Friday 25 August 2017

ब्राह्मण धर्म ( हिन्दू धर्म) के पांच खूॅटे

*यादव शक्ति पत्रिका* ने हिंदू धर्म में कुल 5 खूंटों का जिक्र किया है। आप लोग भी पढ़िए क्या हैं हिंदू धर्म के 5 खूंटे.... जिनसे ब्राह्मणों ने सभी दलितों और पिछड़ों को बांध रखा है..

*👥 हिन्दू धर्म(ब्राह्मण धर्म) के पांच खूॅटे :-*

(1)  पहला खूॅटा:- *ब्राह्मण*

  हिन्दू धर्म में ब्राह्मण जन्मजात श्रेष्ठ है चाहे चरित्र से वह कितना भी खराब क्यों न हो, हिन्दू धर्म में उसके बिना कोई भी मांगलिक कार्य हो ही नहीं सकता। किसी का विवाह करना हो तो दिन या तारीख बताएगा ब्राह्मण, किसी को नया घर बनाना हो तो भूमिपूजन करायेगा ब्राह्मण, किसी के घर बच्चा पैदा हो तो नाम- राशि बतायेगा ब्राह्मण,
किसी की मृत्यु हो जाय तो क्रियाकर्म करायेगा ब्राह्मण, भोज खायेगा ब्राह्मण, बिना ब्राह्मण से पूछे हिन्दू हिलने की स्थिति में नहीं है। इतनी कड़ी मानसिक गुलामी में जी रहे हिन्दू से विवेक की कोई बात करने पर वह सुनने को भी तैयार नहीं होता।
पिछडों/एससी/एसटी के आरक्षण का विरोध करता है ब्राह्मण, पिछड़ों/एससी/एसटी की शिक्षा, रोजगार, सम्मान का विरोध करता है ब्राह्मण !!
इतना होने के बावजूद भी वह पिछड़ों/एससी/एसटी का प्रिय और अनिवार्य बना हुआ है क्यों ?? घोर आश्चर्य !!! या ये कहें कि दुनिया का आठवां अजूबा !!!
जो हिन्दू ब्राह्मण रूपी खूॅटा से बॅधा हुआ है।

(2) दूसरा खूॅटा: *ब्राह्मण शास्त्र:*

  यह जहरीले साॅप की तरह हिन्दू समाज के लिए जानलेवा है।
मनुस्मृति जहरीली पुस्तक है।
वेद, पुराण, रामायण आदि में भेद-भाव, ऊॅच-नीच, छूत-अछूत का वर्णन मनुष्य-मनुष्य में किया गया है।
*ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण,* 
*भुजा से क्षत्रिय,*
*जंघा से वैश्य,*
*पैर से शूद्र* की उत्पत्ति बताकर शोषण -दमन की व्यवस्था शास्त्रों में की गयी है, हिन्दू-शास्त्रों मे स्त्री को गिरवी रखा जा सकता है, बेचा जा सकता है, उधार भी दिया जा सकता है। हिन्दू समाज इन शास्त्रों से संचालित होता रहा है।

(3)  तीसरा खूॅटा: *हिन्दू धर्म के पर्व/त्योहार:* 

हिन्दू धर्म के पर्व/त्योंहार आर्यों द्वारा इस देश के एससी/एसटी/पिछड़ों (मूलवासियों) की कीगयी निर्मम हत्या पर मनाया गया जश्न है । आर्यों ने जब भी और जहाॅ भी मूलवासियों पर विजय हासिल की, विजय की खुशी में यज्ञ किया, यही पर्व कहा गया, पर्व ब्राह्मणों की विजय और त्योहार मूलवासियों के हार की पहचान है। त्योहार का मतलब होता है, तुम्हारी हार यानी मूलवासियों की हार। इस देश के मूलवासी अनभिज्ञता की वजह से पर्व-त्योहार मनाते हैं। न ही तो किसी को अपने इतिहास का ज्ञान है और न ही अपमान का बोध। सबके सब ब्राह्मणवाद के खूॅटे से बॅधे हैं। अपना मान सम्मान और इतिहास सब कुछ खो दिया है। अपने ही अपमान और विनाश का उत्सव मनाते हैं और शत्रुओं को सम्मान और धन देते हैं। यह चिन्तन का विषय है।
होली, होलिका की हत्या और बलात्कार का त्योहार, दशहरा- दीपावली- रावण वधका त्योहार।
नवरात्र- महिषासुर वध का त्योहार।  किसी धर्म में त्योहार पर शराब पीना और जुआ खेलना वर्जित है । पर हिन्दू धर्म में होली में शराबऔर दीपावली पर जुआ खेलना धर्म है। हिन्दू समाज इस खूॅटे से पुरी तरह बॅधा हुआ है।

(4) चौथा खूॅटा- *देवी देवता:*

  -हिन्दू धर्म में तैंतीस करोड़ देवी-देवता बताये गये हैं। पाप-पुण्य, जन्म-मरण, स्वर्ग-नरक, पुनर्जन्म, अगले जन्म का भय बताकर काल्पनिक देवी-देवताओं की पूजा- आराधना का विधान किया गया है।
मन्दिर-मूर्ति, पूजा, दान-दक्षिणा देना अनिवार्य बताया गया है।
हिन्दू समाज इस खूॅटे से बॅधा हुआ है और चमत्कार, पाखण्ड, अंधविश्वास, अंधश्रद्धा से जकड़ा हुआ है।

(5) पाॅचवां खूॅटा : *तीर्थस्थान*

-ब्राह्मणों ने देश के चारों ओर तीर्थस्थान के हजारों खूॅटे गाड़ रखे हैं। इन तीर्थस्थानों के खूॅटे से टकराकर मरना पुण्य और स्वर्ग प्राप्ति का सोपान बताया गया है। इस धारणा पर भरोसा कर सभी ब्राह्मणों के मानसिक गुलाम obc/sc/st के लोग बिना बुलाये तीर्थस्थानों पर पहुँच जाते है जहाँ इनका तीर्थ स्थलों के मालिक ब्राह्मण आस्था की आड़ में हर प्रकार का शोषण करते हैं ।

    *समाधान:-* ब्राह्मणवाद के इन खूॅटो को उखाड़ने के लिए समस्त शूद्र(obc/sc/st) की जातियों को एक जुट होकर चिन्तन-मनन और विचार-विमर्श करना होगा। किसी भी मांगलिक कार्य में ब्राह्मण को न बुलाने से, ब्राह्मणशास्त्रों को न पढ़ने से, न मानने से, हिन्दू (ब्राह्मण)त्योहारों को न मनाने से, काल्पनिक हिन्दू देवी-देवताओं को न मानने, न पूजने से, तीर्थस्थानों में न जाने, दान-दक्षिणा न देने से ब्राह्मणवाद के सभी खूॅटे उखड़ सकते हैं। ब्राह्मणवाद से समाज  मुक्त हो सकता है और मानववाद विकसित हो सकता है। इस पर obc/sc/st समाज की सभी जातियों को चिन्तन-मनन करने की आवश्यकता है।
    तो आइए विदेशी आर्य ब्राह्मणों को दान मान मतदान न देकर  ब्राह्मणवाद से मुक्ति और मानववाद को विकसित करने का सकल्प लें।



 स्त्री तब तक 'चरित्रहीन' नहीं हो सकती....
जब तक पुरुष चरित्रहीन न हो". ....
 गौतम बुद्ध संन्यास लेने के बाद गौतमबुद्ध ने अनेक क्षेत्रों की यात्रा की...

एक बार वह एक गांव में गए।वहां एक स्त्री उनके पास आई और बोली आप तो कोई राजकुमार लगते हैं। ... 
क्या मैं जान सकती हूं कि इस युवावस्था में गेरुआ वस्त्र पहनने का क्या कारण है ? ...

बुद्ध ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया कि.. 
."तीन प्रश्नों" के हल ढूंढने के लिए उन्होंने संन्यास लिया..
बुद्ध ने कहा..
 हमारा यह शरीर जो युवा व आकर्षक है, पर जल्दी ही यह "वृद्ध" होगा, फिर"बीमार" व अंत में "मृत्यु" के मुंह में चला जाएगा। मुझे 'वृद्धावस्था', 'बीमारी' व 'मृत्यु' के कारण का ज्ञान प्राप्त करना है ..... 
बुद्ध के विचारो से प्रभावित होकर उस स्त्री ने उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया.... शीघ्र ही यह बात पूरे गांव में फैल गई। गांव वासी बुद्ध के पास आए व आग्रह किया कि वे इस स्त्री के घर भोजन करने न जाएं....
 क्योंकि वह "चरित्रहीन" है.....
 बुद्ध ने गांव के मुखिया से पूछा? क्या आप भी मानते हैं कि वह स्त्री चरित्रहीन है...? 
मुखिया ने कहा कि मैं शपथ लेकर कहता हूं कि वह बुरे चरित्र वाली स्त्री है....। 
आप उसके घर न जाएं। 
बुद्ध ने मुखिया का दायां हाथ पकड़ा... और उसे ताली बजाने को कहा... 
मुखिया ने कहा मैं एक हाथ से तालीनहीं बजा सकता... क्योंकि मेरा दूसरा हाथ आपने पकड़ा हुआ है ... 
बुद्ध बोले इसी प्रकार यह स्वयं चरित्रहीन कैसे हो सकती है...? जब तक इस गांव के पुरुष चरित्रहीन न हो..!
अगर गांव के सभी पुरुष अच्छे होते तो यह औरत ऐसी न होती इसलिए इसके चरित्र के लिए यहा के पुरुष जिम्मेदार है l
यह सुनकर सभी "लज्जित" हो गये ।
लेकिन आजकल हमारे समाज के पुरूष "लज्जित" नही "गौर्वान्वित" महसूस करते है..

 क्योकि यही हमारे "पुरूष प्रधान" समाज की रीति एवं नीति है l

2 comments:

  1. [मध्य प्रदेश के दस जिलों के अध्ययन में सामने आयी हकीकत, स्कूल में पानी नहीं पी सकते 92 फीसदी दलित बच्चे! - Bhim Dastak] is good,have a look at it! http://bhimdastak.com/india/reality-in-the-study-of-madhya-pradesh-ten-districts/

    *भोपाल।* आजादी के 69 साल बाद भी देश के दलित बच्चे भेदभाव का देश झेलने को मजबूर हैं। चाइल्ड राइट औब्ज़र्वेटरी एवं मप्र दलित अभियान संघ द्वारा किया गया हालिया सर्वे इस भयावह सच्चाई को बयां करता है। सर्वे के अनुसार 92 फीसदी दलित बच्चे स्कूल में खुद पानी लेकर नहीं पी सकते, क्योंकि उन्हें स्कूल के हैंडपंप और टंकी छूने की मनाही है। 57 फीसदी बच्चों का कहना है कि वे तभी पानी पी पाते हैं, जब गैरदलित बच्चे उन्हें ऊपर से पानी पिलाते हैं। 28 फीसदी बच्चों के माता-पिता का कहना था कि प्यास लगने पर उनके बच्चे घर आकर पानी पीते हैं, जबकि 15 फीसदी बच्चों को स्कूल में प्यासा रहना पड़ता है।

    *कक्षा में आगे नहीं बैठने दिया जाता* :- सर्वे के अनुसार, 93 फीसदी बच्चों को कक्षा में आगे की लाइन में बैठने नहीं दिया जाता है। इसके अनुसार, 79 फीसदी बच्चे पीछे की लाइन में, जबकि 14 फीसदी बच्चे बीच की लाइन में बैठते हैं।

    *गैरदलित शिक्षकों का व्यव्हार ठीक नही*ं :- 88 फीसदी बच्चों के अनुसार, उन्हें शिक्षकों के भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। 23 फीसदी बच्चों का कहना है कि गैरदलित की तुलना में शिक्षक उनसे ज्यादा सख्ती से पेश आते हैं। 42 फीसदी बच्चों ने कहा, शिक्षक उन्हें जातिसूचक नामों से पुकारते हैं।

    इसी प्रकार 44 फीसदी बच्चों ने कहा कि गैरदलित बच्चें भी उनके साथ भेदभाव करते हैं। 82 फीसदी बच्चों के अनुसार मध्यान्ह भोजन के लिए उन्हें अलग लाइन में बिठाया जाता है।

    *छुआछूत ने ले ली जान* :- हाल ही में दमोह जिले के खमरिया कलां गांव के स्कूल में पढ़ने वाले 8 साल के बच्चे की बावड़ी में गिरने से मौत हो गयी। बताया जाता है कि शिक्षक दलित बच्चों को स्कूल के हैंडपंप से पानी नहीं पीने देते थे। इस कारण से अभिषेक भाई और दोस्तों के साथ बावड़ी में पानी पीने गया था।

    *ऐसे हुआ सर्वे* :-संघ द्वारा प्रदेश के पांच प्रमुख क्षेत्र बघेलखण्ड, बुंदेलखंड, चम्बल, महाकौशल और निमाड़ के 10 जिलों के 30 गांवों के 412 दलित परिवारों का सर्वेक्षण किया गया। इस दौरान इन गांवों के दलित सरपंच, शिक्षक, अधिकारी और कर्मचारियों से बात की गयी।

    *सर्वे के निष्कर्ष* :- सर्वे में शामिल सभी गांवों में दलितों के साथ छुआछूत का प्रचलन है। यानि कोई भी गांव जाति आधारित छुआछूत से मुक्त नहीं है। मप्र में कुल मिलकर 70 प्रकार की छुआछूत प्रचलित है।

    80 फीसदी गांवों में दलितों के मंदिर में प्रवेश पर रोक है। गांवों में नाई दलितों की कटिंग नहीं बनाते।

    50 फीसदी गांवों में दलित बच्चों के आधुनिक नाम रखने पर गैर दलित उनकी पिटाई कर देते हैं।

    बुंदेलखंड में सबसे ज्यादा 52 प्रकार की छुआछूत प्रचलित है। चम्बल में 49, निमाड़ में 41, बघेलखण्ड में 38 और महाकौशल में 17 प्रकार की छुआछूत प्रचलित है।

    स्कूलों में होने वाले उपेक्षित व्यव्हार और भेदभाव के चलते कई प्रतिभाशाली दलित बच्चे बीच में ही पढाई छोड़ देते हैं। आंकड़े बताते हैं कि पढाई में होशियार होने के बाद भी दलित बच्चों को स्कूल में सबसे पीछे बैठने को मजबूर किया जाता है।

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  2. काले धागे में छिपी ब्राह्मणवादी समाज की काली हकीकत http://www.nationaldastak.com/opinion/why-are-the-black-thread-tied-to-the-hands-and-feet-of-dalit-children/

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