Monday, 27 February 2017

चोर - चुहाड़ सुना है न

आपने चोर - चुहाड़ सुना है न ? चुहाड़ अर्थात बदमाश , लुच्चा ।

कौन थे चुहाड़ ? वही चुहाड़ आंदोलन के स्वाधीनता सेनानी ।

इसे चुआड़ आंदोलन भी कहते हैं ।चुआड़ आंदोलन झारखंड के आदिवासियों ने रघुनाथ महतो के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ जंगल , जमीन के बचाव तथा नाना प्रकार के शोषण से मुक्ति के लिए 1769 में आरंभ किया था ।

रघुनाथ महतो का जन्म झारखंड के सरायकेला - खरसावां जिला के घुटियाडीह में 1738 को हुआ था ।

1769 में नीमडीह के मैदान से भड़की चुआड़ आंदोलन की चिनगारी पातकूम , बड़ाभूम , धालभूम ,गम्हरिया , सिल्ली , सोनाहातु , बुण्डू , तमाड़ , रामगढ़ आदि अनेक स्थानों पर फैल गई ।

कुड़मी , भूमिज , संथाल , मुंडा , भुइयां सभी एकजुट हुए ।आंदोलन की आक्रामकता को देखते हुए अंग्रेजों ने छोटानागपुर को पटना से हटाकर बंगाल प्रेसीडेंसी के अधीन कर दिया । 10 अप्रैल 1774 को सिडनी स्मिथ ने बंगाल रेजिमेंट को विद्रोहियों के खिलाफ फौजी कारवाई करने का आदेश दे दिया ।

5 अप्रैल 1778 । रघुनाथ महतो की लोटा के जंगलों में सभा ।अंग्रेजी फौज की कार्रवाई । सैकडों गिरफ्तार । कई मरे और शहीद हुए जनक्रांति के नायक रघुनाथ महतो ।

रघुनाथ महतो की शहादत के बाद भी आंदोलन जारी रहा ।दिलीप गोस्वामी ने अपनी पुस्तक " मानभूमेर स्वाधीनता आंदोलन " में लिखा है कि यह 1767 से 1832 तक 66 साल चला था । 

अनुसूचित जाति का आरक्षण पाने का हकदार है

क्या कोई ऐसा आदमी अनुसूचित जाति का आरक्षण पाने का हकदार है जिसका जन्म तो ब्राह्मण परिवार में हुआ हो लेकिन उसे बाद में अनुसूचित जाति के पैरंट्स ने गोद ले लिया हो? पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाया है कि ऐसे व्यक्ति को आरक्षण का लाभ मिलेगा और उसे आरक्षण नीतियों के अंतर्गत सरकारी नौकरी देने से मना नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने यह फैसला संगरूर निवासी रात्ज़ भारती की एक याचिका पर दिया। भारती को 20 साल एक सरकारी स्कूल में बतौर अध्यापक नौकरी करने के बाद पंजाब सरकार ने बर्खास्त कर दिया था क्योंकि उनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उन्हें एक अनुसूचित जाति के दंपती ने गोद लिया था।

भारती के बायलॉजिकल पिता तेज राम ने अपनी पत्नी की मौत के बाद दूसरी शादी कर ली। 1977 में उन्होंने अपने बेटे यानी भारती को चांद सिंह और उनकी पत्नी भानो, जो कि अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखते हैं, को पंचायत और रिश्तेदारों की उपस्थिति में गोद दे दिया।

http://navbharattimes.indiatimes.com/state/punjab-and-haryana/chandigarh/brahmin-adopted-by-scs-can-get-quota-job-says-hc/articleshow/57306020.cms

हजारों उदाहरण हैं देश में जिसमें लोगों नें फर्जी जाति प्रमाण पञ बना कर नौकरियां ले रखी है
उनमें से कुछ समय समय पर नाम उजागर होते रहते हैं

अब यह नया फैसला है

इसका व्यापक असर होगा
इसका लोग गलत तरीके से इस्तेमाल करेगें
कोर्ट के फैसले से लिगल होने से लोगों को रोका नहीं जा सकेगा


गंभीर विचारणीय




चौबे जी का लड़का है अशोक, एमएससी पास।

नौकरी के लिए चौबे जी निश्चिन्त थे, कहीं न कहीं तो जुगाड़ लग ही जायेगी।

ब्याह कर देना चाहिए।

        मिश्रा जी की लड़की है ममता, वह भी एमए पहले दर्जे में पास है, मिश्रा जी भी उसकी शादी जल्दी कर देना चाहते हैं।

      सयानों से पोस्ट ग्रेजुएट लड़के का भाव पता किया गया।

 पता चला वैसे तो रेट पांच से छः लाख का चल रहा है, पर बेकार बैठे पोस्ट ग्रेजुएटों का रेट तीन से चार लाख का है।

      सयानों ने सौदा साढ़े तीन में तय करा दिया।

बात तय हुए अभी एक माह भी नही हुआ था, कि पब्लिक सर्विस कमीशन से पत्र आया कि अशोक का डिप्टी कलक्टर के पद पर चयन हो गया है।

चौबे- साले, नीच, कमीने... हरामजादे हैं कमीशन वाले...!

पत्नि- लड़के की इतनी अच्छी नौकरी लगी है नाराज क्यों होते हैं?

चौबे- अरे सरकार निकम्मी है, मैं तो कहता हूँ इस देश में क्रांति होकर रहेगी... यही पत्र कुछ दिन पहले नहीं भेज सकते थे, डिप्टी कलेक्टर का 40-50 लाख यूँ ही मिल जाता।

पत्नि- तुम्हारी भी अक्ल मारी गई थी, मैं न कहती थी महीने भर रुक जाओ, लेकिन तुम न माने... हुल-हुला कर सम्बन्ध तय कर दिया...  मैं तो कहती हूँ मिश्रा जी को पत्र लिखिये वो समझदार आदमी हैं।

प्रिय मिश्रा जी,
   अत्रं कुशलं तत्रास्तु !
          आपको प्रसन्नता होगी कि अशोक का चयन डिप्टी कलेक्टर के लिए हो गया है। विवाह के मंगल अवसर पर यह मंगल हुआ। इसमें आपकी सुयोग्य पुत्री के भाग्य का भी योगदान है।
      आप स्वयं समझदार हैं,  नीति व मर्यादा जानते हैं। धर्म पर ही यह पृथ्वी टिकी हुई है। मनुष्य का क्या है, जीता मरता रहता है। पैसा हाथ का मैल है, मनुष्य की प्रतिष्ठा बड़ी चीज है। मनुष्य को कर्तव्य निभाना चाहिए, धर्म नहीं छोड़ना चाहिए। और फिर हमें तो कुछ चाहिए नहीं, आप जितना भी देंगे अपनी लड़की को ही देंगे।वर्तमान ओहदे के हिसाब से देख लीजियेगा फिर वरना हमें कोई मैचिंग रिश्ता देखना होगा।

       मिश्रा परिवार ने पत्र पढ़ा, विचार किया और फिर लिखा-

प्रिय चौबे जी,
    आपका पत्र मिला, मैं स्वयं आपको लिखने वाला था। अशोक की सफलता पर हम सब बेहद खुश हैं। आयुष्मान अब डिप्टी कलेक्टर हो गया हैं। अशोक चरित्रवान, मेहनती और सुयोग्य लड़का है। वह अवश्य तरक्की करेगा।
      आपको जानकर प्रसन्नता होगी कि ममता का चयन आईएएस के लिए हो गया है। कलेक्टर बन कर आयुष्मति की यह इच्छा है कि अपने अधीनस्थ कर्मचारी से वह विवाह नहीं करेगी।
       मुझे यह सम्बन्ध तोड़कर अपार हर्ष हो रहा है।

"बेटी पढाओ, दहेज मिटाओ"😂

एक रोटी कम खाओ,

पर,बेटी जरूर पढ़ाओ    

बामसेफ नामक संगठन




बामसेफ नामक संगठन का निर्माण 6 दिसम्बर 1978 को किया गया था,  जिसके संस्थापक सदस्यों में तीन महापुरुषों का नाम आता है - मान्यवर कांशीराम साहब, मान्यवर दीनाभाना साहब, मान्यवर डीके खापर्णे साहब।
बामसेफ संगठन के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष मान्यवर कांशीराम साहब बनाये गए थे !

🌷 BAMCEF से अभिप्राय : B से बैकवर्ड, A से एंड, M से माइनरटीज, C से कम्युनिटी, E से इम्प्लाइज, F से फेडरेशन !
बैकवर्ड का मतलब होता है सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक, और राजनीतिक रूप से पिछड़ा होना तो बैकवर्ड शब्द में ही ओबीसी, एससी, एसटी तीनों की गणना की जाती है !

माइनरटीज में मुस्लिम, सिक्ख, बौद्ध, क्रिश्चियन, लिँगायत आदि धर्मपरिवर्तित अल्प संख्यक जातियों को लिया गया है।

बामसेफ ओबीसी, एससी, एसटी एवं धर्मपरिवर्तित अल्पसंख्यक समाज से आनें वाले सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों का संगठन है।


🌷 बामसेफ संगठन की खासियत यह है कि यह अधिकारियों एवं कर्मचारियों का संगठन होते हुए भी इनके व्यक्तिगत लाभ के लिए काम न करके उस समाज के हक - अधिकार की लड़ाई लड़ रहा है, जिस समाज से ये अधिकारी एवं कर्मचारी लोग आते हैं।
बामसेफ अधिकारियों एवम कर्मचारियों का संगठन होने के कारण गैरराजनैतिक, असंघर्षशील तथा सभी धर्मों के लोग जुड़े होने के कारण गैर धार्मिक संगठन है !

🌷 साथियों जब बामसेफ का गठन किया गया था, उस समय यह तय हुआ था कि 20 वर्षों तक बिना किसी राजनीतिक पार्टी का गठन किये हुए हम लोग केवल मूलनिवासी समाज को जगाने का कार्य करेंगे !

लेकिन बिना संघर्ष किये हुए अधिकार मिल नहीं सकते
इसलिए 3 वर्ष बाद डीएस 4 नामक लड़ने वाले संगठन का निर्माण किया गया !
डीएस 4 का ही नारा था "ठाकुर, बाभन, बनियाँ छोड़ बाकी सब हैं डीएस 4 था"

🌷 इसके गठन के तीन साल बाद ही मान्यवर कांशीराम साहब नें 1984 में बसपा नामक राजनीतिक पार्टी का गठन किया। चूँकि मूलनिवासी समाज उस समय पूर्ण रूप से जागृत नहीं हो पाया था। इसलिए बसपा नें अविकसित बच्चे की तरह जन्म लीया !
जब बसपा नामक पार्टी बनीं तो मान्यवर कांशीराम साहब इसके पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए। जब मान्यवर कांशीराम साहब बसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनें तो उन्होंने बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिए।

🌷 साथियों ऐसी घटना घटित होनें के कारण जब हमारी बसपा के रूप में राजनैतिक क्रांति शुरू हुई तो बामसेफ रूपी सामाजिक क्रांति कमजोर पड़ गई।
मान्यवर कांशीराम साहब नें बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से त्याग पत्र इस लिए दिया क्योंकि कोई भी राजनीतिक व्यक्ति बामसेफ का राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बन सकता है
तो बामसेफ के दूसरे राष्ट्रीय अध्यक्ष मान्यवर डीके खापर्डे साहब को बनाया गया।
काफी मेहनत करके मान्यवर डीके खापर्डे साहब नें सामाजिक क्रांति को जगाने का कार्य किये।
इसी बीच बामसेफ के तीसरे संस्थापक सदस्य मान्यवर दिनाभाना साहब हमारे बीच नहीं रहे। मान्यवर दिनाभाना साहब की पत्नी सुमन  दादी अब भी बामसेफ में समर्पित होकर व्यवस्था परिवर्तन करनें के अपनें पति के सपनों को साकार करनें में लगी हुई हैं।

🌷 अब वर्तमान में; बामसेफ के तीसरे राष्ट्रीय अध्यक्ष मान्यवर वामन मेश्राम साहब नें अपनें अथक प्रयास द्वारा बामसेफ संगठन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का संगठन बना दिए हैं।
वर्तमान में बामसेफ नें अपनें 55 सहयोगी संगठनों का निर्माण कर बामसेफ की ताकत को कई गुना बढ़ानें का कार्य किया है।


🌷 साथियों मूलनिवासी समाज के प्रत्येक महापुरुषों नें स्वयं द्वारा की गई गलतियों को स्वीकार किया है। ऐसे लोगों नें अपनी गलती इस लिए स्वीकार किये हैं कि हमारी आगे आने वाली पीढ़ी उस गलती को दुबारा न दुहराये।
बाबा साहब जैसे महान व्यक्ति नें भी अपनी गलती स्वीकार की है कि मैनें अपनें समाज के लिए पूरी जिंदगी कुर्बान कर दी लेकिन एक गलती मैनें भी की जो दूसरा अम्बेडकर पैदा नहीं किया। जो हमारे मिशन को आगे ले जानें का कार्य करता।

इसी प्रकार मान्यवर कांशीराम साहब नें भी अपनी गलती को स्वीकार किया है कि मैनें हाँथी (राजनीतिक पार्टी) तो पैदा कर दिया और खुद हाँथी बन बैठा और महावत (बामसेफ) का पद छोड़कर महावत पैदा करना छोड़ दिया। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था मुझे महावत ही बनें रहना चाहिए था। जिससे हाँथी को कण्ट्रोल कर सकता।

🌷 साथियों मान्यवर वामन मेश्राम साहब नें इन महापुरुषों द्वारा महशूस की गलतियों से सबक लेते हुए संकल्प लिया है की मैं स्वयं हाँथी कभी नहीं बनूगां। मैं केवल महावत का ही काम करूँगा और मूलनिवासी समाज में इतना मजबूत नेतृत्व पैदा कर दूँगा कि आने वाले समय मे मूल निवासी समाज अपनी खोयी हुयी सत्ता वापस प्राप्त कर सके !
ताकि आने वाली पीढी के हक अधिकार सुरक्षित रह सके !

🌷 आज मा. वामन मेश्राम साहब आज बामसेफ के 55 सहयोगी के साथ हमारे मूल निवासी समाज की तीसरी आजादी के लिये लड़ रहे है !
कैडर केम्पस मे
प्रशिक्षण एवम ऐतिहासिक जानकारियां देके
जन आंदोलन का निर्माण
किया जा रहा है
तकि अत्याचार
शोषण
गैर बराबरी
तथा असमानताओं
पर आधारित ब्राह्मणवादी व्यवस्था को जड़मूल से उखाड़कर ख़त्म कर सके !

🌷 बामसेफ फूले-अम्बेडकर-शाहू की समता
स्वतंत्रता
न्याय
एवम बंधुता पर आधारित
एक आदर्श समतामूलक समाज
की स्थापना करने को अग्रसर है !


🙏🌷 जय मूलनिवासी                        ब्राह्मण को SC गोद ले, तो उसे भी मिलेगा आरक्षण: HC - Navbharat Timesक्या कोई ऐसा आदमी अनुसूचित जाति का आरक्षण पाने का हकदार है जिसका जन्म तो ब्राह्मण परिवार में हुआ हो लेकिन उसे बाद में अनुसूचित जाति के पैरंट्स ने गोद ले लिया हो? पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाया है कि ऐसे व्यक्ति को आरक्षण का लाभ मिलेगा...navbharattimes.indiatimes.com

प्रश्नों से सबसे अधिक डरता है

आसमानी या अपौरुषेय किताबों का या विश्वगुरु के अहंकार का आभामंडल इतना असुरक्षित और डरपोक होता है कि वो बच्चों और स्त्रियों के प्रश्नों से सबसे अधिक डरता है. इसीलिये ऐसे समाज के लोग पठन-पाठन का अधिकार अपनी बड़ी जनसंख्या को और स्त्रियों को नहीं देना चाहते. भारतीय होशियारों ने इस विषय में महारथ हासिल कर ली थी. उन्होंने इस काम लिये वर्ण और जाति व्यवस्था ही बना डाली थी और वर्णाश्रम को ही धर्म बना डाला था, और ये व्यव्वस्था उनके आधिपत्य को बनाये रखने के लिए यह बहुत हद तक सफल भी रही. अलबरूनी ने अपने यात्रा संस्मरणों में लिखा है कि काश भारत जैसी जाति व्यवस्था हमारे पास होती तो हम भी करोड़ों लोगों को सैकड़ों हजारों साल गुलाम रखकर निष्कंटक राज करते और दबी कुचली कौमें कोई आवाज भी न उठा पातीं. अलबरूनी की भारत से ये इर्ष्या बहुत महत्वपूर्ण है. वह स्वयं जिस समाज से आ रहे हैं वहां कभी ज्ञान के फूल खिले थे लेकिन बाद में सब रेगिस्तान हो गया.



भारत में भी श्रमणों (बौद्धों, जैनों), लोकायतों, आजीवकों के युग में ज्ञान विज्ञान की बहुत खोज हुई थी और आज गिनाई जाने वाली सारी सफलताएं उसी दौर की हैं. शून्य, रेखागणित, अंकशास्त्र, खगोल, व्याकरण, भेषज, धातुविज्ञान, आयुर्वेद, योग और मनोविज्ञान (जो कि अध्यात्म में पतित हुआ) की खोज श्रमणों अर्थात बौद्धों और जैनों ने की थी. तांत्रिक अनुशासन के साथ लोकायतों ने भारी काम किया था. लेकिन वेद वेदान्त के प्रसार के साथ ज्ञान विज्ञान की ये प्रेरणाएं समाप्त होने लगीं और खगोलशास्त्र ज्योतिष बन गया, रसायन और भेषज जादूगरी और राजगुरुओं की गोपनीय विद्या बन गयी और एक वर्ण विशेष के लोगों के रोजगार की चिंता ने समूचे दक्षिण एशिया की ज्ञान की परम्पराओं का नाश कर डाला. राजसत्ता और व्यापरसत्ता को लग्न, मुहूर्त, ज्योतिष और कर्मकांड से डराकर गुलाम बनाया गया और शेष समाज को अंधविश्वास के दलदल में ऐसा डुबोया कि वो आज तक बाहर नहीं निकल सका है. खगोल के ज्योतिष में पतन पर अलबरूनी ने विस्तार से चर्चा करते हुए गजब की टिप्पणियाँ की हैं, वे पढ़ने योग्य हैं.
http://www.dalitdastak.com/news/why-religious-india-feared-from-education-and-knowledge--2861.html 



अब शूद्र शिक्षित हो गए तो  भगवानो के पास सवालों का उपयुक्त जवाब नहीं है।
1: ब्राह्मा के मुख से ब्राह्मण कैसे पैदा हुए बताओ----मनु जी
2:पत्थर पानी मे कैसे तैर गये बताओ-----राम जी
3:आदमी के सिर पर हाथी का सिर कैसे फिट हुआ बताओ----शंकर जी
4:बन्दर पर्वत लेकर कैसे उड़ा बताओ----हनुमानजी
5:एक अगुंली पर पर्वत कैसे उठाया बताओ-----कृष्ण जी
6: फलों की खीर खाने से बच्चे कैसे पैदा हुए बताओ-----दशरथजी
7:पृथ्वी नाग के फण पर कैसे टिकी है बताओ---ब्रह्मा जी
8:गंगा नदी जटाओ से कैसे बह सकती है बताओ----शंकर जी

9:और अब ये आविष्कार कैसे बन्द हो गये बताओ---पण्डित जी
  

हिन्दू धर्म की भयंकर मूर्खताएं

 हिन्दू धर्म की भयंकर मूर्खताएं :---

1- सती प्रथा सिर्फ़ हिन्दू धर्म में ही पायी जाती थी ।


मृतक के बच्चे चाहे भीख माँगे या कोठे पर पलें, परन्तु विधवा पत्नी को पति के साथ ही जलना होता था I

2- जन्म से छोटा या बड़ा,  हिंदू धर्म मे शुरू से ही तय हो जाता था ।

बाबा साहेब आंबेडकर तो पण्डित जवाहर लाल नेहरू से चार गुना ज्यादा योग्य और महान थे, लेकिन कुछ नालायक मनुवादियों ने मरते दम तक बाबा साहेब को सम्मान नही दिया ।

3- लोग पढ़ेंगे या नाली साफ करेंगे, यह बात भी हिन्दू धर्म में जन्म से ही तय हो जाती थी ।

4- कोई इंसान इज़्ज़तदार  बनेगा या गालियाँ सुनने की मशीन बनेगा,  यह बात भी हिन्दू धर्म जन्म से ही तय करता रहा है I

5- लोग कौन सा काम करेंगे और  कौन सा नही करेंगे,  यह बात भी हिंदू धर्म जन्म से तय कर देता था I

6-  ज्यादातर ब्राह्मणों के तो मज़े ही मज़े थे, क्योंकि उनके लिए तो जन्म से ही सुख, सम्मान और सुविधाओं के रास्ते खुल जाते थे ।

कुछ ब्राह्मण तो  चार छः श्लोक और चार छः  कथाएँ सुनाकर पूरी जिंदगी भर खाते रहते थे, उन्हें ज्यादा मेहनत करने की कोई जरूरत ही नही पड़ती थी ।

और जो भी आदमी ब्राह्मणवाद का विरोध करता था, कटटर ब्राह्मण उसे अपनी साजिशों से बर्बाद कर देते थे ।

7- गरीबों की कन्याओं को मंदिर मे देवदासी बनाकर उनका यौन शोषण करने की मूर्खतापूर्ण परम्परा भी हिन्दू धर्म में ही पायी जाती थी ।

दहेज जैसा मूर्खतापूर्ण कार्य हिन्दू धर्म मे बड़ी सादगी से होता रहा है I

8- हिन्दू धर्म में एक तरफ महिला की मूर्ति बनाकर पूजते हैं, दूसरी तरफ भारत में पिछले 10 साल मे करोड़ों कन्याओं की भ्रूण हत्या कर दी गयी है, मनुस्मृति ने तो महिलाओं की गरिमा को खत्म कर दिया है ।

9- जातिप्रथा हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी मूर्खतापूर्ण खोज है, जाति मरते दम तक इंसान का पीछा नही छोड़ती ।

बाबा साहेब आंबेडकर, कांशीराम साहेब, और मायावती जी जैसे नेता पूरी जिंदगी जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ते रहे हैं,  लेकिन कटटर मनुवादी किसी ना किसी रूप में जाति व्यवस्था को बचा ही लेते हैं ।


10- बाल विवाह तो हिंदुओं की शान रही हैं I

11- अक्सर अमीरी-ग़रीबी भी हिन्दू धर्म में जाति के अनुसार ही तय होती रही  है ।

ज्यादातर कटटर मनुवादी इस बात को बर्दाश्त ही नही कर पाते कि SC और ST समाज के लोग अमीर बनकर सुख, सम्मान और शान से जी सकें ।

अगर SC या ST समाज का कोई अफसर या नेता थोड़ा अमीर होने लगता है, तो कटटर हिंदुओं की आँखों में वो काफी ज्यादा खटकता रहता है ।

कुछ कटटर हिन्दूओं को तब तक शान्ति नही मिलती, जब तक वो SC और ST अफसरों और नेताओं को भ्रष्टाचार के मामलों फंसा नही देते ।

12- ज़मींदार भी यहाँ जाति के आधार पर होते रहे हैं ।

SC और ST समाज के किसान कहीं जमींदार ना बन जाएँ, इसीलिए उनकी जमीनें छीन ली जाती थीं ।

13- हिन्दू धर्म के ठेकेदारों ने कोई महान खोज नही कीं ।

जितनी भी खोजें कीं, उनमे से ज्यादातर खोजें मूर्खतापूर्ण ही थीं,   जिनका कोई उपयोग समाज के लिए नहीं किया जा सकता ।

14- जिस तरह से SC और ST समाज के लोगों को पढ़ने से रोका गया,   वैसा कमीनापन किसी और धर्म में नही पाया गया है ।

15- नीची जाति की महिलाओं का बलात्कार करने  को कुछ लोग अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानते रहे ।

और नीची जाति के लोग जब विरोध करते थे, तो उन्हें उलटा लटकवाने की मूर्खतापूर्ण परम्परा भी हिन्दू धर्म में रही है ।

लेकिन फूलन देवी जैसी बहादुर महिला ने अपने साथ हुए जुल्म का सही बदला लेकर साबित कर दिया कि SC, ST और OBC समाज के लोग हालात के शिकार तो हैं, लेकिन किसी के सामने झुकने को तैयार नही हैं ।

16- कुछ हरामखोरों ने तो दलितों को कभी स्कूलों मे घुसने ही नही दिया,  क्या कोई और धर्म ऐसा कर सकता हैं?

17- जिन मंदिरों में कुत्ते और बिल्ली भी घुस जाते थे, उन मंदिरों से SC और ST समाज के लोगों को गालियाँ देकर भगा दिया जाता था ।

लेकिन SC और ST समाज के करोड़ों जागरूक लोगों ने हिन्दू धर्म को ठुकराकर मन्दिरों को भी टाटा बाय बाय कर दिया, हमेशा हमेशा के लिए ।

बहुत कुछ है हिन्दू धर्म की मूर्खताओं की धज्जिया उड़ाने को, लेकिन अभी सिर्फ  इतना ही काफी है ।

हिंदू धर्म बर्बाद हुआ, क्योंकि यहाँ:---
--बच्चा हो, तो ब्राह्मण को पैसे खिलाओ I
–नाम रखो,  तो ब्राह्मण को पैसे खिलाओ I
–गृह प्रवेश करो, तो ब्राह्मण को पैसे खिलाओ I
–पाठ करवाओ,  तो ब्राह्मण को पैसे खिलाओ I
–कथा करवाओ, तो ब्राह्मण को पैसे खिलाओ I
–मंदिर जाओ, तो ब्राह्मण को पैसे खिलाओ I
–शादी हो,  तो ब्राह्मण को पैसे खिलाओ I
–कोई मर गया हो,  तो भी ब्राह्मण को पैसे खिलाओ!!

दरअसल ब्राह्मणों ने खुद ही हिन्दू धर्म को तमाशा बना दिया है ।

ब्राह्मणों ने हज़ारों साल तक SC, ST और OBC के पूर्वजों को खूब गालियाँ सुनवाई हैं, लेकिन आजकल खुद भी हर जगह गालियाँ ही सुन रहे हैं, अगर आपको विशवास ना हो तो BSP, बामसेफ, RPI के कार्यक्रमों में जाकर देख लीजिये ।

इसके बावजूद कुछ ब्राह्मण तो अभी भी जाति व्यवस्था को सही साबित करने की कोशिश करते हैं ।

रही सही कसर पाखण्डी बाबाओं ने पूरी कर दी है ।

पाखण्डी बाबाओं ने धर्म के नाम पर काफी लूट खसोट मचा रखी है :---
-- निर्मल बाबा ।
-- आशाराम बापू ।
– सुधांशु जी महाराज ।
-- इच्छाधारी बाबा ।
-- कच्छाधारी बाबा ।

और भी काफी सारे पाखण्डी बाबाओं ने धर्म के नाम पर अपनी दुकान खोलकर लूट मचा रखी है ।

ज्यादातर पाखण्डी बाबा दूसरे लोगों को तो मोह माया से दूर रहने के उपदेश देते हैं, लेकिन खुद जिंदगीभर अय्याशी करते हैं ।

दरअसल हिंदू धर्म पूरी तरह नौटंकी बन गया है ।

क्योंकि आरएसएस सिर्फ़ धर्मांतरण पर बोलता है, लेकिन हिन्दू धर्म में घुसी हुयी जाति व्यवस्था, नफरत, हरामखोरी और पाखण्ड के खिलाफ कुछ नहीं करता ।

बीजेपी के राज में, हिन्दू धर्म की नैया मे सवार होकर लूट मचाने वाले पाखण्डी बाबा ही सबसे ज्यादा मज़े में हैं ।

वैसे हिन्दू धर्म में सुधार होना ही मुश्किल है ।

इसीलिए मेरी तरफ से उन लोगों को दिल से सलाम, जिन लोगों ने हिन्दू धर्म में घुसी हुई जाति व्यवस्था, पाखण्ड, भेदभाव, हरामखोरी से परेशान होकर हिन्दू धर्म त्याग दिया है ।

डी के सन्त
9868208249
9717062872                        धार्मिक भारत शिक्षा और ज्ञान से इतना डरता क्यों है?भारत में भी श्रमणों (बौद्धों, जैनों), लोकायतों, आजीवकों के युग में ज्ञान विज्ञान की बहुत खोज हुई थी और आज गिनाई जाने वाली सारी सफलताएं उसी दौर की हैं.www.dalitdastak.com

क्या राम भगवान था ?

क्या राम भगवान था ?

में राम को सिर्फ एक राजा समझता हु क्योकि एक भगवान कभी भी किसी का सहारा नहीं लेता जिस छल कपट से उसने रावन जेसे योधा को मारा वो यही सिद्ध करता है के राम भगवान हो ही नहीं सकता
क्या आप में से कोई भी इस कथन से सहमत है के एक भगवान की आधी ज़िन्दगी जंगल में बंदरो और भालुओ के साथ गुज़री और तो और एक भगवान अपनी पत्नी को ढूँढने तक में सक्षम नहीं था इसीलिए बंदरो और भालुओ का सहारा लेकर एक साहसी योधा को पीठ पीछे वार करके मारा ! यह सारे गुण किसी भगवान के चरित्र को नहीं दरशाते बल्कि किसी भी व्यक्ति के देवालीयेपन का सबूत देते है

सीता की अग्नि परिक्षा इस बात का सबूत है के राम बुरा पति ही नहीं बल्कि एक शक्की मानसिकता का रोगी भी था जिसने सिर्फ एक मछुआरे की बात मानकर सीता को अग्नि मै छलांग लगाने के लिया कहा यह केसी मर्यादा है उस मर्यादा पुरूषोत्तम की के एक भगवान होकर भी वोह अपनी पत्नी के चरित्र पर शक करता रहा रावन के साथ 2 वर्ष बिताने के बाद सीता कभी राम के साथ खुश नहीं रही और हमेशा राम ने उसका उत्पिरण किया

क्या एक भगवान को किसी राक्षस से युद्ध की ज़रुरत पड़ सकती है अगर है तो भगवान तो सारी सृष्टि का रचयेता है उसी ने मनुष्य राक्षस असुरो को बनाया फिर भी वोह भालू और बंदरो की फ़ौज लेकर एक योधा से लड़ा और उसके भाई को सत्ता और कुर्सी का लालच देकर साथ मिलाया!
आज यह लक्षण हमारी राजनीती मै देखने को मिलते है जो राम ने हज़ारों साल पहले करे

मुझे जवाब चाहिए अगर मेने कुछ ग़लत लिखा हो तो! मेरा अनुरोध है उनलोगों से जो राम को भगवान मानते है कृपया करके सवालो का जवाब दे राम की भाषा का इस्तेमाल न करे   

हमारी पीढियां कहाँ, कैसे और किन हालातों में रहते थे

आओ जाने और समझे, संविधान से पहले
हमारे बाप दादा और हमारी पीढियां कहाँ, कैसे और किन हालातों में रहते थे
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1 : हम लोग कच्चे घरों में, तम्बूओं में, झोपडियो में अमीरों की हदों से हट कर गांव से बाहर तालाब किनारे रहते थे।
2 :  धर्म प्रथा, जाति प्रथा,
सति प्रथा, छूत प्रथा, रीति रिवाज, संस्कृति, परंपराओं और अमीरों के अपने ही बनाए गए कायदे कानून के तहत हम गुलाम थे
3 :  अच्छा खाना, अच्छा पहनना, बडे लोगों की बराबरी करना, अपने हक के लिए लडना, और पढाई करने का हमें कोई भी हक नहीं था।
4 : हमारे वैद्य ( डाक्टर ),धर्म गुरु और हमारी पंचायतें भी अलग होती थी।
5 :  अमीर - गरीब, छोटे - बडे, ऊंच - नीच , और जातिवाद की दीवारें होती थी।
6 :  हम औरों के टुकडों पर पलने वाले थे।
7 :  हमारा अपना कुछ भी वजूद नहीं था।
8 :  समाज में हमारा आदर, मान , सम्मान,इज्जत, नाम और पहचान कुछ भी नहीं था।
9 : हमें मनहूस समझा जाता था।
10 : हमारी औरतों से मनचाही मनमानी और बदसलूकीया की जाती थी।
11 : हमें गुलाम बना कर खरीदा और बेचा जाता था।
12 :  हमें हदों और पाबंदियों में रखा जाता था।
13 :  जाति और धर्म के नाम पर हमें आपस में ही लडाया जाता था।
14 :  हमारे पास किसी भी प्रकार का कोई भी अधिकार नहीं था।
15 :  कुछ भी करने से पहले हमें इजाजत लेनी होती थी।
16 :  ऊंची आवाज  में बोलना, आंखें उठाना, और ऊंचा सिर उठाना हमारे लिये वर्जित था , पाप था।
17 :  हमारी एकता के संगठनों को विद्रोही बताकर दण्डित किया जाता था।
18 :  अपने मतलब के लिए हमें मोहरा बनाया जाता था।
19 : हम कमजोर, लाचार, असहाय,अनपढ, गरीब , बे-घर और बे- सहारा थे।
20 : हमें दलिदरों में गिना जाता था।
21 : कोई भी हम से दोस्ती या रिश्तेदारी बनाना पसंद नहीं करता था।
22 :  हमें नीच और तुच्छ समझा जाता था।
23 :  हमें बड़े लोगों की गंदगी साफ करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
24 : बिना वजह हमें दोषी करार देकर सजायें दी जाती थी।
25 :  कठपुतलियों की तरह हमें नचाया जाता था।
26 : अत्याचार, अन्याय, शोषण और जुल्म सहना हमारी आदत थी।
27 : हमारी कहीं भी कोई सुनवाई नहीं होती थी।
28 : हम दर-ब-दर भटकने के लिए मजबूर थे।
29 :  मौत और नरक से भी बदतर थी हमारी जिन्दगियां , हमारे घर और हमारे परिवार ।
30 :  जहां जीवन में आशा की कोई भी किरण नहीं थी।
31: जहाँ हम गुलामी का
जीवन जीते थे।
32 : हमें गले में हांडी और पीछे झाड़ू बांधकर चलना होता था ताकि हम जमीन पर न थूकें और हमारे पैरों के अछूत निशान जमीन पर न बचें ।
33 : हम दोपहर के अलावा अपने दड़बों से बाहर नहीं निकल सकते थे ।ताकि हमारी परछाई किसी सवर्ण के ऊपर न पड़े ।
34 : दोपहर में बर्तन बजाते हुए ही घरों से बाहर निकल सकते थे ।
35 : हमारा कृषि करना और आखेट करने पर पाबन्दी थी ।केवल मुर्दा मवेशी का ही मांस खा सकते थे ।
36 : हम नया कपड़ा नहीं पहन सकते थे।
37 : हम मानव द्वारा प्रयोग किए जाने वाले तालाब से पानी नहीं पी सकते थे ।पी लेने पर जिह्वा काट देने या मृत्यु दण्ड दिया जाता था ।
38 : हमारे पूर्वज जानवरों के तालाब से ही पानी पी सकते थे।
38 : यदि हम किसी से छू जाते अथवा दिखाई दे जाते तो दंडित किया जाता था।और वह सवर्ण गौ मूत्र से नहाता था।
39 : हमें जानवरों से भी बदतर समझा जाता था।
40 : जब बारिश नहीं होती थी तो तथाकथित इन्द्र देवता को प्रसन्न करने के लिए जगह जगह हमारे पूर्वजों की बलि दी जाती थी।
42 : हमारे पूर्वजों की पहली सन्तान को पैदा होते ही गंगा नदी में फेंक कर बहा देना होता था ।
43 : हमारे परिवार की बेटियों को मन्दिर को दान में देना पड़ता था जो देव दासी कहलाती थी ।उनसे पैदा अवैध सन्तान को हरिजन कहते है।
44 : कोई ब्रिज अथवा भवन बनाते समय चरक प्रथा के नाम पर हमारे पूर्वजों की बलि देकर नींव में दफन किया जाता था।
45 : हमारी माता बहनों को ऊपरी अंग ढकने पर पाबन्दी थी ।
46 : ब्राह्मणी रियासत त्रावणकोर में यह प्रथा अंग्रेज़ी शासनकाल में भी समाप्त करने के लिए तैयार नहीं थे।जिसके लिए जद्दोजहद करना पड़ा।
47 : अच्छूत कहकर महामारी में भी  हमारा इलाज नहीं हो पाने के कारण , तड़प - तड़पकर मरते थे हम लोग ।
48 : दो रोटी और कपड़ा के लिए कोल्हू के बैल की तरह काम लिया जाता था हमारे पूर्वजों से।
49 :यह सब पाबंदी के नियम हमारे ऊपर यूरेशियन ब्राह्मणों के उन पूर्वजों ने लगा रखे थे जिन्हें आज हम देवी देवता मानकर पूजते हैं
50 :आज भी ब्राह्मण जन्म कुण्डली में हमें राक्षस , दानव ,दाना ,दैत्य या असुरही लिखता है ।
और स्वयं को " श्रेष्ठ" मानते हुए देव या देवता लिखता है ।

51 : अपने पूर्वजों की दुर्गति जानकर भी आप इन्हें अपना देवी - देवता मानकर पूजना पसंद करते हैं ,इसे क्या कहें , अज्ञानता या जानकर भी अनजान बनने वाले मानसिक रुप से बीमार............?

😡== = = = = = = = = = = 😡


ऐसा था हमारे बाप दादाओं का
बीता हुआ कल...
लेकिन आज जो परिवर्तन हुआ है बाबा साहब की वजह से।
🙏🏻 जय भीम जय भारत🙏🏻

ओबीसी के लिए GOOD NEWS

52% ओबीसी के लिए GOOD NEWS सभी OBC भाइयों को जरूर पढ़ाएं...


केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि राष्ट्रीय पिछड़ावर्ग आयोग (एनसीबीसी) को वह संवैधानिक दर्जा नहीं देगी। यह जानकारी केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा दी गई है। सांसद लक्ष्मी नारायण यादव ने लोकसभा में यह जानना चाहा था कि क्या तमाम अन्य आयोगों को जिस तरह संवैधानिक दर्जा प्राप्त है, वैसा ही दर्जा पिछड़ावर्ग आयोग को दिया जाएगा। इस पर मंत्रालय का जवाब है कि हालांकि सरकार के पास इस संबंध में कई अनुरोध आए हैं, लेकिन ऐसे अनुरोधों पर विचार करने का सरकार का कोई इरादा नहीं है।

यह प्रश्न और उत्तर लोकसभा की साइट पर मौजूद है, प्रश्न संख्या 2593 है और इसका जवाब 10 मई 2016 को दिया गया है। सांसद लक्ष्मी नारायण यादव ने लोकसभा में यह भी जानना चाहा था कि क्या ओबीसी के सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक विकास के लिए कोई कमेटी गठित की जाएगी। सरकार का जवाब है कि नहीं। संबंधित राज्य मंत्री का जवाब था कि ओबीसी के विकास के लिए किसी और कमेटी के गठन का सरकार के पास कोई प्रस्ताव नहीं है।

गौरतलब है कि मंडल कमीशन के मुताबिक देश की 52% आबादी ओबीसी है और प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी ने अपने भाषणों में खुद को बार- बार ओबीसी और नीची जाति का बताया था। ऐसे में ओबीसी के विकास के लिए किसी भी कमेटी के गठन से सरकार का इनकार आश्चर्यजनक है।


गौरतलब है कि मोदी गुजरात में वैश्यों की एक उपजाति मोढ घांची से हैं जो सामान्य वर्ग में आती थी, किन्तु अपने मुख्मंत्रित्व काल में इस उपजाति को ओबीसी में शामिल करने वाला शासनादेश जारी करके शामिल किया और ओबीसी को गुमराह करने के लिए RSS ने मोदी को ओबीसी का व्यक्ति होने का इस कदर प्रचारित किया कि अप्रत्यक्ष रूप से सत्ता पर काबिल हो गया।

सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आधारित गिनती नहीँ कराने का हलफनामा मोदी ने इसीलिए दिया क्योंकि मोदी ओबीसी की नस्ल का है ही नहीं। अभी अभी क्रीमीलेयर की परिभाषा बदल कर ओबीसी को नया तोहफा देते हुए मोदी ने साबित भी किया कि वह ओबीसी की नस्ल के नहीं हैं, किन्तु फिर भी ओबीसी है कि वह ब्राह्मणों की अवैतनिक फोर्स का होने में अपने को गौरवान्वित महसूस करता है।

16 नवंबर 1992 को इन्द्रा साहनी के केस में 52% ओबीसी को 27% ही नौकरी में सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिनिधित्व दिया गया , इस फैसले से नाराज होकर ओबीसी कहीं आन्दोलन न कर बैठे इसलिए ठीक 20वें दिन 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरा कर ओबीसी को डायवर्ट करके भाजपा ने सत्ता प्राप्त कर ली और 52% को संतुष्ट कर दिया। यह अलग बात है कि मंदिर/मस्जिद के आन्दोलन में सबसे ज्यादा मरने वालों की संख्या ओबीसी की ही थी। आज तक आरक्षण की लड़ाई सबसे ज्यादा SC ने ही अपने लिए ही नहीं अन्य वर्गों के लिए भी लड़ी है । इसीलिए 16 नवंबर के फैसले में ही सुप्रीम कोर्ट ने S.C., S.T. को सबक सिखाने के उद्देश्य से ही इनके पदोन्नति में आरक्षण को शर्तों के अधीन कर दिया। बाबा साहब डा० अम्बेडकर की पुण्यतिथि 6 दिसंबर पर ही मंदिर/मस्जिद का मुद्दा खड़ा करके S.C.,S.T. के आन्दोलन को भी कुछ हद तक डायवर्ट करने की कोशिश की गई। हमेशा याद रखो कि आरक्षण नौकरी का नहीं प्रतिनिधित्व के अधिकार का मामला है। वैसे भी अब न्यायपालिका द्वारा यह व्यवस्था कर दी गई है कि आपकी योग्यता चाहे जितनी हो किन्तु अनारक्षित सीट पर अब दावा नहीं कर सकोगे।

72 करोड़ ओबीसी जागो

Sunday, 26 February 2017

हक न मिलने का सबसे बड़ा गुनहगार है एम0 के0 गांधी..

हमे हमारे हक न मिलने का सबसे बड़ा गुनहगार है एम0 के0 गांधी...

   
मित्रों, 
हमारे समाज को घृणित (हरिजन) नाम देने वाले मिस्टर मोहनदास करमचंद गाँधी के विरोध के बावजूद बाबा साहेब डॉ० भीमराव आंबेडकर ने इंग्लेंड में अंग्रेजों से संघर्ष करके हमारे समाज को दो वोट देने का अधिकार दिलाया था !

हमारे समाज ने या बाबा साहेब डॉ० भीमराव आंबेडकर ने किसी से भीख में आरक्षण नही माँगा था, बल्कि अंग्रेजों द्वारा विशेष रूप से हमारे समाज को दिए गए दो वोट के अधिकार को 24 सितम्बर 1932 को *पूना-पेक्ट के माध्यम से गांधी एंड कम्पनी द्वारा छीन लिया गया था !
जबकि
दूसरी वोट के अधिकार के बदले में मिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी ने हमारे समाज के ऊपर आरक्षण का झुनझुना थोंप दिया था !


पूना-पेक्ट के समय आरक्षण को पूरी ईमानदारी से लागू कराने का वादा करने वाले मिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी और उनके चेलों ने अनुसूचित जाति, जनजाति व अन्य पिछड़े वर्गों का आज तक आरक्षण पूरा नही होने दिया !

जिसके कारण

आजादी के 70 साल बाद भी इन वर्गों का आज तक उद्धार नहीं हो सका है ! आज भी जाति के नाम पर आये दिन जुल्म-ज्यादती और अत्याचार लगातार जारी हैं ! हमारे समाज की बहन बेटियों के साथ बलात्कार की घटनाएं आम बात हो गई है ! दोषी दबंगो को सजा नही दी जाती है !

हमारे अपने आजाद देश में हमारी बहन-बेटियां आजादी से घूम भी नही सकती। हमारी बहन बेटियों की इज्जत-आबरू आज भी सुरक्षित नहीं है !

दूसरी तरफ

मंदिरों में 100 % अवैध कब्ज़ा जमायें लोग सरकारी नौकरियों में आरक्षण ख़त्म करने की बार-बार असंवैधानिक बात करते हैं !

पहले तो आरएसएस के मुखिया मोहन भागवत ने और इनके तथाकथित धार्मिक मठाधीशों ने और अब आरएसएस के प्रवक्ता मनमोहन वैध ने आरक्षण ख़त्म करने की बात कहकर अपनी देशद्रोही मानसिकता का परिचय दिया है !

इंसान के वेश में भेड़िये इन मंदबुद्धि व्यक्तियों को क्या यह मालुम नही है कि अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़े वर्गों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण का प्राविधान भारतीय संविधान में निहित है !

ये घृणित मानसिकता के लोग बार बार भारतीय संविधान की धज्जिया उड़ाते है, किन्तु इन देशद्रोहियों और देश के गद्दारों के खिलाफ कोई कार्यवाही किया जाना या इन्हें कोई सजा दिया जाना तो बहुत दूर की बात है, इनके खिलाफ किसी थाने में एफ० आई० आर० तक नहीं लिखी जाती !

मित्रो यदि हमे इन्साफ चाहिए और अपने देश में अपनी बहन-बेटियों की इज्जत सुरक्षित चाहिए तो हमें अपने हक-अधिकारों को पाने के लिए बाबा साहेब डॉ० भीमराव आंबेडकर के उपदेशो को मानना होगा और संघर्ष की मशाल अपने हाथो में थामनी ही होगी !
मित्रो, बाबा साहेब डॉ0 भीमराव आंबेडकर की इस संघर्ष-मशाल को अपने हाथों में थामिये तथा नेतृत्व प्रदान कीजिये औऱ इस मुहीम में आगे चलिये। हम आपके साथ चलने को तैयार हैं। बाबा साहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के सपनों के भारत के निर्माण की इस मुहीम में यदि आप आगे नही चल सकते तो भारतीय मूलनिवासी संगठन में शामिल होकर हमारे साथ चलिये !


शायद इतिहास में यही पढ़ाया जाता है कि गाँधीजी. . .आइये आज जानते है उनकी कुछ महानताए

@ महानता 1. . . . . .शहीद-ए-आजम भगतसिंह को फांसी दिए जाने पर अहिंसा के महान पुजारी गांधी ने कहा था. . .‘हमें ब्रिटेन के विनाश के बदले अपनी आजादी नहीं चाहिए।’’ और आगे कहा. . .‘‘भगतसिंह की पूजा से देश को बहुत हानि हुई और हो रही है वहीं (फांसी) इसका परिणाम गुंडागर्दी का पतन है। ऐसे बदमाशो को फांसी शीघ्र दे दी जाए ताकि 30 मार्च से करांची में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन में कोई बाधा न आवे" ।
अर्थात् गांधी की परिभाषा में किसी को फांसी देना हिंसा नहीं थी ।

@ महानता 2 . . . . . . इसी प्रकार एक ओर महान्क्रा न्तिकारी जतिनदास को जब आगरा में अंग्रेजों ने शहीद किया तो गांधी आगरा में ही थे और जब गांधी को उनके पार्थिक शरीर पर माला चढ़ाने को कहा गया तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया अर्थात् उस नौजवान द्वारा खुद को देश के लिए कुर्बान करने पर भी गांधी के दिल में किसी प्रकार की दया और सहानुभूति नहीं उपजी, ऐसे थे हमारे अहिंसावादी गांधी।

@ महानता 3 . . . . . जब सन् 1937 में कांग्रेस अध्यक्ष के लिए नेताजी सुभाष और गांधी द्वारा मनोनीत सीतारमैया के मध्य मुकाबला हुआ तो गांधी ने कहा. . .यदि रमैया चुनाव हार गया तो वे राजनीति छोड़ देंगेलेकिन उन्होंने अपने मरने तक राजनीति नहीं छोड़ी जबकि रमैया चुनाव हार गए थे।

@ महानता 4 . . . . . .इसी प्रकार गांधी ने कहा था. . . . .“पाकिस्तान उनकी लाश पर बनेगा” लेकिन पाकिस्तानउनके समर्थन से ही बना । ऐसे थे हमारे सत्यवादी गांधी ।

@ महानता 5 . . . . . . इससे भी बढ़कर गांधी और कांग्रेस ने दूसरे विश्वयुद्ध में अंग्रेजों का समर्थन किया तो फिर क्या लड़ाई में हिंसा थी या लड्डू बंट रहे थे ? पाठक स्वयं बतलाएं ?

@ महानता 6 . . . . . .गांधी ने अपने जीवन में तीन आन्दोलन (सत्याग्रह) चलाए और तीनों को ही बीच में वापिस ले लिया गया फिर भी लोग कहते हैं कि आजादी गांधी ने दिलवाई।

@ महानता 7 . . . . .इससे भी बढ़कर जब देश के महान सपूत उधमसिंह ने इंग्लैण्ड में माईकल डायर को मारा तो गांधी ने उन्हें पागल कहा इसलिए नीरद चौधरी ने गांधी को दुनियां का सबसे बड़ा सफल पाखण्डी लिखा है।

@ महानता 8 . . . . . इस आजादी के बारे में इतिहासकार CR मजूमदार लिखते हैं “भारत की आजादी का सेहरा गांधी के सिर बांधना सच्चाई से मजाक होगा।

यह कहना कि सत्याग्रह व चरखे से आजादी दिलाई बहुत बड़ी मूर्खता होगी।
इसलिए गांधी को आजादी का ‘हीरो’ कहना उन क्रान्तिकारियों का अपमान है जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना खून बहाया। ”यदि चरखों की आजादी की रक्षा सम्भव होती है तो बार्डर पर टैंकों की जगह चरखे क्यों नहीं रखवा दिए जाते. . . . . .?


शहीदे आज़म भगत सिंह को फांसी कि सजा सुनाई जा चुकी थी, इसके कारण हुतात्मा चंद्रशेखर आज़ाद काफी परेशान और चिंतित हो गए।
भगत सिंह की फांसी को रोकने के लिए आज़ाद ने ब्रिटिश सरकार पर दवाब बनाने का फैसला लिया इसके लिए आज़ाद ने गांधी से मिलने का वक्त माँगा लेकिन गांधी ने कहा कि वो किसी भीउग्रवादी से नहीं मिल सकते।
गांधी जानते थे कि अगर भगतसिंह और आज़ाद जैसे क्रन्तिकारी और ज्यादा दिन जीवित रह गए तो वो युवाओं के हीरो बन जायेंगे। ऐसी स्थिति में गांधी को पूछनेवाला कोई ना रहता।
हमने आपको कई बार बताया है कि किस तरह गांधी ने भगत सिंह को मरवाने के लिए एक दिन पहले फांसी दिलवाई। खैर हम फिर से आज़ाद कि व्याख्या पर आते है। गांधी से वक्त ना मिल पाने का बाद आज़ाद ने नेहरू से मिलने का फैसला लिया , 27 फरवरी 1931 के दिन आज़ाद ने नेहरू से मुलाकात की। 
ठीक इसी दिन आज़ाद ने नेहरू के सामने भगत सिंह की फांसी को रोकने की विनती की।
बैठक में आज़ाद ने पूरी तैयारी के साथ भगत सिंह को बचाने का सफल प्लान रख दिया। 
जिसे देखकर नेहरू हक्का -बक्का रह गया क्यूंकि इस प्लान के तहत भगत सिंह को आसानी से बचाया जा सकता था।
नेहरू ने आज़ाद को मदद देने से साफ़ मना कर दिया इस पर आज़ाद नाराज हो गए और नेहरू से जोरदार बहस हो गई फिर आज़ाद नाराज होकर अपनी साइकिल पर सवार होकर अल्फ्रेड पार्क की होकर निकल गए।
पार्क में कुछ देर बैठने के बाद ही आज़ाद को पोलिस ने चारो तरफ से घेर लिया। पोलिस पूरी तैयारी के साथ आई थी जेसे उसे मालूम हो कि आज़ाद पार्क में ही मौजूद है।
@ आखरी साँस और आखरी गोली तक वो जाबांज अंग्रेजो के हाथ नहीं लगा ,आज़ाद की पिस्तौल में जब तक गोलियाँ बाकि थी तब तक कोई अंग्रेज उनके करीब नहीं आ सका।
आखिरकार आज़ाद जीवन भरा आज़ाद ही रहा और उस ने आज़ादी में ही वीरगति को प्राप्त किया।
अब अक्ल का अँधा भी समझ सकता है कि नेहरु के घर से बहस करके निकल कर पार्क में 15 मिनट अंदर भारी पोलिस बल आज़ाद को पकड़ने के लिए बिना नेहरू की गद्दारी के नहीं पहुँचा जा सकता था।
नेहरू ने पोलिस को खबर दी कि आज़ाद इस वक्त पार्क में है और कुछ देर वहीं रुकने वाला है। साथ ही कहा कि आज़ाद को जिन्दा पकड़ने की भूल ना करें नहीं तो भगतसिंह
की तरफ मामला बढ़ सकता है।
लेकिन फिर भी कांग्रेस कि सरकार ने नेहरू को किताबो में बच्चो का क्रन्तिकारी चाचा नेहरू बना दिया और आज भी किताबो में आज़ाद को "उग्रवादी" लिखा जाता है।

लेकिन आज सच को सामने लाकर उस जाँबाज को आखरी सलाम देना चाहते हो तो इस पोस्ट को शेयर करके सच्चाई को सभी के सामने लाने में मदद करें।

सबसे बड़े आतंकवादी ब्राम्हणवादी

सबसे बड़े आतंकवादी ब्राम्हणवादी ब्राम्हणवादी !!

देश में जितने भी जगह बम ब्लास्ट हुए वे सारे के सारे आरएसएस या आरएसएस से जुड़े लोगो ने यानि ब्राम्हणो ने ही करवाए। असित चटर्जी उर्फ़ असिमानद ने कन्फेशन में कहा की देश भर में जितने बं ब्लास्ट हुए वे सारे के सारे आरएसएस ने ही करवाए !! मगर सत्ता में बैठी कांग्रेस ने उन सारे आतंकवादियों को बचाया क्यों की मोहन भागवत  को वह बचा रहे थे !कांग्रेस ने ही तो आरएसएस को १९२५ में पैदा किया था ना  !कांग्रेस बीजेपी आरएसएस कम्युनिस्ट ब्राम्हणो डीएनए एक ही है !!
सन २००८ को जब मालेगाव बम  ब्लास्ट की जाँच करकरे ने शुरू की तब उन्हें लेफ्टनत कर्नल प्रसाद पुरोहित और दयानन्द पांडे  के पास से ३ लैपटॉप जप्त किये गए।  उसमे मिली जानकारी यह ब्राम्हणी राज  ब्लू प्रिंट था।
उसमे आरएसएस के द्वारा ही चलाये जा रहे अभिनव भारत के असंख्य गुप्त मीटिंग्स के वीडियो , ओडिवो रिकॉर्डिंग थे।  उसके अनुसार उन ब्राम्हणी आतंकवादियों  मीटिंगे delhi ,जम्मू,कलकत्ता ,फरीदाबाद,भोपाल,इंदौर ,जबलपुर,नासिक ,पुणे ,देवळाली इन  पर गुप्त मीटिंगे  हुयी !उन ३ लैपटॉप में ४८ पार्ट है जिसमे २४ विडीवो और २४ ओडिवो  है। उसमे से केवल ४ या ५ भागो का ही सामने जिक्र आता  है बाकी ढेर सारी  बाते सामने अभी तक आयी  नहीं है। वह सब जानकारी सामने नहीं आयी  है अगर वह आती है तो ३ प्रतिशत ब्राम्हणो को जेल में डाला  जायेगा या फिर उन्हें जनता ही चौक चौराह पर लाकर  मार डालेंगी यह चिंता ब्राम्हणो को है।
भारत में छाहे कांग्रेस आये  या बीजेपी, कम्युनिस्ट  ब्राम्हणो के होने के कारण  ब्राम्हणी आतंकवाद को बढ़ावा देते है क्यों की इसी से ३ प्रतिशत ब्राम्हणो का भारत पर और लोकतंत्र पर नाजायज कब्जा हो जाता है। जो भी जाँच एजंसियां है उनमे भी ब्राम्हण  उन्ही  नियंत्रण है !  नाजायज तरीके से कब्ज़ा किया है। आयबी  और एटीएस ,NIA पर भी विदेशी ब्राम्हणो ने कब्ज़ा  किया है।  २६ - ११ का जो हमला हुआ था उसमे आरएसएस का भी हाथ था और इसी में जो मालेगाव बम  ब्लास्ट की तहकीकात कर  रहे अधिकारियो की हत्याए  भी कर दी गयी और इस काम के लिए कांग्रेस ने आरएसएस को मदत किया !! कांग्रेस के ब्राम्हण कितने महान  होगे इसकी आप कल्पना करो !!
कई जगह पर बम ब्लास्ट हुए उसमे से १७ जगह के बम  ब्लास्ट के मामले के चार्ज शीट कोर्ट में दायर हुए है वे सारे के सारे आरएसएस पर हुए है।  न्यायपालिका में बैठे ब्राम्हण क्या आतंकवादियों का समर्थन कर रहे है ?जानकारी सामने आयी  है पुरोहित को बचाया जा रहा है !! क्लीन चिट  दी जा रही है !! शेम शेम !!
क्या हम भारत में रहते है ? क्या भारत में लोकतंत्र है ?
उन १७ जगह की कोर्ट में दायर  चार्ज शीट  अनुसार आरएसएस आतंकवादी ब्राम्हणो  संघठन है  जानकारी :
आरएसएस , अभिनव भारत और वन्दे  मातरम के ब्राम्हणो ने किये बम  ब्लास्टः
१ अजमेर शरीफ ,राजस्थान २००६
२ मक्का मस्जित ,आंध्र प्रदेश ,हैदराबाद २००६
३ समझौता एक्सप्रेस २००६
४ मालेगाव , महाराष्ट्र २००६
५ मालेगाव महाराष्ट्र २००८
६ मोडासा ,गुजरात २००८
आरएसएस और बजरंग दलों के द्वारा किये गए बम  ब्लास्ट :
७ नांदेड़ ,महाराष्ट्र २००६
८  परभणी ,महाराष्ट्र २००३
९  जालाना , महाराष्ट्र २००४
१० पूर्णा  , महाराष्ट्र २००४
११ कानपुर , उप , २००८

आरएसएस  के द्वारा किये गए बम  ब्लास्ट
१२ कन्नूर , केरल , २००८
१३ तेन काशी , तमिलनाडु २००८
१४ पनवेल , महाराष्ट्र, २००८
सनातन संस्था  के द्वारा किये गए बम  ब्लास्ट :
१५ ठाणे ,  महाराष्ट्र , २००८
१६ वाशी , नवी मंबई , महाराष्ट्र
१७ मडगाव , गोवा , २०१०
अब इन बम  ब्लास्ट में शामिल ब्राम्हणो की लिस्ट :
१ सुनील जोशी  - मऊ  , मध्य प्रदेश का आरएसएस का प्रचार प्रमुख  १९९०  से २००३
२ संदीप डांगे - आरएसएस का प्रचार प्रमुख :शाजापुर , मध्य प्रदेश , २००५ से २००८
३ देवेन्द्र गुप्ता जामताड़ा झारखण्ड का आरएसएस का जिला प्रचार प्रमुख
४ लोकेश शर्मा -आरएसएस का नगर कार्यवाहक देवगढ़।
५ चंद्रकांत लावे - आरएसएस का जिला  प्रचार प्रमुख :शाजापुर , मध्य प्रदेश , २००८ से २०१०
६  स्वामी असिमांंनन्द - आरएसएस का सबसे पुराना और सर्वोच्च नेता। 
७ राजेंद्र उर्फ़ समुन्दर - आरएसएस वर्ग विस्तारक।
८ मुकेश वासनी -गोधरा का आरएसएस का कार्यकर्त्ता
९ रामजी कालसांगरा - आरएसएस का कार्यकर्त्ता
१० कमल चौहांन - आरएसएस का कार्यकर्ता
११ साध्वी prdnya  सिँघ  ठाकुर , आरएसएस की कार्यकर्ता जो वन्दे  मातरम और अभिनव भारत से जुडी है !
१२ राजेंद्र चौधरी उर्फ़ रामबालक दास -आरएसएस का कार्यकर्ता
१३ धन सिंह उर्फ़ लक्ष्मण - आरएसएस का कार्यकर्ता
१४ राम मनोहर कुमार सिंह
१५  तेज राम उर्फ़ रामजी उर्फ़ रामचन्द्र कालसांगरा - आरएसएस का कार्यकर्त्ता
१६  संदीप उपाध्याय उर्फ़ संदीप डांगे  - आरएसएस
१७ सुनील जोशी - आरएसएस
१८ राहुल पाण्डे  - आरएसएस
१९ डॉ उमेश देशपांडे - आरएसएस
२० संजय चौधरी
२१ हिमांशु पानसे -
२२ रामदास मुलंगे
२३ नरेश राजकोंडावर
२४ योगेश विदुलकर
२५ मारुती वाघ
२६ गुरुराज तुप्तेवर
२७ मिलिंद एकबोटे
२८ मलेगोंडा पाटिल ( जो गोवा में बम  ब्लास्ट के साथ ही मारा  गया , यह पिछड़े वर्ग का है और उसका इस्तेमाल आरएसएस ने किया )
२९ योगेश नाईक
३०  विजय तलेकर
३१ विनायक पाटिल
३२ प्रशांत जुवेकर
३३ सारंग कुलकर्णी
३४ धनजय  अष्टेकर
३५ दिलीप  मंगोंकर
३६ जयप्रकाश उर्फ़ अन्ना
३७ रूद्र पाटिल
३८ प्रशांत अष्टेकर
३९ रमेश गडकरी -सनातन संस्था
४० विक्रम भावे - सनातन संस्था
   पिछले साल आरएसएस ने मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में भी बम  ब्लास्ट किया था जिसमे २०० से ज्यादा लोग टमाटर की तरह फटकर  मारे गए।  mp  में बीजेपी आरएसएस की सत्ता है उस मसले को आरएसएस ने दबाया !
 देश भर में आरएसएस बम  ब्लास्ट कर रही है। 
भारत में एक भी राजनैतिक दल  इन विदेशी ब्राम्हणो को आतंकवादी तक कहने को डरता है।  भारत मुक्ति मोर्चा और बहुजन मुक्ति पार्टी ने विषय लगाकर जन जागरण चलाया और अब फिर से जनजागरण करेंगे।  आंदोलन करेंगे ! विदेशी ब्राम्हणो को नंगा करेंगे !!
तथाकथित आज़ादी के ६८ साल के सालो में ६४ हज़ार फसाद हुए उसमे एक भी ब्राम्हण नहीं मारा  मगर इन फसादो से ३ प्रतिशत  ब्राम्हणो ने sc ,st  obc का धार्मिक धुरुवीकरन करके हिन्दू के नाम पर इस्तेमाल किया और कांग्रेस को डर के मारे मुस्लिमो ने वोट दिया !
इससे कांग्रेस और बीजेपी का सत्ता और विपक्ष पर कब्ज़ा हुआ।  भारत के ८५ प्रतिशत बहुजन बहुसंख्य होने के बावजूद ३ प्रतिशत ब्राम्हणो के गुलाम हुए !
इंडिया टुडे की रिपोर्ट कहती है की भारत में मुसलमान काम जेल में ज्यादा रहते है !!
अभी की सरकारी ताजा  रिपोर्ट के अनुसार sc ,st ,obc ,मुस्लिम के ८५ प्रतिशत लोगो के ६७ प्रतिशत लोग जबरन जेलो में है !!
भारत में गृह युद्ध होगा !! ३ प्रतिशत ब्राम्हणो ने जो भी षड्यंत्र किये है उसका जनता बदला  जरूर लेगी !!
अब तो समझ में आया राष्ट्रव्यापी जनांदोलन के अलावा कोई विकल्प है ?
मूलनिवासी जागेगा  विदेशी ब्राम्हण भागेगा !
सबसे बड़े आतंकवादी ब्राम्हणवादी ब्राम्हणवादी !!
यह कैसी लाचारी है ८५ पर १५ भारी  है ?   

मीडिया हमारा आन्दोलन क्यों नहीं दिखा रहा?

 हमारे कई लोग पिछले कई दिनों से पूछ रहे है की- मीडिया हमारा आन्दोलन क्यों नहीं दिखा रहा? बात एकदम सही है। आईये जानते है हर एक मीडिया चैनल और उनके मालिको का सच।

Zee news:
यह चैनल का मालिक सुभाष चंद्रा है।सुभाष चंद्रा नरेन्द्र मोदी के काफी करीबी व्यक्ति है। 2014 चुनाव में इन्होने न सिर्फ बीजेपी को पैसे दिए थे बल्कि खुद मोदी की हरयाणा में हुई हर चुनावी रैली में उपस्थित रहे थे।

इस चैनल के दुसरे अहम् व्यक्ति है- सुधीर चौधरी। जो जी न्यूज़ का एंकर है। और आप भी इन्हें जानते होगे। यह व्यक्ति पत्रकार के नाम पर कलंक है। यह दलाल 2012 में उद्योगपति नवीन जिंदल से 100 करोड़ की रिश्वत मांगते कैमरे में कैद हुआ था। और फिर तिहाड़ जेल की हवा भी खा चूका है। JNU छात्र कन्हैया कुमार का फर्जी नारों वाला विडियो भी इसीने बनवाया था।
 इनकी मोदी भक्ति से खुश मोदी सरकार ने इन्हें z श्रेणी की सुरक्षा मुहैया करवाई है।

IndiaTV :
यह चैनल का मालिक रजत शर्मा है। आप सभी इन्हें अच्छे से पहचानते होंगे। रजत शर्मा के पिता BJP के नेता थे। खुद रजत शर्मा ABVP के अध्यक्ष रह चुके है,और इनकी पत्नी आजभी बीजेपी की नेता है। इस चैनल की हर न्यूज़ मोदी को महान दिखाने के एंगल से बनायीं जाती है। हर न्यूज़ में मोदी-भक्ति दिखाई देती है। कहा जाता है इस चैनल का पूरा खर्च बीजेपी उठाती है। मोदी सरकार ने रजत शर्मा को Editor's Guild का अध्यक्ष बनाया है।

Aaj Tak:
यह चैनल India Today ग्रुप का एक हिस्सा है। जिनके मालिक अरुण पूरी है। इस ग्रुप द्वारा India Today नाम की मैगज़ीन प्रकाशित की जाती है। अगर आप एक बार भी इस मैगज़ीन को पढोगे या एक दिन के लिए आज तक/Headlines Today चैनल देखोगे तो आपको पता चल जायेगा की इस ग्रुप की वफ़ादारी किस तरफ है।

Times Now, IBN7, CNN-IBN-
यह तीनों चैनल TV18 ग्रुप का हिस्सा है। जिनके मालिक मुकेश अम्बानी है। मुकेश अम्बानी और नरेन्द्र मोदी के आपसी रिश्तो के बारे में जितना कहा जाये उतना कम होगा।

News24- यह चैनल के मालिक कोंग्रेस नेता राजीव शुक्ला है। जो अरुण जेटली के काफी अच्छे दोस्त भी है।

 उपर दिये गये चैनल्स के साथ-साथ देशके बाकि बचे हुये लगभग हर चैनल्स और आज देशमें मौजूद 95% से ज्यादा अखबारों (न्यूजपेपर) के मालिक मनुवादी ब्राह्मण और बनिया लोगही हैं।

क्या अब भी आपको लगता है की यह लोग कभी भी मोदी सरकार के खिलाफ कोई खबर पुरे जोर से दिखायेगे??! या मनुवादियो के खिलाफ कुछ दिखायेंगें? ब्राह्मणवादविरोधी आंदोलन, आंबेडकरवादी आंदोलन, फुले,शाहू,आंबेडकरवादी विचार कभी अपने चैनल्सपे दिखायेंगें? अपने न्यूजपेपर्स या मैगजिनमें छापेंगें? वो ऐसा कभी नहीं करेंगें।

यह घिनोना सच जानकर हमें निराश नहीं होना है। क्योंकि अगर इन लोगो के पास पैसा और पॉवर है तो हमारे पास भी सोशल मीडिया और सच की ताकत है।

आप सभी से निवेदन है की एक बने रहिये, बिखर मत जाना। मीडिया हमारे इस विराट आन्दोलन को दिखाये या ना दिखाये, हमे कोई फर्क नहीं पड़ता। हम सोशल मीडिया का भरपूर उपयोग करेंगे और सच की मशाल कायम करेंगे। याद रखे अगर हम मनुवादियो को सत्ता में ला सकते है तो उन्हें उखाड़ भी सकते है।

कृपया इस मेसेज को हर  भाई/बहन तक पहुँचायें।     🙏🏼🙏🏼


NDTV हिंदी ने साल में एक जैसा-तैसा कार्यक्रम बाबा साहेब पर कर दिया तो आप जैसे भोले लोग फ़िदा हो गए। 

यह भी नहीं देखा कि उसी चैनल ने पिछले चुनाव से ठीक पहले बहनजी के खिलाफ कैसा ज़हरीला कार्यक्रम चलाया। यह चैनल अभी अभी झारखंड की बीजेपी सरकार से बड़ी रक़म ले चुका है। 

यूपी में विधानसभा से पारित नियम से हर पूर्व मुख्यमंत्री को सरकारी घर मिला है। सबने अपने ढंग से सजाया है। कार्यक्रम सिर्फ बहनजी के घर पर किया गया।

NDTV ने सिर्फ बहनजी के सरकारी आवास का बेडरूम और बाथरूम नापा। जबकि हर पूर्व मुख्यमंत्री का घर एक जैसा है। यहाँ तक कि मार्बेल की क्वालिटी जाँची गई।

इस कार्यक्रम में बहनजी को माया मेमसाहेब कहा गया है। समझने वाले समझते होंगे कि यह कितना अपमानजनक है।

बहनजी के सरकारी घर पर बनाए गए कार्यक्रम का अंत गीता के श्लोक से किया गया। 

मीडिया एक सिस्टम है। एक कार्यक्रम आपके पक्ष का दिखाकर, उसकी आड़ में आपकी जड़ खोद दी जाती है।

भरोसा हासिल करने के बाद गला काटना आसान होता है। 


पता नहीं मैं अभी किन मीडिया-मूर्खों को यह सब बता रहा हूँ।

भगवान मिलें या ना मिलें, इसकी कोई गारंटी नहीं है

विचारणीय तथ्य

धार्मिक पुस्तकें पढ़ने से आपको भगवान मिलें या ना मिलें, इसकी कोई गारंटी नहीं है

परंतु

मंदिर में अपनी कमाई में से दान-अनुदान-अनुष्ठान पर जरूर खर्च करना पड़ता है, इसकी 100% गारंटी है

मतलब, "आर्थिक नुकसान ही नुकसान"

और

पवित्र ग्रंथ संविधान आपको शिक्षा देकर योग्य बनाता है, इसकी तो 100% गारंटी है

तथा

संविधान से शिक्षा, शिक्षा से नौकरी, नौकरी से पैसा, पैसे से मकान + वाहन + संसाधन, मकान + वाहन + संसाधन से मान + सम्मान, मान + सम्मान से सामाजिक + राजनीतिक प्रगति अवश्य मिलती है

मतलब, "आर्थिक फायदा ही फायदा"

अब चुन लें कि आपको

नुकसानदायक धार्मिक पुस्तकें चाहिए

अथवा

लाभदायक संविधान चाहिए        

एक आरक्षण विरोधी को लिखित जबाव

एक आरक्षण विरोधी को लिखित जबाव :--
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"करता हूँ अनुरोध आज मेैं, भारत की सरकार से !
प्रतिभाओं को मत काटो, आरक्षण की तलवार से !!"

यहाँ से उत्तर काव्य में है :---
...........................................

एकलव्य जब-जब पढ़ा स्वयं के सुधार से,
कई द्रोणों ने काटे अंगूठे, आरक्षण की तलवार से,
एकलव्य जब बिना द्रोण के, योग्य धनुर्धर यार हुआ,
तब सोचो, द्रोण ने अर्जुन को फिर क्यों आरक्षण दिया ?

सूत पुत्र कह के परशुराम ने कर्ण को जब ठुकराया था,
क्या याद तुझे है, अज्ञानी, क्या कर्ण ने नहीं बताया था ?
क्या प्रतिभा नहीं थी कर्ण के अंदर ?
न ही जन्म से, सूत का जाया था ?
फिर क्यों पापी, जातिवादी ने कर्ण को नहीं सिखाया था?

जब आरक्षण की बात चली तो - शंकराचार्य का पद आरक्षित मुक्त करो ?
जितने आलय हैं "पूरे देश में, आरक्षण से मुक्त करो ?"
चाहे शिवालय, या देवालय, या मदिरालय, या विश्वविद्यालय,
बिना आरक्षण नियुक्त करो,

जब बात चली है आरक्षण की, तो
धन, धरती को शून्य करो,
जितनी जिसकी संख्या है,
उसको उतना नियुक्त करो,
और सारी धरती को,
आरक्षण से मुक्त करो ?

चाहे ज़िन्दा या हो मुर्दा,
सबको अपना काम दो,
एक समान हो, सबकी शिक्षा,
अवसर एक समान दो,
फिर देखेंगे, मिलकर यारा,


किसको कितना आरक्षण मिलता है ?
मदिरालय से देवालय तक
कितना हिस्सा मिलता है ?
काम का जब बटवारा होगा,
कितना द्रव्य जब मिलता है ?

जब बात चली आरक्षण की, तो
बिना भेद की शिक्षा देकर देखो,
बिना जाति के देश को करके देखो,
नाम से सरनेम हटाकर देखो,
गोत्र हताओ, नक्षत्र हटाओ,
तिलक हटाओ, जनेऊ हटाओ।
फिर देश की तरक्क़ी देखो ?

जब बात चली आरक्षण की तो,
कितने कर्मचारी विभाग में पूरे देखे ?
उनमें कितने काम चोर देखे ?
कितने ड्यूटी पर सोते देखे ?
कितने भ्रष्टाचारी देखे ?

जब बात चली आरक्षण की तो,
भ्रष्टाचारियों को जेल क्यों नहीं ?
बलात्कारियों को सजा क्यों नहीं ?
क्या उसे भी आरक्षण ने रोका है ?
अपनी नाक़ामी छुपाने का यही सही एक मौक़ा है?


जो अक्षम हैं, कहते हैं कि आरक्षण ने मौक़ा नहीं दिया ?
क्या आरक्षण वास्तव में मौक़ा छीनता है ?
या युगों-युगों से पिछड़ों को मौका देता है ?

फिर भी जब आरक्षण की बात चली तो,
खतम करो आरक्षण और,
और दे दो, अवसर समान,
बना दो देश महान,
जितनी जिसकी भागेदारी,
उतनी उसकी हिस्सेदारी ?

बोलो, बोलो, अब तो बोलो,
सोच समझ के अब मुँह खोलो,
हमने आरक्षण कभी न माँगा ?
हमने तो, सम्मान था माँगा।

बात चली आरक्षण की तो ,
आओ साथ में, बात करेेंगें,
आपस में हम गले मिलेेगें,
हाथ-हाथ में डाल रहेंगें ।
आधी रोटी बाँट खायेगें ।
चलो एक हम कहलायेंगे ।

आरक्षण की बात चली तो,
मंदिर तो भगवान का है, तो उसमें पुजारी क्यों?
मंदिर भगवान का है, तो उसमें ताला क्यों ?
मंदिर जब भगवान का घर है, तो पण्डा एक जाति का क्यों ?
मंदिर जब भगवान का घर तो,
एक खास को आरक्षण क्यों ?

बात चली जब आरक्षण की तो,
एक भूखा नंगा क्यों ?
और दूजे के आँगन में,
खाने को फिर दंगा क्यों ?
एक-एक प्रश्न पर बवाला क्यों ?


अब भी समझो
इंसानों को इंसान,
या कहलाना बंद करो
अपने को इंसान,
क्योंकि,
कुत्ते को छोड़ कर,
गाय, गाय को प्यार करती है, ( पशु है ),
सांप, सांप को प्यार करता है, ( कीड़ा है ),
मछली, मछ्ली के साथ रहती है, (जलचर है )।
चील, कौए, बाज, कोयल सब आपस में प्यारे हैं, ( सब पंक्षी हैं )।
फिर इंसान को इंसान से इतनी नफ़रत क्यों ?

बात चली अारक्षण की तो,
क्यों इंसान, इंसान से कतरा रहा है,
आरक्षण का रोना, रोकर गा रहा है ?
यदि वह एक आरक्षण से दो वक़्त का खाना का रहा है ?
तो तुम्हें रोना क्यों आ रहा है ?

तो सुनो, मेरा एक सुझाव भी है :-
यदि है, फिर भी है तक़लीफ़ तो तुम भी चुनो :
"जो कुछ मेरे पास है, जाति, नाम, काम, धाम, मान,
सब मुझसे ले लो,
मैं तैयार हूँ- और तुम तैयार हो जाओ,
जो कुछ तुम्हारे पास है वो मेरा आज से,
जो कुछ मेरे पास है, वह आज से सब कुछ तुम्हारा है,
जाति, नाम, मान, काम, धाम ?
बोलो हो तैयार,
आओ मैदान में यार ।

फिर ये ही कहना मित्र मेरे,
ये तुम गा-गाकर,
प्रतिभाओं को मत काटो,
आरक्षण की तलवार से,
करता हूँ अनुरोध आज मैं,
भारत की सरकार से ।

हम ज़िन्दा हैं,
क्योंकि हम कामग़र हैं।
तुम क्या करोगे,
क्या हमारी तरह पसीना बहाओगे ?
या तिलकधारियों की तरह,
भिक्षाटन पर जाओगे ?

अब तो बताओ, सच-सच यार,
समस्या, आरक्षण है, या जातिवाद ?
तुम जाति ख़त्म करो,
आरक्षण अपने आप ख़त्म हो जायेगा।

मेरा मानना है तब भारत स्वर्ग बन जायेगा,
फिर यहाँ कोई लाचार नज़र नहीं आएगा,
नहीं होगा यहाँ आरक्षण, न कोई रोता नज़र आएगा,
पुरे देश में, शिष्टाचार नज़र आएगा !!

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"जिस भी कवि महोदयजी ने इस उत्कृष्ट कविता को लिखा है,
 उनको मेरा  अभिनंदन् , सप्रेम् जयभीम !!"


बिना आरक्षण का विजय माल्या भारत को कर्ज मे डालकर भाग गया।

बिना आरक्षण वाला ललित मोदी भारत को कर्ज मे डालकर भाग गया।

बिना आरक्षण वाले नोटबंदी मे सबसे ज्यादा पकडे गये।

विना आरक्षण वाले साधु महिलाओ का योन शोषण करने मे जेल मे हैं।

विना आरक्षण वाले मैच फिक्सिंग के कारण वैन हैं।

विना आरक्षण वाले फिल्मी स्टारों पर हथियार रखने और देश से गद्दारी के मुकद्दमे चल रहे।

बिना आरक्षण वाले दुश्मन के लिये जासूसी करते पकडे जातें।

बिना आरक्षण वाले व्यापम घोटाले मे भागीदार।

बिना आरक्षण वाले सेना के हेलीकॉप्टर घोटाले के मुखिया। 

आरक्षण तो बदनाम है
किसी के हक के लिये,

पर देश तो लुट गया विना आरक्षण वालो के लिये,,,



आरक्षण कैसे हो।
🙏🏻
जिनको लगता है आरक्षण का आधार सामाजिक न्याय नहीं "गरीबी" होना चाहिए वो कृपया बताएं:
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गरीब होने के कारण कितने सवर्ण बेइज्जत होते हैं?

✅(1)-क्या आपने कभी किसी सवर्ण ब्राह्मण ठाकुर बनिया की बेटी की बारात"गरीब होने के कारण"चढ़ने से रोकने की घटना सुनी है?
✅(2)-क्या किसी सवर्ण दूल्हे को"गरीब होने के कारण" घोड़ी से उतारकर पीटने की घटना सुनी है?
✅(3)-क्या"गरीब होने के कारण" ब्राह्मण ठाकुर बनिया को मन्दिर जाने से रोका गया?
✅(4)-क्या कोई सवर्ण "गरीब होने के कारण"स्कूल कॉलेज में छुआछूत का शिकार हुआ?
✅(5)-क्या किसी सवर्ण शिक्षक को "गरीब होने के कारण" स्कूल कॉलेज में नियुक्ति प्रदान करने से रोका गया?
✅(6)-क्या किसी सवर्ण को सार्वजनिक कुंएं से"गरीब होने के कारण" पानी पीने से रोका गया?
क्या किसी सवर्ण ब्राह्मण ठाकुर बनिया को "गरीब होने के कारण शमशान में शव फूंकने से रोका गया?
✅(7)-क्या किसी सवर्ण सरपंच-प्रधान को"गरीब होने के कारण"राष्ट्रीय पर्व पर तिरंगा फहराने से रोका गया?
✅(8)-क्या किसी सवर्ण मजदूर को "गरीब होने के कारण"मजदूरी के पैसे मांगने पर मौत के घाट उतारा गया?
✅(9)-क्या किसी सवर्ण को "गरीब होने के कारण"सामूहिक भोज में से दावत खाने से रोका गया?
✅(10)-क्या किसी सवर्ण महिला को"गरीब होने के कारण"नंगा करके गाँव में घुमाया गया?
✅(11)-क्या किसी सवर्ण लड़के को "गरीब होने के कारण" अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी लड़की से प्रेम करने पर मार डाला और सवर्णों की बस्तियां फूंकी गयी?
✅(12)-इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक सवर्ण जज ने अछूत जज के जाने के बाद कुर्सी को गंगाजल से धोया था यह गरीबी के कारण नहीं बल्कि जातिय घृणा के कारण ही हुआ था।
✅(13)-आप एक उदाहरण बता दें कि,फलां ब्राह्मण ठाकुर बनिया का केवल "गरीब होने के कारण" एस सी , एसटी, ओबीसी की तरह उत्पीड़न किया गया हो।
अछुत की तरह रौंदा गया हो और घिनौने तरीके से जलील किया गया हो।
✅(14)-फलां ब्राह्मण ठाकुर बनिया महिलाओं के साथ बदले की भावना से सामूहिक बलात्कार किये हों।
✅(15)-अगर आप भारतीय समाज के चरित्र से अच्छी तरह परिचित होंगे तो आपको मालूम होगा कि कोई ऐसा गरीब ब्राह्मण ठाकुर बनिया नहीं मिलेगा जिसको केवल जाति के आधार पर बेइज्जत होना पड़ा हो,जबकि अछूतो पिछड़ो के लिए आमबात है।
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तो आरक्षण का आधार गरीबी कैसे हो सकता है , गरीबी अर्थात् आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात को कहने वालो यह संवैधानिक नहीं है, बल्कि एक मनुवादी झांसा है।...

आरक्षण कोई भीख नही है बल्कि पूना पैक्ट का वायदा है।पाकिस्तान की तर्ज पर बचे हुए भारत के ओर टुकड़े न हो उसे बचाने के एवज मे सामाजिक स्तर पर समानता लाने के लिए किया गया प्रयास था।जब ये प्रयास हुआ था तब क्या देश मे सिर्फ दलित ही गरीब थे।गरीब तो उस समय भी सभी जाति के लोग थे फिर सबको उस समय आरक्षण क्यो नही मिला।क्या उस समय गरीब स्वर्णो के हितैषी नेता नही थे ? आज तो लोक सभा मे 120 एम पी दलित है उस जमाने मे तो एक डा अम्बेड़कर को छोड़कर कोई भी नही था।बाकी सभी स्वर्ण नेता थे वो भी मंजे हुए।उन्होने जाति के आधार पर गरीब स्वर्णो को आरक्षण दिलाने की पैरवई क्यो नही की।सच ये है कि आरक्षण का आधार" गरीबी" कभी नही थी इसीलिए उस समय किसी भी स्वर्ण नेता ने यह मुद्दा नही उठाया था कि सभी गरीबो को गरीबी के आधार पर आरक्षण मिले।