Saturday, 5 August 2017

राममनोहर लोहिया

 #राममनोहर लोहिया जी अपनी किताब,
 "हिन्दू बनाम हिन्दू" 
में लिखते हैं...._

"मैं दावे के साथ कह सकता हूँ, अंग्रेजों के समय का गुलामी काल, शूद्रो(sc,st,obc) के लिये वरदान साबित हुआ है. हम प्राचीन काल की चाहे जितनी भी डींग हांक लें, लेकिन अगर अँग्रेजों का सम्पर्क न हुआ होता, तो हम बहुत पिछड़े रहते! भारतीय इतिहास के पांच हजार सालों में एक भी विद्वान शूद्रों में न हो सका, जबकि अँग्रेजों के लगभग 200 साल के गुलामी काल में डाक्टर अम्बेडकर, मेघनाथ साहा, राधा विनोद पाल, सुरेन्द्र नाथ शील और अन्य कितने ही नाम जिन्हें मैं नहीं जानता, शूद्रों(sc,st,obc) समाज मे निर्माण हुये उसका श्रेय अंग्रेजो को ज्याता है क्योकि ब्राम्हणों ने इनको शिक्षा से वंचित रखा था परंतु अंग्रेजो ने इनके लिए स्कूल शुरू किये इसके कारण अंग्रेजो से ब्राम्हण नफरत करने लगे थे ये कहकर की हमारे बनाये नियमों का अंग्रेज उल्लंघन कर रहे हैं , हमारे धार्मिक बातों में अंग्रेज हस्तक्षेप करने लगे है! क्या अपने धर्म के किसी विशिष्ट वर्ग को शिक्षा से वंचित रखना, उनपर अमानवीय अत्याचार करना क्या धर्म हो सकता है? . यदि 1857 का विद्रोह सफल हो जाता तो निश्चय ही शूद्रो (sc,st,obc) को सामाजिक उत्थान के इतने अवसर न मिलते, जितने की 1857 के बाद अंग्रेजों की गुलामी काल में मिले हैं! *यह अंग्रेजों की गुलामी का काल था, जब एक ब्राह्मण चपरासी बना तथा चमार एक कलेक्टर."* और यही बातें ब्राम्हणों को कांटे की तरह चुभने लगी थी और आज भी चुभती है!

इस देश का मूल शासक ब्राह्मण ये खूब जानता था कि अंग्रेज अौर 50 साल रह गये तो शूद्र(sc,st,obc) सत्ता में अौर हम सत्ता के बहार हो जायेंगे क्योंकि इनकी आबादी लगभग देश मे ८५%  है और हम ब्राम्हणों की केवल ३.५ %  इसलिए ब्राह्मणों ने अंग्रेज को भगाने का आंदोलन राष्ट्रवाद की आड़ में चलाया था। और देश के शुद्रों को आपस मे जाति धर्म के नाम पर लड़वाकर उनको कभी आपस में एक नही होने दिया ताकि तोड़ो, फोड़ो और राज करो यह उनकी कुटनिती सफल हो सके!

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