Wednesday, 2 August 2017

नाग पंचमी क्यों और कैसे मनाये ‼

नाग पंचमी क्यों और कैसे मनाये ‼

आज जब आँख खुली तो गाने की आवाज सुनाई दी | मुझे लगा किसीने हिंदी फ़िल्मो के गाने लगाये होंगे | पर जब ठीक से सुना तो भोले शंभु महादेव के गाने चालू थे | फ़िर मुझे बहुत हँसी आयी | नागपंचमी को लोग शिवशंकर से जोड रहे है ईसलिये | तो सोचा क्यों ना दो शब्द मैं भी बोल दू |

नागपंचमी ये त्योहार दरअसल उन पाँच महान पराक्रमी नागवंशी राजाओं की याद मे मनाया जाता था जिन्होने बुद्ध संदेश को पूरे भारत भर मे पहुंचाया | उनके नाम थे अनंत, वासूकी, तक्षक, करकोटक और पांचवा ऐरावत |

इन महान पराक्रमी राजाओं की याद मे ये उत्सव मनाया जाने लगा | जिसका देश के अन्य प्रांतो ने भी अनुकरन किया |

पर बाद मे बुद्ध धम्म को खतम करने के लिये वैदिक लोगों ने बौद्धो के हर एक उत्सव को हिंदू रूप देकर सामने लाया | बौद्ध विचारधारा खतम करने के लिये इन्होने इन महान नाग राजाओं की बजाय नाग (साप) की पूजा करवाना चालू किया | हमेशा की तरहा नयी नयी कहानिया रची | जैसे की साप ईस दिन को दूध पीने आते है | इन दिनो मे सापो की पूजा करने से शिवजी (महादेव) प्रसन्न होते है | ऐसे कई बेतुके तर्क जोडे गये |

हिंदू लोग ईस दिन को बहुत मानते है | ईस दिन दूध का मिलना मुश्कील हो जाता है | कई लोग शिवलिंग पे इसे बहा देते है | ईस दिन के रिवाज भी अजब गजब है |

ईस दिन को तवे का इस्तेमाल करना मना है | याने आप रोटीया नही बना सकते | इसका कारण मैने बहुतो को पुछा पर किसी को नही पता | बस हमारे माँ, दादी कहते थे इसलिये हम भी करते है ऐसा जवाब आया |
कुछ ने कहा साप कुंडली मार के बैठता है याने गोल आकार मे और रोटीया भी गोल होती है ईसलिये तवे का इस्तेमाल नही करना चाहिये | अगर किया तो साप घर मे आता है |
है ना कमाल का लौजिक |
ईस दिन रोटीया नही बना सकते पर पुरीया सभी बनाते है | शायद पुरीया गोल नही होती, चौकोनी या आयताकार होती होगी | मैं ठहरा भोला भक्त अब इतना बडा लौजिक नही समझ सकता |

चलिये एक और बताता हू | ईस दिन को कोई भी लंबी चिज नही बनानी चाहिये | क्यों की साप लंबा होता है | 😁😁😁😁 भाइ ये क्या पागलपन है | नूड़ल्स, मैगी, शेवयी और न जाने क्या क्या |

ईस दिन को पूजा के पहले बाल बनाना मना है | याने पहले नहाओ, फ़िर पूजा करो फ़िर आराम से बाल बनाओ | तब तक ऐसे ही रहो फ़िर चाहे कार्टून हि ना क्यों दिखो । कारण फ़िर से वही साप लंबा होता है और बाल भी ।

चलो छोडो यार हमने ही ऐसी हसने जैसी बातों को धर्म से जोड रखा है और कोई बोले तो ये कहते है हमारी भावना दुखाते हो, ये श्रद्धा का विशय है । अरे इसमे कहा है श्रद्धा । ये तो पागलपंती है । आपकी श्रद्धा ही गलत जगह है फ़िर तो लोग मजाक ही उडायेंगे ना । एक तो ऐसे बेवकुफि भरी बाते करते हो और उपर से कहते हो हमारी श्रद्धा का मजाक ना उडाओ । तुम्हारी तो श्रद्धा ही एक मजाक है भाई | अपना मजाक तुमने खुद करके रखा है ।

चलो मुझे हिंदू लोगों से तो कुछ नही कहना आपका धर्म बहुत ज्यादा ही वैज्ञानीक है । पर बौद्धो से कहना चाहूँगा आप ईस चक्कर मे ना पडे । नागपंचमी आपका उत्सव है इसे जरुर मनाये पर सापो की नही उन महान नागराजाओं की याद मे ये उत्सव मनाये  और ईस दिन ये नही चलता वो नही चलता, ये नही करना चाहिये वो नही करना चाहिये ऐसे बेकार की बातों को अपने पास भटकने भी ना दे ।


नागपंचमी का बौद्धिक सच....

नागपंचमी ये त्योहार दरअसल उन पाँच महान पराक्रमी नागवंशी राजाओं की याद मे मनाया जाता था जिन्होने बुद्ध संदेश को पूरे भारत मे पहुंचाया। उनके नाम थे अनंत, वासूकी, तक्षक, करकोटक और पांचवा ऐरावत |

इन महान पराक्रमी राजाओं की याद मे ये उत्सव मनाया जाने लगा। जिसका देश के अन्य प्रांतो ने भी अनुकरण किया।

बाद मे बुद्ध धम्म को खतम करने के लिये वैदिक लोगों ने बौद्धो के हर एक उत्सव को हिंदू रूप देकर सामने लाया। बौद्ध विचारधारा खत्म करने के लिये इन्होने इन महान नाग राजाओं की बजाय नाग (साप) की पूजा करवाना चालू किया। हमेशा की तरह नयी नयी कहानिया रची। जैसे कि साँप इस दिन दूध पीने आते है। इन दिनो मे सांपों की पूजा करने से शिवजी (महादेव) प्रसन्न होते है। ऐसे कई बेतुके तर्क जोडे गये।

हिंदू लोग इस दिन को बहुत मानते है। इस दिन दूध का मिलना मुश्किल हो जाता है। कई लोग शिवलिंग पर इसे बहा देते है। इस दिन के रिवाज भी अजब गजब है।

इस दिन को तवे का इस्तेमाल करना मना है। अर्थात आप रोटियां नही बना सकते। इसका कारण मैने बहुतो को पुछा पर किसी को नही पता। बस हमारे माँ, दादी कहते थे इसलिये हम भी करते है ऐसा जवाब आया। कुछ ने कहा साप कुंडली मार के बैठता है याने गोलाकार मे और रोटियां भी गोल होती है इसलिये तवे का इस्तेमाल नही करना चाहिये। अगर किया तो साप घर मे आता है।
है ना कमाल का लौजिक।
इस दिन रोटियां नही बना सकते पर पूड़िया सभी बनाते है। शायद पूड़ियाँ गोल नही होती, चौकोनी या आयताकार होती होगी। मैं ठहरा भोला भक्त अब इतना बडा लौजिक नही समझ सकता।

चलिये एक बात और बताता हूँ। इस दिन को कोई भी लंबी चीज़ नही बनानी चाहिये। क्यों की साप लंबा होता है। भाई ये क्या पागलपन है। नूड़ल्स, मैगी, शेवयी और न जाने क्या क्या।

इस दिन को पूजा के पहले बाल बनाना मना है | याने पहले नहाओ, फ़िर पूजा करो फ़िर आराम से बाल बनाओ | तब तक ऐसे ही रहो फ़िर चाहे कार्टून हि ना क्यों दिखो | कारण फ़िर से वही साप लंबा होता है और बाल भी |

चलो छोडो यार हमने ऐसे ही हंसने जैसी बातों को धर्म से जोड रखा है और कोई बोले तो ये कहते है कि हमारी भावना दुखाते हो, ये श्रद्धा का विषय है। अरे इसमे कहा है श्रद्धा। ये तो पागलपंती है। आपकी श्रद्धा ही गलत जगह है फ़िर तो लोग मजाक ही उडायेंगे ना। एक तो ऐसे बेवकूफी भरी बाते करते हो और उपर से कहते हो हमारी श्रद्धा का मजाक ना उडाओ। तुम्हारी तो श्रद्धा ही एक मजाक है भाई। अपना मजाक तुमने खुद करके रखा है।

चलो मुझे हिंदू लोगों से तो कुछ नही कहना है आपका धर्म बहुत ज्यादा ही वैज्ञानिक है।
पर बौद्धो से कहना चाहूँगा आप इस चक्कर मे ना पडे। नागपंचमी आपका उत्सव है इसे जरुर मनाये पर सापो की नही उन महान नागराजाओं की याद मे ये उत्सव मनाये। और इस दिन ये नही चलता वो नही चलता, ये नही करना चाहिये वो नही करना चाहिये ऐसे बेकार की बातों को अपने पास भटकने भी ना दे।

             जय भीम नमो बुद्धाय


*हिन्दू धर्म और अंधविश्वास*

*नाग- पंचमी एक अवैदिक परम्परा*
*अंधविस्वास व अधर्म है*

भारत मे नाग पंचमी के दिनों सांपो को दूध पिलाने की परंपरा चालू हो गयी है जो कि वैदिक सिद्धान्तों औऱ वैज्ञानिक आधार के प्रतिकूल है।
*सांप एक वन्य जीव है और उसका भोजन चूहे छिपकिली आदि जीव है , दूध नही।*

विज्ञान के अनुसार भी सांप दूध नही पीता है , न ही उसे अच्छा लगता है। किंतु कुछ लोगो ने अपना पेट भरने के बहाने उसे दूध पिलाने का गलत रिवाज़ चालू कर दिया है। शरीर विज्ञान कहता है कि सांप को दूध पीना नही आता , और उसको जबर्दस्ती दूध पिलाने से उसकी श्वास नली बाधित हो जाती है और उससे उसकी मौत भी हो जाती है , दूध पीने से उसको अनेक रोग भी हो जाते हैं। फिर भी बलात उसे दूध पिला कर सपेरे अपना व्यवसाय करते हैं ।

*अपने व्यापार के लिए उनको जंगलों से ढूंढ ढूंढ कर पकड़ते है उसको भूखा प्यासा रखते है उसके विष के दांत निकाल देते हैं और फिर उसे सड़को के किनारे दूध पिलाने का नाटक करके नादान लोगो से , अंध भक्तों से पैसे ऐंठते है।*


जो वस्तु जिसको प्रिय न हो उसको वह वस्तु खिला कर क्या कोई पुण्य का काम हो सकता है ? उल्टा वो जीव नाराज़ ही होगा।अतः हमें इन समस्त बातों को गौर करना चाहिए और नाग पंचमी के दिन उन्हें दूध पिला कर भक्ति आदि का विचार नहीं लाना चाहिए। उल्टा उसे दुध पिला कर हम पाप का काम करते है एक तो उनको अपने प्राकृतिक स्थान से ( जंगलों , बिलों से) निकालते है फिर उनको यातनाएं देते है फिर उनके भोजन के लिए एकमात्र दांतो को निकलवा कर उसको असहाय बना देते हैं और फिर उसको बिना रुचि वाला भोजन देकर अस्वस्थ कर देते है ,  ये सब पाप नही तो क्या है? इससे अच्छा है हम वन्य जीवों का संरक्षण करे और दूध किसी गरीब बेबस लाचार बच्चों को पिलाये तो हमे पुण्य मिलेगा और समाज का उत्थान भी होगा।


 पूजा का अर्थ 'किसी भी वस्तु का सही सही ज्ञान और उसका यथायोग्य उपयोग'  होता है , यहां हम प्रकृति व विज्ञान के विरुद्ध आचरण करते है और उसको पूजा मानते हैं जो कि सरासर गलत है। अतः हमें ऐसे ढोंग , अंधविश्वास व पाखण्डों से बचना चाहिए और समाज को बचाना चाहिए।


नाग पंचमी...? शेष नाग...? पूज्यनीय बानर ...? बैल देवता... ? अश्व देवता... ? आदि-आदि। क्या आपने इन सब पर अपने अनुभव के आधार पर कभी विचार किया है? आइये मैं इस सम्बन्ध में अपने अध्ययन और अनुभव को आपसे शेयर करता हूँ।      सबसे पहली बात यह है कि सभ्यताओं के विकास के दौरान अलग-2 भौगोलिक क्षेत्रों में वहां के जलवायुवीय परिस्थितियों के अनुकूल अलग-2 जीव/जानवर पाये गए हैं और उस समय के तत्कालीन लोगों ने अपने जीवन रक्षण और सुरक्षा के अनुकूल उस समय के सर्वोत्तम जानवर को अपना प्रतीकात्मक आदर्श माना। जैसे ब्रिटेन के मूलनिवासियों ने 'शेर' को अपना प्रतीकात्मक आदर्श माना और अपनी सुरक्षा सेना को नाम दिया 'ब्रिटिश लॉयन्स, रूस के लोगों ने 'भालू' को अपना प्रतीकात्मक आदर्श माना और अपनी सुरक्षा सेना को नाम दिया 'रशियन बियर्स, चाइना के लोगों ने 'ड्रैगन'  को अपना प्रतीकात्मक आदर्श माना और अपनी सुरक्षा सेना को नाम दिया 'चाइनीस ड्रैगन' इसी प्रकार ऑस्ट्रेलिया ने अपना प्रतीकात्मक आदर्श कंगारू को माना। इस सम्बन्ध में और गहरा अध्ययन करने पर आपको इसी प्रकार के और भी उदहारण मिलेंगे। ठीक इसी प्रकार अखण्ड भारत में जिसकी सीमाएं बौद्ध शासनकाल में अफगानिस्तान से लेकर श्रीलंका तक थीं, उसमें अलग-2 भूभाग में रहने वाले लोगों ने अलग-2 जीवों/जानवरों को अपना प्रतीकात्मक आदर्श माना और अपनी सुरक्षा सेनाओं को उस जानवर का प्रतीकात्मक नाम दिया।


अखण्ड भारत के कुछ भौगोलिक एरिया के लोगों ने शेर को, कुछ ने बैल को, कुछ ने बन्दर को, कुछ ने घोड़े को, कुछ समुद्रतटीय लोगों ने कछुए को अपना प्रतीकात्मक आदर्श माना।ठीक इसी प्रकार भारत के जंगल-स्थलीय लोगों ने जो कि अखण्ड भारत में चारो दिशाओं में व्याप्त थे, के लोगों ने 'नाग' सर्प की कुछ विशिष्टाओं को देखते हुए उसे अपना प्रतीकात्मक आर्दश माना और अपनी सुरक्षा सेना को प्रतीकात्मक नाम दिया 'नाग सेना' तथा अपनी सैनिक ध्वजा पर नाग सर्प का चिन्ह अंकित किया। ठीक इसी प्रकार जिन लोगों ने बंदर को अपना प्रतीकात्मक आदर्श माना उन लोगों ने अपनी सुरक्षा सेना को नाम दिया 'बानर सेना' तथा अपने सैनिक ध्वजा पर बन्दर का चिन्ह अंकित किया। विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि इन जानवरों को सिर्फ प्रतीकात्मक रूप में ही लिया गया। किन्तु अत्यंत खेद की बात है कि एक खास साज़िश के तहत विदेशी मूल के भारतीय इतिहासकारों ने सम्पूर्ण भारतीय इतिहास को अनेकों प्रकार से विकृत कर अत्यंत चालाकी और धोखे से उस समय के लीडरों को उनके द्वारा अपनाये गए प्रतीकात्मक जानवरों के रूप में ही प्रदर्शित किया जैसे कि बानर सेना के लीडर को बन्दर बना दिया। नाग सेना के लीडर को नाग सर्प के रूप में प्रस्तुत किया। और इसी प्रकार अन्य लीडरों को भी उनके प्रतीकात्मक आदर्श के जानवर के रूप में प्रस्तुत किया। ## अब यहाँ आपको यह समझना है कि जैसा की विदेशी मूल के भारतीय इतिहासकारों ने लिखा है कि, "भारत भूमि सात फ़न वाले शेषनाग के फन पर टिकी है और 'उनका' भगवान इस सात फ़न वाले शेषनाग के फ़न पर एक पैर से नृत्य करता है तथा समय-2 पर फ़न बदलता रहता है"।


यह एक बहुत ही रहस्यात्मक, कूटनीतिक तथा कूटरचित प्रतीक एवं कथन है जिसे डी-कोड करने की अत्यंत तात्कालिक आवश्यकता है। पहली बात कि भारत में शेषनाग कौन है? अरे भई सीधी सी बात है कि सभ्यताओं के संघर्ष में जो नागवंशी मूलनिवासी शहीद हो गए वो शहीद हो गए और जो बच गए अर्थात जो शेष हैं वे ही शेषनाग हैं। इस दृष्टि से भारत के सभी मूलनिवासी (पिछड़े, दलित एवं सभी धर्मान्तरित अल्पसंख्यक) तथा उनके लीडर शेषनाग हैं। दूसरी बात भारत भूमि शेषनाग के फ़न पर नहीं, शेषनाग के श्रम/परिश्रम पर टिकी है। तीसरी बात कि शेषनाग के इस सात फ़न का क्या मतलब है? इस शेषनाग के सात फ़न कौन-२ हैं? वे हैं - (१) पिछड़े  (२) अति पिछड़े  (३) अनु.जाति  (४) अनु. जनजाति  (५) गैर अनु. आदिवासी  (६) प्रतिबंधित तथाकथित नक्सलवादी एवं  (७) धर्मान्तरित अल्पसंख्यक। चौथी बात यह कि विदेशी मूल के भारतीय इतिहासकारों का जो 'भगवान' है और जो इस सात फ़न वाले शेषनागों के फ़न पर एक पैर के बल नृत्य करता है तथा समय-समय पर अपना पैर तथा शेषनाग का फ़न बदलता रहता है,  इस प्रतीकात्मक कथन का कूटरचित अर्थ है - उन विदेशी मूल के भारत वासियों का भगवान तथा उनकी औलादें साम-दाम-दण्ड-भेद का इस्तेमाल कर उपरोक्त वर्णित सात फनों को आपस में तथा एक-दूसरे से लड़ाकर, इनमें फ़ूट डालकर इन्हीं के श्रम/परिश्रम के बल पर इनपर शासन करते हैं तथा कोई एक फ़न बहुत मज़बूत स्थिति में न पहुँच जाये, इसलिए समय-समय पर फ़न बदलते रहते हैं। अबतक इतना ही मेरी जानकारी और अनुभव में आया है। इस सम्बन्ध में आपके पास कुछ और विशेष हो तो अवश्य शेयर करें।

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