*“हमने नेहरु के कहने पर बाबासाहेब पर पथराव किया था” -भोला पासवान शास्त्री.*
ब्राह्मण नेहरु ने "Objective Resolution" में लिखित रुप से आश्वासन दिया था कि ओबीसी को उनके अधिकार देने के लिए जल्द ही संविधान के आर्टिकल ३४० के तहत एक आयोग का गठन किया जायेगा और ओबीसी उनके संवैधानिक अधिकर दिये जायेंगे लेकिन संविधान लागु होने के डेढ़ साल बाद भी जब ब्राह्मण नेहरु ने अपने आश्वासन का पालन नहीं किया तब जाकर इसके विरोध में बाबासाहब डा. अम्बेडकर ने अपने कानून मंत्री पद का इस्तिफा दिया। बाबासाहब ने इस्तीफा देने के चार कारण बताए थे, दूसरे नंबर का कारण था ब्राह्मण नेहरु द्वारा ओबीसी के लिए आयोग का गठन ना करना!
अपने मंत्री पद का इस्तीफ़ा देने के बाद बाबासाहब ने ओबीसी को जागृत करने का एक वृहद कार्यक्रम बनाया और वे देशभर में घूँमने लगे। ऐसा ही एक कार्यक्रम दि.६ नवंबर १९५१ को आर.एल.चंदापुरीजी के माध्यम से पटना, बिहार में लगाया था। वो महज एक कार्यक्रम नहीं बल्कि ओबीसी की एक विशाल रैली थी और उस विशाल रैली को संबोधित करने के लिए आर.एल.चंदापुरीजी ने बाबासाहब डा.आंबेडकर जी को बुलाया था। यह बात रैली से पहले ही ब्राह्मण नेहरु को पता चली और उसने उस रैली को विफल बनाने का षडयंत्र रचा। इसके लिए ब्राह्मण नेहरु ने बाबू जगजीवन राम को काम पर लगा दिया। बाबू जगजीवन राम ने भोला पासवान शास्त्री को रैली को विफल कराने कि जिम्मेदारी दी। भोला पासवान शास्त्री ने रैली पर पथराव किया। रैली में भगदड मची, बाबासहाब को अपना भाषण अधूरा छोडना पडा। यह बात खुद भोला पासवान शास्त्री ने अपने अंतिम दिनों में कही है। वे कहते है ‘ओबीसी के मसीहा बाबासाहब जब पहली बार पटना आये थे तब मैने बाबू जगजीवन राम कहने पर बाबासाहब पर पत्थर फेंके थे। इस बात का का मुझे हमेशा मलाल रहेगा और शायद अपने आपको कभी माफ न कर पाऊं। आज उसी बाबु जगजीवन राम की लडकी राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए काँग्रेस द्वारा नामांकित उमीदवार है। दूसरा RSS BJP का एजेंट रामनाथ कोविंद है। दलाली तो इन दोनों के खून में ही है.
बाबासाहब की रैली पर पथराव हुआ लेकिन तत्कालीन मीडिया ने एक लाईन की खबर तक नहीं छापी। उन्हें ऐसा करने के आदेश ब्राह्मण नेहरु से प्राप्त हुए थे। बाबासाहब ने ओबीसी कि रैली में ऐसा क्या कहा कि पं. नेहरु ने उसे ना छापने के आदेश दिए, यह बहुत महत्वपुर्ण सवाल है।
बाबासाह ब ने ओबीसी को संबोधित करते हुए कहा था
*“नेहरु और कांग्रेस लोकतंत्र पर ब्राम्हणों का एकाधिकार करना चाहते है, इसे मै नहीं होने दूँगा। अगर पिछडे वर्ग के बुद्धिजीवी लोग मुझे साथ-सहयोग करते है तो मै आर-पार की लडाई लडने के लिए तैयार हूँ।”*
यह बात ब्राम्हणी व्यवस्था के लिए कितनी नुकसानदायी हो सकती थी इसे नेहरु अच्छी तरह जानता था, इसलिए नेहरु ने उसे मीडिया से ब्लैक आऊट कर दिया।
आज तक ब्राम्हणों का प्रत्येक षडयंत्र ओबीसी को अज्ञान में रखने के लिए ही किया गया है। जिस दिन ओबीसी को विदेशी ब्राम्हणों द्वारा हो रहे अन्याय-अत्याचार की जानकारी हो जायेगी उस दिन ब्राम्हणी व्यवस्था भारत में आखरी सांस लेगी।
ब्राह्मण नेहरु ने "Objective Resolution" में लिखित रुप से आश्वासन दिया था कि ओबीसी को उनके अधिकार देने के लिए जल्द ही संविधान के आर्टिकल ३४० के तहत एक आयोग का गठन किया जायेगा और ओबीसी उनके संवैधानिक अधिकर दिये जायेंगे लेकिन संविधान लागु होने के डेढ़ साल बाद भी जब ब्राह्मण नेहरु ने अपने आश्वासन का पालन नहीं किया तब जाकर इसके विरोध में बाबासाहब डा. अम्बेडकर ने अपने कानून मंत्री पद का इस्तिफा दिया। बाबासाहब ने इस्तीफा देने के चार कारण बताए थे, दूसरे नंबर का कारण था ब्राह्मण नेहरु द्वारा ओबीसी के लिए आयोग का गठन ना करना!
अपने मंत्री पद का इस्तीफ़ा देने के बाद बाबासाहब ने ओबीसी को जागृत करने का एक वृहद कार्यक्रम बनाया और वे देशभर में घूँमने लगे। ऐसा ही एक कार्यक्रम दि.६ नवंबर १९५१ को आर.एल.चंदापुरीजी के माध्यम से पटना, बिहार में लगाया था। वो महज एक कार्यक्रम नहीं बल्कि ओबीसी की एक विशाल रैली थी और उस विशाल रैली को संबोधित करने के लिए आर.एल.चंदापुरीजी ने बाबासाहब डा.आंबेडकर जी को बुलाया था। यह बात रैली से पहले ही ब्राह्मण नेहरु को पता चली और उसने उस रैली को विफल बनाने का षडयंत्र रचा। इसके लिए ब्राह्मण नेहरु ने बाबू जगजीवन राम को काम पर लगा दिया। बाबू जगजीवन राम ने भोला पासवान शास्त्री को रैली को विफल कराने कि जिम्मेदारी दी। भोला पासवान शास्त्री ने रैली पर पथराव किया। रैली में भगदड मची, बाबासहाब को अपना भाषण अधूरा छोडना पडा। यह बात खुद भोला पासवान शास्त्री ने अपने अंतिम दिनों में कही है। वे कहते है ‘ओबीसी के मसीहा बाबासाहब जब पहली बार पटना आये थे तब मैने बाबू जगजीवन राम कहने पर बाबासाहब पर पत्थर फेंके थे। इस बात का का मुझे हमेशा मलाल रहेगा और शायद अपने आपको कभी माफ न कर पाऊं। आज उसी बाबु जगजीवन राम की लडकी राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए काँग्रेस द्वारा नामांकित उमीदवार है। दूसरा RSS BJP का एजेंट रामनाथ कोविंद है। दलाली तो इन दोनों के खून में ही है.
बाबासाहब की रैली पर पथराव हुआ लेकिन तत्कालीन मीडिया ने एक लाईन की खबर तक नहीं छापी। उन्हें ऐसा करने के आदेश ब्राह्मण नेहरु से प्राप्त हुए थे। बाबासाहब ने ओबीसी कि रैली में ऐसा क्या कहा कि पं. नेहरु ने उसे ना छापने के आदेश दिए, यह बहुत महत्वपुर्ण सवाल है।
बाबासाह ब ने ओबीसी को संबोधित करते हुए कहा था
*“नेहरु और कांग्रेस लोकतंत्र पर ब्राम्हणों का एकाधिकार करना चाहते है, इसे मै नहीं होने दूँगा। अगर पिछडे वर्ग के बुद्धिजीवी लोग मुझे साथ-सहयोग करते है तो मै आर-पार की लडाई लडने के लिए तैयार हूँ।”*
यह बात ब्राम्हणी व्यवस्था के लिए कितनी नुकसानदायी हो सकती थी इसे नेहरु अच्छी तरह जानता था, इसलिए नेहरु ने उसे मीडिया से ब्लैक आऊट कर दिया।
आज तक ब्राम्हणों का प्रत्येक षडयंत्र ओबीसी को अज्ञान में रखने के लिए ही किया गया है। जिस दिन ओबीसी को विदेशी ब्राम्हणों द्वारा हो रहे अन्याय-अत्याचार की जानकारी हो जायेगी उस दिन ब्राम्हणी व्यवस्था भारत में आखरी सांस लेगी।
डर गए मेरी रफ्तार से तो लो आरक्षण छोड़ता हूँ
ReplyDeleteमैं !!!!
तुम बस ये ऐलान कर दो कि मैं तुम जैसा हूँ
और तुम मेरे जैसे हो ।
कह दो कि ब्रह्मा के मुख से नही निकले तुम !!
नही निकले उसकी भुजाओं से !
या फिर उसके पेट से !!
क्योंकि मैं वहां से बिलकुल नही निकला !!!!
मुझे मेरे माता-पिता ने जन्म दिया है एक प्राकृतिक
प्रक्रिया के द्वारा। और कहो कि तुम मुझसे किसी
भी
मायने में उच्च और श्रेष्ठ नही हो !!!
और अगर सचमुच मुझसे श्रेष्ठ हो तो साबित
करो !!
पैर और मुँह का अंतर सिर्फ अधिकार तक सीमित
है क्या ???? कर्तव्य नही बनता क्या श्रेष्ठ लोगों
का अपने से
कमजोरों के प्रति ???
पर जब खाने की बारी आये तो तुम याचक बन जाते
हो !!!
और खिलाने की बात आये तो not reachable
हो जाते हो ??
ये आरक्षण खत्म करते हैं !!!
चलो पहले बताओ अपनी कुटिलता के किस्से !!!!
और माफ़ी मांगो कि हमारे पूर्वजों ने
झूठ बोलकर
छल कपट से
धर्म के नाम पर
जाति के नाम पर
और झूठे ग्रन्थों के नाम पर
पूरे देश को मूर्ख बनाये रखा , जिसका दुष्परिणाम
आज तक देश
और पूरी पीढ़ी भुगत रही है । ये भी कहो कि सभी
आदमी बराबर होते हैं किसी जाति में
पैदा होकर ना कोई नीच होता है और ना ही
ऊँचा !!!!!
कह दो कि मन्दिरों में बैठकर तुमने मलाई काटी है ।
अपनी शस्त्र विद्या से तुमने अपने
ही निर्दोष भाईयो का गला काट कर उनके साथ
विश्वासघात किया है । तुमने छुरा हमेशा अपनों की
पीठ में घौंपा है ।
डरा धमका कर तुमने
डरा धमका कर तुमने जमीन पर अपना कब्जा किया
और मुट्ठी भर अनाज के बदले खून के आंसू रुलाये हैं
।
कह दो कि तुम लोगों ने किसी मजबूर की
मजबूरी का लाभ उठा कर एक रुपये के बदले सूद
के रूप में उसकी जिंदगी की सारी मेहनत सम्मान
इज्जत
और अंत में उसकी जान पर भी
पीछा नही छोड़ा । और उसी एक रुपये को उसकी
पीढ़ियों से भी वसूल किया है ।
जिस जिस आदमी ने आरक्षण के खिलाफ ज़हर
उगला है वो मेरी पोस्ट को शेयर करे और उपरोक्त
बातें अपनी वाल पर लिखे ।
सरकार के पास चिट्ठी लिखे
मन्दिर की दीवारों पर लिखवाये
और सभी सार्वजनिक स्थानों पर
ठीक उसी अंदाज में पर्चे छपवा कर
बांटे कि (पुजारी ने सांप देखा, सांप मनुष्य बनकर
बोला etc वाला मैटर )।
और सबसे महत्वपूर्ण बात
उस गलती को सुधारने का प्रयास करें जो तुम्हारे
दादा नाना ने की है ।
आरक्षितों के साथ "बेटी -रोटी का व्यवहार" करें ।
कीमत ज्यादा नही है दोस्तों और
एकदम दीवाली धमाका है तुम्हारे ही अंदाज में ।
मैं नही कहूँगा कि 2000 साल तक शिक्षा , सम्पति
के अधिकार से वंचित रहना पड़ेगा ।
गाँव से बाहर जंगल में रहना पड़ेगा।
गले में हांड़ी और कमर पर झाड़ू बाँधनी पड़ेगी ।
खेतों में जानवर की तरह मेहनत करो और हल
चलाना पड़ेगा ।
फसल के समय खाने के दानों के लिए गिड़गिड़ाना
पड़ेगा ।
नालियों की और गटर की सफाई करनी पड़ेगी ।
और रूपये के बदले पीढियां गंवानी पड़ेंगी ।
क्योंकि जिसने इतना सहा है
उसकी झुकी कमर
बोझिल मन मष्तिष्क
आँखों के आंसू
शरीर की त्वचा
जुल्म को याद कर के खड़े होने वाले रौंगटे
आज भी सम्मान की ,इज्जत
की, भूख की ,कीमत
समझते है
और मैं उसी का हिस्सा हूँ।
*बाबा साहब की मृत्यु हुई तो छः लाख के करीब लोग इक्कठा थे और रो रहै थे।*
ReplyDelete*कार्ल मार्क्स मरा तो उसके पास सिर्फ चौदह लोग थे।*
*सोचो उन चौदह लोग ने मार्क्स वाद को पुरे विश्व मे फैला दिया ।*
*और छः लाख भक्त घर गये और अगरबत्तिया करने लगे।*
*जय भीम बोलकर अपना फर्ज निभाते रहै।*
*जय भीम न बोलकर भी अगर उनके विचारो को फैलाते तो आज ब्राह्म्णवाद खत्म हो जाता और भीम का असली मकसद पुरा हो जाता।*
*मगर ऐसा नही हुआ। पता है क्यु??*
*क्युकि कार्ल मार्क्स के अनुयायी थे और भीम के पिछे भक्त।*
*भक्ति विचारो को नष्ट कर देती है।*
*आज भीम के विचारो को फैलाने के लिए भीम अनुयायीयो की शख्त जरूरत है।*
*जय भीम बोलकर समाज को बेचने वाले लोगो से समाज को बचाओ।*