आँखें खोलों अंधभक्तो
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जय भीम
मंदिर में चोरी हो गई.
सुबह सारे पुजारियों ने रोना धोना मचा रखा था. लोगों की भीड़ लगी थी. भीड़ को चीरते हुए एक आदमी पुजारियों के पास पहुंच गया,,,,,
आदमी ... "क्या हो गया पंडितजी ?"
पुजारी ... "घोर कलयुग आ गया है, भगवान के भी पैसे नहीं छोड़े चोरों ने. थाने में रिपोर्ट करनी पड़ेगी, थाने को जलाना पड़ेगा, उग्र आंदोलन करना पड़ेगा."
आदमी ... "पंडितजी, पैसे तो भगवान के चोरी हुए हैं, तुम क्यों रिपोर्ट करने जा रहे हो ? भगवान स्वयं करेंगे."
पुजारी ... "चोरों ने गलत किया है."
आदमी ... "कर्म प्रधान है. चोरों ने तो कर्म किया है. सही गलत तो भगवान तय करेगा."
पुजारी ... "नहीं, चोरी करना गलत है. ये भगवान का अपमान है."
आदमी ... "नहीं, ये काम भगवान ने ही करवाया है. क्योंकि भगवान की
मर्जी के बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता."
पुजारी ... "लेकिन इस जघन्य अपराध के लिए चोर को दंड देना अनिवार्य है."
आदमी ... "हम क्या लेकर आये थे, हम क्या लेकर जायेंगे ? हम कौन होते हैं किसी को दंड देने वाले. जो कुछ करता है, सब ऊपर वाला करता है."
पुजारी ... "ज्ञान, ज्ञान की जगह है. हमे तो हमारा पैसा चाहिए ... बस."
आदमी ... "तो ये बोल कि तुझे तेरे पैसे चाहिएं. फिर भगवान को क्यूं बदनाम कर रहा है ... अपने इस धन्धे के लिए ?"
जय भीम नमो बुद्धाय जय भारत
जागो और जगाओ अंधविश्वास पाखंडवाद भगाओ
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