मनु स्मृति पर ओशो के विचार
मनु की स्मृति पढ़ने जैसी है। मनु की स्मृति से ज्यादा अन्यायपूर्ण शास्त्र खोजना कठिन है, क्योंकि कोई न्याय जैसी चीज ही नहीं है। मनुस्मृति हिंदुओं का आधार है--उनके सारे कानून,समाज-व्यवस्था का। अगर एक ब्राह्मण एक शूद्र की लड़की को भगाकर ले जाये तो कुछ भी पाप नहीं है। यह तो सौभाग्य है शूद्र की लड़की का। लेकिन अगर एक शूद्र, ब्राह्मण की लड़की को भगाकर ले जाये तो महापाप है। और हत्या से कम, इस शूद्र की हत्या से कम दंड नहीं। यह न्याय है! और इसको हजारों साल तक लोगों ने माना है।
जरूर मनाने वाले ने बड़ी कुशलता की होगी। कुशलता इतनी गहरी रही होगी, जितनी कि फिर दुनिया में पृथ्वी पर दुबारा कहीं नहीं हुई। ब्राह्मणों ने जैसी व्यवस्था निर्मित की भारत में, ऐसी व्यवस्था पृथ्वी पर कहीं कोई निर्मित नहीं कर पाया, क्योंकि ब्राह्मणों से ज्यादा बुद्धिमान आदमी खोजने कठिन हैं। बुद्धिमानी उनकी परंपरागत वसीयत थी। इसलिये ब्राह्मण शूद्रों को पढ़ने नहीं देते थे क्योंकि तुमने पढ़ा कि बगावत आई। स्त्रियों को पढ़ने की मनाही रखी क्योंकि स्त्रियों ने पढ़ा कि बगावत आई।
स्त्रियों को ब्राह्मणों ने समझा रखा था, पति परमात्मा है। लेकिन पत्नी परमात्मा नहीं है! यह किस भांति का प्रेम का ढंग है?कैसा ढांचा है? इसलिये पति मर जाये तो पत्नी को सती होना चाहिये, तो ही वह पतिव्रता थी। लेकिन कोई शास्त्र नहीं कहता कि पत्नी मर जाये तो पति को उसके साथ मर जाना चाहिये, तो ही वहपत्नीव्रती था। ना, इसका कोई सवाल ही नहीं।
पुरुष के लिये शास्त्र कहता है कि जैसे ही पत्नी मर जाये,जल्दी से दूसरी व्यवस्था विवाह की
करें। उसमें देर न करें। लेकिन स्त्री के लिये विवाह की व्यवस्था नहीं है। इसलिये करोड़ों स्त्रियां या तो जल गईं और या विधवा रहकर उन्होंने जीवन भर कष्ट पाया। और यह बड़े मजे की बात है, एक स्त्री विधवा रहे, पुरुष तो कोई विधुर रहे नहीं; क्योंकि कोई शास्त्र में नियम नहीं है उसके विधुर रहने का।
तो भी विधवा स्त्री सम्मानित नहीं थी, अपमानित थी। होना तो चाहिये सम्मान, क्योंकि अपने पति के मर जाने के बाद उसने अपने जीवन की सारी वासना पति के साथ समाप्त कर दी। और वह संन्यासी की तरह जी रही है। लेकिन वह सम्मानित नहीं थी। घर में अगर कोई उत्सव-पर्व हो तो विधवा को बैठने का हक नहीं था। विवाह हो तो विधवा आगे नहीं आ सकती। बड़े मजे की बात है;कि जैसे विधवा ने ही पति को मार डाला है! इसका पाप उसके ऊपर है। जब पत्नी मरे तो पाप पति पर नहीं है, लेकिन पति मरे तो पाप पत्नी पर है! अरबों स्त्रियों को यह बात समझा दी गई और उन्होंने मान लिया। लेकिन मानने में एक तरकीब रखनी जरूरी थी कि जिसका भी शोषण करना हो, उसे अनुभव से गुजरने देना खतरनाक है और शिक्षित नहीं होना चाहिये। इसलिये शूद्रों को,स्त्रियों को शिक्षा का कोई अधिकार नहीं।
तुलसी जैसे विचारशील आदमी ने कहा है कि 'शूद्र, पशु, नारी,ये सब ताड़न के अधकारी।' इनको अच्छी तरह दंड देना चाहिये। इनको जितना सताओ, उतना ही ठीक रहते हैं। 'शूद्र, ढोल, पशु,नारी...' ढोल का भी उसी के साथ--जैसे ढोल को जितना पीटो,उतना ही अच्छा बजता है; ऐसे जितना ही उनको पीटो, जितना ही उनको सताओ उतने ही ये ठीक रहते हैं। यही धारा थी। इनको शिक्षित मत करो, इनके मन में बुद्धि न आये, विचार न उठे। अन्यथा विचार आया, बगावत आई। शिक्षा आई, विद्रोह आया।
विद्रोह का अर्थ क्या है? विद्रोह का अर्थ है, कि अब तुम जिसका शोषण करते हो उसके पास भी उतनी ही बुद्धि है, जितनी तुम्हारे पास। इसलिये उसे वंचित रखो।-ओशो - बिन बाती बिन तेल--(झेन कथा) प्रवचन--8
🌈"अचानक *ओशो* बहुत याद आये"
आपको शायद याद हो अमेरिका मे ओशो को बिना किसी गिरफ़्तारी वारंट के बिना किसी प्राथमिकी के अमरीकी पुलिस ने अचानक गिरफ़्तार कर लिया था और १२ दिनों तक एक निर्दोष और निहत्थे व्यक्ति को बेड़ियों, हथकड़ियों, और ज़ंजीरों से जकड़ कर विभिन्न जेलों मे घुमाते हुए उन्हे यातना के कई आयामों से गुज़ारा।
विश्व मीडिया बताती है, उस समय पूरे विश्व में ओशो के अनुयायियों की संख्या करोड़ों मे थी पर पूरे विश्व में कहीं कोई अशांति या हिंसक प्रदर्शन नहीं हुए।
ओशो जिस-जिस जेल में पहुँचते थे वहाँ सुबह-सुबह आदमियों की भीड़ नहीं वल्कि फूलो से लदे ट्रक पहुच जाते थे।
'अकलोहोमा जेल' के जेलर ने अपनी आत्मकथा मे लिखा है ...................
मैं सेवानिवृत्ति के क़रीब था, मैंने बहुत क़ैदियों को अपनी जेल में आते जाते देखा है पर जब ये शख्श(ओशो) मेरी जेल में आया तो मैंने महसूस किया और देखा कि मेरी जेल एक चर्च के रूप में बदल गई थी। पूरी जेल फूलों से भर गई थी, कोई जगह ख़ाली नही थी। तब मैं ख़ुद उस शख़्स के पास गया और अनायास ही मेरी आँखों से अश्रु बहने लगे, मैं समझ नही पा रहा था और भरे गले से मैंने उनसे पूछा कि, आप ही बताइए इन फूलों का मैं क्या करूं ? ओशो में मेरी तरफ प्रेम पूर्ण दृष्टि डाली और बोले इन फूलों को पूरे शहर के स्कूलों और कालेजो मे भिजवा दिया जाय। ये मेरी तरफ से उन विद्यार्थियों को भेंट है जो अभी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
जब ओशो को जेल से अदालत लाया जाता था तब उनके लाखों अनुयायी नगरवासियों को फूल भेंट करते थे और शांतिपूर्ण ढंग से प्रतीक्षारत रहते कि कब ओशो कोर्ट से बाहर आयेंगे।
जब ओशो कोर्ट से पुन: गुज़र जाते तो कोर्ट से लेकर जेल तक की सड़क फूलों से पटी होती थी।
पूरे संसार से कही ऐसी कोई ख़बर नहीं थी कि ओशो के किसी अनुयायी ने कोई उग्र आचरण किया या उग्र वक्तव्य दिया हो।
जब भी कोई उनसे ओशो के सम्बंध में कुछ पूछता तो आँखों में आँसुओ के साथ यही कहते- प्रकृति कुछ प्रयोग कर रही है, हाँ ये प्रयोग हमारे लिये थोड़ा असहनीय और कष्टप्रद जरूर है पर जैसी परमपिता की मर्ज़ी।
हमारे सद्गुरु ने हमे ये सिखा दिया है कि कैसे परम स्वीकार के भाव में जिया जाता है।
जिस जेल से ओशो को जाना होता, वहाँ का जेलर अपने परिवार के साथ उन्हें विदा करने के लिये उपस्थित होता और ओशो से आग्रह करता कि क्या मेरे परिवार के साथ आप अपनी एक फ़ोटो हमें भेंट करेंगे ? और ओशो मधुर मुस्कान से मुस्कराते हुए वहीं खड़े हो जाते और कहते कि आओ।
बहुत पहले जब ओशो भारत में थे तब उन पर छूरा फेंका गया। ओशो ने तत्क्षण कहा, कोई अनुयायी उन सज्जन को कुछ भी न कहे और उन्हें छुए भी नहीं। वे कुछ कहना चाहते हैं, ये उनके कहने का ढंग है। उन्हें बिल्कुल छोड़ दिया जाए फिर अगले दिन ओशो ने प्रवचन के मध्य कहा- मैं यह देख कर आनंदित हूँ कि तुम में से किसी ने उन सज्जन को कोई चोट नही पहुँचाई , वल्कि प्रेम से उन्हें बाहर जाने दिया गया। यही मेरी शिक्षा है। कल कोई मेरी हत्या का भी प्रयास करे या जान भी ले ले। लेकिन तुम उन्हें प्रेम ही देना ।
सच्चे सद्गुरु की हमें शिक्षा और दीक्षा उनके अनुयायियों में परिलक्षित होती है।
अनुयायी शब्द बड़ा समझने वाला है- अपने गुरु के बताये मार्ग पर ठीक ढंग से चलने वाले को अनुयायी कहते हैं । शांत, अनुशासन-शील, सर्व-स्वीकार्य और सुदृढ़ अनुयायी ही गुरु की सदाशयता को परिभाषित करते हैं।🚩🙏
🌈मै चकित हूँ कि शांति के दूत #बाबा रामरहीम# ने क्या अद्भुत शिक्षा अपने भक्तों को दी है- पूरे शहर को आग में झोंक दिया, 35 से ज्यादा लोग मारे गये और न बाबा और न ही उनके किसी प्रधान ने कोई ऐसा प्रयास किया जिससे यह अराजकता रुक सके और न ही कोई व्यक्तव्य दिया जिससे चरम पर पहुँची हिंसा और उग्रता ठहर सके।
बहुत आश्चर्य होता है !😔
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