Thursday, 3 August 2017

बिहार के सीएम नितीश कुमार

 बिहार के सीएम नितीश कुमार पर उनके कल तक के साथी लालू यादव ने हत्या का आरोप लगाया है. इसके साथ ही सबके दिमाग में ये सवाल उठ रहा है कि *आखिर वो कौन था* जिसकी हत्या का आरोप नितीश कुमार पर है.

हत्या का यह मामला बिहार के बाढ़ से जुड़ा है. *नवम्बर 1991 में बाढ़ लोकसभा सीट के मध्यावधि चुनाव में सीताराम सिंह नाम के एक व्यक्ति की गोली मार कर हत्या कर दी गयी थी*. 1 सितम्बर 2009 को बाढ़ कोर्ट के *तत्कालीन एसीजेएम रंजन कुमार ने इस मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को प्रथम दृष्ट्या दोषी मानते हुए उनपर इस मामले में ट्रायल शुरू करने का आदेश दिया था.* इस मामले को लेकर उस समय ढीबर गांव निवासी अशोक सिंह ने नीतीश कुमार सहित कुछ अन्य लोगों पर हत्या का मुकदमा दर्ज कराया था.

सीताराम सिंह हत्या मामले के *एक गवाह अशोक सिंह* ने अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में एक दरख्वास्त लगाई. दरख्वास्त में उन्होंने कहा कि *16 नवंबर वर्ष 1991 को वे सीता राम सिंह सहित अन्य लोगों के साथ मतदान करने गये थे तभी वहां जनता दल उम्मीद वार नीतीश कुमार, दुलारचंद यादव सहित अन्य लोगों के साथ पहुंचे और वोट देने से रोका*.

अशोक सिंह ने अपने परिवाद पत्र में कहा था कि नीतीश कुमार के साथ उस समय तत्कालीन मोकामा विधायक दिलीप सिंह, दुलारचंद यादव, योगेंद्र प्रसाद और बौधु यादव थे और *वे बंदूक, रायफल और पिस्तौल से लैस थे*. अशोक सिंह ने अपने परिवाद पत्र में आरोप लगाया था कि *इन लोगों ने वोट देने से मना किया तो सीताराम सिंह ने उनकी बात मानने से इनकार कर दिया. सीताराम ने उनकी बात नहीं मानी तो नीतीश ने अपनी राइफल से गोली चला दी, जिससे उनकी घटनास्थल पर ही मौत हो गयी*.

जबकि उनके साथ आये अन्य लोगों द्वारा की गयी गोलीबारी से सुरेश सिंह, मौली सिंह, मन्नू सिंह एवं रामबाबू सिंह घायल हो गये थे. *अशोक सिंह के परिवाद पत्र पर बाढ़ के अपर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी रंजन कुमार ने 31 अगस्‍त 2010 को सिंह के बयान और दो गवाहों रामानंद सिंह और कैलू महतो द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर अपराध दंड संहिता 202 के अंतर्गत नीतीश और दुलारचंद यादव को अदालत के समक्ष गत नौ सितंबर को उपस्थित होने का निर्देश दिया था*.

बाद में इस मामले का *हाईकोर्ट में स्‍थानांतरित करा दिया* गया. *वर्ष 2009 से लेकर अबतक यह मामला हाइकोर्ट में लंबित है.* एक समय न्यायाधीश सीमा अली खान ने इस मामले में नीतीश की पैरवी कर रहे उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता सुरेंद्र सिंह की दलीलों को सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था.

http://www.knockingnews.com/news/2017/07/full-story-of-murder-charges-against-nitish-kumar

न्यायपालिका मे इतने दिनों से फैसला लम्बित क्यों है
इसमें सबसे विचारणीय घटना यह है ?
जस्टिस शब्द जस्ट से बना है
*Just यानि तुरंत*
परन्तु यहां सालों से किस मौके के लिए सुरक्षित रखा गया है
यही गंभीरता से विचारणीय है

बिहार के जनादेश का सिर्फ अपहरण नहीं, बल्कि उसके साथ दुष्कर्म के बाद उसका कत्ल हुआ है। जो प्रयोग व साहस बिहार की जनता ने दिखाया था, उस भरोसे का खून हुआ है।

दिल्ली, देश के हर सामाजिक मुद्दे की लड़ाई में बढ़-चढ़ कर शामिल होने वाले और मंडल रिपोर्ट को लागू करवाने में अहम योगदान देने वाले JDU के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष व राज्यसभा सांसद शरद यादव ने नीतीश कुमार के ताजा फैसले के खिलाफ बिगुल फूंक दिया है, वहीं भाजपा के साथ गठबंधन करने का विरोध करने वाले शरद यादव ने भाजपा की तरफ से आए केंद्रीय मंत्री पद का प्रस्ताव ठुकरा दिया है और फैसला किया है कि वे सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ देशव्यापी मुहिम में शामिल होंगे।

शुक्रवार को शरद यादव ने कहा, हम सांप्रदायिक ताकतों के साथ नहीं जाएंगे, अब संग्राम होगा। उन्होंने कहा कि वे सांप्रदायिक ताकतों के साथ गठबंधन करने के नीतीश के फैसले के विरोध में थे। यादव के नजदीकी सूत्रों ने बताया कि गुरुवार रात वित्त मंत्री अरुण जेटली शरद यादव से मिले थे, उन्होंने शरद यादव से केंद्र में मंत्री पद को लेकर चर्चा की, लेकिन शरद यादव ने कहा कि केंद्र में मंत्री बनने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है।

सूत्रों का कहना है कि शरद यादव बिहार में और राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का विरोध करते रहेंगे, अपने इस फैसले पर वे एक दो दिन में औपचारिक बयान भी जारी कर सकते हैं। नीतीश कुमार के इस फैसले को लेकर उनकी पार्टी के अंदर ही विरोध और बगावत के सुर सुनाई दे रहे हैं, इस विरोध का मुख्य चेहरा शरद यादव ही हैं और उनके साथ अली अनवर सरीखे पार्टी के कई वरिष्ठ नेता भी शामिल हैं और उन्होंने कहा कि समय आने पर अब संग्राम होगा।

शुक्रवार को नीतीश कुमार विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने में जरूर कामयाब रहे, 131 विधायकों ने पक्ष में वोट किया, जबकि 108 ने उनके खिलाफ वोट किया। जदयू के 71 विधायक हैं, जबकि एनडीए के 58 विधायक हैं, नीतीश को दो निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन मिला है।

नीतीश के खिलाफ वोट करने वालों में राजद के 80 विधायक, कांग्रेस के 27, भाकपा (माले) के तीन और एक निर्दलीय विधायक हैं। शरद यादव का राज्यसभा का कार्यकाल जुलाई के अंत में खत्म हो रहा है, जदयू की ओर से उन्हें अगले कार्यकाल के लिए नामित किया गया है। अब देखना यह है कि बगावत पर उतरे शरद के लिए जदयू के विधायक वोट करेंगे या नहीं।

भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने से नाराज शरद यादव गुरुवार को नीतीश के शपथ ग्रहण समारोह में भी नहीं गए थे, लेकिन उन्होंने अभी तक मीडिया में सार्वजनिक रूप से इस नये गठबंधन को लेकर कोई बयान भी नहीं दिया है। राहुल गांधी से मुलाकात और लालू यादव से बात करके उन्होंने यह जरूर जाहिर किया कि वे नीतीश के फैसले से नाखुश हैं।


 (सहपाठी मित्र अभिरंजन कुमार जाने-माने पत्रकार, कवि और मानवतावादी चिंतक हैं।)
पढ़िए इनका बिहार प्रकरण पर शानदार विश्लेषण --


आज की पहली बधाई बीजेपी को, जिसने बिहार में हारी हुई बाज़ी को भी आख़िरकार जीत में तब्दील कर लिया। 2015 की हार मामूली नहीं थी, लेकिन 20 महीने के भीतर उससे उबरते हुए राज्य की आधी सरकार हथिया लेना, अपने मुख्य विरोधी आरजेडी को वापस विपक्ष में ढकेल देना, नीतीश कुमार को ख़ुद की शरण में आने के लिए मजबूर कर कमज़ोर, नीति-विहीन, सिद्धांतहीन एवं कुर्सी-लोलुप साबित कर देना और भविष्य के लिए बिहार की राजनीति की चाभी अपने हाथ कर लेना- एक तीर से उसने ये चार निशाने साधे हैं, जो निश्चय ही बड़ी तीरंदाज़ी का काम है।

दूसरी बधाई तेजस्वी यादव को, जिन्होंने उम्र से अधिक परिपक्वता दिखाते हुए आज ख़ुद को बिहार में विपक्ष के सबसे बड़े नेता के तौर पर स्थापित कर लिया। विधानसभा के अंदर और बाहर अपनी बात को उन्होंने मैच्योर नेता की तरह रखा है। उपमुख्यमंत्री के तौर पर उनकी छवि लालू के बेटे के तौर पर थी और नीतीश की छाया में उभर नहीं पा रही थी, लेकिन आज से वे मैदान में आमने-सामने की लड़ाई में होंगे। जो केसेज़ उनपर हैं, उससे उनके मुस्लिम-यादव वोट-बैंक पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। उल्टे अगर उन्हें जेल जाना पड़ा या इस लड़ाई को ठीक से लड़ा, तो उनके पिछड़े वोट बैंक का और विस्तार संभव है।

मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी को कोई बधाई इसलिए नहीं, क्योंकि उन्होंने विश्वास मत भले जीत लिया है, लेकिन नैतिक रूप से वे हार गए हैं। यूं भी, कल भी वे मुख्यमंत्री ही थे और आज भी मुख्यमंत्री ही हैं, तो कौन-सा तीर मार लिया? ऊपर से मोदी और आरएसएस के ख़िलाफ़ कौन-कौन से तांडव उन्होंने नहीं किये, लेकिन कुर्सी बचाने के लिए आज उन्हें वापस मोदी की गोदी में ही जाना पड़ा है। कहां तो मोदी के ख़िलाफ़ वे प्रधानमंत्री पद की लड़ाई लड़ने की हसरतें पाले बैठे थे, संघमुक्त भारत बनाने का सपना उछाल रहे थे, कहां उन्हीं के आगे अपनी लाज समर्पित करनी पड़ी। देखा जाए, तो यह उनकी बहुत बड़ी हार है।

जहां तक मेरी समझ है, मोदी और शाह ने फौरी तौर पर एक राजनीतिक खेल ज़रूर खेला है, लेकिन श्री नीतीश कुमार जी द्वारा अपने अपमान को भूल जाने वाले लोग वे नहीं हैं। नीतीश जी अगर सुविधा की राजनीति करने के एक्सपर्ट हैं, तो नरेंद्र मोदी और अमित शाह भी कभी दुविधा की राजनीति नहीं करते। इसलिए 2019 के लोकसभा चुनाव में नीतीश का इस्तेमाल करके मोदी और शाह 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्हें पटक दें, तो कोई हैरानी नहीं। बिल्कुल महाराष्ट्र फॉर्मूले की तरह, जैसे शिवसेना को वहां पटका।

शिवसेना का तो महाराष्ट्र में फिर भी अच्छा जनाधार है, इसलिए वह टिकी हुई है, लेकिन नीतीश जी के पास बिहार में अपना जनाधार तो है ही नहीं। इसे 2014 के लोकसभा चुनाव में भी हम सब देख चुके हैं कि किस तरह वे 40 में से महज दो सीटें जीत पाए। उनमें भी उनकी घरेलू सीट नालंदा पर उनका प्रत्याशी हारते-हारते बचा। 2015 के विधानसभा चुनाव में भी अगर लालू के कंधे पर सवार नहीं हुए होते, तो 10 सीटें भी नहीं जीत पाते।

हैरानी होती है, जब नीतीश कुमार जी ईमानदारी और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ ज़ीरो टॉलरेंस की बात करते हैं। क्योंकि जब लालू से महागठबंधन बनाया, तो वे भ्रष्टाचार के मामले में एक सज़ायाफ्ता मुजरिम थे। कांग्रेस को भी जनता ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ही खारिज किया था। इतना ही नहीं, स्वयं नीतीश जी के राज में भी करप्शन कभी कम नहीं रहा। बच्चों की साइकिलों, पोशाकों और मिड-डे मील तक में घोटाले हुए। ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए तो उनके कई नेता और अधिकारी कुख्यात ही थे। उनके प्रशासन के लोग शराब माफिया से 10-10 करोड़ की मांग करते हुए बेनकाब हुए।

इसलिए, मेरे ख्याल से नीतीश जी ने आज साबित कर दिया कि नरेंद्र मोदी ने उनके डीएनए के बारे में कुछ भी ग़लत नहीं कहा था। उनका डीएनए कैसा है, ज़रा ठीक से समझ लीजिए-

1. इमरजेंसी के दौर से करीब 40 साल तक कांग्रेस का विरोध करते रहे, लेकिन कुर्सी के लिए एक दिन हंसते-हंसते कांग्रेस की गोदी में बैठ गए।

2. बाबरी-विध्वंस की घटना के बाद 17 साल तक बीजेपी की गोदी में बैठे रहे, लेकिन पीएम बनने की महत्वाकांक्षा में एक दिन अचानक सांप्रदायिकता के नारे के सहारे उसे गलियाना शुरू कर दिया।

3. गुजरात दंगों के बाद वे न सिर्फ़ वाजपेयी कैबिनेट में बने रहे, बल्कि नरेंद्र मोदी की तारीफ़ भी करते थे और उनसे गुजरात से बाहर निकलकर देश का नेतृत्व करने की अपील भी करते थे, लेकिन दंगों के कई साल बाद एक दिन अचानक उन्हें कोई स्वप्न आया और मोदी उन्हें दंगाई नज़र आने लगे।

4. 17 साल तक लालू यादव को गाली देते रहे, उनके राज को जंगलराज कहते रहे, लेकिन कुर्सी के लिए एक दिन उनके साथ भी गठबंधन कर लिया।

5. बीजेपी से शादी करके वे कांग्रेस से इश्क लड़ाते हैं। कांग्रेस से शादी करके वे बीजेपी से इश्क लड़ाते हैं। बीजेपी से जी भर गया, तो कांग्रेस का हाथ थाम लिए। कांग्रेस से जी भर गया, तो बीजेपी का हाथ थाम लिए।

6. 2013 में उन्होंने बिहार की जनता के 2010 के आदेश का उल्लंघन किया। 2017 में उन्होंने बिहार की जनता के 2015 के आदेश का उल्लंघन किया।

7. तेजस्वी का यह सवाल भी उनके डीएनए की सटीक व्याख्या करता है कि अगर वापस मोदी की गोदी में ही जाना था, तो चार साल में चार सरकारें क्यों बनाई, सेक्युलरिज़्म का इतना ढोंग क्यों रचा, संघमुक्त भारत का नारा क्यों लगाया, दलित नेता जीतनराम मांझी का अपमान क्यों किया, बिहार की जनता को इतना परेशान क्यों किया, सरकारी खजाने पर इतना बोझ क्यों डाला?


इसीलिए मुझे लगता है कि जैसे 2013 की गलती का अहसास नीतीश कुमार जी को 2017 आते-आते हो गया, वैसे ही 2017 की गलती का अहसास 2020 जाते-जाते हो जाएगा। और उसके बाद राजनीति उन्हें कितने मौके देगी या नहीं देगी, इसके बारे में अभी से क्या बात करें?


 जब भूमिहारों के द्वारा नीतीश जी को छाती तोड़ने की बात कह इन्हें हतोत्साहित करने की कोशिश की गयी थी, तब लालू जी आगे आकर अरुण शर्मा को चैलेंज देकर पटखनी दे नीतीशजी का बचाव किया था। 
                अब जब लालूजी पर हमला हो रहा है, तो नितीश जी मन्द मन्द मुस्कुरा रहे हैं।  ये लालू पर नहीँ सामाजिक न्याय के सिम्बल पर कुठाराघात है।   
               आगे किस पर कौन भरोसा करेगा? नीतीश को गदी देने के लिये लालूजी ने मांझी जी को बीजेपी से मिले रहने के आरोप में नीतीश जी का साथ दिया। 
             मिडिया जिस तरह दिखा रही है कि अडानी अम्बानी से भी ज्यादा लालू के पास सम्पति है। सम्पति के मामले में तो ये भारत में लाखों स्वर्णो के पीछे हैं। 
       इसीलिये लालूजी एवं नितीश जी अभी भी सोचिए मॉल नहीँ मिडिया हाउस खोलिए।
         नीतीश जी आप का ये रोल बहुत ही असहनीय है, सबको पता है rcp सिंह के पास जो पैसा जमा होता है हरेक ट्रांसफर एवं टिकट बंटवारे में वो कहाँ जाता है? 
              अभी लालूजी टारगेट पर हैं, अगली बार आप होइगा। इसीलिये जिस तरह इलेक्शन के समय सब कुछ भूल कर एक साथ होकर आप मुख्यमंत्री बने, उसी तरह आज एकसाथ हो बीजेपी को मुंहतोड़ जबाब दें। 

          क्योंकि सब को पता है, आप निर्धन नहीँ हैं, भले ही मीडिया आपको पर्दाफाश न कर सिर्फ लालूजी को टारगेट कर रहा है।

5 comments:

  1. http://m.hindi.eenaduindia.com/States/East/Bihar/PatnaCity/2017/07/13223233/Sushil-Modi-Target-lalu-nitish-and-Tejashwi.vpf

    ReplyDelete
  2. यादवो में भी बहुत नेता है सब नाम के और तो और सिर्फ चापलूस
    मुझे याद है बिहार में यादवो के खिलाफ गाली गलौज किया गया यहाँ तक यादव जाती को आतंकवादी बताया गया फिर भी किसी यादव ने कुछ नही बोला यहाँ तक कि भाजपा में बहुत यादव नेता थे उन्होंने इस मुद्दे पर कुछ नही बोला आखिर क्यों ???
    सिर्फ राजद ने ही पूरा बिहार में यादवो के खिलाफ बोलने वालों को आड़े हाथ लिया था क्या राजद ने ही सिर्फ यादवो का ठेका ले रखा है??
    देश के नौजवान बहादुर तेज बहादुर यादव के खिलाफ भाजपा ने दाल की कीमत उसका नौकरी खाकर चुकाई कोई भाजपा यादव नेता ने नही कुछ बोला आखिर क्यों???
    यूपी में नाम के आधार पर ही देखते पुलिसकर्मी को तबादला कर दिया जा रहा और इसपे तेजश्वी यादव ने जमकर लताड़े है लेकिन फिर भी कुछ यादव बोलता है लालू तेज तेजश्वी ने यादवो के लिए क्या किया तो मैं उन मूर्ख यादवो को बता देना चाहता हुँ इनलोगों ने आवाज देंने का काम किये है और आवाज बुलंद रहने के बाद ही हक मिलता है सुधर जाओ यादवो और इस दुख की घड़ी में लालू जी का साथ दे और अपना यादव एकता का परिचय दे वरना हक और आवाज दोनों फिर से दबा और कुचल दिया जाएगा घोटाला तो बहुत हुआ है, उस पर सी बी आई क्यों नहीं लगता केन्द्र सरकार , सिर्फ यादव को अलग थलग करके सभी गरीबो को सामन्ती शासन करने की साजिश किया जा रहा है, आरक्षण
    को भाजपा ख़त्म करना चाहती हैं, लेकिन लालु यादव और मुलायम सिंह यादव ही भाजपा के रास्ते का काँटा है, इसलिए इनलोगो को फँसाकर रास्ते से हटाने का रास्ता खोज लिया हम सभी दबे कुचले भाई, बहनो से अनुरोध है की केन्द्र सरकार की साजिश का मुँहतोड़ जवाब देना होगा !!

    ReplyDelete
  3. नीतीश कुमार को समझना सब के कूवत की बात नहीं........
    लालू एंड परिवार पार्टी को इतना ना कमजोर कर देना चाहते हैं नीतीश कुमार की भविष्य में लालू परिवार से कोई भी सदस्य मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री का दावा न कर सके! बिहार और देश के राजनीति में अकेला #ओबीसी नेता# का एकछत्र सम्रराज चलाना चाहते हैं नीतीश कुमार !!!
    नीतीश कुमार की खामोशी ये बयां करती है कि अगर CBI जांच की गहराई में जाकर देखा जाए तो कहीं न कहीं भाजपा के आर में नीतीश का भी हाथ हो सकता है!
    बड़े बुजुर्गों ने सही ही कहा है रास्ता चलते #ढोंरवा सांप और काला नाग# मिल जाऐ तो सबसे पहले ढोंरवा सांप से निपटन लेना चाहिए तब बाद में काला नाग से निपटना !!!
    ऐसा नहीं है कि इस बात को लालू प्रसाद यादव नहीं समझते ये सब समझते हैं पर सत्ता की मजबूरी क्या नहीं कराता है ???

    ReplyDelete
  4. बिहार: नीतीश की नई सरकार में 75 फीसदी मंत्रियों पर आपराधिक मामले दर्ज
    abpnews.abplive.in

    ReplyDelete