पूना Act ( एक्ट ) पर ओशो के विचार......
अम्बेडकर चाहते थे कि अछूतो के अपने उम्मीदवार और अपने निर्वाचन क्षेत्र हों , अन्यथा उनका कहीं भी किसी भी संसद में प्रतिनिधित्व कभी नहीं होगा . भारत में एक मोची अछूत है . कौन एक मोची को वोट देंगे ? कौन उसे वोट देने जा रहा है ? अम्बेडकर बिल्कुल सही थे .देश की एक चौथाई लोग अछूत है ,स्कूलों में जाने के लिए उन्हें अनुमति नहीं है , अन्य छात्र उनके साथ बैठने के लिए तैयार नहीं है , कोई शिक्षक उन्हें सिखाने के लिए तैयार नहीं है , सरकार कहती है कि सरकारी स्कूल खुले हैं , लेकिन वास्तविकता में कोई एक अछूत छात्र कक्षा में प्रवेश करता है, तो सभी तीस छात्र कक्षा छोड़ने को तैयार है .शिक्षक वर्ग कक्षा छोड़ देता है , तो फिर कैसे इन गरीब लोगों का जो इस देश का एक चौथाई भाग हैं - प्रतिनिधित्व किया जा रहा है ? इसलिए उन्हें अलग निर्वाचन क्षेत्र दिए जाने चाहिए . जहां केवल वे खड़े हो सकते हैं और केवल वे मतदान कर सकते हों . अम्बेडकर पूरी तरह से तार्किक और पूरी तरह से मानवतावादी थे.
लेकिन गांधी , अनशन पर चला गया "उन्होंने कहा कि अम्बेडकर हिंदू समाज के भीतर एक प्रभाग बनाने की कोशिश कर रहे है।" विभाजन दस हजार साल से अस्तित्व में है , यही कारण है कि गरीब अम्बेडकर विभाजन पैदा नहीं कर रहे थे , वह सिर्फ इतना कह रहे थे कि हजारों सालो से देश के एकचौथाई लोगों पर अत्याचार किया गया है . अब कम से कम उन्हें खुद को आंगे लाने के लिए एक मौका दे . कम से कम उन्हें विधानसभाओं में ,संसद में उनकी समस्याओं को आवाज दें .
लेकिन गांधी ने कहा " जब तक मै जिन्दा हूँ , मै इसकी अनुमति नहीं दे सकता ,
उसने कहा कि वे हिन्दू समाज का हिस्सा हैं इसलिए अछूत एक अलग मतदान प्रणाली की मांग नहीं कर सकते हैं ,और गाँधी उपवास पर चला गया ।
इक्कीस दिनों के लिए अम्बेडकर अनिच्छुक बने रहे ,लेकिन हर दिन पूरे देश का दबाव उन पर आता जा रहा था. और उन्हें ये महसूस हो रहा था कि अगर वह बूढा आदमी मर जाता है तो महान रक्तपात शुरू हो जायेगा . अगर गाँधी की मौत हो गयी तो यह स्पष्ट था – कि अम्बेडकर को तुरंत मार डाला जाएगा और लाखों अछूतों को पूरे देश में , हर जगह मारा जाएगा ,क्यों कि ये माना जायगा कि ये तुम्हारी वजह से है। अम्बेडकर को सारी गणित को समझाया गया था कि - "ज्यादा समय नहीं है , वह तीन दिन से ज्यादा जीवित नहीं रह सकते , कुछ दिनों में सब बाहर आने वाला है "अम्बेडकर झिझक रहे थे .अम्बेडकर पूरी तरह से सही थे , गांधी पूरी तरह से गलत था , लेकिन क्या करना चाहिए था ? क्या उन्हें जोखिम लेना चाहिए था ? अम्बेडकर अपने जीवन के बारे में चिंतित नहीं थे उन्होंने कहा कि अगर उन्हें मार दिया गया तो कोई बात नहीं -लेकिन वो उन लाखों गरीब लोगों के बारे में चिंतित थे जो ये भी नहीं जानते थे कि आखिर चल क्या रहा है .उनके घरों को जला दिया जाएगा , उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार किया जाएगा , उनके बच्चों को बेरहमी से काट दिया जाएगा । और वह सब कुछ होगा जो पहले कभी नहीं हुआ था। आखिरकार उन्होंने गांधी की शर्तों को स्वीकार कर लिया ,अपने हाथ में नाश्ता लिए हुए अम्बेडकर गांधी के पास चले गये उन्होंने कहा कि मैं आपकी शर्तों को स्वीकार करता हूँ . हम एक अलग वोट या अलग उम्मीदवारों के लिए नहीं कहेंगे , इस संतरे का रस स्वीकार करें "और गांधी ने संतरे का रस स्वीकार कर लिया .लेकिन यह संतरे का रस , असल में इस एक गिलास संतरे के रस में लाखों लोगों का खून मिला हुआ था ।
मैं डॉक्टर अंबेडकर से व्यक्तिगत रूप से मिला , निश्चित ही डॉ अम्बेडकर मुझे आज तक मिले हुए सबसे बुद्धिमान लोगों में से एक थे,
लेकिन मैंने उनसे कहा कि मुझे लगता है कि "आप कमजोर साबित हुए । अम्बेडकर ने कहा कि आप समझ नहीं रहे हैं , मैं सही था और ये बात मै जानता था , गाँधी गलत था ,लेकिन उस जिद्दी बूढ़े आदमी के साथ क्या किया जा सकता था ? वह मरने के लिए जा रहा था ,और अगर वह मर गया होता है तो मुझे उसकी मौत के लिए जिम्मेदार माना जाता , और अछूतों को बड़ी समस्या का सामना करना पड़ता . -ओशो-
No comments:
Post a Comment