Friday, 10 February 2017

श्राद्ध पर एक खुली चर्चा

श्राद्ध पर एक खुली चर्चा 

ठाकुर साहब के घर पंडित जी श्राद्ध के भोजन के लिए पधारे हुए थे !

भोजन में थोड़ी देर थी तो ठाकुर साहब पंडित जी से जिज्ञासावश पूछने लगे --

ठाकुर साहब --

क्यों पंडित जी ! आत्मा तो निर्लेप है अजर -अमर है, आग उसे जला नहीं सकती है, पानी उसे गीला नहीं कर सकता है  ? क्या यह सब बातें सही है जी!

पंडित जी--

 क्यों नहीं ठाकुर साहब ! गीता जी में यह सब भगवान ने पांच हजार साल पहले ही कह दी थी ! आत्मा का कोई कुछ बिगाड़ या  सुधार नहीं सकता है  !

ठाकुर साहब --

 फिर पंडित जी ! श्राद्ध में आत्माएं भोजन के लिए क्यों भटकती है  ?

 पंडित जी --
देखो ठाकुर साहब! जो लोग अधबीच में जलकर डूबकर दुर्घटना से आत्महत्त्या से करन्ट से मरते हैं उनकी अधोगति होती है उनके लिए श्राद्ध होता है जी !

ठाकुर साहब -

पंडित जी ! यदि तुलसीदास जी के अनुसार लाभ हानि जीवन मरण यश अप यश विधि हाथ है !तो फिर अधबीच में कौन मरता है  सब ईश्वर द्वारा निर्धारित समय पर ही मरते हैं न ?

पंडित जी-

हाँ साहेब सब ईश्वर की लीला है जी प्याज को जितना छीलो उतने ही फोतरे निकलेंगे ?

ठाकुर साहेब -

मरने पर 11 या 12 वें दिन में सब कर्मकांड कर दिया जाता है फिर आत्मा अपने कर्म अनुसार कईं पशु पक्षी इंसान कीड़े मकोड़े आदि योनियों में चली जाती होगी फिर वे सोलह श्राद्ध में अपने शरीर को छोड़कर श्राद्ध का भोजन करने कैसे आती होगी जी?

पंडित जी -

यह सब श्रद्धा -विश्वास की बातें  हैं जी धर्म के मामले में तर्क संशय नहीं करना चाहिए ? आप भी कबीर की तरह उलटी बानी बोलने लगे हो ?

ठाकुर साहब -

पंडित जी आप बुरा न माने  ! मैं तो अज्ञानी हूँ  जिज्ञासावश आपसे प्रश्न किये हैं ? अच्छा पण्डित जी यह बताएं भोजन दिवंगत आत्मा की रूचि अनुसार होना चाहिए या आपकी इच्छा अनुसार ?

पंडित जी -
ठाकुर साहब आप कैसी बातेँ कर रहे हैं जी! हम ब्राह्मण किसी के भोजन के भूखे थोड़े ही है हमें सन्तुष्ट करोगे तो आपके पूर्वजों की आत्मा तृप्त हो जाएगी ऐसा शाश्त्रों में लिखा है जी
जो दिवंगत आत्मा को पसन्द था उसी को खा पीकर हम आत्माओं की तृप्ति करेंगे जी

इतने में अंदर से आवाज आई हजुर भोजन तैयार है पंडितजी पधारिये

पंडित जी भोजन के लिए बैठ गए
ठाकुर साहेब श्रद्धा से भोजन परोसने लगे
थाली में बकरे की कलेजी, पाए, और मुर्गे ,मछली और पास में शराब की बड़ी बड़ी बाटलें देखकर

पण्डित जी आग बबूला होकर कहने लगे --

ठाकुर साहब ! यह क्या मजाक है ? एक ब्राह्मण की आत्मा दुखाकर आपको क्या मिलगा ! मुझे भृष्ट करने के लिए आपने यहां बुलाया है !

ठाकुर साहब -
हे ब्राह्मण देवता आप नाराज न हो मैंने अपने पूर्वजों की भटकती आत्माओं की सन्तुष्टी के लिए ही आपको बुलाया है !

क्षत्रियों की परम्परा अनुसार हमारे सारे ही पूर्वज मांसाहारी व शराब के शौकीन रहे हैं हमारे यहां तो आज भी शादी में भी ऐसी ही पार्टियां चलती है भला खीर पूड़ी से मेरे पूर्वजों की आत्मा कैसे तृप्त हो सकती  हैं ??

इतना सुनकर पण्डित जी कलयुग को दो चार गालियां देते हुए दूसरे यजमान के यहां श्राद्ध का भोजन करने चल दिये ठाकुर साहब ने बहुत मनाया मगर वे नहीं माने !

आपका शुभाकांक्षी
संस्थापक -सत्य शोधक मिशन   

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