घर्म,ईश्वर और जाति तीन भूत हैं,
ये कैंसर,कुष्ट,एडस रोग जैसी बिमारियाँ है, जो मानव शरीर को अपना शिकार बनाती है।अगर समाज को तरककी करना करनी है तो इन विनाशक शक्तियों से एक जुट होकर मुकाबला करना होगा। ईश्वर हमेशा चुपचाप रहता है और उसके वकालती उसका नाम लेकर लोगों को मूर्ख बना कर लूटते हैं।
मानव कल्याण के लिए धर्म नष्ट होना जरुरी है।अगर थर्म नष्ट होता है तो
ईश्वर भी नष्ट होता है।तर्कवादी,मानवतावादी और वैज्ञानिक सोच लोगों के बीच फैलनी चाहिए।
कोई भी थर्म या उसकी पौराणिक कथाएँ और सिद्धान्तों में कभी भी
आसथा नही रखनी चाहिए।
ब्राह्मण,पुरोहित जानते है कि ईश्वर केवल काल्पनिक है। इस सत्य को अपने तक सीमित रखा है और मानव आकार के ईश्वर को आम जनता के गले मड दिया है।जिससे वह अपना विशेष आसतित्व और कर्मकाण्ड को बनाये रख सके।
अगर ईश्वर कुछ हो सकता है तो सत्य और विवेक हो सकता है।ईश्वर के नाम पर सब कुछ कहा गया किया गया।म उसका एक निष्पक्ष विशलेषण होना चाहिए।
एक पत्थर को लगा कर उसे ईश्वर कहें,इस कार्य का कोई अर्थ नही है
और हर साल उस पत्थर की शादी कराई जाती है।इन मूर्तिंयो को मंदिरों के कमरों मे कैदी की तरह तालों मे बन्द रखा जाता है।
कयों,धर्म के नाम पर नर संहार होते है?
कयों बडी,बडी लडाईयाँ हुई है?कयों धर्म के नाम पर कष्ट और समस्यायें मानवता के उपर हावी हो जाती है।हम कह सकते है कि यस सव दैवत्व के कारण नही है वलकि मनुष्य की अज्ञानता के कारण है।
कोई थर्म अपने आप उभर कर नही आता है,वलकि उसका निर्माण किया जाता है।ईश्वर और धर्म दोनो ही समाज को व्याकुल करते हैऔर चकर मे डालते है।जब कि ये अपना असतित्व खूद असथापित नही कर सकते है।उन्हे दूसरो की मदद लेनी पडती है। उन्हे बडे बडे आडंबरो की मदद लेनी पडती है। हमे यह विशवास दिलाया जता है कि ये मानव कलयाण के लिए बने है फिर ईश्वर और मानव के संबंथो के लिए गुरुओं,पंडितों,पादरियोंऔर मोलवियों की कयों जरुरत परती है।व्यक्ति ही ईश्वर के नाम पर सब कुछ करता है।
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