*सरकारी इकाईयों का निजीकरण-*
22 रेलवे स्टेशन का निजीकरण किया जा रहा है , रेलवे जैसा सरकारी उपक्रम जो देश का सबसे बड़ा रोजगार देने वाला है उसका निजीकरण यह बताता है कि सरकार सरकारी इकाइयों को सँभालने में कितनी नाकारा साबित हो रही है।
सरकार नाकारा साबित हो रही है यह कहना शायद उपयुक्त शब्द नहीं होगा बल्कि यह कहा जाए की सरकार कितनी धूर्त हो गई है ज्यादा उपयुक्त रहेगा।
सरकारी इकाइयों में भर्ती 1981 से ही या तो बंद कर दी गई या मामूली संख्या में पदों की भर्ती करते रहे , बाकी सीट्स कोई न कोई बहाना बना के रिक्त ही रखा गया । खासकर आरक्षण वाले हिस्से में ।
तब से सरकारे सरकारी इकाइयों जैसे बिजली -पानी को निजी हाथों में सौंपती रही हैं।
ऐसा किस लिए हुआ ?
ऐसा इस लिए हुआ की मंडल आयोग का गठन 1979 में हो गया, संविधान की धारा 340 के तहत पिछड़े वर्गों की दशा पर आयोग गठन हुआ जिसके तहत पिछड़ी जातिओं को 27% आरक्षण ( ग्रांट्स) मिला। इस आरक्षण के तहत वो कुर्मी, गुर्जर,जाट, यादव आदि कई जातियो ने अपने को पिछड़ा घोषित कर दिया ।हलाकि इन जातियों ने खुद को पिछड़ा बेशक घोषित कर दिया था आरक्षण का लाभ लेने के लिए पर इनका सामाजिक व्यवहार सवर्णो की ही तरह था ,जातीय भेदभाव इनके सामाजिक परिवेश में बदस्तूर जारी रहा और नाम के लिए ही पिछड़े बने।
इस आरक्षण के विरोध में पूरा देश सुलग उठा था , सवर्ण जातियों ने दंगे किये यंहा तक कीआत्महत्याएं भी।
यंहा एक बात का उल्लेख करना जरुरी है कि संविधान की धारा 340 में पिछड़े वर्गों की दशा पर एक आयोग के गठन प्रधिकार है किंतु आरक्षण शब्द का उल्लेख नहीं है ,उल्लेख यदि है तो मात्र ग्रांट्स का यानि पिछड़े वर्ग आयोग का आधिकर क्षेत्र आर्थिक मुद्दों से अधिक न था।
खैर, वीपी सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशें लागू की और पिछडो को आरक्षण दे दिया गया । कांग्रेस पार्टी मंडल आयोग के साथ हो ली जिसका परिणाम यह हुआ की कांग्रेस का बेसिक ढांचा जो ब्राह्मण, दलित और अल्पसंख्यक का गठजोड़ था वह खिसक गया । कांग्रेस का नेतृत्वकारी ब्राह्मण समाज ने कांग्रेस से नाराज होके उसे अलविदा कह दिया ,क्यों की क्षत्रियो के पास भूमि थी वैश्यों के पास अपना व्यापार था जबकि ब्राह्मण के पास नौकरी के अलावा कुछ ज्यादा न था अतः सबसे ज्यादा आघात उसे ही लगा । दलितों के मिले आरक्षण को तो सहन कर गया था किंतु मंडल को न सहन कर पाया था।
ब्राह्मण समाज कांग्रेस से निराश हो भाजपा का दामन थाम लिया , भाजपा के नेताओं ने इसे सुनहरा अवसर समझ के लपक लिया और मंडल के विरोध में कमंडल उतारा ।
उसके बाद सरकार किसी की भी हो वह यह समझ गया था कि पिछडो को आरक्षण को नहीं खत्म किया जा सकता किन्तु सरकारी नौकरियों को जरूर खत्म किया जा सकता है ।
तभी से सरकारी नौकरियों की सीधी भर्ती बंद हो गई और उसके निजीकरण की रूप रेखाएं तैयार होने लगीं।
न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.... यानि न रहेगी सरकारी इकाई न ....रहेगा आरक्षण .... मिलेगी सरकारी नौकरी .... करो क्या करोगे ?
देखिये आने वाले समय में क्या क्या निजीकरण होता है!
22 रेलवे स्टेशन का निजीकरण किया जा रहा है , रेलवे जैसा सरकारी उपक्रम जो देश का सबसे बड़ा रोजगार देने वाला है उसका निजीकरण यह बताता है कि सरकार सरकारी इकाइयों को सँभालने में कितनी नाकारा साबित हो रही है।
सरकार नाकारा साबित हो रही है यह कहना शायद उपयुक्त शब्द नहीं होगा बल्कि यह कहा जाए की सरकार कितनी धूर्त हो गई है ज्यादा उपयुक्त रहेगा।
सरकारी इकाइयों में भर्ती 1981 से ही या तो बंद कर दी गई या मामूली संख्या में पदों की भर्ती करते रहे , बाकी सीट्स कोई न कोई बहाना बना के रिक्त ही रखा गया । खासकर आरक्षण वाले हिस्से में ।
तब से सरकारे सरकारी इकाइयों जैसे बिजली -पानी को निजी हाथों में सौंपती रही हैं।
ऐसा किस लिए हुआ ?
ऐसा इस लिए हुआ की मंडल आयोग का गठन 1979 में हो गया, संविधान की धारा 340 के तहत पिछड़े वर्गों की दशा पर आयोग गठन हुआ जिसके तहत पिछड़ी जातिओं को 27% आरक्षण ( ग्रांट्स) मिला। इस आरक्षण के तहत वो कुर्मी, गुर्जर,जाट, यादव आदि कई जातियो ने अपने को पिछड़ा घोषित कर दिया ।हलाकि इन जातियों ने खुद को पिछड़ा बेशक घोषित कर दिया था आरक्षण का लाभ लेने के लिए पर इनका सामाजिक व्यवहार सवर्णो की ही तरह था ,जातीय भेदभाव इनके सामाजिक परिवेश में बदस्तूर जारी रहा और नाम के लिए ही पिछड़े बने।
इस आरक्षण के विरोध में पूरा देश सुलग उठा था , सवर्ण जातियों ने दंगे किये यंहा तक कीआत्महत्याएं भी।
यंहा एक बात का उल्लेख करना जरुरी है कि संविधान की धारा 340 में पिछड़े वर्गों की दशा पर एक आयोग के गठन प्रधिकार है किंतु आरक्षण शब्द का उल्लेख नहीं है ,उल्लेख यदि है तो मात्र ग्रांट्स का यानि पिछड़े वर्ग आयोग का आधिकर क्षेत्र आर्थिक मुद्दों से अधिक न था।
खैर, वीपी सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशें लागू की और पिछडो को आरक्षण दे दिया गया । कांग्रेस पार्टी मंडल आयोग के साथ हो ली जिसका परिणाम यह हुआ की कांग्रेस का बेसिक ढांचा जो ब्राह्मण, दलित और अल्पसंख्यक का गठजोड़ था वह खिसक गया । कांग्रेस का नेतृत्वकारी ब्राह्मण समाज ने कांग्रेस से नाराज होके उसे अलविदा कह दिया ,क्यों की क्षत्रियो के पास भूमि थी वैश्यों के पास अपना व्यापार था जबकि ब्राह्मण के पास नौकरी के अलावा कुछ ज्यादा न था अतः सबसे ज्यादा आघात उसे ही लगा । दलितों के मिले आरक्षण को तो सहन कर गया था किंतु मंडल को न सहन कर पाया था।
ब्राह्मण समाज कांग्रेस से निराश हो भाजपा का दामन थाम लिया , भाजपा के नेताओं ने इसे सुनहरा अवसर समझ के लपक लिया और मंडल के विरोध में कमंडल उतारा ।
उसके बाद सरकार किसी की भी हो वह यह समझ गया था कि पिछडो को आरक्षण को नहीं खत्म किया जा सकता किन्तु सरकारी नौकरियों को जरूर खत्म किया जा सकता है ।
तभी से सरकारी नौकरियों की सीधी भर्ती बंद हो गई और उसके निजीकरण की रूप रेखाएं तैयार होने लगीं।
न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.... यानि न रहेगी सरकारी इकाई न ....रहेगा आरक्षण .... मिलेगी सरकारी नौकरी .... करो क्या करोगे ?
देखिये आने वाले समय में क्या क्या निजीकरण होता है!
*Modi government की हकीकत क्या है? परत दर परत पोल खोल देने वाला सिर्फ 11 मिनट का वीडियो* https://youtu.be/MMvkLRmsuu0
ReplyDeletehttps://youtu.be/NWAxB3dPlag
ReplyDelete