Wednesday 2 August 2017

महिलायें पुरुषों की बराबरी

 *आज महिलायें पुरुषों की बराबरी कर रही हैं, इनकी तरक्की के पीछे किसका हाथ है ?*

  20 सितम्बर 1951 को लोकसभा में बाबा साहब अम्बेडकर ने कहा था कि "रामायण काल में हिन्दू कोड बिल जैसा कानून होता तो सीता को घर से बाहर निकाल देने की हिम्मत मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाने वाले राम में नहीं होती।" चर्चा हिन्दू कोड बिल पर चल रही थी। हिन्दू कोड बिल भारतीय महिलाओं को समानता व स्वतंत्रतापूर्वक अधिकार दिलाने के लिए डॉ अम्बेडकर द्वारा प्रस्तुत किया गया था। उस समय तक भारतीय नारी को जो अधिकार मिले थे वो मनु के बनाये कानून के अनुसार थे। स्त्री को अपने पति से विवाह विच्छेद (तलाक) की अनुमति नहीं थी चाहे पति कितना ही जालिम या निकम्मा क्यो न हो। जबकि पुरुष जब चाहे तब स्त्री को त्याग सकता था और कितनी भी शादियाँ कर सकता था।                                               संपति के मामले में मनु ने स्त्री को दासी बनाकर रख दिया था। पत्नी, पुत्री और दास इन तीनों के पास कोई संपत्ति नहीं हो सकती। वे जो संपत्ति अर्जित करे वह उसकी होती है जिसकी वह पत्नी या पुत्र या दास है। 
    
   मनु द्वारा स्त्रीयो के लिए आदेशित जीवन के आदर्श को भी देखिए - मनु कहता है - वह आजीवन उसकी (पति) की आज्ञा का अनुपालन करेगी, जिसे उसका पिता या भाई उसे सौंप देता है। चाहे पति सदाचार से हीन हो या अन्य किसी स्त्री पर आसक्त हो, या वह सदगुणो से हीन हो, तो भी पतिव्रता स्त्री के लिए वह देवता के समान पूजनीय है। इस तरह स्त्री पुरूषवादी समाज में एक भोग की वस्तु बनकर रह गई थी। 

    स्वतंत्रता पश्चात बाबा साहब ङाँ अम्बेडकर ने स्त्रीयो को भी मानवमात्र जानकर उनकी मानसिक, सामाजिक, राजनीतिक स्वतंत्रता के बारे में गहन अध्ययन किया। देश विदेश में स्त्रीयो को पृदत्त अधिकार एवं स्वतंत्रता का गहन मूल्यांकन कर भारतीय नारी को स्वाभिमान एवं स्वतंत्रता दिलाने के लिए बाबा साहब ने लोकसभा में हिन्दू कोड बिल प्रस्तुत किया। 

    बाबा साहब कहते थे कि मुझे भारतीय संविधान के निर्माण से भी अधिक दिलचस्पी और खुशी हिन्दू कोड बिल पारित करने में है। 
   
   डाँ बाबा साहब अम्बेडकर द्वारा प्रस्तुत हिन्दू कोड बिल में महिलाओं को सम्पत्ति में बराबर का हिस्सा, बेटी को पिता की सम्पत्ति में हिस्सा, एकपत्नित्व का बंधन, अन्तरजातिय विवाह को मान्यता, वारिसो को सम्पति में हिस्सा, दुर्जन पति से तलाक लेने का अधिकार आदि का समावेश किया गया था। 
   
   लेकिन जैसे ही बिल लोकसभा में आया, सनातनी हिन्दू तिलमिला उठे। पूरे देश भर में इस बिल का विरोध हुआ और *"हिन्दू धर्म संकट में है"* के नारे लगाए गए। राजेन्द्र प्रसाद तक ने, जो उस समय राष्ट्रपति थे, कहा था कि ये बिल पास नहीं होना चाहिए नहीं तो अनर्थ हो जायेगा। डाँ अम्बेडकर उस समय अकेले भारतीय महिलाओं की अस्मिता की लङाई लङ रहे थे पूरा हिन्दू समाज उनके विरुद्ध हो गया था। अंत में जब उन्हें लगा कि बिल पास नहीं होगा तो उन्होंने कानून मंत्री से इस्तीफा दे दिया। बाद में यही बिल अलग अलग टुकड़ों में पास किया गया। 
   
   डाँ बी आर अम्बेडकर किसी एक वर्ग के नेता नहीं थे बल्कि वे हर उस वर्ग के नेता थे जो उत्पीङीत एवं शोषित है। वे ग्लोबल एवं रेसनल नेता थे। स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व को वे आदर्श मानते थे। वे हमेशा दबे कूचलो की आवाज थे चाहे वे महिलाएं हो या दलित/पिछङे हो। 

* गरिमा के लिए एकजुट *

 महिला शिक्षा के बारे में ‘चालाक ब्राह्मण’ तिलक के विचार*


नई दिल्ली। नेशनल जनमत ब्यूरो 

इतिहास ने हमें जिसके बारे में जैसा बता दिया हम बचपन से उसे वैसा ही देखते चले आ रहे हैं. बाल गंगाधार तिलक को भी हम स्कूल के समय से लोकमान्य बुलाते आए हैं. लेकिन उनकी खुद की लिखी हुई किताब बताती है कि तिलक घोर जातिवाद को बढ़ावा देने वाले इंसान थे. आजकल वरिष्ठ पत्रकार सत्येन्द्र पीएस अपनी फेसबुक वॉल पर बाल गंगाधर तिलक की परतें खोल रहे हैं आप भी पढ़िए.


तिलक स्त्री शिक्षा के विरोधी थे- 
बाल गंगाधर तिलक ने 1885 में लड़कियों का पहला हाई स्कूल खोले जाने के क्रांति ज्योति सावित्रीबाई फुले के  प्रयासों के खिलाफ अभियान चलाया।
उसमें सफलता नहीं मिली तो तिलक ने लड़कियों के 11 बजे से 5 बजे तक घर से बाहर रहने का विरोध किया और लिखा कि कोई भी अपनी लड़की को इतने समय तक घर से बाहर नहीं रहने देगा। उन्होंने सुबह 7 से 10 या दोपहर 2 से 5 बजे तक कक्षाएं चलाने का सुझाव दिया और कहा कि शेष समय लड़कियों को घर के काम में हाथ बटाने में देना चाहिए।


लड़कियां पढ़ लिख गईं तो पतियों का विरोध करेंगी- 

तिलक ने कहा कि पढ़ लिखकर लड़कियां रख्माबाई जैसी हो जाएंगी जो अपने पतियों का विरोध करेंगी।उन्होंने पाठ्यक्रम में बदलाव कर लड़कियों को पुराण, धर्म और घरेलू काम जैसे बच्चों की देखभाल, खाना बनाने की शिक्षा तक सीमित रखने की वकालत की। उन्होंने कहा कि इसके अलावा लड़कियों को शिक्षा देना करदाताओं के धन की बर्बादी है। लड़कियों का पहला विश्वविद्यालय 1915-16 में खोले जाने की दोन्धो केशव करवे की कवायद तक तिलक का यह रुख कायम रहा

हिन्दू लड़की को बेहतरीन बहू के रूप में विकसित किय जाना चाहिए- 

20 फरवरी 1916 को उन्होंने अपने मराठा अखबार में इंडियन वूमेन यूनिवर्सिटी शीर्षक से लिखे लेख में कहा,

” हमे प्रकृति और सामाजिक रीतियों के मुताबिक चलना चाहिए। पीढ़ियों से घर की चहारदीवारी महिलाओं के काम का मुख्य केंद्र रहा है। उनके लिए अपना बेहतर प्रदर्शन करने हेतु यह दायरा पर्याप्त है। एक हिन्दू लड़की को निश्चित रूप से एक बेहतरीन बहू के रूप में विकसित किया जाना चाहिए। हिन्दू औरत की सामाजिक उपयोगिता उसकी सिम्पैथी और परंपरागत साहित्य को ग्रहण करने को लेकर है। लड़कियों को हाइजीन, डोमेस्टिक इकोनॉमी, चाइल्ड नर्सिंग, कुकिंग, sewing आदि की बेहतरीन जानकारी उपलब्ध कराई जानी चाहिए ”
*
*दिमाग के जाले साफ करो और पढ़ो, महिला शिक्षा के बारे में 'चालाक ब्राह्मण' तिलक के विचार - नेशनल जनमत*


 http://nationaljanmat.com/women-education-tilak/

 https://youtu.be/wLGdI2Hc8sQ


*  आज महिलाऐ बाबा सहाब अंबेडकर जी*
  *को भुल गईं जिन्होने महिलाओ के मान सम्मान के लिये सब*
  कुछ कुरबान किया येही महिला आज राम और कृष्ण को याद करतीं है *

डा. अम्बेडकर द्वारा संविधान में महिलाओं के लिए किये गए विशेष उपबंध (आरक्षण).

1.बहुपत्नी की परम्परा को खत्म कर नारियो को अद्भुत सम्मान दिया.
2. प्रथम वैध पत्नी के रहते दूसरी शादी को अमान्य किया.
3. बेटा की तरह बेटी को भी पिता की सम्पति में अधिकार का प्रावधान किया.
4 . गोद लेने का अधिकार दिया.
5. तलाक लेने का अधिकार दिया.
6. बेटी को वारिश बनने का अधिकार दिया.
7. प्रसव छुट्टी का प्रावधान किया.
8.सामान काम के लिए पुरुषो सा सामान वेतन पाने का अधिकार दिया.
9. स्त्री की क्षमता के अनुसार ही काम लेने का प्रावधान किया.
10 भूमिगत कोल खदानों में महिलाओं के काम करने पर रोक लगाया.
11. श्रम की अवधी 12 घंटा से घटा कर 8 घंटा किया.
12. लिंग भेद को खत्म किया.
13. बाल विवाह पर रोक लगाया.
14. रखनी प्रथा , वेश्याव्रिति पर रोक.
15. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया. 
16. मताधिकार का अधिकार दिया.
17. प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति बनने का द्वार खोला.
18. मानवीय गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार दिया.
ये सारे अधिकार सभी महिलाओं के लिए बनाया. इस संविधान के पूर्व नारिया पुरुष की दासी मात्र थी जिसका गवाह हिन्दू शास्त्र है. ऋग्वेद में स्त्रियों को झूठी कहा गया, उनके मन को भेड़िये जैसा बताया गया, किसी भी पुरुष के प्रति आकर्षित हो जाने वाली बताया। मानस में तुलसी ने पशुओं की तरह नारी को पीटने योग्य बताया, गीता में पापयोनि वाला बताया, मनुसमृति में तो पूछिये मत नारी को किस स्तर तक गिरा .

लेकिन डा. अम्बेडकर ने संविधान के अनुच्छेद 13 में इन सारे शाश्त्रीय नियमों को ध्वस्त कर उन्हें एक इंसान के रूप में सम्मान पूर्वक जीने का हक़ दिया...


*हिन्दू धर्म के अनुसार स्त्री और शुद्रो के लिए मान्यता*
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 *जो मांस नहीं खाएगा वह 21 बार पशु योनी में पैदा होगा-मनुस्मृति (5/35)*
 *मंस्मृति जिसमें लिखा गया है कि किसी भी स्त्री के विधवा होने पर उसके बाल काट दो, सफेद वस्त्र पहना दो और उसे खाने को केवल इतना दिया जाए कि वह मात्र जीवित रह सके अर्थात उस अबला विधवा नारी को हड्डियों का पिंजर मात्र बना दिया जाए।*

 *इसके अनुसार किसी विधवा को पुनर्विवाह करना पाप माना गया है। याद रहे, ऐसे ही पुराणों की शिक्षाओं के कारण हमारे देश में वेश्यावृति और सति प्रथा ने जन्म लिया था। इसी प्रकार कुछ अन्य ब्यवस्थवादी ग्रंथों ने औरतों व दलितों के साथ घोर अन्याय करने की शिक्षा दी और हकीकत यह है कि इसी अन्याय के कारण भारतवर्ष को एक बहुत लंबी गुलामी का सामना करना पड़ा। और आज भी ब्यवस्थवादीयो को हजम नही हो रहा है कि स्त्री और शूद्र सम्मान पूर्वक जीवन यापन करे तरह तरह के षड़यंत्र रचते रहते है और आए दिन भारतवर्ष में मनुस्मृति के अनुसार ब्यवहार किया जा रहा है उदाहरण के लिए*


 *मनुस्मृति(100) के अनुसार पृथ्वी पर जो कुछ भी है, वह ब्राह्मणों का है*
 *मनुस्मृति(101) के अनुसार दूसरे लोग ब्राह्मणों की दया के कारण सब पदार्थों का भोग करते हैं।*

 *मनुस्मृति (11-11-127) के अनुसार मनु ने ब्राह्मणों को संपत्ति प्राप्त करने के लिए विशेष अधिकार दिया है। वह तीनों वर्णों से बलपूर्वक धन छीन सकता है अर्थात चोरी कर सकता है।*

 *मनुस्मृति (4/165-4/१६६) के अनुसार जान-बूझकर क्रोध से जो ब्राह्मण को तिनके से भी मारता है, वह 21 जन्मों तक बिल्ली की योनी में पैदा होता है।*

 *मनुस्मृति (5/35) के अनुसार जो मांस नहीं खाएगा, वह 21 बार पशु योनी में पैदा होगा।*

 *मनुस्मृति (64 श्लोक) के अनुसार अछूत जातियों के छूने पर स्नान करना चाहिए।*

 *ब्यवस्थवादी (मनुस्मृति) धर्म सूत्र(2-3-4) के अनुसार यदि शूद्र किसी वेद को पढ़ते सुन लें तो उनके कान में पिघला हुआ सीसा या लाख डाल देनी चाहिए।*

 *मनुस्मृति (8/21-22) के अनुसार ब्राह्मण चाहे अयोग्य हो, उसे न्यायाधीश बनाया जाए वर्ना राज्य मुसीबत में फंस जाएगा। इसका अर्थ है कि भूत पुर्व में भारत के उच्चत्तम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री अलतमस कबीर साहब को तो रखना ही नही चाहिये था !*

 *मनुस्मृति (8/267) के अनुसार यदि कोई ब्राह्मण को दुर्वचन कहेगा तो वह मृत्युदंड का अधिकारी है।*

 *मनुस्मृति (8/270) के अनुसार यदि कोई ब्राह्मण पर आक्षेप करे तो उसकी जीभ काटकर दंड दें।*

 *मनुस्मृति (5/157) के अनुसार विधवा का विवाह करना घोर पाप है।* *विष्णुस्मृति में स्त्री को सती होने के लिए उकसाया गया है !*
 *मनुस्मृति में दहेज देने के लिए प्रेरित किया गया है।*

 *देवल स्मृति में तो किसी को भी बाहर देश जाने की मनाही है।*

 *मनुस्मृति में बौद्ध भिक्षु व मुंडे हुए सिर वालों को देखने की मनाही है।*

 *मंस्मृति (3/24/27) के अनुसार वही नारी उत्तम है, जो पुत्र को जन्म दे।*

 *(35/5/2/४7) के अनुसार पत्नी एक से अधिक पति ग्रहण नहीं कर सकती, लेकिन पति चाहे कितनी भी पत्नियां रखे।*

 *(1/10/51/ 52), बोधयान धर्मसूत्र (2/4/6), शतपथ ब्राह्मण (5/2/3/14) के अनुसार जो स्त्री अपुत्रा है, उसे त्याग देना चाहिए।

 *मनुस्मृति (6/6/4/3) के अनुसार पत्नी आजादी की हकदार नहीं है।*

 *मनुस्मृति (शतपथ ब्राह्मण) (9/6) के अनुसार केवल सुंदर पत्नी ही अपने पति का प्रेम पाने की अधिकारी है।*

 *बृहदारण्यक उपनिषद् (6/4/7) के अनुसार अगर पत्नी संभोग करने के लिए तैयार न हो तो उसे खुश करने का प्रयास करो। यदि फिर भी न माने तो उसे पीट-पीटकर वश में करो।*

 *मैत्रायणी संहिता (3/8/3) के अनुसार नारी अशुभ है। यज्ञ के समय नारी, कुत्ते व शूद्र को नहीं देखना चाहिए अर्थात नारी व शूद्र कुत्ते के समान हैं।*

 *मनुस्मृति (1/10/11) के अनुसार नारी तो एक पात्र(बर्तन) के समान है।*

 *महाभारत (12/40/1) के अनुसार नारी से बढ़कर अशुभ कुछ भी नहीं है। इनके प्रति मन में कोई ममता नहीं होनी चाहिए।*

उपर्युक्त सभी बातें बहुत ही गहराई से चिन्तन करने योग्य हैं | जब हम सब इन विषम परिस्थितियों से जूझ रहे थे |महिलाओं तथा शूद्रों पर घोर अन्याय तथा अत्याचार हो रहे थे . तब 33 करोड़ देवी और देवता कहॉ थे | हमारे ऊपर हो रहे अन्याय तथा अत्याचार का सामना करने अपने जान की बाजी लगाकर गर कोई आया था तो वह थे बाबा साहेब डॉ. भीम राव अम्बेडकर |उन्होने अपने ग्यान की ताकत से महिलाओं तथा शूद्रों को 5000 वर्ष की गुलामी से मुक्ति दिलाई |लेकिन हम भी ठहरे खुदगर्ज आज उनको भुलाकर 33 करोड़ देवी देवताओं कोपूजते हैं जो हमारे संकट के समय अपनी सूरत तक नहीं दिखाई |अाज भी इन ब्राह्मणवादियों तथा मनुवादियों के द्वारा बिछाए गए मकड़जाल में उलझ कर हम अपनी दुनियॉ की सबसे कीमती वस्तु यानि समय , धन और मेहनत का दुरूपयोग करते चलें आ रहें हैं |हमें इन ब्राह्मणवादी मनुवादी व्यवस्थाओं, 33करोड़ देवी देवताओं, पूजा पाठ , पाखण्डियों तथा आडम्बरोंं को अपने जीवन से मक्खियों की तरह निकाल कर फेंक देना चाहिए |एक छोटा बच्चा भी होता है अगर एक व्यक्ति बच्चे को खूब प्यार दुलार करे और दूसरा व्यक्ति उसी बच्चे को अगर प्यार दुलार करने के बजाय मारे डॉटे तो वह बच्चा पहले व्यक्ति के पास रहना चाहेगा , दूसरे व्यक्ति के पास नहीं |क्या हमारी सोच एक नासमझ बच्चे से भी बदतर हैै | यही बात कुत्तों पर भी लागू होती है |प्यार दुलार करने वाले व्यक्ति ं के पास कुत्ता अपना दुम हिलाते हुए अा जाता है और मारने वाले व्यक्ति को देखते ही दुम उठाकर भाग जाता है |क्या हमारी समझ अावारा कुत्तों से भी बदतर है |जो लोग हमें हजारों वर्षों तक गुलाम बनाए रखे, महिलाओ तथा शूद्रों को प्रताड़ित करते रहे ,उनसे दूरी बनाए रखने के बजाय चिपकते जा रहें हैं |

जागो OBC , SC ,ST के लोंगो जागो | मानसिक गुल


नोट : लेख में दर्ज जानकारियों की पुष्टि तीसरी जंग नहीं करता है, तीसरी जंग का लेख पर कोई दावा नहीं है, ुल्क लेख सोशल मीडिया में वायरल हुआ है, सोशल मीडिया से प्राप्त है, तीसरी जंग का किसी तरह से कोई कोई सरोकार/वास्ता नहीं है| 

1 comment:

  1. *दिमाग के जाले साफ करो और पढ़ो, महिला शिक्षा के बारे में ‘चालाक ब्राह्मण’ तिलक के विचार*


    नई दिल्ली। नेशनल जनमत ब्यूरो

    इतिहास ने हमें जिसके बारे में जैसा बता दिया हम बचपन से उसे वैसा ही देखते चले आ रहे हैं. बाल गंगाधार तिलक को भी हम स्कूल के समय से लोकमान्य बुलाते आए हैं. लेकिन उनकी खुद की लिखी हुई किताब बताती है कि तिलक घोर जातिवाद को बढ़ावा देने वाले इंसान थे. आजकल वरिष्ठ पत्रकार सत्येन्द्र पीएस अपनी फेसबुक वॉल पर बाल गंगाधर तिलक की परतें खोल रहे हैं आप भी पढ़िए.


    तिलक स्त्री शिक्षा के विरोधी थे-
    बाल गंगाधर तिलक ने 1885 में लड़कियों का पहला हाई स्कूल खोले जाने के क्रांति ज्योति सावित्रीबाई फुले के प्रयासों के खिलाफ अभियान चलाया।
    उसमें सफलता नहीं मिली तो तिलक ने लड़कियों के 11 बजे से 5 बजे तक घर से बाहर रहने का विरोध किया और लिखा कि कोई भी अपनी लड़की को इतने समय तक घर से बाहर नहीं रहने देगा। उन्होंने सुबह 7 से 10 या दोपहर 2 से 5 बजे तक कक्षाएं चलाने का सुझाव दिया और कहा कि शेष समय लड़कियों को घर के काम में हाथ बटाने में देना चाहिए।


    लड़कियां पढ़ लिख गईं तो पतियों का विरोध करेंगी-

    तिलक ने कहा कि पढ़ लिखकर लड़कियां रख्माबाई जैसी हो जाएंगी जो अपने पतियों का विरोध करेंगी।उन्होंने पाठ्यक्रम में बदलाव कर लड़कियों को पुराण, धर्म और घरेलू काम जैसे बच्चों की देखभाल, खाना बनाने की शिक्षा तक सीमित रखने की वकालत की। उन्होंने कहा कि इसके अलावा लड़कियों को शिक्षा देना करदाताओं के धन की बर्बादी है। लड़कियों का पहला विश्वविद्यालय 1915-16 में खोले जाने की दोन्धो केशव करवे की कवायद तक तिलक का यह रुख कायम रहा

    हिन्दू लड़की को बेहतरीन बहू के रूप में विकसित किय जाना चाहिए-

    20 फरवरी 1916 को उन्होंने अपने मराठा अखबार में इंडियन वूमेन यूनिवर्सिटी शीर्षक से लिखे लेख में कहा,

    ” हमे प्रकृति और सामाजिक रीतियों के मुताबिक चलना चाहिए। पीढ़ियों से घर की चहारदीवारी महिलाओं के काम का मुख्य केंद्र रहा है। उनके लिए अपना बेहतर प्रदर्शन करने हेतु यह दायरा पर्याप्त है। एक हिन्दू लड़की को निश्चित रूप से एक बेहतरीन बहू के रूप में विकसित किया जाना चाहिए। हिन्दू औरत की सामाजिक उपयोगिता उसकी सिम्पैथी और परंपरागत साहित्य को ग्रहण करने को लेकर है। लड़कियों को हाइजीन, डोमेस्टिक इकोनॉमी, चाइल्ड नर्सिंग, कुकिंग, sewing आदि की बेहतरीन जानकारी उपलब्ध कराई जानी चाहिए ”
    *
    *दिमाग के जाले साफ करो और पढ़ो, महिला शिक्षा के बारे में 'चालाक ब्राह्मण' तिलक के विचार - नेशनल जनमत*

    http://nationaljanmat.com/women-education-tilak/

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