Thursday, 2 February 2017

आन्ध्र के मंदिरों की कहानी

आन्ध्र के मंदिरों की कहानी

आँध्रप्रदेश के प्राचीन मंदिरों को देखे तो बड़ा ही कॉमन फाइंडिंग मिलती है | फिर वो चाहे वो अमरावती के मंदिर हो, गोली जग्यापेटा, रमेरिद्दिअपलि, नागार्जुनकोंडा, बिक्कावोलु, उद्दवाल्ली, चेज़र्ला, या सलिहुन्दम के मंदिर हो , जो पुरातात्विक खुदाई हुई इन मंदिरों की या इनके आसपास के तो जो भी सामग्री मिली थी वो सारी बौधिक थी | इन जगह के मंदिरों का स्थापत्य कला एक जैसी है और ये स्थापत्य कला वोही है जो समकालीन बुद्ध मंदिरों की है | इन सभी मंदिरों में जो आधार था वो वर्गाकार था और जो छत है वो अर्ध चंद्राकर यानि कच्छप के कवच के भाँती जैसा बौधिक स्तूपों में मिलता है | जो सबसे बड़ी समान बात मिलती है जो लेखन मिलता है वो पाली और प्राकृत भाषा में है और बुद्ध का दसवां नाम यानि भागवत का उल्लेख मिलता है | इसी भगवत नाम को देख ASI ने पहले इन्हें विष्णु मंदिर बताया था | पर जब और खुदाई हुई तो ASI की हालत काटो तो खून नहीं वाली हो गयी थी | जो और समानता मिलती है वो है इन मंदिरों के पास ही खुदाई में मिले विहार जिसमे भिक्षुकों के रहने की व्यवस्था होती थी | इन विहार की दीवारों पे बुद्ध की प्रतिमा उकेरी हुई भी मिली और विहारों के मुख्य द्वार पर यक्ष और यक्षिणी की उपस्थिति | इन सभी मंदिरों और उस समय के बड़े बौधिक मंदिरों जैसे महाबलीपुरम में वोही स्थापत्य चीनी यात्री हाँ सान्ग ने अपने यात्रा विवरण में लिखा था | इन मंदिरों के बारे में भी उसने अपने यात्रा विवरण में लिखा था | जिससे यह स्पष्ट होता है की इन मंदिरों का रूपांतरण होने से पहले ये बौधिक मंदिर थे | इन मंदिरों को ASI ने अपनी प्रारम्भिक रिपोर्ट्स में हिन्दू विष्णु और भैरव या शिव मंदिर बताया था | पर पूरी खुदाई हुई तो पहले वाली रिपोर्ट का कोई मतलब नहीं रह गया था |
यहाँ आंध्र के मंदिरों का उल्लेख इसलिए आवश्यक है की आन्ध्र के मंदिरों का स्थापत्य दक्षिण में पुराने मंदिरों से अलग है | जहाँ आन्ध्र के प्राचीन मंदिरों का स्थापत्य भारतीय है जबकि तमिलनाडु, कर्नाटक  और केरला के मंदिरों पे जावानिज स्थापत्य कला का प्रभाव देखा जा सकता है | जहाँ तमिलनाडु या कर्नाटका को देखे तो जो प्राचीन अवशेष मिलते है वो गुफाओं से मिलते है जो छठी सदी के आसपास के है जबकि आंध्र में ऐसा कुछ नहीं मिलता | ये ध्यान देने वाली बात है की जब थाईलैंड को देखते है तो जो पहले बौधिक अवशेष मिलते है थाईलैंड में वो गुफाओं में ही मिलते है जब अशोक ने दो बौधिक भिक्षुकों को वहां इसके प्रचार के लिए भेजा था तो वो वहां गुफा में ही जा कर रुके थे

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