Friday, 10 February 2017

सन्त रविदास का जीवन परिचय

सन्त रविदास का जीवन परिचय हमारा इतिहास लिखा ब्राहमणो ने औऱ उन्होंने हमारे इतिहास को इस तरह से पेश किया हम अपने प्राचीन इतिहास से भटक गए। 
इसका प्रमाण है कि मध्य यूगीन काल में संतो का युग शुरू होता है जिसमें प्रमुख थे संत तुकाराम, संत गाडगे, संत रविदास, संत कबीर और गुरु नानक। 
उन्होंने जो आंदोलन चलाया वो कोई भक्ति आंदोलन नही था बल्कि सामाजिक मान सम्मान की लडाई थी। इस व्यवस्था से मुक्ति का आंदोलन था लेकिन ब्राह्मणों ने इतिहास मे हमें पढाया कि संतो ने भक्ति आंदोलन चलाया था। 
इस का प्रभाव यह हुआ कि हमारे लोग भक्त बनते चले गए उन्होंने यह जानने का प्रयत्न ही नही किया कि सच्चा इतिहास क्या है?


 इसी कडी मे संत रविदास का जन्म 1456 मे बनारस छावनी के निकट मडुयाडीह मे हुआ, पिता का नाम रग्घु व माता का नाम धुरविनिया था। पत्नी का नाम लोना था। उस समय सामाजिक स्थिति क्या थी यह उन्हीं के शब्दों मे :
 मेरी जाति कमीनी पाती कमीनी ओछा जन्म हमारा, जात पात के फेर मे उरझे रहे सब लोग, मनुष्यता को खात है रेदास जाति का रोग। जाति जाति मे जाति है ज्यों केलन मे पात, रेदास मानुस न जुड़ सके ज्यों लो जाति न जात। 
 संत रविदास ने गुलामी के खिलाफ सशक्त आवाज उठाई उन्होंने पण्डिताउपन को ललकारा,यह हुकांर थी जिसने जन मानस जो त्रस्त तथा शोषित था उसको संदेश दिया।
जब संम्पूर्ण समाज सामाजिक विभेद की चक्की मे पिस रहा था संतो की वाणी की चोट इतनी गहरी थी कि ब्राह्मण वाद तिल मिला उठा, उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी को ललकारना प्रमुख रुप से ब्राह्मणों की नगरी काशी मे जो उनके कर्मकांडो का अड्डा था। 
ब्राह्मणों को अपनी रोजी रोटी के लाले पड गये उनके कर्मकांडो का जनाजा उनकी आंखो के सामने निकाला जा रहा था।। उन्होंने वेद, जातिभिमान, यज्ञ, कर्मकांडो को खुली चुनौती दी। जब ब्राह्मणों को अहसास हो गया कि हमारी दाल नही गलने वाली तो उन्होंने प्रतिक्रांति के स्वरुप एक प्रपंच रचा जिसमें वे जन्म से सिद्धस्त थे। 
उन्होंने चमार जाति को तोड़ने का षडयंत्र रचा औऱ प्रचार करना शुरू कर दिया कि संत रविदास पूर्व जन्म के ब्राह्मण है, वे सिद्ध करना चाहते थे कि महान विभूतियां केवल मात्र ब्राह्मण कुल मे ही पैदा हो सकती है। क्या संत रविदास चमत्कारी थे, चमत्कारों को प्रत्येक साधु संतो के साथ उसके बडप्पन को उजागर करने हेतु जोड दिया गया जिसका परिणाम यह होता है कि उसका समाज उसे पूजना शुरू कर देता है औऱ भक्त बन जाते है 

जिससे हमारे महापरूषों का मिशन खत्म होने लगता है। ब्राह्मण वाद की खुली आलोचना के कारण चित्तोडगढ (राज.) कुम्भ श्याम मंदिर मे 1584 मे उनकी हत्या कर दी गई और ब्राह्मणों द्वारा प्रचार किया गया कि संत रविदास सहदेह स्वर्ग सिधार गये है। 
यह इतिहास की जघन्य घटना है परन्तु इस देश का ईतिहास इस पर आज तक मौन है। 
आज जरूरत है उनकी विचारधारा अपनाने की न कि उनकी पूजा करने की। 
 संत रविदास जयंती पर आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।🙏🙏🙏

No comments:

Post a Comment