Friday, 4 August 2017

संविधान शंशोधन मनुवादी का है प्लान

मनुवादी का है प्लान संविधान शंशोधन कर बहुजन की राजनितिक खत्म करना और बहुजन के सभी अधिकारो से वंचित रखना । इस लिये मनुवादी विचार वाले लोग मिल गए है । और इनका केवल उदेशय है बाबा साहब की संविधान को खत्म करना । और मनु विधि विधान को लागु करना । जब देश के दलित  मा0 राष्ट्रपति शपत लिए तो बाबा साहब का नाम नही लिये क्योकि वो दलित नहीं बल्कि मनुवादी हैं । और बिहार में भी नितीश कुमार ने भी अपना मनुवादी विचार को बहुजन जनता के सामने प्रकट कर ही डाली और दलित को बाटा भी महादलित में । और बिहार के दलित नेता के बारे में आप तो जानते ही होंगे । सभी मनुवादी के गोद में जा बैठे है   । क्योकि उन्हें अपनी दलित  समाज से पहले प्यार था जब तक वो कुर्सी पर नहीं थे । अभी तो कुर्सी हासिल की है  तो उन्हें ससुराल पसंद आएगा ही जब उनकी मनुवादी बीबी लात मारेगी तो अपने आप को दलित - दलित चिल्लाते हुए  बाबा साहब अम्बेडकर की याद आएगी ।

👉इन सभी वर्तमान स्थिति को देखते हुए  भारत के सभी बहुजन युवाओ को संगठित होना होगा । और आंदोलन के लिए रोड पर आना होगा ।

और जितने भी मनुवादी विचार वाले  दलित नेता आरक्षित पर चुनाव लड़ते है उनके खिलाफ आंदोलन करनी होगी तब ये लोग समझगे अपनी औकाद ।

आरक्षण को एकदम खत्म करने की बात करना पगलपन है, लेकिन भाजपा सरकार आरक्षण को उस स्तर तक पहुंचा देगी, जहां उसका होना या नहीं होना बराबर होगा। इस दिशा में काम शुरू हो गया है।

उपरोक्त बातें एक महिला पत्रकार के सवाल के जवाब में भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कही है। महिला पत्रकार का सवाल था कि 97 फीसदी मार्क्स लाने के बाद भी प्रवेश विश्वविद्यालयों में नहीं मिल रहा है। जबकि 50 फीसदी वाले छात्र कक्षा में बैठ जाते हैं।

पैर के नीचे की ज़मीन खोदने के कई तरीके होते हैं। जरूरी नहीं कि इसे दिखाकर ही किया जाए। सुब्रह्मण्यम स्वामी ने जो कहा, भाजपा सरकारें इस काम में लगी हुई हैं। अभी हमारे लोगों को नहीं दिख रहा, लेकिन वंचित तबकों के वजूद की संवैधानिक ज़मीन दरकाने का काम अंदर-अंदर तेजी में चल रहा है।

http://farkindia.org/the-bjp-leader-said-we-bring-reservation-at-end-point/


*मात्र संचार से नहीं बल्कि जनसंपर्क से जनक्रांति आएगी*
मानाकि अत्याधुनिक सोशल मीडिया हमारे लिए संचार का एक महत्वपूर्ण वरदान है पर जितना यह साधन महत्वपूर्ण है उससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है इसका सदुपयोग करना,बेशक इससे समाज में संचार में अभूतपूर्व संचार क्रांति आयी है,पर यह भी सच है कि यह क्रांति जमीनी पकड़ से अब भी बहुत दूर है अधिकतर लोग घर बैठे ही जंग लड़ने का प्रयास कर रहे हैं अधिकतर लोग अब भी घर से बाहर निकलना ही नहीं चाहते ,इस तरह मात्र जानकारी  लेकर ही हम किसी भी जंग को कभी भी नहीं जीत सकते उसके लिए हमें जनसंपर्क के लिए जमीन पर उतरना ही पड़ेगा,मानाकि हम आज हर जानकारी से पूर्णतया लैस हैं पर उसका स्तेमाल करने में पूर्णतया विफल साबित हो रहे तो प्राप्त जानकारी का कोई सार्थक मतलब ही नहीं है,हाँ यह बात तो सच है कि शिक्षा और संचार के पूर्णतया अभाव के कारण ही हमें धूर्तों नें गुलामी के गहरे गर्त में धँसने के लिए अब तक विवश किया हुआ था पर आज ठीक इसका उल्टा है आज हमारे पास डा.बाबासाहब के संवैधानिक कलम की कमाल की ताकत है इसलिए हमें इतिहास और महापुरुषों की भले ही जानकारी टुकड़ों टुकड़ों में मिल रही हो पर आज का शिक्षित वर्ग इस सोशल मीडिया के माध्यम से पूरी तरह हर जानकारी से लैस है ,जो जानकारी हमें कभी नहीं मिल पाती थी आज मिनटों में हमारे हाथ होती है और हम प्रतिक्रिया के लिए तैयार हो जाते हैं,समाज में हम पर हो रहे अन्याय,अत्याचार,जघन्य अपराध,हत्याएं और बलात्कार हमें तुरंत मालूम पड़ते हैं और हम अपनी उपस्थिति तुरंत दर्ज कराते हैं लेकिन फिर भी अधिकार,अन्याय तथा आंदोलन के लिए हमें हर घर तक लोगों के बीच जाना ही पड़ेगा,इसलिए अपनें कार्यक्रमों में थोड़ी सी तब्दीली कीजिये और इस संचार माध्यम में सिर्फ जानकारी लेने तक ही समय व्यतीत कीजिये बाकी अधिकतम समय घर घर जाकर जनसंपर्क में लगाइये,और लोगों को जागरूप करनें में पूरा सहयोग कीजिये ताकि लोग अपनें अधिकारों तथा अन्याय के लिए आपके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए तैयार हो सकें.


 हमारे समाज में लोग कब भीड़ में तब्दील हो जाऐंगे और कब तमाशाबीन हो जाऐंगे कहा नहीं जा सकता.हमारे समाज का यह दोगला चरित्र है.नोटबंदी हुई तो आक्रामक भीड़ में बदलने के बजाय तमाशाबीन बन गए.ईवीएम की कारगुजारियों ने विरोध का मौका दिया तो भी तमाशाबीन ही रहे.अब जबकि जीएसटी ने उन्हें फिर से भीड़ में बदल इतिहास रच डालने का मौका दिया है तो फिर तमाशाबीन हैं.हमारे देश में तमाशा बड़े शौक से और घुस कर देखने की परंपरा जो रही है.
हां, इसी भीड़ का पराक्रम तब देखिए जब किसी निरीह के घर गौमांस की अफवाह आ जाए अथवा कोई गाय-बैल ले जाता हुआ मिल जाय.निर्दोष प्रेमी-प्रेमिका को सताने का मामला हो या दलित-सवर्ण विरोध का या फिर जंतर-मंतर पर राजनीतिक कलाबाजियां दिखाने का.महिला हो,वृद्ध हो या बच्चा, यह पराक्रमी भीड़ पीट-पीट कर मार डालने में भी संकोच नहीं करती.
ऐसी भीड़ से डरिये क्योंकि ऐसी भीड़ को समर्थन देने वालों की सरकार है अभी.


*परमपूज्य बाबासाहेब के द्वारा हिन्दू धर्म के ठेकेदारों पर उठाए गए कुछ सवाल????*

बाबासाहेब कई प्रश्न खड़े करते हैं. जैसे क्या एक हिन्दू को इससे क्या आघात पहुँच सकता है:?? यदि एक अस्पृश्य (शुद्र obc sc st) साफ वस्त्र पहने, यदि वह अपने घर पर खपरैल की छत डालता है, यदि वह अपने बच्चे को स्कूल भेजना चाहता है, यदि वह अपना धर्म बदलना चाहता है, यदि वह अपना सुन्दर एवं सम्माननीय नामकरण करता है, यदि वह अपना घर का द्वार मुख्य सड़क की ओर खोलना चाहता है, यदि वह कोई प्राधिकार वाला कोई पद प्राप्त कर लेता है, भूमि खरीद लेता है, व्यापार करता है, आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो जाता है और उसकी गिनती खाते-पीते लोगों में होने लगती है? ऐसे कई सवाल बाबासाहेब ने उठाए. फिर वे लिखते हैं, “सभी हिन्दू, चाहे सरकारी हो या गैर सरकारी, मिलकर अस्पृश्यों का दमन क्यूँ करते हैं? सभी जातियां, चाहे वे आपस में लड़ती झगड़ती, हिन्दू धर्म की आड़ में एकजुट होकर क्यों साजिश करती हैं और अस्पृश्यों को असहाय स्थिति में रखती हैं.” अपने आस-पास की परिस्थिति की पड़ताल करें इसी तरह चर्चा और सोच अब भी पाएंगे, और यदि आप पास हैं तो फुसफुसाहट में!

बाबासाहेब को पढ़ते हुए एक जगह मैं ठहर 🕴सा जाता हूँ जब वे लिखते हैं, “सामान्यतः हिन्दू अति विनम्र लोग होते हैं”. मैं आश्चर्यचकित रह जाता हूँ कि बाबासाहेब को यह अति विनम्रता कहाँ से दिखी? लेकिन इसका जबाव आगे मिल जाता है जब वे लिखते हैं, “लेकिन जब हिन्दू जैसे अति विनम्र लोग बेशर्मी और निर्ममता से आगजनी, लूटमार और हिंसा का सहारा लेकर पुरुषों, महिलाओं और बच्चों पर अत्याचार करने लगते हैं, तो यह विश्वास करना पड़ता है कि निश्चय ही कोई ऐसा बाध्यकारी कारण होगा, जो अस्पृश्यों के इस विद्रोह को देखने पर हिन्दुओं को पागल बना देता है और वे ऐसी अराजकता पर उतारू हो जाते हैं”.

दोस्तों यहाँ ध्यान देने की बात है कि बाबासाहेब बार-बार ‘अस्पृश्यों का विद्रोह’ शब्द का इस्तेमाल करते हैं. यह ‘विद्रोह’ सिर्फ अपने मानवीय अधिकारों की मांग मात्र है, जिसे उस  समय हिन्दुओं द्वारा ‘विद्रोह’ समझा जाता था.

आगे बाबासाहेब लिखते हैं, “यदि आप किसी हिन्दू से पूछेंगे कि वह ऐसा बर्बर व्यवहार क्यूँ करता है?….वह कहेगा, अस्पृश्यों के जिस प्रयास को आप सुधार कहते हैं, वह सुधार नहीं है. वह हमारे धर्म का घोर अपमान है. यदि आप फिर पूछेंगे कि इस धर्म की व्यवस्था कहाँ है, तो पुनः उसका उत्तर सीधा-सा होगा – हमारा धर्म, हमारे शास्त्रों में है.

अपने और अपने समाज के मान सम्मान सम्मान इज्जत अधिकार और हक की रक्षा करना चाहते हैं सुखमय जीवन बनाना चाहते हैं तो बाबासाहेब के मूल सिद्धांतों और विचारों को आपको अपनाना होगा उन्हें आत्मसात करना होगा तभी हम विकास के पथ पर  सकते हैं
बाबासाहेब के सपने का भारत बना सकते हैं



सीबीएसई ने नीट में सवर्णों छात्रों को आऱक्षित कर दिया है। इसे लेकर एक व्यापक बहस शुरू हो चुकी है। इस कदम को आरक्षण खत्म करने की शुरूआत के तौर पर देखा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद सीबीएसई ने देशभर में इसे लागू कर दिया है। इसके अनुसार आरक्षित वर्ग का उम्मीदवार चाहे सबसे ज्यादा नंबर ले आए लेकिन वह सिर्फ आरक्षित कोटे में ही नौकरी पाएगा। यानि सवर्णों के लिए 50.5 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था कर दी गई है।

इस मामले पर वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने लिखा है…

अपने बच्चों को बचाओ!

SC, ST, OBC के ख़िलाफ़ आज़ादी के बाद का यह सबसे बड़ा फ़ैसला है, लेकिन हम चुप हैं, क्योंकि हम एक मरे हुए समाज के नागरिक हैं! यह मान लेने में कोई हर्ज नहीं है।

बाबा साहेब ने कारवाँ को जहाँ तक पहुँचाया था, वह पीछे जा रहा है। आने वाली पीढ़ी हमें गालियाँ देंगी कि हम कितने रीढविहीन थे।

क़लम की नोक पर एक झटके में SC, ST, OBC के नौ हज़ार स्टूडेंट्स इस साल डॉक्टर बनने से रह जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि 50.5% सीटों पर SC, ST, OBC का कोई नहीं आ सकता। जनरल मेरिट में टॉपर हो, तो भी नहीं।

केंद्र सरकार इसके ख़िलाफ़ अपील करने की जगह, तत्परता से इसे लागू कर रही है।

मामला सिर्फ़ मेडिकल का नहीं है। आगे चलकर यह आदेश इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट और यूपीएससी और पीसीएस तक आएगा। कई राज्यों में यह पहले से लागू है। लाखों स्टूडेंट्स पर असर पड़ेगा।

मुझे नहीं मालूम कि समाज की नींद कैसे खुलेगी। हमारे पॉलिटिकल क्लास की चिंताओं में यह कैसे शामिल हो पाएगा।

जो नेता इस मुद्दे को उठाएगा, उस पर फ़ौरन भ्रष्टाचार का केस लग जाएगा। क्या हम उस नेता के साथ खडें होंगे? अगर नहीं, तो कोई नेता जोखिम क्यों लेगा?

पाँच हज़ार लोग भी सड़कों पर आ जाएँ, सारे लोग अपने जनप्रतिनिधियों पर दबाव डालें, तो आपके समाज के लाखों बच्चों का भविष्य बच जाएगा।

लेकिन क्या आप अपने बच्चों को बचाना चाहते हैं?


1 comment:

  1. महामहिम राष्ट्रपति महोदय,
    आपको भारतीय संविधान के संरक्षक के रूप में निर्वाचित होने व् शपथ लेने पर लाखों शुभकामनायें| आपने जिस समय में पदभार संभाला है, देश में संविधान के अनुच्छेद १६, खासकर १६(४), के खिलाफ परिस्थितियों का निर्माण बड़ी तेजी के साथ हो रहा है| आपकी कुलाध्यक्ष्ता में चलने वाले केंद्रीय विश्वविद्यालयों में, मानव संसाधन विकास मंत्रालय व विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नियमानुसार २५ अगस्त २००६ से सभी शैक्षणिक पदों पर अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए आरक्षण की व्यवस्था है| इसके लिए यूजीसी द्वारा जारी विस्तृत दिशा निर्देश आरक्षण पर भारत सरकार के नियमों व सुप्रीम कोर्ट के प्रसिद्ध निर्णयों (इंदिरा साहनी व आर के शबभरवल) से सम्पोषित थे| समय -समय पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय व यूजीसी ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों में सभी पदों पर रिजर्वेशन का निर्धारण विषयवार/विभागवार न करके विश्वविद्यालय स्तर पर करने के दिशा-निर्देश जारी किये थे, तथा विश्वविद्यालय तदनुसार नियुक्तियां भी कर रहे थे| यह आसानी से समझा जा सकता है कि विषयवार आरक्षण का निर्धारण करने पर अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए आरक्षित शैक्षिणिक पदों की संख्या ज्यादातर विभागों में लगभग नगण्य हो जाती है, तथा छोटे विभागों में पूरी तरह समाप्त हो जाती है| हाल ही में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) व इलाहबाद विश्वविद्यालय के मामले में, इलाहबाद हाई कोर्ट ने आरक्षण का निर्धारण विषयवार करने को कहा है तथा यूजीसी को उचित दिशा निर्देश बनाने को कहा है| यह उल्लेखनीय है कि भारत सरकार ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी है| दुसरे शब्दों में यह अनुच्छेद १६(४) को ख़त्म करने के बराबर है| इस अनिश्चितता में इलाहबाद विश्वविधालय में शैक्षणिक पदों पर नियुक्तियां बंद है जबकि बीएचयू के कुलपति आनन् - फानन में विज्ञापन निकालकर रात दिन एक करके धुआंधार नियुक्तियां करने में लगे है, तथा सभी शैक्षणिक पदों को अनारक्षित वर्ग के लोगों से भर देना चाहते है| मैं आपका ध्यान बीएचयू में हो रही निम्नलिखित अनियमितताओं की ओर आकर्षित कराना चाहता हूँ:
    १. जब बीएचयू से सूचना अधिकार के तहत वर्तमान में आरक्षण की स्थिति व रोस्टर के सम्बन्ध में जानकारी मांगी गयी तो उसने सूचना देने में असमर्थता दिखाई| ऐसा लगता है बीएचयू ने रोस्टर बनाये ही नहीं है|
    २. रिजर्वेशन रोस्टर व आरक्षित पदों की संख्या को बीएचयू की वेबसाइट पर नहीं डाला गया है जोकि सूचना अधिकार अधिनियम व यूजीसी के निर्देशो का उलंघन है|
    3. इंटरव्यू के २१ दिन पहले साक्षातर पत्र देने की प्रक्रिया का भी पालन नहीं किया जा रहा है| लोकल एक्सपर्ट को बुलाकर इंटरव्यू किया जाता है, तथा तुरंत ही कार्यकारी परिषद् की बैठक किये बिना ही नियुक्ति पत्र जारी कर दिए जाते है| ऐसा बीएचयू सहित किसी भी विश्वविद्यालय में पहले नहीं देखा गया है|
    ४. ऐसा प्रतीत होता है कि कुलपति निजी स्वार्थ में ये सब जल्दबाजी कर रहे है| जैसा कि समय समय पर बीएचयू के कुलपतियों पर आरोप स्थानीय अख़बारों में प्रकाशित होते रहते है| इनका कार्यकाल भी तीन महीने बाद समाप्त हो रहा है|
    मेरा पूर्ण विश्वास है कि ये सब आरक्षण विरोधी नियुक्तियां मानव संशाधन विकास मंत्रालय व बीएचयू के कुलपति की मिली-भगत से हो रही है| ऐसे में मेरा आपसे अनुरोध है कि संलग्न दस्तावेजों का अध्य्यन कर निम्नलिखित कार्रवाही करके संविधान के अनुच्छेद १६(४) व ४६ को स्थापित करने का कष्ट करें:
    १. आप बीएचयू के कुलाध्यक्ष(विजिटर) होने के नाते, कुलपति द्वारा पिछले १ महीने में की गयी व की जा रही सभी नियुक्तियों पर रोक लगाने का कष्ट करे|
    २. भारत के राष्ट्रपति होने के नाते मानव संशाधन विकास मंत्रालय व यूजीसी को यथाशीघ्र अगस्त २००६ में आरक्षण पर यूजीसी द्वारा जारी किये गए दिशा निर्देशों को कानूनी रूप देने का कार्य करने का निर्देश दे जो कि देश के सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में समान रूप से लागू हो|
    महोदय इस मामले में आपके द्वारा की जाने वाली कार्यवाही, आपके लिए किसी परीक्षा से कम नहीं है तथा बीएचयू में जो हो रहा है वह विजिटर के रूप में आपके कार्यों का भी आइना है|
    सादर धन्यवाद

    भवदीय
    (महेश प्रसाद अहिरवार)
    दिनांक: २८ जुलाई, २०१७

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