समुद्र मंथन दुनीया के सबसे बडे चुतीया पा.. मेसे एक,
तो आवो मित्रो जानते है कैसे हुआ था समुद्र मंथन??
दैत्यराज बलि का राज्य तीनों लोकों पर था। इन्द्र सहित देवतागण उससे भयभीत रहते थे। इस स्थिति के निवारण का उपाय केवल विष्णु ही बता सकते थे, अतः ब्रह्मा जी के साथ समस्त देवताभगवान विष्णु के पास पहुचे ! उन्होंने भगवान विष्णु को अपनी विपदा सुनाई। सब सुन कर विष्णु बोले तुम दैत्यों से मित्रता कर लो और क्षीर सागर को मथंन कर उसमें से अमृत निकाल कर पान कर लो।
दैत्यों की सहायता से यह कार्य सुगमता से हो जायेगा। इस कार्य के लिये उनकी हरशर्त मान लो और अन्त में अपना काम निकाल लो !! अमृत पीकर तुम अमर हो जाओगे और तुममें दैत्यों को मारने का सामर्थ्य आ जायेगा।
दैत्यराज बलि ने देवराज इन्द्र से समझौता कर लिया और समुद्र मंथन के लिये तैयार हो गये। मन्दराचल पर्वत को मथनी तथा वासुकी नाग को नेती बनाया गया। स्वयं भगवान श्री विष्णु कच्छप अवतार लेकर मन्दराचल पर्वत को अपने पीठ पर रखकर उसका आधार बन गये !!
समुद्र मंथन आरम्भ हुआ और समुद्र मंथन से निम्न चिजे निकली !!
1:- सबसे पहले जल का हलाहल विष निकला, विष को शंकर भगवान के द्वारा पान कर लिया गया उनका गला निला फड़ गया ।
2:- दूसरा रत्न कामधेनु गाय निकली जिसे ऋषियों ने रख लिया।
3:- फिर उच्चैःश्रवा घोड़ा निकला जिसे दैत्यराज बलि ने रख लिया।
4:- उसके बाद ऐरावत हाथी निकला जिसे देवराज इन्द्र ने ग्रहण किया।
5:- ऐरावत के पश्चात् कौस्तुभमणि समुद्र से निकली उसे विष्णु भगवान ने रख लिया !!
6:- फिर कल्पद्रुम निकला और रम्भा नामक अप्सरा निकली। इन दोनों को देवलोक में रख लिया गया।
7:- फिर समु्द्र को मथने से लक्ष्मी जी निकलीं। लक्ष्मी जी ने स्वयं ही भगवान विष्णु कोवर लिया।
8:- फिर एक के पश्चात एक चन्द्रमा, पारिजात वृक्ष तथा शंख निकले और अन्त में धन्वन्तरि वैद्य अमृत का घट लेकर प्रकट हुये। मित्रो आप खुद समझ सकते हो कि ये कितनी बडी बकवास है, पुरी तरह काल्पनिक और अवैग्यानिक है।। कितनी अजीब बात हे कि जब भगवान को भी कुछ चाहीये होती तो उन्हे भी महनत करना पडी ।।
वैसे तो समुर्द का मंथन करना कि एक महा गप है ।। फिर भी कुछ बेचारे लोग न चाहते हुए भी इसगप्पे को सच मानते है, इस पर स्वभाविक रुप से मेरे मन मे जो संकाये पैदा हो रही है वो कुछइस प्रकार है ।।
1:- सबसे पहले कि स्मुद्र का मंथन किया जा रहा है तो क्या यह समुद्र के किनारे प किया गया या फिर बिच गहराई मे, किनारे पर तो होगा नही तो बिच गहाराई मे किया गया तो देवता तो ठिक लेकीन सभी राक्षसो को भी पानी पर चलना आता था क्या ??
2:- समुद्र का मंथन करने से विष निकला ???? समुद्र का मंथन करने से अगर नमक निकलने की बात कही गयी होती तो बात कुछ हजम भी हो जाती, और शंकर भगवान ने विष पिया तो उनका गला निला पड गया, इसका मतलब विष बहुत जहरीला था, भगवान अगर और अधीक मात्रा मे पि लेते तो न जाने क्या अनर्थ हो जाता ।।
3:- कामधेनु गाय उच्चैःश्रवा घोड़ा और् एरावत हाथी समुद्र से निकले ये क्या मजाक है, अगर किसी मछली के निकलने की बात होती तो एक बार समझ आता, बेचारे मछुआरो कि जिन्दगी बीत जाती है समुद्र मे जाल फेंकते हुए उन्हे तो आज तक मछली और केकड़ो के अलावा कुछ नही मिला समुद्र से ???
4:- लक्ष्मी जी भी समुद्र मंथन से निकली, तो जवान होने तक लक्ष्मी जी समुद्र मे क्या कर रही थी, समुद से निकलने के बाद का उनके जिवन का लेखा झोखा है लेकीन उनके स्मुद्र के अंदर व्यतीत किये जिवन का लेखा जोखा क्यो नही है??? समुद्र से निकलते हि विष्णू ने लक्ष्मी से शादी करली तो कही एसा तो नही कि य सब लक्ष्मी को समुद्र से निकालने कि विष्णू की चाल तो नही थी????
5:- फिर चंद्र्मा भी समुद्र मंथन से निकला, मित्रो इस बात ने तो गप्पो की हद पार कर दि,चंद्रमा जितना बड़ा ग्रह जो आकार मे प्रथ्वी का एक चौथाई है, वो समुद्र से कैसे निकल सकताहै ???
6:- आखीरी मे समुद्र से अंम्रत का घडा लेकर धन्वंतरी देव निकले, धंनतरी भी तो देवता हि थे तो जब देवताओ को अंम्रत पीना हि था तो सिधा धन्वतरी देव से कह देते वो खुद अंम्रत लेकर आजाते उसके लिये ये सब झमेला करने की क्या जरुरत थी??? या फिर देवताओ के बिच इतना संमर्क भी नही था ???
मित्रो अगर आप चाहते है हमारा यह पेज कभी बंद ना गिरे तो मित्रो पेज के पोस्ट ज्यादा से ज्यादा लाईक शेअर करीये.. मित्रो आपका साथ ही मेरा ऊत्चाह है..
विदेशी ब्राम्हण बहुजनो से 11 रुपये और 21 रुपये का ही दक्षिणा क्यों लेते है?क्या राज है ?
और#डॉबाबासाहेबआंबेडकर जी ने 22 प्रतिज्ञा ही क्यों दिया अपने अनुयायियों को?
बहुजन गरीब व्यक्ति जब किसी से सहायता मांगता है तब उसे भीख और भिकारी कहा जाता है और ब्राम्हण जब बहुजनो से से पैसे लेता है तब उसे वह दक्षिणा कहता है भिक क्यों नहीं ?
दक्षिण शब्द से दक्षिणा शब्द बना। मौर्य साम्राज्य को विदेशी ब्राम्हणो ने खत्म किया और दक्षिण भारत में जब वे हमले के लिए गए तब उन्हें हराया गया ।बाद में षड्यंत्र से जीत लिया।मगर बहुत समय लगा। फिर भी ब्राम्हण दक्षिण दो यानि दक्षिणा दो यह अभी तक कहता है!!
11 आंकड़े को ब्राम्हणो इतना महत्व क्यों दिया?क्या राज है इसके पीछे?
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी ने सही कहा था कि बौद्ध धर्म बनाम वैदिक धर्म यही भारत का वास्तविक इतिहास है।अर्थात क्रांति और प्रतिक्रांति यह भारत का इतिहास है। मौर्य,बुध्द ने त्याग ,सिद्धान्त के आधार पर क्रांति की विदेशी ब्राम्हणो ने धोका, षड्यंत्र से प्रतिकान्ति की।आज भी वहीँ चल रहा है ।
बुद्ध धर्म में 10 आंकड़ा बहुत मायने रखता है । 3 रत्न (त्रिरत्न),4 आर्य सत्य ,5 शील यानि पंचशील,आर्य अष्टांगिक मार्ग (8 श्रेष्ठ मार्ग), 10 शील यानि दसशील,10 पारमिता यानि दस पारमिता ।यह 10 आंकड़े आंकड़े नही है सिद्धान्त है।इसलिए तथागत की जो भी प्राचीन मूर्तिया है उसमें उंगलियों के साथ की मुद्राएं है।वह 10 आंकड़े सिद्धान्त है।यानि वह बुद्धिज्म है।
रामायण,महाभारत मौर्योत्तर कालीन रचना है।पुष्यमित्र शुंग ही राम है और राम नाम का कोई व्यक्ति पैदा ही नहीं हुआ है । पुष्यमित्र शुंग ने सम्राट अशोक के परपोत सम्राट बृहदत मौर्य की मौर्य साम्राज्य में घुसकर षड्यंत्र करके धारदार तलवार से टुकड़े टुकड़े करके हत्या की थी ।
दशहरा यानि दसरा यह तौहार इसलिए प्रचार में लाया क्यों की कुछ बाते प्रतिक होती है ।रावण 10 मुह वाला क्यों बताया?10 आंकड़ा ही क्यों?11 क्यों नहीं?10 संबंध यह बुद्धिज्म से था ।वह लोगो के दिमाग से मिटाना जरुरी था इसलिए ब्राम्हणो ने 11 आंकड़ा योजनापूर्वक लाया और उसे मान्यत्या देने के लिए रावण पात्र सामने लाया। और पुष्यमित्र शुंग जो ब्राम्हण है उसे राम नाम से स्थापित किया।राम भी काल्पनिक है और रावण भी काल्पनिक है मगर मौर्य साम्राज्य का ख्तामा करने के लिए सब खेल खेला गया ।और धीरे धीरे समाज का ब्रेनवाश किया गया।इसके लिए ब्राम्हणो ने तर्क ,बुद्धि,विवेक का सहारा नहीं लिया।बल्कि ब्राम्हण अपने धर्म ग्रन्थ में कहते है कि जो तर्क करेगा,ब्राम्हणो को सवाल करेगा वह सीधा नर्क में जायेगा!!!ब्राम्हणी धर्म तर्क के सामने टिक नहीं पाते यह उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है !!!!
दूसरी बात इस षड्यंत्र को छुपाने के लिए 11 आंकड़े को ब्राम्हणो ने पवित्र घोषित किया ताकि बुद्धिज्म को उसके नीचे दबाया जा सके।इसीलिए डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने इस बात को जानते हुए दशहरे के दिन बुद्ध धर्म को अपनाया,बुद्धिज्म को भारत में पुनर्जीवित किया!!!
21 आंकड़े को ब्राम्हण क्यों महत्व देते है।जैसे 11 के पीछे ब्राम्हणो के हिंसा का राज छुपा है वैसे ही 21 पीछे ब्राम्हणो के आतंकवादी होने का इलाज छुपा हुआ है !!!
21 आंकड़े संबंध यह आतंकवादी मोहन भागवत का आदर्श परशुराम से संबंध है !
विदेशी ब्राम्हणो ने नाग राजाओ के साथ बार बार युद्ध किये।21 बार ब्राम्हण हारे।वे कभी जिते नहीं।अगर जितते तो 21 बार और लढाई लढते क्यों? परशुराम की कहानी यह बताती है कि प्राचीन शासक नाग लोक ब्राम्हणवाद के सामने घुटने टेकनेवाले नहीं है यह जानकर नाग लोगो का मनोबल गिराने के लिए और उन्हें शूद्र घोषित करने के लिए 21 बार निक्षत्रिय यह बनावट कहानी बनायीं।मगर यह बात सच है कि ब्राम्हणी धर्म यह कोई महान या बहुत बड़ी विचाधारा या तत्वज्ञान का धर्म है बल्कि यह ब्राम्हणी धर्म आतंकवाद की जननी है !!! वैदिक धर्म हिंसा की शिक्षा देता है ।
इतना ही नहीं धावडशिकर नामक जो पेशवा ब्राम्हणो का गुरु और सावकार था उसने ही महाबलेश्वर में परशुराम का मंदिर बनवाया।
क्यों की इसके पीछे भी ब्राम्हणो का अपराधबोध है ।एक तो ब्राम्हणो को इस बात का डर था कि छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रपति संभाजी महाराज की हत्या पेशवा ब्राम्हणो ने की है ।अगर वे लोग जग जाए तो एक ब्राम्हण को बख्शेंगे नहीं!!दूसरी बात छत्रपति शिवाजी महाराज ने जब राज्याभिषेक के लिए आग्रह किया यानि ब्राम्हणो के वर्चस्व को ललकारा यह बात ब्राम्हण नहीं भूले।यहाँ तक कोल्हापुर के शाहू छत्रपति महाराज को भी पूना का ब्राम्हण बाल गंगाधर तिलक ने राजोपाध्ये ब्राम्हण को आगे करके शूद्र कहकर अपमानित किया था । यह इस बात का प्रमाण है कि नाग लोक -छत्रपति शिवाजी महाराज,छत्रपति संभाजी महाराज,संत तुकाराम महाराज यह विदेशी ब्राम्हणो से लढ़ रहे थे ।यह लढाई आज भी जारी है ।भले ही ओबीसी या पूरा बहुजन समाज वैदिक आतंकवादी ब्राम्हणो का गुलाम हो फिर भी बहुजन समाज ने अभी तक घुटने टेके नही है।ब्राम्हणो के 4 प्रमुख देव है जैसे की ब्रम्ह, विष्णु,इंद्र और परशुराम!इन चारों के बहुजन समाज ना ही मंदिर बनाता है और ना ही उनकी पूजा करता है ।ब्रम्ह ,इंद्र,विष्णु यह अनैतिक है ।ब्रम्ह ने अपने बेटी सरस्वती से व्यभिचार किया !!इंद्र के बारे में ब्राम्हणो ने लिखा है कि वह रात दिन सुरा यानि शराब और अप्सराओं को नचाता है अनैतिक क्रीड़ा करता है ।धर्मानंद कोसंबी के मुताबिक हिंदी संस्कृति और अहिंसा किताब में लिखा है कि अति काम क्रीड़ा करने से इंद्र का गुप्तांग टूट गया।इसलिए सारा इंद्रलोक यानि सारे देवता परेशान हो गए और उन्होंने रायमशवरे से एक तरकीब ढूंढ निकाला की बकरे का लिंग इंद्र लगाया जाए। ऐसे अनैतिक,दुराचारी प्रतीक ब्राम्हणो के थे।आज भी बहुजन समाज उन आतंकवादी,नीतिमत्ता शून्य,दुराचारी प्रतिको को अपनाता नहीं है ।यानि पूरा बहुजन समाज ब्राम्हणी धर्म का पालन नहीं करता है ।बस उन्हें सही मार्गदर्शन करने की जरुरत है ।
जब 14 ओक्टूबर (उस दिन दशहरे का दिन था)1956 को नाग भूमि यानि प्राचीन नाग लोगो का केंद्र नागपुर में बुद्ध धम्म अपनाया तब उन्होंने फिर से नाग लोग बनाम विदेशी ब्राम्हणो की लढाई शुरू कर दी ।इसीलिए उन्होंने नागपुर में धम्मदीक्षा देते हुए 22 प्रतिज्ञाएं दी। 22 प्रतिज्ञा ही दीक्षा है बुद्धिज्म की!!
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने 22 ही आंकड़ा क्यों रखा?
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर 11 और 21 इन आंकड़े के पीछे के षड्यंत्र को जानते थे । डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी ने फिर से क्रांति का आरम्भ किया ।इसलिए विदेशी ब्राम्हणो ने हिंसा का सहारा लेकर फिर से डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी की हत्या की ।आज तक उनके हत्या का जाँच आयोग डीआइजी सक्सेना आयोग संसद के पटल पर नहीं लाया गया 60 साल गुजर गए।
साथियो,डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने ढाई हजार साल पुरानी गुलामी को अपने एक ही जीवन में खत्म की ।कुछ लोग इन क्रांति को पेशवा ब्राम्हणो से समझौता करके खत्म करना चाहते है ।
आप किनके साथ है ?
क्रांति के साथ या प्रतिक्रांति के साथ?
बस् यही मुझे जानना है ।
क्यों की डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी के सपने को साकार देने के लिए है ।
जय भीम,जय मूलनिवासी।
#प्रोफ़ेसर विलास खरात
#राष्ट्रीयप्रभारी राष्ट्रिय मायनोरिटी मोर्चा।
#जॉइनबुद्धिस्टइंटरनैशनलनेटवर्क
तो आवो मित्रो जानते है कैसे हुआ था समुद्र मंथन??
दैत्यराज बलि का राज्य तीनों लोकों पर था। इन्द्र सहित देवतागण उससे भयभीत रहते थे। इस स्थिति के निवारण का उपाय केवल विष्णु ही बता सकते थे, अतः ब्रह्मा जी के साथ समस्त देवताभगवान विष्णु के पास पहुचे ! उन्होंने भगवान विष्णु को अपनी विपदा सुनाई। सब सुन कर विष्णु बोले तुम दैत्यों से मित्रता कर लो और क्षीर सागर को मथंन कर उसमें से अमृत निकाल कर पान कर लो।
दैत्यों की सहायता से यह कार्य सुगमता से हो जायेगा। इस कार्य के लिये उनकी हरशर्त मान लो और अन्त में अपना काम निकाल लो !! अमृत पीकर तुम अमर हो जाओगे और तुममें दैत्यों को मारने का सामर्थ्य आ जायेगा।
दैत्यराज बलि ने देवराज इन्द्र से समझौता कर लिया और समुद्र मंथन के लिये तैयार हो गये। मन्दराचल पर्वत को मथनी तथा वासुकी नाग को नेती बनाया गया। स्वयं भगवान श्री विष्णु कच्छप अवतार लेकर मन्दराचल पर्वत को अपने पीठ पर रखकर उसका आधार बन गये !!
समुद्र मंथन आरम्भ हुआ और समुद्र मंथन से निम्न चिजे निकली !!
1:- सबसे पहले जल का हलाहल विष निकला, विष को शंकर भगवान के द्वारा पान कर लिया गया उनका गला निला फड़ गया ।
2:- दूसरा रत्न कामधेनु गाय निकली जिसे ऋषियों ने रख लिया।
3:- फिर उच्चैःश्रवा घोड़ा निकला जिसे दैत्यराज बलि ने रख लिया।
4:- उसके बाद ऐरावत हाथी निकला जिसे देवराज इन्द्र ने ग्रहण किया।
5:- ऐरावत के पश्चात् कौस्तुभमणि समुद्र से निकली उसे विष्णु भगवान ने रख लिया !!
6:- फिर कल्पद्रुम निकला और रम्भा नामक अप्सरा निकली। इन दोनों को देवलोक में रख लिया गया।
7:- फिर समु्द्र को मथने से लक्ष्मी जी निकलीं। लक्ष्मी जी ने स्वयं ही भगवान विष्णु कोवर लिया।
8:- फिर एक के पश्चात एक चन्द्रमा, पारिजात वृक्ष तथा शंख निकले और अन्त में धन्वन्तरि वैद्य अमृत का घट लेकर प्रकट हुये। मित्रो आप खुद समझ सकते हो कि ये कितनी बडी बकवास है, पुरी तरह काल्पनिक और अवैग्यानिक है।। कितनी अजीब बात हे कि जब भगवान को भी कुछ चाहीये होती तो उन्हे भी महनत करना पडी ।।
वैसे तो समुर्द का मंथन करना कि एक महा गप है ।। फिर भी कुछ बेचारे लोग न चाहते हुए भी इसगप्पे को सच मानते है, इस पर स्वभाविक रुप से मेरे मन मे जो संकाये पैदा हो रही है वो कुछइस प्रकार है ।।
1:- सबसे पहले कि स्मुद्र का मंथन किया जा रहा है तो क्या यह समुद्र के किनारे प किया गया या फिर बिच गहराई मे, किनारे पर तो होगा नही तो बिच गहाराई मे किया गया तो देवता तो ठिक लेकीन सभी राक्षसो को भी पानी पर चलना आता था क्या ??
2:- समुद्र का मंथन करने से विष निकला ???? समुद्र का मंथन करने से अगर नमक निकलने की बात कही गयी होती तो बात कुछ हजम भी हो जाती, और शंकर भगवान ने विष पिया तो उनका गला निला पड गया, इसका मतलब विष बहुत जहरीला था, भगवान अगर और अधीक मात्रा मे पि लेते तो न जाने क्या अनर्थ हो जाता ।।
3:- कामधेनु गाय उच्चैःश्रवा घोड़ा और् एरावत हाथी समुद्र से निकले ये क्या मजाक है, अगर किसी मछली के निकलने की बात होती तो एक बार समझ आता, बेचारे मछुआरो कि जिन्दगी बीत जाती है समुद्र मे जाल फेंकते हुए उन्हे तो आज तक मछली और केकड़ो के अलावा कुछ नही मिला समुद्र से ???
4:- लक्ष्मी जी भी समुद्र मंथन से निकली, तो जवान होने तक लक्ष्मी जी समुद्र मे क्या कर रही थी, समुद से निकलने के बाद का उनके जिवन का लेखा झोखा है लेकीन उनके स्मुद्र के अंदर व्यतीत किये जिवन का लेखा जोखा क्यो नही है??? समुद्र से निकलते हि विष्णू ने लक्ष्मी से शादी करली तो कही एसा तो नही कि य सब लक्ष्मी को समुद्र से निकालने कि विष्णू की चाल तो नही थी????
5:- फिर चंद्र्मा भी समुद्र मंथन से निकला, मित्रो इस बात ने तो गप्पो की हद पार कर दि,चंद्रमा जितना बड़ा ग्रह जो आकार मे प्रथ्वी का एक चौथाई है, वो समुद्र से कैसे निकल सकताहै ???
6:- आखीरी मे समुद्र से अंम्रत का घडा लेकर धन्वंतरी देव निकले, धंनतरी भी तो देवता हि थे तो जब देवताओ को अंम्रत पीना हि था तो सिधा धन्वतरी देव से कह देते वो खुद अंम्रत लेकर आजाते उसके लिये ये सब झमेला करने की क्या जरुरत थी??? या फिर देवताओ के बिच इतना संमर्क भी नही था ???
मित्रो अगर आप चाहते है हमारा यह पेज कभी बंद ना गिरे तो मित्रो पेज के पोस्ट ज्यादा से ज्यादा लाईक शेअर करीये.. मित्रो आपका साथ ही मेरा ऊत्चाह है..
विदेशी ब्राम्हण बहुजनो से 11 रुपये और 21 रुपये का ही दक्षिणा क्यों लेते है?क्या राज है ?
और#डॉबाबासाहेबआंबेडकर जी ने 22 प्रतिज्ञा ही क्यों दिया अपने अनुयायियों को?
बहुजन गरीब व्यक्ति जब किसी से सहायता मांगता है तब उसे भीख और भिकारी कहा जाता है और ब्राम्हण जब बहुजनो से से पैसे लेता है तब उसे वह दक्षिणा कहता है भिक क्यों नहीं ?
दक्षिण शब्द से दक्षिणा शब्द बना। मौर्य साम्राज्य को विदेशी ब्राम्हणो ने खत्म किया और दक्षिण भारत में जब वे हमले के लिए गए तब उन्हें हराया गया ।बाद में षड्यंत्र से जीत लिया।मगर बहुत समय लगा। फिर भी ब्राम्हण दक्षिण दो यानि दक्षिणा दो यह अभी तक कहता है!!
11 आंकड़े को ब्राम्हणो इतना महत्व क्यों दिया?क्या राज है इसके पीछे?
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी ने सही कहा था कि बौद्ध धर्म बनाम वैदिक धर्म यही भारत का वास्तविक इतिहास है।अर्थात क्रांति और प्रतिक्रांति यह भारत का इतिहास है। मौर्य,बुध्द ने त्याग ,सिद्धान्त के आधार पर क्रांति की विदेशी ब्राम्हणो ने धोका, षड्यंत्र से प्रतिकान्ति की।आज भी वहीँ चल रहा है ।
बुद्ध धर्म में 10 आंकड़ा बहुत मायने रखता है । 3 रत्न (त्रिरत्न),4 आर्य सत्य ,5 शील यानि पंचशील,आर्य अष्टांगिक मार्ग (8 श्रेष्ठ मार्ग), 10 शील यानि दसशील,10 पारमिता यानि दस पारमिता ।यह 10 आंकड़े आंकड़े नही है सिद्धान्त है।इसलिए तथागत की जो भी प्राचीन मूर्तिया है उसमें उंगलियों के साथ की मुद्राएं है।वह 10 आंकड़े सिद्धान्त है।यानि वह बुद्धिज्म है।
रामायण,महाभारत मौर्योत्तर कालीन रचना है।पुष्यमित्र शुंग ही राम है और राम नाम का कोई व्यक्ति पैदा ही नहीं हुआ है । पुष्यमित्र शुंग ने सम्राट अशोक के परपोत सम्राट बृहदत मौर्य की मौर्य साम्राज्य में घुसकर षड्यंत्र करके धारदार तलवार से टुकड़े टुकड़े करके हत्या की थी ।
दशहरा यानि दसरा यह तौहार इसलिए प्रचार में लाया क्यों की कुछ बाते प्रतिक होती है ।रावण 10 मुह वाला क्यों बताया?10 आंकड़ा ही क्यों?11 क्यों नहीं?10 संबंध यह बुद्धिज्म से था ।वह लोगो के दिमाग से मिटाना जरुरी था इसलिए ब्राम्हणो ने 11 आंकड़ा योजनापूर्वक लाया और उसे मान्यत्या देने के लिए रावण पात्र सामने लाया। और पुष्यमित्र शुंग जो ब्राम्हण है उसे राम नाम से स्थापित किया।राम भी काल्पनिक है और रावण भी काल्पनिक है मगर मौर्य साम्राज्य का ख्तामा करने के लिए सब खेल खेला गया ।और धीरे धीरे समाज का ब्रेनवाश किया गया।इसके लिए ब्राम्हणो ने तर्क ,बुद्धि,विवेक का सहारा नहीं लिया।बल्कि ब्राम्हण अपने धर्म ग्रन्थ में कहते है कि जो तर्क करेगा,ब्राम्हणो को सवाल करेगा वह सीधा नर्क में जायेगा!!!ब्राम्हणी धर्म तर्क के सामने टिक नहीं पाते यह उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है !!!!
दूसरी बात इस षड्यंत्र को छुपाने के लिए 11 आंकड़े को ब्राम्हणो ने पवित्र घोषित किया ताकि बुद्धिज्म को उसके नीचे दबाया जा सके।इसीलिए डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने इस बात को जानते हुए दशहरे के दिन बुद्ध धर्म को अपनाया,बुद्धिज्म को भारत में पुनर्जीवित किया!!!
21 आंकड़े को ब्राम्हण क्यों महत्व देते है।जैसे 11 के पीछे ब्राम्हणो के हिंसा का राज छुपा है वैसे ही 21 पीछे ब्राम्हणो के आतंकवादी होने का इलाज छुपा हुआ है !!!
21 आंकड़े संबंध यह आतंकवादी मोहन भागवत का आदर्श परशुराम से संबंध है !
विदेशी ब्राम्हणो ने नाग राजाओ के साथ बार बार युद्ध किये।21 बार ब्राम्हण हारे।वे कभी जिते नहीं।अगर जितते तो 21 बार और लढाई लढते क्यों? परशुराम की कहानी यह बताती है कि प्राचीन शासक नाग लोक ब्राम्हणवाद के सामने घुटने टेकनेवाले नहीं है यह जानकर नाग लोगो का मनोबल गिराने के लिए और उन्हें शूद्र घोषित करने के लिए 21 बार निक्षत्रिय यह बनावट कहानी बनायीं।मगर यह बात सच है कि ब्राम्हणी धर्म यह कोई महान या बहुत बड़ी विचाधारा या तत्वज्ञान का धर्म है बल्कि यह ब्राम्हणी धर्म आतंकवाद की जननी है !!! वैदिक धर्म हिंसा की शिक्षा देता है ।
इतना ही नहीं धावडशिकर नामक जो पेशवा ब्राम्हणो का गुरु और सावकार था उसने ही महाबलेश्वर में परशुराम का मंदिर बनवाया।
क्यों की इसके पीछे भी ब्राम्हणो का अपराधबोध है ।एक तो ब्राम्हणो को इस बात का डर था कि छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रपति संभाजी महाराज की हत्या पेशवा ब्राम्हणो ने की है ।अगर वे लोग जग जाए तो एक ब्राम्हण को बख्शेंगे नहीं!!दूसरी बात छत्रपति शिवाजी महाराज ने जब राज्याभिषेक के लिए आग्रह किया यानि ब्राम्हणो के वर्चस्व को ललकारा यह बात ब्राम्हण नहीं भूले।यहाँ तक कोल्हापुर के शाहू छत्रपति महाराज को भी पूना का ब्राम्हण बाल गंगाधर तिलक ने राजोपाध्ये ब्राम्हण को आगे करके शूद्र कहकर अपमानित किया था । यह इस बात का प्रमाण है कि नाग लोक -छत्रपति शिवाजी महाराज,छत्रपति संभाजी महाराज,संत तुकाराम महाराज यह विदेशी ब्राम्हणो से लढ़ रहे थे ।यह लढाई आज भी जारी है ।भले ही ओबीसी या पूरा बहुजन समाज वैदिक आतंकवादी ब्राम्हणो का गुलाम हो फिर भी बहुजन समाज ने अभी तक घुटने टेके नही है।ब्राम्हणो के 4 प्रमुख देव है जैसे की ब्रम्ह, विष्णु,इंद्र और परशुराम!इन चारों के बहुजन समाज ना ही मंदिर बनाता है और ना ही उनकी पूजा करता है ।ब्रम्ह ,इंद्र,विष्णु यह अनैतिक है ।ब्रम्ह ने अपने बेटी सरस्वती से व्यभिचार किया !!इंद्र के बारे में ब्राम्हणो ने लिखा है कि वह रात दिन सुरा यानि शराब और अप्सराओं को नचाता है अनैतिक क्रीड़ा करता है ।धर्मानंद कोसंबी के मुताबिक हिंदी संस्कृति और अहिंसा किताब में लिखा है कि अति काम क्रीड़ा करने से इंद्र का गुप्तांग टूट गया।इसलिए सारा इंद्रलोक यानि सारे देवता परेशान हो गए और उन्होंने रायमशवरे से एक तरकीब ढूंढ निकाला की बकरे का लिंग इंद्र लगाया जाए। ऐसे अनैतिक,दुराचारी प्रतीक ब्राम्हणो के थे।आज भी बहुजन समाज उन आतंकवादी,नीतिमत्ता शून्य,दुराचारी प्रतिको को अपनाता नहीं है ।यानि पूरा बहुजन समाज ब्राम्हणी धर्म का पालन नहीं करता है ।बस उन्हें सही मार्गदर्शन करने की जरुरत है ।
जब 14 ओक्टूबर (उस दिन दशहरे का दिन था)1956 को नाग भूमि यानि प्राचीन नाग लोगो का केंद्र नागपुर में बुद्ध धम्म अपनाया तब उन्होंने फिर से नाग लोग बनाम विदेशी ब्राम्हणो की लढाई शुरू कर दी ।इसीलिए उन्होंने नागपुर में धम्मदीक्षा देते हुए 22 प्रतिज्ञाएं दी। 22 प्रतिज्ञा ही दीक्षा है बुद्धिज्म की!!
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने 22 ही आंकड़ा क्यों रखा?
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर 11 और 21 इन आंकड़े के पीछे के षड्यंत्र को जानते थे । डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी ने फिर से क्रांति का आरम्भ किया ।इसलिए विदेशी ब्राम्हणो ने हिंसा का सहारा लेकर फिर से डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी की हत्या की ।आज तक उनके हत्या का जाँच आयोग डीआइजी सक्सेना आयोग संसद के पटल पर नहीं लाया गया 60 साल गुजर गए।
साथियो,डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने ढाई हजार साल पुरानी गुलामी को अपने एक ही जीवन में खत्म की ।कुछ लोग इन क्रांति को पेशवा ब्राम्हणो से समझौता करके खत्म करना चाहते है ।
आप किनके साथ है ?
क्रांति के साथ या प्रतिक्रांति के साथ?
बस् यही मुझे जानना है ।
क्यों की डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी के सपने को साकार देने के लिए है ।
जय भीम,जय मूलनिवासी।
#प्रोफ़ेसर विलास खरात
#राष्ट्रीयप्रभारी राष्ट्रिय मायनोरिटी मोर्चा।
#जॉइनबुद्धिस्टइंटरनैशनलनेटवर्क
who created this rascaldom blog. I am OBC. But I do not believe in your fool full knowledge
ReplyDeleteYou gave fully wrong information.
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