Friday 25 August 2017

शुद्धिकरण के लिए क्या तरीके अपनाएंगे?

दलितों के साथ रहने वाले ग़ैर-दलित छात्र जब वापस घर लौटते हैं तो उनके मां-बाप शुद्धिकरण के लिए क्या तरीके अपनाएंगे?

ढाई साल पहले गुजरात पुलिस से रिटायर्ड दलित आईपीएस अफ़सर राजन प्रियदर्शी ने ‘दलितों पर अत्याचार’ विषय पर पीएचडी के दौरान ग़ैर-दलित छात्रों को प्रश्नपत्र में यही सवाल पूछा.
बच्चों ने बताया कि मां-बाप उन्हें गाय छूने को कहेंगे जिससे वो पवित्र हो जाएंगे. गंगाजल छिड़कने पर शुद्धता आएगी. मुसलमान को छूने से भी अशुद्धियाँ दूर होंगी. उनसे सूरज की ओर लगातार देखने को कहा जाएगा जिससे शरीर शुद्ध होगा.
गैर-दलितों की सोच
राजन प्रियदर्शी कहते हैं, “इस प्रश्नपत्र में जवाब से पता चला कि ग़ैर-दलित, दलितों के साथ खाने को तो दूर उन्हें पड़ोसी बनाने को भी तैयार नहीं थे.”

आईजी के पोस्ट तक पहुंचने वाले प्रियदर्शी अपने गांव में उच्च जातियों के दबाव के कारण अपना घर तक नहीं बना पाए. मज़बूरन वो अहमदबाद के एक दलित-बहुल इलाक़े में रह रहे हैं.
वो कहते हैं, “गुजरात में कोई दलित अपनी मनपसंद जगह में नहीं रह सकता.”
गुजरात में दलितों की संख्या केवल सात फ़ीसद है और जाति आधार पर विभाजित गुजराती समाज में दलित सबसे नीचे हैं.
गुजरात के 1589 गावों में रिसर्च
कुछ समय पहले रॉबर्ट एफ़ केनेडी फ़ॉर जस्टिस एंड ह्यूमन राइट्स ने स्थानीय नवसर्जन ट्रस्ट के साथ दलितों के हालात पर गुजरात के 1589 गांवों का अध्ययन किया. इसमें पता चला कि दलितों के साथ 98 तरह से छुआछूत किया जाता है.

पाया गया कि 98.1 फ़ीसद गांवों में दलित ग़ैर-दलित के यहां मकान किराए पर नहीं ले सकता. 97.6 फ़ीसद गांवों में दलित ग़ैर-दलित के बर्तन को नहीं छू सकता. 67 फ़ीसद गांवों में दलित पंचायत सदस्यों के लिए अलग ‘दलित कप’ हैं.
56 फ़ीसद गांवों के चाय ढाबों में दलितों और ग़ैर-दलितों के अलग-अलग कप हैं. और हां दलित की ज़िम्मेदारी है कि वो अपने कप को धोकर ग़ैर-दलितों के कप से दूर रखें. 53 फ़ीसद गांवों में दलित बच्चों को अलग बिठाया जाता है, उनसे कहा जाता है कि वो अपना पानी घर से लाएं.
नवसर्जन की मंजुला प्रदीप बताती हैं, “पहले बसों में दलितों को ग़ैर दलित को सीटें देनी पड़ती थीं. वो कुएं से ख़ुद पानी नहीं भर सकते थे. उन्हें ऊपर से पानी दिया जाता था. दलितों के लिए अलग प्लेट हैं जिसे रक़ाबी कहते हैं. शोध में पाया गया कि 77 फ़ीसद गांवों में मैला ढोने की व्यवस्था है.”
दलितों को देते हैं मृतक की चारपाई

वो बताती हैं ग़ैर दलित की मौत पर कफ़न वाल्मीकि समुदाय के व्यक्ति को दिया जाता है. जिस चारपाई में व्यक्ति की मौत हुई है, वो दलित को दे दी जाती है. दलित बच्चों से ही टायलेट की सफ़ाई करवाई जाती है.
इन सबसे परेशान होकर दलित शहर जाते हैं. लेकिन वहां उन्हें मकान नहीं दिया जाता. अहमदाबाद में दलितों के अलग मोहल्ले हैं, जैसे बापूनगर, अमराईवाड़ी, वेजलनगर. अमीर दलित अपनी सोसाइटी में रहते हैं.
गांवों के मुख्य गरबे में दलित शामिल नहीं हो सकते. उनके श्मशान तक अलग हैं. कारण -दलित के जलने से निकलने वाले धुएं से पवित्रता नष्ट होगी. श्मशान न होने के कारण दलितों को अपने मृतकों को दफ़नाना भी पड़ता है.

दलित श्मशान
गांधीनगर से 50 किलोमीटर दूर बाउली गांव में ऐसा ही एक दलित श्मशान है. ऊपर टीन की चादर. चार लोहे के लंबे खंबे. कांक्रीट की ज़मीन. ज़मीन पर राख का निशान. जैसे थोड़े वक्त पहले ही कोई मानव शरीर राख हुआ हो. चारों ओर से छोटी दीवार का घेरा. गांव के एक कोने में दलितों के मकान है. अमीर पटेल इलाकों से उलट यहां न सड़क है, न शौचालय. चारों ओर गड्ढे, गड्ढों में मैला पानी, जो पानी के पाइप के पानी से मिलकर लोगों के घरों तक पहुंचता है.
स्थानीय निवासी पोपट बताते हैं, “यहां के पटेल, ठाकुर, कहते हैं कि तुम नीच कौम के हो, इसलिए तुम अपने श्मशान में शरीर जलाओ.”
11 साल के मयूर ने बताया, “मंदिर की प्रतिष्ठा के वक्त वो प्लास्टिक की प्लेट में खाते हैं, हमें कागज़ पर खाना दिया जाता है. वो हमें दुतकारते हैं. इसलिए हम उधर नहीं जाते. जब हम बैठते हैं तो हमें उठा दिया जाता है. कहा जाता है कि तुम हमारे साथ नहीं बैठ सकते. मेरे दिमाग में आता है कि मैं ये गांव छोड़कर चला जाऊं. वो हमें ठेड़े (गुजराती में नीची जाति) कहकर चिढ़ाते हैं.”

गुजरात में हर वर्ष दलित उत्पीड़न के हज़ार से ज़्यादा मामले दर्ज होते हैं. इनमें मौखिक क्रूरता से लेकर बलात्कार तक के मामले शामिल हैं. 2014 में 100 से ज़्यादा गांवों में दलितों की सुरक्षा के लिए पुलिस तैनात करनी पड़ी थी. आज ऐसे 14 गांव हैं.
अहमदाबाद के करीब 150 किलोमीटर दूर नंदाली गांव के एक खेत में मैं मजदूर बाबूभाई सेलमा से मिला. क़रीब एक हज़ार लोगों वाले इस गांव में केवल 20 दलित रहते हैं.
सेलमा के मुताबिक़ उन्हें स्थानीय राजपूत जुझार सिंह ने किसी बात पर कथित रूप से एक थप्पड़ मारा. जब वो मामला पुलिस के पास ले गए तो गांव में दलितों का सामूहिक बहिष्कार कर दिया गया. रात 10 बजे गांव के बाहर स्थित उनके झोपड़े के बाहर सभी दलित इकट्ठे हुए. उनके साथ थे गुजरात पुलिस के विपुल चौधरी.
गांव में स्थित नंदी माता के मंदिर में दलित प्रवेश नहीं कर सकते. माचिस खरीदने के लिए भी दलितों को तीन किलोमीटर दूर खैरालू गांव जाना पड़ता है. राजपूतों की ज़मीन पर वो काम नहीं कर सकते इसलिए भूखों मरने की नौबत आ गई है.

जुझार सिंह मामले को फ़र्जी बताते हैं. लेकिन बेहिचक कहते हैं, “हम दलित के घर नहीं खाते, सारा गुजरात नहीं खाता. केजरीवाल खाता है. राहुल गांधी खाता है. हम नहीं.”
राम मंदिर आंदोलन में साथ, राम मंदिर में नहीं
गुजरात में वर्ण व्यवस्था और जाति बेहद महत्वपूर्ण है. राम मंदिर बनाने बहुत से दलित और आदिवासी भी अ
योध्या गए थे. लेकिन जब वही दलित वापस अपने गांव आए तो उन्हें राम मंदिर में घुसने तक नहीं दिया गया. शहरों में जाति-आधारित इमारतें हैं लेकिन गांवों में स्थिति बदतर है. उच्च जाति वाला अपने से नीची जाति के लोगों को नीची निगाह से देखता है.
एक वक्त था जब लोग पूछते थे, तुम्हारा दूध क्या है. दलित संख्या में कम हैं. उनके पास ज़मीन नहीं है. आर्थिक कारणों और भेदभाव से दलित बच्चे बड़ी संख्या में प्राइमरी स्कूल से आगे नहीं पढ़ पाते. इस कारण वो आरक्षण के फ़ायदे से भी महरूम हैं. छूत-अछूत की समस्या सौराष्ट्र में सबसे विकट है.
समाजशास्त्री गौरांग जानी बताते हैं कि सौराष्ट्र के अलग-अलग हिस्सों में सामंती सोच वाले राजाओं का राज था. राजा तो चले गए लेकिन सोच जीवित रही.
वो कहते हैं, “गुजरात में कोई नॉलेज ट्रेडिशन नहीं है. गांधीवादी सोच को किनारे रख दिया गया है. यहां कोई वाम आंदोलन नहीं हुआ. इस खालीपन में हिंदुत्ववादियों को जगह मिली. हिंदू एकता के नाम पर राजनीतिक दल हिंदुओं को साथ तो ले आए लेकिन दलितों की ज़िंदगी बदलने की कोशिश नहीं की गई. पहले साथ रहना एक पाठशाला जैसा था. अब जाति आधारित आवासीय इमारतों के कारण पुराना बंधन टूट गया है.”
भूमंडलीकरण के दौर में जब सभी वर्ग आगे की ओर बढ़ रहे हैं, तो दलित युवा ख़ुद की हालत देखते हैं और पूछ रहे हैं, आख़िर विकास के दौर में उनका विकास क्यों नहीं हो रहा है. अगर पटेल सरकार पर हावी हो सकते हैं तो दलित क्यों नहीं. आरक्षण विरोध प्रदर्शन और कई दंगे देख चुके गुजरात में दलित के लिए सबसे बड़ी चुनौती लोगों की मानसिकता बदलने की है.

बीबीसी हिंदी वेबसाइट पर विनित खरे की रिपोर्ट
http://www.bbc.com/…/20…/07/160725_gujarat_dalit_part_one_tk


मेरे दलितो अगर आपने ये नही पढ़ा तो समजो आपने ज़िंदगी कुछ नही पढ़ा
ईस लिये ये जरुर पढ़ो ओर जानो--->
30 crore Sc/St PeoplesOf India,•
आरक्षण का विरोध कौन कर रहे हैं :-
1. आरक्षण का विरोध मुसलमान नहीं कर रहे हैं।
2. आरक्षण का विरोध सिख नहीं कर रहे हैं।
3.आरक्षण का विरोध ईसाई नहीं कर रहे हैं।आरक्षण का विरोध तो छुआछूत फैलाने वालेकर रहे हैं।
भेदभाव फैलाने वाले कर रहे हैं।जात-पात का अंतर
करने वाले कर रहे हैं। साम्प्रदायिकता फैलाने वाले कर रहे हैं।आरक्षण का विरोध क्यों कर रहे हैं क्योंकि उनके अंदर लालच है और ऊँच--नीच की भावना है।वो मनुवादी हैं । मनुवाद खत्म होगा तो मानवतावाद का
जन्म होगा और हम हैं मानवतावादी।अंग्
रेजों ने भारत पर 150 वर्षों तक राज किया ब्राह्मणों ने उनको भगाने का हथियार बन्द आंदोलन क्यों
चलाया? जबकि भारत पर सबसेपहले हमला मुस्लिम शासक मीर काशीम
ने 712ई. किया! उसके बाद महमूद गजनबी, मोहम्मद गौरी,चन्गेज खान ने
हमला किये और फिर कुतुबद्दीन एबक, गुलाम वंश, तुग्लक वंश, खिल्जी वंश,

लोदी वंश फिर मुगल आदि वन्शजों ने भारत पर राज किया और खूब
अत्याचार किये लेकिन ब्राम्हणों ने कोई क्रांति या आंदोलन नहीं
चलाया! फिर अन्ग्रेजों के खिलाफ़ ही क्यो क्रांति कर दीजानिये
क्रांति और आंदोलन की वजh
1- अंग्रेजो ने 1795 में अधिनयम 11 द्वारा
शुद्रों को भी सम्पत्ति रखने का कानून बनाया।
2- 1773 में ईस्ट इंडिया
कम्पनी ने रेगुलेटिंग एक्ट पास किया जिसमें न्याय व्यवस्था समानता पर
आधारित थी।6 मई 1775 को इसी कानून द्वारा बंगाल के सामन्त
ब्राह्मण नन्द कुमार देव को फांसी हुई थी।3- 1804 अधिनीयम 3 द्वारा
कन्या हत्या पर रोक अंग्रेजों ने लगाई (लडकियों के पैदा होते ही तालु में
अफीम चिपकाकर, माँ के स्तन पर धतूरे का लेप लगाकर, एवम् गढ्ढा
बनाकर उसमें दूध डालकर डुबो कर मारा जाता था)4- 1813 में ब्रिटिश
सरकार ने कानून बनाकर शिक्षा ग्रहण करने का सभी जातियों और
धर्मों के लोगों को अधिकार दिया।5- 1813 में अंग्रेजों ने दास प्रथा
का अंत कानून बनाकर किया।6- 1817 में समान नागरिक संहिता कानून
बनाया(1817 के पहले सजा का प्रावधान वर्ण के आधार पर था।
ब्राह्मण को कोई सजा नहीं होती थी ओर शुद्र को कठोर दंड दिया
जाता था। अंग्रेजो ने सजा का प्रावधान समान कर दिया।)7- 1819 में
अधिनियम 7 द्वारा ब्राह्मणों द्वारा शुद्र स्त्रियों के शुद्धिकरण पर
रोक लगाई। (शुद्रों की शादी होने पर दुल्हन को अपने यानि दूल्हे के घर न
जाकर कम से कम तीन रात ब्राह्मण के घर शारीरिक सेवा देनीपड़ती
थी।)8- 1830 नरबलि प्रथा पर रोक ( देवी -देवता को प्रसन्न करने के
लिए ब्राह्मण शुद्रों, स्त्री व पुरुष दोनों को मन्दिर में सिर पटकपटक कर
चढ़ा देता था।)9- 1833 अधिनियम 87 द्वारा सरकारी सेवा में भेद भाव
पर रोक अर्थात योग्यता ही सेवा का आधार स्वीकार किया गया
तथा कम्पनी के अधीन किसी भारतीय नागरिक को जन्म स्थान, धर्म,
जाति या रंग के आधार पर पद से वंचित नही रखा जा सकता है।10-1834
में पहला भारतीय विधि आयोग का गठन हुआ। कानून बनाने की व्यवस्था

जाति, वर्ण, धर्म और क्षेत्र की भावना से ऊपर उठकर करना आयोग का
प्रमुख उद्देश्य था।11-1835 प्रथम पुत्र को गंगा दान पर रोक (ब्राह्मणों
ने नियम बनाया की शुद्रों के घरयदि पहला बच्चा लड़का पैदा हो तो उसे
गंगा में फेंक देना चाहिये।पहला पुत्र ह्रष्ट-पृष्ट एवं स्वस्थ पैदा होता है।
यह बच्चा ब्राह्मणों से लड़ न जाय इसलिए पैदा होते हीगंगा को दान
करवा देते थे।12- 7 मार्च 1835 को लार्ड मैकाले ने शिक्षा नीति
राज्य का विषय बनाया और उच्च शिक्षा कोअंग्रेजी भाषा का
माध्यम बनाया गया।13- 1835 को कानून बनाकर अंग्रेजों ने शुद्रों को
कुर्सी पर बैठने का अधिकार दिया।14- दिसम्बर 1829 के नियम 17
द्वारा विधवाओंको जलाना अवैध घोषित कर सती प्रथा का अंत
किया।15- देवदासी प्रथा पर रोक लगाई।ब्राह्मणोंके कहने से शुद्र
अपनी लडकियों को मन्दिर कीसेवा के लिए दान देते थे। मन्दिर के
पुजारी उनका शारीरिक शोषण करते थे। बच्चा पैदा होने पर उसे फेंक देते
थे।और उस बच्चे को हरिजन नाम देते थे। 1921 को जातिवार जनगणना के


आंकड़े के अनुसार अकेले मद्रास में कुल जनसंख्या 4 करोड़ 23 लाख थी
जिसमें 2 लाख देवदासियां मन्दिरों में पड़ी थी। यह प्रथाअभी भी
दक्षिण भारत के मन्दिरों में चल रही है।16- 1837 अधिनियम द्वारा
ठगी प्रथा का अंत किया।17- 1849 में कलकत्ता में एक बालिका
विद्यालय जे ई डी बेटन ने स्थापित किया।18- 1854 में अंग्रेजों ने 3
विश्वविद्यालय कलकत्ता, मद्रास और बॉम्बे में स्थापित किये। 1902 में
विश्वविद्यालय आयोग नियुक्त किया गया।19- 6 अक्टूबर 1860 को
अंग्रेजों ने इंडियन पीनल कोड बनाया। लार्ड मैकाले ने सदियों से जकड़े
शुद्रों की जंजीरों को काट दिया ओर भारत में जाति, वर्ण और धर्म के
बिना एक समानक्रिमिनल लॉ ला़गू कर दिया।20- 1863 अंग्रेजों ने
कानून बनाकर चरक पूजापर रोक लगा दिया (आलिशान भवन एवं पुल
निर्माण पर शुद्रों को पकड़कर जिन्दा चुनवादिया जाता था इस पूजा
में मान्यता थी की भवन और पुल ज्यादा दिनों तक टिकाऊ रहेगें।21-
1867 में बहु विवाह प्रथा पर पुरे देश में प्रतिबन्ध लगाने के उद्देश्य से बंगाल
सरकार ने एक कमेटी गठित किया ।22- 1871 में अंग्रेजों ने भारत में
जातिवारगणना प्रारम्भ की।अजीब दोगलापन है, लोगो को आरक्षण
से चिड़ है लेकिन अपनी जाति के उच्च होने पर गर्व है !सब्जी खरीदते समय
जाति नहीं देखी जाती मगर उसी सब्जी को खिलाते समय जाति देखी
जाती हैं।। फसल कटाई पर जाति नहीं देखते मगर उसकीबनी रोटियां
खिलाते समय जाति देखी जाती हैं।। मकान बनबाने के लिए जाति नहीं
देखते मगर जब मकान बन जाये तो उसमे बैठाने के लिए जाति देखते हैं।।
मंदिर बनबाने के लिए जाति नहीं देखते मगर उसमें जाने के लिए जाति
देखते हैं।। स्कूल या कॉलेज बनबाने के लिए जाति नहीं देखते लेकिन पढ़ाई
के वक़्त जाति देखी जाती हैं।। कपङे खरीदते समय जाति नहीं देखते मगर
उन्हीं कपड़ों को पहनकर उनसे दूर भागते हैं।। साथियों ये भारत देश हैं,, जहाँ

कुछ मूर्ख लोग कहते हैं कि जाति व्यवस्था खत्म हो गई है। बुद्धिजीवियों
का सामाजिक दायित्व..."इंसान जीता है,पैसे कमाता है,खाना
खाता है और अंततः मर जाता हैं। जीता इसलिए है ताकि कमा सके...
कमाता इसलिए है ताकि खा सके... खाताइसलिए है ताकि जिन्दा रह
सके... लेकिन फिर भी एक दिन मर ही जाता है... अगर सिर्फ मरने के डर से
कमाकर खाते हो तो अभी मर जाओ,मामला खत्म,मेहनत बच जायेगी।
मरना तो सबको एक दिन हैं ही, नहीं तो समाज के लिए जियो, ज़िन्दगी
का एक उद्देश्य बनाओं, गुलामी की जंजीरो मेंजकड़े समाज को आज़ाद
कराओं। अपना और अपने बच्चों का भरण पोषण तो एक जानवर भी कर
लेता हैं। मेरी नज़र में इंसान वही है जो समाज की भी चिंता करे और
समाज के लिये कार्य भी करे। नहीं तो डूब मरे ,अगर जिंदगी सिर्फ खुद के

लिये ही जी रहे हैं तो"..................

3 comments:

  1. Jab tak hamare desh ke neta Nahi sudharenge,tab tak hamara desh aur samaj Nahi sudhar Sakta.

    ReplyDelete
  2. Aaj bhi dalit purn rup swatantra nahi hai. Sarkari ko enkae vikas par kam karana chaahiye

    ReplyDelete