Thursday 3 August 2017

आरक्षण का पूरा इतिहास

आरक्षण का पूरा इतिहास 

आज ही के दिन 26 जुलाई 1902 को आरक्षण की व्यवस्था सुरु हुई ।

हमारे एससी / एसटी / ओबीसी / आपराधिक लोग दौड़ पठनीय likhevisesatah के बहुमत के स्वदेशी आबादी अधिक पठनीय प्रकार लोगों की है कि araksanaka एक बैसाखी का मतलब लग रहा है, भीख माँग रहा है, असहाय। लेकिन हमारे स्वदेशी आबादी है कि आरक्षण का प्रतिनिधित्व करता है mahapurusom nebahuta बड़ा संघर्ष किया था। यह इतनी आसानी से नहीं था, लेकिन इसके फूल-शाहू-पेरियार-अम्बेडकर के लिए 108 साल से लड़ने के लिए 1848 से 1956 तक था। आरक्षण के लिए, हम दुकान में प्राप्त करने के लिए स्वतंत्र लग रहा है नहीं है। वायु और सूर्य के प्रकाश muphtamem कारण है कि वे मूल्यवान महसूस नहीं करते हैं है।

 हमारे महापुरुषों का इतिहास आरक्षण समर्थकों काइतिहास रहा है । यूरेशियन ब्राह्मणो का इतिहास हमारे लिए आरक्षण के विरोधकों का इतिहास है । इसका अर्थ है कि आरक्षण का इतिहास , आरक्षण के नायकों व खलनायकों का इतिहास है । इसीलिए अपने शत्रु व मित्रोंके बारे में जान लिया जाना चाहिए,उन्हें पहचान लिया जाना चाहिए ।

(1) "ideaof आरक्षण" अर्थात "आरक्षणका विचार" आरक्षण की "आइडिया" अर्थात "आरक्षण का विचार" राष्ट्रपिता जोतीराव फुले का है। यह विचार उन्होने प्रथमतः 1869 व बाद में 1882 को अंग्रेज़ सरकार के सामने रखा।

(2) “ImplementationOf Reservation”अर्थात"आरक्षण पर अमल"“ImplementationOf Reservation” अर्थात"आरक्षण पर अमल" आधुनिक भारत में सबसे पहले राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज ने अपने करवीर अर्थात कोल्हापुर राज्य में 26 जुलाई 1902 से किया ।

(3) PolicyOf आरक्षण, "आरक्षण की नीति" "आरक्षण की नीति" का अर्थ है "आरक्षण नीति" एकीकृत Vishwaratna 0 डॉ बाबासाहेब आंबेडकर 26 जनवरी, 1950 से स्थापित भारत के संविधान के माध्यम से।

काम के आरक्षण के राष्ट्र jotirava फूल 26 जुलाई, 1902 brahmanettara विचार छत्रपति शाहू महाराज सभी लोगों के लिए अपने प्रमुख शिष्यों राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज kiyarajarsi की घोषणा की 50% आरक्षण है लागू करने के लिए, कोल्हापुर apanikaravira राज्य की रियासत में। 664 हालांकि, उस राज्य के स्वदेशी आबादी के साथ न्याय करता है राज्य 03 था

(1) Karveer पाठ्यक्रम कोल्हापुर
(2) बड़ौदा
(3) इंदौर।
 टू एंड ए मराठा कुनबी काफी।

 राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज ने जो 50 % आरक्षण घोषित किया था उसमें सिर्फ चार जातियों को इससे अलग रखा ।

 (1) ब्राह्मण
 (2) senavi
 (3) प्रभु
 (4)पारसी ।
इन 04 अगड़ी जाति छोडकर शेष सभी जातियों अर्थात ब्राह्मणेत्तरोंअर्थात मूलनिवासी बहुजन समाज के लिए आरक्षण अर्थात प्रतिनिधित्व घोषित किया ।

इसे “Implementationof Reservation” कहा जाता है

 अर्थात “आरक्षण पर अमल” । राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज ने आरक्षण क्यों दिया ? महाराज ने पहले निरीक्षण किया ।

इस निरीक्षण में उनकी नजर में आया कि सरकारी दरबारियों में उच्च पदों पर 71 में 60यूरेशियन ब्राह्मण थे व सिर्फ 11ब्राह्मणेत्तरथे। उसी तरह निजी सेवा में 52 में 45 यूरेशियन ब्राह्मण व 07 ब्राह्मणेत्तर थे । प्रशासन से असंतुलन दूरकरने के लिए उन्होने सभी ब्राह्मणेत्तर लोगों के लिए 50 % आरक्षण की घोषणा की । पहले से सभी महत्वपूर्ण पदों पर काबिज माधव ,बर्वे इत्यादि नामक चितपावन ब्राह्मणों ने नौकरियों को स्वयं की जाति के लोगों में बाँट दिया था । राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज के इस बहुजन उद्धारक क्रांतिकारी निर्णय का सभी ब्राह्मणों ने कडा विरोध किया उनमें से निम्न उल्लेखनीय हैं :-

(1) न्यायमूर्ति महादेव गोविंद रानाडे ।न्यायमूर्ति ही सामाजिक न्याय का विरोध कर रहेथे
(2) आरए vyankaji सबनीस
(3) गोपाल कृष्ण गोखले
(4) एस एम परांजपे
(5)नरहरी चिंतामन केलकर
(6)दादासाहेब खापर्डे तथा
(7) एड 0 गैनपेट्राओ अभयंकर (सांगली)
(8) बाल गंगाधर तिलक आरक्षण का विरोध करने वाले सभी ब्राह्मण थे ।

आज भी उनकी मानसिकता में कोई अंतर नहीं आया है । राजर्षि शाहू छत्रपति महाराज स्वयं राजा थे ,राज्यके मालिक थे व अपने स्वयं के राज्य में अपनी बहुसंख्य प्रजा को आरक्षण दे रहे थे। उपरोक्त किसी भी ब्राह्मण की जेब से अथवा किसी ब्राह्मण राज्य से नहीं दे रहे थे फिर भी उपरोक्त ब्राह्मणो ने ब्राह्मणेत्तरोंके आरक्षण का विरोध किया । उनमे से एक ब्राह्मण नेतो हद पार कर दी । उसका नामएड0 गणपतराव अभ्यंकर था ।वह सांगली की पटवर्धन (ब्राह्मण) रियासत में नौकरी करता था ।

 यह पटवर्धन कौन ? भाग्यश्री का दादा । भाग्यश्री कौन ? “मैंनेप्यार किया “ हिन्दी सिनेमा में सलमान खान की नायिका। राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज ने जैसे ही 50 % आरक्षण को लागू करने का कानून बनाया तभी सांगली की पटवर्धन रियासत में मुनीम एड॰ गणपतराव अभ्यंकर कोल्हापुर आया व राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज से मिला । उसने
(1)जाति आधारित छात्रवृति व (2)जाति आधारित नौकरी देने के निर्णय का विरोध किया। उसके अनुसार योग्यता देखकर ही छात्रवृति व नौकरी देना चाहिए । हालांकि राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज ने सभी ब्राह्मणेत्तरोंके लिए जो 50%आरक्षण घोषित किया वह अपने स्वयं के करवीर अथवा कोल्हापुर राज्य में ही किया था लेकिनसांगली के पटवर्धन रियासत के एड0 गणपत राव अभ्यंकर को इससे भयानक कष्ट हो रहा था । क्यों कष्ट हो रहा था ?क्योंकि इससे कोल्हापुर रियासत में यूरेशियन ब्राह्मणो की नौकरीयों में कमी होने वाली थी ,उनका नुकसान होने वाला था । ब्राह्मणों का नुकसान नहीं होना चाहिए इसीलिए सांगली रियासत का एक ब्राह्मण कोल्हापुर आता है व छ्त्रपति शाहू महाराज को आरक्षण न देने की सलाह देता है । इसे जातीय हित व जातीय चेतना या जातीय एक जुटता कहा जा सकता है । आज भी सभी राजनैतिक पार्टियों के ब्राह्मणो में ऐसी ही एकता है ।वे सभी पार्टियों में रहकर भी एक होते हैं और हम एक पार्टी में रहकर भी बिखरे हुये होतेहैं । इसी कारण उनमें एकता होती हैं और हममें अनेकता । आरक्षण के मुद्दे का आजभी यूरेशियन ब्राह्मण कड़ा प्रतिरोध करतेहैं ।चाहे वह कांग्रेस ,भाजपा ,कम्युनिस्टअथवाशिवसेना का ब्राह्मण हो याफिर अन्य किसी भी पार्टी का क्यों न हो । सभी ब्राह्मण आरक्षण का विरोध करते हैं । क्या आरक्षण बैसाखी है ? क्या आरक्षण भीख है ? क्या आरक्षण लाचारी है ? मानलो यदि ऐसा होता तो क्या यूरेशियन ब्राह्मणो ने विरोध किया होता ?इस मुद्दे पर पढे-लिखे लोगों लोगों को गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए विशेषतः जिन्होने आरक्षण से लाभ उठाया है तथा आज संपन्नता की स्थिति को प्राप्त हुयेहैं। तो एड0 गणपतराव अभ्यंकर ने सांगली से कोल्हापुर (54 किमी)आकर आरक्षण का विरोधकिया ।

लेकिन राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज जमीनी सुधारक थे कोई हवाई नहीं । इसके अलावा वे फ़ोंरेन रिटर्न भी थे । एड0 गणपतराव अभ्यंकर के ब्राह्मणी कपट को उन्होने ताड़लिया । राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज उन्हें अस्तबल में ले गए । अस्तबल में बहुत सारे घोड़े थे । राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज व एड0 गणपत राव अभ्यंकर ने देखा कि सभी घोड़े मजेसे अपनेमुंहबंधे थैले में रखेचने खा रहे थे । तब राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज ने घोड़ों के रख वालों को घोड़ों के मुंहबंधे थैलेको खोलकर उसमें रखे चनों को नीचे एकदरी में डालने का आदेश दिया । एड॰ गणपतराव अभ्यंकर यह गतिविधि अनमनेभाव से देख रहे थे। जैसे ही रखवालों ने घोड़ों को खुला छोड़ा तो जो घोड़े मोटे-ताजे, निरोगी व ताकतवर थे वे दरी में रखे चनों पर टूट पड़े और दूसरी तरफ जो घोड़े दुबले-पतले ,बीमार व कमजोर थे वेदूर खड़े होकर यह सब देख रहे थे । क्या देख रहे थे ? कि वे हट्टे–कट्टे ,तगड़े ,बलवान ,निरोगी , मुस्टंडे घोड़े खाते समय भी ठीक तरह से नहीं खा रहे थे । फिर कैसे खा रहेथे ?वे मुंह से चने खाते थे व दुलत्ती भी देते जाते थेताकि दूसरे घोड़े आने न पाएँ । इसीलिए कमजोर घोड़ों ने विचार किया ।
क्या विचार किया ? विचारकिया कि चने खाने के लिए उन तगड़े घोड़ों के बीच न घुसा जाए । बेचारे अशक्त घोड़ों ने ऐसा विचार क्यों किया ? क्योंकि इन मुस्टंडों की भीड़ में यदि वे घुसते हैं तो चना तो मिलने से रहा लेकिन दुलत्ती अलग से जरूर पड़ेगी । इसीलिए उन्होने सोचा इनके बीच में क्यों घुसा जाए ? ऐसा विचार कर  वे गरीब ,अशक्त,लाचार घोड़े दूर से ही यहतमाशा देख रहेथे ।तब राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज ने उन कमजोर घोड़ों की ओर उंगली दिखाकर एड0 गणपतराव अभ्यंकर से कहा - “अभ्यंकर ! इन कमजोर घोड़ों का मैं क्या करूँ ?उन्हें गोली मार दूँ ? मैं पहले से जानता था ऐसा ही होगा इसीलिए मैंने प्रत्येक के हिस्से का चना उसके मुंह में बांध दिया था जिससे कोई दूसरा उसमें मुंह न डाल सके । यही आरक्षण हैं । एड0 गणपतराव अभ्यंकर को उसके प्रश्न का उत्तर मिल चुका था ।तदुपरान्त राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज ने अभ्यंकर से कहा - “अभ्यंकर मनुष्यों में जाति नहीं होती वह जानवरों में होती है । तुमने जानवरों की व्यवस्था मनुष्यों पर लागू की और मैंने मनुष्यों की व्यवस्था जानवरों पर लागू की” अभ्यंकर क्या कहता ? उनकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई ।

उसने सिर नीचा कर लिया व चलते बना ।असल में उसका उपनाम अभ्यंकर की जगह भयंकर होना चाहिए था। राजर्षि छत्रपतिशाहू महाराज आरक्षण के आद्य-जनक हैं। आरक्षण के नायक हैं । वे आधुनिक काल में सम्पूर्ण भारत में एकमात्र राजा है जिन्होने ब्राह्मणेत्तरोंके लिए 50% आरक्षण दिया।

नेशन "आरक्षण jotirava फूल" (आरक्षण का विचार) और छत्रपति शाहू महाराज राजर्षि "आरक्षण के कार्यान्वयन" की अवधारणा (आरक्षण का कार्यान्वयन)

डॉ बाबासाहेब आंबेडकर 0 Vishwaratna एकीकृत बनाया "भारतीय संविधान द्वारा मौलिक अधिकारों" (मौलिक अधिकार)। वह सुरक्षित 664 राज्यों में से 01 rajyake आरक्षण में पूरे देश पर लागू होते हैं। अनुच्छेद 340 अनुसूचित जाति के 52% के संविधान, और अनुसूचित जाति के अछूतों की धारा 341 के अनुसार 15%, जनजातीय पाठ्यक्रम अनुसूचित जनजाति 7.5% गुलाब 342 और एन टी / dienati / vijeenati के पूर्व आपराधिक जनजातियों के एक्स आपराधिक जनजातियों के अनुच्छेद 46 के अनुसार जनसंख्या araksanaki के अनुपात में व्यवस्था की है। आरक्षण और 108 साल ajakangresa, भाजपा, शिव सेना और रसोई गैस उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की कम्युनिस्ट ब्राह्मण के माध्यम से नष्ट कर रहे हैं के निरंतर संघर्ष पाने के लिए बेहद मुश्किल। ब्राह्मणों संविधान संशोधन एलपीजी के बिना के माध्यम से संविधान में किए गए हैं नष्ट करने के लिए sadyantrasuru किया जाता है।

आरक्षण के जनक छत्रपति शाहू ज़ी महराज कोटि कोटि नमन ।

       जय भीम नमो बुद्धाय
             करन वर्मा
          इटावा (उ0प्र0)
      मो0- 9410045781

 https://youtu.be/n6C-6uK43_Y


 भाग-1

मै आरक्षण हूँ। वही आरक्षण, जिसे खत्म करने के लिए आज अगड़ी जातियों ने तांडव मचाया हुआ है। इसलिए आज मैं बहुत दुखी हूं। मै तिलमिला रहा हूँ। मै आज जोर-जोर से रो रहा हूँ। लेकिन रोने की मेरी आवाज कोई नही सुन रहा है।

मेरे इतने बुरे हालात होंगे। ये मुझे मालूम क्या अहसास भी नहीं था। कोई मुझे बचाने भी नहीं आएगा ये भी मैने कभी सोचा नही था। आज मेरे शरीर पर चारो तरफ से हमले हैं- शब्द वाण, व्यंग्य वाण, योजनायें, दुरभिसंधियां !

मेरी छाँव में रहकर कमजोर से कमजोर लोगों ने उन ऊंचाइयों को छुआ, जिसकी वो कल्पना भी नही कर सकते थे। लेकिन आज वे ही मेरे लिए लड़ने के बजाय मुझ पर और मेरे जन्मदाताओं पर बड़े-बड़े इल्जाम लगा रहे हैं। मुझ पर मेरे अपने ही हमलावर हो रहे हैं।

मुझ पर सबसे बड़ा इल्जाम ये है कि मैंने जातियो में आपस की खाई को बहुत ज्यादा बढ़ा दिया है। जबकी सच्चाई इसके एकदम विपरीत है। मै ही हूँ जिसके कारण दलित, पिछड़े, महिलाओं, कमजोरों को शिक्षा, रोजगार, राजनीति में हिस्सेदारी मिली। उनको आगे बढ़ने का मौका मिला। सामाजिक, राजनितिक, आर्थिक कुछ हद तक समानता मिली। जिनको इंसान का दर्जा भी नही दिया जाता था। उनको मुख्य धारा में लाने का काम बहुत हद तक मैंने ही किया है। कमजोर तबकों के हजारो सालो से पाँव में पड़ी गुलामी की बेड़ियां तोड़ने में मेरा बहुत बड़ा योगदान है।

मुझ पर दूसरा आरोप है कि मेरे कारण अयोग्य व्यक्ति आगे बढ़ रहे हैं। यह आरोप भी सरासर बेबुनियाद है। अयोग्य व्यक्ति तो उस समय बढ़ते थे और आज भी बढ़ रहे हैं, कुछ खास जात, धर्म या रुपये वालों का कब्जा संसाधनों पर होता है। एक सामाजिक, राजनितिक, आर्थिक सम्पन परिवार अपने बच्चे का नाम अच्छे स्कूल में लिखवाते हैं, फिर भी वो बच्चा नही पढ़ता, उसके बाद उसके अभिभावक उच्च शिक्षा में उसका एडमिशन डोनेशन दे कर करवाते हैं और फिर डोनेशन से ही नौकरी हासिल कर लेते हैं।


लेकिन एक बच्चा, जिसके माँ-बाप मजदूर हैं, सामाजिक असमानता झेली है, जिसने जातीय उत्पीड़न झेला है, पिछड़े स्कूल में पढ़ा है, पढ़ाई के साथ-साथ मजदूरी की है, उच्च शिक्षा में दाखिले के लिए कुछ कम नम्बर आये हैं, इसलिए आरक्षण के सहारे एडमिशन ले लेता है। उसके बारे में आर्थिक संपन्न लोग कहते हैं कि मेरिट खराब हो गयी, अयोग्य आ गए।

4 comments:

  1. गाँधी नही देश को अब भीम चाहिए।
    आरक्षण नही सदियों का हिसाब चाहिए।
    लाओ वो हमारा कोहिनूर कहाँ है?
    सोमनाथ का पन्ना व पुखराज कहाँ है?
    गुप्तकाल का शांति अमन-चैन कहाँ है?
    न होना अब बहाना कोई आज चाहिये।
    हिसाब पाई-पाई का भरपायी चाहिए।
    गाँधी नही देश को अब भीम चाहिए।
    आरक्षण नही सदियों का हिसाब चाहिए।
    गोरी को भारत में बुलवाया किसने?
    नादिर से दिल्ली को लुटवाया किसने?
    व्यापार इजाजत गोरोँ को दिलायी किसने?
    वर्ण व्यवस्था जहर है फैलाया किसने?
    ऊँच-नीच का भेद है बनाया किसने?
    हमें इन सवालों का जवाब चाहिए।
    गाँधी नही देश को अब भीम चाहिए।
    आरक्षण नही सदियों का हिसाब चाहिए।
    हिसाब पाई-पाई की भरपायी चाहिए।
    माँ-बहनों की लाज हमें वापस चाहिए।
    सदियों से लुटा वो सुहाग चाहिए।
    एकलव्य का अँगूठा हमें वापस चाहिए।
    गला हमें शभ्बूक का भी वापस चाहिए।
    ना होना अब बहाना कोई आज चाहिए।
    हिसाब पाई-पाई- की भरपायी चाहिए।
    गाँधी नही देश को अब भीम चाहिए।
    आरक्षण नही सदियों का हिसाब चाहिए।
    ना भाग्य व भगवान ना ही राम चाहिए।
    ना निराकार-साकार हमें आज चाहिए।
    बाबा साहेब केवल हमें आज चाहिए।
    मंदिर-मस्जिद ना ही गुरुद्वारा चाहिए।
    संसद पर पूरा कब्जा हमें आज चाहिए।
    गाँधी नही देश को अब भीम चाहिए।
    आरक्षण नही सदियों का हिसाब चाहिए।
    ना सूअर,भेड़,बकरी का अनुदान चाहिए।
    न असर बंजर वाले पट्टे हमें आज चाहिए।
    कन्या से कश्मीर धरती आज चाहिए।
    गोहाटी से गुजरात का हिसाब चाहिए।
    भारत की सारी धरती हमें आज चाहिए।
    जिसके लिए करना अब ईँकलाब चाहिए।
    गाँधी नही देश को अब भीम चाहिए।
    आरक्षण नही सदियों का हिसाब चाहिए।

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  2. पूना करार से स्पृश्य हिंदुओं के नेताओं को अपनी ओर झुकाने की शक्ति से अस्पृश्य हिन्दू वंचित हुए,स्पृश्य हिंदुओं को अस्पृश्य वर्ग के प्रतिनिधि चुनने का हक प्राप्त हुआ,इस मामले में एक बात सिद्ध हुई वह यह कि जब गांधीजी में स्थित महात्मा राजनीतिक गांधी पर हाबी हो जाता था तब साधारण बातों को जटिलता और उलझन का स्वरूप प्राप्त होता था,कुछ इसी तरह गोलमेज परिषद में गांधीजी में स्थित महात्मा नें राजनीतिक गांधीजी पर विजय प्राप्त की थी,और यहां भी गांधी में स्थित महात्मा नें राजनीतिक गांधी पर विजय प्राप्त की थी,जिसनें पूरी व्यवस्था को हिला कर रख दिया था,लेकिन वहां राजनीतिक गांधी की पराजय हुई थी,गांधी की यह महात्मा वाली विजय इतनी परिणामकारी निर्णायक बनी कि जिस तरह इंद्र ने कर्ण के कवच और कुंडल तरकीब से छीनकर कर्ण को दुर्बल बना दिया था,उसी तरह गांधी जी ने अस्पृश्य समाज के अलग मतदाता संघ के कवच कुंडल निकालकर डा.अम्बेडकर को दुर्बल कर दिया था ,गांधीजी राजनीतिक ठहरे ,गोलमेज परिषद के समय गांधीजी ने अगर अपने मन का बड़प्पन और समझौते की वृत्ति दिखाई होती तो भारत के अस्पृश्य वर्ग के अधिकारों की समस्या वहीं के वही मिट गई होती,इसलिए यहां डा.अम्बेडकर का कहना सही था कि अनसन का कठिन प्रसंग गांधीजी ने खुद ही अपने पर लाद लिया और प्रतिज्ञाभंग का पूरा पुण्य कमाया.
    इस तरह पुणे करार से अपने ही समाज के दलाल और गद्दार राजनीतिक बिभीषण पैदा हुए जिन्होंने पुणे करार का फायदा उठाकर समाज को बेचने में कोई कोर कसर नही छोड़ी जिसकी सजा आज भी समाज भुगत रहा है वहीं दलाल अपनी दलाली में बेखौफ मशगूल है.
    [मिशन अम्बेडकर].

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  3. *बाबासाहेब डॉ अंबेडकर में हिन्दुत्व से बुद्ध की ओर तथा वंचित समाज का विकास*
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    डॉ0 अम्‍बेडकर का स्‍पष्‍ट मानना था कि व्‍यापक अर्थों में हिन्‍दुत्‍व की रक्षा तभी सम्‍भव है जब ब्राह्मणवाद का खात्‍मा कर दिया जाय, क्‍योंकि ब्राह्मणवाद की आड़ में ही लोकतांत्रिक मूल्‍यों-समता, स्‍वतंत्रता और बन्‍धुत्‍व का गला घोंटा जा रहा है। अपने एक लेख *‘हिन्‍दू एण्‍ड वाण्‍ट ऑफ पब्‍लिक कांसस’ में डॉ0 अम्‍बेडकर लिखते हैं* कि- ‘‘दूसरे देशों में जाति की व्‍यवस्‍था सामाजिक और आर्थिक कसौटियों पर टिकी हुई है। गुलामी और दमन को धार्मिक आधार नहीं प्रदान किया गया है, किन्‍तु हिन्‍दू धर्म में छुआछूत के रूप में उत्‍पन्‍न गुलामी को धार्मिक स्‍वीकृति प्राप्‍त है। ऐसे में गुलामी खत्‍म भी हो जाये तो छुआछूत नहीं खत्‍म होगा। यह तभी खत्‍म होगा जब समग्र हिन्‍दू सामाजिक व्‍यवस्‍था विश्‍ोषकर जाति व्‍यवस्‍था को भस्‍म कर दिया जाये। प्रत्‍येक संस्‍था को कोई-न-कोई धार्मिक स्‍वीकृति मिली हुई है और इस प्रकार वह एक पवित्र व्‍यवस्‍था बन जाती है। यह स्‍थापित व्‍यवस्‍था मात्र इसलिए चल रही है क्‍योंकि उसे सवर्ण अधिकारियों का वरदहस्‍त प्राप्‍त है।

    उनका सिद्धान्‍त सभी को समान न्‍याय का वितरण नहीं है अपितु स्‍थापित मान्‍यता के अनुसार न्‍याय वितरण है।” यही कारण था कि 1935 में नासिक में आयोजित एक सम्‍मलेन में डॉ0 अम्‍बेडकर ने हिन्‍दू धर्म को त्‍याग देने की घोषणा कर दी। अपने सम्‍बोधन में उन्‍होंने कहा कि- ‘‘सभी धर्मो का निकट से अध्‍ययन करने के पश्‍चात हिन्‍दू धर्म में उनकी आस्‍था समाप्‍त हो गई। वह धर्म, जो अपने में आस्‍था रखने वाले दो व्‍यक्‍तियों में भेदभाव करे तथा अपने करोड़ोंं समर्थकों को कुत्‍ते और अपराधी से बद्‌तर समझे, अपने ही अनुयायियों को घृणित जीवन व्‍यतीत करने के लिए मजबूर करे, वह धर्म नहीं है। धर्म तो आध्‍यात्‍मिक शक्‍ति है जो व्‍यक्‍ति और काल से ऊपर उठकर निरन्‍तर भाव से सभी पर, सभी नस्‍लों और देशों में शाश्‍वत रूप से एक जैसा रमा रहे। धर्म नियमों पर नहीं, वरन्‌ सिद्धान्‍तों पर आधारित होना चाहिये।”

    *यहाँ स्‍पष्‍ट करना जरूरी है कि डॉ0 अम्‍बेडकर ने आखिर बौद्ध धर्म ही क्‍यों चुना?*
    वस्‍तुतः यह एक विवादित तथ्‍य भी रहा है कि क्‍या जीवन के लिए धर्म जरूरी है? डॉ0 अम्‍बेडकर ने धर्म को व्‍यापक परिप्रेक्ष्‍य में देखा था। उनका मानना था कि धर्म का तात्त्विक आधार जो भी हो, नैतिक सिद्धान्‍त और सामाजिक व्‍यवहार ही उसकी सही नींव होते हैं। यद्यपि बौद्ध धर्म अपनाने से पूर्व उन्‍होंने इस्‍लाम और ईसाई धर्म में भी सम्‍भावनाओं को टटोला पर अन्‍ततः उन्‍होंने बौद्ध धर्म को ही अपनाया क्‍योंकि यह एक ऐसा धर्म है जो मानव को मानव के रूप में देखता है किसी जाति के खाँचे में नहीं। एक ऐसा धर्म जो धम्‍म अर्थात नैतिक आधारों पर अवलम्‍बित है न कि किन्‍हीं पौराणिक मान्‍यताओं और अन्‍धविश्‍वास पर।

    डॉ0 अम्‍बेडकर बौद्ध धम्म के *‘आत्‍मदीपोभव’* से काफी प्रभावित थे और मूलनिवासीों व अछूतों की प्रगति के लिये इसे जरूरी समझते थे। डॉ0 अम्‍बेडकर इस तथ्‍य को भलीभांति जानते थे कि सवर्णोंं के वर्चस्‍व वाली इस व्‍यवस्‍था में कोई भी बात आसानी से नहीं स्‍वीकारी जाती वरन्‌ उसके लिए काफी दबाव बनाना पड़ता है।

    स्‍वयं भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं0 जवाहरलाल नेहरू ने डॉ0 अम्‍बेडकर के निधन पश्‍चात उन्‍हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा था कि *–‘‘डॉ0 अम्‍बेडकर हमारे संविधान निर्माताओं में थे। इस बात में कोई संदेह नहीं कि संविधान को बनाने में उन्‍होंने जितना कष्‍ट उठाया और ध्‍यान दिया उतना किसी अन्‍य ने नहीं दिया। वे हिन्‍दू समाज के सभी दमनात्‍मक संकेतों के विरूद्ध विद्रोह के प्रतीक थे। बहुत मामलों में उनके जबरदस्‍त दबाव बनाने तथा मजबूत विरोध खड़ा करने से हम मजबूरन उन चीजों के प्रति जागरूक और सावधान हो जाते थे तथा सदियों से दलित वर्ग की उन्‍नति के लिये तैयार हो जाते थे।”*

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