जब मन्दिर सार्वजनिक जगह है।
तो वहॉ की सम्पत्ति भी सार्वजनिक होनी चाहिये। जिस का उपयोग, प्राकृतिक आपदाओं में, वितरण प्रणाली में, गरीबों की सहायता में, देश के आर्थिक संकट में, देश की शिक्षा व्यवस्था में होना चाहिये।
हमारे देश में सबसे बड़े राष्ट्रवादी वही लोग बनते है जो देश की 70℅ सार्वजनिक सम्पत्ति पर अपना कब्जा किये बैठे है। मेरी समझ में यह नही आ रहा है कि वे व्यक्ति राष्ट्रवादी कैसे हो सकते है? जो देश की अधिकॉश सार्वजनिक सम्पत्ति पर कब्जा किये हो। देश के आपत्तिकाल में भी रखी हुई सार्वजनिक सम्पत्ति को देश हित में नही लगाना चाहते। जबकि आम जनता से राष्ट्रवादी होने की उम्मीद करते है।
मेरा मानना है कि देश के विभिन्न मंदिरों में जमा अकूत दौलत देश की जनता की ही तो है, फिर उसे किसी वर्ग विशेष के लोग अपना कब्जा कैसे किये है। क्या यह भ्रष्टाचार नही है। भारत सरकार ने अभी तक मंदिरों में जमा इस सार्वजनिक सम्पत्ति के लिये क्या किया? अभी तक सरकार जिस कालाधन का आकलन केवल लोगो की प्रवाहगत पूंजी के रूप में देख रही है, उसने मंदिरों और ट्रस्टों ने जमा बेनामी जमा,अनुप्रयोगी सम्पत्ति के खुलासे के लिये क्या किया?अनुप्रयोगी सम्पत्ति इसलिये क्योकि मंदिरों में जमा सम्पत्ति बाजार में प्रयोग में नही है।यदि इस सार्वजनिक सम्पत्ति को बाजार में लगा दिया जाये तो देश की बेरोजगारी, गरीबी उन्मूलन, एवं आर्थिक विकास के कार्यों के उपयोग में आ जाये * ऐसे यह सम्पत्ति मात्र अप्रवाह पूंजी है जिस का देश निर्माण में कोई योगदान नही है। *सरकार आखिर इस सम्पत्ति को जब्त कर देश के विकास में लगाकर व देश के ऊपर चढे विदेशी कर्जे का भुगतान करके कर्ज को कम किया जा सकता है।आखिर जनता ने मन्दिरों में, ट्रस्टों में, व अन्य संस्थाओं में जो धन दान देकर जमा किया है। उसका उपयोग देश हित में होना चाहिये। जनता द्वारा जमा इस सार्वजनिक सम्पत्ति का प्रयोग सरकार कब करेगी? क्या यह सम्पत्ति मात्र किसी एक विशेष वर्ग के लिये ही जमा की गयी है, अगर ऐसा है तो फिर जनता ही को इसका निर्णय करना चाहिये। आखिर राष्ट्र हित की बात है। *राष्ट्र हित में जब लोगो की सम्पत्ति को जब्त किया जा सकता है तो मन्दिरों या ट्रस्टों की सम्पत्ति को क्यो नही?
दोस्तों 🙏🏻 विचार करो और देश के इस संकट में सार्वजनिक सम्पत्ति का उपयोग हेतु सरकार को बाध्य करे।
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