Thursday, 2 February 2017

आरक्षण का इतिहास

आरक्षण का इतिहास ➡ जरूर पढ़े और समझे

🔷भारत देश में आरक्षण शब्द का गलत उपयोग हो रहा है क्योकि सविधान में आरक्षण शब्द ही नही है इसका असली वास्तविक शब्द प्रतिनिधित्व है।

🔷1858 में ज्योतिबा फुले ने हन्टर कमीशन के सामने जनसंख्या के अनुपात में पिछडो को प्रतिनिधित्व देने की मांग की।

🔷1902 में कोलाहपुर के छत्रपति शाहू जी महाराजा ने अपने राज्य में 50 प्रतिशत प्रतिनिधित्व व्यवस्था लागू किया।

🔷1930 1931 1932 में डॉ अम्बेडकर ने प्रतिनिधित्व की मांग गोलमेज सम्मेलन में की।

जिस पर अग्रेजो ने अछूतों को कम्युनल अवार्ड के अंतगर्त पृथक निर्वाचन का अधिकार दिया। जो हजारो सालो में मिला पहली अधिकार था। जिस पर गांधी ने आमरण अनशन (मरते दम तक अनशन ) किया। जिस पर गांधी व् अम्बेडकर के बिच समझोता "पूना पेक्ट " हुआ। जिससे अछूतों को हर स्तर पर आरक्षण की व्यवस्था की गयी।

🔷अथार्त् यह 1932 से लागू है।

🔷भारत में आरक्षण शब्द सविधान में नही है

🚸सविधान में प्रतिनिधित्व शब्द है। देश में लोकतन्त्र है या यदि लोकतन्त्र स्थापित करना है तो प्रतिनिधित्व देना होगा।

🚸सविधान सभा ने तय किया था की देश के विकास में सबकी भागीदारी होनी चाहिये इसलिये

" सामाजिक व् आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गो "को प्रतिनिधित्व दिया गया है।

सामाजिक पिछड़ापन अथार्त् वह शोषित वर्ग या जातिया जो हजारो सालो से शोषण का शिकार रही है उन्हें यह प्रतिनिधित्व का अधिकार दिया गया है।

🔷भारत में आरक्षण शब्द राजनेतिक मुद्दों के कारण नेगेटिव सोच के रूप में बदल दिया गया है।

जबकि यह वास्तविक रूप से " प्रतिनिधित्व शब्द" होना चाहिए।

🔷हमें यह समझना चाहिए की आरक्षण गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नही है यह प्रतिनिधित्व का मामला है।

🚸आज देश में 85 प्रतिशत जनसख्या को 49.5 प्रतिशत प्रतिनिधित्व दिया गया है जो हजारो सालो से पिछड़े रहे है।

🚸आज देश में 3 प्रकार का आरक्षण अथार्त् प्रतिनिधित्व व्यवस्था है।

1. शिक्षा में आरक्षण ,

2. सरकारी नोकरी में आरक्षण उक्त दोनों में कोई समय सीमा नही है।

3. राजनेतिक आरक्षण जिसकी समय सीमा सविधान में 10 वर्ष थी लेकिन यह हर बार बिना बहस के बढ़ाई जाती है जबकि इसकी कभी भी मांग नही की जाती है यह राजनेतिक आरक्षण है।

ध्यान रहे

दुनिया में भारत ही एक मात्र देश है जहा वर्ण व्यवस्था और उसमे निर्मित 6743 जातिया तथा इसमे भी प्रत्येक जाति में 12 उपजातिया है

जो व्यक्ति को सामाजिक रूप से उचा - निचा और गैर बराबरी का समाज बनाती है जो सबसे ज्यादा शर्मनाक है। जो व्यक्ति - व्यक्ति और लिंग आधारित भेद करती है जो हमारे धर्म शास्त्रो से भरे पड़े है।जिसके कारण वे पिछले हजारो वर्षो से शोषण का शिकार हुए ,

🌠आज आरक्षण शोषित वर्ग को बराबरी तक लाने का अचूक शस्त्र है।

🌠जिसे सविधान सभा के 300 सदस्यों ने सर्वसम्मति से लागू किया और यह माना की जब तक समाज में गैर बराबरी है तब तक यह लागू रहेगा।

👍वेसे इसमें समय -समय पर समीक्षा होनी चाहिए बशर्ते बैकलॉग पूर्ण हो ताकि देश व् समाज के विकास में सबकी हिस्सेदारी हो। लेकिन वोट बैंक की राजनीती के कारण यह सम्भव नही हो पाया है।

🔲आरक्षण को खत्म किया जा सकता है

आरक्षण का आधार जातिया है यदि जातियो को खत्म किया जाए तो आरक्षण स्वतः ही खत्म जाएगा।

🔵डॉ अम्बेडकर सविधान में जातिवाद खत्म करने का प्रावधान करना चाहते थे लेकिन कट्टर जातिवादी समर्थको ने यह प्रावधान नही बनाने दिया।

🔵लेकिन फिर भी सविधान में समता स्वतन्त्रता बन्धुता के कानून के कारण छुआछूत कम हुआ है लेकिन आज भी देश के 60 प्रतिशत भागो में यह गन्दगी हमारे ही कुछ बदमाश लोगो को वजह से विधमान है। जो शर्मनाक है।

🔷🔷इसमे कुछ अपवाद हो सकते है।

🔷आज देश के लोकतन्त्र के 4 पिलर है।

1 विधायका

2 कार्यपालिका

3 न्यायपालिका

4 मिडिया

🚸विधायका व् कार्यपालिका में आरक्षण है जिसमे वजह से देश में अधिकतर वर्गो का प्रतिनिधित्व है । जो लोकतन्त्र को कायम करता है।

🚸लेकिन उच्च न्यायपालिका व् मिडिया में आरक्षण नही होने के कारण आज देश के 90 प्रतिशत जनसंख्या का केवल 5 प्रतिशत भी प्रतिनिधित्व नही है। जो एक गम्भीर चिंता का विषय है अथार्त् यहा लोकतन्त्र नही है।

🚸🚸देश एक परिवार की तरह होता है जिसमे कमजोर व् पिछड़े तथा सभी वर्गो को विकास के समान अवसर होने के साथ साथ विकास में सबकी हिस्सेदारी बराबर होना चाहिए इसलिये प्रतिनिधित्व अथार्त् आरक्षण जरूरी है।

🚸🚸🚸यह आरक्षण की व्यवस्था दुनिया के अधिकतर देश में है और अमेरिका में भी available है जिसका परिणाम बराक हुसेन ओबामा राष्टपति बन पाया है।

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