आसमानी या अपौरुषेय किताबों का या विश्वगुरु के अहंकार का आभामंडल इतना असुरक्षित और डरपोक होता है कि वो बच्चों और स्त्रियों के प्रश्नों से सबसे अधिक डरता है. इसीलिये ऐसे समाज के लोग पठन-पाठन का अधिकार अपनी बड़ी जनसंख्या को और स्त्रियों को नहीं देना चाहते. भारतीय होशियारों ने इस विषय में महारथ हासिल कर ली थी. उन्होंने इस काम लिये वर्ण और जाति व्यवस्था ही बना डाली थी और वर्णाश्रम को ही धर्म बना डाला था, और ये व्यव्वस्था उनके आधिपत्य को बनाये रखने के लिए यह बहुत हद तक सफल भी रही. अलबरूनी ने अपने यात्रा संस्मरणों में लिखा है कि काश भारत जैसी जाति व्यवस्था हमारे पास होती तो हम भी करोड़ों लोगों को सैकड़ों हजारों साल गुलाम रखकर निष्कंटक राज करते और दबी कुचली कौमें कोई आवाज भी न उठा पातीं. अलबरूनी की भारत से ये इर्ष्या बहुत महत्वपूर्ण है. वह स्वयं जिस समाज से आ रहे हैं वहां कभी ज्ञान के फूल खिले थे लेकिन बाद में सब रेगिस्तान हो गया.
भारत में भी श्रमणों (बौद्धों, जैनों), लोकायतों, आजीवकों के युग में ज्ञान विज्ञान की बहुत खोज हुई थी और आज गिनाई जाने वाली सारी सफलताएं उसी दौर की हैं. शून्य, रेखागणित, अंकशास्त्र, खगोल, व्याकरण, भेषज, धातुविज्ञान, आयुर्वेद, योग और मनोविज्ञान (जो कि अध्यात्म में पतित हुआ) की खोज श्रमणों अर्थात बौद्धों और जैनों ने की थी. तांत्रिक अनुशासन के साथ लोकायतों ने भारी काम किया था. लेकिन वेद वेदान्त के प्रसार के साथ ज्ञान विज्ञान की ये प्रेरणाएं समाप्त होने लगीं और खगोलशास्त्र ज्योतिष बन गया, रसायन और भेषज जादूगरी और राजगुरुओं की गोपनीय विद्या बन गयी और एक वर्ण विशेष के लोगों के रोजगार की चिंता ने समूचे दक्षिण एशिया की ज्ञान की परम्पराओं का नाश कर डाला. राजसत्ता और व्यापरसत्ता को लग्न, मुहूर्त, ज्योतिष और कर्मकांड से डराकर गुलाम बनाया गया और शेष समाज को अंधविश्वास के दलदल में ऐसा डुबोया कि वो आज तक बाहर नहीं निकल सका है. खगोल के ज्योतिष में पतन पर अलबरूनी ने विस्तार से चर्चा करते हुए गजब की टिप्पणियाँ की हैं, वे पढ़ने योग्य हैं.
http://www.dalitdastak.com/news/why-religious-india-feared-from-education-and-knowledge--2861.html
अब शूद्र शिक्षित हो गए तो भगवानो के पास सवालों का उपयुक्त जवाब नहीं है।
1: ब्राह्मा के मुख से ब्राह्मण कैसे पैदा हुए बताओ----मनु जी
2:पत्थर पानी मे कैसे तैर गये बताओ-----राम जी
3:आदमी के सिर पर हाथी का सिर कैसे फिट हुआ बताओ----शंकर जी
4:बन्दर पर्वत लेकर कैसे उड़ा बताओ----हनुमानजी
5:एक अगुंली पर पर्वत कैसे उठाया बताओ-----कृष्ण जी
6: फलों की खीर खाने से बच्चे कैसे पैदा हुए बताओ-----दशरथजी
7:पृथ्वी नाग के फण पर कैसे टिकी है बताओ---ब्रह्मा जी
8:गंगा नदी जटाओ से कैसे बह सकती है बताओ----शंकर जी
9:और अब ये आविष्कार कैसे बन्द हो गये बताओ---पण्डित जी
भारत में भी श्रमणों (बौद्धों, जैनों), लोकायतों, आजीवकों के युग में ज्ञान विज्ञान की बहुत खोज हुई थी और आज गिनाई जाने वाली सारी सफलताएं उसी दौर की हैं. शून्य, रेखागणित, अंकशास्त्र, खगोल, व्याकरण, भेषज, धातुविज्ञान, आयुर्वेद, योग और मनोविज्ञान (जो कि अध्यात्म में पतित हुआ) की खोज श्रमणों अर्थात बौद्धों और जैनों ने की थी. तांत्रिक अनुशासन के साथ लोकायतों ने भारी काम किया था. लेकिन वेद वेदान्त के प्रसार के साथ ज्ञान विज्ञान की ये प्रेरणाएं समाप्त होने लगीं और खगोलशास्त्र ज्योतिष बन गया, रसायन और भेषज जादूगरी और राजगुरुओं की गोपनीय विद्या बन गयी और एक वर्ण विशेष के लोगों के रोजगार की चिंता ने समूचे दक्षिण एशिया की ज्ञान की परम्पराओं का नाश कर डाला. राजसत्ता और व्यापरसत्ता को लग्न, मुहूर्त, ज्योतिष और कर्मकांड से डराकर गुलाम बनाया गया और शेष समाज को अंधविश्वास के दलदल में ऐसा डुबोया कि वो आज तक बाहर नहीं निकल सका है. खगोल के ज्योतिष में पतन पर अलबरूनी ने विस्तार से चर्चा करते हुए गजब की टिप्पणियाँ की हैं, वे पढ़ने योग्य हैं.
http://www.dalitdastak.com/news/why-religious-india-feared-from-education-and-knowledge--2861.html
अब शूद्र शिक्षित हो गए तो भगवानो के पास सवालों का उपयुक्त जवाब नहीं है।
1: ब्राह्मा के मुख से ब्राह्मण कैसे पैदा हुए बताओ----मनु जी
2:पत्थर पानी मे कैसे तैर गये बताओ-----राम जी
3:आदमी के सिर पर हाथी का सिर कैसे फिट हुआ बताओ----शंकर जी
4:बन्दर पर्वत लेकर कैसे उड़ा बताओ----हनुमानजी
5:एक अगुंली पर पर्वत कैसे उठाया बताओ-----कृष्ण जी
6: फलों की खीर खाने से बच्चे कैसे पैदा हुए बताओ-----दशरथजी
7:पृथ्वी नाग के फण पर कैसे टिकी है बताओ---ब्रह्मा जी
8:गंगा नदी जटाओ से कैसे बह सकती है बताओ----शंकर जी
9:और अब ये आविष्कार कैसे बन्द हो गये बताओ---पण्डित जी
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