धम्म प्रभात
इसे सभी लोग नहीं पढ़े
ब्राह्मणो ने कोई कसर नही छोङी जलील करने मे और हमने कसर नही छोङी जुते खाने मे।
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मैं धर्म की गुलामी के लिए ब्राह्मणों को दोष नहीं देता।
ये तो हम पिछड़ों को ही लात खाने की आदत पड़ी हुई है !
👉वर्ना ब्राह्मणों ने तो अपने धर्म से हमको दूर रखने की पूरी कोशिश की थी ।
👉उसने पिछड़ा को अपने धार्मिक ग्रंथ पढने से दूर रखा ।
👉उसने अपने ग्रंथो को सुनने से दूर रखा और ऐसा करने पर कानों में पिघला शीशा डालने की सजा का भी प्रावधान किया ।
👉उसने पिछड़ा को अपने धर्म के मन्त्र आदि उच्चारित करने से भी दूर रखा और ऐसा करने पर जुबान काटने का भी प्रावधान किया।
👉उसने पिछड़ो को अपने मंदिरों से भी दूर रखा। उसने अपने ग्रंथो में भी लिखा कि ये देवी देवता सिर्फ द्विजों का भला करता हैं। अब बतायो द्विज कौन?
👉फिर भी हम वो ही करते हैं जिसको वो मना करता हैं और हम पिछड़ा दोष ब्राह्मणों को देते हैं।
👉 लात खाने की हमारी आदत जाती ही नहीं है । इतने सारे प्रतिबन्ध होने के बावजूद भी हमारे धार्मिक गुलाम होने के क्या कारण हैं?
👉 सबसे ज्यादा कावङ लाने वाले भी अपने लोग है।
👉रामायण गीता पाठ सुनने वाले कलश यात्राओ मे शामिल होने वाले भी हम ही है।
👉 हर जगह पैदल यात्रा भी हम ही करते नजर आऐंगे ।
अब रामदेवरा मे सब काम छोङकर धक्के खाने जाने वालो मे भी ज्यादा हम ही मिलेंगे।
बाबासाहेब डॉ आंबेडकर जी ने सही कहा है
👉 ‘ब्राह्मणवादी शोषण ब्राह्मणों के ज्ञान की वजह से नहीं बल्कि शूद्रों के अज्ञान की वजह से है। ‘
👉 उच्च पदस्थ अधिकारी, नेता भी मंदिरो मे लाते खा चुके है लेकिन फिर भी वही जाऐंगे जहां लाते मिलती हो ,अपमान होता हो ।
👉 यह मानसिक विकलांगता नही है तो और क्या विद्वता है ?
सोचो ! जागो !! और जगाओ !!!
अत्त दीपो भव
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