Monday, 28 August 2017

स्कूल में पानी नहीं पी सकते

[मध्य प्रदेश के दस जिलों के अध्ययन में सामने आयी हकीकत, स्कूल में पानी नहीं पी सकते 92 फीसदी दलित बच्चे!
- Bhim Dastak] is good,have a look at it! http://bhimdastak.com/india/reality-in-the-study-of-madhya-pradesh-ten-districts/
*भोपाल।* आजादी के 69 साल बाद भी देश के दलित बच्चे भेदभाव का देश झेलने को मजबूर हैं। चाइल्ड राइट औब्ज़र्वेटरी एवं मप्र दलित अभियान संघ द्वारा किया गया हालिया सर्वे इस भयावह सच्चाई को बयां करता है। सर्वे के अनुसार 92 फीसदी दलित बच्चे स्कूल में खुद पानी लेकर नहीं पी सकते, क्योंकि उन्हें स्कूल के हैंडपंप और टंकी छूने की मनाही है। 57 फीसदी बच्चों का कहना है कि वे तभी पानी पी पाते हैं, जब गैरदलित बच्चे उन्हें ऊपर से पानी पिलाते हैं। 28 फीसदी बच्चों के माता-पिता का कहना था कि प्यास लगने पर उनके बच्चे घर आकर पानी पीते हैं, जबकि 15 फीसदी बच्चों को स्कूल में प्यासा रहना पड़ता है।
*कक्षा में आगे नहीं बैठने दिया जाता* :- सर्वे के अनुसार, 93 फीसदी बच्चों को कक्षा में आगे की लाइन में बैठने नहीं दिया जाता है। इसके अनुसार, 79 फीसदी बच्चे पीछे की लाइन में, जबकि 14 फीसदी बच्चे बीच की लाइन में बैठते हैं।
*गैरदलित शिक्षकों का व्यव्हार ठीक नही*ं :- 88 फीसदी बच्चों के अनुसार, उन्हें शिक्षकों के भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। 23 फीसदी बच्चों का कहना है कि गैरदलित की तुलना में शिक्षक उनसे ज्यादा सख्ती से पेश आते हैं। 42 फीसदी बच्चों ने कहा, शिक्षक उन्हें जातिसूचक नामों से पुकारते हैं।
इसी प्रकार 44 फीसदी बच्चों ने कहा कि गैरदलित बच्चें भी उनके साथ भेदभाव करते हैं। 82 फीसदी बच्चों के अनुसार मध्यान्ह भोजन के लिए उन्हें अलग लाइन में बिठाया जाता है।
*छुआछूत ने ले ली जान* :- हाल ही में दमोह जिले के खमरिया कलां गांव के स्कूल में पढ़ने वाले 8 साल के बच्चे की बावड़ी में गिरने से मौत हो गयी। बताया जाता है कि शिक्षक दलित बच्चों को स्कूल के हैंडपंप से पानी नहीं पीने देते थे। इस कारण से अभिषेक भाई और दोस्तों के साथ बावड़ी में पानी पीने गया था।
*ऐसे हुआ सर्वे* :-संघ द्वारा प्रदेश के पांच प्रमुख क्षेत्र बघेलखण्ड, बुंदेलखंड, चम्बल, महाकौशल और निमाड़ के 10 जिलों के 30 गांवों के 412 दलित परिवारों का सर्वेक्षण किया गया। इस दौरान इन गांवों के दलित सरपंच, शिक्षक, अधिकारी और कर्मचारियों से बात की गयी।
*सर्वे के निष्कर्ष* :- सर्वे में शामिल सभी गांवों में दलितों के साथ छुआछूत का प्रचलन है। यानि कोई भी गांव जाति आधारित छुआछूत से मुक्त नहीं है। मप्र में कुल मिलकर 70 प्रकार की छुआछूत प्रचलित है।
80 फीसदी गांवों में दलितों के मंदिर में प्रवेश पर रोक है। गांवों में नाई दलितों की कटिंग नहीं बनाते।

50 फीसदी गांवों में दलित बच्चों के आधुनिक नाम रखने पर गैर दलित उनकी पिटाई कर देते हैं।
बुंदेलखंड में सबसे ज्यादा 52 प्रकार की छुआछूत प्रचलित है। चम्बल में 49, निमाड़ में 41, बघेलखण्ड में 38 और महाकौशल में 17 प्रकार की छुआछूत प्रचलित है।

स्कूलों में होने वाले उपेक्षित व्यव्हार और भेदभाव के चलते कई प्रतिभाशाली दलित बच्चे बीच में ही पढाई छोड़ देते हैं। आंकड़े बताते हैं कि पढाई में होशियार होने के बाद भी दलित बच्चों को स्कूल में सबसे पीछे बैठने को मजबूर किया जाता है।


फेसबुक ,व्हाट्सएप ,ट्विटर ...... इत्यादि सभी सोशल साइट्स पर जहा कहीं भी जाता हु ,सारे 3% विदेशी ब्राह्मणों का एक ही मकसद देखता हु ,की 85% OBC SC ST ,मुसलमानों को अपना दुश्मन मान ले ,पर जब मै 3% विदेशी ब्राह्मणों से अपने यह सवाल पूछता हु तो कोई ब्राह्मण मेरे सवाल का जवाब देने सामने नहीं आता ,
सवाल नं 1) क्या जातप्रथा (caste system) ,& वर्णप्रथा में पिछड़ी जातियों को मुसलमानों ने बाटा या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?
सवाल नं 2)क्या धर्म के नाम पर 33 करोड़ काल्पनिक देवी-देवताओं का निर्माण कर पथ्थरो की मूर्तियों के नामपर मुसलमान हमको ठग रहे है या 3% विदेशी ब्राह्मण ?
सवाल नं 3) क्या हमारे संवैधानिक ''रिजर्वेशन'' का विरोध मुसलमान कर रहे है या 3% विदेशी ब्राह्मण ?
सवाल नं 4)क्या हमारे महापुरुषों (रविदास कबीर तुकाराम फुले शाहूज महाराज बाबासाहब कांशीराम पेरियार इत्यादि )को षड्यंत्र से मारने का सफल या असफल प्रयास मुसलमानों ने किया या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?
सवाल नं 5)हमारी महान हरप्पा मोहनजोदाड़ो की सिंध सभ्यता पर हमला मुसलमानों ने किया या 3% विदेशी आर्य ब्राह्मणों ने ?
सवाल नं 6) mandal कमीसन को दबाने के लिए रथ यात्रा मुसलमानों ने निकाली या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?
सवाल नं 7)क्या सदियों से SC ST के लोगो के साथ अछूतपन का व्यवहार मुसलमानों ने किया या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?
सवान नं 8) आज भारत पर न्यायपालिका कार्यपालिका मीडिया विधायिका पर मुसलमानों का कब्ज्जा है या 3% विदेशी ब्राह्मणों का ?
सवान नं 9)क्या privatisation ,globalisation के नाम पर देश को निजी उद्योगपतियों के हाथो मुसलमान बेच रहे है या 3% विदेशी ब्राह्मण ?
सवाल नं 10)क्या शुद्र कहकर शिजाजी महाराज का राज्याभिषेक मुसलमानों ने नकारा या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?
सवाल नं 11)क्या शिवाजी महाराज का राज्यतिलक बाए पैर के अंगूठे से कर उस महाप्रतापी राजा का अपमान मुसलमानों ने किया या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?
सवाल नं 12)सम्राट अशोक के पुत्र की ह्त्या मुसलमानों ने की या 3% विदेशी ब्राह्मणों ने ?
सवाल नं 13)हर गाव हर घर में पिछड़ी जातियों को आपस में लड़ाने का काम मुसलमान करते है या 3% विदेशी ब्राह्मण ?
सवाल नं 15) बौद्ध जैन सिख लिंगायत जैसे स्वतंत्र धर्मो को ब्राह्मण धर्म (हिन्दू धर्म) की शाखा कहकर प्रचारित कर उनका स्वतंत्र अस्तित्व मुसलमान ख़त्म कर रहे है की ब्राह्मण ?
सवाल तो हजारो है पर आज बस इतना ही ।
मुसलमानों ने हमारे लिए क्या किया इसकी भी जानकारी आपको देता हूँ ,
भारतीय इतिहास की कुछ शानदार घटनाये  :---
.(1) महात्मा ज्योतिबा फूले को अपना स्कूल बनाने के लिये जमीन उस्मान शेख नाम के एक मुसलमान ने दी थी ।
.(2) उस्मान शेख की बहन फातिमा शेख ने सावित्री बाई फूले का साथ देकर उनके स्कूल में  पढा़ने का काम किया था ।
.(3) बाबासाहेब आंबेडकर  ने जब चावदार तालाब का आंदोलन चलाया और सभा करने के लिये बाबासाहेब को कोई हिन्दु जगह नहीं दे रहा था ।
तब  मुसलमान भाइयों ने आगे आकर अपनी जगह दी थी और बाबासाहेब से कहा था कि  " आप हमारी जगह मे अपनी सभा कर सकते हो "
.(4) गोलमेज परिषद मे जब गांधी जी ने बाबासाहेब का विरोध किया था और रात के बारह बजे गांधी जी ने मुसलमानों को बुलाकर कहा था कि आप बाबासाहेब का विरोध करो तो मैं आपकी सभी मांगे पूरी करुंगा ।
तब मुसलमान भाई आगार खांन साहब ने गांधी जी को मना कर दिया था और कहा था कि हम बाबासाहेब का विरोध किसी भी हाल मे नहीं करेंगे ।
.(5) मौलाना हसरत मोहानी ने बाबा साहब को रमजा़न के पवित्र माह में अपने घर रोजा़ इफ्तार की दावत दी थी ।
जबकि पंडित मदनमोहन मालवीय ने तो बाबा साहब को एक गिलास पानी तक नहीं दिया था ।
.(6) जब सारे हिन्दुओं (गांधी और नेहरू) ने मिलकर बाबासाहेब के लिये संविधान सभा के सारे दरवाजे और खिड़किया भी बंध कर दी थीं ।
तब पश्छिम बंगाल के मुसलमानों व चांडालों ने बाबासाहेब को वोट देकर चुनाव जिताकर संविधान सभा मे  भेजा था ।
.इसीलिए SC, ST और OBC समाज के लोगों को यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि मुस्लिम नेताओं ने  बाबा साहेब आंबेडकर का अक्सर साथ दिया था ।
जबकि गांधी और तिलक हमेशा ही बाबा साहेब आंबेडकर के रास्ते में मुश्किलें पैदा करते रहे थे ।
अभी भी SC, ST और OBC के आरक्षण के खिलाफ संघी ही आंदोलन चलाते हैं, मुस्लिम नही ।


दोस्तों अब वक्त आ गया मनुवादियों को इनकी ही भाषा में जबाब देने  का
मनुवादियों से टकराओ
हिन्दू मुस्लिम एकता बनाओ
sc/st/obc होश में आओ




बड़ौदा नरेश सयाजी राव गायकवाड़ से करार के अनुसार सन 1917 के सितंबर महीने के दूसरे सप्ताह में बाबासाहब अम्बेडकर अपने अग्रज बंधु के साथ बड़ौदा गए, हालाकि सयाजी राव ने डा.अम्बेडकर को स्थानक से लाने की व्यवस्था का आदेश पहले ही जारी कर दिया था, परंतु एक अस्पृश्य को लाने के लिए कोई तैयार नही हुआ, फलस्वरूप बाबासाहब स्वतः ही अपनी व्यवस्था कर पहुंच गए बड़ौदा में बाबासाहब को रहनें और खाने की व्यवस्था स्वतः ही करनी थी, परंतु यह
बात बड़ौदा में जंगल की आग की तरह पहले ही फैल गयी
थी कि मुम्बई से एक महार युवक बड़ौदा के सचिवालय में नौकरी करने आ रहा है, फलस्वरूप किसी भी हिन्दू
रेस्टोरेंट या धर्मशाला में विद्वान डा.अम्बेडकर को रहने का सहारा नहीं मिला,आखिर उन्होंने अपना नाम बदलकर बताया तब उन्हें एक पारसी धर्मशाला में जगह मिली बड़ौदा नरेश गायकवाड़ को डा.अम्बेडकर को वित्तमंत्री बनाने की प्रबल इच्छा थी पर अनुभव न होने की वजह से बाबासाहब नें सेना के सचिव पद को ही स्वीकार किया.सचिवालय में डा.अम्बेडकर को अस्पृश्य होने के कारण बहुत बेइज्जती का सामना करना
पड़ा उन्हें पीने के लिए पानी तक नहीं मिलता था चपरासियों द्वारा भी फाइलें दूर से ही फेंकी जाती थी, उनके आने और जाने के पहले फर्श पर पड़ी चटाइयां हटा दी जाती थीं, इस
अमानुषीय अत्याचारों के बाद भी वे अपनी अधूरी पड़ी शिक्षा
पूरी करने में हमेसा अग्रसर रहते थे पर उन्हें पढ़ाई के लिए ग्रंथालय में तभी जाने की अनुमति मिलती थी जब वहां
खाली समय में दूसरा और कोई नही होता था, यह किसी महान विद्वान के साथ अमानवीय अपमान की एक पराकाष्ठा ही थी,
जिसका मूल कारण था भारत में व्याप्त मनुवादी वर्ण व्यवस्था के जातिवादी आतंक के काले कानून का कहर. एक दिन मनुवादी वर्ण व्यवस्था के आतंक नें सारी हद ही तोड़ दी बाबासाहब जिस पारसी धर्मशाला में रहते थे वहां एक दिन
पारसियों का क्रोध से आग बबूलाबड़ा झुंड हाथ में लाठियां
लेकर आ पहुंचा,झुंड के एक व्यक्ति ने बाबासाहब से पूंछा तुम कौन हो बाबासाहब नें तुरंत जवाब दिया मैं एक हिन्दू हूँ,
जवाब सुनकर उस व्यक्ति ने आगबबूला होकर कहा तुम कौन हो यह मैं अच्छी तरह जानता हूँ, तुमने हमारे अतिथि गृह को पूरा भ्रष्ट कर दिया तुम यहाँ से अभी तुरंत निकल जाओ,
बाबासाहब नें अपनी सारी शक्ति इकट्ठा करके उनसे
अनुरोध पूर्वक कहा अभी रात है मुझे आप केवल आठ घंटे की
और मोहलत दीजिये सुबह मैं आपका यह आवास स्वयं ही
खाली कर दूंगा, उस भीड़ ने तनिक भी देर नहीं लगाई और बाबासाहब का सारा सामान कमरे से बाहर सड़क पर फेंक दिया, तब बाबासाहब नें बहुत प्रयास किया पर
रातभर के लिए भी उन्हें वहां कोई हिन्दू या मुसलमान आश्रय देने के लिए तैयार नहीं हुआ.आखिर भूंखे प्यासे बाबासाहब रात में ही शहर से बाहर निकलने पर मजबूर हुए, और उन्होंने एक बाग में पेंड़ के नीचे रोते हुए सारी रात बिताई, ऊपर खुला आसमान और नीचे खुली जमीन आज दुनियाँ के सबसे बड़े
विद्वान का यही एक एकलौता सहारा था,बाबासाहब ने वही पेड़ के नीचे रोते हुए संकल्प लिया कि “मैं अपने दबे कुचले अस्पृश्य समूचे समाज को इस घिनौने दलदल से निकालने के
लिए अपनी पूरी जिंदगी लगा दूंगा”, आज बड़ौदा की वही
जमीन बाबासाहब के“संकल्प भूमि ” के नाम से जानी जाती
है जहां पर समूचे देश के अम्बेडकरवादी इकट्ठा होकर उनके संकल्प को दोहराने का सतत प्रयास जारी रखते हैं.सुबह होने पर बाबासाहब पुनः बम्बई वापस आ गए.आज भारत के समूचे बहुजन समाज ने बाबासाहब के उसी पेंड़ के नीचे किये गए संकल्प का पूरा फायदा उठाया पढ़े लिखे ऊंचे ऊंचे ओहदे पर
पहुंचे और अपनें लिए ऊंची ऊंची बड़ी बड़ी बिल्डिंगें बनायीं
पर बाबासाहब के लिए कही कोई रंचमात्र भी जगह शेष
नही छोड़ी इससे बड़ा दुःखद अन्याय भला किसी विद्वान
महापुरुष के लिए और क्या हो सकता है.

                  (एस चंद्रा बौद्ध).

2 comments:

  1. अंधश्रद्धा से परिपूर्ण मानसिक व धार्मिक गुलाम

    https://realhstry.blogspot.in/2017/08/blog-post_18.html?

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  2. राजस्थान में राजा रजवाड़ों के जमाने से तालाबों, किलों, मंदिरों व यज्ञों में ज्योतिषियों की सलाहपर शूद्रों को जीवित गाड़कर या जलाकर बलि देने की परम्परा थी। अमर शहीद राजा राम मेघवाल भी उनमें से एक है। जोधपुर के राजा राव जोधा के शासन काल में जोधपुर की पहाड़ियों पर विशाल मेहरानगढ़ किले का निर्माण हुआ था। इसी गगनचुम्बी भव्य किले की नींव में ज्योतिषी गणपतदत्त की सलाह पर 15 मई 1459 को दलित राजाराम मेघवाल उसकी माता केसर व पिता मोहणसी को नींव में चुना गया। राजपूत राजाओं में यह अंधविश्वास चला आ रहा था कि यदि किसी किले की नींव में कोई जीवित पुरूष की बलि दी जाय तो वह किला हमेशा राजा के अधिकार में रहेगा, हमेशा विजयी होगा और राजा का खजाना हमेशा भरा रहेगा। उस काल में सामाजिक व धार्मिक व्यवस्था के अनुसार अछूत की छाया तक से घृणा की जाती थी लेकिन जब नर बलि की बात आती थी तो हमेशा अछूतों को पकड़ कर जिंदा गाड़ा जाता था। शूरवीर कहलाने वाले न क्षत्रिय आगे आते थे, न विद्वान कहलाने वाले पंडित और न ही राजा का गुणगान करने वाले चाटुकार अपनी नरबलि के लिए तैयार होते थे।
    राजाराम के इस महान बलिदान को जातिवादी मानसिकता के इतिहासकारों ने सिर्फ डेढ़ लाइन में समेट लिया। जहां राजाराम की बलि दी गई थी उस स्थान के ऊपर विशाल किले का खजाना व नक्कारखाने वाला भाग स्थित है। किले में रोजाना हजारों देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं लेकिन उन्हें उस लोमहर्षक घटना के बारे में कुछ भी नहीं बताया जाता है। एक दीवार पर एक छोटा-सा पत्थर जरूर चिपकाया गया है जो किसी पर्यटक को नजर ही नहीं आता है उस पत्थर पर धुंधले अक्षरों में राजाराम की शहादत की तारीख खुदी हुई है। राजाराम मेघवंशी की शहादत जैसी घटनाओं की अनगिनत कहानियां राजस्थान के हर कोने में बिखरी पड़ी हैं। महाराणा प्रताप की सेना में लड़ने वाले दलित आदिवासियों का महान योगदान रहा है। विदेशी आक्रमणकारियों की गुलामी से देश को आजाद कराने में न जाने कितने दलितों आदिवासियों ने कुर्बानी दी लेकिन इतिहास में उनका कहीं भी नामोनिशान नहीं है। दलित चिंतकों, संतों, क्रांतिकारियों व बलिदानियों को इतिहास में पूरी तरह से हाशिए पर रखा। अब दलितों द्वारा अपना गौरवषाली इतिहास लिखा जा रहा है। इसी कड़ी में ''अमर शहीद राजाराम मेघवाल'' नामक पुस्तक उस लोमहर्षक घटना की सच्चाई को सामने लाने वाली है जिसमें राव भाटों की बहियों, शिलालेखों व कई ऐतिहासिक दस्तावेजों को शामिल किया गया है। डा. एल.एल. परिहार द्वारा लिखित पुस्तक जहां एक ओर दलितों में वैचारिक जागृति पैदा करती है वहीं दूसरी ओर राजा, शासक, अमीर या आम व्यक्ति को यह सीख देती है कि धार्मिक कुप्रथाओं, अंधविश्विसों व अमानवीय परम्पराओं के आगे नतमस्तक न हों व अपने विवेक, तर्क व बुद्धि का प्रयोग कर वैज्ञानिक सोच के साथ मानव कल्याण की राह चलें। महा मानव बुद्ध की राह चलें। करुणा, दया, प्रेम, मैत्री व शील का पालन करें। अंधविश्वासों, पाखण्डों, कर्मकांडों व कुप्रथाओं से समाज व देश का भारी नुकसान हुआ है। जिसका सबसे अधिक खामियाजा दलित वंचित वर्ग को भुगतना पड़ा है। इतिहास की यह लघु पुस्तक आवश्यक चित्रों के कारण काफी पठनीय व रोचक बन गई है। मूल्य मात्र 100 रूपये रखा ताकि आम आदमी खरीदकर पढ़ सके।
    प्रकाशक- बुद्धम पबिलशर्स, 21-।, धर्मपार्क श्यामनगर, जयपुर 302019
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