#क्या शरीर मे आत्मा होती है......
(पोस्ट बड़ा है, अतः ध्यान से पढ़े)
आध्यात्मिक लोग कहते है कि मानव शरीर के अन्दर एक आत्मा होती है जो शरीर को संचालित करती है! इनका यह भी कहना है कि आत्मा अजर-अमर होती है और उसके निकलते ही मानव मर जाता है......
अब सवाल यह है कि आखिर आत्मा के निकलने से मानव मर जाता है तो आत्मा निकलती ही क्यो है?
हमारा शरीर वृद्ध होता है या चोट लगने पर घायल होता है... आत्मा ना तो घायल होती है और ना ही वृद्ध होती है, तो फिर आत्मा क्यो निकलती है!
हमारे शरीर मे आत्मा जैसा कुछ भी नही है.... हमारा पूरा शरीर हृदय और मस्तिष्क से चलता है, जब कभी आपको कही चोट लगती है तो दिमाग तुरन्त यह बात हृदय को बताता है और फिर हम उस पर ध्यान देते है! जब दिमाग और हृदय काम करना बन्द कर देते हैं तो शरीर मे रक्त संचार रुक जाता है और ग्लूकोज की सप्लाई भी बन्द हो जाती है.... जिससे मांस सड़ने लगता है, बस यही मृत्यु है!
अगर आत्मा के निकलने से मौत होती है तो मृत्यु के बाद भी आँख लगभग छः घण्टे जीवित रहती है, क्या उसके लिये अलग आत्मा होती है....
अगर हमारा हाथ-पैर कट जाता है तो आत्मा नही निकलती पर गला कटने पर क्यों निकल जाती है......... हमारे शरीर मे करोड़ो जिवाणु भी होते है तो क्या हमारे शरीर मे करोड़ो आत्माऐं है...
आध्यात्मिक कहते हैं कि आत्मा गर्भावस्था के दौरान शरीर में प्रवेश कर जाती हैं और मृत्यु के साथ शरीर से निकल जाती है! फिर दुबारा से जन्म,परमात्मा से मिलन या प्रलय के दिन होने वाले फैसले का इंतजार करती है! ( आपके धार्मिक विश्वासों के अनुसार )…
मै कहता हूँ कि कोई आत्मा गर्भ मे नही प्रवेश करती.... गर्भधारण अण्डाणु को शुक्राण द्वारा निषेचन का परिणाम है।
स्त्री अपने अण्डाशयों में चालीस हजार से भी अधिक अण्डाणुओं को एक साथ जन्म देती है, निश्चित तौर पर इतनी "सुप्त आत्मायें" नारी शरीर में पहले से मौजूद नहीं हो सकती।
रही बात पुरूष की.... तो वीर्य में स्पर्म काउंट की संख्या लगभग 80 से 120 मिलियन प्रति क्यूबिक मिली० है, (एक मिली० में एक हजार क्यूबिक मिली० होते है) और पुरूष के एक बार के वीर्यपात की मात्रा लगभग 3 से 5 मिली० होती है...अब जरा कैल्क्यूलेटर निकालिये और हिसाब लगाइये…...
निश्चित तौर पर इतने सारे शुक्राणुओं में भी "सुप्त आत्माऐं" नही होती होगी!
असल मे आत्मा की अवधारणा बड़ी चतुराई से बनायी गयी, आत्मा होने का दूसरा पहलू यह भी है कि "परमात्मा" भी है! गरुणपुराण के अनुसार मृतात्मा को कर्मानुसार तरह-तरह के कष्ट झेलने पड़ते है, कभी नर्क पकोड़े की तरह उबाला जाता है तो कभी आरी से काटा जाता है, इस पुराण मे नर्क के कष्ट का पूरा "मेन्यूकार्ड" है......
अब इस कष्ट से बचने का उपाय भी इसी पुराण मे है.. अगर आप ब्राह्मण को गौदान करोगे तो आपके परिजन की आत्मा "वैतरणी" नदी पार कर जायेगी, अगर आप ब्राह्मण को भोजन और दान-दक्षिणा से तृप्त करोगे तो मृतक की आत्मा को यमदूत कष्ट नही देगे... अर्थात मृत्यु पश्चात भी करोबार चलता रहे इसके लिऐ आत्मा बनायी गयी....
गरुणपुराण मे पाँच प्रकार के नर्को का वर्णन है..
रौरव नर्क!
महारौरव नर्क!
कण्टकावन नर्क!
अग्निकुण्ड नर्क!
पंचकष्ट नर्क!
अब इन कष्टदायी नर्कीय यातना से बचने के लिऐ तमाम प्रकार के दान-दक्षिणा वाले उपाय भी है.... असल मे आत्मा का अस्तित्व बनाया ही इसीलिऐ गया कि अपने पित्रो की आत्मा को नर्क से बचाने के लिये परिजन तमाम कर्मकाण्ड और दान-दक्षिणा आसानी से करेगे, बस यही आत्मा का सच है...
गीता मे श्रीकृष्ण कहते है कि आत्मा कभी नही मरती... अरे माधव मरेगी तो तब जब वो होगी ना!
इस ब्राह्माण्ड मे आत्मा और परमात्मा का कोई अस्तित्व नही है!
(पोस्ट बड़ा है, अतः ध्यान से पढ़े)
आध्यात्मिक लोग कहते है कि मानव शरीर के अन्दर एक आत्मा होती है जो शरीर को संचालित करती है! इनका यह भी कहना है कि आत्मा अजर-अमर होती है और उसके निकलते ही मानव मर जाता है......
अब सवाल यह है कि आखिर आत्मा के निकलने से मानव मर जाता है तो आत्मा निकलती ही क्यो है?
हमारा शरीर वृद्ध होता है या चोट लगने पर घायल होता है... आत्मा ना तो घायल होती है और ना ही वृद्ध होती है, तो फिर आत्मा क्यो निकलती है!
हमारे शरीर मे आत्मा जैसा कुछ भी नही है.... हमारा पूरा शरीर हृदय और मस्तिष्क से चलता है, जब कभी आपको कही चोट लगती है तो दिमाग तुरन्त यह बात हृदय को बताता है और फिर हम उस पर ध्यान देते है! जब दिमाग और हृदय काम करना बन्द कर देते हैं तो शरीर मे रक्त संचार रुक जाता है और ग्लूकोज की सप्लाई भी बन्द हो जाती है.... जिससे मांस सड़ने लगता है, बस यही मृत्यु है!
अगर आत्मा के निकलने से मौत होती है तो मृत्यु के बाद भी आँख लगभग छः घण्टे जीवित रहती है, क्या उसके लिये अलग आत्मा होती है....
अगर हमारा हाथ-पैर कट जाता है तो आत्मा नही निकलती पर गला कटने पर क्यों निकल जाती है......... हमारे शरीर मे करोड़ो जिवाणु भी होते है तो क्या हमारे शरीर मे करोड़ो आत्माऐं है...
आध्यात्मिक कहते हैं कि आत्मा गर्भावस्था के दौरान शरीर में प्रवेश कर जाती हैं और मृत्यु के साथ शरीर से निकल जाती है! फिर दुबारा से जन्म,परमात्मा से मिलन या प्रलय के दिन होने वाले फैसले का इंतजार करती है! ( आपके धार्मिक विश्वासों के अनुसार )…
मै कहता हूँ कि कोई आत्मा गर्भ मे नही प्रवेश करती.... गर्भधारण अण्डाणु को शुक्राण द्वारा निषेचन का परिणाम है।
स्त्री अपने अण्डाशयों में चालीस हजार से भी अधिक अण्डाणुओं को एक साथ जन्म देती है, निश्चित तौर पर इतनी "सुप्त आत्मायें" नारी शरीर में पहले से मौजूद नहीं हो सकती।
रही बात पुरूष की.... तो वीर्य में स्पर्म काउंट की संख्या लगभग 80 से 120 मिलियन प्रति क्यूबिक मिली० है, (एक मिली० में एक हजार क्यूबिक मिली० होते है) और पुरूष के एक बार के वीर्यपात की मात्रा लगभग 3 से 5 मिली० होती है...अब जरा कैल्क्यूलेटर निकालिये और हिसाब लगाइये…...
निश्चित तौर पर इतने सारे शुक्राणुओं में भी "सुप्त आत्माऐं" नही होती होगी!
असल मे आत्मा की अवधारणा बड़ी चतुराई से बनायी गयी, आत्मा होने का दूसरा पहलू यह भी है कि "परमात्मा" भी है! गरुणपुराण के अनुसार मृतात्मा को कर्मानुसार तरह-तरह के कष्ट झेलने पड़ते है, कभी नर्क पकोड़े की तरह उबाला जाता है तो कभी आरी से काटा जाता है, इस पुराण मे नर्क के कष्ट का पूरा "मेन्यूकार्ड" है......
अब इस कष्ट से बचने का उपाय भी इसी पुराण मे है.. अगर आप ब्राह्मण को गौदान करोगे तो आपके परिजन की आत्मा "वैतरणी" नदी पार कर जायेगी, अगर आप ब्राह्मण को भोजन और दान-दक्षिणा से तृप्त करोगे तो मृतक की आत्मा को यमदूत कष्ट नही देगे... अर्थात मृत्यु पश्चात भी करोबार चलता रहे इसके लिऐ आत्मा बनायी गयी....
गरुणपुराण मे पाँच प्रकार के नर्को का वर्णन है..
रौरव नर्क!
महारौरव नर्क!
कण्टकावन नर्क!
अग्निकुण्ड नर्क!
पंचकष्ट नर्क!
अब इन कष्टदायी नर्कीय यातना से बचने के लिऐ तमाम प्रकार के दान-दक्षिणा वाले उपाय भी है.... असल मे आत्मा का अस्तित्व बनाया ही इसीलिऐ गया कि अपने पित्रो की आत्मा को नर्क से बचाने के लिये परिजन तमाम कर्मकाण्ड और दान-दक्षिणा आसानी से करेगे, बस यही आत्मा का सच है...
गीता मे श्रीकृष्ण कहते है कि आत्मा कभी नही मरती... अरे माधव मरेगी तो तब जब वो होगी ना!
इस ब्राह्माण्ड मे आत्मा और परमात्मा का कोई अस्तित्व नही है!
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