हाल ही में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता की मौत हो गई. उनकी मौत के बाद सोशल मीडिया पर तरह-तरह की बहस छिड़ी हुई है. जयललिता को दफनाए जाने को लेकर भी तरह-तरह की बातें सोशल मीडिया पर छाई रहीं. सामाजिक न्याय को लागू करने को लेकर भी जयललिता की तुलना पिछड़ी जाति के अन्य मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल से की जा रही है. जयललिता की ऐसी ही एक तुलना यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कार्यकाल से की जा सकती है.
जयललिता ब्राह्मण थीं . सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भी उन्होंने दलितों और पिछड़ों को 69 फीसदी आरक्षण जारी रखा. जयललिता ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण के सम्बंध में खींची गई लक्ष्मण रेखा को लांघा और दलितों-पिछड़ों के लिए 69 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था दी. जयललिता ने इसी साहस के चलते केन्द्र की सरकार को 74वां संविधान संशोधन करने को बाध्य किया. लोग कह सकते हैं कि जयललिता पेरियार, अन्नादुराई और एम. जी. रामचंद्रन के द्रविड़ आंदोलन के चलते दलितों पिछड़ों में आई चेतना के कारण ये सब करने को बाध्य हुई. कारण जो कुछ भी हो पर सच्चाई ये है कि जयललिता के जमाने में दलितों-पिछड़ों को 69 फीसदी आरक्षण मिला. जयललिता चाहती तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देकर ब्राह्मणवादियों के आगे झुक भी सकती थी. पर वो नहीं झुकी…
देश के दलित पिछड़े ये बात हमेशा याद रखेंगे.
और एक तरफ हैं अखिलेश यादव. देश के सबसे बड़े सूबे की 60 फीसदी से अधिक आबादी वाले पिछड़ी जाति के लोग सामाजिक न्याय पाने की आस लगाए अखिलेश यादव के पीछे लामबंद हुए और उन्हें पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार चलाने का मौका दिया.
अखिलेश जाति से यादव हैं…यानि उत्तर भारत की वो जाति जिसने गली-गली गांव-गांव में ब्राह्मणवाद को चुनौती दी. जिस जाति के अटूट समर्थन के बल पर अखिलेश यादव देश के सबसे बड़े सूबे के मुख्यमंत्री बने.
पर मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश यादव इतने कमजोर साबित हुए कि ब्राह्मणवादियों के षड्यंत्र के आगे झुकते हुए उन्होंने पहले यूपी पीसीएस से त्रिस्तरीय आरक्षण हटवा दिया. फिर राज्य सरकार की हर नौकरी में पिछड़ों को संवैधानिक 27 फीसदी आरक्षण तक नहीं दिया गया . राज्य के गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय में 83 में से 82 ब्राह्मणों की नियुुक्ति का रिकार्ड इन्हीं महानुभाव के शासन काल में बना जिसने दलितों-पिछड़ों के साथ सामाजिक अन्याय की सारी हदें पार कर दी. और सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में 51 में से 48 पद अनारक्षित या कहें ब्राह्मणों को आरक्षित करने का श्रेय भी इन्हीं श्रीमान को जाता है.
परिस्थितियों की विडंबना देखिए जिससे सामाजिक न्याय की उम्मीद थी वो सामाजिक न्याय की हत्या कर रहे हैं वो भी पिछड़ों का वोट लेकर. और जिससे सामाजिक न्याय की उम्मीद नहीं थी उसी ने अपने सूबे में सबसे अधिक सामाजिक न्याय स्थापित किया. मजबूरी चाहे जो हो पर हकीकत ये है कि तमिलनाडु में ही देश में सबसे अधिक आरक्षण की सुविधा है और मानव विकास के तमाम सूचकांकों पर तमिलनाडु कम आरक्षण वाले मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, यूपी, बिहार जैसे राज्यों से मीलों आगे है.
अब तय आपको करना है …
ब्राह्मणवाद को कौन ढो रहा है?
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