*#आरक्षण के जनक छत्रपति शाहूजी महाराज*
*छत्रपति शाहू महाराज* का जन्म 26 जून, 1874 ई. को कुन्बी (कुर्मी) जागीरदार श्रीमंत जयसिंह राव आबा साहब घाटगे के यहां हुआ था। बचपन में इन्हें यशवंतराव के नाम से जानते थे। छत्रपति शिवाजी महाराज (प्रथम) के दूसरे पुत्र के वंशज शिवाजी चतुर्थ कोल्हापुर में राज्य करते थे। ब्रिटिश षडयंत्र और अपने ब्राम्हण दीवान की गद्दारी की वजह से जब शिवाजी चतुर्थ का कत्ल हुआ तो उनकी विधवा आनंदीबाई ने अपने जागीरदार जयसिंह राव आबासाहेब घाटगे के पुत्र यशवंतराव को मार्च, 1884 ई. में गोद ले लिया। बाल्य-अवस्था में ही यशवंतराव को साहू महाराज की हैसियत से कोल्हापुर रियासत की राजगद्दी सम्भालनी पड़ी। हालांकि राज्य का नियंत्रण उनके हाथ में काफ़ी समय बाद 2 अप्रैल, 1894 में आया। छत्रपति साहू महाराज का विवाह बड़ौदा के मराठा सरदार खानवीकर की बेटी लक्ष्मीबाई से हुआ था। साहू महाराज की शिक्षा राजकोट के राजकुमार महाविद्यालय और धारवाड़ में हुई थी। वे 1894 ई. में कोल्हापुर रियासत के राजा बने।
उन्होंने देखा कि जातिवाद के कारण समाज का एक वर्ग पिस रहा है। छत्रपति शाहू महाराज ने दलित और पिछड़ी जाति के लोगों के लिए विद्यालय खोले और छात्रावास बनवाए। इससे उनमें शिक्षा का प्रचार हुआ और सामाजिक स्थिति बदलने लगी। परन्तु उच्च वर्ग के लोगों ने इसका विरोध किया। वे छत्रपति शाहू महाराज को अपना शत्रु समझने लगे। उनके पुरोहित तक ने यह कह दिया कि आप शूद्र हैं और शूद्र को वेद के मंत्र सुनने का अधिकार नहीं है। छत्रपति शाहूजी महाराज ने इस सारे विरोध का डट कर सामना किया और अपने राज्य में राज पुरोहित पद पर सिर्फ ब्राम्हण की नियुक्ति पर रोक लगा दी।
देश में आरक्षण के जनक- 1894 में, जब शाहूजी महाराज ने राज्य की बागडोर सम्भाली थी, उस समय कोल्हापुर के सामान्य प्रशासन में कुल 71 पदों में से 60 पर ब्राह्मण अधिकारी नियुक्त थे। इसी प्रकार लिपिक पद के 500 पदों में से मात्र 10 पर गैर-ब्राह्मण थे।
1902 के मध्य में शाहू जी महाराज ने इस गैरबराबरी को दूर करने के लिए देश में पहली बार अपने राज्य में आरक्षण व्यवस्था लागू की। एक आदेश जारी कर कोल्हापुर के अंतर्गत शासन-प्रशासन के *50 प्रतिशत पद पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित कर दिये।* महाराज के इस आदेश से ब्राह्मणों पर तो जैसे गाज गिर गयी। विदित रहे कि शाहू जी महाराज द्वारा पिछड़ी जातियों को अवसर उपलब्ध कराने के बाद 1912 में 95 पदों में से ब्राह्मण अधिकारियों की संख्या घटकर 35 रह गई थी। शाहूजी महाराज ने कोल्हापुर नगरपालिका के चुनाव में अछूतों के लिए भी सीटें आरक्षित की थी। इसका असर भी दिखा देश में ऐसा पहला मौका आया जब राज्य नगरपालिका का अध्यक्ष अस्पृश्य जाति से चुन कर आया था।
*शाहूजी महाराज के अतुलनीय योगदान*
छत्रपति शाहू महाराज ने सिर्फ यही नहीं किया, अपितु उन्होंने पिछड़ी जातियों समेत समाज के सभी वर्गों के लिए अलग-अलग सरकारी संस्थाएं खोलने की पहल की। यह अनूठी पहल थी उन जातियों को शिक्षित करने के लिए, जो सदियों से उपेक्षित थीं, इस पहल में दलित-पिछड़ी जातियों के बच्चों की शिक्षा के लिए ख़ास प्रयास किये गए थे। वंचित और गरीब घरों के बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई। शाहू महाराज के प्रयासों का परिणाम उनके शासन में ही दिखने लग गया था। शाहू जी महाराज ने जब देखा कि अछूत-पिछड़ी जाति के छात्रों की राज्य के स्कूल-कॉलेजों में पर्याप्त संख्या हैं, तब उन्होंने वंचितों के लिए खुलवाये गए पृथक स्कूल और छात्रावासों को बंद करवा दिया और उन्हें सामान्य छात्रों के साथ ही पढ़ने की सुविधा प्रदान की। साथ मुस्लिम समाज की शिक्षा पर भी विशेष ध्यान देने के लिए *मुस्लिम शिक्षा समिति* का गठन किया ।
1- छत्रपति साहू महाराज के कार्यों से उनके विरोधी भयभीत थे और उन्हें जान से मारने की धमकियाँ दे रहे थे। इस पर उन्होंने कहा वे गद्दी छोड़ सकते हैं, मगर सामाजिक प्रतिबद्धता के कार्यों से वे पीछे नहीं हट सकते।
2- साहू महाराज जी ने 15 जनवरी, 1919 के अपने आदेश में कहा था कि- उनके राज्य के किसी भी कार्यालय और गाँव पंचायतों में भी दलित-पिछड़ी जातियों के साथ समानता का बर्ताव हो, यह सुनिश्चित किया जाये। उनका स्पष्ट कहना था कि छुआछूत को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। उच्च जातियों को दलित जाति के लोगों के साथ मानवीय व्यवहार करना ही चाहिए। जब तक आदमी को आदमी नहीं समझा जायेगा, समाज का चौतरफा विकास असम्भव है।
3- 15 अप्रैल, 1920 को नासिक में छात्रावास की नींव रखते हुए साहू जी महाराज ने कहा कि- जातिवाद का का अंत ज़रूरी है. जाति को समर्थन देना अपराध है। हमारे समाज की उन्नति में सबसे बड़ी बाधा जाति है। जाति आधारित संगठनों के निहित स्वार्थ होते हैं। निश्चित रूप से ऐसे संगठनों को अपनी शक्ति का उपयोग जातियों को मजबूत करने के बजाय इनके खात्मे में करना चाहिए।
4- जाति व्यवस्था ब्राह्मणों की सबसे बड़ी ताकत और बहुजनों की सबसे बड़ी कमजोरी बनी हुई है उसे जड़ से खत्म करने के लिए शाहूजी महाराज ने एक अछूत गंगाधर काम्बले की चाय की दुकान खुलवाई और स्वयं महाराज यह संदेश देने के लिए चाय पीने जाते थे कि जब महाराज छुआ-छूत और जाति-पांति को नहीं मानता तो जनता को भी नहीं माननी चाहिए उस जमाने में एक अछूत की चाय की दुकान खुलवाना ब्राह्मणवादी जाती व्यवस्था के खिलाफ सबसे बड़ा साहसिक कदम था ।
5- बाबा साहब को पूर्ण समर्थन- बाबा साहेब डा० भीमराव अम्बेडकर बड़ौदा नरेश की छात्रवृति पर पढ़ने के लिए विदेश गए लेकिन छात्रवृत्ति बीच में ही खत्म हो जाने के कारण उन्हे वापस भारत आना पड़ा l इसकी जानकारी जब शाहू जी महाराज को हुई तो महाराज खुद भीमराव का पता लगाकर मुम्बई की चाल में उनसे मिलने पहुंच गए और आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्हें सहयोग दिया।
6- शोषित पिछड़ों को डा अम्बेडकर के रूप में एक नेता मिल गया है ऐसी सार्वजनिक सभा में शाहूजी महाराज ने घोषणा की ।
7- शाहूजी महाराज ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर के मूकनायक समाचार पत्र के प्रकाशन में भी सहायता की। महाराजा के राज्य में कोल्हापुर के अन्दर ही दलित-पिछड़ी जातियों के दर्जनों समाचार पत्र और पत्रिकाएँ प्रकाशित होती थीं। सदियों से जिन लोगों को अपनी बात कहने का हक नहीं था, महाराजा के शासन-प्रशासन ने उन्हें बोलने की स्वतंत्रता प्रदान कर दी।
छत्रपति साहूजी महाराज का निधन 10 मई, 1922 मुम्बई में हुआ। महाराज ने पुनर्विवाह को क़ानूनी मान्यता दी थी। उनका समाज के किसी भी वर्ग से किसी भी प्रकार का द्वेष नहीं था। साहू महाराज के मन में बहुजन वर्ग के प्रति गहरा लगाव था। उन्होंने सामाजिक परिवर्तन की दिशा में जो क्रन्तिकारी उपाय किये थे, उसके लिए क्रांतिकारी नमन।
*जागो और जगाओ*
*महापुरुषों को पहचानो*
यह देश उस गद्दार ब्राह्मण को भी नहीं भूला सकता है जो राजा दाहिर को हराने के लिए मंदिर का झंडा गिरवा कर कासिम को जिताया था।
उस गद्दार राणा सांगा को भी नहीं भुला सकता जिसने बाबर को बुलाया था।
उस गद्दार मानसिंह को भी देश नहीं भुला सकता जिसने अकबर कोअपना फूफा और जीजा बनाया।
उस ब्राह्मण पुष्यमित्र को भी नही भुला सकता जिसने बौद्धों का सर कलम कार्रवाया था।
अबे आपलोग क्या बताना चाहते हो?
देश का इतिहास चिरकुटवा
पोस्ट से बताना चाहते हैं।
यहां के हिंदुओं की25 माताएं आज कुरुक्षेत्र के गौशाला में स्वर्गवासी हो गई है।
अगर हिन्दू हो जाओ दाह संश्कार कराओ। और गौशालाके प्रबंधकों का गला रेतो जैसे अखलाक, जुनैद, पहलू आदि का किया था। क्योंकि हिन्दुओं की माताओं के मौत के लिए गौशाला
प्रबंधन ही जिम्मेदार है।
बड़ौदा नरेश सयाजी राव गायकवाड़ से करार के अनुसार सन 1917 के सितंबर महीने के दूसरे सप्ताह में बाबासाहब अम्बेडकर अपने अग्रज बंधु के साथ बड़ौदा गए, हालाकि सयाजी राव ने डा.अम्बेडकर को स्थानक से लाने की व्यवस्था का आदेश पहले ही जारी कर दिया था, परंतु एक अस्पृश्य को लाने के लिए कोई तैयार नही हुआ, फलस्वरूप बाबासाहब स्वतः ही व्यवस्था कर पहुंच गए
बड़ौदा में बाबासाहब को रहनें और खाने की व्यवस्था स्वतः ही करनी थी, परंतु यह बात बड़ौदा में जंगल की आग की तरह पहले ही फैल गयी थी कि मुम्बई से एक महार युवक बड़ौदा के सचिवालय में नौकरी करने आ रहा है, फलस्वरूप किसी भी हिन्दू रेस्टोरेंट या धर्मशाला में विद्वान डा.अम्बेडकर को रहने का सहारा नहीं मिला, आखिर उन्होंने अपना नाम बदलकर बताया तब उन्हें एक पारसी धर्मशाला में जगह मिली
बड़ौदा नरेश गायकवाड़ को डा.अम्बेडकर को वित्तमंत्री बनाने की प्रबल इच्छा थी पर अनुभव न होने की वजह से बाबासाहब नें सेना के सचिव पद को ही स्वीकार किया.
सचिवालय में डा.अम्बेडकर को अस्पृश्य होने के कारण बहुत बेइज्जती का सामना करना पड़ा उन्हें पीने के लिए पानी तक नहीं मिलता था चपरासियों द्वारा भी फाइलें दूर से ही फेंकी जाती थी, उनके आने और जाने के पहले फर्श पर पड़ी चटाइयां हटा दी जाती थीं, इस अमानुषीय अत्याचारों के बाद भी वे अपनी अधूरी पड़ी शिक्षा पूरी करने में हमेसा अग्रसर रहते थे पर उन्हें पढ़ाई के लिए ग्रंथालय में तभी जाने की अनुमति मिलती थी जब वहां खाली समय में दूसरा और कोई नही होता था, यह किसी महान विद्वान के साथ अमानवीय अपमान की एक पराकाष्ठा ही थी, जिसका मूल कारण था भारत में व्याप्त मनुवादी वर्ण व्यवस्था के जातिवादी आतंक के काले कानून का कहर.
एक दिन मनुवादी वर्ण व्यवस्था के आतंक नें सारी हद ही तोड़ दी बाबासाहब जिस पारसी धर्मशाला में रहते थे वहां एक दिन पारसियों का क्रोध से आग बबूला बड़ा झुंड हाथ में लाठियां लेकर आ पहुंचा ,झुंड के एक व्यक्ति ने बाबासाहब से पूंछा तुम कौन हो बाबासाहब नें तुरंत जवाब दिया मैं एक हिन्दू हूँ, जवाब सुनकर उस व्यक्ति ने आगबबूला होकर कहा तुम कौन हो यह मैं अच्छी तरह जानता हूँ, तुमने हमारे अतिथि गृह को पूरा भ्रष्ट कर दिया तुम यहाँ से अभी तुरंत निकल जाओ, बाबासाहब नें अपनी सारी शक्ति इकट्ठा करके उनसे अनुरोध पूर्वक कहा अभी रात है मुझे आप केवल आठ घंटे की और मोहलत दीजिये सुबह मैं आपका यह आवास स्वयं ही खाली कर दूंगा, उस भीड़ ने तनिक भी देर नहीं लगाई और बाबासाहब का सारा सामान कमरे से बाहर सड़क पर फेंक दिया, तब बाबासाहब नें बहुत प्रयास किया पर रातभर के लिए भी उन्हें वहां कोई हिन्दू या मुसलमान आश्रय देने के लिए तैयार नहीं हुआ.
आखिर भूंखे प्यासे बाबासाहब रात में ही शहर से बाहर निकलने पर मजबूर हुए, और उन्होंने एक बाग में पेंड़ के नीचे रोते हुए सारी रात बिताई, ऊपर खुला आसमान और नीचे खुली जमीन आज दुनियाँ के सबसे बड़े विद्वान का यही एक एकलौता सहारा था,
बाबासाहब ने वही पेड़ के नीचे रोते हुए संकल्प लिया कि “मैं अपने दबे कुचले अस्पृश्य समूचे समाज को इस घिनौने दलदल से निकालने के लिए अपनी पूरी जिंदगी लगा दूंगा”, आज बड़ौदा की वही जमीन बाबासाहब के “संकल्प भूमि ” के नाम से जानी जाती है जहां पर समूचे देश के अम्बेडकरवादी इकट्ठा होकर उनके संकल्प को दोहराने का सतत प्रयास जारी रखते हैं.
सुबह होने पर बाबासाहब पुनः बम्बई वापस आ गए.
आज भारत के समूचे बहुजन समाज ने बाबासाहब के उसी पेंड़ के नीचे किये गए संकल्प का पूरा फायदा उठाया पढ़े लिखे ऊंचे ऊंचे ओहदे पर पहुंचे और अपनें लिए ऊंची ऊंची बड़ी बड़ी बिल्डिंगें बनायीं पर बाबासाहब के लिए कही कोई रंचमात्र भी जगह शेष नही छोड़ी इससे बड़ा दुःखद अन्याय भला किसी विद्वान महापुरुष के लिए और क्या हो सकता है.
SOURCE – मिशन अम्बेडकर (FB)
*छत्रपति शाहू महाराज* का जन्म 26 जून, 1874 ई. को कुन्बी (कुर्मी) जागीरदार श्रीमंत जयसिंह राव आबा साहब घाटगे के यहां हुआ था। बचपन में इन्हें यशवंतराव के नाम से जानते थे। छत्रपति शिवाजी महाराज (प्रथम) के दूसरे पुत्र के वंशज शिवाजी चतुर्थ कोल्हापुर में राज्य करते थे। ब्रिटिश षडयंत्र और अपने ब्राम्हण दीवान की गद्दारी की वजह से जब शिवाजी चतुर्थ का कत्ल हुआ तो उनकी विधवा आनंदीबाई ने अपने जागीरदार जयसिंह राव आबासाहेब घाटगे के पुत्र यशवंतराव को मार्च, 1884 ई. में गोद ले लिया। बाल्य-अवस्था में ही यशवंतराव को साहू महाराज की हैसियत से कोल्हापुर रियासत की राजगद्दी सम्भालनी पड़ी। हालांकि राज्य का नियंत्रण उनके हाथ में काफ़ी समय बाद 2 अप्रैल, 1894 में आया। छत्रपति साहू महाराज का विवाह बड़ौदा के मराठा सरदार खानवीकर की बेटी लक्ष्मीबाई से हुआ था। साहू महाराज की शिक्षा राजकोट के राजकुमार महाविद्यालय और धारवाड़ में हुई थी। वे 1894 ई. में कोल्हापुर रियासत के राजा बने।
उन्होंने देखा कि जातिवाद के कारण समाज का एक वर्ग पिस रहा है। छत्रपति शाहू महाराज ने दलित और पिछड़ी जाति के लोगों के लिए विद्यालय खोले और छात्रावास बनवाए। इससे उनमें शिक्षा का प्रचार हुआ और सामाजिक स्थिति बदलने लगी। परन्तु उच्च वर्ग के लोगों ने इसका विरोध किया। वे छत्रपति शाहू महाराज को अपना शत्रु समझने लगे। उनके पुरोहित तक ने यह कह दिया कि आप शूद्र हैं और शूद्र को वेद के मंत्र सुनने का अधिकार नहीं है। छत्रपति शाहूजी महाराज ने इस सारे विरोध का डट कर सामना किया और अपने राज्य में राज पुरोहित पद पर सिर्फ ब्राम्हण की नियुक्ति पर रोक लगा दी।
देश में आरक्षण के जनक- 1894 में, जब शाहूजी महाराज ने राज्य की बागडोर सम्भाली थी, उस समय कोल्हापुर के सामान्य प्रशासन में कुल 71 पदों में से 60 पर ब्राह्मण अधिकारी नियुक्त थे। इसी प्रकार लिपिक पद के 500 पदों में से मात्र 10 पर गैर-ब्राह्मण थे।
1902 के मध्य में शाहू जी महाराज ने इस गैरबराबरी को दूर करने के लिए देश में पहली बार अपने राज्य में आरक्षण व्यवस्था लागू की। एक आदेश जारी कर कोल्हापुर के अंतर्गत शासन-प्रशासन के *50 प्रतिशत पद पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित कर दिये।* महाराज के इस आदेश से ब्राह्मणों पर तो जैसे गाज गिर गयी। विदित रहे कि शाहू जी महाराज द्वारा पिछड़ी जातियों को अवसर उपलब्ध कराने के बाद 1912 में 95 पदों में से ब्राह्मण अधिकारियों की संख्या घटकर 35 रह गई थी। शाहूजी महाराज ने कोल्हापुर नगरपालिका के चुनाव में अछूतों के लिए भी सीटें आरक्षित की थी। इसका असर भी दिखा देश में ऐसा पहला मौका आया जब राज्य नगरपालिका का अध्यक्ष अस्पृश्य जाति से चुन कर आया था।
*शाहूजी महाराज के अतुलनीय योगदान*
छत्रपति शाहू महाराज ने सिर्फ यही नहीं किया, अपितु उन्होंने पिछड़ी जातियों समेत समाज के सभी वर्गों के लिए अलग-अलग सरकारी संस्थाएं खोलने की पहल की। यह अनूठी पहल थी उन जातियों को शिक्षित करने के लिए, जो सदियों से उपेक्षित थीं, इस पहल में दलित-पिछड़ी जातियों के बच्चों की शिक्षा के लिए ख़ास प्रयास किये गए थे। वंचित और गरीब घरों के बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई। शाहू महाराज के प्रयासों का परिणाम उनके शासन में ही दिखने लग गया था। शाहू जी महाराज ने जब देखा कि अछूत-पिछड़ी जाति के छात्रों की राज्य के स्कूल-कॉलेजों में पर्याप्त संख्या हैं, तब उन्होंने वंचितों के लिए खुलवाये गए पृथक स्कूल और छात्रावासों को बंद करवा दिया और उन्हें सामान्य छात्रों के साथ ही पढ़ने की सुविधा प्रदान की। साथ मुस्लिम समाज की शिक्षा पर भी विशेष ध्यान देने के लिए *मुस्लिम शिक्षा समिति* का गठन किया ।
1- छत्रपति साहू महाराज के कार्यों से उनके विरोधी भयभीत थे और उन्हें जान से मारने की धमकियाँ दे रहे थे। इस पर उन्होंने कहा वे गद्दी छोड़ सकते हैं, मगर सामाजिक प्रतिबद्धता के कार्यों से वे पीछे नहीं हट सकते।
2- साहू महाराज जी ने 15 जनवरी, 1919 के अपने आदेश में कहा था कि- उनके राज्य के किसी भी कार्यालय और गाँव पंचायतों में भी दलित-पिछड़ी जातियों के साथ समानता का बर्ताव हो, यह सुनिश्चित किया जाये। उनका स्पष्ट कहना था कि छुआछूत को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। उच्च जातियों को दलित जाति के लोगों के साथ मानवीय व्यवहार करना ही चाहिए। जब तक आदमी को आदमी नहीं समझा जायेगा, समाज का चौतरफा विकास असम्भव है।
3- 15 अप्रैल, 1920 को नासिक में छात्रावास की नींव रखते हुए साहू जी महाराज ने कहा कि- जातिवाद का का अंत ज़रूरी है. जाति को समर्थन देना अपराध है। हमारे समाज की उन्नति में सबसे बड़ी बाधा जाति है। जाति आधारित संगठनों के निहित स्वार्थ होते हैं। निश्चित रूप से ऐसे संगठनों को अपनी शक्ति का उपयोग जातियों को मजबूत करने के बजाय इनके खात्मे में करना चाहिए।
4- जाति व्यवस्था ब्राह्मणों की सबसे बड़ी ताकत और बहुजनों की सबसे बड़ी कमजोरी बनी हुई है उसे जड़ से खत्म करने के लिए शाहूजी महाराज ने एक अछूत गंगाधर काम्बले की चाय की दुकान खुलवाई और स्वयं महाराज यह संदेश देने के लिए चाय पीने जाते थे कि जब महाराज छुआ-छूत और जाति-पांति को नहीं मानता तो जनता को भी नहीं माननी चाहिए उस जमाने में एक अछूत की चाय की दुकान खुलवाना ब्राह्मणवादी जाती व्यवस्था के खिलाफ सबसे बड़ा साहसिक कदम था ।
5- बाबा साहब को पूर्ण समर्थन- बाबा साहेब डा० भीमराव अम्बेडकर बड़ौदा नरेश की छात्रवृति पर पढ़ने के लिए विदेश गए लेकिन छात्रवृत्ति बीच में ही खत्म हो जाने के कारण उन्हे वापस भारत आना पड़ा l इसकी जानकारी जब शाहू जी महाराज को हुई तो महाराज खुद भीमराव का पता लगाकर मुम्बई की चाल में उनसे मिलने पहुंच गए और आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्हें सहयोग दिया।
6- शोषित पिछड़ों को डा अम्बेडकर के रूप में एक नेता मिल गया है ऐसी सार्वजनिक सभा में शाहूजी महाराज ने घोषणा की ।
7- शाहूजी महाराज ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर के मूकनायक समाचार पत्र के प्रकाशन में भी सहायता की। महाराजा के राज्य में कोल्हापुर के अन्दर ही दलित-पिछड़ी जातियों के दर्जनों समाचार पत्र और पत्रिकाएँ प्रकाशित होती थीं। सदियों से जिन लोगों को अपनी बात कहने का हक नहीं था, महाराजा के शासन-प्रशासन ने उन्हें बोलने की स्वतंत्रता प्रदान कर दी।
छत्रपति साहूजी महाराज का निधन 10 मई, 1922 मुम्बई में हुआ। महाराज ने पुनर्विवाह को क़ानूनी मान्यता दी थी। उनका समाज के किसी भी वर्ग से किसी भी प्रकार का द्वेष नहीं था। साहू महाराज के मन में बहुजन वर्ग के प्रति गहरा लगाव था। उन्होंने सामाजिक परिवर्तन की दिशा में जो क्रन्तिकारी उपाय किये थे, उसके लिए क्रांतिकारी नमन।
*जागो और जगाओ*
*महापुरुषों को पहचानो*
यह देश उस गद्दार ब्राह्मण को भी नहीं भूला सकता है जो राजा दाहिर को हराने के लिए मंदिर का झंडा गिरवा कर कासिम को जिताया था।
उस गद्दार राणा सांगा को भी नहीं भुला सकता जिसने बाबर को बुलाया था।
उस गद्दार मानसिंह को भी देश नहीं भुला सकता जिसने अकबर कोअपना फूफा और जीजा बनाया।
उस ब्राह्मण पुष्यमित्र को भी नही भुला सकता जिसने बौद्धों का सर कलम कार्रवाया था।
अबे आपलोग क्या बताना चाहते हो?
देश का इतिहास चिरकुटवा
पोस्ट से बताना चाहते हैं।
यहां के हिंदुओं की25 माताएं आज कुरुक्षेत्र के गौशाला में स्वर्गवासी हो गई है।
अगर हिन्दू हो जाओ दाह संश्कार कराओ। और गौशालाके प्रबंधकों का गला रेतो जैसे अखलाक, जुनैद, पहलू आदि का किया था। क्योंकि हिन्दुओं की माताओं के मौत के लिए गौशाला
प्रबंधन ही जिम्मेदार है।
बड़ौदा नरेश सयाजी राव गायकवाड़ से करार के अनुसार सन 1917 के सितंबर महीने के दूसरे सप्ताह में बाबासाहब अम्बेडकर अपने अग्रज बंधु के साथ बड़ौदा गए, हालाकि सयाजी राव ने डा.अम्बेडकर को स्थानक से लाने की व्यवस्था का आदेश पहले ही जारी कर दिया था, परंतु एक अस्पृश्य को लाने के लिए कोई तैयार नही हुआ, फलस्वरूप बाबासाहब स्वतः ही व्यवस्था कर पहुंच गए
बड़ौदा में बाबासाहब को रहनें और खाने की व्यवस्था स्वतः ही करनी थी, परंतु यह बात बड़ौदा में जंगल की आग की तरह पहले ही फैल गयी थी कि मुम्बई से एक महार युवक बड़ौदा के सचिवालय में नौकरी करने आ रहा है, फलस्वरूप किसी भी हिन्दू रेस्टोरेंट या धर्मशाला में विद्वान डा.अम्बेडकर को रहने का सहारा नहीं मिला, आखिर उन्होंने अपना नाम बदलकर बताया तब उन्हें एक पारसी धर्मशाला में जगह मिली
बड़ौदा नरेश गायकवाड़ को डा.अम्बेडकर को वित्तमंत्री बनाने की प्रबल इच्छा थी पर अनुभव न होने की वजह से बाबासाहब नें सेना के सचिव पद को ही स्वीकार किया.
सचिवालय में डा.अम्बेडकर को अस्पृश्य होने के कारण बहुत बेइज्जती का सामना करना पड़ा उन्हें पीने के लिए पानी तक नहीं मिलता था चपरासियों द्वारा भी फाइलें दूर से ही फेंकी जाती थी, उनके आने और जाने के पहले फर्श पर पड़ी चटाइयां हटा दी जाती थीं, इस अमानुषीय अत्याचारों के बाद भी वे अपनी अधूरी पड़ी शिक्षा पूरी करने में हमेसा अग्रसर रहते थे पर उन्हें पढ़ाई के लिए ग्रंथालय में तभी जाने की अनुमति मिलती थी जब वहां खाली समय में दूसरा और कोई नही होता था, यह किसी महान विद्वान के साथ अमानवीय अपमान की एक पराकाष्ठा ही थी, जिसका मूल कारण था भारत में व्याप्त मनुवादी वर्ण व्यवस्था के जातिवादी आतंक के काले कानून का कहर.
एक दिन मनुवादी वर्ण व्यवस्था के आतंक नें सारी हद ही तोड़ दी बाबासाहब जिस पारसी धर्मशाला में रहते थे वहां एक दिन पारसियों का क्रोध से आग बबूला बड़ा झुंड हाथ में लाठियां लेकर आ पहुंचा ,झुंड के एक व्यक्ति ने बाबासाहब से पूंछा तुम कौन हो बाबासाहब नें तुरंत जवाब दिया मैं एक हिन्दू हूँ, जवाब सुनकर उस व्यक्ति ने आगबबूला होकर कहा तुम कौन हो यह मैं अच्छी तरह जानता हूँ, तुमने हमारे अतिथि गृह को पूरा भ्रष्ट कर दिया तुम यहाँ से अभी तुरंत निकल जाओ, बाबासाहब नें अपनी सारी शक्ति इकट्ठा करके उनसे अनुरोध पूर्वक कहा अभी रात है मुझे आप केवल आठ घंटे की और मोहलत दीजिये सुबह मैं आपका यह आवास स्वयं ही खाली कर दूंगा, उस भीड़ ने तनिक भी देर नहीं लगाई और बाबासाहब का सारा सामान कमरे से बाहर सड़क पर फेंक दिया, तब बाबासाहब नें बहुत प्रयास किया पर रातभर के लिए भी उन्हें वहां कोई हिन्दू या मुसलमान आश्रय देने के लिए तैयार नहीं हुआ.
आखिर भूंखे प्यासे बाबासाहब रात में ही शहर से बाहर निकलने पर मजबूर हुए, और उन्होंने एक बाग में पेंड़ के नीचे रोते हुए सारी रात बिताई, ऊपर खुला आसमान और नीचे खुली जमीन आज दुनियाँ के सबसे बड़े विद्वान का यही एक एकलौता सहारा था,
बाबासाहब ने वही पेड़ के नीचे रोते हुए संकल्प लिया कि “मैं अपने दबे कुचले अस्पृश्य समूचे समाज को इस घिनौने दलदल से निकालने के लिए अपनी पूरी जिंदगी लगा दूंगा”, आज बड़ौदा की वही जमीन बाबासाहब के “संकल्प भूमि ” के नाम से जानी जाती है जहां पर समूचे देश के अम्बेडकरवादी इकट्ठा होकर उनके संकल्प को दोहराने का सतत प्रयास जारी रखते हैं.
सुबह होने पर बाबासाहब पुनः बम्बई वापस आ गए.
आज भारत के समूचे बहुजन समाज ने बाबासाहब के उसी पेंड़ के नीचे किये गए संकल्प का पूरा फायदा उठाया पढ़े लिखे ऊंचे ऊंचे ओहदे पर पहुंचे और अपनें लिए ऊंची ऊंची बड़ी बड़ी बिल्डिंगें बनायीं पर बाबासाहब के लिए कही कोई रंचमात्र भी जगह शेष नही छोड़ी इससे बड़ा दुःखद अन्याय भला किसी विद्वान महापुरुष के लिए और क्या हो सकता है.
SOURCE – मिशन अम्बेडकर (FB)
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