Sunday 26 February 2017

बौद्ध धर्मं में परिवर्तन के अवसर पर

डा बी.आर. अम्बेडकर ने दीक्षा भूमि, नागपुर, 
भारत में ऐतिहासिक बौद्ध धर्मं में परिवर्तन के अवसर पर,
15 अक्टूबर 1956 को अपने अनुयायियों के लिए 22 प्रतिज्ञाएँ निर्धारित कीं.800000 लोगों का बौद्ध धर्म में रूपांतरण ऐतिहासिक था 
क्योंकि यह विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक रूपांतरण था.
उन्होंने इन शपथों को निर्धारित किया ताकि हिंदू धर्म के बंधनों को पूरी तरह पृथक किया जा सके.ये 22 प्रतिज्ञाएँ हिंदू मान्यताओं और पद्धतियों की जड़ों पर गहरा आघात करती हैं. ये एक सेतु के रूप में बौद्ध धर्मं की हिन्दू धर्म में व्याप्त भ्रम और विरोधाभासों से रक्षा करने में सहायक हो सकती हैं.इन प्रतिज्ञाओं से हिन्दू धर्म,जिसमें केवल हिंदुओं की ऊंची जातियों के संवर्धन के लिए मार्ग प्रशस्त किया गया, में व्याप्त अंधविश्वासों, व्यर्थ और अर्थहीन रस्मों, से धर्मान्तरित होते समय स्वतंत्र रहा जा सकता है. प्रसिद्ध 22 प्रतिज्ञाएँ निम्न हैं:
मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई विश्वास नहीं करूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगामैं राम और कृष्ण, जो भगवान के अवतार माने जाते हैं, में कोई आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगामैं गौरी, गणपति और हिन्दुओं के अन्य देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा.मैं भगवान के अवतार में विश्वास नहीं करता हूँमैं यह नहीं मानता और न कभी मानूंगा कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे. मैं इसे पागलपन और झूठा प्रचार-प्रसार मानता हूँमैं श्रद्धा (श्राद्ध) में भाग नहीं लूँगा और न ही पिंड-दान दूँगा.मैं बुद्ध के सिद्धांतों और उपदेशों का उल्लंघन करने वाले तरीके से कार्य नहीं करूँगामैं ब्राह्मणों द्वारा निष्पादित होने वाले किसी भी समारोह को स्वीकार नहीं करूँगामैं मनुष्य की समानता में विश्वास करता हूँमैं समानता स्थापित करने का प्रयास करूँगामैं बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग का अनुशरण करूँगामैं बुद्ध द्वारा निर्धारित परमितों का पालन करूँगा.मैं सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया और प्यार भरी दयालुता रखूँगा तथा उनकी रक्षा करूँगा.मैं चोरी नहीं करूँगा.मैं झूठ नहीं बोलूँगामैं कामुक पापों को नहीं करूँगा.मैं शराब, ड्रग्स जैसे मादक पदार्थों का सेवन नहीं करूँगा.मैं महान आष्टांगिक मार्ग के पालन का प्रयास करूँगा एवं सहानुभूति और प्यार भरी दयालुता का दैनिक जीवन में अभ्यास करूँगा.मैं हिंदू धर्म का त्याग करता हूँ जो मानवता के लिए हानिकारक है और उन्नति और मानवता के विकास में बाधक है क्योंकि यह असमानता पर आधारित है, और स्व-धर्मं के रूप में बौद्ध धर्म को अपनाता हूँमैं दृढ़ता के साथ यह विश्वास करता हूँ की बुद्ध का धम्म ही सच्चा धर्म है.मुझे विश्वास है कि मैं फिर से जन्म ले रहा हूँ (इस धर्म परिवर्तन के द्वारा).मैं गंभीरता एवं दृढ़ता के साथ घोषित करता हूँ कि मैं इसके (धर्म परिवर्तन के) बाद अपने जीवन का बुद्ध के सिद्धांतों व शिक्षाओं एवं उनके धम्म के अनुसार मार्गदर्शन करूँगा.


तथागत बुद्ध के संघर्ष के चार सूत्र हैं।
समानता पर आधारित समाज का निर्माण किया जाए,
स्वतंत्रता पर आधारित समाज का निर्माण किया जाए,
न्याय पर आधारित समाज का निर्माण किया जाए तथा
भाईचारे पर आधारित समाज का निर्माण किया जाए।

धर्म परिवर्तन करने के पीछे बाबासाहब डा.अम्बेडकर का जो लक्ष्य है, वह है उपरोक्त चार सुत्रों पर आधारित समाज एवं राष्ट्र का निर्माण करना। और इसलिए उन्होंने धर्म परिवर्तन किया। खूद को बाबासाहब डा.अम्बेडकर का अनुयायी माननेवाले लोग यदि केवल बुद्ध वंदना तक इस मामले को सीमित रख देते है और बुद्ध की विचारधारा को आगे ब़ढ़ाने की बजाए केवल और केवल यही तक रुक जाते हैं तो यह बात हमारे लिए विचारनीय होनी चाहिए। गंभीर चिंता का विषय होनी चाहिए कि बाबासाहब द्वारा धर्म परिवर्तन केवल मात्र इतने से काम के लिए नहीं किया गया। धर्म परिवर्तन इसलिए किया क्योंकि बाबासाहब डा.अम्बेडकर तथागत बुद्ध द्वारा बतायी चतु:सूत्री पर आधारित समाज एवं राष्ट्र का निर्माण करना चाहते थे। जिस चतु:सूत्री पर आधारित समाज का वे निर्माण करना चाहते थे, यह जिम्मेवारी क्या उन लोगों की है? जो बुद्ध का विरोध करते हैं? क्या यह जिम्मेवारी उन लोगों की है जो यह कहते हैं कि तथागत बुद्ध तो “विष्णु का अवतार हैं?” ऐसा कहनेवाले जो लोग हैं, वे दुष्ट लोग हैं। क्या वे लोग तथागत बुद्ध को अभिप्रेत चतु:सूत्री पर आधारित समाज का निर्माण करेंगे? क्या मूलनिवासी बहुजन समाज के लोग ऐसे दुष्ट लोगों से यह आशा करे कि वे बुद्ध द्वारा बतायी चतु:सूत्री पर आधारित समाज का निर्माण करने के लिए पहल करें? बाबासाहब डा.अम्बेडकर ऐसे दुष्ट लोगों से कोई अपेक्षा नहीं करते थे। इसलिए यह जिम्मेदारी उन लोगों की है जो बाबासाहब डा.अम्बेडकर के अनुयायी हैं।

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