Saturday 5 August 2017

शांति स्वरूप बौद्ध

*उल्टा चोर कोतवाल को डांटे*
(शांति स्वरूप बौद्ध जी द्वारा एक गैर जरूरी पोस्ट का जवाब )
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मुझे नहीं लगता था कि मैं मिस्टर विलास खरात की सम्यक प्रकाशन के खिलाफ गैर-जरूरी पोस्ट का  कोई जवाब दूं मगर हमारे मित्रों के आक्रोश प्रकट करने और प्रबल आग्रह ने उत्तर देने के लिए मुझे विवश कर दिया। 
अतः इस नकारात्मक पोस्ट का सकारात्मक उत्तर इस प्रकार है की हमारे एक अपरिचित से टेलिफोनिया मित्र हैं प्रोफेसर विलास खरात। इन्हें मैंने कभी देखा नहीं है और न ही इन्हें मैं जानता हूं। इन्होंने करीब 10 वर्ष पूर्व हमें फोन करके बताया कि मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हूं और बाबासाहेब का पंजाब के लोगों के साथ जो पत्राचार हुआ था, वह भी मेरे पास हैं। मेरे निवेदन करने पर इन्होंने तुरंत कह दिया कि हां मैं इन्हें आपको भी दे सकता हूं। मैं वर्षों से यह जानने का प्रयास कर रहा हूं कि क्या दिल्ली विश्वविद्यालय में विलास खरात नाम का कोई प्रोफेसर है। इस बात का मुझे अभी तक कोई सुराग नहीं मिला है। लोगों का कहना है कि इस नाम का प्रोफेसर तो क्या, यहां इस नाम की कोई चिड़िया तक नहीं है। बाबासाहेब और पंजाबियों के बीच हुए पत्राचार के भी अभी तक दर्शन नहीं हुए हैं।
इस आदमी ने करीब दो साल पहले हमें धमकाया था कि तुम माई साहब सविता आंबेडकर, रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं, मायावती आदि के चित्र अपने कैलेण्डर में छापने बंद करो। नहीं तो मैं.....यद्यपि इसकी भाषा ऐसी थी, जिससे लगता था कि इन्हें बदतमीजी के अलावा कुछ आता ही नहीं। फिर भी हमने उन रिपब्लिकन नेताओं के चित्र अपने कैलेण्डर से हटा दिए जो मनुवादी संगठनों के साथ जुड़ गए थे और न ही वे समाज के लिए किसी काम के थे। मगर मायावती जी के चित्र का अपने कैलेण्डर से हटाने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। कारण यह है कि वे तो अब बहुजन आंदोलन की एक सशक्त पहचान बन गई हैं।
इसी बीच हमने यह अनुभव किया कि जब भी सम्यक प्रकाशन का कोई बड़ा कार्यक्रम होता है या यूथ फॉर बुद्धिस्ट इंडिया के किसी विशाल एवं शानदार कार्यक्रम की घोषणा होती है तो कोई न कोई ईर्ष्यालु मित्र अपनी बेतुकी हरकतों से हमारे कार्यक्रम में रोडे़ अटकाने का अभियान छेड़ देते हैं।
सभी समर्पित साथी जानते हैं कि हमारे संगठन द्वारा शीघ्र ही तृतीय सम्यक बौद्ध सम्मलेन का अयोजन करने की घोषणा की जा चुकी है। सभी मित्र यह भी जानते हैं कि इस युवा संगठन का मैं संस्थापक हूं। इस कार्यक्रम में जितनी भारी संख्या में युवक उमड़ते हैं यह दिल्ली प्रदेश के आंबेडकरी-बौद्ध आंदोलन का एक उज्ज्वलतम पक्ष है। और उत्तर भारतीय आंबेडकरी-बौद्ध आंदोलन की एक महानतम उपलब्धि है।
पिछले शनिवार को करीब 12 बजे विलास खरात जी का फिर फोन आया। कहने लगे मैं प्रो. विलास खरात बोल रहा हूं। आपने अपनी डायरी में जो संविधान का प्रियेंबल (उद्देशिका) छापा है, उसमें से ‘पंथ निरपेक्ष’ शब्द हटाओं नहीं तो हम समझेंगे कि आप आरएसएस का प्रचार कर रहे हो।
‘हमने कहा आप कैसी बात कर रहे हैं? ‘पंथ निरपेक्ष’ शब्द और ‘धर्म-निरपेक्ष’ शब्द का अर्थ तो एक ही होता है। इसकी आप हिन्दी भाषा के किसी भी शब्दकोश से पुष्टि कर सकते हैं। और आप तो मराठी भाषी हैं आपके यहां तो ‘धर्म’ को ‘पंथ’ ही कहते हैं फिर आप ऐसी आपत्ति क्यों कर रहे हैं। ये प्रोफेसर साहब अपनी ही हांकते रहे और हमारी न तो कोई बात सुनी और न खुद ही कोई ढ़ंग की बात कह पाए। इसी प्रकार हिन्दी भाषा के ‘संविधान’ शब्द को मराठी भाषा में ‘घटना’ शब्द कहते हैं। तो क्या इसके लिए भी आप बदतमीजी करोगे?
हमारा यह कहना है कि यदि ‘पंथ निरपेक्ष’ शब्द लिखने से सम्यक प्रकाशन आरएसएस का एजेंट हो गया तो फिर हमारे ही पीछे लठ लेकर क्यों पड़े हो? यह शब्द सारे प्रकाशन, यहां तक कि आंबेडकरी आंदोलन के कई प्रकाशक भी छाप रहे हैं। आपने उनको कुछ नहीं कहा। लगता है कि आप किसी नाकाम प्रकाशन के भड़काने से सम्यक प्रकाशन के प्रति द्वेषपूर्ण दुर्भावना से ग्रस्त हैं।
यह बात ठीक है कि बाबासाहेब द्वारा रचित संविधान में ‘ secular ’ शब्द नहीं था। पर यह कहना भी भ्रामक है कि इस देश को हिंदू राष्ट्र घोषित करने के लिए भाजपा सरकार ने भारत के संविधान के प्रियेंबल में ‘ पंथ निरपेक्ष ’ शब्द जोड़ा है। जबकि असलियत यह है कि *प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासन काल में 42वें संशोधन के माध्यम से दिनांक 03 जनवरी, 1977 को ‘ *secular ’ शब्द जोड़ गया था। जिसका हिन्दी ‘पंथ निरपेक्ष’ किया गया था*। दुश्मन पर हमला करने के लिए हमारे पास बहुत आधार हैं, उनकी सहायता लें। रही बात इस देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की तो इसके लिए हमारे ही कर्णधार नेता जिम्मेदार हैं जो रोज-रोज नई-नई पार्टीयां बनाकर बहुजन आंदोलन के संगठन को पलीता लगा रहे हैं। अथवा बाबासाहेब के आंदोलन रूपी रथ को बीच चौराहे पर छोड़कर दूशमनों की गोद में जा बैठे हैं। इन बिके हुए नेताओं ने वहां जाकर समाज की समस्याओं और पीड़ा की ओर न देखते हुए आंखों पर पट्टी बांध ली है, कानों में रूई ठूंस ली है और मुंह पर ताला लगा लिया है। ये सभी नेता मुख्यमंत्री और मंत्री बनने के चक्कर में समाज को रोज पिटवा और लुटवा रहे हैं। अगर भारत एक हिंदू राष्ट्र बनता है तो वह इन्हीं के कारण बनेगा या उस जनता के कारण बनेगा जो झूठे वादों में फंसकर दुश्मनों के हाथों ठग ली जाती है। अपनी जनता में जाकर जागृति जगाने का काम कोई नेता नहीं कर रहा।
बल्कि हमें लगता है कि आप हमसे प्रतिस्पर्धात्मक ईर्ष्या रखने वाले प्रकाशकों के हाथों में खेल रहे हैं। अतः आपको ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द से आपत्ति नहीं है बल्कि सम्यक प्रकाशन से आपत्ति है। आप सम्यक प्रकाशन को बंद करवा कर क्या आरएसएस की पुस्तकें प्रचारित करवाना चाहते हैं?क्या आप चाहते हैं कि हम हनुमान चालीसा छापना शुरू कर दें। मैं पूरे संयम के साथ उस भाषा शैली और बोलने के अंदाज में बात नहीं कर रहा हूं जिसमें तुमने मेरे साथ की है। आप दुनिया में शायद अपने अलावा और किसी को जानते ही नहीं हैं। इसलिए मुझे आप जैसे अन्जान व्यक्ति से किसी सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है। मगर मैंने आप जैसे कई लोग देखे हैं जो अपने मां-बाप से भी इसी तरह बदतमीजी से बोलते हैं। आप मुझे जानते नहीं, मैं तुम्हारे बाप की उम्र का हूं फिर भी मैं तुम्हारे जैसे बिगड़ैल बच्चों से अच्छी तरह निपटना जानता हूं।
अगर आपकी प्राथमिकता ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द के स्थान पर ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को लिखवाने की होती तो आप एक सभ्य और समझदार आदमी की तरह सौहार्दपूर्ण तरीके के साथ हमसे बात करते। अगर आपकी बात से सम्यक प्रकाशन का परामर्श मंडल सहमत हो जाता तो यह काम हम तुरंत कर देते। हमारे मुक्तिदाता बाबासाहेब बहिष्कृत भारत के 06.09.1929 के संपादकीय में खुद लिखते हैंकृ”प्रतिकूल परिस्थिति के कारण मन पर कभी-कभी निराशा के बादल छा जाते हैं फिर भी हमने अपने मन पर निराशा की पकड़ मजबूत नहीं होने दी है। हमारे हाथों से गलती नहीं होती है, ऐसा हमारा कहना नहीं है। यदि किसी ने प्रामाणिक बुद्धि से हमारी गलतियों को बता दिया तो उसका हमें बिल्कुल बुरा नहीं लगेगा। इतना ही नहीं, हम उस आदमी का आभार मानते हुए उस आलोचना पर विचार करने हेतु सदैव तत्पर रहते हैं। मानव समाज में आखिर सर्वज्ञ कौन है?“
मगर अपने महापुरुष की शिक्षाओं को दर-किनार करके तुम तो एकदम गऊ रक्षक की भूमिका में आकर बदतमीजी पर उतर आए। इसलिए किसी को बदनाम करने से पहले उनका परिचय तो ले लो। आपको यह भी पता नहीं है कि सम्यक प्रकाशन केवल पुस्तक छापने वाली कंपनी नहीं है बल्कि एक सशक्त बहुजन आंदोलन की पहचान है। इसमें एक-एक शब्द को जांच परखकर स्वीकारा जाता है। इसके माध्यम से भारत भर के करीब 400 लेखक अपनी सहायता से बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर के आंदोलन को घर-घर तक पहुंचाने में लगे हैं। सम्यक प्रकाशन का कार्य बहुत प्रामाणिक होता है इस कारण विद्वान पाठकों एवं शोधार्थीयों की नजर में सम्यक प्रकाशन का बहुत सम्मान है।
खरात जी! असल में आरएसएस की एजेंसी तो आपने ले रखी है। आरएसएस जैसे हमारे लोगों को देशद्रोही और राष्ट्र-विरोधी कह कर प्रताड़ित कर रहा है। उसी प्रकार उसी तर्ज पर आप हम जैसे समर्पित लोगों को आरएसएस का एजेंट कह रहे हो। आरएसएस के कई बड़े लोग नकली डिग्रीधारी साबित हो रहे हैं। उसी प्रकार आप भी उन्हीं की भांति फर्जी प्रोफेसर बने फिरते हो। आपको जनता को बताना चाहिए कि आपने कहां से शिक्षा पाई और आप किस कॉलेज में प्रोफेसर हो। *आपकी उल्टी-सीधी बात मान लो तो ठीक, वरना हो गए आरएसएस के एजेंट*।
किसी विषय से असहमत होना अथवा सकारात्मक सुधार की अपेक्षा करना कोई बुरी बात नहीं है। मगर यह कहने से पहले कि मैं ‘पंथ निरपेक्ष’ शब्द के कारण तुम्हारी जयभीम डायरी को जला दूंगा, बहुत लज्जाजनक बात है। कारण यह है कि उस डायरी में तो बाबासाहेब और भगवान बुद्ध सहित हमारे सारे महापुरुषों के चित्र एवं सूचनाएं उपलब्ध हैं। क्या उन्हें भी जला दोगे?
हम बाबासाहेब का सम्मान करते हैं। उनके जीवन में आए तमाम महापुरुष भी बाबासाहेब के जीवन का हिस्सा हैं। उनके वगैर भीम कहानी पूरी नहीं होती। बाबासाहेब ने महाड सत्याग्रह के दौरान जब गंगाधर नीलकण्ठ सहस्त्रबुद्धे जी नामक ब्राह्मण को साथ लेकर मनुस्मृति को जलाया था तो उनके कई अनाड़ी साथियों ने यह आपत्ति जताई थी कि आप ब्राह्मण को साथ क्यों रखते हो तो बाबासाहेब ने कहा था कि मैं ब्राह्मण के नहीं अपितु ब्राह्मणवाद के विरुद्ध हूं। उनकी बात भी ठीक ही है। उसी प्रकार जब उन्होंने यह कहा था कि मैं भारत को बौद्धमय करूंगा तो इसका भी मतलब यही था कि मैं सभी जाति के लोगों को बौद्ध धर्म में लाऊंगा। ऐसे में उनकी धर्म पत्नी रही डॉ. सविता आंबेडकर को ब्राह्मणी होने के नाते बदनाम करना कहां तक उचित है। सभी जानते हैं कि पूज्य माता रमाबाई ने हमारे बाबासाहेब को जवानी में संभाला था तो माई साहब सविता आंबेडकर ने उन्हें वृद्धावस्था में संभाला था। हम उन पर निराधार आक्षेप करके बाबासाहेब के निर्णय का ही अपमान करते हैं। इससे बाबासाहेब का ही अपमान होता है साथ में यह भी सिद्ध होता है कि आप नारी विरोधी हो। आज न तो हमारे बीच में बाबासाहेब हैं और न ही डॉ. सविता आंबेडकर। उनके बारे में नकारात्मक रूप से प्रचार करना और यह कहना कि उसने बाबासाहेब की हत्या की थी। इसका मतलब यह हुआ कि हत्या के समय विलास खरात मौकाय-वारदात पर मौजूद थे। यह एक कुत्सित प्रयास है भोली-भाली जनता की भावनाओं को कैश करने का।
हमने सोहनलाल शास्त्री, शंकरानंद शास्त्री आदि महान लेखकों की पुस्तकें छापी हैं। मगर उनमें काट-छांट करने का काम इसलिए नहीं किया कि ऐसा करना अनैतिक एवं कानूनी दृष्टि से अपराध होता है। मगर जब हम यह जान गए कि माई जी को दुर्भावना के साथ बदनाम किया गया तो इसमें बुराई क्या है?आप उन्हें हत्यारन कहते हो तो  कहते रहो, मगर जब हम उनके प्रति आदरवश अपने कैलेण्डर में उनका फोटो छापते हैं तो आपको आपत्ति क्यों होती है। वैचारिक स्वतंत्रता का कत्ल करने के लिए तो आरएसएस ही काफी है कम से कम आप तो यह काम मत करो। 
एक वरिष्ठ व्यक्ति होने के नाते मेरा आपको विनम्र परामर्श है कि आप जब मर्जी हमारे पास आकर बुद्धिपरक चर्चा करें। आप दादागिरी के बल पर किसी और को तो डरा सकते हो पर शांति स्वरूप बौद्ध को डरा पाना आपके बस की बात नहीं है।
आप खुद समाज को सकारात्मक दृष्टि देने के स्थान पर नकारात्मक विचारों से बचे-कुचे सामाजिक संगठन को खोखला करने के अभियुक्त हैं। इसी मौके के लिए ज्ञानी लोग कह गए हैं की ‘चोर मचाए शोर’।
अंत में मैं बाबासाहेब के वे वचन रखना चाहूंगा जो उन्होंने 12 जुलाई, 1929 के बहिष्कृत भारत के संपादकीय में लिखे थे। उनका ऐतिहासिक कथन है किकृ”झूठी बातें, झूठे आरोप, बेकार की लफ्फाजी का प्रयोग कर बहिष्कृत वर्ग का स्वतंत्र आंदोलन तथा समतावादी आंदोलन को तहस-नहस करने का स्वप्न देखने वालों पर हमें दया आती है।“
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-✒ *शांति स्वरूप बौद्ध*

3 comments:

  1. बोद्धाचार्य शांति स्वरूप बोद्ध जी आप बहुत महान हो आपका मुकाबला कोई नहीं कर सकता आप हमारे आदर्श हो!हम लोगों का विश्वास हो आप मैं आपकी स्पीच को बहुत ही ध्यान से सुनता हूँ और उस पर अमल भी करता हूँ धन्यवाद नमो बुद्धाय जय भीम जय मूलनिवासी जय संविधान

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  2. शांति बौद्धाचार्य जी आप बड़े नेक ओर स्वच्छ इरादे के संघर्षिल व्यक्ति थे आपका यू ख़ामोश होना बहुत खल गया मैं आपको अपना आदर्श मानता हूं आप ज्ञान के भण्डार थे आप बाबा साहब भगवान बुद्ध और तमाम बहुजन नायको के जीवन संघर्ष के बारे में जानते थे और लोगो को जागरूक भी करते थे बाबा साहब के असली अनुयायी तो आप थे
    मैं रमाकान्त गौतम आपको चरण बन्दन करता हु जय भीम जय भारत

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  3. शांति बौद्धाचार्य जी आप बड़े नेक ओर स्वच्छ इरादे के संघर्षिल व्यक्ति थे आपका यू ख़ामोश होना बहुत खल गया मैं आपको अपना आदर्श मानता हूं आप ज्ञान के भण्डार थे आप बाबा साहब भगवान बुद्ध और तमाम बहुजन नायको के जीवन संघर्ष के बारे में जानते थे और लोगो को जागरूक भी करते थे बाबा साहब के असली अनुयायी तो आप थे
    मैं रमाकान्त गौतम आपको चरण बन्दन करता हु जय भीम जय भारत

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