अदभुत हैं मायावती।
अदभुत हैं मायावती।
बिजली की तेज़ी से फैसले लेती हैं। जिससे दुश्मनी ली। उसे खुद ही ठीक कर दिया।
क्या स्वामी प्रसाद मौर्या। कौन बाबू सिंह कुशवाहा।
कोई आहरी-बाहरी मदद नही। कोई ईआर/पीआर फर्म नही। कोई कॉर्पोरेट लॉबिस्ट साथ नही। किसी ईके/पीके (प्रशांत किशोर) की भी ज़रूरत नही।
राजनीति रिश्ते बनाने का खेल है। मैंने मायावती के तौर पर पहला ऐसा राजनीतिज्ञ देखा है जो बिगड़े रिश्तों का मुंह हमेशा उल्टा ही रखता है।
कभी कोई समझौता नही।
मुलायम से दुश्मनी है तो खुलकर है।
क्या मजाल कि नेता जी संसद में बहन जी से आँख भी मिला लें।
राजा भैया को ठोंका तो ऐसा ठोंका कि ज़ख्म आज भी बिलबिलाते हैं। मायावती का राज आते ही राजा भैया जाने किस अज्ञात गुफ़ा में गुम हो जाते हैं। चूं तक नही निकलती मुँह से।
उमाकान्त यादव, रमाकांत यादव, धनञ्जय सिंह, उख्तार-मुख्तार,डीपी/अतीक़ सब के सब घुटने टेक शरणागत हो जाते हैं।
ददुआ और ठोकिया जिस दिन से मायावती की आँख में चुभना शुरू हुए। उनकी डकैतगिरी के टायर में पूरे 36 इंच का कीला भोंक दिया गया।
मायावती की सरकार आते ही दोनो को "परमानेंटली" ठोंक दिया गया। उसी यूपी पुलिस ने ठोंका जो कल तक उनके आगे अनऑफिसियल सलाम ठोंकती थी।
कोई इनेमा/सिनेमा का चेहरा नही चाहिए मायावती को। यहां तो बस एक ही सुपरस्टार है।
मायावती खुद।
उनके डंडे का खौफ कानून-व्यवस्था की पीठ पर गज़ब के सीमेंट की चिनाई करता है। .
ये पीठ अक्सर सीधी ही मिलती है।
यूपी में बहन जी ने पूरी तरह दंगा मुक्त शासन दिया।
यहाँ तक कि बाबरी पर फैसला आने के समय भी चिड़िया तक चूं न कर पायी।
जय भीम
जय भारत
जय कांशीराम
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