Wednesday, 8 February 2017

बाबा साहब का अंतिम सन्देश

बाबा साहब का अंतिम सन्देश पिछली रात को सोते सोते सोच रहा था कि मैं उन लोगों के लिए क्या लिखूं, जो पढ़े लिखे है, समझदार है। 

 लेकिन फिर भी ब्राह्मणों के बनाये धर्म, जात्ति और पंथ के नाम पर निरर्थक बहस करते हुए अपनी जिंदगी बर्बाद कर देते है। मैं आधा सोया और आधा जगा हुआ था। तभी दिमाग में एक ख्याल आया 

“बाबा साहब का अंतिम सन्देश लिख दे” जो सचा अम्बेडकरवादी या मानवतावादी होगा खुद ब खुद समझ जायेगा। और जो सिर्फ अम्बेडकरवादी होने आडम्बर करते है समाज के लोगों को गुमराह करते है उनसे वैसे भी तेरा भला नहीं होने वाला। वो चिलाते रहेंगे। क्योकि उनका मकसद ही है चिलाना, लोगों को बांटना, मूलनिवासी समाज के लोगों को एक ना होने देना। दोस्तों, नीचे बाबा साहब का अंतिम सन्देश लिख रहा हूँ। 

जो समझ गया वो सिकंदर…… जो ना समझे वो…….. । आप खुद समझदार है।

 31जुलाई 1956, दिन मंगलवार, मैँ सायं 5.30 बजे डाक की गठरी लिए बाबा साहेब के पास पहुँचा वे बरामदे मे स्टूल पर गद्दी रखकर अपने पैर टिकाए बैठे थे और उन्होने सिर कुर्सी की बैक पर टिका रखा था। उनका थका मांदा चेहरा मैँ चुपचाप देखता रहा और थोड़ी देर बाद बाबा साहेब जाग गए। जल्दी जल्दी पत्रो के उत्तर लिखवा कर मेरे कंधे का सहारा लेते हुए सोने के कमरे मे गए और तुरंत लेट गए एक सवाल काफी दिनोँ से मेरे मन मे हलचल मचा रहा था। पर मेरी हिम्मत नही पड़ती थी। क्योँकि बाबा साहेब का गुस्सा ज्वाला मुखी की तरह फटता था। मैँने साहस बटोर कर अर्से से मन मे दबा प्रश्न पूछ ही लिया,“सर, आजकल आप बहुत दुखी और हताश क्योँ दिखते हो,बीच बीच मेँ रो भी पड़ते हो,क्षमा करेँ,पर बताएँ जरुर…।” 

 कुछ क्षणोँ की चुपी तोड़ते वे उद्विग्न हो उठे और भावुकता के कारण आवाज रुँध गई और कहा,”तुम नही जानते कि मुझे किस बात का गम है और किन कारणोँ से मैँ इतना दुखी हूँ। पहली चिँता तो मुझे यह है कि मै अपने जीवन मैं अपना मिशन पूरा नही कर पाया। मैं अपने जीवन में अपने लोगोँ को शासक वर्ग के रूप मे देखना चाहता था जहाँ वे राजनीतिक शक्ति के हिस्सेदारबने। मैं तो लगभग अपंग और बीमारी के कारण बिस्तर से लग गया हूँ। मैं तो चाहता था पढे लिखे लोग मेरे मिशन को आगे बढाऐँगे। मैं जो कुछ कर सका उससे पढे लिखे लोग मौज उडा रहे हैँ, अशिक्षित ग्रामीणो की हालत ज्योँ की त्योँ बनी हुई है। 

 लगता है मेरा जीवन थोड़ा ही बचा है। मैं तो चाहता थाबहुजनोँ मे से कोई आगे आए और मेरे आंदोलन को आगे बढाने की जिम्मेदारी ले पर मुझे ऐसा कोई नही दिखता पढे-लिखे और राजनेता जिन पर मैने भरोसा किया था मिशन को आगे बढाऐँगे। वे नेतृत्व और शक्ति के लिए आपस मे लड़ रहे है। लंबी सांस लेते हूए और गीली आँखो से आँसू पोँछते हुए बाबा ने कहा, 

“नानक चंद मेरे लोगोँ को बता देना कि जो कुछ मैने किया है, वह अपने विरोधियो की चारोँ और से गालियाँ, विरोधियोँ से संघर्ष और कुचल कर रख देने वाली बाधाओँ से गुजरकर कर पाया हूँ। 

 मैं बहुत मुश्किल से इस कारवाँ को यहाँ तक लाया हूँ। यह कारवाँ आगे ही बढते रहना चाहिए। चाहे कितनी ही बाधाएँ, रुकावटेँ,परेशानियाँ क्योँ न आएं, रत्तू, मेरे लोग यदि इस कारवाँ को आगे नही ले जा सकते इसे यहीँ रहने दे किसी भी हालत मे पीछे न जाने देँ।😞😒😞 

जय भीम नमो बुद्धाय

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