाना मंजूर है, लेकिन उसे त्यागना नहीं।
             हम नहीं समझ रहे हैं, मगर सौ फीसद सत्य है कि आंतकवाद धर्म के रास्ते ही हमारे बीच आया है। अब यह हमें निरंतर मार और परेशान कर रहा है। हद है कि हम न धर्म को छोड़ना चाहते हैं न ईश्वर को।तो ऐसे ही रोते-बिलखते रहिए, जब तक धर्म और ईश्वर का डर हमारे बीच मौजूद है ।



 *🙏कैसे कह दूँ हम हिन्दू है?🙏*

*👉2⃣0⃣1⃣7⃣ की वो  घटनाएं है जो अछूतों के साथ घटी है वह भी मुस्लिम द्वारा नही खुद हिंदुओं द्वारा।*


*1⃣राजा रावण के साथ बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा को जलाया गया।*

*2⃣रावण दहन के समय ज्योतिबा फुले आदि की मूर्ति का भी दहन किया गया।*

*3⃣गुजरात में तो गरबा देखने में अछूत को मार ही डाला गया।*

*4⃣गांधीनगर,  गुजरात में अछूतों के मूछ रखने पर हमला किया गया मारा पीटा गया।*

*5⃣भारत में ही अनेको जगह मंदिर जाने पर अछूतों को मारा पीटा गया।*

*6⃣भारत में ही मूर्ति विसर्जन करने पर अछूतों की मार पीटकर टाँगे तोड़ दी गई।*

*7⃣राजस्थान में अछूत की बेटी नल से पानी लेली तो सवर्णो ने उसे बुरी तरह पिट पिट कर अधमरा कर दिया।*

*8⃣आगरा में तो अछूत को नल से पानी नही भरने दिया गया उसके साथ भी मार पिट की गई।*

*👉और यह सब घटना को अंजाम देने वाले मुसलमान नही थे। अपने आपको हिन्दू कहने वाले लोग थे। फिर कैसे कह दूँ कि मुझे हिन्दू होने पर गर्व है? कोई बतायेगा?*

*👉हिन्दू राष्ट्र की कल्पना पाले बैठे हमारे देश के कई संगठन और राजनैतिक पार्टियां तथा व्यक्ति विशेष यह जान लें कि ऐसा हिंदुत्व तालिबान से भी खतरनाक है अछूतों के लिए।*

*👉👉आतंकवादी गतिविधियों से जितने पुरे विश्व में बेगुनाह मारे जाते हैं वह भारत में हिंदुत्व की वजह से मरने वाले बेगुनाहों का एक चौथाई हिस्सा है।*

*👉👉अब सोचिये विचार करिए की यह कैसा हिंदुत्व है? कैसी विचारधारा और संस्कार,हिन्दू धर्म का है?*

*👉इस हिंदुत्व में सबसे बड़ी बात यह है कि कोई भी संगठन, पार्टी, व्यक्ति इसके खिलाफ दो शब्द कहने को हिम्मत नही जुटा पाता। एक पहलू खान गाय के चक्कर में मारा गया, एक हिन्दू ऑस्ट्रेलिया, कनाडा में रंगभेद की वजह से मारा गया, इण्डिया गेट में मोमबत्तियां जलती है, सोशल मीडिया में विरोध प्रकट होता है लेकिन एक व्यक्ति इसलिए मारा जाता है क्योंकि उसने गरबा देखा, मूँछे रखी, सोचिये कहाँ है हम? और कुछ भी नही होता। भारत के संविधान निर्माता का रावण के साथ फोटो जलाया जाता है इससे गिरा हुआ समाज कहीं और नही मिलेगा आपको।। हर व्यक्ति के मन केवल नफरत और जहर बढ़ रहा है बस और कुछ नही।*

फैसला आप को करना होगा