Thursday 3 August 2017

जाति का अर्थ

"जाति का अर्थ

(_जाति_) का मतलब तो हमको पता है,
 परन्तु ये (_अनुसूचित_ ) का क्या मतलब है?
पढ़िए...
सन् 1931 में पहली बार उस समय के _ जनगणना आयुक्त ("_मी. जे. एच. हटन_") ने संपूर्ण भारत के _अस्पृश्य जातियों _ की _जनगणना_ की और बताया कि _‘भारत में 1108 अस्पृश्य जातियां_ है, और वे सभी जातियां (_हिन्दू धर्म के बाहर_) हैं।’
इसलिए, इन जातियों को (_बहिष्कृत जाति_) कहा गया है। उस समय के "_प्रधानमंत्री (_ रैम्से मैक्डोनाल्ड_") ने देखा कि हिन्दू, मुसलमान, सिख, एंग्लो इंडियन की तरह ( _बहिष्कृत जातियां _ एक स्वतंत्र वर्ग _ ) है।
 और इन सभी जातियों का _हिन्दू धर्म_ में समाविष्ट (_नही_ ) है,
इसलिए उनकी (_"एक "सूची"_) तैयार की गयी। उस (_"सूची"_) में समाविष्ट जातियों' को ही (_‘अनुसूचित जाति’ _ ) कहा जाता है।
 इसी के आधार पर भारत सरकार द्वारा _‘अनुसूचित जाति अध्यादेश_ 1935’_ के अनुसार _(कुछ सुविधाएं_ ) दी गई हैं।
 उसी आधार पर भारत सरकार ने _‘अनुसूचित जाति अध्यादेश 1936’_ जारी कर (_आरक्षण सुविधा प्रदान_) की।
 आगे _1936 के उसी अनुसूचित जाति अध्यादेश_ में _थोड़ी हेरफेर_ कर _‘अनुसूचित जाति अध्यादेश 1950’ _ पारित कर _(आरक्षण का प्रावधान_) किया गया।
निष्कर्ष 💐💐💐 💐💐💐
अनुसूचित जाति का नामकरण का उदय का इतिहास यही कहता है कि भारत वर्ष में 1931 की जनगणना के पहले की (अस्पशर्य~ बहिष्कृत~ हिन्दू से बाहर) जातियाँ थी। इन्ही बहिष्कृत जातियों की "सूची"तैयार की गई।
 और उसी (अश्पृषय ~ बहिष्कृत~ हिन्दू से बहार ) जातियोँ की ("_सूचि_") के 'आधार' पर डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर जी ने _ ब्राह्मणों के खिलाफ जाकर _ अंग्रेजो से लड़कर हमें "मानवीय अधिकार" दिलाने में "सफल" हुए।
"अनुसूचित जाति" (matalaba) एक ही है ...
तो हमें भी ये जान लेना चाहिए की अनुसूचित का मतलब उस दौर में (अश्पृषय ~ बहिष्कृत~ हिन्दू से बाहर), मतलब (_जो हिन्दू नहीं थी_ वे जातीया ) है। (_हिन्दू से स्वंतंत्र_ _वर्ण व्यवस्था से बाहर_पाँचवाँ अघोषित वर्ण ~ अतिशूद्र)
 (अनुसूचित जाती ) हमारी_ संवेधानिक पहचान_ है।
 और जो कुछ आज हम फायदा ले रहे हे वह _सिर्फ और सिर्फ_ मिलता हे _अनुसूचित जाति_ के नाम पर _ ना कि _दलित _वंणकर _चमार _या वाल्मीकि _के नाम पर ।
 और एक (हम लोग SC) हैं, "अनुसूचित जाति" नाम का उद्भव के _इतिहास की जानकारी _ होने के बावजूद भी हमारे लोग _हिन्दू हिन्दू_ को पकडे _ हुए हैं।
 अगर आप अभी भी _हिन्दू_ को पकडे हुवे तो ये _नेतिक रूप_ से _बाबासाहेब के सविधान_ का _अपमान_ कर रहे हे ।
 हमेशा याद रहे की (अनुसूचित) का मतलंब _सिर्फ और सिर्फ_ यही है कि जो लोग _हिन्दू धर्म _ में _नहीं है_वे लोग_अनुसूचित है।   
  ...Jay Bhim


 *भाषा की चतुराई समजिये....|*

खास कर के SC/ST/OBC के लोग

*मेन स्ट्रीम मीडिया के साथ हमारे कुछ मीडिया ने अभी अभी एक बड़ी न्यूज़ दी की “मायावती आज भी सबसे बड़ी दलित नेता”. यहाँ तक की यह बात सोशल मीडिया पर भी जोरों से चलाई गई और वह भी गर्व और गौरव के साथ |*

बेवकूफी समझ में आई ?

*जब आप ऐसे ही बात करेंगे तो आपके नेता की, आन्दोलन की, विचारधारा की स्वीकार्यता सिमित बनकर रह जाती है |*

फिर तो आसां हो जाता है उनके लिए हमें अलग थलग रखना...

*अगर दलित नेता है तो फिर, आदिवासी नेता, ओबीसी नेता भी होंगे.... इसमें इन्हें कोई एतराज नहीं है क्यूंकि यहाँ से फिर जाटव नेता, चमार नेता, महार नेता, मुंडारी नेता, गोंड नेता, यादव नेता, जाट नेता पैदा करना और आसान होता है और स्वीकार्यता और सिमित की जा सकती है |*

यह केवल आज के दौर की बात नहीं है... उनकी इसी चतुराई ने हे हमारी खटिया खडी कर रखी है |

*डॉ आंबेडकर को भी तो दलितों के मसीहा कह कर उनकी स्वीकार्यता सिमित करने का प्रयास आज तक हुआ है और अभी भी हो रहा है |*

ऐसा भी तो कहा जा सकता है की .....

*“मायावती आज के दौर के सामाजिक सुधार आंदोलन की सबसे बड़ी नेता”. और जब ऐसा कहते है तब वह एक विचारधारा का प्रतिक बन जाती है |*

हो सकता है की ऐसे में वह समाज सुधार के इच्छुक हर किसीकी स्वीकार्य नेता बने |

*मनुवादी घोर जातिवादी नफरती वहशी लोगों को तो यह गंवारा नहीं है की आपके समाज की प्रतिभा राष्ट्रिय बने और स्वीकार्य बने यह  मान लिया | इसीलिए तो वह पेरियार को प्रान्त और भाषा के नाम पर  केवल दक्षिण और उसमे भी केवल तमिलनाडु तक ही सिमित करने में सफल रहे | डॉ आंबेडकर को अछूतों तक सिमित कर दिया | फुले शाहू को कई साल तक महाराष्ट्र में ही कैद करके रखा |*

वो तो यह करेंगे है पर आज भी आप यह बेवकूफी क्यों कर रहे है ? पता नहीं कब हम इस भाषा की चतुराई को समजेंगे और प्रयोग में लायेंगे |

*लोकतंत्र में शब्द हथियार होते है... इसीलिए रणनीतिक शब्दों का चयन महत्वपूर्ण होता है | रणनीतिक शब्दों के बलबूते पर ही तो वह ३% होते हुए राष्ट्रीय है; और आप ८५ % होते हुए भी आपकी राष्ट्रीयता को खोजी जा रही है |*

इस बदमाशी को समजने की कोशिश कीजिये...

*दलित आदिवासी ओबीसी के नाम पर नेता के टैग हटाइए | अपने नेता ओ को, अपनी विचारधारा को, अपने आन्दोलन को, अपनी पहचान को जातीय संबोधन के आधार पर सिमित मत कीजिये | उसे बहुजन कहिये, मूलनिवासी कहिये, नेशनल कहिये समाजसुधार कहिये |*


बस थोड़ी सी भाषा की चतुराई को समजिये  और उसका प्रयोग किजीये |


*जाति का विनाश*
दोस्तों ऐसे तो आप लोग जानते ही हैं कि बाबासाहेब ने अपनी पूरी जिंदगी जाति प्रथा छुआछूत ऊंच नीच भेदभाव को खत्म करने में निछावर कर दिए

परमपूज्य बाबासाहेब डॉ.भीम राव आंबेडकर ने जाति के सवाल को अपने चिंतन का स्थायी भाव रखा। जब लाहौर के *जात पांत तोड़क मंडल ने उनको आमंत्रित किया तो उन्होंने अपना लिखित भाषण उन लोगों के पास भेज दिया लेकिन ब्राह्मण मानसिकता वाले आयोजकों ने उनको भाषण नहीं देने दिया। उसी भाषण को आज दुनिया उनकी कालजयी किताब, *''जाति का विनाश* के रूप में जानती है।

 इस किताब में  बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर ने बहुत ही साफशब्दों में कह दिया है कि जब तक जाति प्रथा का विनाश नहीं हो जाता तब तक  समता, न्याय और भाईचारे की शासन व्यवस्था नहीं कायम हो सकती। इस पुस्तक में जाति के विनाश की राजनीति और दर्शन के बारे में गंभीर चिंतन है। इस देश का दुर्भाग्य है कि आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विकास का इतना नायाब तरीका हमारे पास है, लेकिन उसका इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है।

बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर के समर्थन का दम ठोंकने वाले लोग ही जाति प्रथा को बनाए रखने में रुचि रखते हैं और उसको बनाए रखने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। *जाति के विनाश के लिए बाबासाहेब डॉक्टर आंबेडकर ने सबसे कारगर तरीका जो बताया था वह अंतर्जातीय विवाह का था,* लेकिन उसके लिए राजनीतिक स्तर पर कोई कोशिश नहीं की जा रही है, लोग स्वयं ही जाति के बाहर निकल कर शादी ब्याह कर रहे हैं, यह अलग बात है।

इस पुस्तक में बाबासाहेब डॉ आंबेडकर ने अपने आदर्शों का जिक्र किया है। उन्होंने कहा कि जातिवाद के विनाश के बाद जो स्थिति पैदा होगी उसमें स्वतंत्रता, बराबरी और भाईचारा होगा। एक आदर्श समाज के लिए आंबेडकर का यही सपना था। एक आदर्श समाज को गतिशील रहना चाहिए और बेहतरी के लिए होने वाले किसी भी परिवर्तन का हमेशा स्वागत करना चाहिए। एक आदर्श समाज में विचारों का आदान-प्रदान होते रहना चाहिए।

बाबा साहेब डॉ आंबेडकर का कहना था कि स्वतंत्रता की अवधारणा भी जाति प्रथा को नकारती है। उनका कहना है कि जाति प्रथा को जारी रखने के पक्षधर लोग राजनीतिक आजादी की बात तो करते हैं लेकिन वे लोगों को अपना पेशा चुनने की आजादी नहीं देना चाहते इस अधिकार को आंबेडकर की कृपा से ही संविधान के मौलिक अधिकारों में शुमार कर लिया गया है और आज इसकी मांग करना उतना अजीब नहीं लगेगा लेकिन जब उन्होंने उनके दशक में यह बात कही थी तो उसका महत्व बहुत अधिक था।

बाबा साहेब डॉ आंबेडकर के आदर्श समाज में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है, बराबरी। ब्राह्मणों के आधिपत्य वाले समाज ने उनके इस विचार के कारण उन्हें बार-बार अपमानित किया। सच्चाई यह है कि सामाजिक बराबरी के इस मसीहा को जात पात तोड़क मंडल ने भाषण नहीं देने दिया लेकिन आंबेडकर ने अपने विचारों में कहीं भी ढील नहीं होने दी।

बाबासाहेब के विचारों और सिद्धांतों को अपनाओ सुखमय जीवन बनाओ।।

3 comments:

  1. UP: मंदिर में घुस गया दलित, सवर्णों ने पिटाई कर दे दी अपवित्र करने की सजा http://www.nationaldastak.com/country-news/dalit-beaten-for-enter-in-temple/

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  2. हिन्दू धर्म की असलियत


    http://realhstry.blogspot.com/2017/08/blog-post_17.html?_utm_source=1-2-2

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