Thursday, 2 February 2017

भारत में दलितों में क्रान्ति क्यों नहीं हो रही है

एक बार जरुर पढे' -
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एक बार साउथ अफ्रीका के अश्वेतों के अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधि बाजपेयी नामक ब्राह्मण से एक पत्रकार ने पूछा, "भारत में दलितों में क्रान्ति क्यों नहीं हो रही है?"


इस प्रश्न को बाजपेयी ने अनसुना कर दिया. पत्रकार ने पुन: यही प्रश्न किया. इस बार इसे उन्होंने पुन: टाल दिया और दूसरे पत्रकार से बात करने लग गये.


पत्रकार ने फिर जोर देकर पूछा. तो बाजपेयी ने इस बार जबाव दिया, "आपका सवाल यही है न कि भारत में दलितों में क्रान्ति क्यों नहीं हो रही है?"


"जी हाँ, यही है." पत्रकार ने कहा.


"अरे भई जो लोग अपने बच्चों के जन्म के बाद नामकरण नहीं कर सकते, जो लोग अपने बच्चों की शादी-विवाह की तारीख निश्चित नहीं कर सकते. जो लोग अपने परिजनों के शव उठाने के लिए हमारे पंचांग ढूंढते हैं. जो लोग अपने गृहप्रवेश और भूमिपूजन की तारीख खुद निश्चित नहीं कर सकते, उन लोगों से आप क्रान्ति की उम्मीद करते हो. केवल दलित ही नहीं, भारत के 95% लोग ब्राह्मढों के मानसिक गुलाम हैं. दलित क्या भारत में कोई क्रान्ति नहीं कर सकता." बाजपेयी जी ने जबाब दिया था.


आपसे बिनम्र निबेद्न हे कि-------------------

अपने परिवार के सभी कार्यक्रमों की तारीख का निर्धारण, बच्चों के नामकरण आदि स्वयं करें. ब्राह्मणवाद से आपकी गुलामी खत्म होना शुरू हो जायेगी.

समाज में, घर में क्रान्ति की नई शुरूआत करें.

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