Tuesday, 1 August 2017

भारतीय मीडिया का कडवा सच

*भारतीय मीडिया का कडवा सच*
(पत्रकारिता कम चाटुकारिता ज्यादा) 

 साथियों,

जातिगत मानसिकता, जातिगत भेदभाव और जातिगत शोषण में मामले में भारत की मीडिया कंपनियां भी कम नहीं है। ये मीडिया हॉउस मोर्डेन होने का ढोंग करते है। लेकिन इनकी रगों में भी बही ब्राह्मणवादी सोच अपनी जड़ जमाए वैठी है। सूट-बूट पहन कर टेलीविजन चैनलों में बैठकर राष्ट्रिय महत्त्व के मुद्दों को दबाकर अपने राजनितिक, पूंजीपतियों व अन्य मनुवादी वैदिक ब्राह्मणी आकाओं को बचाने के लिए सनसनीखेज बनाकर टीवी पर भौकने वाले या फिर अंग्रेजी में जोर-जोर चिल्लाकर अपने आपको बहुत समर्पित एंकर व पत्रकार साबित की कोशिस करने वाले, ये तथाकथित एंकर व पत्रकार अपने आपको मोर्डेन सोच वाला पत्रकार और एंकर समझते है। हकीकत में ये सारे लोग एंकर व पत्रकार कम, व्यापारी ज्यादा है, जनता की आवाज कम, मनुवादी ब्राह्मणों के दल्ले ज्यादा है। किसी के जीवन की निजता का ख्याल करे बगैर, दूसरे के फटे में झाककर खबर देने को ये पत्रकारिता और एंकरिंग समझते है। देश की भोली-भाली जनता को सच्चाई से परे रखकर, उनको गुमराह करके, ये देशभक्ति का दावा ठोकते है। भारत का मीडिया हमारे दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और पिछड़े समाज के साथ ऐसा निर्मम, निकृष्ट और भेदभाव पूर्ण वर्ताव क्यों कर रहा है। भारत का मीडिया दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों की आवाज उठाने के बजाय उनकी आवाज को दबाने का प्रयास क्यों कर रहा है ? आज यही सबसे बड़ा प्रश्न है। ये सोचने का विषय है कि अखबारों, न्यूज चैनलों, पत्र-पत्रिकाओं में जो दिखता है, क्या वो हकीकत में भारत की आवाज है या फिर कुछ मनुवादी ब्राह्मणों और मनुवादी ब्रह्मणीं विचारधारा से बीमार लोगों की।

वर्तमान में बहुजन आंदोलन का सबसे बड़ा दुश्मन वादा ए बी जे पी दलाल मीडिया है जो सिर्फ और सिर्फ योगी मोदी सुबह से शाम तक और शाम से सुबह तक चिल्लाते रहता है लेकिन मेन मुद्दा को कभी भी नहीं दिखाता और नहीं कभी उस पर चर्चा करता इसलिए दोस्तों जागो और जगाओ समाज को शिक्षित करो जागरुक करो संगठित करो और घर पर को इस मनुवादी ब्राह्मणवादी व्यवस्था को सामंतवादी व्यवस्था को जो हमारे समाज का दुश्मन और देश का दुश्मन और देश और समाज के विकास का दुश्मन है यह व्यवस्था और परम पूज्य बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के विचार धाराओं को अपनाओ और देश और समाज को सशक्त बनाओ
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 [मध्य प्रदेश के दस जिलों के अध्ययन में सामने आयी हकीकत, स्कूल में पानी नहीं पी सकते 92 फीसदी दलित बच्चे! - Bhim Dastak] is good,have a look at it! http://bhimdastak.com/india/reality-in-the-study-of-madhya-pradesh-ten-districts/

*भोपाल।* आजादी के 69 साल बाद भी देश के दलित बच्चे भेदभाव का देश झेलने को मजबूर हैं। चाइल्ड राइट औब्ज़र्वेटरी एवं मप्र दलित अभियान संघ द्वारा किया गया हालिया सर्वे इस भयावह सच्चाई को बयां करता है। सर्वे के अनुसार 92 फीसदी दलित बच्चे स्कूल में खुद पानी लेकर नहीं पी सकते, क्योंकि उन्हें स्कूल के हैंडपंप और टंकी छूने की मनाही है। 57 फीसदी बच्चों का कहना है कि वे तभी पानी पी पाते हैं, जब गैरदलित बच्चे उन्हें ऊपर से पानी पिलाते हैं। 28 फीसदी बच्चों के माता-पिता का कहना था कि प्यास लगने पर उनके बच्चे घर आकर पानी पीते हैं, जबकि 15 फीसदी बच्चों को स्कूल में प्यासा रहना पड़ता है।

*कक्षा में आगे नहीं बैठने दिया जाता* :- सर्वे के अनुसार, 93 फीसदी बच्चों को कक्षा में आगे की लाइन में बैठने नहीं दिया जाता है। इसके अनुसार, 79 फीसदी बच्चे पीछे की लाइन में, जबकि 14 फीसदी बच्चे बीच की लाइन में बैठते हैं।

*गैरदलित शिक्षकों का व्यव्हार ठीक नही*ं :- 88 फीसदी बच्चों के अनुसार, उन्हें शिक्षकों के भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। 23 फीसदी बच्चों का कहना है कि गैरदलित की तुलना में शिक्षक उनसे ज्यादा सख्ती से पेश आते हैं। 42 फीसदी बच्चों ने कहा, शिक्षक उन्हें जातिसूचक नामों से पुकारते हैं।

इसी प्रकार 44 फीसदी बच्चों ने कहा कि गैरदलित बच्चें भी उनके साथ भेदभाव करते हैं। 82 फीसदी बच्चों के अनुसार मध्यान्ह भोजन के लिए उन्हें अलग लाइन में बिठाया जाता है।

*छुआछूत ने ले ली जान* :- हाल ही में दमोह जिले के खमरिया कलां गांव के स्कूल में पढ़ने वाले 8 साल के बच्चे की बावड़ी में गिरने से मौत हो गयी। बताया जाता है कि शिक्षक दलित बच्चों को स्कूल के हैंडपंप से पानी नहीं पीने देते थे। इस कारण से अभिषेक भाई और दोस्तों के साथ बावड़ी में पानी पीने गया था।

*ऐसे हुआ सर्वे* :-संघ द्वारा प्रदेश के पांच प्रमुख क्षेत्र बघेलखण्ड, बुंदेलखंड, चम्बल, महाकौशल और निमाड़ के 10 जिलों के 30 गांवों के 412 दलित परिवारों का सर्वेक्षण किया गया। इस दौरान इन गांवों के दलित सरपंच, शिक्षक, अधिकारी और कर्मचारियों से बात की गयी।

*सर्वे के निष्कर्ष* :- सर्वे में शामिल सभी गांवों में दलितों के साथ छुआछूत का प्रचलन है। यानि कोई भी गांव जाति आधारित छुआछूत से मुक्त नहीं है। मप्र में कुल मिलकर 70 प्रकार की छुआछूत प्रचलित है।

80 फीसदी गांवों में दलितों के मंदिर में प्रवेश पर रोक है। गांवों में नाई दलितों की कटिंग नहीं बनाते।

50 फीसदी गांवों में दलित बच्चों के आधुनिक नाम रखने पर गैर दलित उनकी पिटाई कर देते हैं।

बुंदेलखंड में सबसे ज्यादा 52 प्रकार की छुआछूत प्रचलित है। चम्बल में 49, निमाड़ में 41, बघेलखण्ड में 38 और महाकौशल में 17 प्रकार की छुआछूत प्रचलित है।


स्कूलों में होने वाले उपेक्षित व्यव्हार और भेदभाव के चलते कई प्रतिभाशाली दलित बच्चे बीच में ही पढाई छोड़ देते हैं। आंकड़े बताते हैं कि पढाई में होशियार होने के बाद भी दलित बच्चों को स्कूल में सबसे पीछे बैठने को मजबूर किया जाता है।

http://m.hindi.eenaduindia.com/States/East/Bihar/PatnaCity/2017/07/13223233/Sushil-Modi-Target-lalu-nitish-and -Tejashwi.vpf

http://upmuslim.blogspot.in/2016/04/blog-post_19.html?m=1

7 comments:

  1. https://youtu.be/NWAxB3dPlag

    कुलपति प्रो. त्रिपाठी को सुप्रीम कोर्ट ने भेजा नोटिस - http://riseupnews.com/2017/06/24/संवैधानिक-प्रावधानों-की/

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  2. [मध्य प्रदेश के दस जिलों के अध्ययन में सामने आयी हकीकत, स्कूल में पानी नहीं पी सकते 92 फीसदी दलित बच्चे! - Bhim Dastak] is good,have a look at it! http://bhimdastak.com/india/reality-in-the-study-of-madhya-pradesh-ten-districts/

    *भोपाल।* आजादी के 69 साल बाद भी देश के दलित बच्चे भेदभाव का देश झेलने को मजबूर हैं। चाइल्ड राइट औब्ज़र्वेटरी एवं मप्र दलित अभियान संघ द्वारा किया गया हालिया सर्वे इस भयावह सच्चाई को बयां करता है। सर्वे के अनुसार 92 फीसदी दलित बच्चे स्कूल में खुद पानी लेकर नहीं पी सकते, क्योंकि उन्हें स्कूल के हैंडपंप और टंकी छूने की मनाही है। 57 फीसदी बच्चों का कहना है कि वे तभी पानी पी पाते हैं, जब गैरदलित बच्चे उन्हें ऊपर से पानी पिलाते हैं। 28 फीसदी बच्चों के माता-पिता का कहना था कि प्यास लगने पर उनके बच्चे घर आकर पानी पीते हैं, जबकि 15 फीसदी बच्चों को स्कूल में प्यासा रहना पड़ता है।

    *कक्षा में आगे नहीं बैठने दिया जाता* :- सर्वे के अनुसार, 93 फीसदी बच्चों को कक्षा में आगे की लाइन में बैठने नहीं दिया जाता है। इसके अनुसार, 79 फीसदी बच्चे पीछे की लाइन में, जबकि 14 फीसदी बच्चे बीच की लाइन में बैठते हैं।

    *गैरदलित शिक्षकों का व्यव्हार ठीक नही*ं :- 88 फीसदी बच्चों के अनुसार, उन्हें शिक्षकों के भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। 23 फीसदी बच्चों का कहना है कि गैरदलित की तुलना में शिक्षक उनसे ज्यादा सख्ती से पेश आते हैं। 42 फीसदी बच्चों ने कहा, शिक्षक उन्हें जातिसूचक नामों से पुकारते हैं।

    इसी प्रकार 44 फीसदी बच्चों ने कहा कि गैरदलित बच्चें भी उनके साथ भेदभाव करते हैं। 82 फीसदी बच्चों के अनुसार मध्यान्ह भोजन के लिए उन्हें अलग लाइन में बिठाया जाता है।

    *छुआछूत ने ले ली जान* :- हाल ही में दमोह जिले के खमरिया कलां गांव के स्कूल में पढ़ने वाले 8 साल के बच्चे की बावड़ी में गिरने से मौत हो गयी। बताया जाता है कि शिक्षक दलित बच्चों को स्कूल के हैंडपंप से पानी नहीं पीने देते थे। इस कारण से अभिषेक भाई और दोस्तों के साथ बावड़ी में पानी पीने गया था।

    *ऐसे हुआ सर्वे* :-संघ द्वारा प्रदेश के पांच प्रमुख क्षेत्र बघेलखण्ड, बुंदेलखंड, चम्बल, महाकौशल और निमाड़ के 10 जिलों के 30 गांवों के 412 दलित परिवारों का सर्वेक्षण किया गया। इस दौरान इन गांवों के दलित सरपंच, शिक्षक, अधिकारी और कर्मचारियों से बात की गयी।

    *सर्वे के निष्कर्ष* :- सर्वे में शामिल सभी गांवों में दलितों के साथ छुआछूत का प्रचलन है। यानि कोई भी गांव जाति आधारित छुआछूत से मुक्त नहीं है। मप्र में कुल मिलकर 70 प्रकार की छुआछूत प्रचलित है।

    80 फीसदी गांवों में दलितों के मंदिर में प्रवेश पर रोक है। गांवों में नाई दलितों की कटिंग नहीं बनाते।

    50 फीसदी गांवों में दलित बच्चों के आधुनिक नाम रखने पर गैर दलित उनकी पिटाई कर देते हैं।

    बुंदेलखंड में सबसे ज्यादा 52 प्रकार की छुआछूत प्रचलित है। चम्बल में 49, निमाड़ में 41, बघेलखण्ड में 38 और महाकौशल में 17 प्रकार की छुआछूत प्रचलित है।

    स्कूलों में होने वाले उपेक्षित व्यव्हार और भेदभाव के चलते कई प्रतिभाशाली दलित बच्चे बीच में ही पढाई छोड़ देते हैं। आंकड़े बताते हैं कि पढाई में होशियार होने के बाद भी दलित बच्चों को स्कूल में सबसे पीछे बैठने को मजबूर किया जाता है।


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  3. http://upmuslim.blogspot.in/2016/04/blog-post_19.html?m=1

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  4. http://www.saffronswastik.com/one-day-entire-country-will-cry-decision-sardar-vallabhbhai/

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  5. http://m.navbharattimes.indiatimes.com/india/number-of-atheists-increased-in-india/articleshow/20291476.cms

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  6. http://www.dainikbharat.org/2017/07/pm_4.html?m=1

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  7. *कम उपलब्धियों वाली सरकार सबसे ज्यादा विज्ञापन देती है ।*🤑🤑🤑
    ✒ *प्रोफेसर विवेक कुमार*
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    📺🗞📰 *टीवी एवं समाचार पत्रों में विज्ञापन लोगों को सरकार की उपलब्धियां बताने के लिए नहीं 📹🎞मीडिया घरानों के मुँह 🤐 बंद करने के लिए दिए जाते हैं*, *कहीं मीडिया वाले सरकार के झूठ की पोल ना खोल दे।*
    *इसलिए सबसे कम उपलब्धियाें वाली सरकार सबसे ज्यादा विज्ञापन देती है।और 📹📰 मीडिया घराने उन सरकारों के पीछे सबसे ज्यादा पड़ जाते है।*
    *जो सरकारें मीडिया घरानों को सबसे कम विज्ञापन देती है।*

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