Thursday, 2 February 2017

BAMCEF

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 हमारे समाज में बहुत ऐसे लोग हैं जो ये सोचते हैं कि केवल ‘जयभीम’ बोलने मात्र से सामाजिक क्रांति हो जाएगी। कुछ लोग ये कहते है कि सप्ताह में एक बार बुद्ध विहार जाकर ‘बुद्धम शरणम गच्छामी’ कहने से सामाजिक क्रांति हो जाएगी, और कुछ करने की ज़रूरत ही नहीं हैं। कुछ लोगों का मानना हैं कि साल में एक बार महापुरुषोंकी ‘जयंती’ मनाने से ही सामाजिक क्रांति अपने आप हो जाएगी। कुछ महानुभाव ऐसे है जिनका मानना है कि ‘आरक्षण की लढाई’ ही सामाजिक क्रांति का अंतिम लक्ष्य है। बहत सारे नेता और संघटन ये सोचते है कि अन्याय अत्याचार के विरोध में धरना- प्रदर्शन करने से या हाय-हाय करने से, निषेध यात्रा निकालने से या ज़िंदाबाद मुर्दाबाद करने से क्रांति हो जाएगी और समाज की सारी समस्याओं का समाधान हो जाएगा। कुछ लोग ऐसा सोचते हैं की कंबल बांटने जैसे सेवाभावी कार्य करने से क्रांति हो जाएगी। अगर यही सब करने से सामाजिक क्रांति होनी होती, तो वो तो अब तक हो जानी चाहिए थी। क्योंकि बाबासाहब के परिनिर्वाण के बाद हमारे ज़्यादातर लोग यहीं सब करते आ रहें हैं। दरअसल सच्चाई यह है कि सामाजिक आंदोलन के नाम पर संघटन बनाने वाले हमारे ज़्यादातर लोगों को सामाजिक क्रांति का न तो अर्थ पता हैं न ही ये पता है कि वो कैसे होगी। कुछ भी करने से सामाजिक क्रांति नहीं हो सकती। सामाजिक क्रांति का एक निश्चित क्रम होता है जो की निम्नानुसार हैं: सामाजिक क्रांति ये दो विचारधाराओं के बीच संघर्ष के परिणति के रूप में होती है। इसका अर्थ ये है कि दो विचारधाराओं का संघर्ष होना ज़रूरी हैं। एक शोषकों की विचारधारा और दूसरी शोषितों की विचारधारा। इसके लिए शोषक लोग कौन है और उनकी विचारधारा क्या है इसकी प्रथमतः पहचान होना ज़रूरी है। उनकी नीति, रणनीति, कार्यक्रम और षड्यंत्र इन सबको जानना और समझना ज़रूरी है। शोषकों की विचारधारा को खत्म करनेके लिए शोषितों को अपनी विचारधारा बनानी पड़ती हैं (जो कि हमारे महापुरुषों बुद्ध फुले शाहु अंबेडकर पेरियार आदि ने पहले से ही बनाई हुई है। शोषक लोग शोषितों पर अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए उनकी (ब्राह्मणवादी) विचारधारा का निरंतर प्रचार करते रहते है, जिसके कारण हमारे लोग (शोषित लोग) उनकी विचारधारा के प्रभाव में है अर्थात उनकी विचारधारा के गुलाम है। उनको उस प्रभाव से मुक्त करने के लिए अर्थात शोषको की विचारधारा खत्म करने के लिए शोषितों के महानायकों की विचारधारा का निरंतर प्रचार प्रसार करना ज़रूरी है। विचारधारा के निरंतर प्रचार प्रसार से हमारे लोग, जो दुश्मन की विचारधारा से प्रवाहित हैं, वें उससे मुक्त हो जाएंगे और उनके आचरण में परिवर्तन हो जाएगा। लोगों के सोच-विचार और आचरण में परिवर्तन आने से समाज में जो वर्तमान जातीय संबंध हैं (जो द्वेष और घृणा पर आधारित है) उस में परिवर्तन हो जाएगा। शूद्रों की विभिन्न जातियाँ, जिनको शासक जाति के लोगों से तोड़कर आजतक एक दूसरे से आपस में लड़वाया हैं, में एकता प्रस्थापित हो जाएगी अर्थात समाज परिवर्तन हो जाएगा। चूंकि राजनीति ये समाज का आईना है, इसलिए समाज परिवर्तन होने से राजनीतिक परिवर्तन हो जाएगा। राजनीतिक परिवर्तन होने से न सिर्फ सत्ताधारी पार्टी बादल जाएगी बल्कि सत्ताधारी शासक जाती भी बदल जाएगी अर्थात हमारा समाज शासक बन जाएगा। शासक जाती बदल जानेसे शासको की नीतियों में और राजनीतिक संरचना में आमूलचुल परिवर्तन हो आयेगा जिससे व्यवस्था परिवर्तन हो जाएगा। व्यवस्था परिवर्तन होने से शासकों की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और धार्मिक नीतियों में परिवर्तन हो जाएगा जिससे सामाजिक, आर्थिक संस्कृतिक और धार्मिक परिवर्तन हो जाएगा। जब सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और धार्मिक परिवर्तन हो जाएगा, तो इसिकों तो सामाजिक क्रांति कहते हैं। इसका अर्थ ये हुआ कि विचारों का निरंतर प्रचार प्रसार जन-जन में करना ये ही सामाजिक क्रांति की पहली सीडी हैं। जो लोग सामाजिक क्रांति करना चाहते है, उन्होने हमारे महापुरुषों की विचारधारा का निरंतर प्रचार प्रसार करना चाहिए तभी क्रांति हो सकती है, अन्यथा नहीं।

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