दलित और कुत्ता
एक दलित अफसर हनुमान का भक्त था।
रोज वह हनुमान के मंदिर मे जा कर प्रसाद और पैसे
चढाता फिर घर आ कर अपने कुत्ते को भी प्रसाद
खिलाता।
एक दिन उसका कुत्ता भी उसके पीछे-पीछे मंदिर
तक चला गया, वहां सभी लोग कुत्तों को भी
प्रसाद डालते थे। जैसे ही वह अफसर का कुत्ता
प्रसाद खाने लगा तो वहाँ के लोकल कुत्ते उस पर
टूट पडे। जैसे-तैसे उस अफसर ने अपने कुत्ते को
बचाया लेकिन कुत्ते के कई घाव हो चुके थे, घर
लाकर अफसर ने कुत्ते की मरहम पटटी की
और कुत्ते को उपदेश देने लगा , क्या जरूरत थी
मंदिर आने की, अकल ठिकाने आ गइ न, अब तो
कभी मंदिर नहीं जायेगा।
कुत्ते ने जवाब दिया *"मैं तो कुत्ता हूँ फिर भी
कसम खाता हूँ क़ि जहाँ मेरी बेइज्जती हुई है वहाँ
कभी नहीं जाउंगा। पर तुम तो जानवरों से भी
गिरे हुए हो, तुम्हारे बाप दादा और माँ बहिनो
की हिंदू धर्म के नाम पर मंदिरो मे अनेको बार
बेइज्जती हुई हैं फिर भी तुम कितने बेशर्म हो, तुम्हें
लात मारने के बाद भी बार बार उन्ही हिन्दू
मंदिरो में जाते हो।*
"कहीं हम भूल न जाएँ~
धर्म नहीं, अधिकार चाहिए !!
जय भीम जय भीम
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