Friday 8 June 2018

पढालिखा होना और लिखापढा होना दोनो में अंतर होता है।

*पढालिखा होना और लिखापढा होना दोनो में अंतर होता है।*

📚📚📚📚📚📚📚📚

*किसी भी व्यक्ति के शिक्षा का स्तर इससे नहीं मापा जा सकता कि उसने कितनी डिग्रियां प्राप्त की हैं। या कौनसे युनिव्हर्सिटी में पढा है। और किसी भी व्यक्ति के शिक्षा का स्तर इससे भी पता नहीं चलता कि उसने कितनी किताबें पढ़ी हैं।*

*किसी भी व्यक्ति के शिक्षा का स्तर इससे पता चलता है कि उसने खुद की कितनी स्वतंत्र सोच विकसित की है। व्यक्ति चाहे कितनी भी डिग्रियां प्राप्त कर ले, अगर वह अपनी सोच को विकसित नहीं कर पाया तो इसका कोई भी मतलब नही है कि वो कितना पढ़ा है।*

अगर आपने स्कूल में पढ़ा हो की, रावण के दस सिर थे और आपने मान लिया तो आपकी शिक्षा का कोई मतलब नहीं है। आपकी शिक्षा का मतलब तब है, जब आपने उस पर सवाल उठा दिया कि ऐसा कैसे संभव है? आपकी शिक्षा का पता तब चलता है, जब आपके यहाँ किसी बच्चे ने जन्म लिया और आप उसका नाम रखवाने के लिए ब्राह्मण के पास चल दिए। तो इससे पता चलता है कि आपने सिर्फ किताबें पढ़ी हैं लेकिन शिक्षित नहीं हुए। आपकी शिक्षा का पता तब चलता है, जब आप मृतक को स्वर्ग का टिकट दिलाने के यज्ञ और हवन करवाते हैं। 
*स्वतंत्र सोच का विकास करना ही शिक्षा है।*

 ये शिक्षा नहीं है, कि आपको बता दिया कि हरिश्चन्द्र एक सत्यवादी राजा था और आपने मान लिया। बल्कि शिक्षा ये है कि आपने सवाल उठा दिया कि वह राजा सत्यवादी कैसे हो सकता है? जिसने सिर्फ एक सपने के आधार पर अपना सब कुछ एक ब्राह्मण को दान दे दिया। ये सत्यवादिता नहीं बल्कि मूर्खता है। शिक्षा ये है कि आपने सवाल कर दिया कि अपनी पत्नी और बच्चे को बेचने वाला कोई भी आदमी सत्यवादी कैसे हो सकता है?
मूर्खता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या होगा कि हम 15 - 20 साल पढ़ाई में ख़त्म करने के बाद एक पाँचवी फेल ब्राह्मण से सलाह लेते हैं।

कि हमको क्या करना चाहिए या क्या नही करना चाहिए?

मतलब आप IIT IIM से इंजिनियर है।  वकील, डॉक्टर, IAS IPS PCS नेता अभिनेता उद्योगपती बनकर भी इस लायक नही हुए कि अपना निर्णय खुद ले सकें। 
आपमें इतनी क्षमता विकसित नही हुई है, जितनी एक पांचवी फेल ब्राह्मण में है। आप अपनी कमाई के बीस पचीस लाख खर्च करके घर बनाना चाहते हैं, पैसे आपके और किसी ब्राह्मण से पूछते हैं कि घर कब बनाना है ?

*आप दिमाग से अपाहिज हैं जो अपने घर का निर्माण करने का निर्णय भी खुद नही कर सकते ?*

चले पूछने ब्राह्मण से घर कब बनेगा ?

और जब घर बनवाने की बारी आई, तब भी शुरुआत करने वो पाँचवी फेल  ब्राह्मण ही आएगा और उससेही आप पुचेंगे घर का मुख किस दिशा में होगा।

बच्चा आपने पैदा कर लिया लेकिन पंद्रह बीस साल उच्चशिक्षा पढेलिखे हो, फिर भी इतना नही सीख पाए कि अपनेही बच्चों का नाम भी खुद रख पायें । 

बच्चा आपका है या पांचवी फेल ब्राह्मण का?

अब बात शादी की आई तो ये भी तय आप नही कर सकते कि आप शादी कब करोगे ? 
आपको शादी कब करनी है ये भी एक पांचवी फेल ब्राह्मण बताएगा ?
आपको लड़की / लड़का पसंद है, आपके परिवार वालों को भी पसंद है लेकिन एक पांचवी फेल ब्राह्मण ने कह दिया कि इससे शादी करना अच्छा नही होगा इसकी जन्मपत्री में मंगल है। और आप शादी तोड देते हो तो आप पंद्रह बीस साल खर्च करके पढे हो फिर भी उस पांचवी फेल ब्राह्मण से तुच्छ ही साबित हुए । 

आप जीवन भर पाँचवी फेल ब्राह्मणों के आगे झुकते रहे लेकिन जब मरोगे तब भी ये ही पांचवी फेल ब्राह्मण तय करेगा कि आपका श्राद्ध कैसे होगा ? अस्थियों को गंगा में बहाना होगा या कुंवे में बहाना होगा? 

अब इससे ज्यादा मूर्खता के प्रमाण और क्या दूं ?

लगता है हम और आप बीमार हैं ब्राह्मणवाद से।
https://youtu.be/AphakaJsGNY


जैसे जैसे मेरी उम्र में वृद्धि होती गई, मुझे समझ आती गई कि अगर *मैं Rs.3000 की घड़ी पहनू या Rs.30000 की* दोनों *समय एक जैसा ही बताएंगी* ..!
.
मेरे पास *Rs.3000 का बैग हो या Rs.30000 का*, इसके *अंदर के सामान* मे कोई परिवर्तन नहीं होंगा। !

मैं *300 गज के मकान में रहूं या 3000 गज के* मकान में, *तन्हाई का एहसास* एक जैसा ही होगा।!

आख़ीर मे मुझे यह भी पता चला कि यदि मैं *बिजनेस क्लास में यात्रा करू या इक्नामी क्लास*, मे अपनी *मंजिल पर उसी नियत समय पर ही पहुँचूँगा*।!

इस लिए _ *अपने बच्चों को अमीर होने के लिए प्रोत्साहित मत करो बल्कि उन्हें यह सिखाओ कि वे खुश कैसे रह सकते हैं और जब बड़े हों, तो चीजों के महत्व को देखें उसकी कीमत को नहीं* _ .... ..

फ्रांस के एक वाणिज्य मंत्री का कहना था

 *ब्रांडेड चीजें व्यापारिक दुनिया का सबसे बड़ा झूठ होती हैं जिनका असल उद्देश्य तो अमीरों से पैसा निकालना होता है लेकिन गरीब इससे बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं*।

क्या यह आवश्यक है कि मैं Iphone लेकर चलूं फिरू ताकि लोग मुझे *बुद्धिमान और समझदार मानें?*

क्या यह आवश्यक है कि मैं रोजाना *Mac या Kfc में खाऊँ ताकि लोग यह न समझें कि मैं कंजूस हूँ?*


क्या यह आवश्यक है कि मैं प्रतिदिन दोस्तों के साथ *उठक बैठक Downtown Cafe पर जाकर लगाया करूँ* ताकि लोग यह समझें कि *मैं एक रईस परिवार से हूँ?*

क्या यह आवश्यक है कि मैं *Gucci, Lacoste, Adidas या Nike के कपड़े पहनूं ताकि जेंटलमैन कहलाया जाऊँ?*

क्या यह आवश्यक है कि मैं अपनी हर बात में दो चार *अंग्रेजी शब्द शामिल करूँ ताकि सभ्य कहलाऊं?*

क्या यह आवश्यक है कि मैं *Adele या Rihanna को सुनूँ ताकि साबित कर सकूँ कि मैं विकसित हो चुका हूँ?*

_*नहीं यार !!!*_


मेरे कपड़े तो *आम दुकानों* से खरीदे हुए होते हैं,

दोस्तों के साथ किसी *ढाबे* पर भी बैठ जाता हूँ,

भुख लगे तो किसी *ठेले* से  ले कर खाने मे भी कोई अपमान नहीं समझता,
अपनी सीधी सादी भाषा मे बोलता हूँ। चाहूँ तो वह सब कर सकता हूँ जो ऊपर लिखा है
_*लेकिन ....*_

मैंने ऐसे लोग भी देखे हैं जो *मेरी Adidas से खरीदी गई एक कमीज की कीमत में पूरे सप्ताह भर का राशन ले सकते हैं।*

मैंने ऐसे परिवार भी देखे हैं जो मेरे *एक Mac बर्गर की कीमत में सारे घर का खाना बना सकते हैं।*

बस मैंने यहाँ यह रहस्य पाया है कि *पैसा ही सब कुछ नहीं है* जो लोग किसी की बाहरी हालत से उसकी कीमत लगाते हैं वह तुरंत अपना इलाज करवाएं।
*मानव मूल की असली कीमत उसकी _नैतिकता, व्यवहार, मेलजोल का तरीका, सुल्ह-रहमी, सहानुभूति और भाईचारा है_। ना कि उसकी मोजुदा शक्ल और सूरत* ... !!!



*सूर्यास्त के समय एक बार सूर्य ने सबसे पूछा, मेरी अनुपस्थिति मे मेरी जगह कौन कार्य करेगा?*
*समस्त विश्व मे सन्नाटा छा गया। किसी के पास कोई उत्तर नहीं था। तभी  कोने से एक आवाज आई।*
*दीपक ने कहा "मै हूं  ना"*   
*मै अपना पूरा  प्रयास  करुंगा ।* 

*आपकी सोच  में ताकत और चमक होनी चाहिए। छोटा -बड़ा होने से फर्क  नहीं पड़ता,सोच  बड़ी  होनी चाहिए। मन के भीतर  एक दीप जलाएं और सदा मुस्कुराते रहें।*
जय भीम जय भारत ।

रामायण में लिखी नीचता का अर्थ

तुलसीदास दुबे ने अपने नीचता भरे ग्रंथ में
 राम का बहाना दे कर खुद शूद्रों(obc, sc st)को गा कर गाली दिया
 और आज भी शूद्र यानी बहुजन(obc sc st) वही रामायण गा गा कर खुद को हो गाली देता है।

कभी रामायण में लिखी नीचता का अर्थ नही समझता।।।।

चलिए आज आपको रामायण में लिखी नीचता को दिखाते हैं👇👇

🔴 *मौलिक जानकारी*🔴

 जानकारी के अभाव मे शूद्र(obc sc st)लोग अपने पूर्वज के हत्यारा का जाप करते है।
    जिस रामायण मे जात के नाम से गाली दिया गया है, उसी रामायण को शूद्र लोग रामधुन  ( अष्टयाम ) मे अखण्ड पाठ करते है, और अपने को गाली देते है । और मस्ती मे झाल बजाकर निम्न दोहा पढते है :-

*जे बरनाधम  तेलि  कुम्हारा,स्वपच किरात कोल कलवारा*।।

(तेली, कुम्हार, किरात, कोल, कलवार आदि सभी जातियां नीच 'अधम' वरन के होते हैं)

*नारी मुई गृह संपत्ति नासी, मूड़ मुड़ाई होहिं संयासा*
                (उ•का• 99ख  03)

 (घर की नारी 'पत्नी' मरे तो समझो एक सम्पत्ति का नाश हो गया, फिर दुबारा दूसरी पत्नी ले आना चाहिए, पर अगर पति की मृत्यु हो जाए तो पत्नी को सिर मुंड़वाकर घर में एक कोठरी में रहना चाहिए, रंगीन कपड़े व सिंगार से दूर तथा दूसरी शादी करने की शख्त मनाही होनी चाहिए)

*ते बिप्रन्ह सन आपको पुजावही,उभय लोक निज हाथ नसावही*

(जो लोग ब्रह्मण से सेवा/ काम लेते हैं, वे अपने ही हाथों स्वर्ग लोक का नाश करते हैं)


 *अधम जाति मै विद्दा पाए। भयऊँ जथा अहि दूध पिआएँ*
       (उ०का० 105 क 03)

(नीच जाति विद्या/ज्ञान प्राप्त करके वैसे ही जहरीले हो जाते हैं जैसे दूध पिलाने के बाद साँप)         

*आभीर(अहिर)जमन किरात खस,स्वपचादि अति अधरूप    जे*!!
           (उ• का• 129  छं•01 )

*काने खोरे कूबरे कुटिल कुचली जानि*।। 
(अ• का• दोहा 14) 

(दिव्यांग abnormal का घोर अपमान, जिन्हें भारतीय संविधान ने उन्हें तो एक विशेष इंसान का दर्जा दिया & विशेष हक-अधिकार भी दिये)

*सति हृदय अनुमान किय सबु जानेउ सर्वग्य,कीन्ह कपटु मै संभु सन नारी सहज अग्य* 
(बा • का• दोहा 57क)
 ( नारी स्वभाव से ही अज्ञानी)


*ढोल गवार शूद्र पशू नारी,सकल ताड़न के अधिकारी* ।।

(ढोल, गंवार और पशुओं की हीे तरह *शूद्र*(obc sc st) एव साथ-साथ *नारी* को भी पीटना चाहिए)
    ( सु•का•  दोहा 58/ 03)

*पुजिए बिप्र शील गुण हीना,शूद्र न पुजिए गुण ज्ञान प्रविना*

(ब्रह्मण चाहे शील-गुण वाला नहीं *है फिर भी पूजनीय हैं और शूद्र (SC,ST,OBCs)चाहे कितना भी शीलवान,गुणवान या ज्ञानवान हो मान-सम्मान नहीं देना चाहिए)

    इस प्रकार से अनेको जगह जाति एवं वर्ण के नाम रखकर अपशब्द बोला गया है ।पुरे रामचरितमानस व रामायण मे जाति के नाम से गाली दिया गया है।

     इसी रामायण मे बालकाण्ड के दोहा 62  के  श्लोक 04  मे कहा गया है, कि जाति अपमान सबसे बड़ा अपमान है 

 इतना अपशब्द लिखने के बाद भी हमारा समाज ( शूद्र , sc, st, obc ) रामायण को सीने से लगा कर रखे हुए है, और हजारो , लाखो रूपये खर्च कर रामधुन  ( अष्टयाम ) कराते है ।कर्ज मे डूबे रहते है ।बच्चे को सही शिक्षा नही देते है ।और कहते है कि भगवान के मर्जी है ।

 कुछ लोग पढ़ने-लिखने के पश्चात (बाबासाहब डाॅ भीमराव अंबेडकर जी के लिखे गए संविधान के आधार पर )नौकरी पाते है, और कहते है, कि ये सब राम जी के कृपा से हुआ है।।

    यदि आप राम  ( भगवान ) के कृपा से ही पढे लिखे और नौकरी पाए तो , आपके पिताजी ,दादाजी, परदादाजी ,लकरदादाजी & दादी, नानी, परदादी, परनानी इत्यादि भी पढे लिखे होते नौकरी पेशा मे होते!!  यदि सब राम  (भगवान )के  कृपा   से  ही  हुआ है, तो  आप बताइए कि  अंग्रेज़ के राज के पहले एक भी  शूद्र ( sc, st, obc and minority ) पढ़ा लिखा विद्वान बना हो? 

    मेरे प्यारों!! 
आप (शूद्र अर्थात मूलनिवासी sc, st, obc and minority ) जो भी कुछ है, भारतीय संविधान के बल पर ही है।

       *इसलिए हम सब का परम कर्तव्य बनता है कि भारतीय संविधान की रक्षा करें*

         क्योंकि    भारतीय    संविधान अभी    खतरे   मे है , इसे ब्राह्मणी  (सवर्णो का ) संगठन  (RSS)  ध्वस्त करने पर लगा हुआ है ।
और हमलोग हाथ पर हाथ रख कर सोय हुए है ।ब्राह्मणो के षडयंत्र मे फंसकर धर्म कार्य  (अंधभक्ति ) मे लगे हुए है ।

          

( विशेष जानकारी के लिए RSS दूसरे सर संचालक गोलवरकर द्वारा लिखित पुस्तक बंच आॅफ थाॅट्स की अध्ययन किया जाए, जिसमे लिखा है कि भारतीय संविधान जहरिला बीज है, इसे समाप्त कर देना चाहिए )

साथियो हमारा सबसे बड़ा धर्म  ( कर्तव्य ) है , भारतीय संविधान की रक्षा करना । 

(भारत की आधी आबादी  महिलाएँ भी स्वतंत्र अस्तित्त्व के इंसान हैं, पुरूषों की ही तरह)

अर्द्धनारीश्वर/अर्द्धांगिनी शब्द ही गलत है। किसी भी इंसान का शरीर आधा नारी का  & आधा पुरुष का हो ही नहीं सकता। अगर सही है तो एक पत्नी के मरते समय पति की भी मृत्यु हो जानी चाहिए।

*जय भारतीय संविधान*
*जय भीम*

वैदिक ब्राह्मणों का डीएनए टेस्ट

 वैदिक ब्राह्मणों का डीएनए टेस्ट
**********************
    भाग:- 3


मंदिर में नारियल क्यो फोड़ा जाता है?

 मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में चक्रवर्ति सम्राट अशोक के वंशज मोर्य वंश के बौद्ध सम्राट राजा बृहद्रथ मोर्य की हत्या उसी के सेनापति ब्राह्मण पुष्यमित्र शुंग ने धोखे से की थी और खुद को मगध का राजा घोषित कर लिया था ।
उसने राजा बनने पर पाटलिपुत्र से श्यालकोट तक सभी बौद्ध विहारों को ध्वस्त करवा दिया था तथा अनेक बौद्ध भिक्षुओ का कत्लेआम किया था।पुष्यमित्र शुंग, बौद्धों पर बहुत अत्याचार करता था और ताकत के बल पर उनसे ब्राह्मणों द्वारा रचित मनुस्मृति अनुसार वर्ण (हिन्दू) धर्म कबूल करवाता था।
इसके बाद ब्राह्मण पुष्यमित्र शुंग ने अपने समर्थको के साथ मिलकर पाटलिपुत्र और श्यालकोट के मध्य क्षेत्र पर अधिकार किया और अपनी राजधानी साकेत को बनाया।
पुष्यमित्र शुंग ने इसका नाम बदलकर अयोध्या कर दिया। अयोध्या अर्थात-बिना युद्ध के बनायीं गयी राजधानी…
राजधानी बनाने के बाद पुष्यमित्र शुंग ने घोषणा की कि जो भी व्यक्ति, भगवाधारी बौद्ध भिक्षु का सर(सिर) काट कर लायेगा, उसे 100 सोने की मुद्राएँ इनाम में दी जायेंगी। उस समय मौर्य वंश प्रकृति धर्म अर्थात बोद्धधर्म को मानते थे।
  इस तरह सोने के सिक्कों के लालच में पूरे देश में बौद्ध भिक्षुओ का कत्लेआम हुआ।
राजधानी में बौद्ध भिक्षुओ के सर आने लगे। इसके बाद कुछ चालक व्यक्ति अपने लाये सर को चुरा लेते थे और उसी सर को दुबारा राजा को दिखाकर स्वर्ण मुद्राए ले लेते थे। राजा को पता चला कि लोग ऐसा धोखा भी कर रहे है तो राजा ने एक बड़ा पत्थर रखवाया और राजा, बौद्ध भिक्षु का सर देखकर उस पत्थर पर मरवाकर उसका चेहरा बिगाड़ देता था। इसके बाद बौद्ध भिक्षु के सर को घाघरा नदी में फेंकवा दता था। राजधानी अयोध्या में बौद्ध भिक्षुओ के इतने सर आ गये कि कटे हुये सरों से युक्त नदी का नाम सरयुक्त अर्थात “सरयू” हो गया।
इसी “सरयू” नदी के तट पर पुष्यमित्र शुंग के राजकवि वाल्मीकि ने “रामायण” लिखी थी। जिसमें राम के रूप में पुष्यमित्र शुंग और रावण के रूप में मौर्य सम्राट का वर्णन करते हुए उसकी राजधानी अयोध्या का गुणगान किया था और राजा से बहुत अधिक पुरस्कार पाया था। इतना ही नहीं, रामायण, महाभारत, स्मृतियां आदि बहुत से काल्पनिक ब्राह्मण धर्मग्रन्थों की रचना भी पुष्यमित्र शुंग की इसी अयोध्या में “सरयू” नदी के किनारे हुई।
   
बौद्ध भिक्षुओ के कत्लेआम के कारण सारे बौद्ध विहार खाली हो गए। तब आर्य ब्राह्मणों ने सोचा’ कि इन बौद्ध विहारों का क्या करे कि आने वाली पीढ़ियों को कभी पता ही नही लगे कि बीते वर्षो में यह क्या थे ? तब उन्होंने इन सब बौद्ध विहारों को मन्दिरो में बदल दिया और इसमे अपने पूर्वजो व काल्पनिक पात्रो को भगवान बनाकर स्थापित कर दिया और पूजा के नाम पर यह दुकाने खोल दी। ध्यान रहे उक्त ब्रह्दथ मोर्य की हत्या से पूर्व भारत में मन्दिर शब्द ही नही था ना ही इस तरह की संस्कृति थी। वर्तमान में ब्राह्मण धर्म में पत्थर पर मारकर नारियल फोड़ने की परंपरा है ये परम्परा पुष्यमित्र शुंग के बौद्ध भिक्षु के सर को पत्थर पर मारने का प्रतीक है।

   पेरियार रामास्वामी नायकर ने भी ” सच्ची रामायण” पुस्तक लिखी जिसका इलाहबाद हाई कोर्ट केस नम्बर 412/1970 में वर्ष 1970-1971 व सुप्रीम कोर्ट 1971 -1976 के बिच में केस अपील नम्बर 291/1971 चला।
जिसमे सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस पी एन भगवती जस्टिस वी आर कृषणा अय्यर, जस्टिस मुतजा फाजिल अली ने दिनाक 16.9.1976 को निर्णय दिया ! कि सच्ची रामायण पुस्तक सही है और इसके सारे तथ्य वेध है।
सच्ची रामायण पुस्तक यह सिद्ध करती है कि ”रामायण नामक देश में जितने भी ग्रन्थ है वे सभी काल्पनिक है और इनका पुरातात्विक कोई आधार नही है अर्थात फर्जी है।

*ब्राह्मणवाद :---*
*********

(1) ब्राह्मणवाद एक ऐसी विचारधारा है, जिसमे ब्राह्मणों को ही श्रेष्ठ माना जाता है, और उन्हें ही व्यवस्था में सबसे ऊँचे पद दिए जाते हैं ।

(2) आज तक शंकराचार्य सिर्फ ब्राह्मणों  को ही बनाया जाता रहा है, चाहे दूसरी जातियों के  ब्राह्मणों से ज्यादा योग्य व्यक्ति उपलब्ध हों ।

(3) हिंदुओं के सारे धर्म  ग्रन्थ घूम फिरकर ब्राह्मणवाद को ही मज़बूत करते हैं । हिंदुओं का एक भी धर्म ग्रन्थ ऐसा नही है, जिसमे SC, ST और OBC को ब्राह्मणों से श्रेष्ठ माना गया हो ।

(4) ब्राह्मणवाद का इतना ज्यादा असर रहा है, कि अक्सर राजा भी ब्राह्मणों के चरण छूते रहे हैं और ब्राह्मणों की आज्ञाओं का पालन करते रहे हैं ।

(5) आरएसएस और बीजेपी के बड़े बड़े नेता तो आज भी शंकराचार्य के चरण छूते हैं, क्योंकि शंकराचार्य ब्राह्मण है ।

(6) बल्कि कभी कभी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, न्यायाधीश और बड़े बड़े अफसर भी शंकराचार्य के आगे झुकते या चरण छूते पाये गए हैं, क्योंकि शंकराचार्य ब्राह्मण है ।

(7) ब्राह्मणवाद और जाति व्यवस्था पूरी तरह एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, और एक दूसरे की रक्षा करते हैं ।
   बल्कि गोत्र व्यवस्था और ज्योतिषशास्त्र भी किसी ना किसी तरह से ब्राह्मणवाद और जाति व्यवस्था को ही मज़बूत करते रहे हैं ।

(8) ब्राह्मणवाद एक बेहद खतरनाक बीमारी है और इसने भारत की जड़ों को अक्सर कमज़ोर किया है तथा भारत के वैज्ञानिक विकास में बाधा पैदा की है ।
   सामान्यतः नामकरण, विवाह मुहूर्त, जन्मकुंडली जैसी बातें ब्राह्मणों द्वारा ही निर्धारित की जाती रही हैं, जो कि पूरी तरह कपोल कल्पित ज्ञान पर आधारित हैं और अंधविश्वास को बढाती हैं ।

(9) राहु केतु, मंगल गृह की दशा, शनि गृह की दशा, आदि बातों के कारण भी भारत के वैज्ञानिक विकास में रुकावटें पैदा हुई हैं और हिन्दू लोग अंधविश्वासों, कर्मकांडों में उलझे हैं ।

(10) बाबा साहेब आंबेडकर हर मामले में पण्डित जवाहर लाल नेहरू से कई गुना महान थे, लेकिन प्रधानमन्त्री नेहरू को ही बनाया गया, क्योंकि वो ब्राह्मण थे ।

(11) बल्कि भारत की ब्राह्मणवादी और सामन्तवादी ताकतों ने तो बाबा साहेब  अम्बेडकर के रास्ते में काफी सारी बाधाएं पैदा कर दी थीं, और उन्हें कानून मंत्री भी काफी मुश्किल से बनने दिया था ।

(12) अगर पण्डित जवाहर लाल नेहरू की बजाय बाबा साहेब आंबेडकर को प्रधानमन्त्री बनाया गया होता, तो भारत आज चीन से काफी आगे होता, और भारत की सारी समस्याएं खत्म हो चुकी होतीं, क्योंकि बाबा साहेब आंबेडकर तो पण्डित जवाहर लाल नेहरू से हर मामले में  कई गुना ज्यादा काबिल थे ।

लेकिन ब्राह्मणवाद को बचाने के चक्कर में भारत की सामन्तवादी, पूंजीवादी और ब्राह्मणवादी ताकतों ने पण्डित नेहरू को ही प्रधानमन्त्री बनाया ।

(13) आज नतीज़ा यह है, कि भारत अब जापान, कोरिया, इटली, जर्मनी जैसे छोटे छोटे देशों से भी पिछड़ गया है ।

(14) जब तक भारत से  ब्राह्मणवाद, जाति व्यवस्था, पाखण्ड, अंधविश्वास, धार्मिक नफ़रत और हरामखोरी को खत्म नही किया जाएगा, तब तक भारत एक महाशक्ति नही बन सकता ।


*डीएनए रिपोर्ट में वैदिक ब्राह्मण विदेशी*
************************

अब तक वैदिक ब्राह्मणी साहित्य, काल्पनिक ग्रंथ, तथा वैदिक ब्राह्मणों का शुद्रो व अछूतो के प्रति व्यबहार से सिद्ध हो गया कि भारत मे रहने बाले लोग ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य का पूर्वज एक नही है। परंतु झूठ को सत्य बनाने में वैदिक ब्राह्मण को महारथ हासिल है। इसका मानना है कि एक झूठ को हजार बार बोलो तो वह सत्य जैसा लगता है। वैदिक ब्राह्मण झूठ बोलता है, झूठ लिखता है औए झूठ का प्रचार भी करता है। यह अपने झूठ को मरते दम तक सत्य बोलते रहेगा। सत्य का प्रमाण होता है ये लोग प्रमाण नही दे पाता है तो बोलेगा आस्था का मामला है। 100% झूठा बात को सत्य बोलते रहेगा। उदाहरण के लिए लिखा है। हनुमान चालीसा का एक पद लेते है।
बाल समय रवि भक्ष लियो तो।
तिनहू लोक भयो अँधियारो।।
   अर्थ हुआ बचपन मे हनुमान जी सूर्य को निगल गये तो तीनों लोक में अंधेरा छा गया था। आप सोचो सूर्य को एक बालक कैसे निगल सकता है। आदि आदि। उसी तरह वैदिक ब्राह्मण अभी कहते नही थकता की भारत मे कोई बाहर से नही आया या ये कहेगा कि भारत मे सभी बाहर से आया सिर्फ आदिवासी छोड़ कर कारण आदिवासी तो प्रतिकार नही कर सकता है। परंतु तथागत भगवान बुद्ध ने कहे है तीन चीज कभी छुपती नही है ।सूरज, चाँद व सत्य। जो डीएनए टेस्ट से सामने आ गया है। इसे वैदिक ब्राह्मण झुठला नही सकता है। यह टेस्ट वैदिक ब्राह्मणों के ताबूत का अंतिम कील सावित हुआ है, जिसे नकारना वैदिक ब्राह्नणों के बस की बात नही अब सारी दुनिया मे एक्सपोज हो गया है।

1 मई, 2001 को अख़बार “TIMES OF INDIA” में भारत के लोगों के DNA से सम्बंधित शोध रिपोर्ट छपी
भारत के ब्राह्मण, क्षत्रिय औऱ वैश्य भारत के मूलनिवासी नही, ये विदेशी यूरेशियन लोग है।

 लेकिन मातृभाषा या हिंदी अखबारों में यह बात क्यों नहीं छापी गयी? क्योकि इंग्लिश अखबार ज्यादातर विदेशी लोग यानी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य लोग ही पढ़ते है।  विदेशी यूरेशियन जानकारी के बारे में अतिसंवेदनशील लोग है और अपने लोगो को बाख़बर करना चाहते थे, ये इसके पीछे मकसद था। मूलनिवासी लोगो को यूरेशियन सच से अनजान बनाये रखना चाहते है। 

THE HIDE AND THE
HIGHLIGHT TWO POINT PROGRAM. 

 सुचना शक्ति का स्तोत्र होता है।

यूरोपियन लोगो को हजारों सालों से भारत के लोगो, परम्पराओं और प्रथाओं में बहुत ज्यादा दिलचस्पी है। क्योकि यहाँ जिस प्रकार की धर्मव्यवस्था, वर्णव्यवस्था, जातिव्यवस्था, अस्पृश्यता, रीति-रिवाज, पाखंड और आडम्बर पर आधारित धर्म परम्पराए है, उनका मिलन दुनिया के किसी भी दूसरे देश से नहीं होता। इसी कारण यूरोपियन लोग भारत के लोगों के बारे ज्यादा से ज्यादा जानने के लिए भारत के लोगों और धर्म आदि पर शोध करते रहते है। 

यही कुछ कारण है जिसके कारण विदेशियों के मन में भारत को लेकर बहुत जिज्ञासा है। इन सभी “व्यवस्थाओं के पीछे मूल कारण क्या है ”इसी बात पर विदेशों में बड़े पैमाने पर शोध हो रहे है। मुश्किल से मुश्किल हालातों में भी विदेशी भारत में स्थापित ब्राह्मणवाद को उजागर करने में लगे हुए है। 
  आज कल बहुत से भारतीय छात्र भी इन सभी व्यवस्थों पर बहुत सी विदेशी संस्थाओं और विद्यालयों में शोध कर रहे है।

अमेरिका के उताह विश्वविद्यालय वाशिंगटन में माइकल बामशाद नाम के आदमी ने जो BIOTECHNOLOGY DEPARTMENT का HOD ने भारत के लोगों के DNA परीक्षण का प्रोजेक्ट तैयार किया था। बामशाद ने प्रोजेक्ट तो शुरू कर दिया, लेकिन उसे लगा भारत के लोग इस प्रोजेक्ट के निष्कर्ष (RESULT REPORT) को स्वीकार नहीं करेंगे या उसके शोध को मान्यता नहीं देंगे। इसलिए माईकल ने एक रास्ता निकला।
    माईकल ने भारत के वैज्ञानिकों को भी अपने शोध में शामिल कर लिया ताकि DNA परिक्षण पर जो शोध हो रहा है वो पूर्णत पारदर्शी और प्रमाणित हो और भारत के लोग इस शोध के परिणाम को स्वीकार भी कर ले। 
   इसलिए मद्रास, विशाखापटनम में स्थित BIOLOGUCAL DEPARTMENT, भारत सरकार मानववंश शास्त्र – ENTHROPOLOGY के लोगों को भी माइकल ने इस शोध परिक्षण में शामिल कर लिया। यह एक सांझा शोध परीक्षण था जो यूरोपियन और भारत के वैज्ञानिको ने मिल कर करना था। उन भारतीय और यूरोपियन वैज्ञानिकों ने मिलकर शोध किया। ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों के डीएनए का नमूना लेकर सारी दुनिया के आदमियों के डीएनए के सिद्धांत के आधार पर, सभी जाति और धर्म के लोगों के डीएनए के साथ परिक्षण किया गया।

  यूरेशिया प्रांत में मोरूवा समूह है, रूस के पास काला सागर नमक क्षेत्र के पास, अस्किमोझी भागौलिक क्षेत्र में, मोरू नाम की जाति के लोगों का DNA भारत में रहने वाले ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों से मिला। इस शोध से ये प्रमाणित हो गया कि ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य भारत के मूलनिवासी नहीं है।

 महिलाओं में पाए जाने वाले MITICONDRIYAL DNA(जो हजारों सालों में सिर्फ महिलाओं से महिलाओं में ट्रान्सफर होता है) पर हुए परीक्षण के आधार पर यह भी साबित हुआ कि भारतीय महिलाओं का DNA किसी भी विदेशी महिलाओं की जाति से मेल नहीं खाता। भारत के सभी महिलाओं एस सी, एस टी, ओबीसी, ब्राह्मणों की औरतों, राजपूतों की महिलाओं और वैश्यों की औरतों का DNA एक है और 100% आपस में मिलता है। वैदिक धर्मशास्त्रों में भी कहा गया है कि औरतों की कोई जाति या धर्म नहीं होता। यह बात भी इस शोध से सामने आ गई कि जब सभी महिलाओं का DNA एक है तो इसी आधार पर यह बात वैदिक धर्मशास्त्रों में कही गई होगी। अब इस शोध के द्वारा इस बात का वैज्ञानिक प्रमाण भी मिल गया है। सारी दुनिया के साथ-साथ भारतीय उच्चतम न्यायलय ने भी इस शोध को मान्यता दी। क्योकि यह प्रमाणित हो चूका है कि किसका कितना DNA युरेशियनों के साथ मिला है:

ब्राह्मणों का DNA 99.99% युरेशियनों के साथ मिलता है।

राजपूतों(क्षत्रियों) का DNA 99.88% युरेशियनों के साथ मिलता है।

और वैश्य जाति के लोगों का DNA 99.86% युरेशियनों के साथ मिलता है।

राजीव दीक्षित नाम का ब्राह्मण (ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर) ने एक किताब लिखी। उसका पूना में एक चाचा, जो जोशी(ब्राह्मण) है, ने वो किताब भारतमें प्रकाशित की, में भी लिखा है “ब्राह्मण, राजपूत और वैश्यों का DNA रूस में, काला सागर के पास यूरेशिया नामक स्थान पर पाई जाने वाली मोरू जाति और यहूदी जाति (ज्यूज – हिटलर ने जिसको मारा था) के लोगों से मिलता है। 
  राजिव दीक्षित ने ऐसा क्यों किया ? ताकि अमेरिकन लोग भारत के ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य जाति के लोगों को अमेरिका में एशियन ना कहे। राजीव दीक्षित ने बामशाद के शोध को आधार बनाकर यूरेशिया कहाँ है ये भी बता दिया था। राजीव दीक्षित एक महान संशोधक था और वास्तव में भारत रत्न का हक़दार था।

*DNA परिक्षण की जरुरत क्यों पड़ी ?*

संस्कृत और रूस की भाषा में हजारों ऐसे शब्द है जो एक जैसे है। यह बात पुरातत्व विभाग, मानववंश शास्त्र विभाग, भाषाशास्त्र विभाग आदि ने भी सिद्ध की, लेकिन फिर भी ब्राह्मणों ने इस बात को नहीं माना जोकि सच थी। 

ब्राहमण भ्रांतियां पैदा करने में बहुत माहिर है, पूरी दुनिया में ब्राह्मणों का इस मामले में कोई मुकाबला नहीं है। इसीलिए DNA के आधार पर शोध हुआ। ब्राह्मणों का DNA प्रमाणित होने के बाद उन्होंने सोचा कि अगर हम इस बात का विरोध करेंगे तो दुनिया में हम लोग बेवकूफ साबित हो जायेंगे। 
   तथ्यों पर दोनों तरफ से चर्चा होने वाली थी इसीलिए ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य लोगों ने चुप रहने का निर्णय लिया। “ब्राह्मण जब ज्यादा बोलता है तो खतरा है, ब्राह्मण जब मीठा बोलता है तो खतरा बहुत नजदीक पहुँच गया है और जब ब्राह्मण बिलकुल नहीं बोलता। एक दम चुप हो जाता है तो भी खतरा है।“ 

ITS CONSPIRACY OF SILENCE- DR. B.R. AMBEDKAR अगर ब्राह्मण चुप है और कुछ छुपा रहा है तो हमे जोर से बोलना चाहिए।

    इस शोध का परिणाम यह हुआ कि अब हमे अपना इतिहास नए सिरे से लिखना होगा। जो भी आज तक लिखा गया है वो सब ब्राह्मणों ने झूठ और अनुमानों पर आधारित लिखा है। अब अगर DNA को आधार पर विश्लेषण किया जाये, और इतिहास फिर से ना लिखा जाये तो दुनिया ब्राह्मणों को BACKWARD HISTORIAN कहेंगे। 

DNA पीढ़ी दर पीढ़ी बिना किसी बदलाव के स्थानांतरित होता रहता है। आक्रमणकारी लोग हमेशा अल्पसंख्यक होते है और वहां की प्रजा बहुसंख्यक होती है। जब भी अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की बात आती है तो आक्रमणकारी लोगों के मन में बहुसंख्यकों के प्रति हीन भावना का विकास होता है। इसीलिए ब्राह्मणों के मन में मूलनिवासियों के प्रति हीन भावना का विकास हुआ। 
  
 युद्ध में हारे हुए लोगों को गुलाम बनाना एक बात है, लेकिन गुलामों को हमेशा के लिए गुलाम बनाये रखना दूसरी बात है। यह समस्या ब्राह्मणों के सामने थी।

ऋग्वेद में ब्राह्मणों को देव और मूलनिवासियों को असुर, राक्षस, शुद्र, दैत्य या दानव कहा गया है यह बात प्रमाणित है और इस बात के बहुत से सबुत भी है। भारत के बहुत से लेखकों ने इस बात को कई बार प्रमाणित किया है। 

यहाँ तक डॉ भीम राव अम्बेडकर ने भी अपनी किताबों में इस बात को प्रमाणित किया है। एक सबुत यह भी है कि देव अब ब्राह्मण कैसे हो गये? दीर्घकाल तक मूलनिवासियों को गुलाम बनाने के लिए ब्राह्मणों ने वर्ण व्यवस्था स्थापित की। 

मूलनिवासियों को शुद्र घोषित किया गया। क्रमिक असमानता में ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों को अधिकार प्राप्त है, मूलनिवासी शूद्रों को कोई अधिकार नहीं दिया गया। मूलनिवासियों को भी अधिकार होना चाहिए था मगर उनको शुद्र बना कर सभी अधिकारों से वंचित कर दिया गया। 

ऐसा क्यों किया गया? खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए, ताकि मूलनिवासी हमेशा शुद्र बने रहे और बिना किसी युद्ध के ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों के गुलाम बने रहे।

ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य अगर एक है तो उन्होंने अपनों को तीन हिस्सों में क्यों बंटा? मूलनिवासियों को हमेशा के लिए गुलाम बनाने के लिए व्यवस्था बनाना जरुरी था। संस्कृत में वर्ण का अर्थ होता है रंग।

 तो वर्णव्यवस्था का अर्थ है रंगव्यवस्था। संस्कृत के शब्दकोष में आपको आज भी वर्ण का अर्थ रंग ही मिलेगा। ये रंगव्यवस्था/वर्णव्यवस्था क्यों? क्योकि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों का रंग तो एक ही है। 

इसीलिए रंगव्यवस्था में ये तीनों वर्ण अधिकार सम्पन है। चौथे रंग का आदमी उनके रंग का नहीं है। इसीलिए अधिकार वंचित है। DNA की वजह से विश्लेषण करना संभव है। नस्लीय भेदभाव की विचारधारा का नाम ही ब्राह्मणवाद है। वर्णव्यवस्था के द्वारा ही गुलाम बनाना और दीर्घ काल तक गुलाम बनाये रखना ब्राह्मणों के लिए संभव हो पाया।

ब्राह्मणों ने सभी धर्मशास्त्रों में महिलाओं को शुद्र क्यों घोषित किया? ये आज तक का सबसे मुश्किल सवाल था, ब्राह्मणों ने अपनी माँ, बहन, बेटी और पत्नी तक को शुद्र घोषित कर रखा है। 

DNA में MITOCONDRIVAL DNA के आधार पर ये सच सामने आया कि भारत की सभी महिलाओं का DNA 100% एक है और भारत की महिलाओं का DNA किसी भी विदेशी महिला के DNA से नहीं मिलाता। 

इस से साबित हो जाता है कि भारत की सभी महिलाये मूलनिवासी है, इसीलिए ब्राह्मणों ने अपनी माँ, बहन, बेटी और पत्नी तक को शुद्र घोषित कर रखा है। ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य जानते है कि उन्होंने केवल प्रजनन के लिए महिलाओं का उपयोग किया है। 

इसीलिए भी अपनी माँ, बेटी और बहन को शुद्र घोषित कर रखा है। ब्राह्मण हमेशा शुद्धता की बात करता है। ब्राह्मण जानता है कि आदमी का DNA सिर्फ आदमी में स्थानांतरित होता है, इसीलिए ब्रहामण स्त्री को पाप योनी मानता है।

क्योकि वो उनकी कभी थी ही नहीं DNA और धर्मशास्त्र दोनों के आधार पर ये बात सिद्ध की जा सकती है। इससे ये भी साबित हुआ कि आर्य ब्राह्मण स्थानांतरित नहीं हुए, आर्य आक्रमण करने के उद्देश्य से भारत में आये थे। 

क्योकि जो आक्रमण करने आते है वो अपनी महिलाओं को कभी अपने साथ नहीं लाते। ऐसी उस समय की मान्यता थी इसीलिए आज भी आर्यों का स्वाभाव आज तक वैसा ही बना हुआ है।

बुद्ध ने वर्णव्यवस्था को समाप्त किया। हमारे गुलामी के विरोघ में लड़ाने वाला सबसे पुराना और बड़ा पूर्वज था। इसका मतलब ये है कि वर्णव्यवस्था बुद्ध के काल में भी थी। यह बात प्रामाणिक है कि इस जन आंदोलन में बुद्ध को मूलनिवासियों ने ही सबसे जयादा जन समर्थन दिया। 

जैसे ही वर्णव्यवस्था ध्वस्त हुई तो चतुसूत्री पर आधारित नई समाज रचना का निर्माण हुआ। उसमें समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय पर आधारित समाज की व्यवस्था की गई।

इस क्रांति के बाद प्रतिक्रांति हुई, जो पुष्यमित्र शुंग(राम) ने बृहदत की हत्या करके की। वाल्मीकि शुंग दरबार का राजकवि था और उसने पुष्यमित्र शुंग और बृहदत को सामने रख कर ही रामायण लिखी। इसका सबूत “वाल्मीकि रामायण” में है। 

बृहदत की हत्या पाटलिपुत्र में हुई थी, पुष्यमित्र शुंग की राजधानी अयोध्या में थी। रामायण के अनुसार राम की राजधानी भी अयोध्या में थी। पुरातात्विक प्रमाण है, कोई भी राजा अपनी राजधानी का निर्माण करता है तो उस जगह को युद्ध में जीतता है, फिर अपनी राजधानी बनाता है।

 मगर अयोध्या युद्ध में जीत गई राजधानी नहीं थी। इसिलए उसका नाम रखा गया अयोध्या अर्थात अ+योद्ध्या; युद्ध में ना जीत गई राजधानी। पुष्यमित्र शुंग ने अश्वमेध यज्ञ किया, रामायण में राम ने भी अश्वमेध यज्ञ किया।

पुष्यमित्र ने जो प्रतिक्रांति की इसके बाद भारत में जाति व्यवस्था को स्थापित किया गया। पहले गुलाम बनाने के लिए वर्णव्यवस्था और प्रतिक्रांति के बाद मूलनिवासी हमेशा गुलाम बने रहे, उसके लिए जाति व्यवस्था का निर्माण किया गया। 

मूलनिवासियों का प्रतिकार हमेशा के लिए खत्म करने के लिए विदेशी आर्यों ने योजना बना कर सभी मूलनिवासियों को अलग अलग 6743 जातियों में बाँट दिया। जिससे मूलनिवासियों में एक मानसिक स्थिति पैदा हो गई कि हम प्रतिकार करने योग्य नहीं रह गये। गुलामों में ही ऐसी मानसिक स्थिति होती है।

ब्राह्मणों ने जातिव्यवस्था को क्रमिक असमानता पर खड़ा किया गया। असमान लोग एक होने चाहिए थे लेकिन ब्राह्मणों ने असमान लोगों को भी क्रमिक असमानता में विभाजित किया। प्रतिकार अंदर ही अंदर होता है। लेकिन जिसने गुलामी लादी उसका प्रतिकार करने का ख्याल भी मन में नहीं आता क्योकि ब्राह्मणों ने मूलनिवासियों में जाति पर आधारित लड़ाईयां करवाना शुरू कर दिया।

जिससे मूलनिवासी आपस में ही लड़ने लगे और उन्होंने असली गुलामी लादने वाले का प्रतिकार करना बंद कर दिया। DNA शोध सिद्ध करता है कि जाति/वर्ण व्यवस्था का निर्माणकर्ता ब्राह्मण है उसने सभी को विभाजित किया लेकिन खुद को कभी विभाजित नहीं होने दिया।

जाति के साथ ब्राह्मणों की सर्वोच्चता जुडी हुई है। इसलिए ब्राह्मणों के सामने हमेशा संकट खड़ा रहा कि इस व्यवस्था को कैसे कायम रखा जाये। जाति प्रथा को बनाये रखने के लिए ब्राह्मणों ने निम्न परम्पराओं और प्रथाओं का विकास किया;

कन्यादान परम्परा – कन्या कोई वस्तु नहीं है जिसका दान किया जाये। लेकिन ब्राह्मणों ने बड़ी चालाकी के साथ धर्म का प्रयोग करते हुए, ऐसी व्यवस्था बनाई कि जब कन्या शादी योग्य हो जाये तो उसकी शादी की जिमेवारी माँ-बाप की होगी। माँ-बाप कन्या की शादी ब्राह्मणों द्वारा स्थापित “ब्राह्मण सामाजिक व्यवस्था” के अनुसार ही करेंगे। 

अगर लडकी जाति से बाहर अपनी पसंद से शादी करेगी तो जाति व्यवस्था समाप्त हो जायेगी और ब्राह्मणों की सर्वोच्चता समाप्त हो जायेगी। ऐसे तो मूलनिवासियों की गुलामी समाप्त हो जायेगी, ये नहीं होना चाहिए इसीलिए “ब्राह्मण सामाजिक व्यवस्था” स्थापित करके कन्यादान की प्रणाली विकसित की गई।

बाल विवाह प्रथा – लडकी विवाह योग्य होने पर अपनी पसंद से शादी कर सकती है और उस से जातिव्यवस्था समाप्त हो सकती है तो उसके लिए बालविवाह व्यवस्था को स्थापित किया गया। ताकि बचपन में ही लडकी की शादी कर दी जाये। 

क्योकि माँ-बाप तो अपनी ही जाति में लडकी की शादी करवाएंगे और मूलनिवासी गुलाम के गुलाम ही बने रहेंगे। ज्यादा जानकारी के लिए CAST IN INDIA और ANHILATION OF CASTE किताबे पढ़े, जो डॉ. भीम राव अम्बेडकर ने लिखी है।

विधवा विवाह प्रथा – विधवा विवाह निषेध कर दिया गया। अगर कोई विधवा किसी विवाह योग्य लडके से शादी कर लेती है तो समाज में एक लड़का कम हो जायेगा, और जिस लडकी के लिए लड़का कम होगा वो लडकी जाति से बाहर जा कर शादी कर सकती है। इससे भी जाति प्रथा को खतरा था तो विधवा विवाह भी निषेध कर दिया गया था। 

जाति अंतर्गत विवाह जाति बनाये रखने का सूत्र है और जाति व्यवस्था वनाये रखने के लिए महिलाओं का इस्तेमाल किया जाता है। इस व्यवस्था को बनाये रखने के लिए विधवाओं पर मन मने अत्याचार होते थे। ब्राह्मणों ने देखा कि विधवा को टिकाये रखना संभव नहीं है तो विधवाओं के लिए नए क़ानून बनाये गये। विधवा सुन्दर नहीं दिखनी चाहिए इसलिए उनके बाल काट दिए जाते थे। 

कोई उनकी ओर आकर्षित ना हो जाये इसलिए उनको साफ़ सफाई से रहने का अधिकार नहीं था। ताकि कोई उनके साथ शादी करने को तैयार ना हो जाये। यानी किसी भी स्थिति में जातिव्यवस्था बनी रहनी चाहिए।

सतीप्रथा – ब्राह्मणों ने विधवा औरतों से निपटने और जाति व्यवस्था को बनाये रखने के लिए दूसरा रास्ता सती प्रथा निकला। धर्म के नाम पर औरतों में गौरव भाव का निर्माण किया। जैसे कि मरने वाली स्त्री सचे चरित्र, पतिव्रता और पवित्र है इसीलिए सती है। 

जो स्त्री सची है उसे अपने पति की चिता में जिन्दा जल जाना चाहिए। स्त्रियों में गौरव की भावना का निर्माण करने के लिए बडसावित्री नाम की प्रथा को जन्म दिया गया। ब्राह्मणों ने जितने भी घटिया काम किये उन पर गर्व किया। और महिलाये बिना सच को जाने अपनी जान देती रही।

बडसावित्री संस्कार भी बहुत योजनाबढ तरीके से बनाया गया है। इस में औरत हाथ में धागा लेकर चक्कर कटती है और कहती है “यही पति मुझे अगले सात जन्मों तक मिलाना चाहिए, यह शराबी है, मुझे मारता पिटता है, मेरे पर अत्याचार करता है, फिर भी मुझे यही पति मिलाना चाहिए।“ यह ब्राह्मणों का एक बहुत गहरा षड्यंत्र है, यह त्यौहार हर साल आता है।

 हर साल स्त्रियों के मन में यह संस्कार डाला जाता है। यही पति तुम को मिलाने वाला है और कोई नहीं मिलेगा और अगर तुम जिन्दा रहती हो तो जब तक  में बहुत देरी हो जायेगी। अगर तुम अपने पति के साथ चिता पर मर जोगी तो एक ही तारीख में, एक ही समय में, एक साथ पैदा हो जाओगी, पुनर्जन्म हो जायेगा। फिर दोनों का मिलन भी हो जायेगा। 

ब्राह्मणों ने यह योजना जाति व्यवस्था को बनाये रखने के लिए बनाई। जैसे कोई चोर यह नहीं कहता कि में चोर हूँ; यही हाल ब्राह्मणों का है। जन्म जन्म का काल्पनिक सिद्धांत बना कर स्त्रियों पर मन चाहे अत्याचार किये गये ताकि जातिव्यवस्था बनी रहे।

क्रमिक असमानता – जाति बंधन डालने के बाद उसे बनाये रखना संभव नहीं था। गुलाम को गुलाम बनाये रखने के लिए हर किसी के ऊपर किसी को रखना ही इस समस्या का समाधान था। सारे मूलनिवासी आपस में लड़ते रहे, मूलनिवासी कभी ब्राह्मणों के खिलाफ खड़े ना हो जाये। इसीलिए ब्राह्मणों ने मूलनिवासियों को ऊँची और नीची जातियों में बाँट दिया। उंच नीच की भावना मानवता की भावना को खत्म कर देती है। 

इसीलिए ब्राह्मणों ने क्रमिक असमानता के साथ जाति व्यवस्था का निर्माण किया है। और आज भी हर मूलनिवासी जाति और धर्म के नाम पर लड़ता रहता है और ब्राह्मण मज़े से तमाशा देख कर हँसता है।

अस्पृश्यता – जातिव्यवस्था बुद्ध पूर्व काल में नहीं थी इसीलिए उस समय के साहित्य में जाति या वर्ण व्यवस्था का वर्णन नहीं आता। इसीलिए यह भ्रान्ति फैली हुई है जिन बौद्धों ने ब्राह्मण धर्म का अनुसरण किया, और ब्राह्मणों ने जिन बौद्धों को अपना लिया वो आज के समय में ओबीसी में आते है। 

उन पर आज भी ब्राह्मणों का प्रभाव है जिसके कारण ओबीसी में आने वाले लोग दूसरे मूलनिवासियों से अपने आप को उच्च समझते है। ओबीसी भी पुष्यमित्र शुंग की प्रतिक्रांति के बाद बनाया गया मूलनिवासी लोगों का समूह है।

सिंधु घाटी की सभ्यता पैदा करने वाले भारतीय लोगो से इतनी बड़ी महान सभ्यता कैसे नष्ट हुई,जो 4500-5000 ईसा पूर्व से स्थापित थी?ये इंग्रेजो ने पूछा था, एक अंग्रेज अफसर को इस का शोध करने के लिए भी बोला गया था। 

बाद में इसके शोध को राघवन और एक संशोधक ने शुरू किया। पत्थर और ईंटों के परिक्षण में पता चला कि ये संस्कृति अपने आप नहीं मिटी थी। बल्कि सिंधु घटी की सभ्यता को मिटाया गया था। दक्षिण राज्य केरल में हडप्पा और मोहनजोदड़ों 429 अवशेष मिले। ब्राम्हण भारत में ईसा पूर्व 1600-1500 शताब्दी पूर्व आया।

ऋग्वेद में इंद्र के संदर्भ में 250 श्लोक आतें हैं। ब्राह्मणों के नायक इन्द्र पर लिखे सभी श्लोकों में यह बार बार आता है कि “हे इंद्र उन असुरों के दुर्ग को गिराओं” “उन असुरों(बहुजनों) की सभ्यता को नष्ट करो”। ये धर्मशास्त्र नहीं बल्कि ब्रहामणों के अपराधों से भरेदस्तावेज हैं।

भाषाशास्त्र के आधार पर ग्रिअरसन ने भी ये सिद्ध किया की अलग-अलग राज्यों में जो भाषा बोली जाती हैं,वो सारी भाषाओँ का स्त्रोतपाली है।

DNA के परिक्षण से प्राप्त हुआ सबूतनिर्विवाद और निर्णायक है। क्योकि वो किसी तर्क या दलील पर खड़ा नहीं किया गया है। इस शोध को विज्ञान के द्वारा कभी भी प्रमाणित किया जा सकता है। विज्ञान कोई जाति या धर्म नहीं है। इस शोध को करने वाले पूरी दुनिया से 265 लोग थे। बामशाद का यह शोध 21 मई 2001 के TIMES OF INDIA में NATURE नामक पेज पर छपा, जो दुनिया का सबसे ज्यादा वैज्ञानिक मान्यता प्राप्त अंक है।

बाबासाहब आंबेडकर की उम्र सिर्फ 22 साल थी जब उन्होंने विश्व का जाति का मूलक्या है, इसकी खोज की थी।  और 2001 में जो DNA परिक्षणहुआ था, बाबासाहब का और माइकल बामशाद का मत एक ही निकला था।

ब्राम्हण सारी दुनिया के सामने पुरे बेनकाब हो चुके थे। फिर भी ब्राह्मणों ने अपनी असलियत को छुपाने के लिए अपनी ब्रह्माणी सिद्धांत को अपनाया और ऐसा प्रचारित किया कि भारत में दक्षिणी ब्राह्मण दो नस्लों के होते है। 

ब्राह्मणों ने DNA के परिक्षण को पूरी तरह ख़ारिज नहीं किया और एक और झूठ मीडिया द्वारा प्रचारित करना शुरू कर दिया कि अब कोई मूलनिवासी नहीं है सभी लोग संमिश्र हो चुके है। उन्होंने कहा मापदंड ढूंढा? 

ब्राह्मणों ने दलील देकर कहा कि अन्डोमान और निकोबार द्वीप समूह की जो आदिवासी जनजाति है वो अफ्रीकन के वंशज है, वो उधर से आया था, और यूरेशियन देशों में चला गया है, इस पर भी शोध होना चाहिए। 

बामशाद के द्वारा किये गये शोध को नकारने के लिए ब्राह्मणों ने सिर्फ विज्ञान शब्द का प्रयोग किया और उसे झूठा प्रचारित किया। 

ब्राह्मण अगर यह झूठी कहानी सुनाये तो उस से पूछो कि दोनों ब्राह्मण नस्लों में से विदेश से कौन आया है? विदेशी का DNA बताओ? DNA के आधार पर ब्राह्मण अपनी बातों को सिद्ध नहीं कर सकता।

*ब्राह्मण मुसलमान विरोधी घृणा आंदोलन क्यों चलता है?*

क्योकि ब्राह्मणवाद और बुद्धिज्म के टकराव के समय बहुत से बौद्धिष्ट मुसलमान बन गये थे उन्होंने ब्राह्मण धर्म को नहीं अपनाया था। ब्राह्मण जनता है कि आज भारत में जितने भी मुसलमान है वो सब मूलनिवासी है इसीलिए ब्राह्मण मुसलमानों के खिलाफ घृणा का आंदोलन चलता रहता है ताकि ब्राह्मण किसी भी तरह मूलनिवासियों की एक शाखा को पूरी तरह खत्म कर सके।

अंग्रेजों के गुलाम ब्राह्मण था और उनके गुलाम मूलनिवासी थे। आज़ादी की जंग में आज़ादी के लिए आंदोलन करने वाले लोगों के सामने यह सबसे बड़ी समस्या थी। 

इसीलिए डॉ. भीम राव अम्बेडकर ने अंग्रेजों को कहा कि ब्राह्मणों को आज़ाद करने से पहले मूलनिवासी बहुजनों को जरुर आज़ाद कर देना चाहिए। अगर ब्राह्मण मूलनिवासियों से पहले आज़ाद हो गया तो ब्राह्मण मूलनिवासियों को कभी आज़ाद नहीं करेगा। ये आशंका सिर्फ डॉ. भीम राव अम्बेडकर के मन में ही नहीं थी बल्कि मुसलमान नेताओं के मन में भी थी। इसीलिए 14 अगस्त को पाकिस्तान बना।

 मुसलमानों ने अंग्रेजों को कहा कि गाँधी से एक दिन पहले हमे आज़ादी देना और हमारे बाद गाँधी को देना। अगर तुमने पहले गाँधी को आज़ादी दे दी तो गाँधी बनिया है हमको कुछ नहीं देगा। ब्राह्मणों ने अपनी आज़ादी की लड़ाई मूलनिवासियों को सीडी बनाकर लड़ी और वो अंग्रेजों को भगा कर आज़ाद हो गये।

DNA संशोधन से सामने आया कि ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य भारत के मूलनिवासी नहीं है। व्यवहारिक रूप से भी देखा जाये तो ब्राह्मणों ने कभी भारत को अपना देश माना भी नहीं है। ब्राह्मण हमेशा राष्ट्रवाद का सिद्धांत बताता आया है लेकिन खुद कितना देशभक्त है ये बात किसी को नहीं बताता। इसका मतलब एक विदेशी गया और दूसरा विदेशी मालिक हो गया, DNA ने सिद्ध कर दिया।

 दूसरे विदेशी ब्राह्मणों ने ये प्रचार किया कि भारत आज़ाद हो गया। लेकिन आज भी भारत पर आज भी ब्राह्मणों का राज है। इससे यह साबित होता है कि मूलनिवासियों को भविष्य में आज़ादी हासिल करने का कार्यक्रम चलाना ही पड़ेगा। DNA परिक्षण के आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि आज भी देश के 130 करोड में से 32 करोड लोग बाकि 98 करोड़ लोगों पर राज कर रहा है। कल्पना करो कितना मुलभुत और महत्वपूर्ण संशोधन है।
    इसि कारण से वैदिक आर्य (ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य) आज तक भारत के मूलनिवासी को सही इतिहास की जानकारी ना देकर कपोल कल्पित कहानी बनाकर भरमा रहा है। वैदिक ब्राह्मणी संगठन आरएसएस भी भारतीय लोगो को हिन्दू बनाकर एक रखने में कोई कसर नही छोर रहा हैऔर भारत के मूलनिवासी के अपने को पढ़े लिखे विद्वान समझने बाले नोजवान वैदिक ब्रहामण का झंडा टांगते फिर रहा है।समाज को पहले इसी को समझना होगा।

गोलमेज परिषद

 "गोलमेज परिषद"

 मैँ अछुतो का एकलौता प्रतिनिधी हूँ| मैँ अछुतो को कोई
 भी अधिकार दिये जाने के पक्ष मेँ नही हुँ|
 इसमे तो हिँन्दू धर्म की आत्मा नष्ट हो जाएगी|
 हॉ यदि वे धर्म बदलते है तो कोई बात नही
 - गांधी.

 मै अछुतो का प्रतिनिधी हुँ| अछुत हिन्दू नही है|
 अछुतो को हिँन्दू मंदिर जाने नही देते| सार्वजनिक स्थलोँ से
 पानी तक नही पीने देते| हिँन्दू
 अछुतो को छुते तक नही| हिन्दू
 अछुतो को कभी अधिकार नही देंगे| अछुतो को अलग
 से स्वतंत्र अधिकार दिये जाने जाहिए
 - डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर

 "पुणे पैक्ट"

 मै मर जांउगा लेकिन अछुतो को अधिकार नही दुंगा.
 - गांधी

 मुझे फांसी दे दो लेकिन मैँ गोलमेज से मिले
 अधिकारोँ को छोडुंगा नही.
 - डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर.

जय भीम साथियों.....

आपको ये जानना बहुत जरूरी है...👇

 *आरक्षण  कोई  भीख  नहीं  है*

सन  1930,  1931,  1932,  में  लन्दन  की  गोलमेज  कॉन्फ्रेंस  में  डॉ बाबासाहेब  आंबेडकर  ने  अछूतो  के  हक  के  लिए   ब्रिटिश  सरकार  के  सामने  वकालत  की,,,  उन्होंने  कहा  आप  लोग  150  साल  से  भारत  में  राज  कर  रहे  हो,  फिर  भी  अछूतों  पर  होने  वाले  जुल्म  में  कोई  कमी  नही  ला  सके  हो  तथा  ना  ही  आपने  छुआ-छूत  को  ख़त्म  करने  के  लिए  कोई  कदम  उठाया है..!

बाबासाहेब  ने  ब्रिटिश  सरकार  के  सामने  यह  स्पष्ट  किया  कि  अछूतो  का  हिन्दुओं  से  अलग  अस्तित्व  है।  वे  गुलामों  जैसा  जीवन  जीने  के  लिए  मजबूर  है,  इनको  न  तो  सार्वजानिक  कुओं  से  पानी  भरने  की  इज़ाज़त  है  न  ही  पढ़ने  लिखने  का  अधिकार  है  और  नाही  संपत्ति  रखने  का  अधिकार  है!  अछूत  आखिर  तरक्की  करे  तो  कैसे  करे?❓

बाबासाहेब  ने  गोलमेज  कॉन्फ्रेंस  में  भारत  में  अछूतो  की  दुर्दशा  की  बात  करते  हुए  उनकी  सामाजिक,  शैक्षणिक  तथा  राजनीतिक  स्थिति  में  सुधार  के  लिए  अछूतो  के  लिए  पृथक  निर्वाचन  की  मांग  रखी।  पृथक  निर्वाचन  में  अछूतो  को  दो  मत  देना  होता,  जिसमें  एक  मत  अछूत  मतदाता  केवल  अछूत  उम्मीदवार  को  देते  और  दूसरा  मत  वे  समान्य  उम्मीदवार  को  देते। 

बाबासाहेब  ने  जो  तर्क  रखे  वो  इतने  ठोस  और  अधिकारपूर्ण  थे  कि  ब्रिटिश  सरकार  को  बाबासाहेब  के  सामने  झुकना  पड़ा।  तथा  1932  में  अछूतो  के  लिए  तत्कालीन  योजना  की  घोषणा  करते  हुए  पृथक  निर्वाचन  की  माँग  को  स्वीकार  कर  लिया। 

बाबासाहेब  ने  इस  अधिकार  के  सम्बन्ध  में  कहा-  पृथक  निर्वाचन  के  अधिकार  की  मांग  से  हम  हिन्दू  धर्म  का  कोई  अहित  नहीं  करने  वाले  है,...  हम  तो  केवल  उन  सवर्ण  हिन्दुओं  के  ऊपर  अपने  भाग्य  निर्माण  की  निर्भरता  से  मुक्ति  चाहते  है।

लेकिन  गांधी  पृथक  निर्वाचन  के  विरोध  में  थे.!  वे  नहीं  चाहते  थे,  कि  अछूत  समाज  हिन्दुओं  से  अलग  हो... वे  अछूत  समाज  को  हिन्दुओं  का  एक  अभिन्न  अंग  मानते  थे।

बाबासाहेब  ने  गांधी  जी  से  प्रश्न  पूछा- अगर  अछूत  हिन्दुओं  का  अभिन्न  अंग  है,  तो  फिर  उनके  साथ  जानवरों  जैसा  सलूक  क्यों..?  लेकिन  गाँधी  जी  ने  इसका  कोई  भी  जवाब  नही  दे  पाये। बाबासाहेब  ने  गांधी  से  कहा- मिस्टर  मोहन  दास  करम  चन्द  गांधी, आप  अछूतों  की  एक  बहुत  अच्छी  नर्स  हो  सकते  है!  परन्तु  मैं  उनकी  माँ  हूँ! और  माँ  अपने  बच्चों  का  अहित  कभी  नहीं  होने  देती  है..!

फिर  भी  गांधी  जी  ने  पृथक  निर्वाचन  के  खिलाफ  पूना  के  जेल  में  आमरण अनशन पर  बैठ  गए।  और  यही  वह  अधिकार  था  जिस  से  देश  के  करोड़ों  अछूतों  को  एक  नया  जीवन  मिलता  और  वे  सदियों  से  चली  आ  रही  गुलामी  से  मुक्त  हो  जाते...  लेकिन  गांधी  जी  के  आमरण  अनशन  के  कारण  बाबासाहेब  की  उम्मीदों  पर  पानी  फिर  गया।

लंबे  समय  तक  आमरण  अनशन  के  कारण  गांधी  जी  की दशा  बिगड़ने  लगी,  गांधी  जी  और  बाबासाहेब  के  समर्थको  के  बीच  झड़पों  की  भी  खबर आने  लगी  थी।  तथा  बाबासाहेब  पर  दबाव  बढ़ाने  लगा  कि  वे  अपनी  पृथक  निर्वाचन  की  मांग  को  वापस  ले  लें।  किन्तु  वे  अपनी  मांग  वापस  न  लेने  पर  कायम  रहे।  उधर  गाँधी  जी  भी  अपने  अनशन  पर  अड़े   रहे।  

इन  दोनों  के  बीच  सर  तेज  बहादुर  सप्रू  बात  करके  कोई  बीच  का  रास्ता  निकालने  का  प्रयास  कर  रहे  थे।  24  सितम्बर  1932  को  सर  तेज  बहादुर  सप्रू  ने  दोनों  से  मिलकर  एक  समझौते  का  फॉर्मूला  तैयार  किया  जिसमें  बाबासाहेब  को  पृथक  निर्वाचन  की  मांग  को  वापस  लेना  था  और  गाँधी  जी  को  केन्द्रीय  और  राज्यों  की  विधानसभाओं  एवं  स्थानीय   संस्थाओं  में  अछूतो  की  जनसंख्या  के  अनुसार  प्रतिनिधित्व  देने  एवं  सरकारी  नौकरियों  में  भी  प्रतिनिधित्व  देने  की  व्यवस्था  कराने  का  वादा  करना  था।  इसके  अलावा  शैक्षिक  संस्थाओं  में  अछूतो  को  विशेष  सुविधाएं  देने  की  बात  भी  इसमें  शामिल  थी।  दोनों  नेता  इस  समझौते  पर  सहमत  हो  गए।

24  सितम्बर  1932  को  इस  समझौते  पर गाँधी  जी  और  बाबासाहेब  ने  तथा  इनके  समर्थकों  ने  अपने  हस्ताक्षर  कर  दिए।  इस  समझौते  को  पूना  पैक्ट  कहा  गया।

पूना  पैक्ट  में  पृथक  निर्वाचन  के  बदले  अछूतो  को  आरक्षण  का  प्रावधान  जरूर  रखा  गया।  जो  की  पृथक  निर्वाचन  के  सामने  बहोत  ही  नगण्य  था। 

लेकिन  फिर  भी  गांधी  की  जान  को  बचाने  के  लिए  करोड़ो  अछूतो  को  उनको  हक  तत्काल  दिलाने  के  बदले  लंबे  समय  लटकना  पड़ा,,,  तथा  आँखों  में  आंसू  लिए  हुए  बाबासाहेब  ने  पूना  पैक्ट  पर  हस्ताक्षर  किये  इस  संदर्भ  में  बाबासाहेब  का  नाम  अमर  रहेगा  क्योंकि  उन्होंने  गांधी  को  जीवन  दान  दे  दिया...

उसी  दिन  बाबासाहेब  ने  पूना  पैक्ट  का  धिक्कार  दिवस  आयोजित  किया।  बाबासाहेब  ने  कहा  कि  "पूना  पैक्ट  पर  हस्ताक्षर  करके  मैंने  अपने  जीवन  की  सबसे  बड़ी  गलती  की  है.!  मैं  ऐसा  करने  को  विवश  था... मैं  आपको  तत्काल  इस  ऊँच  निच  की  दीवारो  से  मुक्त  करना  चाहता  था।  लेकिन  गांधी  ने  पूना  पैक्ट  में  हस्ताक्षर  करवाकर  समय  सीमा  बड़ा  दी  है।"

💯बाबासाहेब  ने  अपने  जीवन  में  कभी  गांधी  जी    को  महात्मा  नहीं  माना  वे  "ज्योतिबा  फुले "  जी  को  सच्चा  महात्मा  मानते थे।।।

*जय भीम-जय भारत-जय संविधान*